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27 फ़रवरी 2010

30 मेगा खाद्य पार्क स्थापित किए जाएंगे : सहाय

नई दिल्ली, 10 दिसम्बर । केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री सुबोधकांत सहाय ने आज लोकसभा में बताया कि पॉल्ट्री, मांस, डेरी, मत्स्यिकी आदि समेत कृषि वस्तुओं का मूल्यवर्धन उपलब्ध कराने पर विचार करते हुए 30 मेगा खाद्य पार्क स्थापित करने को एक नई स्कीम अनुमोदित की है। सहाय ने लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में बताया कि फिलहाल, मेगा फूड पार्क स्कीम सरकार द्वारा तैयार किए गए दिशानिर्देशों के विभिन्न सेटों द्वारा परिचालित होती है। 11वीं परियोजना में, मंत्रालय ने सुदृढ़ बैकवर्ड और फारवर्ड लिंकेज के साथ पूर्व से पहचाने गए समूह आधार पर देश में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र के लिए अधुनातम बुनियादी ढांचा विकास उपलब्ध कराने के लिए खाद्य पार्को को मंजूरी दी गई है। मेगा खाद्य पार्क का स्वामित्व और प्रबंधन विशेष प्रयोजन उपाय में निहत होगा जिसमें संगठित खुदरा विक्रेता, प्रसंस्करणकर्ता, सेवा प्रदान करने वाले, किसान आदि इक्वि टीधारक हो सकते हैं। मेगा फूड पार्क में स्थित खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों के उत्पादों को स्वदेशी के साथ-साथ निर्यात बाजार में भी बेचा जा सकता है।

सेज के बाद अब बनेंगे फूड पार्क

नई दिल्ली (पीटीआई) : सरकार ने शुक्रवार को कहा कि वह स्पेशल इकनॉमिक जोन (एसईजेड) और इंडस्ट्रियल कॉरिडोर के बाद अब देश में फूड पार्कों का निर्माण करने के बारे में सोच रही है। फूड पार्कों का निर्माण निजी भागीदारी के जरिये होगा। वाणिज्य और उद्योग मंत्री कमलनाथ ने शुक्रवार को इंडस्ट्री चैंबर सीआईआई और फिक्की के नुमाइंदों से मुलाकात की। इसके बाद उन्होंने पत्रकारों को बताया- सरकार अब फूड पार्कों का निर्माण करने पर विचार कर रही है। सरकार इन पार्कों के लिए जरूरी जमीन का अधिग्रहण करेगी। पर इन पार्कों का प्रबंधन प्राइवेट सेक्टर के जरिये किया जाएगा। उन्होंने कहा कि इन पार्कों में अलग-अलग तरह के ऐग्रिकल्चरल प्रॉडक्ट्स जमा किए जाएंगे। उनकी ग्रेडिंग होगी और फिर उनका एक्सपोर्ट किया जाएगा। कमलनाथ ने कहा- फलों और सब्जियों के निर्यात में पिछले साल 37 फीसदी का इजाफा दर्ज किया गया। यह हालत तब है जब इन चीजों के रखरखाव के लिए हमारे पास कोल्ड चेन और दूसरे इन्फ्रास्ट्रक्चर की भारी कमी है। सरकार ने भी इस सेगमेंट में एक्सपोर्ट को बढ़ावा देने के लिए अब तक कुछ खास नहीं किया है। पर अब हमारा ध्यान इस पर है। अगले 3 साल तक ऐग्रिकल्चरल और फार्म प्रॉडक्ट पर खास तौर पर ध्यान दिया जाएगा। उद्योग मंत्री ने कहा कि इंडियन कंपनियों के ऑर्गनाइज्ड रिटेल के कारोबार में प्रवेश करने के साथ ही पोस्ट-हारवेस्ट इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश का चलन हाल के दिनों में तेज हुआ है। इससे ऐग्रिकल्चर सेक्टर में तेजी आएगी। हमें ऐग्रिकल्चर सेक्टर में प्रॉडक्शन को बढ़ाकर इतना करना होगा कि घरेलू जरूरतें पूरी करने के बाद एक्सपोर्ट के लिए अच्छीखासी मात्रा बचे। कमलनाथ ने कहा कि चीन ऐग्रिकल्चरल प्रॉडक्ट्स का बड़ा आयातक देश है। पर उसने स्वच्छता का हवाला देकर इंडियन ऐग्रिकल्चरल प्रॉडक्ट्स के आयात पर पाबंदी लगा रखी है। अपनी हाल की चीन यात्रा के दौरान हमने चीन के कृषि मंत्री से इस बाबत बात की है। Nअव्भारत)

देश भर में खुलेंगे 30 फूड पार्क

नई दिल्ली, 14 मईः केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण मंत्री सुबोध कांत सहाय ने कहा है कि देश के विभिन्न राज्यों में तीस बड़े खाद्य पार्कों की स्थापना की जाएगी। शीत भंडारण की सुविधा से सुसज्जित इन पाकरें की मदद से कृषि उत्पादों को खुदरा बाजारों में पहुंचाने में मदद मिलेगी।सहाय ने मंगलवार को कहा कि खेत से बाजार तक पहुंचने में हुई देरी के कारण कृषि उपज का एक बहुत बड़ा हिस्सा बर्बाद हो जाता है। हम इसी बर्बादी को कम करना चाहते हैं। उल्लेखनीय है कि देश में कृषि उत्पादों का उचित रख -रखाव के अभाव में प्रति वर्ष 500 अरब रुपये का नुकसान होता है।भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) ने कृषि मंत्रालय के सहयोग से फल और सब्जियों पर नई दिल्ली में एक कार्यक्रम का आयोजन किया था। इसमें कृषि उपज के संरक्षण के तरीकों पर विचार किया गया।

देश भर में बनेंगे 30 ‘फूड पार्क’

15 फरवरी 2008 यूएनआईइटानगर। विकास और प्रौद्योगिकी के इस दौर में अब लोगों की जीवनशैली को और आधुनिक बनाने के लिए देश भर में 30 नए ‘फूड पार्क’ खुलेंगे। इन तीस फूड पार्क में से एक फूड पार्क पूर्वोत्तर राज्य के लिए बनाया जाएगा।केंद्र सरकार द्वारा 11वीं योजना के तहत दिए गए इस प्रस्ताव का अनुमानित खर्च 50 करोड़ रुपए प्रति पार्क का आएगा। केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण मंत्री एन. एम. एल भटनागर ने सार्वजनिक निजी साझेदारी के तहत 30 कोल्ड चेन (शीत संग्रहगार) ढांचागत संरचनाओं की योजना के बारे में भी जानकारी दी।पढ़ें: जापानी थाली के दीवाने देसी पर्यटक केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण मंत्री के मुताबिक, इस योजना का मुख्य उद्देश्य विभिन्न राज्यों में खाद्य उत्पादित उद्योग को बढ़ावा देना भी है। उल्लेखनीय है कि खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में कई पशु चिकित्सा और दुग्ध उत्पादक क्षेत्र भी शामिल होंगे जहां इस तरह के विकास किए जाएंगे। (ई टी हिंदी)

पुणे के निकट बनेगा मेगा फूड पार्क

पुणे: चोरडिया फूड प्रोडक्ट्स लिमिटेड (सीएफपीएल) पुणे से 55 किलोमीटर दूर शिरवाल में 300 करोड़ रुपए की लागत से एक विशाल फूड पार्क बनाने जा रही है। यह कंपनी के पहले फूड पार्क के नजदीक 100 एकड़ में फैला होगा। प्रत्येक राज्य में केवल एक मेगा फूड पार्क बनाने की अनुमति है। अचार और केचप बनाने वाली सीएफपीएल को इस बड़ी परियोजना के लिए इस सप्ताह की शुरुआत में केन्द्र सरकार के खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय से सैद्धांतिक अनुमति मिल गई है। इसके तहत उसे केन्द्र सरकार से 50 करोड़ रुपए का अनुदान भी मिलेगा। कंपनी इस समय एक विस्तृत प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार कर रही है जिसे फरवरी में जमा किया जाएगा। सीएफपीएल के प्रबंध निदेशक, प्रदीप चोरडिया ने बताया कि वह इस परियोजना में निवेशकों के रूप में बड़े कारोबारी घरानों और खाद्य प्रसंस्करण उद्योग की कंपनियों को शामिल करने की योजना बना रहे हैं। उन्होंने बताया, 'हम एक स्पेशल पर्पज व्हीकल बनाएंगे, जिसमें हमारी 49 फीसदी हिस्सेदारी होगी। बाकी की हिस्सेदारी अन्य प्रमोटरों और निवेशकों के पास होगी। सरकार ने आईएलएंडएफएस को सलाहकार नियुक्त करने के साथ ही उसे एसपीवी के बोर्ड में भी जगह दी है। हम अन्य कंपनियों से बातचीत कर रहे हैं। अभी तक किसी एमओयू पर हस्ताक्षर नहीं हुए हैं, इसलिए मैं उनके नाम नहीं बता सकता।' उन्होंने बताया कि कंपनी ने पहले अपने मौजूदा फूड पार्क का विस्तार करने के बारे में सोचा था लेकिन नीति में यह स्पष्ट है कि मेगा फूड पार्क नए एसपीवी के जरिए ही बनाया जा सकता है। मेगा फूड पार्क नीति के तहत संग्रह केन्द्रों को खेतों या समूह स्तर पर ही बनाना होता है। सीएफपीएल के मौजूदा एग्री फूड पार्क ने पहले ही यह दिखाया है कि कोल्ड स्टोर और प्री-प्रोसेसिंग जैसी सुविधाओं का इस्तेमाल एक वर्ष में लगभग नौ महीने होता है। इन सुविधाओं का इस्तेमाल करने वालों में आईटीसी, कैपिटल फूड्स और कुछ अन्य कंपनियां शामिल हैं। ये कंपनियां निर्यात किए जाने वाले स्ट्रॉबेरी और स्वीट कॉर्न जैसे उत्पादों के लिए इनका इस्तेमाल करती हैं। चोरडिया ने बताया, 'मेगा फूड पार्क में तैयार उत्पादों को अधिक जगह दी जाएगी। सरकार की नीति के अनुसार मंजूरी मिलने से दो वर्ष के अंदर सभी सुविधाओं को तैयार करना जरूरी है।' नीति में सुविधाओं के लिए 100 करोड़ रुपए का न्यूनतम निवेश आवश्यक बनाया गया है। चोरडिया को इस बात का पूरा विश्वास है उनके फूड पार्क में निवेश अधिक होने की वजह से टर्नओवर लगभग 1,000 करोड़ रुपए का होगा। (बीएस हिंदी)

केंद्र की बेरुखी से खफा मप्र बनाएगा फूड पार्क

भोपाल February 20, 2009
मध्य प्रदेश सरकार ने निजी साझेदारी के जरिए राज्य के विभिन्न जिलों में खुद ही फूड पार्क बनाने का फैसला लिया है।
अब तक राज्यों में केंद्र सरकार की ओर से प्रायोजित फूड पार्क बनते रहे हैं। पर मध्य प्रदेश में मेगा फूड पार्क बनाने के मसले को केंद्र सरकार पिछले काफी समय से कोई तरजीह नहीं दे रही थी। इस वजह से राज्य सरकार ने खुद ही फूड पार्क विकसित करने का निर्णय लिया है।
इस साल दिसंबर में राज्य में कृषि आधारित उद्योगों को लेकर एक बैठक आयोजित करने की भी योजना है। ऐसी उम्मीद जताई जा रही है कि इस फूड पार्क को तैयार करने के लिए राज्य सरकार को कुछ विदेशी राष्ट्रों के साथ गठजोड़ करने में सफलता मिल जाएगी।
राज्य के उद्योग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि फूड पार्कों में कृषि आधारित उद्योगों की क्षमताओं का आंकलन करने के बाद राज्य के हर जिले में फूड पार्क बनाए जाएंगे।
राज्य सरकार ने दो साल पहले उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग का गठन किया था। पर अब इस विचार को पीछे छोड़ते हुए उद्योग विभाग को इन फूड पार्कों के निर्माण का भार सौंपा गया है।
विजयवर्गीय ने बताया, 'हमारी योजना राज्य के हर जिले में फूड पार्क बनाने की है, पर शुरुआती चरण में उन जिलों की पहचान कर फूड पार्क बनाए जाएंगे, जहां से किसानों को अपने उत्पाद का बेहतर रिटर्न मिल सकेगा।'
हालांकि राज्य के खरगौन, मंदसौर, होशंगाबाद समेत 6 जिलों में केंद्र प्रायोजित योजनाओं के जरिए फूड पार्क बनाए गए थे, पर इनमें निवेश का टोटा पड़ा हुआ था। इसे देखते हुए केंद्र सरकार ने इस योजना पर रोक लगा दी थी।
मध्य प्रदेश उद्योग विकास निगम के प्रबंध निदेशक प्रवीण गर्ग ने बताया, 'निजी साझेदारी मॉडल के तहत इन नए फूड पार्कों के विकास के लिए औद्योगिक केंद्र विकास निगम और मध्य प्रदेश कृषि उद्योग विकास निगम हाथ मिलाने की तैयारी में हैं।'
फूड पार्क के लिए बिहार को 15 करोड़!
बिहार सरकार ने मुजफ्फरपुर और भागलपुर में फूड पार्क बनाने में रुचि रखने वाले ठेकेदारों को 15 करोड़ रुपये का अनुदान देने का निश्चय किया है।
फूड पार्कों को विशेष उद्देश्य कंपनी के जरिए फल और सब्जी क्षेत्र में विकसित किया जाना है। राज्य के उद्योग मंत्री डी सी यादव ने कहा कि फूड पार्कों को निर्माण शोध एवं विकास के सम्मलित रूप से विकसित किया जाना है। (बीएस हिंदी)

फूड पार्क पर राष्ट्रीय सेमीनार 13 को

बीकानेर व्यापार मंडल कार्यालय में एक बैठक आयोजित की गई जिसमें आगामी 13 फरवरी को मिनिस्ट्री ऑफ फुड इंडस्ट्रीज के तत्वावधान में एक दिन का सेमिनार आयोजित बाबत् विचार विमर्श किया गया। इस सेमिनार में मिनिस्ट्री ऑफ फुड प्रोसेसिंग, दिल्ली के उच्च स्तर के अधिकारी व कृषि विभाग, दिल्ली के अधिकारीगण आयेंगे। सेमिनार के मुख्य अतिथि अशोक सिन्हा, केन्द्रीय सचिव, मिनिस्ट्री ऑफ फुड प्रोसेसिंग नई दिल्ली होंगे। कार्यक्रम की अध्यक्षता भवानी शंकर शर्मा, महापौर, नगर निगम बीकानेर द्वारा की जायेगी। विशिष्ट अतिथि एन.एम. केजडीवाल, चेयरमैन एग्रो बिजनेस डवलपमेंट कमेटी, पीएचडी चैम्बर्स, नई दिल्ली होंगे तथा मुख्य वक्ताओं में डॉ. जी.जे. ज्ञानी, सचिव जनरल, क्वालिटि काउंसिल ऑफ इण्डिया, नई दिल्ली, श्री जसवीर सिंह, मिस परवीन गनहार, फुड सेफ्टी एक्सपर्ट, क्वालिटि काउंसिल ऑफ इण्डिया, नई दिल्ली, उमेश नायक, डॉ. एस.के. सक्सेना बीकानेर से डॉ. मधु गोयल, अधिष्ठाता गृह विज्ञान महाविद्यालय बीकानेर डॉ. आईजी गुलाटी, सह आचार्य स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय बीकानेर, डॉ. त्रिभुजवन शर्मा, सहायक प्राचार्य, पशु विज्ञान महाविद्यालय बीकानेर इत्यादि होंगे। यह सेमिनार आज के बीकानेर के इतिहास में एक महत्वपूर्ण आयोजन होगा क्योंकि आज के युग में फुड सेफ्टी रेगुलेशन का सिद्घांत केन्द्रीय सरकार व हर नागरिक की प्रथम प्राथमिकता है। प्रत्येक नागरिक को शुद्घ व अच्छा खाद्य मिले। इसके लिए सभी को फुड रेगुलेशन की जानकारी इस सेमिनार में दी जायेगी। बीकानेर की फुड इंडस्ट्रीज की अपने आप में एक अलग पहचान है जैसे विश्व विख्यात भुजिया, पापड, तेल, मील, डेयरी उद्योग, मावा उद्योग, दाल दलहन उद्योग इत्यादि का कारोबार प्रतिवर्ष 5oo करोड रुपये का होता है। बीकानेर क्षेत्र में सभावनाओं को देखते हुए आवश्यकता इस बात की है कि बीकानेर में मेगा फुड पार्क बने, इसके लिए केन्द्र सरकार ने 50 करोड रुपये का प्रावधान कर रखा है। क्योंकि बीकानेर में फुड प्रोसेसिंग उद्योग काफी पनप रहा है तथा फुड प्रोसेसिंग की कई इकाइयां स्थापित भी भी हो रही है तथा 13 फरवरी को होटल बसन्त विहार में सुबह 9.3o बजे जो सेमिनार हो रही है उसमें बीकानेर के कृषकों को व उद्योगपतियों को बहुत बडा सुनहरा अवसर मिलने के साथ-साथ रोजगार के अवसर भी बढेगे। इस अवसर पर डॉ. मधु गोयल, डॉ. आई.जी. गुलाटी, डॉ. टी.के. जैन व डॉ. विमला ने अपने अमूल्य सुझाव रखे और कहा कि बीकानेर में फुडढ प्रोसेसिंग उद्योगों में बहुत बडी संभावनाए है। इस सेमिनार से लोगों को इस उद्योग के बारे में विशेषज्ञा राय मिलेगी जो उद्योगों के लिए कारगर सिद्घ होगी। आज की बैठक की अध्यक्षता शिवरतन अग्रवाल अध्यक्ष, बीकानेर व्यापार उद्योग मंडल द्वारा की गई। सचिव कन्हैयालाल बोथरा द्वारा सेमिनार के आयोजन की विस्तृत जानकारी रखी गई। बैठक में घेवरचन्द मुशर्रफ, नरपत सेठिया, सुरेन्द्र पटवा, हेतराम गौड, घनश्याम लखाणी, मक्खन अग्रवाल, बीकानेर ब्रेड एसोसिएशन के प्रतिनिधि व अन्य उपस्थित थे।

दूर नहीं होंगी कृषि की मुश्किलें

अगले वित्त वर्ष 2010-11 के लिए वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी द्वारा संसद पेश किए गए आम बजट में कृषि क्षेत्र के विकास का पहिया तेजी से घुमाने के लिए कई उपाय किए गए हैं लेकिन ये उपाय चुनौतियों के सामने अपर्याप्त नजर आते हैं। आज कृषि क्षेत्र में समग्र निवेश बढ़ाने की जरूरत है। निवेश मुख्य रूप से सिंचाई, जल प्रबंधन आदि में होना चाहिए। चुनौतियों की बात करें तो फर्टिलाइजर के बढ़ते दाम के किसानों के सामने मुश्किल आ रही है। बजट से पहले ही फर्टिलाइजर के दाम काफी बढ़ चुके हैं। डीजल के दाम बढ़ते हैं तो इससे भी खेती की गतिविधियों पर प्रभाव पड़ेगा। इससे देश के खाद्यान्न उत्पादन पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है। खाद्य वस्तुओं की परिवहन लागत बढ़ने से भी किसानों की दिक्कतें बढ़ेगी। खाद्य वस्तुएं महंगी होने से आम उपभोक्ताओं की भी समस्याएं बढ़ सकती हैं। कृषि क्षेत्र के लिए बजट में सकारात्मक उपायों की बात की जाए तो पूवरेत्तर राज्यों में हरित क्रांति लाने के लिए 400 करोड़ रुपये का प्रावधान प्रभावशाली साबित हो सकता है। इन राज्यों में खेती को बढ़ावा मिल सकता है। फूड प्रोसेसिंग सेक्टर को ज्यादा मदद मिलने से भी कृषि क्षेत्र को बढ़ावा मिलेगा। यह कदम स्वागत योग्य है। देश में 60 हजार गांवों में दलहन और तिलहन की पैदावार बढ़ाने के लिए 300 करोड़ रुपये का प्रावधान करके इन दोनों ही खाद्य वस्तुओं का उत्पादन बढ़ाने के लिए उपयोगी कदम उठाया गया है। इन दोनों वस्तुओं के मामले में देश की आयात पर बढ़ती निर्भरता चिंता बनी हुई है। उम्मीद की जानी चाहिए कि बजट में इस पर ध्यान देने से इनकी पैदावार बढ़ेगी तो आयात पर निर्भरता कम होगी। फसली कर्ज पर पांच फीसदी ब्याज का प्रस्ताव खेती के हालातों में बदलाव ला सकता है। हालांकि किसान 3-4 फीसदी ब्याज पर फसली कर्ज मिलने की उम्मीद करते हैं। मेरा विचार है कि कृषि क्षेत्र के लिए उठाए गए कदम सही दिशा में हैं लेकिन इस क्षेत्र की जरूरतें इससे पूरी नहीं होती हैं।टी। हक पूर्व चेयरमैन, कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (बिज़नस भास्कर)

कृषि पैदावार बढ़ाने व नुकसान रोकने पर जोर

वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने वर्ष 2010-11 के लिए आम बजट में कृषि क्षेत्र के समग्र विकास का लक्ष्य रखा है। इससे ग्रामीण क्षेत्र की आय बढ़ेगी और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित हो सकेगी। वित्त मंत्री ने इसके लिए चार स्तरीय कार्य योजना पर काम करने की मंशा जाहिर की।वित्तमंत्री ने कहा कि सरकार की योजना कृषि उत्पादन बढ़ाने, उपजों की बर्बादी रोकने, किसानों को कर्ज में सहायता देने और फूड प्रोसेसिंग पर जोर दिया जाएगा। किसानों के लिए कर्जो की उपलब्धता बढ़ाने के लिए वर्ष 2010-11 के बजट में 375,000 करोड़ रुपये के कृषि ऋण जारी करने का लक्ष्य रखा है जबकि पिछले बजट के 325,000 करोड़ रुपये से ज्यादा है। पिछले साल के सूखे और बाढ़ को देखते हुए ऋण वापसी की अवधि को भी इस वर्ष जून तक छह माह के लिए बढ़ा दिया गया है। फसल कर्जो की समय पर अदायगी करने वाले किसानों पर अब सिर्फ पांच प्रतिशत सालाना ब्याज लगेगा। मुखर्जी ने कृषि उत्पादन बढ़ाने के उद्देश्य से बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल और उड़ीसा में हरित क्रांति का विस्तार करने के लिए बजट में 400 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है। वर्षा सिंचित क्षेत्रों में 60,000 दलहन और तिलहन ग्राम बनाने के लिए भी 300 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम के लिए 200 करोड़ रुपये उपलब्ध कराए गए हैं। फसल कार्यो के लिए 13,805.82 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। इसमें 6,722 करोड़ रुपये राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के लिए हैं। इसके अलावा वर्षा पोषित क्षेत्र के विकास कार्यक्रम के लिए 10 करोड़ रुपये, पौध संरक्षण के लिए 58.78 करोड़ रुपये, खाद एवं उर्वरक के लिए 40 करोड़ रुपए, फसल बीमा के लिए 1,050 करोड़ रुपये तथा लघु सिंचाई के लिए 1000 करोड़ रुपये शामिल हैं। कृषि उपज की बर्बादी रोकने वेयरहाउसों को बढ़ावा देने का प्रस्ताव किया गया है। भंडारण क्षमता में बढ़ोतरी करने के लिए भारतीय खाद्य निगम के जरिए निजी गोदाम किराए पर लेने की अवधि पांच वर्ष से बढ़ाकर सात वर्ष करने का प्रस्ताव किया गया है। बाजार योजना के लिए विदेशी वाणिज्यिक उधार लेने की सुविधा कोल्ड स्टोरज और कोल्ड रूम बनाने के लिए भी मिलेगी। ये सुविधाएं कृषि उत्पाद, समुद्री उत्पादों के लिए होंगी। आधारभूत संरचना के लिए फूड प्रोसेसिंग क्षेत्र का विकास तेज करने की भी बात बजट में कही गई है। सरकार पहले ही दस मेगा फूड पार्क स्थापित कर रही है। पांच अन्य फूड पार्क स्थापित करने की योजना बनाई गई है।बजट में भंडारण सुविधाएं विकसित करने के लिए टैक्स छूट के प्रस्ताव किए गए हैं। खाद्यान्नों और चीनी के लिए मंडियों में भंडारण में यंत्रीकृत प्रबंध प्रणाली और पैलेट रैंकिंग प्रणाली स्थापित करने के लिए पांच प्रतिशत के रियायती आयात शुल्क के साथ परियोजना आयात का दर्जा और इससे संबंधित उपकरणों की स्थापना और उन्हें चालू करने के लिए सेवा कर से पूरी तरह से छूट दी गई है। आरंभिक स्थापना और विस्तार के लिए सेवा कर से पूरी छूट के साथ पांच प्रतिशत की रियायती सीमा शुल्क पर परियोजना आयात का दर्जा दिया गया है। शीत भंडारण, शीत कक्ष जिसमें परिरक्षण अथवा कृषि एवं संबंधित क्षेत्र के उत्पाद के भंडारण हेतु खेत स्तर पर पूर्व-कूलर इसमें शामिल हैं। भारत में निर्मित न होने वाली कृषि मशीनरी पर पांच प्रतिशत का रियायती सीमा शुल्क, कृषि में प्रयोग होने वाले ट्रेलरों को उत्पाद शुल्क से पूरी छूट दी गई है। इसके अलावा कृषि बीजों के परीक्षण और प्रमाणन को भी सेवा कर छूट दी गई है। रफ्रिरटिड वैन या ट्रकों के विनिर्माण के लिए अपेक्षित रफ्रिजरशन यूनिटों को सीमा शुल्क से पूरी छूट तथा मोटे अनाजों और दालों की सड़क द्वारा ढुलाई को भी सेवा कर से मुक्त रखा गया है। रल द्वारा ढुलाई में छूट पहले ही कायम है।कार्य योजना कोल्ड स्टोरज बनाने के लिए विदेशी वाणिज्यिक उधारी (ईसीबी) की अनुमति उपजों की बर्बादी रोकने को वेयरहाउस स्थापना के लिए रियायतेंऋण अदायगी करने वाले किसानों को एक के बजाय दो फीसदी ब्याज छूटफूड प्रोसेसिंग के लिए पांच और मेगा फूड पार्क बनेंगेकृषि उत्पादन बढ़ाने को पूर्वी राज्यों के लिए विशेष प्रावधानदलहन और तिलहन उत्पादन बढ़ाने के लिए 60 हजार गांवों में (बिज़नस भास्कर)

उत्पाद शुल्क बढ़ने से बेसमेटल्स हुए महंगे

केंद्रीय आम बजट में उत्पाद शुल्क बढ़ने से शुक्रवार को बेसमेटल की कीमतों में तेजी का रुख रहा। कारोबारियोंे के मुताबिक सरकार के इस कदम से इनकी कीमतों में और तेजी आ सकती है। जिसका बेसमेटल जैसे कॉपर, अल्यूमीनियम, निकिल, जिंक के उत्पादों की कीमतों में भी तेजी आ सकती है। घरलू बाजार में शुक्रवार को घरलू बाजार में कॉपर के दाम चार रुपये बढ़कर 338 रुपये, अल्यूमीनियम के दाम तीन रुपये बढ़कर 108 रुपये, लेड के दाम तीन रुपये बढ़कर 102 रुपये प्रति किलो हो गए। मेटल कारोबारी सुरशचंद गुप्ता ने त्नबिजनेस भास्करत्न को बताया कि केंद्रीय बजट में उत्पाद शुल्क 8 फीसदी से बढ़ाकर 10 फीसदी करने की वजह से बेसमेटल और महंगे हो जाएंगे। बजट के दिन ही इनके मूल्यों में दो से चार रुपये प्रति किलो की बढ़ोतरी हुई है। उनका कहना है कि लोग महंगाई से पहले से ही परशान थे। ऐसे में उत्पाद शुल्क में बढ़ोतरी से महंगाई और बढ़ने का रास्ता खुल गया है।आने वाले दिनों में इनकी कीमतों में और तेजी आ सकती है। मेटल कारोबारी हरिओम साहू का कहना है कि वैसे तो देश में मेटल के दाम लंदन मेटल एक्सचेंज (एलएमई) पर निर्भर करते हैं, लेकि न उत्पाद शुल्क बढ़ने से मेटल निर्माता कंपनियों की लागत बढ़ेगी। जिससे बाजार में इनकी कीमतों में इजाफा होगा। आने वाले समय में उत्पाद शुल्क में बढ़ोतरी की वजह से बेसमेटल के दाम दो से तीन फीसदी और बढ़ सकते हैं। कारोबारियों का कहना है आर्थिक हालात सुधरने से बेसमेटल की मांग बढ़ रही है। आगे भी हालात सुधरने की उम्मीद है। ऐसे में बेसमेटल के उत्पादों की कीमतों पर भी इसका असर पड़ सकता है। इनका उपयोग रियल एस्टेट, ऑटो उद्योग और इलैक्ट्रिॉनिक उपकरणों में प्रमुखता से होता है। बजट के बार कारोबारियों का कहना है कि इस बजट में कारोबारियों के लिए कुछ खास नहीं है। गुप्ता कहना है कि पेट्रोल और डीजल के महंगा होने से रोजमर्रा की वस्तुओं के दाम और बढ़ेंगे। सरकार को बजट में ऐसे कदम उठाने चाहिए थे, जिससे महंगाई में कमी आती है। सरकार ने इसके उलट महंगाई को बढ़ावा देने वाला बजट पेश किया है।प्रभावकॉपर, अल्यूमीनियम, निकिल, जिंक के उत्पादों की कीमतों में भी तेजी आ सकती है। घरलू बाजार में कॉपर के दाम भ् रु. बढ़कर 338 रुपये, अल्यूमीनियम के दाम ब् रुपये बढ़कर 108 रुपये, लेड के दाम ख्02 रुपये प्रति किलो हो गए। (बिज़नस भास्कर)

आम आदमी पर बढ़ेगा बोझ

केंद्रीय बजट को किसी अकाउंटेंट की आंकड़ों की बाजीगरी के तौर पर नहीं देखा जा सकता। प्रणब मुखर्जी के बजट को एक अकाउंटेंट का बजट कहना मुनासिब होगा क्योंकि उन्होंने सिर्फ आंकड़ों का खेल खेला है। इन्फ्रास्ट्रक्चर के तहत ग्रामीण विकास और ग्रामीण विकास के तहत नरगा को जोड़ कर उन्होंने 1,73,552 करोड़ रुपये का खर्च खड़ा कर दिया। आंकड़ों की बाजीगरी में आम आदमी पिट गया है।प्रणब अपनी भूमिका को राजकोषीय घाटे और विकास दर में संतुलन कायम करने वाले के तौर पर देख रहे हैं। घाटे की एक अहम वजह पिछले साल घोषित राहत पैकेज हैं। आम धारणा है कि सरकार ने ये राहत पैकेज आम आदमी के लिए लाए। सरकार ने इसके जरिये विकास दर को रफ्तार देने का सेहरा अपने माथे बांध लिया। लेकिन आप को किसी आदमी से यह पूछ कर देखना चाहिए कि क्या इससे उसकी तनख्वाह, कारोबार या बचत में इजाफा हुआ है।2009-10 में जीडीपी में 7।2 फीसदी की वृद्धि दर के अनुमान का आपकी असल जिंदगी में क्या असर हुआ है? अगर इससे आपकी जिंदगी में कोई बेहतरी नहीं दिख रही है,तो समझ लीजिये कि आपने मामले की नब्ज पकड़ ली है। दरअसल केंद्रीय बजट सरकार और आला कंपनियों के बीच का संवाद बनता जा रहा है। आम आदमी इस दायर से पूरी तरह बाहर है। ऐसा लगता कि बजट आला कंपनियों के लिए ही लिखा जा रहा है। वही लोग इस पर बहस करते हैं और उन्हीं की राय मायने भी रखती है। वित्त मंत्री के बजट भाषण में इस रिश्ते की साफ झलक दिखती है। वह सार्वजनिक कंपनियों के बाजार पूंजीकरण का हवाला देते हैं। जैसे यह उनकी उपलब्धि हो। लेकिन क्या सार्वजनिक कंपनियों का मार्के ट कैपिटलाइजेशन बढ़ने से आम आदमी की कमाई पर कोई फर्क पड़ा है। बिल्कुल नहीं। हर बार बजट के बाद आम जनता को महंगाई बढ़ने की ही आशंका सताने लगती है। इस बार भी यही होने वाला है। इस बार का बजट पूरी तरह महंगाई बढ़ाने वाला बजट है, जिसमें विकास की कोई दृष्टि नहीं दिखती। अगर हम आज की तारीख में एक आम आदमी के बजट पर नजर दौड़ाएं तो पाएंगे कि खाने में उसकी आमदनी का बड़ा हिस्सा खर्च हो रहा है। कुछ शहरों में रहने से ज्यादा खाने पर खर्च हो रहा है। अगर हम आमदनी के हिसाब से सबसे निचले पायदान पर खड़े 20 फीसदी लोगों के खर्चे का जायजा लें तो पाएंगे कि उसका साठ फीसदी कमाई भोजन पर खर्च हो जाता है। यह वल्र्ड बैंक का आकलन है। क्या केंद्रीय बजट में इस तकलीफ को कम करने की कोशिश हुई है। दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हुआ है। प्रणब मुखर्जी का कहना है कि सरकार विकास और आर्थिक सुधारों की दिशा में एक मददगार की भूमिका निभा रही है। सरकार की भूमिका इसके लिए माकूल मुहैया कराना है। पिछले दो साल के दौरान अमेरिका में हम माकूल मुहैया कराने की भूमिका अदा करने वालों का प्रदर्शन देख चुके हैं। सरकार ने मदद मुहैया कराने वाले संसाधनों को वापस ले लिया और बाजार की ताकतों को खुला छोड़ दिया। इन ताकतों ने दुनिया की बड़ी इकोनॉमी को जमीन पर घसीट मारा और इसे दिवालियेपन के हालात में पहुंचा दिया। प्रणब कहते हैं कि बेहतरी का माहौल मुहैया कराने वाली सरकारें जरूरतमंदों को हर चीज सीधे मुहैया नहीं कराती। अगर केंद्र को अपने नागरिकों को सीधे तौर पर कुछ देना ही नहीं है तो फिर केंद्रीय कर ढांचे का क्या मतलब है? जीएसटी की बात क्यों हो रही है? एक्साइज डयूटी में बढ़ोतरी क्यों? क्या यह विशाल ब्यूरोक्रेसी का पेट भरने के लिए है? अगर ऐसा ही है तो शहरों और राज्यों के हाथों में इसकी कमान सौंपे दे।वित्त मंत्री का कहना है कि अर्थव्यवस्था में रिकवरी काफी उत्साह बढ़ाने वाली है। यह रिकवरी कृषि क्षेत्र के नकारात्मक प्रदर्शन के बावजूद हुई है। मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर ने इकोनॉमी को रफ्तार देने में अहम भूमिका निभाई है। क्या मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर की बेहतरी ने नई नौकरियां पैदा हुई हैं। क्या मैन्यूफै क्चरिंग सेक्टर की यह तरक्की आपको खाद्य सुरक्षा दे सकती है। वित्त मंत्री का कहना है वह खाद्य सुरक्षा के मामले पर बेहद सजग हैं। उनका कहना है कि मुख्यमंत्रियों की मदद से अगले कुछ महीनों में वह महंगाई को नीचे ले आएंगे। अगर महंगाई कम करने की जिम्मेदारी राज्यों पर ही डालनी है तो कृषि मंत्रालय का क्या काम है? खत्म कर दीजिये इस मंत्रालय को। समर्थन मूल्य तय करने की पूरा अधिकार राज्यों के हाथ में दे दीजिये। वित्त मंत्री ने बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और उड़ीसा तक हरित क्रांति पहुंचाने के लिए सिर्फ 400 करोड़ रुपये का इंतजाम किया है। छत्तीसगढ़ में इस सप्ताह की शुरुआत में बजट पेश किया गया है।लेकिन वहां भी इसके लिए इससे ज्यादा रकम का इंतजाम किया गया है। वित्त मंत्री कहते हैं कि खाद्यान्नों के भंडारण और सप्लाई चेन के परिचालन में खामियों की वजह से जो अनाज बरबाद होता है, उसे बचाना जरूरी है। वह प्रधानमंत्री का हवाला देते हैं। पीएम की नजर में बाजार में प्रतिस्पर्धा की जरूरत है। लिहाजा रिटेल कारोबार के लिए अपने बाजार को खोलने के प्रति हम दृढ़ रवैया अपनाना होगा। उनका मानना है कि इससे खेत से बाजार तक आने तक खाद्यान्नों के दाम में होने वाली बढ़ोतरी कम हो जाएगी। क्या आपने कभी सोचा है कि वाल मार्ट जैसी कंपनियां जब हमारा सारा अनाज खरीद लेगी तो क्या होगा? दामों पर किसका नियंत्रण रहेगा। खरीदार का या छोटे किसानों का। उपभोक्ताओं को जरूर फायदा होगा लेकिन क्या किसानों को फायदा होगा?राहत पैकेजों के बार में वित्त मंत्री का कहना है कि इनसे लोगों के हाथ में ज्यादा पैसा आएगा। अप्रत्यक्ष करों में कटौती, मनरगा और ग्रामीण इलाकों में इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास का यही मकसद है। यही वजह है कि सरकार ने नरगा पर 4000 करोड़ रुपये खर्च किए। इसके जरिये वह उपभोग पर आधारित अर्थव्यवस्था को बढ़ाना चाहती थी। राहत पैकेजों का पैसा गया कहां। क्या मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में। यह कंपनियों के मुनाफे और बिक्री में तब्दील हो गया? क्या वित्त मंत्री यह स्वीकार करेंगे कि राहत पैकेजों की उनकी स्कीम गांवों में रहने वाले गरीबों तक पहुंचने में नाकाम रही है। क्या यह प्रशासनिक कड़ी में मौजूद सिस्टम के जेब में चली गई है? अगर यह पैसा ग्रामीण इलाकों में रहने वाले गरीबों के पास पहुंचता तो खाने पर खर्च होता। अगर यह योजना नाकाम रही है और उपभोग आधारित अर्थव्यवस्था को रफ्तार दे रही है तो इसे बंद कर देना चाहिए। राहत पैकेजों की राशि राज्यों को दे दी जाए ताकि रोजगार पैदा हो और इसमें रफ्तार आए।बजट में समावेशी विकास की कई घोषणाएं हैं। वित्त वर्ष 2010-11 की कुल आयोजना में 1,37,674 करोड़ रुपये सामाजिक सेक्टर के लिए निर्धारित है। यानी 37 फीसदी। इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए 1,73,552 करोड़ रुपये निर्धारित हैं। यानी आयोजना व्यय का 46 फीसदी। लेकिन इसमें ओवरलैपिंग हो गई है। दोनों योजनाओं में ग्रामीण क्षेत्र में इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास के प्रावधान है। ग्रामीण विकास की पूरी आयोजना ही 66,100 करोड़ रुपये का है और यह अर्थव्यवस्था को रफ्तार दे सकती है। वित्त मंत्री ने महात्मा गांधी का हवाला दिया। उन्होंने कहा था जैसे ब्र±ामंड खुद के अंदर समाया हुआ है वैसे ही भारत भी गांवों के भीतर है। गांधी जी का कहना सच था। 2010 में यह स्थिति नहीं है। अगले दस साल में 25 करोड़ लोग शहरी आबादी में जुड़ जाएंगे। गांवों से शहर की ओर कूच करने वालों की तादाद बेहिसाब तेजी से बढ़ रही है। लेकिन यह बेहद अचरज की बात है कि इस बार बजट में जेएनएनयूआर का पत्ता साफ हो गया है, जबकि यह यूपीए सरकार की फ्लैगशिप योजनाओं में से एक थी। क्या यह स्कीम पूरी तरह खत्म कर दी गई है? क्योंकि इस स्कीम का कोई इस्तेमाल ही नहीं हुआ। गांधी की बात कर नेहरू के नाम की स्कीम खत्म कर दी गई। मझोले और छोटे उद्योग सबसे ज्यादा रोजगार पैदा करते हैं। इसे सरकार के समर्थन की ज्यादा जरूरत है। सरकार ने इस सेक्टर के लिए ऋण प्रवाह पूरी तरह ठप कर दिया है। अब भी इस क्षेत्र को बहुत कम कर्ज मिल पा रहा है। यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है सरकार ने इस सेक्टर के लिए सिर्फ 2400 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है। क्या इतना काफी है? याद रखिये यह भारतीय अर्थव्यवस्था की लाइफलाइन है। इस पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है। छोटे और मझोले उद्योगों के लिए कर्ज की सप्लाई बनाए रखनी होगी।वित्त मंत्री ने टैक्स स्लैब में कुछ दिखावटी परिवर्तन किए हैं। लेकिन इसका कोई फायदा नहीं होने वाला क्योंकि कीमतें बढ़ने और अप्रत्यक्ष करों का दवाब टैक्स स्लैब से दिखने वाले लाभों को कुतर जाएगा। बजट ने अप्रत्यक्ष करों के तौर पर 43500 करोड़ रुपये का लेवी थोप दिया है। वित्त मंत्री का कहना है कि यह आम आदमी का बजट है। यह सच है कि यह बजट आम आदमी पर एक बोझ है। उनका कहना कि यह किसानों, खेती-बाड़ी उद्मियों, आम उद्यमियों और निवेशकों का बजट है। लगता है वह अपने नम्र लहजे में व्यंग्य कर रहे हैं। उन्हें इसकी परवाह नहींे है कि यह इन वर्गो पर पर सकारात्मक असर डालता या नकारात्मक। (बिज़नस भास्कर)

