नई दिल्ली December 22, 2010
सरकार पिछले सत्र के दौरान उत्पादन में कमी का हवाला देकर जिंसों के दाम बढऩे की वजह बताकर अपना बचाव करती रही है, लेकिन अब यही दाव उस पर उलटा पडऩे लगा है। देश में कपास, चीनी, तिलहन समेत कई खाद्यान्न का बंपर उत्पादन है, फिर भी इनके दाम घटने के बजाय आसमान छू रहे हैं।जानकार दाम बढऩे की वजह सरकारी की नीतियों को मान रहे हैं। सरकार द्वारा कपास निर्यात में छूट देने के फैसले के बाद इसके भाव 10 फीसदी बढ़ चुके हैं। चीनी निर्यात की अनुमति और वायदा कारोबार फिर शुरू होने की खबरों से इसके दाम भी बढ़े हैं। साल भर में खाद्य तेलों के दाम भी 20 फीसदी से अधिक बढ़ चुके हैं। आंध्र प्रदेश में बारिश से दलहन की फसल चौपट हो सकती है। ऐसे में दालें एक बार फिर उबल सकती हैं।मुक्तसर कॉटन प्राइवेट लिमिटेड के नवीन ग्रोवर ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि कपास निर्यात की अनुमति और सीमा और बढ़ाने के फैसले के बाद से कपास के दाम 500 रुपये बढ़कर 4500 रुपये प्रति मन (40 किलोग्राम ) हो चुके हैं। चीनी का भी यही हाल है। चालू चीनी वर्ष में उत्पादन 250 लाख टन से अधिक होने की संभावना है। यह पिछले चीनी वर्ष के 189 लाख टन से 32 फीसदी से भी अधिक है, बावजूद इसके चीनी की कीमतों में तेजी आई है। चीनी कारोबारी भीमसेन बंसल ने बताया कि निर्यात की अनुमति मिलने के बाद से चीनी कीमतों में 120 रुपये प्रति क्विंटल का इजाफा हो चुका है। आश्चर्य है कि पेराई सत्र होने के बावजूद चीनी महंगी हो रही है। ऑफ सीजन से चीनी की कीमतों में 400 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी आ चुकी है। खाद्य तेलों के दाम भी खरीफ सत्र 2010-11 में तिलहन उत्पादन करीब 12 फीसदी से अधिक बढ़कर 154 लाख टन होने के बावजूद बढ़े हैं। पिछले दिसंबर के मुकाबले सोयाबीन रिफाइंड तेल के दाम करीब 23 फीसदी बढ़कर 580 रुपये प्रति 10 किलो और सरसों तेल के दाम 7 फीसदी बढ़कर 620 रुपये हो चुके है। इस दौरान रिफाइंड सूरजमुखी के तेल की कीमतों 42 फीसदी, मूंगफली तेल में 11 फीसदी का इजाफा हुआ है। (BS Hindi)
23 दिसंबर 2010
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें