सस्ते खाद्य तेल की योजना पर सरकार असमंजस में पड़ गई है। सरकार ने यह योजना उपभोक्ताओं को राहत देने के लिए बनाई थी, लेकिन अब इससे किसानों को परेशानी होने की आशंका दिखने लगी है। खाद्य तेल के दामों में हाल की गिरावट के बाद सब्सिडी देकर खाद्य तेलों के वितरण से किसानों की आने वाली खरीफ तिलहन फसल के दाम काफी नीचे आ सकते हैं। वहीं, दूसरी ओर आने वाले चुनावों को देखते हुए इस योजना को बंद करना सरकार को भारी पड़ सकता है।
सरकार ने जब पीडीएस के तहत सस्ता खाद्य तेल देने का फैसला किया था, उस समय ग्लोबल बाजार में पॉम ऑयल की कीमत करीब 1400 ड़ॉलर प्रति टन थी जो इस समय काफी घटकर महज 700 डॉलर प्रति टन रह गई है। इसी तरह देश में भी पॉम ऑयल का मूल्य 70 रुपये लीटर से घटकर 45 रुपये लीटर के स्तर पर आ गया है। यदि योजना के अनुसार इन दामों पर 15 रुपये की सब्सिडी दी जाती है तो उपभोक्ताओं को खाद्य तेल 30 रुपये प्रति लीटर के भाव मिलने चाहिए। इससे ग्राहकों को तो फायदा होगा, लेकिन इससे आने वाली तिलहन की फसल के दाम काफी नीचे आ सकते हैं। इसका खामियाजा किसानों को भुगतना पड़ेगा।
सरकारी सूत्रों के अनुसार नवंबर में कुछ राज्यों में होने वाले चुनावों को देखते हुए सरकार सस्ता खाद्य सुलभ कराने की इस योजना को निश्चित तौर पर बंद नहीं करेगी। हालांकि, तेल के खुदरा वितरण के वास्ते मूल्य निर्धारण के लिए केंद्र सरकार राज्यों से कह सकती है। राज्य अपने स्तर कर खाद्य तेल के पिछले एक साल के औसत खुदरा मूल्य के आधार पर वितरण के लिए दाम तय करेंगे। इससे संभव है कि 15 रुपये की सब्सिडी का लाभ किसानों के बजाय राज्यों को मिल सकता है। राज्य उपभोक्ताओं के अलावा किसानों के हितों को ध्यान में रखकर संतुलित मूल्य तय कर सकते हैं ताकि किसानों को खरीफ की तिलहन फसल बेचने में नुकसान न उठाना पड़े। केंद्र सरकार को इस योजना के तहत करीब 22,000 करोड़ रुपये की सब्सिडी देनी है। इसके लिए तीन सरकारी एजेंसियों पीईसी, नैफेड और एसटीसी को खाद्य तेल आयात करने का जिम्मा सौंपा गया है। इन एजेंसियों ने करीब एक लाख टन खाद्य तेल का आयात कर लिया है। (Business Bhaskar)
25 अगस्त 2008
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