नई दिल्ली August 20, 2008! महाराष्ट्र एवं गुजरात के इलाकों में पिछले सप्ताह हुई बारिश के कारण कपास की बिजाई में बढ़ोतरी दर्ज की गई है। हालांकि अब भी बिजाई का रकबा पिछले साल के मुकाबले कम नजर आ रहा है।
इन प्रदेशों में बिजाई का काम शुरू होने से कपास की कीमतों में भी गिरावट आई है। उधर कपास विशेषज्ञों का कहना है कि इस साल कपास के उत्पादन में पिछले साल के मुकाबले थोड़ी कमी हो सकती है, लेकिन कपास के शोध से जुड़े वैज्ञानिकों का कहना है कि अभी ऐसा कहना जल्दीबाजी होगी।
क्योंकि प्रति हेक्टेयर कपास की उत्पादकता हर साल बढ़ रही है और इस साल भी ऐसा रहा तो पिछले साल के मुकाबले उत्पादन ज्यादा भी हो सकता है। कृषि मंत्रालय से जारी रिपोर्ट के मुताबिक 7 अगस्त तक देश भर में कपास की बिजाई 80.80 लाख हेक्टेयर जमीन पर हुई थी। जबकि पिछले साल यह बिजाई 90.40 लाख हेक्टेयर भूमि पर की गई थी।
पिछले सप्ताह गुजरात व महाराष्ट्र में बारिश होने के कारण फिर से बिजाई का काम शुरू हो गया है और कृषि शोध संस्थान से जुड़े वैज्ञानिकों के मुताबिक पिछले साल के मुकाबले 5 लाख हेक्टेयर से अधिक की कमी नहीं आएगी। बिजाई में तेजी आने से कपास के भाव में भी 1000 रुपये प्रति कैंडी की कमी दर्ज की गयी है। कपास के वायदा बाजार में पिछले सप्ताह गिरावट दर्ज की गई थी।
कारोबारियों समेत कपास के जानकारों का कहना है कि इस साल कपास के उत्पादन में पिछले साल के मुकाबले थोड़ी कमी आएगी। वर्ष 2007-08 के दौरान भारत में 310 लाख बेल (1 बेल = 170 किलोग्राम) कपास का उत्पादन हुआ।
मुंबई स्थित केंद्रीय कपास प्रौद्योगिकी अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक के मुताबिक अभी से उत्पादन को लेकर कुछ भी नहीं कहा जा सकता है। सिर्फ महाराष्ट्र में ही प्रति हेक्टेयर उत्पादकता में बढ़ोतरी हो जाती है तो बिजाई की कमी की भरपाई हो जाएगी।
महाराष्ट्र में कपास का प्रति हेक्टेयर उत्पादन वर्ष 2006-07 के दौरान 283 किलोग्राम रहा तो वर्ष 2007-08 के दौरान यह 320 किलोग्राम के स्तर पर आ गया। वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर उत्पादकता 500 किलोग्राम हेक्टेयर के स्तर पर पहुंच गई तो कपास की कोई कमी नहीं रहेगी। ....BS Hindi
20 अगस्त 2008
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