नई दिल्ली August 26, 2008 ! इस्पात निर्यात पर कर थोपे जाने से मौजूदा वित्त वर्ष की पहली तिमाही में देश का इस्पात निर्यात 25 फीसदी कम होकर 27.5 लाख टन रह गया है।
हालांकि इस दौरान आयात में 20 फीसदी की वृद्धि हुई और यह 35 लाख टन तक पहुंच गया। परिणाम यह हुआ कि अप्रैल से जुलाई के बीच देश में इस्पात की आपूर्ति तकरीबन 15 लाख टन तक बढ़ गयी है।
इस्पात सचिव पी. के. रस्तोगी के मुताबिक, निर्यात में कमी आने से इस्पात की घरेलू उपलब्धता में बढ़ोतरी हुई है। यह एक सकारात्मक संकेत है और इसका लाभ सीधे उपभोक्ताओं तक पहुंचेगा। उल्लेखनीय है कि 10 मई को सरकार ने इस्पात और इस्पात निर्मित वस्तुओं के निर्यात पर 5 से 15 फीसदी का निर्यात कर लगा दिया था।
इसके एक महीने बाद सरकार ने इस्पात के फ्लैट उत्पादों पर लगने वाले निर्यात शुल्क को हटा लेने का फैसला किया जबकि इसके लाँग उत्पादों (छड़, ऐंगल, बार आदि) पर लगने वाले निर्यात शुल्क को 10 से 15 फीसदी कर दिया गया। हालांकि इस साल की शुरुआत में इस्पात के निर्यात शुल्क को 5 फीसदी से घटाकर शून्य फीसदी कर दिया गया था।
उधर देश की तीसरी बड़ी इस्पात निर्माता कंपनी जे. एस. डब्ल्यू. के बिक्री और विपणन प्रमुख जयंत आचार्य ने बताया कि सरकार के अनुरोध पर देश की इस्पात कंपनियों ने निर्यात थामने की पहल की थी ताकि घरेलू बाजार में इसकी उपलब्धता बढ़ायी जा सके। इससे देश में इस्पात की खपत पर सकारात्मक असर पड़ा। आचार्य ने बताया कि इस वजह से इस्पात उद्योग को इस्पात की बढ़ी हुई अंतरराष्ट्रीय कीमतों से मिलने वाले लाभ से वंचित रहना पड़ा।
उल्लेखनीय है कि वर्ष 2007-08 में इस्पात का निर्यात 50 लाख टन जबकि आयात 69 लाख टन का हुआ था। इस तरह, 2007-08 में ऐसा पहली बार हुआ जब देश से इस्पात का आयात निर्यात की तुलना में अधिक रहा। सरकार ने महंगाई पर अंकुश लगाने और इस्पात की उपलब्धता बढ़ाने के लिए कीमतों में वृद्धि की थी।
थोक मूल्य सूचकांक में इस्पात और लोहे का हिस्सा तकरीबन 3.64 फीसदी का है। जानकारों की माने तो महंगाई दर को 16 साल के रेकॉर्ड स्तर 12.63 फीसदी तक पहुंचाने में लौह-इस्पात का बहुत बड़ा योगदान है। फिलहाल अप्रैल 2007 की तुलना में फ्लैट इस्पात उत्पादों की कीमत 17 से 24 फीसदी तक बढ़ चुकी है।
जबकि लाँग उत्पादों की कीमत में तब से अब तक 50 से 60 फीसदी का उछाल आ चुका है। मई में सरकार ने इस्पात कंपनियों से कहा था कि वे अगले तीन महीने तक इस्पात की कीमतें न बढ़ायें। हालांकि कंपनियों ने अवधि के खत्म होने के बाद भी स्टील की कीमतें न बढ़ाने का फैसला लिया। (BS Hindi)
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