संतुलन है, विकास नहीं

वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने शुक्रवार को संसद में पेश वर्ष 2010-11 के लिए 11,08,749 करोड़ रुपये का बजट पेश किया। इस बजट को संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार की समावेशी विकास की अवधारणा पर आधारित बताया जा रहा है। इसमें 3,73,092 करोड़ रुपये के आयोजना और 7,37,657 करोड़ रुपये के गैर-आयोजना व्यय का प्रावधान किया गया है। संसाधनों के मोर्चे पर वित्त मंत्री ने 6,82,212 करोड़ रुपये के राजस्व का अनुमान लगाया है। जबकि राजकोषीय घाटे का अनुमान 3,81,408 करोड़ रुपये रखा है जो सकल घरलू उत्पाद (जीडीपी) का 5.5 फीसदी है। चालू साल में यह जीडीपी के 6.9 फीसदी पर रहा है।प्रणब मुखर्जी के इस बजट में सरकार और उद्योग के बीच संतुलन की कोशिश की गई है। उन्होंने अप्रत्यक्ष करों में बढ़ोतरी कर स्टिमुलस पैकेज की वापसी की शुरूआत इस बजट में की है। साथ ही सार्वजनिक खर्च में बढ़ोतरी से उद्योग के लिए मांग बढ़ाने की कोशिश की है। महंगाई पर काबू पाने के लिए कारगर कदम उठाने की बजाय इस बजट में महंगाई बढ़ाने वाले उपायों ने विपक्ष को एकजुट कर दिया। संसद के इतिहास में पहली बार समूचे विपक्ष ने बजट का विरोध करते हुए सदन का बहिष्कार कर दिया। लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने बजट को जनता के खिलाफ बताते हुए कहा कि यह महंगाई बढ़ाने वाला बजट है।कौटिल्य को उद्धृत करते हुए प्रणब मुखर्जी ने कहा कि एक बुद्धिमान समाहर्ता राजस्व संग्रह इस प्रकार करगा कि उत्पादन और उपभोग अनिष्ट रूप से प्रभावित न हो.. लोक संपन्नता, प्रचुर मात्रा में कृषि उत्पादकता और अन्य बातों के साथ वाणिज्यिक समृद्धि पर वित्तीय संपन्नता निर्भर करती है। लेकिन क्या प्रणब मुखर्जी ने इसका पालन किया है?
वित्त मंत्री ने मध्य वर्ग को खुश करने के लिए प्रत्यक्ष कर की दरों के लिए स्लैब में बदलाव किये हैं। उन्होंने 1.60 लाख रुपये से तीन लाख रुपये तक की 10 फीसदी की आयकर स्लैब को बढ़ाकर पांच लाख रुपये कर दिया है। इसके पहले तीन से पांच लाख रुपये तक की आय पर 20 फीसदी कर लगता था लेकिन अब यह पांच लाख रुपये से आठ लाख रुपये तक की आय पर लगेगा। इसी तरह पांच लाख रुपये से अधिक की आय पर लगने वाली 30 फीसदी की आय कर दर अब आठ लाख रुपये से अधिक की आय पर लागू होगी। आयकर अधिनियम की धारा 80-सी के तहत कर छूट वाले निवेश के लिए ढांचागत क्षेत्र बांड के जरिये 20,000 रुपये की अतिरिक्त सुविधा जोड़ दी गई है।
कारपोरट क्षेत्र के लिए सरचार्ज को 10 फीसदी से घटाकर 7.5 फीसदी किया है लेकिन न्यूनतम वैकल्पिक कर (मैट) को 15 फीसदी से बढ़ाकर 18 फीसदी किया गया है। मैट उन कंपनियों पर लगता है जो कारपोरशन कर नहीं देती हैं लेकिन उनको एक फिक्स दर पर मैट देना होता है।
प्रत्यक्ष करों में राहत के उलट प्रणब ने उत्पाद शुल्क की केंद्रीय दर सेनवैट को आठ फीसदी से बढ़ाकर दस फीसदी कर दिया है। सीमा शुल्क, उत्पाद शुल्क और सेवा कर में किये गये इन बदलावों के जरिये प्रणब मुखर्जी ने लोगों पर 46,500 करोड़ रुपये का बोझ डाल दिया है। प्रत्यक्ष करों में 26,000 करोड़ रुपये की छूट के बावजूद 20,500 करोड़ रुपये का नया बोझ उन्होंने करदाताओं पर डाल दिया है। बजट में सेवाकर से प्राप्तियां बढ़ाई तो गई हैं लेकिन जीडीपी की हिस्सेदारी के रूप में यह अब भी बहुत कम है। प्रत्यक्ष कर छूट का फायदा उच्च मध्य वर्ग को अधिक मिलेगा लेकिन अप्रत्यक्ष करों में बढ़ोतरी का बोझ हर वर्ग को झेलना होगा। कर बढ़ोतरी के चलते पेट्रोल की कीमत में 2.71 रुपये प्रति लीटर और डीजल के दाम मे 2.55 रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी हो गई जो आज आधी रात से लागू हो जाएगी। सोने और चांदी पर सीमा शुल्क को 50 फीसदी बढ़ा दिया है। केवल यही नहीं स्टील, सीमेंट सहित तमाम उत्पाद महंगे हो गये हैं।
उत्पादों की कीमत में बढ़ोतरी के साथ इसकी शुरुआत हो गई है और यह कदम महंगाई दर में बढ़ोतरी का काम करगा। पहले ही करीब 20 फीसदी की खाद्य मुद्रास्फीति का दंश झेल रहे लोगों महंगाई का नया दौर झेलना होगा। वित्त मंत्री ने इंफ्रास्ट्रक्चर पर खर्च 1,73,552 करोड़ रुपये रखा है। जो आयोजना व्यय का 46 फीसदी है। इसमें उन्होंने करीब 66,000 करोड़ रुपये की ग्रामीण योजनाओं को भी शामिल कर लिया है। जिसमें अकेली 40,100 करोड़ रुपये की महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना भी शामिल है। वित्त मंत्री के बजट पेश करने के कुछ घंटों बाद वित्त सचिव अशोक चावला ने कहा कि वित्त मंत्री ने बजट में चार मुद्दों को केंद्र में रखा है। पहला है विकास, दूसरा राजकोषीय संतुलन, तीसरा सार्वजनिक व्यय के जरिये समावेशी विकास और चौथा है वित्तीय हस्तक्षेप। लेकिन क्या वाकई उनके प्रावधान इन बातों के अनुरूप हैं?
सामाजिक क्षेत्र के लिए उन्होंने 1,37,674 करोड़ रुपये के व्यय का प्रावधान किया है जो आयोजना व्यय का 37 फीसदी है। लेकिन इसमें सर्वशिक्षा अभियान से लेकर ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन और कई नई पुरानी योजनाएं शामिल हैं। मात्र 1000 करोड़ रुपये के कोष के सहार वह 110 करोड़ लोगों के देश में राष्ट्रीय सामाजिक सुरक्षा प्रदान की उम्मीद पाले हुए हैं।
जबकि उन्हें मालूम है कि देश में करीब 90 फीसदी कामकाजी लोग असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं। इसी तरह मात्र 100 करोड़ रुपये के कोष के जरिये वह लोगों को सेवानिवृत्ति के बाद पेंशन का लाभ पहुंचाने की उम्मीद कर रहे हैं। जिस महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना को ग्रामीण क्षेत्र में विकास का पहिया तेज करने और ग्रामीण मांग का वाहक बताया जा रहा है उसके लिए पिछले साल के 39,100 करोड़ रुपये के मुकाबले 2.5 फीसदी बढ़ाकर 40,100 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। वहीं ग्रामीण आवास के लिए करीब 1000 करोड़ रुपये और प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के लिए केवल 600 करोड़ रु पये की बढ़ोतरी की गई है।दिलचस्प बात यह है कि बीस लाख रुपये तक का घर खरीदने वाले मध्य वर्ग के लिए एक फीसदी की ब्याज सब्सिडी को एक साल जारी रखने के लिए प्रणब मुखर्जी ने 1000 क रोड़ रुपये का प्रावधान किया है लेकिन देश की करीब 40 फीसदी गरीब आबादी के लिए स्लम फ्री जीवन देने का सपना व मात्र 1270 करोड़ रुपये से पूरा करना चाहते हैं। इसी तरह नरगा को स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत लाने, प्रधानमंत्री दक्षता परिषद के लिए 45 करोड़ रुपये देने और महिला किसान सशक्तिकरण योजना के लिए 100 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। महिलाओं के लिए साक्षर भारत योजना की घोषणा उन्होंने की लेकिन इसके लिए कोई वित्तीय आवंटन उन्होंने नहीं किया है। शिक्षा के कुल खर्च 45,711 करोड़ रुपये रख गया है।
इसमें समावेशी विकास के लिए कृषि क्षेत्र को मजबूत करने की बात कही गई है लेकिन बजट में कृषि क्षेत्र के लिए आयोजना व्यय में 11,880 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है जो पिछले बजट के आवंटन से करीब 1700 करोड़ रु पये ही अधिक है। चालू साल में 0.2 फीसदी की गिरावट वाले कृषि क्षेत्र को इस आवंटन के सहार चार फीसदी की विकास पर लाने की उम्मीद की गई है। किसानों को पांच फीसदी की ब्याज दर पर कर्ज देने के लिए ब्याज सब्सिडी बढ़ाई गई है लेकिन यह दर समय पर कर्ज की अदायगी की हालत में ही लागू होती है।
पिछले साल यह दर छह फीसदी थी। इसके साथ ही कृषि ऋण आवंटन का लक्ष्य 3,75,000 करोड़ रु पये करने की बात कही गई है। कृषि ऋण के आवंटन को लेकर सवाल उठते रहे हैं पिछले वित्त वर्ष में यह लगातार लक्ष्य से पी छे रहा लेकिन अंतिम आंकड़ों में लक्ष्य हासिल करने की कलाकारी कैसे हुई यह समझना टेढ़ी खीर है। (बिज़नस भास्कर)

बजटः जो आप जानना चाहते हैं

वित्त वर्ष 2010-11 के लिए आम बजट और रेल बजट पेश हो चुका है। दादा के पिटारे में आयकर रियायत का गिफ्ट था। तो दीदी ने एक बार फिर यात्री किराया न बढ़ाकर आम आदमी को निहाल किया। भास्कर.कॉम ने आपको बजट के हर पहलू से अवगत कराया। हर घटना क्रम पर हमारी पैनी नज़र रही ताकि आपको छोटी- बड़ी खबर से अवगत कराया जा सके। हमारे विशेषज्ञों ने आपको बजट को समझने में मदद की। आइए एक नज़र डालते हैं कुछ खास खबरों और विश्लेषणों पर-बजट 2010 : कुछ खास बातेंवित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी ने ‘आम आदमी’ को राहत देने के नाम पर बजट पेश किया, लेकिन महंगाई बढ़ गई। आयकर में फायदा केवल उन्हें मिलेगा जिनकी आय 45 हजार रु महीना है। पेट्रोल-डीजल के दाम हाथोहाथ करीब 2 रु. 67 पैसे बढ़ गए। अन्य खास खबरें* बजट से बढ़ेगी महंगाईमहंगाई की मार झेल रही जनता ने आम बजट पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। इस संबंध में हर किसी की जुबान से एक ही बात निकली कि बजट से महंगाई कम नहीं होगी बल्कि और बढ़ेगी। स्वयं कांग्रेसी भी दबी जुबान से स्वीकार रहे हैं कि बजट जनता के हित में नहीं है तथा लोगों को महंगाई खून के आंसू रुलाएगी।* आम बजट से किसानों को राहतवित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी द्वारा शुक्रवार को लोकसभा में पेश किए गए आम बजट को लेकर राजनीतिक दलों, सामाजिक संगठनों, उद्यमियों और प्रमुख लोगों ने मिलीजुली प्रतिक्रिया व्यक्त की है। भाजपा के नेताओं ने बजट को महंगाई में देश को जलाने वाला बताया है, वहीं कांग्रेस के नेताओं ने कहा है कि बजट से देश के आर्थिक विकास को नई दिशा मिलेगी। * 2010-11 का बजट : कॉर्पोरेट खुश क्यों?2010-11 का बजट आया तो कॉर्पोरेट जगत के चेहरे पर हंसी लेकर। फाइनेंशियल सेक्टर और इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए खुशियां लौटीं। राहत पैकेजों के वापस होने की खबर तो आई लेकिन 14 प्रतिशत की बजाए एक्साइज 10 प्रतिशत ही रहा। ये कॉपरेरेट सेक्टर के लिए सबसे बड़ी खुशी है।कॉर्पोरेट जगत के लोग इसे संतुलित और विकासपरक बजट मान रहे हैं। * बजट से उद्योग जगत को आखिर क्या क्या मिला?2010-11 का बजट आया तो कॉपरेरेट जगत के चेहरे पर हंसी लेकर। फाइनेंशियल सेक्टर और इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए खुशियां लौटीं। राहत पैकेजों के वापस होने की खबर तो आई लेकिन 14 प्रतिशत की बजाए एक्साइज 10 प्रतिशत ही रहा। ये कॉपरेरेट सेक्टर के लिए सबसे बड़ी खुशी है। कॉर्पाेरेट जगत के लोग इसे संतुलित और विकासपरक बजट मान रहे हैं। * आम बजट : कहीं मुश्किल तो कहीं सौगातशुक्रवार को आया केंद्र का बजट सभी वर्र्गों के लिए एक जैसा नहीं है। किसी वर्ग को इससे खुशी तो किसी को नाराजगी है। र्ईंधन के दाम बढऩे से तो हर वर्ग खफा है, लेकिन आयकर में छूट मिलने की बात से वे करदाता खुश हैं जो नियमित कर चुकाते हैं। केंद्र का बजट घर के बजट पर भारी पडऩे वाला है। घरेलू संसाधनों के लिए सरकार ने विशेष ध्यान नहीं दिया है। आम आदमी के लिए राहत के इंतजाम नहीं हैं। * इन्वेस्टमेंट x शेयर : बजट से उम्मीदें जगींबजट में घोषणाओं का पिटारा खुला और बाजार में उम्मीद जगाने का प्रयास भी हुआ। निवेशकों ने उछाल इसका फायदा भी उठाया। सेंसेक्स 400 अंक उछलने के बाद केवल 175 अंक बढ़कर ही सिमट गया। एनएसई निफ्टी ६3 अंक बढ़कर 4922 अंक पर बंद हुआ।आयकर में राहत, महंगाई बढ़ेगीवित्त मंत्नी प्रणव मुखर्जी ने महंगाई का बोझ झेल रहे वेतनभोगियों को आयकर में भारी राहत दी है लेकिन अर्थव्यवस्था के धीरे-धीरे पटरी पर लौटने के मद्देनजर प्रोत्साहन पैकेज को आंशिक रूप से वापस लेने की उनकी घोषणा से पेट्रोलियम पदार्थो तथा कई अन्य वस्तुओं के दाम और चढ़ेंगे। (दैनिक भास्कर)

सेहत के लिए फिट बजट

नई दिल्ली।। सबके अच्छे स्वास्थ्य के लक्ष्य के लिए राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन पर जोर देते हुए केंद्रीय सरकार के बजट में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के लिए पिछले साल के मुकाबले 2,766 करोड़ रुपये की बढ़ोतरी की गई है। पिछली बार बजट में 19,534 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे, जिसे बढ़ाकर इस बार 22,300 करोड़ रुपये कर दिया गया है। इसमें से 13,910 करोड़ रुपये सरकार के फ्लैगशिप कार्यक्रम राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के लिए हैं। सबको बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए शुरू किए गए केंद्र सरकार के इस कार्यक्रम में 11वीं योजना के दौरान 90,558 करोड़ रुपये खर्च होने हैं। बजट में प्रणब मुखर्जी ने देश में जिलेवार किए जाने वाले स्वास्थ्य सर्वेक्षण का भी उल्लेख किया है। यह सर्वेक्षण देश में स्वास्थ्य विवरण बनाने में सहायक होगा। इससे हेल्थ से जुड़ी योजनाएं तैयार करने में मदद मिल सकेगी और देश में स्वास्थ्य की तस्वीर दिखाई दे सकेगी। राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम पर खर्च की जाने वाली राशि में भी इजाफा किया गया है। इस मद में पिछले साल की बजट की संशोधित राशि 888.15 करोड़ रुपये को बढ़ाकर 1291.25 करोड़ रुपये कर दिया गया है। इसी प्रकार राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम की राशि 50 करोड़ रुपये को दोगुना कर 103 करोड़ रुपये कर दिया गया है। तंबाकू नियंत्रण कार्यक्रम की राशि में भी उल्लेखनीय वृद्धि की गई है। पिछले साल इस कार्यक्रम के लिए 24 करोड़ रुपए खर्च किए गए थे, जबकि इस बार इसे बढ़ाकर 39 करोड़ रुपये किया गया है। मेडिकल इक्विपमेंट, इंस्ट्रुमेंट और अन्य सामान पर ड्यूटी को सिंपल बनाकर स्पेशल अडिशनल ड्यूटी से छूट दे दी गई है और बेसिक ड्यूटी पांच प्रतिशत कर दी गई है। इस प्रकार इक्विपमेंट के निर्माण के लिए जरूरी पुर्जों पर ड्यूटी को पांच प्रतिशत किया गया है। सरकारी अस्पतालों और किसी कानून के तहत स्थापित अस्पतालों के लिए जो छूट पहले से दी हुई हैं, उसे बरकरार रखा गया है। एम्स के लिए दो करोड़ रुपये अधिक आवंटित किए गए हैं। पिछले वित्त वर्ष में एम्स के लिए 11 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे, जिसे इस साल बढ़ाकर 13 करोड़ रुपये किया गया है। आयुर्वेद और अन्य भारतीय चिकित्सा प्रणाली आयुष के लिए बजट में आवंटित राशि में पिछले साल के मुकाबले बहुत मामूली वृद्धि की गई है। पिछले साल के बजट अनुमानों में आयुष के लिए 922 करोड़ रुपये रखे गए थे, जो संशोधन के बाद 863 करोड़ रुपये हो गए थे। लेकिन इस बार यह राशि 964 करोड़ रुपये रखी गई है। इसमें से योजना मद में 800 करोड़ रुपये और गैर योजना मद में 164 करोड़ रुपये रखे गए हैं। आयुष में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के लिए पिछली बार की 176 करोड़ रुपये की राशि भी बढ़ा दी गई है। वर्तमान वित्त वर्ष में यह राशि बढ़ा कर 208 करोड़ पचास लाख रुपये कर दी गई है। (ई टी हिंदी)

