Dear All,
As the new year blossoms, may the journey of your life be fragrant with new opportunities,
your days be bright with new hopes and your heart be happy with love! Happy New Year-
2011 !
regards,
R S Rana
Senior Correspondent
Business Bhaskar Hindi DailyDainik
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31 दिसंबर 2010
राज्यों को 50 लाख टन ज्यादा खाद्यान्न
कवायदशुल्क मुक्त दालों का आयात जारी रहेगा, निर्यात पर रहेगी रोक वित्त मंत्री की अध्यक्षत में अधिकार प्राप्त मंत्री समूह की बैठक में फैसलाकेंद्र सरकार राज्यों को 50 लाख टन अतिरिक्त खाद्यान्न उपलब्ध कराएगी। इसके अलावा शुल्क मुक्त दालों का आयात जारी रहेगा और निर्यात पर लगी रोक भी अगले आदेश तक जारी रहेगी। केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता में खाद्यान्न मामलों पर गठित अधिकार प्राप्त मंत्रियों के समूह (ईजीओएम) की मंगलवार को हुई बैठक के बाद केंद्रीय कृषि, खाद्य और उपभोक्ता मामले मंत्री शरद पवार ने संवाददाताओं को बताया कि चीनी पर स्टॉक लिमिट की अवधि मार्च 2011 तक के लिए बढ़ा दी गई है। शरद पवार ने बताया कि जो 50 लाख खाद्यान्न का अतिरिक्त आवंटन किया गया है। इसमें 25 लाख टन गेहूं और चावल का आवंटन गरीबरी रेखा से नीचे रहने वाले (बीपीएल) परिवार को किया जायेगा। इसके अलावा गरीबी रेखा से ऊपर (एपीएल) परिवारों के लिए भी 25 लाख टन गेहूं और चावल का आवंटन ऊंचे दाम पर किया गया है। राज्य सरकारें इसका उठाव 29 दिसंबर से शुरू कर सकती हैं। बीपीएल परिवारों को गेहूं 4.15 प्रति किलो और चावल 5.65 रुपये प्रति किलो की दर से उपलब्ध कराया जायेगा। लेकिन एपीएल परिवारों को ज्यादा दाम पर गेहूं 8.45 रुपये प्रति किलो और चावल 11.85 रुपये प्रति किलो की दर से दिया जायेगा।कृषि मंत्री ने बताया कि दालों का शुल्क मुक्त आयात अगले आदेश तक जारी रहेगा तथा निर्यात पर रोक भी जारी रहेगी। उन्होंने बताया कि चालू पेराई सीजन में देश में चीनी का उत्पादन बढ़कर 245 लाख टन होने का अनुमान है। जबकि देश में चीनी की सालाना खपत 220 से 230 लाख टन की होती है। इसीलिए चीनी की उपलब्धता तो ज्यादा है लेकिन खराब मौसम के कारण पेराई देर से शुरू हुई है। इसीलिए बड़े उपभोक्ताओं पर स्टॉक लिमिट की अवधि अगले तीन महीने तक जारी रहेगी। मालूम हो कि चीनी के बड़े उपभोक्ताओं पर स्टॉक लिमिट की अवधि 31 दिसंबर 2010 को समाप्त हो रही थी। केंद्र सरकार ने पास दिसंबर के पहले सप्ताह में 484.11 लाख टन खाद्यान्न का स्टॉक बचा हुआ है जोकि तय मानकों बफर के मुकाबले ज्यादा है। कुल स्टॉक में 239.14 लाख टन गेहूं और 245.27 लाख टन चावल है। (Business Bhaskar....R S Rana)
आवक में कमी से जौ में उछाल
नई दिल्ली December 30, 2010
कम आवक के बीच जौ की मांग बढऩे का असर इसकी कीमतों पर देखा जा रहा है। इस माह जौ की कीमतों में 120-150 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी आ चुकी है। कारोबारियों का कहना है कि माल्ट उद्योग की अधिक खरीदारी के कारण जौ की मांग बढ़ी है। उनके मुताबिक मंडियों में जौ की आवक कम होने से भी कीमतों में तेजी को बल मिला है और नई फसल आने के बाद ही कीमतों मे गिरावट के आसार हैं।
