महाराष्ट्र की
चीनी मिलों ने कार्रवाई के डर के बाद केंद्रीय खाद्य मंत्रालय को न्यायालय
में घसीट लिया है। इन चीनी मिलों का आरोप है कि सरकार ने उन्हें काफी कम
कीमतों पर चीनी बेचने के लिए विवश किया। राज्य की करीब 50 मिलें मंत्रालय
के उस निर्देश का पालन करने में असफल रही हैं, जिसके तहत इन्हें 30 सितंबर
तक जमा चीनी भंडार पिछले साल के मुकाबल घटाकर 37 प्रतिशत स्तर तक लाने के
लिए कहा गया था। राज्य में कु ल चीनी उत्पादन में इन चीनी मिलों की
हिस्सेदारी 35-40 प्रतिशत तक होती है। इन 50 चीनी मिलों में ज्यादातर
विभिन्न राजनीतिक दलों से संबद्ध हैं। शुरू में मिलों ने तय भंडारण सीमा का
लक्ष्य प्राप्त करने के लिए कुछ समय मांगा था लेकिन उन्हें इसकी अनुमति
नहीं मिली। अब इन मिलों ने उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की है और तीन
महीने का समय मांगा है। अगली सुनवाई शुक्रवार को होगी। मंत्रालय ने 8
सितंबर को एक अधिसूचना जारी की थी, जिसमें उन्हें 30 सितंबर तक चीनी भंडार
पिछले साल के भंडार का 37 प्रतिशत और 31 अक्टूबर तक इसे घटाकर 24 प्रतिशत
करने के लिए कहा गया था। जमाखोरी के कारण चीनी की कीमतें नहीं बढ़े इसके
लिए सरकार ने यह निर्देश जारी किया था। मिलों का कहना है कि इस आदेश का
पालन करने के लिए उन्हें 22 दिनों के अंदर 12 लाख टन चीनी बाजार में डालनी
है। उनके अनुसार यह मात्रा बाजार जितनी चीनी खपा सकती है उसके मुकाबले
दोगुनी है। मिलों का कहना है कि इससे बाजार में चीनी कीमतें कम होना तय है।
लेकिन राजनीतिक दलों से ताल्लुक रखने वाली चीनी मिलों को लगा कि वह 30
सितंबर की सीमा आगे बढ़वाने के लिए मंत्रालय पर आवश्यक दबाव बना लेंगे।
महाराष्ट्र स्टेट को-ऑपरेटिव शुगर फैक्टरीज फेडेरेशन के प्रबंध निदेशक
संजीव बाबर ने कहा, 'सरकार ने भंडार कम करने के लिए जितना वक्त दिया वह
नाकाफी था। उत्तर प्रदेश के मुकाबले महाराष्ट्र की चीनी मिलों की स्थिति
अलग है। महाराष्ट्र के अगल-बगल चीनी उत्पादक राज्य हैं, इसलिए उन्हें
पूर्वी एवं पूर्वोत्तर राज्यों को चीनी बेचनी पड़ती है। एक बार में चीनी की
इतनी मात्रा नहीं बेची जा सकती। इसके मुकाबले उत्तर प्रदेश के आसपास चीनी
उपभोग करने वाले राज्य हैं, इसलिए उनके लिए चीनी बेचना आसान है। महाराष्ट्र
में चीनी की खपत भी काफी कम है।' एक चीनी मिल के वरिष्ठï अधिकारी ने कहा
कि चीनी खरीदार नहीं मिल रहे हैं। अधिकारी के अनुसार परिवहन संबंधी
परेशानियों से मुश्किलें और बढ़ गई हैं। इस बीच पिछले एक महीने में मिलों
में कीमतें 1-1.5 रुपये प्रति किलो कम हो गई हैं। मिलों का कहना है कि यह
उत्पादन लागत की तुलना में प्रति किलोग्राम 1-2 रुपये कम है। सरकार ने चीनी
निर्यात कम करने के लिए निर्यात पर शुल्क भी लगा दिया है।
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