जनवरी में भारत से मसालों का निर्यात 18 फीसदी बढ़ा

कोच्चि भारत से जनवरी के दौरान मसालों का निर्यात पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले 18फीसदी बढ़कर 430 करोड़ रुपये हो गया। पिछले साल जनवरी में 365.43 करोड़ रुपये मूल्य के मसालों का निर्यात किया गया था। मसाला बोर्ड द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक अमेरिका और यूरोपीय संघ भारतीय मसालों का बड़े बाजार हैं। इन बाजारों में आर्थिक मंदी से रिकवरी होने के कारण मसालों की मांग बढ़ गई। इसी वजह से मसालों की मांग इन बाजारों में ज्यादा रही। मात्रा के लिहाज से जनवरी में 34,436 टन मसालों का निर्यात किया जबकि पिछले साल इस दौरान 30,870 टन मसालों का निर्यात हुआ था। छोटी इलायची, लाल मिर्च, लहसुन, जायफल, जावित्री, करी पाउडर, मसाला तेल और सौंठ के निर्यात में भारी बढ़ोतरी दर्ज की गई।जनवरी के दौरान 28.68 करोड़ रुपये की 310 टन इलायची का निर्यात किया गया। जबकि पिछले जनवरी में 3.13 करोड़ रुपये की 55 टन इलायची का निर्यात किया गया था। पिछले अप्रैल से जनवरी के दौरान 118.71 करोड़ रुपये की 1500 टन इलायची का निर्यात हुआ। इसी तरह चालू वित्त वर्ष के पहले 1क् माह में 1030.44 करोड़ रुपये मूल्य की 158,500 टन लाल मिर्च निर्यात की गई जबकि पिछले साल समान अवधि में 897.88 करोड़ रुपये की 157,500 टन लाल मिर्च निर्यात हुई थी। (प्रेट्र )जायफल का निर्यात बढ़कर 3025 टन रहा, जिसका मूल्य 83.42 करोड़ रुपये था। जबकि पिछले साल 1क् माह में 43.72 करोड़ रुपये मूल्य की 1550 टन जायफल का निर्यात किया गया। (बिज़नस भास्कर)

सीमा शुल्क बढ़ते ही सोने-चांदी के दाम चढ़े

बजट में सोना, चांदी और प्लैटिनम पर सीमा शुल्क में बढ़ोतरी की घोषणा के साथ ही कीमती धातुओं के दाम बाजार में चढ़ गए। वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने लोकसभा में वित्त वर्ष 2010-11 का बजट पेश करते हुए सोने और प्लैटिनम पर सीमा शुल्क 200 रुपये से बढ़ाकर 300 रुपये प्रति दस ग्राम कर दिया। इसी तरह से चांदी पर भी सीमा शुल्क की दर को 1,000 रुपये से बढ़ाकर 1,500 रुपये प्रति किलो किया गया है। इससे सोना 100 रुपये प्रति दस ग्राम और चांदी 500 रुपये प्रति किलो महंगी हो गई।दिल्ली के सराफा बाजार में सोने की कीमतों में 100 रुपये प्रति दस ग्राम और चांदी की कीमतों में 500 रुपये प्रति किलो की तेजी दर्ज की गई। शुक्रवार को सोने का भाव बढ़कर 17,010 रुपये प्रति दस ग्राम हो गए। इस दौरान चांदी की कीमत बढ़कर 25,800 रुपये प्रति किलो हो गई। मुंबई बुलियन एसोसिएशन के अध्यक्ष सुरश हुंडिया ने बताया कि सीमा शुल्क में बढ़ोतरी करने का असर सोने और चांदी के आयात पर पड़ेगा। घरलू बाजार में दाम ऊंचे होने के कारण वर्ष 2009 में सोने के आयात में 32 फीसदी की भारी कमी आई थी जबकि चांदी का आयात भी काफी कम हुआ था। चालू वर्ष में भी सोने और चांदी का आयात कम होने की संभावना है। बजट आने के बाद मुंबई बाजार में भी शुक्रवार को सोने और चांदी की कीमतों में बढ़ोतरी दर्ज की गई। मुंबई में सोने के दाम बढ़कर 16,790 रुपये प्रति दस ग्राम हो गए जबकि चांदी का भाव बढ़कर 26,100 रुपये प्रति किलो हो गया। दिल्ली बुलियन वैलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष वी. के. गोयल ने बताया कि बजट में कीमती धातुओं पर शीमा शुल्क में हल्की बढ़ोतरी की गई है। इसका घरलू बाजार में सोना, प्लेटिनम और चांदी की कीमतों में आंशिक प्रभाव पड़ेगा। घरलू बाजार में शुक्रवार को सोने और चांदी की कीमतों में तेजी का प्रमुख कारण विदेशी बाजार में भाव बढ़ना है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने का भाव 1108 डॉलर प्रति औंस पर खुला तथा तीन डॉलर की तेजी आकर 1111 डॉलर प्रति औंस पर कारोबार करते देखा गया। इस दौरान अंतरराष्ट्रीय बाजार में चांदी 16.14 डॉलर प्रति औंस पर कारोबार करते नजर आई। (बिज़नस भास्कर)

दिखावे के बजट की असलियत

नई दिल्ली [अश्विनी महाजन]। पिछले कई वर्षो से यह चिंता जताई जा रही है कि बजट में कृषि क्षेत्र की अनदेखी की जा रही है। हालांकि इस बजट में सरकार ने कृषि पर जुबानी चिंता चताई है, लेकिन आंकड़ों में यह चिंता केवल आम जनता को धोखा देती साबित हो रही है।
पिछले वर्ष कृषि के लिए कुल योजना व्यय का संशोधित अनुमान 2.37 प्रतिशत था, इस बार 2.34 प्रतिशत है। दलहन और तिलहन उगाने के लिए और अधिक सहायता देने की बात हो रही है, लेकिन यह केवल मुंह से खर्चे जमा है। देश के सामने खाद्यान्न संकट की जो समस्या है, वह प्रत्यक्ष रूप से कृषि की अनदेखी के कारण हैं। यह सरकार की कृषि क्षेत्र से जुड़ी असंवेदनशीलता का परिचायक है। कृषि क्षेत्र में चिंता का एक बड़ा ही हास्यास्पद नमूना सरकार ने इस बजट में दिया है।
सरकार का कहना है कि खाद्यान्नों की बर्बादी एक बड़ा संकट है, इसे संभालने के लिए रीटेल कंपनियों को प्रोत्साहन देना बहुत जरूरी है, क्योंकि वे चेन बनाकर सामानों को सस्ता बेचती हैं, जिससे बर्बादी से बचा जा सकता है। इसी बहाने सरकार विदेशी कंपनियों को भारत का टिकट दे रही है। न तो इस बारे में अभी तक कोई शोध आया है और न ही कोई अध्ययन ताकि रीटेल कंपनियों को बढ़ावा देने से खाद्यान्न की बरबादी से बचा जा सके।
वास्तव में सरकार की यह सोच बन गई है कि विदेशी निवेश के बगैर किसी भी क्षेत्र में सुधार नहींकिया जा सकता और रीटेल कंपनियों को न्यौता देने की बात इसी सोच का नतीजा है।
दूसरा संकट है राजकोषीय घाटा। पिछले बजट में राजकोषीय घाटा 6.8 प्रतिशत पहुंच गया था, हालांकि तब अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतें बहुत ज्यादा थीं। तब राजकोषीय घाटे में बढ़ोतरी होना लाजिमी था, लेकिन अब तेल मूल्य पर काफी हद तक नियंत्रण पा लिया गया है। बावजूद इसके वित्तीय घाटे में मामूली-सी कमी अर्जित की गई है। 6.07 प्रतिशत का जो राजकोषीय घाटा दिखाया गया है, उसमें तेल कंपनियों के घाटे को नहीं जोड़ा गया है। और राजकोषीय घाटा में कमी की गई है तो दूसरी ओर पूंजीगत व्यय में भी तो कमी आई है। जो खर्च बढ़े भी हैं, वे रेवेन्यू एकाउंट में हैं। कृषि पर खर्च मात्रात्मक रूप से ज्यादा है, लेकिन नियोजित खर्च तो 3.45 प्रतिशत ही है।
बजट घाटा कम रखा गया है, क्योंकि प्रत्यक्ष करों से रेवेन्यू बढ़ने की उम्मीद जताई जा रही है। करों के संबंध में जो एक बात ठीक दिख रही है, वह यह कि जीएसटी को एक वर्ष के लिए और टाल दिया गया है। जिससे कीमतों को कम करने में मदद मिलेगी।
तीसरा मुद्दा है बेरोजगारी का। बेरोजगारी लगातार बढ़ रही है। नरेगा को जो विकल्प बनाया गया, वह अस्थाई समाधान है। स्थाई समाधान के लिए जरूरी है कि रोजगार के नए साधन मुहैया कराए जाएं। श्रमप्रधान तकीनीकों को बढ़ावा दिया जाए, लेकिन सरकार ने इस दिशा मे भी कोई बड़े प्रावधान नहीं किए हैं। इसी से जु़ड़ा हुआ है ढांचागत विकास। ढांचागत विकास आम आदमी के जीवन और आर्थिक समृद्धि के लिए बेहद आवश्यक है। इसके लिए भी इस बजट में कम प्रयास हुए है।
2008-09 में यह 5.5 प्रतिशत था, जबकि इसमें और अधिक निवेश की दरकार है। इस दिशा में एक अच्छी बात दिखाई दी कि सरकार ने प्रतिदिन 20 किमी सड़क बनाने की बात की है, जो सराहनीय है। इससे संसाधनों पर पैसा भी खर्च होगा, निवेश बढ़ेगा और रोजगार की संभावना भी बढ़ेगी।
महंगाई की बात की जाए तो इसके दो प्रमुख कारण हैं। कृषि क्षेत्र की अनदेखी और राजकोषीय घाटा। हालांकि तेल के दामों में बढ़ोतरी कर सरकार ने इस बात के संकेत दे दिए हैं कि महंगाई में फिलहाल कोई कमी नहींहोने जा रही है। सरकार यह कह तो रही है कि राजकोषीय घाटे को कम करके महंगाई को कम किया जाएगा, लेकिन इसके लिए जिस तरह के राजनीतिक अनुशासन की जरूरत होती है, उसमें यह सरकार अभी तक असफल रही है।
सोशल सेक्टर की बात की जाए तो इसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल, महिला और बाल विकास और आर्थिक और सामाजिक विकास को शामिल किया जाता है। पेयजल में लगाए गए धन में 1,300 करोड़ का इजाफा किया गया है, जिसे संतोषजनक कहा जा सकता है। सामाजिक और आर्थिक विकास में निवेश 2600 करोड़ से बढ़ाकर 45,00 करोड़ किया गया है। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण में भी लगभग इतना ही इजाफा हुआ है।
इस तरह देखा जाए तो सोशल सेक्टर के लिए किए गए प्रयास संतोषजनक हैं, लेकिन यहां गौर करने वाली बात तो यह है कि सोशल सेक्टर के लिए पिछले वर्र्षो में जो राशि खर्च दी गई है, वह पूरी खर्च नहीं हो पाती। इसलिए इस मद में खर्च करने वाले पैसे के पीछे भी सरकार की लापरवाही ही झलकती है।
इस तरह इस बजट में सरकार ने लगभग सभी क्षेत्रों में यह दिखाने की कोशिश की है कि इस बजट में सभी का ख्याल रखा गया है, लेकिन वास्तविकता तो यह है कि हाशिए पर खड़े व्यक्ति को और पीछे धकेल दिया गया है। हर वह वस्तुएं महंगी हुई है, जो आम आदमी से जुड़ी है और ऐसी वस्तुएं जो प्रत्यक्ष रूप से आम आदमी से नहीं जुड़ीं, लेकिन उनके दामों में बढ़ोत्तरी हुई है। वे भी कहींन कहीं से महंगाई में बढ़ोत्तरी करने वाले कारकों के लिए जिम्मेदार हैं।
एक हाथ से दिया, दूसरे से लिया
परंजय गुहा ठाकुरता [आर्थिक विश्लेषक]। प्रणब मुखर्जी ने जो बजट पेश किया है, वह आम आदमी की उम्मीदों पर कुठाराघात करने वाला बजट है। आम आदमी ही क्यों, हर वर्ग महंगाई से त्रस्त है और इस सरकार ने जो बजट पेश किया, उसमें महंगाई से कहीं राहत मिलती नहीं दिखती। सबसे बड़ी उम्मीद तो यह थी कि खाद्यान्नों के दामों में कमी आएगी, लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण यह रहा कि अपरोक्ष रूप से खाद्यान्नों का दाम बढ़ेगा। तेल कंपनियों पर जो एक्साइज और कस्टम ड्यूटी बढ़ाई गई है, वह अप्रत्यक्ष रूप से महंगाई को बढ़ाएगा ही।
उधर, बजट पेश हुआ और इधर पेट्रोल के दाम बढ़ गए। इस तरह सरकार के बजट पेश करते ही महंगाई बढ़ने की शुरुआत हो गई।
सरकार कह रही है कि हमने आयकर में कमी की है, लेकिन सरकार ने ऐसा करके एक हाथ से दिया तो दूसरे हाथ से लिया है। अब 1.6 से पांच लाख रुपये तक की आय वाले 10 प्रतिशत कर के दायरे में आए हैं। इस तरह उनके लगभग 4,000 रुपये बचा रहे हैं, लेकिन यहां भी उन्हें फायदा हुआ है, जिनका वेतन ज्यादा है।
यही हाल आठ लाख से ऊपर वाले स्लैब में भी है। इस तरह वित्त मंत्री ने आयकर स्लैब में बढ़ोतरी करके जो पैसा जनता की जेब में डाला, वह दूसरे माध्यमों से निकाल लिया।
वित्त मंत्री कह रहे हैं कि ग्रामीण विकास, महिला विकास, शिक्षा और स्वास्थ्य के मदों में धन की बढ़ोत्तरी की गई है। अगर आंकड़ों पर नजर डालें तो पिछले वित्तीय वर्ष में जो रकम शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के मद में दी गई थी, वह भी पूरी खर्च नहींहो पाई। फिर इस बजट में इन पर राशि बढ़ाने का क्या मतलब है।
सरकार ने कम किया है वित्तीय घाटा। इसे घटाकर 6.7 फीसदी से 5.5 फीसदी कर दिया गया है, लेकिन वित्तीय घाटे के कम होने से आम जनता को क्या मतलब है? सरकार यह समझ रही है कि अभी तो चुनाव होने में साढ़े चार वर्ष बाकी है, तब तक जनता को दूसरे मुद्दों से बहका लिया जाएगा।
वित्तमंत्री ने खुद माना कि यह बजट सिर्फ एक का खर्चा चलाने वाला बजट नहीं है। इसमें राजनीति और अर्थनीति दोनों ही समाहित है, लेकिन मैं कहूंगा यह न तो अच्छी अर्थनीति है न ही अच्छी राजनीति।
आम आदमी के लिए कुछ नहीं खास
घनेंद्र सिंह सरोहा। सरकार की हिम्मत की दाद देनी होगी। आम आदमी बीते छह महीने से त्राहि-त्राहि कर रहा है। सरकार से रोज उम्मीद कर रहा है कि वह महंगाई घटाने के लिए कुछ करेगी, लेकिन लोकसभा में बजट पेश करते समय वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी ने उसकी उम्मीदों पर न सिर्फ पानी फेर दिया, बल्कि उसकी पसलियों के जख्मों पर नमक लगाने का काम किया।
महंगाई पर चर्चा को संसद के दोनों सदनों में खत्म हुए अभी कुछ घटे भी नहीं बीते थे कि वित्तमंत्री ने बजट प्रस्ताव में पेट्रोल और डीजल के सीमा शुल्क एवं उत्पाद शुल्क में बढ़ोतरी करने की बात कर दी। वित्तमंत्री का इतना कहना था कि संपूर्ण विपक्ष बीजेपी, सपा, राष्ट्रीय जनता दल, भाकपा, माकपा ने सदन का बहिष्कार कर दिया।
बीते छह महीने से अपनी थाली में दाल, सब्जी, खाद्य तेल, चीनी लाने के लिए जूझ रही जनता उम्मीद कर रही थी कि वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी उसके लिए कुछ राहत की घोषणा करेंगे, लेकिन वित्तमंत्री ने जून 2008 में कच्चे तेल की 112 डालर प्रति बैरल कीमतों का हवाला देते हुए कहा कि चूंकि उस समय सरकार ने कच्चे तेल पर से सीमा शुल्क और उत्पाद शुल्क हटा लिया था, इसलिए अब तेल की कीमतें 64 डालर के आस-पास होने पर इसे वे फिर से बहाल करने जा रहे हैं। वित्तमंत्री के लिए यह राजकोषीय घाटा कम करने की कवायद भर होगी, लेकिन वित्तमंत्री के इस प्रस्ताव ने आम आदमी की कमर तोड़ कर रख दी है। अब उसे सरकार से कोई उम्मीद नहीं बची है। क्योंकि कल तक स्वयं वित्तमंत्री लोकसभा में मान रहे थे कि देश में महंगाई बढ़ी है, लेकिन अब उन्होंने फिर से मंहगाई बढ़ाने का काम कर दिया।
माना जा रहा है कि वित्तमंत्री के प्रस्ताव से तेल और डीजल की कीमतों में तीन से पांच रुपये का इजाफा होगा। दिल्ली में तो यह हो भी गया है। और ऐसा होने पर लाजमी है खाने के अलावा जरूरत की सभी चीजों, बस, आटो के किराए में इजाफा होगा।
माकपा सासद बृंदा करात बताती हैं कि सरकार ने खाद्य पदार्थो में 400 करोड़ रुपये की कमी कर दी। यूरिया के दामों में 10 फीसदी की बढ़ोत्तरी कर दी। दाल, चीनी, सब्जी, दूध, खाद्य तेल के दाम आसमान पर हैं। ऐसे में पेट्रोल-डीजल के दामों में बढ़ोत्तरी का सीधी असर आम-आदमी, किसान और मजदूरों पर पड़ेगा।
और सरकार को अगर कच्चे तेल की कीमतों का इतना ही ध्यान है तो जब कच्चे तेल की कीमतें 148 डालर प्रति बैरल चली गई थीं, तब क्यों नहीं इसके दामों में बढ़ोत्तरी की थी। इसलिए नहीं, क्योंकि तब कई राच्यों में विधानसभा और बाद में लोकसभा चुनाव थे। सरकार तब क्यों नहीं अंतरराष्ट्रीय बाजार के अनुसार चली। आज अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत 74 डालर प्रति बैरल [160 लीटर] है। इस हिसाब से भारत में इसकी कीमत करीब 21.46 रुपये प्रति लीटर बैठती है। 10 फीसदी इसमें प्रोसेसिंग चार्ज भी लगा दिया जाए तो यह दोगुना यानी 48 रुपये तो नहीं बैठना चाहिए और यही हाल डीजल का है। जो बाजार में 32 रुपये प्रति लीटर में मिल रहा है।
पेट्रोल पर खर्च होने वाले हरेक एक रुपये में से 51.36 पैसे सरकार करों के रूप में वसूलती है। इसमें से सीमा एवं उत्पाद शुल्क 34.69 पैसे और राच्य कर 16.67 पैसे होते हैं। तय है कि इन तेल उत्पादों से सबसे ज्यादा कमाई केंद्र सरकार ही करती है। और सरकार ने अभी हाल ही में तेल कंपनियों के बढ़ते घाटे का बहाना बनाते हुए पेट्रोल और डीजल की कीमतों में पांच रुपये तक का इजाफा किया था, जबकि उस समय कच्चे तेल की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में 65 डालर प्रति बैरल से ज्यादा नहीं थी।
जब सरकार के सामने चुनाव थे तो 148 डालर प्रति बैरल पर भी पेट्रोल-डीजल की कीमतों में इजाफा नहीं किया और अब आने वाले एक साल में बिहार को छोड़ कहीं चुनाव नहीं है तो सरकार को अपना राजकोषीय घाटा दिखने लगा, लेकिन अब इन हालात में आम आदमी के सामने स्थिति खराब हो चली है। सरकार ने हाथ खड़े कर दिए हैं कि वह कुछ करेगी नहीं। और विपक्ष अब जाकर आवेश में आकर एकजुट हुआ है।
बहरहाल, खेती और मंहगाई के सच बहुतेरे हैं। कोई सुनना चाहे तब न। देश में अस्सी के दशक के बाद से खेती में निवेश नहीं के बराबर हुआ है। जब निवेश ही नहीं हुआ तो उत्पादकता और रकबा बढ़ने की बात तो भूल ही जाइए। चीन, जापान यहा तक की उत्तरी कोरिया तक से अपनी कृषि उत्पादकता की तुलना करना बेमानी है। क्योंकि वह कम है और काफी कम है।
वित्तमंत्री ने देश में दूसरी हरित क्राति पूर्वोत्तर राज्यों से शुरू करने की घोषणा की है। इसके लिए सरकार ने 400 करोड़ रुपये का फंड रखा है। इन पूर्वोत्तर राज्यों में पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल को भी रखा गया है।
हालाकि यह सोच काफी पुरानी है, लेकिन देर से ही सही सरकार ने इसके बारे में सोचा तो है। लेकिन अभी का क्या। वित्तमंत्री ने तो स्थिति को और बिगाड़ दिया है। पेट्रोल-डीजल के अलावा सीमेंट और स्टील के दामों में इजाफा होने के प्रस्ताव के बाद आम आदमी की अब सोचने की शक्ति भी नहीं बची है कि वह आने वाले दिनों में कैसे जा पाएगा। उसकी आखिरी उम्मीद अब एकजुट विपक्ष ही है। और विपक्ष भी कुछ नहीं कर सका तो उसके पास एफसीआई के गोदामों और आईओसी के टैंकरों पर हमला करने के अलावा और कोई उपाय नहीं रह जाएगा। (दैनिक जागरण)