इस माह राजस्थान की जयपुर मंडी में जौ के दाम 150 रुपये बढ़कर 1300 रुपये प्रति क्विंटल, हरियाणा की रेवाड़ी मंडी में इसके दाम 120 रुपये बढ़कर 1350 रुपये प्रति क्विंटल और उत्तर प्रदेश की दादरी मंडी में इसके बढ़कर 1320 रुपये प्रति क्विंटल हो चुके हैं। जयपुर मंडी के जौ कारोबारी के.जी. झालानी ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि मंडियों में जौ की आवक बहुत कम हो रही है। इस वजह से भी इसके दाम बढ़े हैं। उनका कहना है कि जयपुर मंडी में महज 80-100 बोरी (100 किलोग्राम) जौ की आवक हो रही है। इस वजह से कीमतों में तेजी है। जौ कारोबारी सुताराम शर्मा ने बताया कि इन दिनों माल्ट उद्योग की ओर से जौ की मांग अच्छी चल रही है, जबकि मंडियों में मांग के मुकाबले आवक बहुत कम है। इस कारण जौ कीमतों में बढ़ोतरी हुई है। आवक कम होने के बारे में सुताराम का कहना है कि देश में पिछले साल के मुकाबले जौ का स्टॉक कम रह गया है। उनके मुताबिक स्टॉक कम होने की वजह जौ के उत्पादन में भारी गिरावट आना है। केंद्रीय कृषि मंत्रालय से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2009-10 में 13 लाख टन जौ का उत्पादन हुआ है जबकि वर्ष 2008-2009 में 16.90 लाख टन जौ का उत्पादन हुआ था। आने वाले दिनों में जौ की कीमतों के बारे में कारोबारियों को कहना है कि इसके दामों में तेजी बने रहने की संभावना है। झालानी इस संबंध में बताते हैं कि देश में जौ का स्टॉक कम होने के बीच मांग मजबूत बनी हुई है। ऐसे में नई फसल आने तक इसकी कीमतों में तेजी बरकरार रहने की संभावना है। नई फसल के बारे में शर्मा ने बताया कि वर्तमान परिस्थितियों के मद्देनजर जौ का उत्पादन बढऩे की उम्मीद है। इस बार जौ की बुआई भी बढ़ी है। उनका कहना है फरवरी में नई फसल आने पर जौ की कीमतों में गिरावट के आसार हैं। बकौल शर्मा नई फसल आने के पहले जौ की कीमतें 1400 रुपये प्रति क्विंटल तक जा सकती है। (BS Hindi)
कम आवक के बीच जौ की मांग बढऩे का असर इसकी कीमतों पर देखा जा रहा है। इस माह जौ की कीमतों में 120-150 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी आ चुकी है। कारोबारियों का कहना है कि माल्ट उद्योग की अधिक खरीदारी के कारण जौ की मांग बढ़ी है। उनके मुताबिक मंडियों में जौ की आवक कम होने से भी कीमतों में तेजी को बल मिला है और नई फसल आने के बाद ही कीमतों मे गिरावट के आसार हैं।
इस माह राजस्थान की जयपुर मंडी में जौ के दाम 150 रुपये बढ़कर 1300 रुपये प्रति क्विंटल, हरियाणा की रेवाड़ी मंडी में इसके दाम 120 रुपये बढ़कर 1350 रुपये प्रति क्विंटल और उत्तर प्रदेश की दादरी मंडी में इसके बढ़कर 1320 रुपये प्रति क्विंटल हो चुके हैं। जयपुर मंडी के जौ कारोबारी के.जी. झालानी ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि मंडियों में जौ की आवक बहुत कम हो रही है। इस वजह से भी इसके दाम बढ़े हैं। उनका कहना है कि जयपुर मंडी में महज 80-100 बोरी (100 किलोग्राम) जौ की आवक हो रही है। इस वजह से कीमतों में तेजी है। जौ कारोबारी सुताराम शर्मा ने बताया कि इन दिनों माल्ट उद्योग की ओर से जौ की मांग अच्छी चल रही है, जबकि मंडियों में मांग के मुकाबले आवक बहुत कम है। इस कारण जौ कीमतों में बढ़ोतरी हुई है। आवक कम होने के बारे में सुताराम का कहना है कि देश में पिछले साल के मुकाबले जौ का स्टॉक कम रह गया है। उनके मुताबिक स्टॉक कम होने की वजह जौ के उत्पादन में भारी गिरावट आना है। केंद्रीय कृषि मंत्रालय से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2009-10 में 13 लाख टन जौ का उत्पादन हुआ है जबकि वर्ष 2008-2009 में 16.90 लाख टन जौ का उत्पादन हुआ था। आने वाले दिनों में जौ की कीमतों के बारे में कारोबारियों को कहना है कि इसके दामों में तेजी बने रहने की संभावना है। झालानी इस संबंध में बताते हैं कि देश में जौ का स्टॉक कम होने के बीच मांग मजबूत बनी हुई है। ऐसे में नई फसल आने तक इसकी कीमतों में तेजी बरकरार रहने की संभावना है। नई फसल के बारे में शर्मा ने बताया कि वर्तमान परिस्थितियों के मद्देनजर जौ का उत्पादन बढऩे की उम्मीद है। इस बार जौ की बुआई भी बढ़ी है। उनका कहना है फरवरी में नई फसल आने पर जौ की कीमतों में गिरावट के आसार हैं। बकौल शर्मा नई फसल आने के पहले जौ की कीमतें 1400 रुपये प्रति क्विंटल तक जा सकती है। (BS Hindi)
देसी घी, पनीर और मावा भी हो सकता है महंगा
दूध की बढ़ी कीमतों से परेशान आम उपभोक्ताओं को आगामी दिनों में पनीर, खोया और दूसरे दूध उत्पादों के बढ़े दामों को भी झेलने के लिए तैयार रहना होगा। उत्पादन लागत में बढ़ोतरी होने से देसी घी, पनीर, खोया, स्किम्ड मिल्क पाउडर (एसएमपी), बटर और बेकरी जैसे दुग्ध उत्पादों की कीमतों में बढ़ोतरी होने की संभावना है। वाष्र्णेंय बंधु फूडस प्राइवेट लिमिटेड के वरिष्ठ अधिकारी मोहित गोयल ने बताया कि मदर डेरी और अमूल द्वारा दूध की कीमतों में बढ़ोतरी करने से द्ुग्ध उत्पादों की लागत बढ़ गई है। इससे आगामी दिनों में देसी घी में 100 रुपये प्रति 15 किलो की तेजी आ सकती है। इसके साथ ही पनीर, खोया, एसएमपी, और बटर की कीमतों में भी प्रति किलो दस से पंद्रह रुपये तक बढऩे की संभावना है। आमतौर पर दीपावली के बाद दूध के दाम घट जाते थे। लेकिन इस बार घटने के बजाए कीमतें बढ़ी है। चूंकि मदर डेयरी और अमूल की बाजार में करीब 80 फीसदी की हिस्सेदारी है इसलिए इनके द्वारा कीमतों में बढ़ोतरी करने का सीधा असर उत्पादों पर पड़ता है।अमूल के चीफ जरनल मैनेजर आर एस सोढ़ी ने बताया कि किसान की लागत में बढ़ोतरी होने के कारण कंपनी को दूध के दाम बढ़ाने पड़े हैं। कंपनी सात फीसदी फैट दूध की कीमत किसानों को 28.90 रुपये प्रति लीटर की दर से भुगतान कर रही है। उन्होंने बताया कि दूध की कीमतों में बढ़ोतरी का दूध उत्पादों पर प्रभाव नहीं पड़ेगा। पारस डेयरी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि दूध महंगा होने के कारण घी, बटर और एसएमपी की कीमतों में तेजी आयेगी। देसी घी का भाव 3,200 से 3,250 रुपये प्रति 15 किलो चल रहा है। आगामी सप्ताह में इसकी कीमतों में 100 रुपये प्रति टीन की बढ़ोतरी होने की संभावना है। इसी तरह से एसएमपी का भाव 145-160 रुपये से बढ़कर 155-170 रुपये और बटर का भाव 145-150 रुपये से बढ़कर 155-160 रुपये प्रति किलो हो सकता है। नंदन ट्रेडिंग कंपनी के डायरेक्टर जितेंद्र गोयल ने बताया कि दूध की कीमतों में बढ़ोतरी से खोया और पनीर की कीमतों में भी दस से पंद्रह