December 27, 2010
भारत के खनन मंत्री बी के हांडिक और विश्व की सबसे बड़ी एल्युमीनियम उत्पादक कंपनी एल्कोआ के सीईओ क्लाउस क्लेनफेल्ड द्वारा एल्युमीनियम की दीर्घकालिक मांग और इसकी कीमतों को लेकर दिए गए बयान की समानता को कोई भी आदमी आसानी से समझ सकता है। दोनों का स्पष्टï रूप से मानना है कि वर्ष 2020 तक एल्युमीनियम की मांग में लगातार वृद्घि होगी। हालांकि इसकी कम भार की गुणवत्ता, आघातवर्धनीयता और फिर से तैयार करने की विशेषता के चलते यह बहुत हद तक आगे बढ़ती मांग और आपूर्ति के बीच संतुलन बनाने में कामयाब होगा। भारत के पास विश्व में पांचवां सबसे बड़ा बॉक्साइट का भंडार है। इसमें करीब 3 अरब टन बॉक्साइट का है, जिसमें से 2.5 अरब टन फिर से इस्तेमाल होने वाले संसाधन भी शामिल है। इसके बावजूद यहां प्रति व्यक्ति एल्युमीनियम की खपत काफी कम 1.3 टन है। इसे अच्छी बात नहीं कह सकते। दूसरी तरफ, देश की आर्थिक वृद्घि दर दहाई अंकों में पहुंच चुकी है। यानी देश में एल्युमीनियम का पर्याप्त इस्तेमाल अभी भी नहीं हो पा रहा है। इसकी तुलना में चीन की स्थिति थोड़ी अलग है। चीनी अर्थव्यवस्था की तेज रफ्तार में इन्फ्रास्ट्रक्चर और निर्माण क्षेत्र की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इन क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर धातुओं का इस्तेमाल हो रहा है। बी के हांडिक का कहना है कि बढ़ती मांग को देखते हुए देश में एल्युमीनियम का उत्पादन वर्ष 2015 तक बढ़कर 50 लाख टन तक पहुंचने का अनुमान है जो इस समय केवल 13 लाख टन के आस-पास है। वह इस बात को लेकर आश्वस्त हैं कि मांग की तुलना में इसकी आपूर्ति में कोई कमी नहीं रहेगी। उनका कहना है कि दो प्रमुख क्षेत्रों में एल्युमीनियम की मांग में भारी वृद्घि का अनुमान है। एक तो बिजली क्षेत्र में आज भी एल्युमीनियम की सबसे ज्यादा खपत होती है जबकि आगे इस क्षेत्र के विस्तार से एल्युमीनियम की मांग में और इजाफा होगा। इसके अलावा ट्रांसपोर्ट सेक्टर में भी इसकी खपत बढऩे का अनुमान है। न्यूक्लियर पावर प्लांट स्थापित करने और स्थानीय स्तर पर एयरक्राफ्ट तैयार करने जैसी हमारी महत्वाकांक्षी योजना में बड़े पैमाने पर एल्युमीनियम का उपयोग बढ़ेगा। क्लेनफेल्ड का भी मानना है कि एयरोस्पेस जैसे उभरते क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर एल्युमीनियम की मांग बढ़ेगी। अब सवाल यह उठता है कि अगले पांच साल में भारत में 50 लाख टन एल्युमीनियम का उत्पादन कैसे संभव होगा। एल्युमीनियम जैसी जरूरी धातु के लिए बॉक्साइट खनिज को लंबे समय तक के लिए संरक्षित रखने की जरूरत है। हालांकि ज्यादा एल्युमीनियम उत्पादन की आड़ में बॉक्साइट खनन के बेजा इस्तेमाल का भी खतरा है। वैसे बॉक्साइट खनन के आवंटन और पर्यावरण संबंधी मंजूरी को लेकर सरकारी या निजी क्षेत्र के निवेशकों को भारी परेशाानी का सामना करना पड़ता है। उल्लेखनीय है कि हाल ही में नियमगिरी बॉक्साइट खनन को लेकर वेदांता समूह इसका शिकार हो चुका है। इसके अलावा अन्य खनन परियोजनाओं को पर्यावरण मंत्रालय से मंजूरी मिलने की इंतजार है। ऐसे में इस क्षेत्र में निवेश को लेकर थोड़ी-बहुत बाधाएं भी हैं। एल्युमीनियम उत्पादन के क्षेत्र में हिंडाल्को बड़े पैमाने पर निवेश कर रही है। हिंडाल्को के चेयरमैन कुमार मंगलम बिड़ला का कहना है कि कंपनी करीब 40,000 करोड़ रुपये का निवेश कर लगभग 18 लाख टन एल्युमीनियम उत्पादन क्षमता का निर्माण कर रही है। सरकारी क्षेत्र की नैशनल एल्युमीनियम कंपनी (नाल्को) ने अपनी क्षमता विस्तार योजना को स्थगित कर दिया है। कंपनी देश के अलावा विदेशों में उत्पादन क्षमता बढ़ाने की योजना बना रही थी। हालांकि नाल्को के निदेशक बीएल बागरा का मानना है कि तीसरे चरण के विस्तार के लिए हमें कुछ बुनियादी चीजों पर ध्यान देना होगा। खनन मंत्री हांडिक के अनुसार देश को 2020 तक कम से कम 1 करोड़ टन एल्युमीनियम की जरूरत होगी। उन्होंने कहा कि मांग के अनुरूप एल्युमीनियम की आपूर्ति के लिए हमें घरेलू स्तर पर इसका उत्पादन बढ़ाने पर जोर देना होगा। देश ज्यादातर बॉक्साइट की खानें उड़ीस और इसके बाद आंध्र प्रदेश में स्थित है। इन राज्यों में एल्युमीनियम उत्पादन बढ़ाने के लिए सुविधाओं का विस्तार हो रहा है। वैश्विक मंदी के पूर्व जुलाई 2008 में एल्युमीनियम की कीमतों में रिकॉर्ड तेजी आई थी। हालांकि मंदी के दौरान इन्फ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित होने से एल्यूमीनियम की मांग में भारी कमी आने से कीमतों में थोड़ी गिरावट आई। जुलाई 2008 के उच्च स्तर की तुलना में इस समय एल्युमीनियम के दामों में तकरीबन 30 फीसदी की कमी आ चुकी है। (BS Hindi)
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें