नई दिल्लीः निजी कंपनियों के चावल की खरीद और निर्यात के आंकड़ों के बीच के फर्क ने सरकार को अनाज की जमाखोरी का पता लगाने पर मजबूर कर दिया है। हाल के दिनों में खाद्यान्न की कीमतों में भारी बढ़ोतरी दर्ज हुई है।
एक सूत्र ने बताया कि सिर्फ 10-12 कंपनियों ने खाद्य मंत्रालय को अपनी चावल खरीद के बारे में बताया है। इन कंपनियों ने करीब 11 लाख टन की निजी खरीद का आंकड़ा पेश किया है। उन्होंने कहा, 'ऐसा कैसे हो सकता है कि निजी क्षेत्र ने सिर्फ 11 लाख टन की खरीद की हो जबकि निर्यात इससे बहुत अधिक हुआ हो।'
चावल निर्यात को 31 मार्च तक की मंजूरी दी गई थी जिसके बाद सरकार ने गैर-बासमती चावल के विदेश में निर्यात करने पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया था। खुदरा बाजार में चावल 15-20 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से बेचा जा रहा है जो पिछले साल के 10-15 रुपए प्रति किलोग्राम की तुलना में कहीं अधिक है।
पिछले साल केंद्र ने निजी क्षेत्र के लिए 25,000 टन से ज्यादा की खरीद की सूचना देना अनिवार्य कर दिया था और कहा कि सितंबर 2008 तक महीनेवार रिटर्न दर्ज करें। खाद्य मंत्रालय के आदेश में यह भी साफ किया गया था कि यदि पूरे सत्र के दौरान कोई व्यापारी या निजी कंपनी 10,000 टन से ज्यादा चावल की खरीद करती है, तो उसके लिए रिटर्न दाखिल करना आवश्यक होगा।
रिटर्न हर महीने उस राज्य में दाखिल करना होगा जहां से अनाज की सबसे अधिक खरीद की गई है। सूत्रों ने कहा कि केंद्र ने पहले ही इस मामले की जांच शुरू कर दी है और वाणिज्य मंत्रालय ने हर निर्यातक का 2007-08 के निर्यात का आंकड़ा खाद्य मंत्रालय को सौंप दिया है।
साल 2007-08 के सत्र में निर्यात पिछले साल अक्टूबर-नवंबर में तब शुरू हुआ जबकि गर्मियों में उगाया जाने वाला खरीफ चावल बाजार में आ गया। अप्रैल, 2008 में गैर-बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया गया और तब तक बड़े पैमाने पर चावल का निर्यात कर दिया गया था। इससे घरेलू बाजार में चावल की कीमतों में भारी तेजी आई। उन्होंने यह भी बताया कि छह महीनों के दौरान घोषित आंकड़ों से कहीं ज्यादा चावल का निर्यात किया गया।...PTI
12 अगस्त 2008
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