रुपये प्रति किलो की बढ़ोतरी होने की उम्मीद है। दिल्ली बाजार में बुधवार को पनीर का भाव 130-150 रुपये और खोया का भाव 120-140 रुपये प्रति किलो रहा। अजय कॉफी जर्मन बेकरी के मैनेजर राजेश कुमार ने बताया कि कच्चे माल की कीमतों में बढ़ोतरी होने का असर बेकरी उत्पादों पर पड़ेगा। वैसे ही बेकरी उत्पादों में मार्जिन काफी कम होता है। दूध की कीमतों मेें एक से दो रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी से बेकरी उत्पादों की कीमतें दो से तीन रुपये बढ़ जायेंगी। मदर डेयरी ने 19 दिसंबर को दूध की कीमतों में एक रुपये की बढ़ोतरी की थी जबकि अग्रणी दूध उत्पादक कंपनी अमूल 30 दिसंबर से तीन जनवरी के बीच देशभर में दूध की कीमतों में एक से दो रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी करेगी।बात पते कीमदर डेयरी ने 19 दिसंबर को दूध में एक रुपये की बढ़ोतरी की थी जबकि प्रमुख सहकारी संगठन अमूल देशभर में दूध की कीमतों में एक से दो रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी करेगा। (Business Bhaskar....R S Rana)
महंगाई को दूध का दम
नई दिल्ली/अहमदाबाद December 29, 2010
प्याज और लहसुन के बाद अब आपकी रसोई पर दूध और उससे बनने वाले उत्पादों का कहर होने वाला है। दूध की कीमत में हालिया बढ़ोतरी के बाद स्किम्ड दूध पाउडर (एसएमपी) का दाम 165 रुपये प्रति किलोग्राम के रिकॉर्ड पर पहुंच गया है। खाद्य बास्केट में दूध अहम तत्व है और थोक मूल्य सूचकांक में इसका भार 4.37 फीसदी है। मिठाई-पकवान में काम आने वाले घी, खोया और दही आदि भी इसी से बनते हैं।नोवा ब्रांड का दूध पाउडर बेचने वाली कंपनी स्टर्लिंग एग्रो के प्रबंध निदेशक कुलदीप सलूजा ने कहा, 'हालांकि दूध पाउडर का निर्यात न के बराबर होता है, लेकिन यह उसका अब तक का सबसे ज्यादा भाव है। दीवाली के पहले से तुलना करें तो भाव में 15 से 20 रुपये प्रति किलो बढ़ोतरी हो चुकी है।Ó सरकार ने मूल्य वृद्घि रोकने के लिए ही दूध पाउडर निर्यात पर रोक लगाई थी।अमूल ब्रांड से दूध बेचने वाली गुजरात सहकारी दुग्ध विपणन महासंघ (जीसीएमएमएफ) ने हाल ही में दूध के दाम 2 रुपये प्रति लीटर बढ़ाए हैं। यह इजाफा सर्दी के मौसम में हुआ है, जब आम तौर पर दूध उत्पादन बढ़ जाता है। अमूल से पहले मदर डेयरी ने भी दाम में 1 रुपये प्रति लीटर बढ़ोतरी की थी।हालांकि दूध उत्पादक लागत में बढ़ोतरी की बात कहते हुए इस इजाफे को सही ठहरा रहे हैं। जीसीएमएमएफ के प्रबंध निदेशक आर एस सोढ़ी ने कहा, 'दूध उत्पादन की लागत बढ़ गई है। अगर हम इसका उत्पादन बढ़ाना चाहते हैं तो हमें कीमत चुकानी होगी वर्ना किसान भैंस पालने के बजाय दूसरे कामों में लग जाएंगे और हमें आयात करना पड़ेगा।Ó सोढ़ी ने यह भी कहा कि अगले कुछ महीनों तक दूध के दाम बढ़ाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।लेकिन इससे दूध के उत्पादों पर भी मार पड़ रही है। कुछ समय पहले 3,100-3,180 रुपये प्रति टिन (1 टिन में 15 किलोग्राम) बिकने वाला देसी घी अब 3,900 से 4,200 रुपये प्रति टन हो चुका है। मावा के दाम भी 10 रुपये बढ़कर 140 रुपये प्रति किलो हो चुके हैं।पाल हर्बल डेयरी के मालिक और खारी बावली सर्व व्यापार मंडल के अध्यक्ष राजीव बत्रा ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा कि दूध की कमी की वजह से दाम 23 रुपये से बढ़कर 24 रुपये प्रति किलो हो गए हैं। इसकी वजह से दूध उत्पाद भी महंगे हुए हैं। इंडियन डेयरी एसोसिएशन के अध्यक्ष एन आर भसीन ने बताया कि उत्तर भारत में दूध उत्पादन में 4 फीसदी कमी आई है और चारा महंगा हुआ है, जिसकी वजह से कीमत भी बढ़ी है। (BS Hindi)
