नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। सहकारी संस्था नैफेड के प्रबंधन से नाखुश केंद्र सरकार ने उसकी व्यावसायिक गतिविधियों पर भी लगाम कसनी शुरू कर दी है। भारी आर्थिक तंगी से जूझ रहे नैफेड को दी जाने वाली 1,200 करोड़ रुपये की राहत पहले से रुकी पड़ी है, वहीं अब उसके कारोबार के दायरे को भी सीमित कर दिया गया है।
कृषि मंत्रालय के इस मसौदे पर केंद्रीय मंत्रिमंडल की आर्थिक समिति [सीसीईए] ने शुक्रवार को अपनी मुहर लगा दी। सरकार के इस फैसले से नैफेड के उस कारोबारी एकाधिकार को धक्का लगा है, जिसमें वह न्यूनतम समर्थन मूल्य [एमएसपी] पर तिलहन व दलहन की खरीद करता है। सरकार ने इस कारोबार में दूसरी अन्य एजेंसियों को भी उतार दिया है। इस व्यापारिक प्रतिस्पर्धा से नैफेड को सीधा नुकसान होगा।
सीसीईए के फैसले के मुताबिक राष्ट्रीय सहकारी उपभोक्ता संघ [एनसीसीएफ] और केंद्रीय भंडार निगम [सीडब्ल्यूसी] भी दलहन व तिलहन की खरीद कर सकेंगे। राष्ट्रीय स्तर की इन एजेंसियों को सरकार समय-समय पर कृषि उत्पादों के आयात की अनुमति देती रही है। केंद्रीय नोडल एजेंसी के रूप में मान्यता प्राप्त नैफेड को इस कारोबार की छूट वर्ष 1976-77 के दौरान दी गई थी। इसी तरह वर्ष 2004-05 के खरीफ सीजन से नैफेड को कपास की खरीद का भी मौका दिया गया था।
नैफेड के पर कतरने पर कृषि मंत्रालय का तर्क है कि दलहन व तिलहन की खेती को भरपूर प्रोत्साहन दिया गया है। इसके नतीजे के रूप में पैदावार में भारी बढ़ोतरी हो सकती है। इसके लिए अतिरिक्त खरीद एजेंसियों की जरूरत पड़ेगी। इसी के मद्देनजर यह कदम उठाया गया है। लेकिन बात सिर्फ यही नहीं है। दरअसल पिछले दिनों नैफेड और कृषि मंत्रालय के बीच जो कुछ हुआ, यह उसी का नतीजा है। अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक के बीच के विवाद को कृषि राज्य मंत्री केवी. थॉमस ने अत्यंत गंभीरता से ले लिया है। इसी विवाद के चलते नैफेड को दी जाने वाली राहत राशि को सरकार ने न केवल रोक लिया है, बल्कि इसके लिए कई शर्तें रख दी हैं। कारोबारी गतिविधियों में कटौती का फैसला नैफेड पर भारी पड़ सकता है। संगठन आर्थिक भारी संकट में है। (Dainik Jagran)
01 दिसंबर 2010
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