26 फ़रवरी 2010

राहत पैकेज वापस होंगे, कृषि-खाद्यान्न पर जोर

नई दिल्ली। वित्त मंत्री ने आर्थिक मंदी से निपटने के लिए दिए गए राहत पैकेज को आंशिक तौर पर वापस लेने की घोषणा की है। इसी के साथ कृषि और सामाजिक क्षेत्र को मजबूत करने पर जोर दिया है। उन्होंने कहा कि पिछले साल के मुकाबले पूरी दुनिया में आर्थिक सुधार के संकेत दिखाई दे रहे हैं। लेकिन राहत पैकेजों में वापसी खासतौर पर पेट्रोल, डीजल और कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी के एलान को विपक्ष ने पसंद नहीं किया और शोरगुल के बाद सदन से बाहर चले गए। कृषि पर खास जोर प्रणव मुखर्जी ने किसानों के लिए खाद पर पोषण आधारित सब्सिडी 1 अप्रैल से लागू करने की घोषणा करते हुए कृषि विकास पर खास जोर देने की बात कही। हरित क्रांति के विस्तार के लिए 400 करो़ड रूपए का प्रस्ताव रखा गया है, साथ ही 60 हजार दलहन-तेल बीज ग्राम बनाने की भी बात की है। उन्होंने किसानों के लिए कर्ज चुकाने की अवधि को छह माह बढ़ाकर जून 2010 तक कर दिया है, वहीं समय पर कर्ज चुकाने वालों को ब्याज में दो प्रतिशत की छूट देने की घोषणा की है। इसके अलावा महिला किसानों को मजबूत करने के लिए सशक्तिकरण परियोजना शुरू की जाएगी। वित्तमंत्री ने आधारभूत ढांचे को मजबूत करने के लिए 1,73,552 करो़ड रूपए देने की बात की है। जून महीने से हर दिन बीस किलोमीटर स़डक बनाने के लक्ष्य को उन्होंने दोहराया है। आईआईएफसीएल बुनियादी ढांचे के लिए बैंकों को छह हजार करो़ड रूपए का कर्ज देगा। बिजली क्षेत्र के आवंटन में भी दोगुनी वृदि्ध की गई है।ग्रामीण विकासवित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी 2000 से अधिक आबादा वाली बस्तियों तक बैंकिंग सेवा पहुंचाने की घोषणा की है। ग्रामीण विकास के लिए 66,100 करो़ड रूपए का प्रावधान किया है। इंदिरा आवास योजना का आवंटन बढ़ाकर दस हजार करो़ड रूपए कर दिया गया है। इसी के साथ एक हजार करो़ड रूपए के आवंटन से राष्ट्रीय सामाजिक निधि के गठन का भी एलान किया है। उन्होंने महिला एवं बाल विकास के लिए खर्च में 50 प्रतिशत वृदि्ध का प्रावधान किया है। इसी प्रकार अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय का आवंटन बढ़ाकर 2600 करो़ड रूपए कर दिया है। वित्तमंत्री ने कहा कि 2010-11 में राजकोषीय घाटा जीडीपी या सकल घरेलू उत्पाद का 5।5 फीसदी रहने की उम्मीद है। मौजूदा वित्त वर्ष में विनिवेश के जरिए सरकार 25 हजार करो़ड रूपए जुटाएगी जिसे सामाजिक क्षेत्र में खर्च किया जाएगा। सामाजिक क्षेत्र में निवेश को बढ़ाकर 1,37,674 करो़ड कर दिया गया है।टैक्स प्रस्ताव टैक्स भरने की प्रक्रिया सरल करने की दिशा में आयकर फॉर्म सरल-2 फिर से लाया जा रहा है। सभी वर्गो के लिए आयकर छूट की सीमा में कोई बदलाव नहीं है। बजट प्रस्ताव के मुताबिक 1.6 लाख तक आय पर कोई टैक्स नहीं लगेगा लेकिन इससे ऊपर पांच लाख तक की आय पर 10 प्रतिशत की दर से आयकर लगेगा। इसी प्रकार 5 से 8 लाख तक 20 फीसदी तथा आठ लाख से ऊपर की आय पर 30 प्रतिशत कर लगेगा। राहत पैकेज की आंशिक वापसी वैश्विक मंदी से निपटने के लिए सरकार ने कई क्षेत्रों को राहत पैकेज दिए थे, वित्तमंत्री ने उनमें से कई क्षेत्रों में आंशिक रूप से राहत पैकेज को वापस लेने की बात कही है। उत्पाद शुल्क में जो छूट दी गई थी, उसे अब वापस अपने पहले स्तर पर बहाल किया जा रहा है। पैट्रोलियम पदार्थो पर उत्पाद शुल्क में दो प्रतिशत की बढ़ोतरी की जा रही है। वित्तमंत्री ने ब़डी कारों और बहुआयामी वाहनों पर भी उत्पाद शुल्क दो फीसदी बढ़ाने की घोषणा की है। कच्चे तेल पर पांच प्रतिशत और डीजल पैट्रोल पर बुनियादी सीमा शुल्क 7.5 प्रतिशत और 10 प्रतिशत बहाल की जा रही है। (खास खबर)

जानिए, आम बजट की खास बातें

नई दिल्ली। वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी द्वारा गुरुवार को लोकसभा में पेश 2010-11 के आम बजट की मुख्य बातें इस प्रकार हैं :
1. 1.60 लाख रुपये तक की आय पर कोई आयकर नहीं।
2. 1. 60 लाख से पांच लाख रुपये तक की आय पर दस प्रतिशत आयकर।
3. पांच लाख से आठ लाख रुपये तक की आय पर 20 प्रतिशत आयकर।
4. आठ लाख रुपये से अधिक की आय पर 30 प्रतिशत का आयकर।
5. सकल घरेलू उत्पाद को दहाई अंक के पार ले जाने का इरादा।
6. एक अप्रैल 2011 से प्रत्यक्ष कर संहिता को लागू करने की स्थिति में। वस्तु एवं सेवा कर अप्रैल 2011 से लागू करने का प्रयास किया जाएगा।
7. उर्वरक क्षेत्र के लिए पोषण आधारित सब्सिडी एक अप्रैल 2010 से।
8. पेट्रोलियम उत्पादों के मूल्य निर्धारण की व्यवहारपरक एवं टिकाऊ प्रणाली के लिए विशेषज्ञ समूह की सिफारिशों को यथासमय लागू किया जाएगा।
9. सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को 1,65,000 करोड़ रुपये की राशि।
10. निर्यात पर दो प्रतिशत की मौजूदा ब्याज आर्थिक सहायता एक वर्ष और बढ़ी।
11. देश के पूर्वी क्षेत्रों, जिसमें बिहार, छत्तीसगढ, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल तथा उडीसा शामिल हैं, में हरित क्रान्ति के लिए 400 करोड़ रुपये।
12. बैंकों से किसानों के लिए ऋण वर्ष 2010-11 के लिए 3,75,000 करोड़ रुपये।
13. सूखे एवं भयंकर बाढ़ के मद्देनजर किसानों के लिए ऋण माफी एवं ऋण राहत योजना 31 दिसंबर 2009 से 30 जून 2010 तक छह महीने के लिए बढाई गई।
14. आधारभूत संरचना के विकास के लिए 1,73,552 करोड़ रुपये।
15. सडक परिवहन के लिए आवंटन 13 प्रतिशत बढाकर 19,894 करोड़ रुपये।
16. रेलवे के लिए 16,752 करोड़ रुपये की व्यवस्था। पिछले वर्ष की तुलना में 950 करोड़ रूपए अधिक।
17. राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना के सिवाय विद्युत क्षेत्र के लिए आयोजना आवंटन दोगुना कर 5310 करोड़ रुपये।
18. अक्षय ऊर्जा मंत्रालय के लिए योजना परिव्यय 2009-10 में किए गए 620 करोड़ रुपये से 61 प्रतिशत बढ़ाकर 1000 करोड़ रुपये किया।
19. स्कूली शिक्षा के लिए आवंटन 16 प्रतिशत बढाकर 31,036 करोड़ रुपये।
20. स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय का आवंटन बढाकर 22,300 करोड़ रुपये।
21. 2000 से अधिक आबादी वाली बस्तियों में मार्च 2012 तक समुचित बैंकिंग सुविधाएं।
22. ग्रामीण विकास के लिए 66,100 करोड़ रुपये।
23. मनरेगा का आवंटन बढाकर 40,100 करोड़ रुपये किया गया।
24. भारत निर्माण के तहत ग्रामीण बुनियादी ढांचा कार्यक्रम के लिए 48,000 करोड़ रुपये।
25. बुंदेलखंड में सूखे से निपटने के लिए 1200 करोड़ रूपए की अतिरिक्त राशि।
26. शहरी विकास के लिए आवंटन 75 प्रतिशत से अधिक बढ़ाकर 5400 करोड़ रूपए।
27. आवास एवं शहरी गरीबी उन्मूलन के लिए आवंटन 850 करोड़ रूपए से बढ़ाकर 1000 करोड़ रूपए।
28. इंदिरा आवास योजना के लिए 1270 करोड़ रूपए।
29. सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों के लिए राशि बढ़ाकर 2400 करोड़ रुपये।
30. 1000 करोड़ रूपए के आरंभिक आवंटन के साथ बुनकरों, ताड़ी बनाने वालो, रिक्शा चालकों, बीड़ी मजदूरों जैसे असंगठित क्षेत्र के कामगारों के लिए सामाजिक सुरक्षा नीति की स्थापना।
31. राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना का लाभ नरेगा लाभार्थियों को भी मिलेगा।
32. महिला एवं बाल विकास के लिए परिव्यय में लगभग 50 प्रतिशत की बढ़ोतरी।
33. अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय का आवंटन 50 फीसदी बढाकर 1740 करोड़ रूपए।
34. भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण का आवंटन 1900 करोड़ रूपए।
35. रक्षा आवंटन बढाकर 174344 करोड़ रूपए किया, जिसमें 60, 000 करोड़ रूपए पूंजी व्यय शामिल।
36. सकल कर प्राप्तियां : 744651 करोड़ रूपए होने का अनुमान।
37. कर राजस्व भिन्न प्राप्तियां : 148118 करोड़ रूपए होने का अनुमान।
38. 2010-11 के लिए राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद का 5.5 प्रतिशत, जो 381408 करोड रूपए बैठता है।
39. राजकोषीय घाटे के लिए भावी लक्ष्य 2010-11 और 2012-13 के लिए क्रमश: 4.8 प्रतिशत और 4.1 प्रतिशत।
40. प्रत्यक्ष कर संबंधी प्रस्तावों में इस वर्ष 26 हजार करोड़ रूपए की राजस्व हानि का अनुमान।
41. केंद्रीय उत्पाद शुल्क में कटौती दर आंशिक रूप से वापस ली जा रही है।
42. पेट्रोल और डीजल पर केंद्रीय उत्पाद शुल्क में एक-एक रूपए प्रति लीटर बढोतरी का प्रस्ताव।
43. रेफ्रीजरेटेड वैन या ट्रकों के निर्माण के लिए अपेक्षित रेफ्रीजरेशन यूनिटों को सीमा शुल्क से पूर्ण छूट।
44. भारत में नहीं बनी कृषि मशीनरी के लिए पांच प्रतिशत रियायती सीमा शुल्क।
45. कृषि बीजों के परीक्षण एवं प्रमाणन को सेवा कर की छूट।
46. वैज्ञानिक अनुसंधानों के लिए राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं, अनुसंधान केन्द्रों, कालेजों, विश्वविद्यालयों तथा अन्य संस्थानों को किए गए भुगतान में कटौती 125 की बजाय 175 प्रतिशत।
47. सोने और प्लेटिनम पर 200 रूपए प्रति दस ग्राम सीमा शुल्क।
48. चांदी पर 1000 रूपए प्रति किलो से 1500 रूपए किलो तक सीमा शुल्क।
49. चिकित्सा उपकरणों पर विशेष अतिरिक्त शुल्क से पूरी छूट।
50. अस्थि रोग उपचार संबंधी यंत्रों के निर्माण को आयात शुल्क से छूट।
51. मौजूदा वित्त वर्ष में विनिवेश से 25,000 करोड़ रूपए जुटेंगे।
52. अप्रैल-दिसंबर 2009 के दौरान 20.9 अरब अमेरिकी डालर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश।
53. कृषि और इससे संबंधित क्षेत्रों में महत्वपूर्ण कर राहत।
54. ट्रेलरों और अर्ध ट्रेलरों को उत्पाद शुल्क से छूट।
55। राष्ट्रीय साक्षरता मिशन को साक्षर भारत नामक नए कार्यक्रम का रूप दिया जाएगा। (दैनिक जागरण)

ताज़ा खबरें

राजीव आवास योजना के लिए फंड 700% बढ़ेगा
नरेगा के लिए 41 हजार करोड़ और भारत निर्माण योजना के लिए 48 हजार करोड़
प्रोत्साहन पैकेज को धीरे-धीरे वापस लिया जाएगा
जलवायु चुनौतियों से संबंधित कृषि पहल के लिये 200 करोड़ रुपये
समय पर भुगतान के मामले में फसल ब्याज सब्सिडी को बढ़ाकर 2 परसेंट किया
ग्रामीण, शहरी बुनियादी ढांचा को बेहतर बनाने पर जोर
इंफ्रास्ट्रक्चर विकास के लिये 1,73,552 करोड़ रुपये का प्रावधान
रेलवे के लिये आवंटन को 950 करोड़ रुपये बढ़ाकर 16,752 करोड़ रुपये किया गया
कोयला विकास विनियामक प्राधिकरण के गठन का प्रस्ताव
बिजली क्षेत्र के लिये आवंटन दोगुना कर 5,130 करोड़ रुपये करने का प्रावधान
आर्थिक वृद्धि दर को 9 परसेंट के स्तर पर वापस लाने की चुनौती
लद्दाख क्षेत्र में सौर और पनबिजली परियोजनाओं के लिये 500 करोड़ रुपये
आर्थिक वृद्धि दर को समावेशी बनाना दूसरी बड़ी चुनौती है
पिछले कुछ महीनों में अर्थव्यवस्था में बेहतर सुधार हुए हैं
वैश्विक संकट से निपटने के लिये दिये प्रोत्साहन पैकेज की समीक्षा की जरूरत
दिसंबर में विनिर्माण क्षेत्र की वृद्धि दर 18.5 परसेंट, दो दशक में सर्वाधिक
आने वाले महीनों में तीव्र सुधार देखने को मिलेगा
जनवरी माह में वस्तुओं के निर्यात का आंकड़ा उत्साहवर्द्धक
सरकार आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को सेवा मुहैया कराने पर ध्यान देगी
नया डायरेक्ट टैक्स कोड अप्रैल 2011 से लागू होने की उम्मीद
भारत आर्थिक संकट से बखूबी निपटा
सार्वजनिक व्यय और संसाधन को जुटाने पर ध्यान देने की जरूरत
खराब मानसून और सूखे के कारण खाद्य मुद्रास्फीति बढी
बढ़ती महंगाई को रोकने के लिये उठाये जा रहे हैं कदम[ 1353hrs ]
पिछले आठ वर्ष के मुकाबले अर्थव्यवस्था बेहतर स्थिति में
आने वाले महीने में दिखेगी इकॉनमी में और ज्यादा रिकवरी
कृषि के लिए कर्ज को लौटाने की मियाद 6 महीने बढ़ाई गई, किसान 30 जून 2011 तक चुका सकते हैं कर्ज
इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए 1.73 लाख करोड़ रुपए का आवंटन
रेलवे के लिए 16500 करोड़ रुपए का आवंटन
2022 तक 20,000 MMW मुहैया करवाएगी सरकार
हर रोज़ 20 किलोमीटर नैशनल हाईवे बनाने का लक्ष्य
कृषि क्षेत्र में लोन के लिए 3 लाख 75 हजार रुपये
किरीट पारिख कमिटी की रिपोर्ट पर उचित समय पर फैसला होगा
इस रकम को सोशल सेक्टर में खर्च किया जाएगा
मौजूदा वित्त वर्ष में विनिवेश के जरिए 25 हजार करोड़ रुपये जुटाएगी सरकार
सोशल सेक्टर में सुधार प्राथमिकता के आधार पर होगा
खाद्य पदार्थों की कीमतों को लेकर सरकार पूरी तरह सचेत
निकट भविष्य में 10% जीडीपी हासिल करने का लक्ष्य
2009-10 की तीसरी और चौथी तिमाही में जीडीपी बढ़ने की उम्मीद
भारतीय इकनॉमी पिछले साल से बेहतर स्थिति में
डायरेक्ट टैक्स कोड 1 अप्रैल,2011 से लागू होगा
आने वाले महीने में दिखेगी इकॉनमी में और ज्यादा रिकवरी: प्रणव
पहली चुनौती ऊंची विकास दर हासिल करने की: प्रणव
हमें मंदी का बेहतर तरीके से मुकाबला किया: प्रणव
हम इकॉमनी में रिकवरी को लेकर आश्वस्त नहीं थे: प्रणव
फूड सिक्योरिटी बढ़ाने पर ज़ोर
प्रणव दा मौजूदा सरकार का दूसरा आम बजट पेश कर रहे हैं
वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने सदन में आम बजट 2010-11 पेश किया (ई टी हिंदी)

प्रणब मुखर्जी ने किया इंद्र देवता को याद

केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने शुक्रवार को लोकसभा में आम बजट पेश करते हुए देश में अच्छे मानसून के लिए इंद्र देवता का आह्वान किया। मुखर्जी ने कहा कि देश में कृषि क्षेत्र के लिए अच्छे मानसून का सबसे अधिक महत्व है। उन्होंने कहा कि कृषि पर देश की 60 फीसदी से अधिक आबादी निर्भर है।
प्रणब मुखर्जी ने कहा कि अगर आने वाले वक्त मानसून अच्छा जाता है तो कृषि आधारित अर्थव्यवस्था में सुधार आ सकता है। इसके लिए उन्होंने इंद्र देवता को भी याद किया। (हिंदुस्तान)

कृषि कार्यों के लिए 13,805.82 करोड़ रुपये का प्रावधान

सरकार ने वित्त वर्ष 2010-11 के लिए कृषि संबंधी कार्यों हेतु 13,805.82 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है. लोकसभा में 2010-11 का बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने कहा कि इसमें से 6,722 करोड़ रुपये का फंड राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के लिए रखा गया है.
इसके अलावा वर्षा पोषित क्षेत्र विकास कार्यक्रम के लिए 10 करोड़ रुपये, पौध संरक्षण के लिए 58।78 करोड़ रुपये, खाद एवं उर्वरक के लिए 40 करोड़ रुपये, फसल बीमा के लिए 1,050 करोड़ रुपये तथा लघु सिंचाई के लिए 1,000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है. (आज तक)

एक अरब से अधिक की आबादी में 37 फीसदी गरीब

मंदी का दौर हल्का पडने के बाद सरकार भले ही अर्थव्यवस्था की गुलाबी तस्वीर पेश कर रही हो लेकिन आज पेश आर्थिक समीक्षा में गरीबी की स्थिति को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए कहा गया कि गरीबी मिटाने के लिए भारत को अभी लंबा रास्ता तय करना है।वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी द्वारा लोकसभा में पेश आर्थिक समीक्षा में कहा गया, ‘‘ हमारी नीतियों की चरम कसौटी गरीबी को कम करने में उनकी सफलता के संदर्भ में होनी चाहिए. दुर्भाग्य से गरीबी के मोर्चे पर भारत को अभी काफी रास्ता तय करना है.’’ समीक्षा में योजना अयोग द्वारा गठित विशेषज्ञ समूह की रपट के हवाले से कहा गया कि भारत की कुल गरीबी 37.2 प्रतिशत होने का अनुमान है. इसका मतलब यह है कि हमारी एक अरब से अधिक की जनसंख्या का 37 प्रतिश्त से थोडा अधिक हिस्सा गरीबी रेखा से नीचे जीवन बसर कर रहा है और खासकर ग्रामीण जनसंख्या का 41.8 प्रतिशत और शहरी जनसंख्या का 25.7 प्रतिशत हिस्सा गरीब है.समीक्षा में कहा गया, ‘‘ यदि हम भारत की गरीबी दर 37.2 प्रतिशत अथवा एनएसएस के आंकडों के मुताबिक 27.5 प्रतिशत मान लें तो यह कहना आसान होगा कि यह दर भारत जैसे तेजी से विकसित होते देश के लिए बहुत अधिक है और इसका मुकाबला करने के लिए विशेष उपाय करने की जरूरत है.’’ (आज तक)

महंगाई पर मुस्कराए पवार

नई दिल्ली ।। कृषि मंत्री शरद पवार ने भी गुरुवार को दावा किया कि खराब समय बीत
गया। चीनी, दाल और सब्जी जैसी रोजमर्रा की जरूरत की चीजों के दाम अब घटने लगे हैं। संसद के दोनों सदनों में महंगाई पर चर्चा के दौरान वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने बेकाबू होती महंगाई के लिए बिचौलियों को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि सरकार महंगाई पर काबू पाने के पूरे प्रयास कर रही है। बिचौलियों ने थोक और खुदरा के भावों में बहुत फर्क पैदा कर दिया है। लोकसभा में दिन भर चली बहस का जवाब देते हुए कृषि एवं खाद्य मंत्री पवार ने माना कि महंगाई से जनता पर असर पड़ रहा है। उन्होंने सदन को विश्वास दिलाया कि सरकार महंगाई रोकने के हरसंभव उपाय कर रही है। पवार के जवाब से असंतुष्ट विपक्ष ने वॉकआउट कर दिया। बीजेपी और लेफ्ट के अलावा एसपी, आरजेडी और बीएसपी जैसे सरकार को बाहर से समर्थन दे रहे दल भी वॉकआउट कर गए। चर्चा के दौरान विपक्ष के निशाने पर रहे पवार ने कहा कि सरकार ने कोई कसर नहीं छोड़ी है। चाहे उपभोक्ता कानून में सुधार कर राज्यों को ज्यादा अधिकार देने की बात हो या खाद्यान्न आवंटित करने का मामला हो, सरकार ने सभी कदम उठाए हैं। विपक्ष की मांग पर मुख्यमंत्रियों की बैठक भी बुलाई है। उधर, विपक्ष ने सरकार पर घोटाला दर घोटाला करके महंगाई बढ़ाने का आरोप लगाते हुए सारे मामले पर श्वेत पत्र लाने की मांग की। सरकार को समर्थन देने का दावा करने वाले एसपी, बीएसपी और आरजेडी ने महंगाई पर सरकार को खूब खरी-खोटी सुनाई। लोकसभा में चर्चा की शुरुआत विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने की। सुषमा ने आरोप लगाया कि महंगाई बढ़ने का कारण गेहूं, चावल, दालों और चीनी के आयात-निर्यात घोटाले हैं। उन्होंने घोटालों की जांच के लिए संयुक्त संसदीय समिति बनाने की मांग की। सुषमा ने सोनिया गांधी से कहा कि गठबंधन की नेता होने के कारण सरकार चलाने की जिम्मेदारी उनकी (सोनिया की) है, वह प्रधानमंत्री को महंगाई पर नियंत्रण के लिए सही कदम उठाने के निर्देश दें। सुषमा जब सरकार पर तीखे वार कर रहीं थी, तब सदन में बैठे पवार मुस्कुरा रहे थे। इस पर आक्रोशित सुषमा ने कहा- वह (पवार) मुस्कुरा रहे हैं। उनकी मुस्कराहट मत देखिए। सरकार की गलत नीतियों का फल भुगत रहे गरीबों की आंखों में आंसू देखिए। कांग्रेस के संजय निरुपम ने जवाब देते हुए कहा कि सट्टा बाजार एनडीए ने शुरू किया था। महंगाई के लिए राज्य सरकारों को जिम्मेदार ठहराते हुए उन्होंने कहा कि जमाखोरों और कालाबाजारियों के खिलाफ कार्रवाई करना राज्यों का काम है। संजय की शिवसेना सदस्यों के साथ झड़पें भी हुईं। मुखर्जी ने कहा कि थोक मंडियों से रिटेल में आते-आते फलों और सब्जियों के दाम दोगुने हो जाते हैं। दूसरी तरफ किसान को बढ़ी हुई कीमतों का लाभ नहीं मिल पाता। मुखर्जी ने माना कि कृषि क्षेत्र में बड़े पैमाने पर निवेश नहीं किया गया है। उन्होंने कहा कि खाद्य सुरक्षा कानून हमारा वादा है, उसे लाया जाएगा। खाद्य सुरक्षा के लिए मध्यम अवधि के और दीर्घकालिक उपायों वाली रणनीति बनाना होगी। मुलायम और लालू यादव ने मिलकर यूपीए पर हमला बोला। आरजेडी चीफ ने कहा कि यूपीए का अहंकार उसे गर्त में ले जाएगा। आप अभिमानी हैं, आउट ऑफ कंट्रोल हैं। मुलायम ने कहा कि आजादी के बाद इतनी महंगाई कभी नहीं बढ़ी। उन्होंने सरकार पर पूंजीपतियों से सांठगांठ का आरोप लगाया। (नवभारत हिंदी)

25 फ़रवरी 2010

सबसे बडा दूध उत्पादक देश है भारत

नई दिल्ली। विश्व में भारत सबसे बडा दूध उत्पादक देश है। यहां इसकी उपलब्धता प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 258 ग्राम है।आज लोकसभा में पेश हुए 2009-10 की आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 1968-69 में प्रति व्यक्ति रोजाना 112 ग्राम दूध उलब्ध था, जो वर्ष 2008-09 में बढकर 265 ग्राम हो गया। हालांकि विश्व में प्रति व्यक्ति जितना दूध उपलब्ध है उससे इसकी मात्रा 265 ग्राम प्रतिदिन कम है। भारत में उत्पादित कुल दूध का लगभग 80 प्रतिशत असंगठित क्षेत्र से प्राप्त होता है, जबकि 20 प्रतिशत सहकारी और निजी डेयरी से प्राप्त होता है। पशुधन गणन 17वीं (2003) के मुताबिक देश में कुल पशुधन की संख्या 48 करोड 50 लाख थी। (खास खबर)

आम बजट 2008-09

60,000 करोड़ रुपये की कृषि ऋण पैकेज। लघु और सीमांत (5 एकड़ क्षेत्र तक के) किसानों के लिए संपूर्ण ऋण माफी (50,000 करोड़ रुपये अनुमानित)। अन्य किसानों के संबंध में सभी ऋणों के लिये एक बारगी निपटान योजना होगी, इसमें 75 प्रतिशत भुगतान के एवज में 25 प्रतिशत राशि की छूट (10,000 करोड़ रुपये अनुमानित)। 30 जून, 2008 तक इसकी प्रक्रिया पूरी कर ली जायेगी। चार करोड़ किसानों को लाभ।
वर्ष 2008-09 के लिए 2,80,000 करोड़ रुपये के कृषि ऋण का लक्ष्य, अल्पकालीन फसल ऋण 7 प्रतिशत ब्याज पर जारी।
सिंचाई और जल संसाधन वित्त निगम की स्थापना करना, सूखा क्षेत्र विकास कार्यक्रम की शुरूआत।
अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए 3,966 करोड़ रुपये की योजना, अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए निर्धारित 20 प्रतिशत निधि के लिए 18,983 करोड़ रुपये।
सभी 90 अल्पसंख्यक बहुलता वाले जिलों के लिए बहुविध क्षेत्रीय विकास योजनाएं (3,780 करोड़ रुपये का प्रावधान)।
अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय के आवंटन को 2007-08 में 500 करोड़ रुपये से बढ़ाकर वर्ष 2008-09 में 1000 करोड़ रुपये किया गया, न्यायमूर्ति राजिन्द्र सच्चर समिति की रिपोर्ट पर तेजी से क्रियान्वयन शुरू।
मदरसा शिक्षा आधुनिकीकरण के लिये 45.45 करोड़ रुपये का प्रावधान।
मौलाना आजाद फाउन्डेशन की आधारभूत राशि में 60 करोड़ रुपये बढ़ाया गया।
बैंकों से जुड़े सभी महिला स्वसहायता समूहों के ऋण जनश्री बीमा योजना के दायरे में।
सभी 596 ग्रामीण जिले राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना के दायरे में।
वृद्धजनों के लिए एक राष्ट्रीय कार्यक्रम की शुरूआत।
बजट में पहली बार प्रारंभ की गई बाल संबंधी योजनाओं से संबंधित विवरण।
दोपहर भोजन का सभी प्रखंडों में उच्चतर प्राथमिक कक्षाओं तक विस्तार।
पूर्वोत्तर सीमावर्ती क्षेत्रों के लिए विशेष व्यवस्था।
सरकार द्वारा सोलह केन्द्रीय विश्वविद्यालयों की स्थापना।
तीन नये आई.आई.टी.संस्थानों, दो आई.आई.एस.ई.आर. और दो प्लानिंग और आर्किर्टेक्चर स्कूलों की स्थापना।
6000 उच्चस्तरीय मॉडल स्कूल खोले जायेंगे।
विज्ञान में नवीनता को बढ़ावा देने के लिए नई छात्रवृत्ति योजना।
प्रत्येक जिले में एक नेहरू युवा केन्द्र।
पानी की कमी वाले बसावटों में स्कूलों में पेयजल की व्यवस्था।
इंदिरा आवास योजना के अधीन मैदानी क्षेत्रों में सब्सीडी 25,000 रुपये से बढ़ाकर 35,000 रुपये और पहाड़ी दुर्गम क्षेत्र में सब्सीडी 27,500 रुपये से बढ़ाकर 38,500 रुपये किया गया।
आम आदमी बीमा योजना के लिए एक हजार करोड़ रुपये का प्रावधान।
सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अधीन खाद्य सब्सीडी के लिए 32,667 करोड़ रुपये का प्रावधान।
300 आई.टी.आई. (औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान) के उन्नयन के लिए 750 करोड़ रुपये का आवंटन।
सरकार की ओर से केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों के लिए 16,436 करोड़ रुपये की इक्विटी सहायता और 3,003 करोड़ रुपये के ऋण का प्रावधान।
पिछड़ा क्षेत्र अनुदान निधि के लिए 5,800 करोड़ रुपये। बिहार, उड़ीसा और उत्तर प्रदेश को कुल राशि का लगभग 45 प्रतिशत भाग मिलेगा।
आयकर में छूट की सीमा बढ़ाकर डेढ़ लाख रुपये करने का प्रस्ताव, डेढ़ लाख रुपये से तीन लाख रुपये तक की आय पर 10 प्रतिशत, तीन लाख रुपये से पांच लाख रुपये की आमदनी पर 20 प्रतिशत और पांच लाख रुपये से अधिक पर 30 प्रतिशत कर का प्रस्ताव। महिलाओं के लिए कर में छूट की सीमा बढ़ाकर 1,80,000 रुपये और वरिष्ठ नागरिकों के लिए 2,25,000 रुपये करने का प्रस्ताव।
औषधि क्षेत्र पर उत्पाद शुल्क 16 प्रतिशत से घटाकर 8 प्रतिशत करने का प्रस्ताव।
छोटी कारें, दुपहिया और तिपहिया वाहन, बसें और उनकी चेसिसें सस्ती होंगी।
लघु सेवा प्रदाताओं के लिए छूट सीमा आठ लाख रुपये से बढ़ाकर दस लाख रुपये करने का प्रस्ताव।
सभी वस्तुओं पर सेनवैट 16 प्रतिशत से घटाकर 14 प्रतिशत करने का प्रस्ताव।
केन्द्रीय विक्रीकर में अप्रैल, 2008 से 2 प्रतिशत कम करने का प्रस्ताव।
थोक सीमेंट और पैकेटबंद सीमेंट पर उत्पाद शुल्क एक समान।
वित्त बाजार में सभी लेन-देन के लिए पैन (स्थाई खाता संख्या) अनिवार्य।
रक्षा क्षेत्र के लिए आवंटन में 10 प्रतिशत की वृद्धि। 96,000 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 1,05,600 करोड़ रुपये।
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के बहुलता वाले 20 जिलों में जवाहर नवोदय विद्यालय स्थापित करने के लिए 130 करोड़ रुपये का प्रावधान।
राष्ट्रीय साधन-सह-योग्यता छात्रवृत्ति योजना में 1 लाख छात्रवृत्तियां प्रदान करने हेतु 750 करोड़ रुपये का प्रावधान।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना में स्वास्थ्य कवर के लिये 30,000 रुपये प्रदान करना, जिसके अन्तर्गत असंगठित क्षेत्र में कार्यरत बी.पी.एल. श्रेणी में आने वाले प्रत्येक ऐसे कामगार और उसके परिवार शामिल होंगे। यह योजना दिल्ली, हरियाणा और राजस्थान राज्य में 1 अप्रैल, 2008 से आरंभ होगी। केंद्र के हिस्से प्रीमियम के तौर पर 205 करोड़ रुपये का प्रावधान।
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन स्कीम में बी.पी.एल. श्रेणी के 65 वर्ष से अधिक आयु के सभी व्यक्तियों को शामिल करने हेतु बजट आवंटन गत वर्ष की तुलना में 2392 करोड़ रुपये का प्रावधान।
हथकरघा सेक्टर में बजट आवंटन वर्ष 2008-09 में बढ़कर 340 करोड़ रुपये किया गया। अवसंरचना और उत्पादन दोनों में वृद्धि करने के लिये बड़े समूहों (मेगा कलस्टर) के रूप में 6 केन्द्रों का विकास किया जा रहा है। वाराणसी और सिबसागर में हथकरघा, भिवंडी और इरोड में पावरलूम, नरसापुर और मुरादाबाद में हस्तशिल्प का विकास किया जाएगा। बजट में इस हेतु 100 करोड़ रुपये का प्रारंभिक प्रावधान।
कौशल विकास मिशन-:बढ़ती अर्थव्यवस्था के लिये प्रशिक्षित कौशन की आवश्यकता की चुनौतियों का समाधान करने के मिशन के साथ एक गैर लाभकारी निगम की स्थापना की जायेगी। इस हेतु विभिन्न स्रोतों से 15,000 करोड़ रुपये एकत्र किया जाएगा जिसमें सरकार की इक्विटी 1000 करोड़ रुपये होगी।
त्वरित सिंचाई प्रसुविधा कार्यक्रम (ए.आई.बी.पी.) के तहत 24 बड़ी और मध्यम सिंचाई परियोजनाएं तथा 753 छोटी सिंचाई योजनाएं 2007-2008 में पूरी की जाएगी जो 500,000 हेक्टेयर की अतिरिक्त सिंचाई क्षमता का सृजन इस हेतु वर्ष 2007-08 के 11,000 करोड़ रुपये के परिव्यय को बढ़ाकर वर्ष 2008-09 में 20,000 करोड़ रुपये किया गया।
सूक्ष्म सिंचाई संबंधी केंद्रीय प्रायोजित योजना में 400,000 हेक्टेयर को शामिल करने के लक्ष्य के साथ 2008-09 में इस योजना के लिए 500 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया।
वर्षा पोषित क्षेत्र विकास कार्यक्रम को अंतिम रूप देते हुए 348 करोड़ रुपये का आवंटन।
अतिरिक्त विद्युत उत्पादन के 11वीं योजना का लक्ष्य 78,577 मेगावाट क्षमता है। मार्च, 2008 के अत तक 10,000 मेगावाट की वाणिज्यिक प्रचालन तारीख लक्ष्य प्राप्त करना है।
अल्ट्रा मेगा पावर प्रोजेक्ट (यू.एम.पी.पी.) चौथी यू.एम.पी.पी. तिलैया का निर्माण कार्य शीघ्र शुरू किया जायेगा। पांच और यू.एम.पी.पी. छत्तीसगढ़, कर्नाटक, महाराष्ट्र, उड़ीसा और तमिलनाडु बोली अवस्था के लिये, लाने की संभावना।
जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण मिशन (जे.एन.एन.यू.आर.एम.) आरंभ करने के लिये गत वर्ष आवंटन 5482 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 6866 करोड़ रुपये वर्ष 2008-09 में किया गया।
राजीव गांधी पेयजल मिशन के लिये गत वर्ष के आवंटन 6500 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 7300 करोड़ रुपये (वर्ष 2008-09) में किया गया।
100 प्रतिशत महिला विशिष्ट कार्यक्रम के लिये परिव्यय 11,460 करोड़ रुपये और 16,202 करोड़ रुपये उन स्कीमों के लिए है जहां कम से कम 30 प्रतिशत आवंटन महिला विशिष्ट कार्यक्रम के लिये हैं।
आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं का मानदेय प्रति माह 1000 रुपये से बढ़ाकर 1500 रुपये तथा आंगनवाड़ी सहायिकाओं का मानदेय प्रति माह 500 से बढ़ाकर 750 रुपये कर दिया गया है। इस वृद्धि से 18 लाख से अधिक आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं व सहायिकाओं को लाभ होगा।

प्रणब और ममता के बीच जंग के लिए तैयार रहें

नई दिल्ली, 24 फरवरी- रेल बजट तो पेश हो गया और इसमें रेल मंत्री ममता बनर्जी ने जितनी परियोजनाओं के संकल्प पेश किए हैं उनमें से दो तिहाई के लिए ममता के भूतपूर्व गुरु और वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी एक पैसा नहीं देने वाले। इसीलिए 26 फरवरी को जब आम बजट पेश होगा तो ममता बनर्जी के तेवर देखने लायक होंगे। प्रणब मुखर्जी बजट को अंतिम रूप दे चुके हैं और अब कुछ उलझनों को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ बैठ कर ठीक कर रहे हैं। उन्होंने पिछले वित्त मंत्री और वर्तमान गृहमंत्री पी चिदंबरम की सलाह भी ली है। ममता बनर्जी ने जो एक दर्जन रेल परियोजनाएं मांगी थी उनमें से दो मुलाकातो के बाद सिर्फ तीन मंजूर की गई है और इनमें से भी एक के लिए रेल मंत्रालय को अपनी जेब से पैसा खर्च करना होगा। वैसे प्रणब मुखर्जी का सारा जोर सरकारी खजाने यानी राजकोष यानी घाटे को कम करने पर है। इन दिनों पूरे देश की निगाहें 26 फरवरी को वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी द्वारा प्रस्तुत किए जाने वाले वर्ष 2010-11 के बजट पर लगी हुई हैं। यह बजट इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसमें वित्तमंत्री विनिवेश, विदेशी निवेश, करारोपण और सब्सिडी जैसे कई महत्वपूर्ण नीतिगत संकेत देते हुए दिखाई देंगे। आर्थिक सुधारों को गतिशील बनाने का संकेत भी बजट से उभरेगा। निश्चित रूप से इस समय बढ़ता हुआ राजकोषीय घाटा देश की अर्थव्यवस्था की सबसे बड़ी चुनौती है। यह पूरी संभावना है कि वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी नए बजट में अपना अधिकांश ध्यान राजकोषीय घाटा कम करने पर केंद्रित करते हुए दिखाई देंगे। जिस तरह प्रधानमंत्री मनममोहन सिंह और गृहमंत्री पी चिदंबरम ने वित्तमंत्री रहते हुए राजकोषीय घाटे को नियंत्रित करने की पुरजोर कोशिश से एक सुधारवादी वित्तमंत्री की छवि बनाई है, बतौर वित्तमंत्री वैसी ही सुधारवादी छवि बनाने का पूरा मौका इस बार प्रणब मुखर्जी के पास है। वैश्वित आर्थिक मंदी के चलते चालू वित्त वर्ष में सरकार का राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद [जीडीपी] का 6.8 फीसदी और राजस्व घाटा जीडीपी के मुकाबले पांच फीसदी तक बढ़ जाने का अनुमान है। करीब एक दशक तक एक अंक में रहने के बाद केंद्र और राज्य सरकारों का कुल घाटा अब बढ़कर दो अंकों में पहुंच चुका है। राजकोषीय घाटा किसी देश को कितनी कठिनाइयों में पहुंचा सकता है, इसका अनुमान यूनान के परेशान प्रधानमंत्री जार्ज पापेंद्र के बार-बार दिए जा रहे इस वक्तव्य से लगाया जा सकता है कि उनके देश यूनान में मतदाताओं को ललचाने और राजनीतिक संरक्षण में धन बर्बाद करने के कारण वित्तीय व्यवस्था ठप्प हो गई है और वित्तीय प्रणाली में कानून के शासन की स्थिति ही समाप्त हो गई। इतना ही नहीं राहत की योजनाओं में भ्रष्टाचार के कारण सरकार दयनीय वित्तीय स्थिति में पहुंच गई है। स्थिति यह है कि संकट का सामना करने में असमर्थ होकर पूरा यूनान राजकोषीय घाटे से मुक्त होने के लिए ईश्वर से प्रार्थना कर रहा है। विश्व बैंक द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट 'वैश्विक आर्थिक परिदृश्य' में कहा गया है कि भारत सहित अनेक दक्षिण एशियाई अर्थव्यवस्थाओं के लिए लगातार बढ़ता वित्तीय घाटा खतरे का रूप लेता जा रहा है। इसमें कोई दो मत नहीं कि भ्रष्टाचार, कर चोरी, अनुचित सार्वजनिक खर्च को राजनीतिक संरक्षण और भारी सब्सिडी के प्रावधान के कारण देश का राजकोषीय घाटा लगातार बढ़ता जा रहा है। भारत में प्रमुख रूप से उर्वरक सब्सिडी का आकार लगभग 20,000 करोड़ रुपये तक पहुंच चुका है। तेल विपणन से जुड़ी सरकारी कंपनियों का घाटा करीब 30,000 करोड़ रुपये है। खाद्य सब्सिडी का आकार बढ़ता जा रहा है। संसद में दिसंबर 2009 में अनुदानों के लिए 25,725 करोड़ रुपये की पूरक मांग की गई है। राहत पैकेजों की वजह से कर संग्रह खासतौर से अप्रत्यक्ष करों के जरिए होने वाली सरकारी कमाई में कमी आ गई है। अप्रैल 2009 से नवंबर 2009 के बीच अप्रत्यक्ष कर संग्रह 21 फीसदी घट गया है। पिछले वर्ष के बजट में थ्री-जी स्पेक्ट्रम की नीलामी के जरिए 35,000 करोड़ रुपये सरकारी खजाने में आने का प्रावधान था, लेकिन यह रकम अब तक सरकारी खजाने में जाती नहीं दिख रही है। सरकारी खर्च में भी काफी बढ़ोतरी देखने को मिली है। ऐसी कई बजट सब्सिडी को खतरनाक स्तर तक बढ़ने दिया गया, जिनका कोई सामाजिक और आर्थिक प्रभाव नहीं दिख रहा है। बजट अनुमानों के मुकाबले बजट के संशोधित अनुमानों में वित्तीय घाटे में बढ़ोतरी प्रोत्साहन पैकेजके कारण ही नहीं हुई है, बल्कि यह विविध तरह की सब्सिडी, वेतन समीक्षा, कर्ज माफी, नरेगा के विस्तार के लिए वित्त पोषण आदि कारणों से चिंताजनक ऊंचाई पर पहुंची है। ऐसे में जब राजकोषीय घाटा अनियंत्रित है और छलांगे लगाकर बढ़ रहा है, तब वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी दो दशक पहले के उस परिदृश्य को याद कर सकते हैं, जब मनमोहन सिंह ने 1991 में एक क्रांतिकारी बजट पेश किया था। यह बजट भयानक राजकोषीय घाटे, आसमान पर पहुंची महंगाई दर और विदेश व्यापार के मामले में दिवालिएपन की पृष्ठभूममि में प्रस्तुत किया गया था। ऐसे ही परिप्रेक्ष्य में अब 2010-11 का बजट पेश करते समय वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी को भी अपनी भूमिका बेहद अहम बनाना होगी। वित्तमंत्री को बजट में इस महत्वपूर्ण पहलू पर ध्यान देना होगा कि अब राजकोषीय घाटे के मामले में उपयुक्त कदम उठाने और इनकी चरणबध्द वापसी का समय आ गया है। निस्संदेह अगर वित्तमंत्री इस वर्ष राजकोषीय घाटे को कम करने की डगर पर बढ़ने का मौका खो देते हैं तो उन्हें दूसरा ऐसा अच्छा मौका नहीं मिलेगा। चूंकि इस वर्ष केवल बिहार विधानसभा के चुनाव होने हैं और अन्य कई राज्यों में वर्ष 2011 में चुनाव होंगे, लिहाजा वित्तीय सुधार के परिप्रेक्ष्य में सख्त कदम उठाने के लिए वित्तमंत्री के पास इसी बजट में सबसे अच्छा मौका है। अब वित्तमंत्री को उनके द्वारा बार-बार दिए गए इस वक्तव्य पर दृढ़तापूर्वक कायम रहना होगा कि वर्ष 2010-11 में वह राजकोषीय घाटे को राष्ट्रीय आय के अनुपात के 5.5 फीसदी और राजस्व घाटे को जीडीपी के कम से कम 2.0 फीसदी नीचे ले जाएंगे। निश्चित रूप से चालू वित्त वर्ष के दौरान लगभग साढ़े चार लाख करोड़ रुपये की उधारी के बाद वित्त मंत्रालय अपनी झोली भरने के लिए भरपूर प्रयास करते हुए दिखाई देगा। उद्योग-व्यापार के लिए बजट से राहत की उम्मीदें कम हैं। नौकरीपेशा वर्ग, वरिष्ठ नागारिक महिलाओं, छोटे उद्यमी आदि को बजट से कुछ राहत अपेक्षित है। देश की अर्थव्यवस्था के नए आंकड़ों के आधार पर देखा जाए तो देश में सेवा क्षेत्र, निर्यात व्यापार और औद्योगिक उत्पादन क्षेत्र में स्थितियां सुधर गई हैं। केंद्रीय सांख्यिकी संगठन [सीएसओ] द्वारा जारी किए गए नवीनतम अग्रिम अनुमानों के मुताबिक वर्ष 2009-10 में अर्थव्यवस्था 7।2 फीसदी की रफ्तार से बढ़ेगी। अर्थव्यवस्था की बढ़ती रफ्तार के ऐसे परिवेश में वित्तमंत्री को वर्ष 2008-09 में दिए गए वित्तीय राहत पैकेज के कुछ भाग को वापस लेना जरूरी होगा। चूंकि गुड एंड सर्विस टैक्स यानी जीएसटी को लागू करना करीब एक साल के लिए आगे बढ़ गया है, अत: इस वर्ष उत्पाद कर में दो फीसदी की बढ़ोतरी हो सकती है। राजकोषीय घाटे को कम करने के लिए सरकार के पास कर राजस्व बढ़ाने और सार्वजनिक क्षेत्र की हिस्सेदारी बेचने के अच्छे रास्ते मौजूद हैं। वित्त मंत्रालय सूत्रों के अनुसार बिजली क्षेत्र के उपक्रम एनटीपीसी, रुरल इलेक्ट्रिफिकेशन कारपोरेशन, सतलज जल विद्युत निगम और राष्ट्रीय खनिज विकास निगम [एनएमडीसी] जैसे सार्वजनिक उपक्रमों में सरकारी आंशिक इक्विटी विनिवेश से सरकार को करीब 50,000 करोड़ रुपये की राशि मिलने की उम्मीद है। नए बजट में सर्विस टैक्स बढ़ाया जा सकता है। इसे बढ़ाकर एक वर्ष पूर्व के स्तर पर लाया जा सकता है। यूरिया को छोड़ सभी उर्वरकों की सब्सिडी कम हो सकती है। शेयर बाजार के लिए बजट में उपहारों का ढेर नहीं होगा। यहां यह बढ़ते राजकोषीय घाटे के मद्देनजर संसद की वित्त संबंधी स्थाई समिति ने बार-बार अपने प्रतिवेदन में सरकार को सलाह दी है कि उसे बार-बार सब्सिडी और कर छूट देने से बचना चाहिए। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष [आईएमएफ] ने भी अपनी रिपोर्ट में बताया है कि भारत और अधिक तेजी से विकास कर सकता है, लेकिन उसका राजकोषीय घाटा तर्कसंगत नहीं है। आईएमएफ ने भारत को सलाह दी है कि वह राजकोषीय घाटे पर अंकुश लगाए। उसका कहना है कि इस समय भारत के लिए सुनहरा मौका है कि वह आर्थिक सुधारों को लागू करे और महसूस करे कि उसकी अर्थव्यवस्था में अकूत संभावनाएं हैं। हम आशा कर सकते हैं कि नए बजट में एक ओर वित्तमंत्री आम आदमी को राहत देने के प्रयास करते हुए दिखाई देंगे। वहीं दूसरी ओर प्रोत्साहन पैकेजों की वापसी की शुरुआत और अर्थव्यवस्था के लिए बोझ बन रही अनावश्यक रियायतों को नियंत्रित करके राजस्व और राजकोषीय घाटे में कमी करने के पुरजोर प्रयासों से अर्थव्यवस्था की तस्वीर को सुहावनी बनाने की डगर पर आगे बढ़ते हुए दिखाई देंगे। (दीत्लिने इंडिया)

बजट में जपेंगे 'आम' का नाम

नई दिल्ली January 18, 2010
भले ही बजट घाटा बढ़कर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 6.8 फीसदी तक पहुंच रहा है, लेकिन संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार सामाजिक क्षेत्र में कंजूसी बरतती नहीं दिख रही है।
अगले वित्त वर्ष के लिए पेश होने वाले बजट के लिए सरकार इस क्षेत्र के लिए खुले हाथों से धन मुहैया कराने की तैयारी में है। उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक इन योजनाओं को धन आवंटित करने के लिए अगले वित्त वर्ष में कई सरकारी कंपनियों में हिस्सेदारी बेची जा सकती है।
आने वाले बजट में सबसे महत्वाकांक्षी सरकारी परियोजनाओं में से एक राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (नरेगा) के लिए आवंटित धन में तो इजाफा हो ही सकता है। साथ ही सरकार खाद्य सुरक्षा कानून के अपने चुनावी वायदे को भी पूरा कर सकती है।
ग्रामीण विकास मंत्रालय ने एक अन्य अहम योजना राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) के लिए भी ज्यादा राशि के आवंटन की मांग की है। उच्च पदस्थ सरकारी सूत्रों का कहना है कि खाद्य सुरक्षा कानून के तहत गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वालों को 3 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से गेहूं और चावल देने से सरकारी खजाने पर 25,000 करोड़ रुपये का बोझ और बढ़ेगा।
बहरहाल संप्रग की सुप्रीमो सोनिया गांधी 'आम आदमी' को ध्यान में रखते हुए सरकार से आगे बढ़ने की उम्मीद रखती हैं। दरअसल आंध्र प्रदेश जैसे राज्य ने जनता को छूट पर खाद्यान्न मुहैया कराकर जबरदस्त राजनीतिक फायदा कमाया।
उम्मीद की जा रही है कि कृषि मंत्री शरद पवार बजट सत्र के दौरान खाद्य सुरक्षा से जुड़ा कानून सदन में पेश करेंगे। बाद में वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी बजट में इस योजना के लिए इंतजाम करेंगे। बीपीएल परिवारों को छूट वाला खाद्यान्न मुहैया कराने से 25,000 करोड़ रुपये के जिस अतिरिक्त खर्च की बात की जा रही है उसकी बुनियाद है देश में मौजूद ऐसे लोगों की संख्या।
योजना आयोग के 2004-05 के अनुमान के मुताबिक देश में 30 करोड़ ऐसे लोग मौजूद हैं। सुरेश तेंदुलकर समिति की रिपोर्ट का कहना है कि देश में 42 फीसदी लोग गरीबी रेखा से नीचे गुजर-बसर कर रहे हैं। हालांकि अभी तक योजना आयोग ने इस रिपोर्ट को मान्यता नहीं दी है।
लेकिन अगर आयोग इसे मंजूरी दे देता है तो खाद्य सुरक्षा पर सरकार का खर्च अपने आप ही बढ़ जाएगा। वैसे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह इस मुद्दे को लेकर काफी संजीदा हैं और उन्होंने नरेगा की समीक्षा के लिए हाल ही में ग्रामीण विकास मंत्रालय के लोगों से बात की है। ग्रामीण विकास मंत्रालय ने नरेगा के लिए 65 फीसदी अधिक आवंटन की मांग रखी।
...पर खाली खज़ाना आएगा किस काम
सामाजिक क्षेत्र की योजनाओं खास तौर पर ग्रामीण इलाकों के लिए खर्च पर इस बार के बजट में रहेगा खासा ज़ोरग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना, ग्रामीण कौशल विकास पर व्यय में बढ़ोतरी होगी और ग्रामीण गरीबों को रियायती कीमत पर अनाज मुहैया कराया जाएगानरेगा में खर्च को सरकार बढ़ाकर पहुंचा सकती है 66,300 करोड़ रुपये तक। राष्ट्रीय आजीविका अभियान पर भी खर्च 10,500 करोड़ रुपये हो सकता हैराजकोषीय घाटा ऐतिहासिक होने की वजह से विनिवेश से मिली रकम खर्च होगी इन पर (बीएस हिंदी)

बजट में मेरे लिये क्या

नई नवेली सरकार का नया बजट आ गया। सरकार में शामिल धुरों ने इसे अच्छा कहा, स्वभावत: विपक्ष ने इसे जन विरोधी कहा। उद्योग जगत तो इस बजट से खासा नाराज है। यह स्वावाभिक प्रतिक्रियायें बजट आने के कुछ घंटों मे ही शुरू हो जाती हैं और लगभग स्वत: ही खत्म। टीवी के लालू-भालू चटखारे भी पानी के बुलबुलों ही तरह खत्म हो जाते हैं। अखबार और टीवी चैनल जिनसे त्वरित टिप्पणी लेते हैं उन्हें बजट का ''ब'' नहीं मालूम होता है और टीवी पर चंद सैकंड दिखने की लालसा कभी उन्हें बजट के पक्ष में खड़ा कर देती है तो कभी इतर विपक्ष में । वास्तव में यह देश की विडंबना ही है आजादी के कि साठ वर्षों बाद भी लोगों को बजट का ''ब'' भी नहीं समझ आया। लेकिन लोगों का बजट के पक्ष में बनने वाले इस मानस में विश्ले'षण की गुंजाईश बची रहती है। अलग-अलग वर्गों का विश्लेमषण, यानी किसके लिये क्या?
अब तो यह साबित हो ही गया कि शेयर बाज़ार समता मूलक विकास के पक्ष में नहीं है. 2009-10 के बजट में सरकार ने थोडी ज्यादा पहल गाँव के लिए कर दी तो बाज़ार धडाम से गिर गया। बाज़ार के बैल (बुल्स मार्केट) की सांस फूल गई। वह नाराज़ है कि प्रणब मुखर्जी ने गाँव और गाँव के लोगों की तरफ क्यों देखा। हम पिछले 15-20 सालों से देख रहे हैं कि जब भी गरीबी या सामाजिक क्षेत्रों की बात होती है तो सेंसेक्स गिरा कर शेयर बाज़ार अपना गुस्सा दिखता है. इसका एक मतलब यह भी है कि वर्तमान उद्योगिक संरचनाएं और उच्चस्तरीय घराने किसी भी बजट को अच्छा तभी मानेaगे जब उनके लिए सरकार करों में खूब छूट दे रियायत दे और सरकारी खजाने का दरवाजा उनके लिए खोल दे। यदि ऐसा नहीं होता है तो वह बजट विकास विरोधी होता है। आश्चकर्यजनक है कि 20 सालों की निजीकरण के प्रक्रिया के बाद मंदी के नाम पर अंततः सरकार को ही पूरी अर्थव्यस्था को संभालना पड़ रहा है । हर उद्योग बड़े अधिकार के साथ यह मांग हर रहा है कि उन्हें बैल आउट पैकेज मिले यानी उनके कम होते लाभ को सरकार अपने खजाने से धन दे कर फिर बढाए। अब सवाल यह है कि जब आप पहले ही करों में छूट ले चुके है सरकार की लाखों एकड़ जमीनें मुफ्त या कौडियों के भाव अपने अंटे में कर चुके हैं तो अब फिर और लुटाई क्यों करना चाहते हैं। मतलब साफ़ है कि बाज़ार के लाभ कमाने का लालच अब एक किस्म कि आर्थिक हिंसा के स्तर पर जा पहुंचा है।
ऐसा भी नहीं हैं कि सरकार ने पwरे बजट को वंचितों को सौंप दिया हो। इस बजट में सड़कों के निर्माण के लिए बजट में 23 फीसदी की बढोतरी हुई है। और सरकार का कहना है कि वह हर रोज़ 20 किलोमीटर सड़कें बनाएगी। इससे विकास तो होगा पर साथ ही सीमेंट, इस्पात, स्टील, निर्माण क्षेत्र और अन्य उत्पादों के बाज़ार में भी तो सरकार के 50 हज़ार करोड़ रूपए आयेंगे। यह बड़ी कंपनियों को पता है पर वह अपनी ख़ुशी जाहिर नहीं करना चाहते हैं। ख़ुशी छिपा कर खुश होना और अपने हितों के लिए सरकार पर दबाव बनाते रहना वास्तव में बाज़ार की कंपनियों से सीखना चाहिए, इसीलिए तो प्रबंधन के पढाई इतनी महंगी है और ऐसी रणनीतियां सिखा कर ही तो विशेषज्ञ तैयार किये जाते हैं।
प्रणव मुखर्जी ने बंगाल के जादू वाला पिटारा तो सभी के लिये खोला लेकिन यह बजट बच्चों को नहीं रिझा पाया। वैसे भी आम आदमी वास्तव में विकास के लिए नहीं बल्कि वोट के लिए बहुत महत्वपूर्ण रहा है। वर्ष 2004 के चुनावों के बाद से यह बात बार बार सिद्ध हो रही है। कांग्रेस को एक मंत्र मिल गया है - कुछ चुटुर-पुटुर (30-40 हज़ार करोड़) कार्यक्रम लोगों के लिए चलाओ और उन्हें लॉलीपॉप देकर बड़े सौदे करते जाओ। रणनीतिगत् तरीके से इस बजट में भी सभी वर्गों के लिये लॉलीपाप तो है, लेकिन जो वर्ग वास्तव में लॉलीपाप का हकदार है, उसे हाजमे की गोली दे दी गई। हम बात कर रहे हैं इस बजट में बच्चों की।
बात 6 वर्ष तक के बच्चों के समग्र विकास की करें तो प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह एक ओर तो बच्चों में कुपोषण के मुद्दे को राष्ट्रीय शर्म निरुपित कर चुके हैं। लोकसभा के चुनावों में भी सोनिया जी राहुल भैय्या और मनमोहन सिंह जी ने चुनावी सभाओं में कुपोषण पर सघन अभियान चलाने का वायदा किया था। सर्वोच्च न्यायालय ने आई सी डी एस के लोकव्यापीकरण के आदेश दिए हैं यानी हर बच्चे और हर बसाहट के लिए आंगनवाडी केंद्र होना चाहिए। सरकार ने भी कहा कि हाँ हम ऐसा करेंगे, परन्तु बजट में यह परावर्तन दिखता नहीं है। महिला एवं बाल विकास के बजट में केवल 2 प्रतिशत की वृद्धि की गई है. जिससे ना तो आईसीडीएस का लोकव्यापीकरण हो पायेगा न कुपोषण की रफ़्तार कम हो पायेगी। सरकार अब भी यह नहीं समझ रही है कि भारत में कुपोषण के कारण विकास की दर 2-3 प्रतिशत कम रह जाती है यदि इस संकट पर काबू पाया जा सके तो देश के विकास की गति और तेज़ हो जायेगी। पर नहीं शायद कुपोषण को बनाए रखना भी बाजारवादी विकास की एक रणनीति है।
स्कूली शिक्षा की बात करें तो सरकार शायद यह तय कर चुकी है कि गुणवत्तापूर्ण एवं अनिवार्य बुनियादी शिक्षा के लिये निजीकरण के रास्ते खोल देना चाहिए। इसका परावर्तन बजट में दिखता है कि सरकार ने विगत वर्ष के बजट में 26800 करोड़ रूपये के प्रावधान में एक भी रूपये का इजाफा नहीं किया है। यहां तक कि सर्व शिक्षा अभियान में एक भी रूपये की बढ़ोतरी नहीं की गई है। जबकि इसी संप्रग सरकार ने अपने विगत कार्यकाल में शिक्षा पर 6 प्रतिशत तक खर्च करने की बात कही थी, लेकिन अभी भी वह कोसों दूर है। सरकार बार-बार अपनी प्रतिबध्दता तो जाहिर करती है लेकिन यदि सरकार प्रतिबध्द है तो फिर सरकार ने शिक्षा के अधिकार वाले कानून के लिए बजट का आवंटन क्यों नहीं किया। शायद इसलिए इस बच्चे वोट तो देंगे नहीं और सरकार का खर्चा करवा देंगे।
वर्ष 2004 के चुनावों में नरेगा का वायदा किया गया और उे लागू करने का फायदा बार-;बार कांग्रेस को मिला। इस बार उन्होंने खाद्य सुरक्षा अधिनियम का वायदा कर दिया और चुनाव जीत गए। अब कांग्रेस सरकार यह अधिनियम बनाने की जल्दी में है, क्योंकि वोट का मामला है और अब कुछ राज्यों में विधान सभा चुनाव भी होने ही जा रहे हैं. इस बात में थोडी शंका है कि कांग्रेस सरकार भुखमरी और गरीबी के प्रति बहुत प्रतिबद्ध है। इसी बजट भाषण में सरकार ने खाद्य सुरक्षा बिल को भी लाने की बात तो कही है, क्योंकि इसमें एक बड़े वर्ग (सरकार के वोट बैंक का ज्यादा) का हित सधता है, लेकिन विगत दो पंचवर्षीय से अटके शिक्षा बिल को लाने के संबंध में इस बजट में कहीं जिक्र भी नहीं किया है। यह सरकार की प्राथमिकताओं को प्रदर्शित करता है कि अनिवार्य एवं मूलभूत शिक्षा किस पायदान पर है।
क्षेत्र/विभाग
2008-09 (करोड़ में)
2009-10 (करोड़ में)
महिला एंव बाल विकास विभाग
7200
7350
स्कूल शिक्षा विभाग
26800
26800
आदिवासी विकास विभाग
805
805
उच्च शिक्षा
7600
9600
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण
15580
18380
समाजिक न्याय एवं सशक्तिकरण
2400
2500
रक्षा
105600
141703
मध्यान्ह भोजन
8000
8000
सर्वशिक्षा अभियान
13100
13100
जेएनएनयूआरएम

