August 07, 2008! खरीफ फसल की पैदावार और कीमत की स्थिति के आकलन के बाद ही कई कृषि जिंसों के वायदा कारोबार पर पाबंदी हटाने के बारे में विचार हो सकता है।
इस महीने के आखिर में सरकार वायदा कारोबार से पाबंदी हटाने की बाबत विचार कर सकती है। वामपंथी दलों के सत्ता से बाहर होने के बाद सरकार के लिए यह काम आसान हो गया है। गौरतलब है कि सरकार ने इस साल मई में चार महीने के लिए आलू, रबर, चना और सोया तेल के वायदा कारोबार पर प्रतिबंध लगा दिया था।
प्रतिबंध की यह अवधि छह सितंबर को समाप्त हो रही है। राजनीतिक दलों के इन आरोपों के बीच कि वायदा कारोबार के कारण कीमतें बढ़ रही हैं, इन जिन्सों को चार अन्य जिंसों की सूची में जोड़ा गया था। साल 2007 के आरंभ में चावल, गेहूं, अरहर और उड़द के वायदा कारोबार पर रोक लगा दी गई थी।
सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, हम इस महीने के आखिर में वायदा कारोबार पर प्रतिबंध की समीक्षा करेंगे। हम इस सिलसिले में खरीफ सत्र में फसल की संभावना तथा अगले कुछ महीनों में कीमतों के रुख के बारे में गौर करेंगे। चार महीने से आगे इन चार जिंसों पर प्रतिबंध के विस्तार किए जाने की संभावना के बारे में पूछने पर कृषि मंत्री शरद पवार ने जून में रोम में कहा था कि हमें यह देखना चाहिए कि क्या होता है.. मुझे लगता है कि निर्णय केवल चार महीने के लिए लिया गया है।
मुझे उम्मीद है कि इस चार महीने की अवधि को बढ़ाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। पवार ने कहा था कि अभिजीत सेन कमिटी की रिपोर्ट में सदस्यों ने बहुमत से कहा कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि कीमतों में वृध्दि के लिए वायदा कारोबार जिम्मेदार है।
कमिटी की अगुवाई योजना आयोग के सदस्य अभिजित सेन कर रहे थे, जिसे आवश्यक वस्तुओं की कीमत पर वायदा कारोबार के प्रभाव का अध्ययन करने के लिए बनाया गया था। विश्लेषकों ने कहा कि चूंकि वामपंथी दल वायदा कारोबार के खिलाफ खुले स्वर में आवाज बुलंद कर रहे थे लेकिन अब वे सत्तारूढ़ गठबंधन से बाहर हैं, इसलिए सरकार को प्रतिबंध को हटाने में कोई दिक्कत नहीं आएगी।...BS Hindi
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