नई दिल्ली August 21, 2008 ! मौसम की अनिश्चितताओं के चलते दाल और तेल की कीमतों में कमी होने की गुंजाइश काफी कम दिख रही है। मानसून भी इनकी कीमतों की आग को बुझाने में नाकाम रहा है।
दलहन और तिलहन के बाजार में इस समय काफी तेजी देखी जा रही है। पिछले एक महीने में खाद्य तेल और दाल की कीमतों में 5 से 10 प्रतिशत का इजाफा हो चुका है। गौरतलब है कि पिछले सीजन में पैदावार घटने से दलहन और तिलहन की कीमतें काफी बढ़ चुकी हैं। इस बार तो हालत उससे भी ज्यादा खराब है।
कहीं काफी कम बारिश हुई है तो कहीं बाढ़ का प्रकोप है। इन वजहों से अनुमान लगाया जा रहा है कि तेल और दाल की कीमतों में कोई नरमी नहीं आएगी। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् के कृषि वैज्ञानिक रमन नायर ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि पिछले साल मोटे अनाजों की बुआई 1.941 करोड़ हेक्टेयर में हुई थी। वहीं इस मौसम में यह घटकर 1.71 करोड़ हेक्टेयर रह गया है।
मक्के के रकबे में भी लगभग 7 लाख हेक्टेयर की कमी आने की बात कही जा रही है। उन्होंने कहा कि इसी तरह ज्वार और बाजरा के रकबे में क्रमश: 4 और 9 लाख हेक्टेयर की कमी आई है। नायर के मुताबिक, दलहन के रकबे में भी कमी आई है। पिछले साल दलहन की बुआई 1.06 करोड़ हेक्टेयर में हुई थी, जो इस साल घटकर 89.8 लाख हेक्टेयर रह गई है। इससे पैदावार में जबरदस्त कमी आने की आशंका है।
मूंग, उड़द और अरहर के रकबे में क्रमश: 8, 5 और 4.5 लाख हेक्टेयर की कमी आई है। गौरतलब हैकि खाद्य तेल और दलहन की घरेलू मांग का बड़ा हिस्सा आयात के जरिए पूरा किया जाता है। इस बार उत्पादकता में कमी होने की आशंका से दालों का आयात 65 प्रतिशत बढ़ने का अनुमान है। पिछले साल जहां 50 लाख टन खाद्य तेल का आयात हुआ था,वहीं इस साल इसके 60 लाख टन पहुंचने की उम्मीद है। (BS Hindi)
22 अगस्त 2008
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