12887 (विगत वर्ष की तुलना में 87 प्रतिशत् अधिक)
तालिका - कुछ चुनिंदा विभागों / क्षेत्र में बजट आवंटन
आदिवासी विकास पर सरकार ने इस बजट में एक भी रूपये की बढ़ोत्तरी नहीं की है, जबकि हम सभी जानते हैं कि बच्चों के संबंध में बहुत सी योजनायें आदिवासी क्षेत्रों में बुनियादी शिक्षा, समेकित बाल विकास सेवा, मध्यान्ह भोजन योजना आदि पर भी आदिवासी विकास से राशि खर्च होती है लेकिन सरकार ने इस पर कुछ भी बढ़ोत्तरी नहीं की है। सामाजिक न्याय एवं सशक्तिकरण की दिशा में भी केवल 100 करोड़ रूपये की बढ़ोतरी यह दर्शाती है कि शासन की मंशा क्या है।
देश में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के सर्वेक्षण ने चिल्ला-चिल्लाकर देश की स्वास्थ्य के खस्ता हालत से हमें परिचित कराता रहा है।
भारत में स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए नागरिकों के सबसे ज्यादा खर्च करना पड़ता है। सरकार स्वास्थ्य कार्यक्रम तो चला रही है पर इसे संवैधानिक अधिकार का दर्जा नहीं दे रही है। यही कारण है जिससे हमारा स्वास्थ्य ढांचा बेहद लचर कमज़ोर और अप्रभावी बन गया है। जरूरी है कि बच्चों और महिलाओं के स्वास्थ्य के सन्दर्भ में बी पी एल जैसे सूचकों को हटा कर स्वास्थ्य सेवाओं का व्यापक सार्वजनिकीकरण किया जाए। सरकार ने तो इस बजट में भी लगभग 300 करोड़ रूपये की बढ़ोत्तरी की है। इसमें से भी अधिकांश पैसा राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन को जाने वाला है जिसमें अधिकांश रूप से लक्षित हितग्राही हैं लेकिन जन सामान्य के लिये क्या है, यह कहीं भी परिलक्षित नहीं होता है।
दरअसल में पूरा बजट का केन्द्रीय विश्लेहषण यह कहता है कि उसके केन्द्र में बच्चा तो कहीं भी नहीं है। सरकार का बजट स्पीच ही इससे शुरू होता है कि 9 फीसदी विकास दर हासिल करना सरकार की प्राथमिकताओं में से एक है। लेकिन कमजोर एवं वंचित तबके का विकास शासल की प्राथमिकता का हिस्सा नहीं दिखता है।
सरकार ने हर बार की तरह इस बार भी देश की रक्षा के लिए बजट 105600 से बढाकर 141703 दिया है और यह खुला हुआ है। हम यह नहीं कहते कि यह नहीं होना चाहिए लेकिन सवाल यह है कि बच्चों की आधी से ज्यादा आबादी कुपोषित है। लोग भुखमरी के साये में जी रहे हैं और सरकार अपनी प्राथमिकता रक्षा को बना रही है।
दरअसल में पूरा बजट का केन्द्रीय विश्लेिषण यह कहता है कि उसके केन्द्र में बच्चा तो कहीं भी नहीं है। सरकार का बजट स्पीच ही इससे शुरू होता है कि 9 फीसदी विकास दर हासिल करना सरकार की प्राथमिकताओं में से एक है। लेकिन कमजोर एवं वंचित तबके का विकास शासन की प्राथमिकता का हिस्सा नहीं दिखता है।
सरकार ने हर बार की तरह इस बार भी देश की रक्षा के लिए बजट 105600 से बढाकर 141703 दिया है यह यह खुला हुआ है। हम यह नहीं कहते कि यह नहीं होना चाहिए लेकिन सवाल यह है कि बच्चों की आधी से ज्यादा आबादी कुपोषित है। लोग भुखमरी के साये में जी रहे हैं और सरकार अपनी प्राथमिकता रक्षा को बना रही है।
पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग में सरकार ने बढ़ोत्तरी तो की है और उसके भी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (नरेगा) में 30 फीसदी की वृध्दि की है, इसके मायने यह नहीं कि सरकार ''हर हाथ को काम और काम का पूरा दाम'' की मंशा रखती है बल्कि यह पूर्ण योजना गांव के एक बड़े वर्ग (युवा, महिला, वृध्द, पुरूष) की आस बंधाती है क्योंकि यह जरूरी भी नहीं है कि सभी को काम मिल ही जाये। यह बड़ा वर्ग ही सरकार का वोट बैंक है।
विगत् पांच दशकों के चुनावी वातावरण और बजटों का विश्ले षण करें तो हम पाते हैं कि विगत दशक या दो पंचवर्षीय में खाद्य सुरक्षा, के सवालों को तरजीह देना शुरू हुआ है, क्योंकि इस दशक में ही न्याय पालिका ने अपना पक्ष सुनिश्चित करते हुये सरकार को बाध्य किया है। यह करने के साथ ही खाद्य सुरक्षा का सीधा मामला, जिले आजकल 1 रूपये किलो गेहूं और 2 रूपये किलो चावल के रूप में बदला जा रहा है। यह लोगों को प्रत्यक्ष रूप से आलसी बनाये रखने की साजिश है। इससे लोग आलसी हो रहे हैं बजाए इसके कि नरेगा में न्यूनतम मजदूरी को बढाया जाये और लोगों की वित्तीय क्षमता बढ़ाई जाये। लेकिन सीधे रूप से यह मसला एक बड़े समूह को साधने का है और यह जताने का है कि हमने तुम्हारे लिए क्या किया और फिर इन्हीं जुमलों को परिवर्तन की लहर बनाया जाता है।
सवाल जस का तस है कि बजट में या हर तरह की शासन की प्राथमिकताओं में बच्चों को तरजीह नहीं दी जाती है क्योंाकि बच्चे वोट बैंक नहीं हैं और वे सरकार का तख्ता नहीं पलट सकते हैं। इसलिये हमें यह देखना और समझना होगा कि बच्चे कब शासन की जिम्मेदारी और प्राथमिकता में होंगे। सरकार को चाहिये कि पहले बुनियाद को साधे नहीं तो उसके बगैर कोई भी विकास रुपी ईमारत खड़ी नहीं हो सकती है। (मीडिया फॉर रिघ्ट्स)

सात लाख टन रॉ शुगर से तैयार चीनी जल्द बाजार में

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा आयातित रॉ शुगर (गैर-रिफाइंड चीनी) की आवक पर से रोक हटने के बाद करीब 6-7 लाख टन चीनी अगले 10-15 दिन में बाजार में पहुंचने की संभावना है। इससे चीनी के दाम में और गिरावट आने की उम्मीद बन गई है। रोक हटने के बाद बंदरगाहों पर अटकी करीब रॉ-शुगर के चीनी तैयार करने का रास्ता साफ हो गया है। घरलू बाजार में पिछले पंद्रह दिनों में चीनी की कीमतों में करीब 800 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट आ चुकी है। सिंभावली शुगर लिमिटेड के निदेशक डॉ. जी. एस. सी. राव ने बताया कि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा आयातित रॉ शुगर लाने पर से रोक हटाने का असर चीनी की कीमतों पर पड़ेगा। राज्य की मिलों द्वारा आयात की गई 9 लाख टन रॉ-शुगर में से मिलों ने करीब दो-तीन लाख टन दूसर राज्यों की मिलों में रिफाइंड करने के लिए भेजी जा चुकी है। बाकी बची छह-सात लाख टन रॉ-शुगर के रिफाइंड होने से घरलू बाजार में उपलब्धता बढ़ेगी। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा आयातित रॉ-शुगर की आवक पर रोक लगाने से राज्य की मिलों ने नए आयात सौदे बंद कर दिए थे। लेकिन अब चूंकि रोक हट गई है इसलिए राज्य की मिलें नए आयात सौदे करेंगी। जिससे घरलू बाजार में उपलब्धता बढ़ेगी।इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि केंद्र सरकार द्वारा चीनी की साप्ताहिक बिक्री शुरू करवाने से बिकवाली का दबाव बना हुआ है। जिससे चीनी की कीमतों में गिरावट बनी हुई है। पिछले पंद्रह-बीस दिनों में चीनी की कीमतों में करीब 800 रुपये की गिरावट आकर एक्स-फैक्ट्री भाव 3400-3450 रुपये और दिल्ली थोक बाजार में 3550-3600 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। का असर चीनी कीमतों पर पड़ने की संभावना है। उत्तर प्रदेश में चीनी की एक्स-फैक्ट्री कीमतें घटकर बुधवार को 3400-3450 रुपये और दिल्ली थोक बाजार में 3550-3600 रुपये प्रति `िंटल रह गई। (बिज़नस भास्कर...आर अस राणा)

बजट में खेती पर दिया जा सकता है जोर: विशेषज्ञ

विशेषज्ञों ने सूखे और बाढ़ की मार से त्रस्त कृषि क्षेत्र के लिये इस आम बजट में बारानी खेती और सिंचाई परियोजनाओं पर अधिक ध्यान देने पर बल दिया है। प्रख्यात कृषि वैज्ञानिक और राज्यसभा सदस्य एम एस स्वामीनाथन ने कहा कि भारतीय कृषि के लिये 2010 करो या मरो जैसा है। अगर हमने उचित कदम नहीं उठाये तो खाद्य मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने और किसानों के आत्महत्या जैसी समस्या को रोकने में गंभीर कठिनाई होगी।
बढ़ती महंगाई के मद्देनजर कृषि क्षेत्र के लिये बजट से उम्मीद के बारे में पर उन्होंने कहा, इस समस्या से निपटने के लिये बजट में बारानी, खेती विशेष रूप से विशेष रूप से दलहन और तिलहन की पैदावार बढ़ाने पर जोर दिया जाना चाहिए। हालांकि खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमत को लेकर कृषि अर्थशास्त्री मानते हैं कि कृषि उपज बढ़ाने के लिए पर्याप्त एवं समुचित कदम उठाने की जरूरत है और इसके लिये विशेष तौर पर सिंचाई सुविधाओं पर बजट में ध्यान पूरा ध्यान दिया जाना चाहिए।
बेंगलूर स्थित इंस्टीट्यूट फार सोशल एंड इकोनामिक चेंज के प्रोफेसर और कृषि अर्थशास्त्री डा प्रमोद कुमार ने कहा कि बढ़ती महंगाई के मद्देनजर बजट में वित्त मंत्री को कृषि उपज बढ़ाने की दिशा में समुचित कदम उठाने चाहिए। डा कुमान ने इसके लिये सूक्ष्म और वृहद सिंचाई परियोजनाओं पर विशेष ध्यान देने की जरूरत पर बल दिया। उल्लेखनीय है कि चालू वित्तीय वर्ष में बाढ़ और सूखे के कारण कृषि उत्पादन में गिरावट आयी है।
अग्रिम आकलनों के अनुसार भारत में अनाज और तिलहन का उत्पादन में 2009-10 के दौरान क्रमश: 8 और 5 फीसदी की गिरावट होगी। इसी तरह चालू वित्त वर्ष में कृषि, वानिकी और मत्स्य पालन क्षेत्र के उत्पादन में 0.2 फीसदी की गिरावट का अनुमान लगाया गया हैं जबकि 2008-09 में इस क्षेत्र का उत्पादन 1.6 फीसदी बढा़ था। मांग पूर्ति में अंतर के कारण खाद्य वस्तुओं पर आधारित महंगाई दर 6 फरवरी को समाप्त सप्ताह में 17.97 फीसदी रही।
प्रमोद कुमार ने कहा कि सरकार शुष्क कृषि के साथ उन क्षेत्रों में कृषि को बढ़ावा देने के उपाय कर सकती है जहां फिलहाल खेती नहीं हो पा रही है। उन्होंने कहा कि कृषि क्षेत्र में व्यापक स्तर पर सार्वजनिक निवेश बढ़ाने, विशेषकर सिंचाई पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। स्वामीनाथन ने कहा कि मैंने गणतंत्र दिवस की 60वीं वर्षगांठ मनाने के लिये इस साल 60,000 दलहन गांव और प्रयोगशाला से खेत तक कार्यक्रम आयोजित किये जाने का सुझाव दिया है।
एक अन्य सवाल के जवाब में राज्यसभा सदस्य ने कहा कि पिछले कुछ बजटों में कृषि क्षेत्र को विशेष तवज्जो नहीं दी गयी। किसानों की ऋण माफी योजना का क्रियान्वयन जरूर किया गया लेकिन यह उत्पादकता और लाभदायकता बढ़ाने में प्रत्यक्ष रूप से फायदेमंद नहीं रहा। (दैनिक हिंदुस्तान)

फ्लोर मिलों को 3 लाख टन और गेहूं

केंद्र सरकार ने महंगाई पर अंकुश लगाने के लिए खुले बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) के तहत 3.11 लाख टन अतिरिक्त गेहूं का आवंटन किया है। अक्टूबर से मार्च तक ओएमएसएस के तहत उपभोक्ता उद्योगों (मुख्यत: फ्लोर मिलें) के लिए अब तक कुल 18.19 लाख टन गेहूं आवंटित किया जा चुका है। लेकिन अब उपभोक्ता उद्योग अगले एक महीने तक ही गेहूं की खरीद करेंगी क्योंकि इसके बाद नई फसल आ जाएगी। 18.19 लाख टन गेहूं में से अब तक सिर्फ 9.40 लाख टन गेहूं के लिए टेंडर भर गए हैं। खाद्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि ओएमएसएस में अतिरिक्त 3.11 लाख टन गेहूं का आवंटन किया गया है। इसमें महाराष्ट्र को 1.60 लाख टन, पंजाब को 1.35 लाख टन और गुजरात तथा छत्तीसगढ़ को आठ-आठ हजार टन गेहूं मिलेगा। रोलर फ्लोर मिलर्स फेडरशन ऑफ इंडिया की सचिव वीणा शर्मा ने बताया कि इस समय हरियाणा, जम्मू-कश्मीर और उत्तर प्रदेश में गेहूं का भंडार सीमित मात्रा में बचा हुआ है। उत्तर भारत में गेहूं की नई फसल आने में अभी करीब एक महीने का समय शेष है इसलिए इन राज्यो में अतिरिक्त गेहूं का आवंटन होना चाहिए था। महाराष्ट्र में गेहूं का आवंटन ज्यादा किया गया है जबकि महाराष्ट्र की मंडियों में नए गेहूं की आवक शुरू हो चुकी है।उधर पड़ोसी राज्यों मध्य प्रदेश और गुजरात में भी नए गेहूं की आवक शुरू होने से महाराष्ट्र की फ्लोर मिलों ने भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के गेहूं का उठान कम कर दिया है। पहले केंद्र सरकार ने ओएमएसएस के तहत अक्टूबर से मार्च तक के लिए उपभोक्ता उद्योगों के लिए 10 लाख टन और राज्य सरकारों के लिए (फुटकर में उपभोक्ताओं को बेचने के उद्देश्य से) 20 लाख टन गेहूं आवंटित किया था। लेकिन गेहूं उठान में राज्यों की दिलचस्पी न होने से केंद्र ने राज्यों के कोटे से 5.18 लाख टन गेहूं पहले ही उपभोक्ता उद्योगों को आवंटित कर दिया था। अब 3.11 लाख टन और गेहूं उनके लिए आवंटित किया गया है। इस तरह कुल आवंटन 18.19 लाख टन हो गया है। खाद्य मंत्रालय के अनुसार अभी तक उपभोक्ता उद्योगों ने निविदा के माध्यम से 9.40 लाख टन गेहूं की खरीद की है। जिन राज्यों में गेहूं की न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर किसानों से गेहूं की खरीद होनी है, वहां फ्लोर मिलों को 15 मार्च तक यह गेहूं मिलेगा। बाकी राज्यों में सरकारी गेहूं की बिक्री 31 मार्च तक होगी। उत्तर भारत में गेहूं की नई फसल आने में अभी करीब एक माह बाकी है लेकिन मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र की मंडियों में नई फसल की आवक शुरू हो चुकी है। वहां फ्लोर मिलें एफसीआई का गेहूं खरीद में ज्यादा रुचि नहीं ले रही हैं। ऐसे में कुल आवंटित गेहूं जारी होने की उम्मीद बहुत कम है। मध्य प्रदेश और गुजरात में नई फसल आने से दक्षिण भारत की मंडियों में पिछले एक सप्ताह में ही गेहूं की कीमतों में करीब 125 रुपये की गिरावट आकर बंगलुरूमें भाव 1425 रुपये प्रति `िंटल रह गए। (बिज़नस भास्कर...आर अस राणा)