मुंबई December 09, 2010
घरेलू टायर विनिर्माताओं को राहत प्रदान करते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने वित्त मंत्रालय से कहा है कि चार हफ्ते के भीतर वह जवाब दे कि 24 सितंबर को जारी उसके आदेश का क्रियान्वयन क्यों नहीं हुआ। अपने आदेश में उच्च न्यायालय ने राजस्व विभाग (वित्त मंत्रालय) से कहा था कि वह टायर विनिर्माताओं की चिंताओं व शिकायतों के समाधान के लिए विशेषज्ञों का एक पैनल गठित करे। लेकिन प्राकृतिक रबर पर आयात शुल्क मौजूदा 20 फीसदी से घटाकर 7.5 फीसदी (यहां तक कि एक लाख टन की सीमित मात्रा के लिए ही) किए जाने की इस पैनल की सिफारिश का क्रियान्वयन नहीं किया गया। आश्चर्यजनक रूप से सरकार अपना आकलन अदालत के सामने रखने में नाकाम रही है।30 नवंबर को अदालत ने पाया कि प्राकृतिक रबर के आयात शुल्क पर नॉन-एडवेलोरम को सूखे रबर पर लगने वाले एडवेलोरम शुल्क तक सीमित करने (20 फीसदी या 20 रुपये, जो भी कम हो) की विशेषज्ञ पैनल की सिफारिश वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग को भेजी गई है।ऑटोमोटिव टायर मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (एटीएमए) द्वारा जारी दूसरी रिट याचिका पर फैसला देते हुए न्यायमूर्ति एस. मुरलीधर ने उद्योग से कहा कि चार हफ्ते में सरकारी प्रत्युत्तर मिलने के बाद वह दो हफ्ते के भीतर रीजॉइंडर (अगर कोई हो) फाइल करे। ऑटोमोटिव टायर मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (एटीएमए) के चेयरमैन और अपोलो टायर के प्रबंध निदेशक नीरज कंवर ने कहा - हम चाहते हैं कि जीरो आयात शुल्क पर सरकार 1.70 लाख टन प्राकृतिक रबर का आयात करे और कीमतों में हो रही भारी बढ़ोतरी पर लगाम कसने के लिए सरकार इसका वितरण इस्तेमालकर्ताओं के बीच कर दे। लेकिन सितंबर में अदालत के आदेश के बाद भी सरकार अब तक शांत बैठी हुई है।केरल में प्राकृतिक रबर की प्रभावी कीमतों पर टिप्पणी करते हुए कंवर ने कहा - उत्पादन की लागत 55-60 रुपये प्रति किलोग्राम के बीच बैठती है और 20 फीसदी के लाभ के बाद भी यह अधिकतम 75 रुपये प्रति किलोग्राम होना चाहिए। किसी भी परिस्थिति में प्राकृतिक रबर की कीमतें इससे ऊपर नहीं जानी चाहिए। इसके उलट प्राकृतिक रबर की कीमतें फिलहाल 208 रुपये प्रति किलोग्राम के आसपास है। गुरुवार को तोक्यो कमोडिटी एक्सचेंज में इसकी कीमतें आपूर्ति के संकट के चलते 30 साल के सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गई। मई में डिलिवरी वाला अनुबंध गुरुवार को 3.1 येन की बढ़ोतरी केसाथ 380.3 येन प्रति किलोग्राम पर पहुंच गया और इसके पहले यह 382.5 येन प्रति किलोग्राम तक गया था। 11 नवंबर के बाद यह सर्वोच्च स्तर है, जब कीमत 383 येन प्रति किलोग्राम पर पहुंच गई थी।टायर विनिर्माता ऑटो उत्पादकों व किसानों के बीच फंसे हुए हैं। मौजूदा वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में टायर विनिर्माताओं के शुद्ध लाभ में 75 फीसदी की गिरावट आई है क्योंकि ये विनिर्माता रबर की ऊंची कीमतों का भार उपभोक्ताओं पर डालने में नाकाम रहे। ऑटो कंपनियां और किसानों ने टायर विनिर्माताओं की कीमत पर भारी-भरकम मुनाफा कमाया है। और शायद टायर ही ऐसा इकलौता जिंस है जिसमें शुल्कों का प्रतिकूल ढांचा अभी भी जारी है। आयात शुल्क में कटौती और उद्योग के बदले रबर के सरकारी आयात से उद्योग को राहत मिलेगी। कंवर ने कहा कि समान मौका उपलब्ध कराने के लिए सरकार को प्राकृतिक रबर के आयात पर शुल्क को शून्य पर लाना होगा, अन्यथा हम अपने संयंत्र धीरे-धीरे बंद कर देंगे।एटीएमए के महानिदेशक राजीव बुद्धराजा ने कहा - बैंकॉक समझौते के तहत रबर का आयात 7.5 फीसदी की प्रभावी दर पर होने से यह घरेलू उद्योग पर भारी पड़ेगा, जो निकट भविष्य में 10 से 12 हजार करोड़ रुपये के निवेश की प्रतीक्षा कर रहा है। भारत में उत्पादित करीब 40 फीसदी प्राकृतिक रबर की खपत गैर-टायर क्षेत्र मसलन रबर चप्पल, बेल्ट आदि में होती है। (BS Hindi)
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