मुंबई November 03, 2008
भारत के बीमार लौह अयस्क खनन क्षेत्र ने निर्यात शुल्क पूर्णत: हटाए जाने और रेल भाड़े में 50 प्रतिशत की कटौती करने की मांग की है ताकि लदाई के मामले में चीन के बाजार से प्रतिस्पर्धा संभव हो सके।
ऑस्ट्रेलिया की प्रतिस्पध्र्दात्मक पेशकश को देखते हुए चीन ने भारत के लौह अयस्क के लिए नई बुकिंग नहीं की है। चीन की प्रस्तावित बुनियादी परियोजनाओं के सितंबर 2008 में हुए ओलंपिक खेलों से पहले संपन्न हो जाने के कारण मांग में कमजोरी आई है। उसके बाद किसी नई परियोजना की योजना नहीं बनाई गई है। यही कारण है कि वर्तमाल स्टील मिल कम क्षमताओं के साथ परिचालन कर रही हैं और जो इकाइयां बंद पड़ी हुई हैं उसे दोबारा शुरू करने में विलंब किया जा रहा है। बाजार सूत्रों के मुताबिक चीन ने स्टील के उत्पादन में 20 प्रतिशत की कटौती की है। जापान और यूरोप ने भी स्टील के उत्पादन में कटौती की दिशा में कदम उठाए हैं। अमेरिका के भारी वित्तीय संकट से गुजर रहे होने के कारण लौह अयस्क की मांग न केवल चीन में कम हुई है बल्कि पूरे विश्व का हाल ऐसा ही है। फेडरेशन ऑफ इंडियन मिनेरल इंडस्ट्रीज के अध्यक्ष राहुल बलडोटा ने 'ग्लोबल मेटल्स ऐंड माइनिंग: मर्जर ऐंड एक्विजीशन पर्सपेक्टिव' सेमिनार के बाद कहा, लौह अयस्क की वर्तमान कीमत 55 डॉलर प्रति टन में 75 प्रतिशत से अधिक हिस्सेदारी रेल भाड़े की होती है। निर्यात शुल्क 15 प्रतिशत जोड़ देने के बाद खनन परियोजनाएं लगभग अव्यवहार्य हो जाती हैं।'इस साल जून महीने में सरकार ने बेंचमार्क 62 प्रतिशत लोहे वाले लौह अयस्क पर 15 प्रतिशत का निर्यात शुल्क लगाया था। लक्ष्य निर्यात को हतोत्साहित करने का था ताकि स्थानीय उपभोक्ताओं के लिए इसकी उपलब्धता बढ़ सके और महंगाई को नियंत्रित किया जा सके जो अक्टूबर में 13 प्रतिशत के खतरनाक स्तर पर पहुंचने वाली थी। जून में महंगाई की दर 12.44 प्रतिशत के इर्द गिर्द थी।इस साल की शुरुआत में लौह अयस्क की कीमतें बढ़ कर 140 डॉलर प्रति टन के स्तर पर पहुंचने से रेलवे भी संतुष्ट थी और माल भाड़ा दोगुना करना चाहती थी। लेकिन मांग, खास तौर से चीन जो भारतीय लौह अयस्क निर्यात के लगभग 88 प्रतिशत की खपत करता है, घट कर 'शून्य' हो गई है। एफआईएमआई के महासचिव आर के शर्मा ने कहा कि उपरोक्त उपाय करने से भारत फिर से अन्य आपूर्तिकर्ता देशों जैसे ऑस्ट्रेलिया और ब्राजील से प्रतिस्पध्र्दा कर सकता है। इस साल अक्टूबर में लौह अयस्क के निर्यात में पिछले वर्ष के मुकाबले काफी कमी आई है। शर्मा ने कहा कि अगर इस समय उपाय नहीं किए गए तो शेष पांच महीनों में निर्यात घट कर 'शून्य' के स्तर पर पहुंच सकता है।पिछले दो वर्षों में लौह अयस्क की कीमतें अस्थिर रही हैं। इस साल की शुरुआत में इसकी कीमतें जहां रेकॉर्ड 140 डॉलर पर पहुंच गई थीं वहीं आर्थिक मंदी के कारण वैश्विक मांगों में कमी होने पर इसकी कीमतें घट कर 55 डॉलर प्रति टन हो गई। औद्योगिक सूत्रों का विश्वास है कि इस साल लौह अयस्क की औसत कीमत 110 से 115 डॉलर प्रति टन रहेगी। भारत ने पिछले वर्ष 1,020 लाख टन लौह अयस्क का निर्यात किया था। (BS Hindi)
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