मुंबई December 22, 2010
कपास निर्यात के बाकी बचे हिस्से के लिए पंजीकरण का काम जनवरी के पहले हफ्ते में शुरू होने की संभावना है। सरकार ने कुल 55 लाख गांठ कपास निर्यात की अनुमति दी थी, लेकिन निर्यातक तय समय में सिर्फ 30 लाख गांठ कपास का निर्यात कर पाए। बाकी 25 लाख गांठ कपास के निर्यात के लिए सरकार दोबारा पंजीकरण का काम जनवरी में शुरू करेगी। कपड़ा मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक, मंत्रालय ने बुधवार को बाकी बची 25 लाख गांठ का पंजीकरण रद्द कर दिया क्योंकि विभिन्न वजहों से निर्यातक कपास की इतनी मात्रा का निर्यात नहीं कर पाए। निर्यात की समय सीमा 15 दिसंबर को समाप्त हो गई, जिसे कपड़ा मंत्रालय ने आगे नहीं बढ़ाया था।इस हफ्ते की शुरुआत में वाणिज्य मंत्रालय ने संकेत दिया था कि विदेश व्यापार निदेशालय (डीजीएफटी) के पास दोबारा पंजीकरण की जरूरत होगी, जबकि पहले टेक्सटाइल कमिश्नर के पास ऐसा कराना होता था। निर्यात पंजीकरण और इसकी सुपुर्दगी के लिए डीजीएफटी संशोधित दिशा-निर्देश तैयार कर रहा है। कारोबारियों को भरोसा है कि यह दिशा-निर्देश उद्योगों के हित में होगा। उद्योग ने कपास के सही ढंग से निर्यात केलिए तीन आधारभूत जरूरतों का सुझाव दिया था। पहला, निर्यात का पंजीकरण तभी हो जब बैंक की तरफ से वैध लेटर ऑफ इंटेंट जारी कर दिया जाए। आज केदौर में नकदी के बदले भी निर्यात किया जा सकता है, जो कारोबार में सटोरिया गतिविधियों के लिए जगह बनाता है।दूसरा, सुपुर्दगी की अवधि 45 दिन से घटाकर 30 दिन कर दी जानी चाहिए ताकि सिर्फ सही कारोबारी खरीद समझौता कर सकेंऔर इस सौदे का क्रियान्वयन कर सकें। सुपुर्दगी की अवधि लंबी होने से कारोबारियों को खरीदारों के साथ गलत धारणा के साथ सौदेबाजी करने का मौका मिल जाता है। तीसरा, कारोबारी बांग्लादेश जैसे देश में सहायक कार्यालय खोलकर बड़ी मात्रा में कपास इकट्ठा कर लेते हैं ताकि इसका परिवहन वैसे समय में उन देशों में किया जा सके जब कीमतें सर्वोच्च स्तर पर हों या खरीदार प्रीमियम देने को राजी हों। इस प्रक्रिया में वास्तविक खरीदार भारत से वास्तविक सुपुर्दगी से पहले माल हासिल कर लेता है। कॉटन कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (सीसीआई) के सीएमडी एम. बी. लाल ने कहा कि इसके अलावा हमने सरकार से ऐसे कारोबारियों को दंड देने का भी निवेदन किया है और ऐसे लोगों को भविष्य में निर्यात करने पर रोक लगाने का भी। सितंबर में कपड़ा मंत्रालय ने 55 लाख गांठ कपास निर्यात के लिए पंजीकरण की शुरुआत की थी। लेकिन 1 अक्टूबर से 15 अक्टूबर के बीच पंजीकृत मात्रा निर्धारित कोटा को पार कर गई। इसकेबाद सरकार ने ताजा पंजीकरण से इनकार कर दिया था।पाकिस्तान में बाढ़ आने की वजह से फसल बर्बाद होने और चीन में घरेलू स्तर पर कपास के इस्तेमाल में बढ़ोतरी के बाद निर्यातकों ने भारतीय बाजार का रुख कर लिया था और इस वजह से वैश्विक बाजार में कपास की कीमतों में नाटकीय रूप से बढ़ोतरी हो गई थी। बेंचमार्क किस्म शंकर-6 की कीमत पिछले तीन महीने में बढ़कर 11838 रुपये प्रति क्विंटल पर पहुंच गई जबकि 1 सितंबर को इसकी कीमत 9617 रुपये प्रति क्विंटल थी।इस बीच, कपास के वास्तविक उत्पादन को लेकर कारोबारी बंट गए हैं। लाल को भरोसा है कि देश में कपास का कुल उत्पादन करीब 350 लाख गांठ होगा जबकि उद्योग के दिग्गज (नाम न छापने की शर्त पर) कहते हैं कि कुल उत्पादन 335 लाख गांठ रहेगा। उनका कहना है कि आंध्र प्रदेश में फसल खराब होने की वजह से कुल उत्पादन 335 लाख गांठ रहेगा।असमय बारिश की वजह से आंध्र प्रदेश में कपास की 30 फीसदी फसल खराब हो गई है। यहां कुल उत्पादन 54 लाख गांठ बताया गया है। इसके उलट कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीएआई) का अनुमान है कि इस सीजन में कपास का कुल उत्पादन 347 लाख गांठ रहेगा जबकि पिछले सीजन में 307.7 लाख गांठ कपास का उत्पादन हुआ था। कॉटन एडवाइजरी बोर्ड ने सीजन की शुरुआत में कुल उत्पादन 325 लाख गांठ रहने का अनुमान लगाया था। (BS Hindi)
23 दिसंबर 2010
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