नई दिल्ली August 25, 2008 ! बढ़ती महंगाई से जूझ रही दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं को हाल में काफी राहत मिली है। पिछले कुछ समय केदौरान जरूरी खाद्य सामग्रियों की कीमत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कम हुई हैं।
गेहूं, चावल और खाद्य तेल की कीमत अपने ऐतिहासिक स्तर से काफी नीचे आ गई हैं क्योंकि किसानों ने इन फसलों के बुआई क्षेत्रफल में इजाफा कर दिया है और उम्मीद है कि इस बार इन फसलों की पैदावार अच्छी होगी।
पूरी दुनिया में मौजूद सटोरिये भी अब जिंस बाजार की गिरती कीमत पर हाथ आजमा रहे हैं।
इंटरनैशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टिटयूट के एशिया निदेशक अशोक गुलाटी ने कहा कि जरूरी चीजों की पैदावार की तरफ से काफी अच्छी तस्वीर देखने को मिल रही है और इस वजह से आने वाले समय में चावल-गेहूं आदि की पैदावार अच्छी होने की उम्मीद जगी है।
जब से जरूरी चीजों की कीमतें घट रही हैं, सटोरिया अपना हाथ खींचने लगे हैं। ऐसी स्थिति में सरकार को महंगाई को काबू में करने में मदद मिलेगी। गुलाटी ने कहा कि ये अलग बात है कि ऊर्जा क्षेत्र अब भी चिंता का सबब बना हुआ है क्योंकि यहां कीमतें कम होने का नाम नहीं ले रही।
जरूरी खाद्य सामग्रियों की बढ़ती कीमत पर लगाम कसने के लिए ही विभिन्न देशों की सरकारों को निर्यात पर पाबंदी और आयात में रियायत देने का फैसला लेना पड़ा था।
भारत के पास गेहूं, चावल, मक्का और दूसरी जरूरी चीजों का पर्याप्त भंडार है, लिहाजा इसेक आयात की जरूरत नहीं है। इसके अलावा कच्चे पाम तेल की कीमत में कमी इस स्थिति को और भी खुशनुमा बना रही है।
पाम तेल की कीमतों में कमी से न सिर्फ भारतीय सरकार बल्कि यहां के ग्राहकों को भी काफी राहत मिली है क्योंकि भारत खाद्य तेल की कुल जरूरतों का 50 फीसदी आयात करता है।
गुलाटी ने कहा कि तेल की कीमतें कम होने से इसका खुदरा बाजार भी काफी आकर्षक बन गया है और अभी इसमें और कमी की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
पिछले चार हफ्तों में कच्चे पाम तेल की कीमतों में 30 फीसदी की गिरावट आई है और यह 830 डॉलर प्रति टन पर आ गिरा है।
अमेरिका के खाद्य व कृषि संगठन (एफएओ) के अनुमान के मुताबिक साल 2008 में पूरी दुनिया में अनाज का उत्पादन करीब 2.8 फीसदी बढ़ेगा और यह 2180 मिलियन टन के रेकॉर्ड स्तर पर पहुंच जाएगा। इस तरह गेहूं के भंडार में भी इजाफा होने की उम्मीद है और अनुमान है कि 2007 के मुकाबले इसमें 8.3 फीसदी का उछाल आएगा और यह 658 मिलियन टन केस्तर पर पहुंच जाएगा।
गेहूं की किल्लत का खतरा फिलहाल टल गया है और सटोरिये अब इसकी गिरती कीमत पर सट्टा लगा रहे हैं।
चावल की पैदावार में 2 फीसदी के उछाल की संभावना है और यह 444 मिलियन टन के स्तर पर पहुंच जाएगा। 2007 में कीमत में वृध्दि एशियाई क्षेत्र में ज्यादा थी, इसी वजह से दुनिया भर के चावल उत्पादकों ने 2008 में इसके बुआई क्षेत्र में इजाफा कर दिया।
हाल में कच्चे तेल में आई नरमी ने मक्के व पाम तेल पर दबाव थोड़ा कम किया क्योंकि इन दोनों चीजों का इस्तेमाल वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत के लिए किया जाता है।(BS Hindi)
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