मुंबई August 29, 2008
खरीफ सीजन में दाल के न्यूनतम समर्थन मूल्य में इजाफा करने की सरकारी फैसले को विशेषज्ञों ने सही करार दिया है।
विशेषज्ञों का कहना है कि इस कदम से न सिर्फ देश में दाल की पैदावार में बढ़ोतरी होगी बल्कि घरेलू बाजार में इस जिंस की उपलब्धता सुनिश्चित होगी। एक ओर दलहन से जुड़े संगठनों ने सरकारी कदम को सराहा है, वहीं दूसरी तरफ कमोडिटी विशेषज्ञों ने आगाह किया है कि इस कदम से दाल की कीमत में इजाफा होगा, जो वर्तमान में काफी मजबूत स्थिति में है। देश में सालाना 1.8 करोड़ टन दाल की जरूरत होती है जबकि घरेलू पैदावार 1.4 करोड़ टन के आसपास है। ऐसे में जरूरत का बाकी हिस्सा आयात से पूरा होता है। भारत सरकारी ट्रेडिंग एजेंसी और निजी आयातकों के जरिए 30-40 लाख टन दाल म्यांमार, तंजानिया, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और यूक्रेन से आयात करता है।अरहर, मूंग और उड़द खरीफ सीजन में पैदा होने वाली दालें हैं और सरकार ने इसका न्यूनतम समर्थन मूल्य 800 रुपये प्रति क्विंटल का इजाफा करने का फैसला किया है। इस बढ़ोतरी से साल 2008-09 में अरहर का एमएसपी 2 हजार रुपये प्रति क्विंटल हो जाएगा जो पिछले एमएसपी 1700 रुपये प्रति क्विंटल से 17.65 फीसदी ज्यादा होगा।इसी तरह उड़द और मूंग का एमएसपी 1700 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़कर 2520 रुपये प्रति क्विंटल हो जाएगा। कुल मिलाकर इसमें 48.24 फीसदी की बढ़ोतरी होगी। पल्सेज इंपोर्ट असोसिएशन के प्रेजिडेंट के. सी. भरतिया ने कहा - हालांकि ये जरूरी कदम है क्योंकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में दाल की कीमतें काफी मजबूत स्थिति में है। हम लंबे समय से इसकी मांग कर रहे थे।सरकार के इस कदम से किसान ज्यादा दलहन उपजाने में दिलचस्पी लेंगे क्योंकि उन्हें अपनी पैदावार की अच्छी कीमत मिलने की उम्मीद बंधेगी। परिणामस्वरूप घरेलू बाजार में दाल की उपलब्धता सुनिश्चित हो जाएगी। दूसरे फसलों के मुकाबले दाल उगाना किसानों के लिए कम फायदे का सौदा है। इसी वजह से किसान दूसरी फसलों मसलन सोयाबीन और कपास की तरफ मुड़ने लगे हैं।किसानों की इस रवैये से देश में दलहन की पैदावार स्थिर हो गई है। पिछले दो सालों में दाल की कीमत सातवें आसमान पर पहुंच गई है। दाल की कीमत में उछाल के लिए कमोडिटी वायदा को जिम्मेदार मानते हुए सरकार ने इसके वायदा कारोबार पर पाबंदी लगा दी है।मध्य प्रदेश दाल उद्योग महासंघ के चेयरमैन सुरेश अग्रवाल ने कहा - एमएसपी में इजाफेका कदम देर से उठाया गया। उन्होंने कहा कि इस वजह से किसान दाल उत्पादन में रुचि लेंगे और काफी हद तक सोयाबीन और कपास की तरफ दलहन उगाने वाले किसानों के जाने पर रोक लगेगी। अगर सरकार ने यह कदम पहले उठाया होता तो दलहन के संकट से बचा जा सकता था।उधर, कमोडिटी विशेषज्ञों ने कहा है कि एमएसपी में इजाफा करना सकारात्मक कदम है, लेकिन उन्होंने आगाह किया है कि इस वजह से बाजार में दलहन की कीमत में बढ़ोतरी हो सकती है और बाजार कीमत एमएसपी को लांघ सकती है। एग्रीवॉच के सीनियर रिसर्च एनलिस्ट तन्मय कुमार ने बताया कि वर्तमान सीजन में दलहन का रकबा घटा है।ऐसे में एमएसपी में इजाफे के बावजूद हम बाजार में इसकी कीमत में उफान से इनकार नहीं कर सकते। साथ ही महंगाई रोकने के सरकारी इंतजाम पर भी पलीता लग सकता है। मूंग की नई फसल के बाजार पहुंचने का समय अगस्त-सितंबर होता है जबकि उड़द सितंबर और अक्टूबर में तैयार होता है। बाजार में अरहर की नई फसल का आगमन दिसंबर में शुरू होता है। (Business Standard)
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