प्याज और लहसुन के बाद अब आपकी रसोई पर दूध और उससे बनने वाले उत्पादों का कहर होने वाला है। दूध की कीमत में हालिया बढ़ोतरी के बाद स्किम्ड दूध पाउडर (एसएमपी) का दाम 165 रुपये प्रति किलोग्राम के रिकॉर्ड पर पहुंच गया है। खाद्य बास्केट में दूध अहम तत्व है और थोक मूल्य सूचकांक में इसका भार 4.37 फीसदी है। मिठाई-पकवान में काम आने वाले घी, खोया और दही आदि भी इसी से बनते हैं।नोवा ब्रांड का दूध पाउडर बेचने वाली कंपनी स्टर्लिंग एग्रो के प्रबंध निदेशक कुलदीप सलूजा ने कहा, 'हालांकि दूध पाउडर का निर्यात न के बराबर होता है, लेकिन यह उसका अब तक का सबसे ज्यादा भाव है। दीवाली के पहले से तुलना करें तो भाव में 15 से 20 रुपये प्रति किलो बढ़ोतरी हो चुकी है।Ó सरकार ने मूल्य वृद्घि रोकने के लिए ही दूध पाउडर निर्यात पर रोक लगाई थी।अमूल ब्रांड से दूध बेचने वाली गुजरात सहकारी दुग्ध विपणन महासंघ (जीसीएमएमएफ) ने हाल ही में दूध के दाम 2 रुपये प्रति लीटर बढ़ाए हैं। यह इजाफा सर्दी के मौसम में हुआ है, जब आम तौर पर दूध उत्पादन बढ़ जाता है। अमूल से पहले मदर डेयरी ने भी दाम में 1 रुपये प्रति लीटर बढ़ोतरी की थी।हालांकि दूध उत्पादक लागत में बढ़ोतरी की बात कहते हुए इस इजाफे को सही ठहरा रहे हैं। जीसीएमएमएफ के प्रबंध निदेशक आर एस सोढ़ी ने कहा, 'दूध उत्पादन की लागत बढ़ गई है। अगर हम इसका उत्पादन बढ़ाना चाहते हैं तो हमें कीमत चुकानी होगी वर्ना किसान भैंस पालने के बजाय दूसरे कामों में लग जाएंगे और हमें आयात करना पड़ेगा।Ó सोढ़ी ने यह भी कहा कि अगले कुछ महीनों तक दूध के दाम बढ़ाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।लेकिन इससे दूध के उत्पादों पर भी मार पड़ रही है। कुछ समय पहले 3,100-3,180 रुपये प्रति टिन (1 टिन में 15 किलोग्राम) बिकने वाला देसी घी अब 3,900 से 4,200 रुपये प्रति टन हो चुका है। मावा के दाम भी 10 रुपये बढ़कर 140 रुपये प्रति किलो हो चुके हैं।पाल हर्बल डेयरी के मालिक और खारी बावली सर्व व्यापार मंडल के अध्यक्ष राजीव बत्रा ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा कि दूध की कमी की वजह से दाम 23 रुपये से बढ़कर 24 रुपये प्रति किलो हो गए हैं। इसकी वजह से दूध उत्पाद भी महंगे हुए हैं। इंडियन डेयरी एसोसिएशन के अध्यक्ष एन आर भसीन ने बताया कि उत्तर भारत में दूध उत्पादन में 4 फीसदी कमी आई है और चारा महंगा हुआ है, जिसकी वजह से कीमत भी बढ़ी है। (BS Hindi)
कोल्ड चेन लॉजिस्टिक्स में हैं काफी संभावनाएं
मौका ही मौकाकोल्ड चेन उद्योग का सालाना कारोबार 15 हजार करोड़ का कोल्ड चेन बिजनेस में 20' की दर से हो रही बढ़ोतरीवर्ष 2015 तक इसके 40 हजार करोड़ तक पहुंचने का अनुमानकोल्ड चेन में लॉजिस्टिक्स की हिस्सेदारी सालाना 1,100 करोड़ एनएचबी ने इस वर्ष दी 105 नए कोल्ड स्टोर बनाने की अनुमतिसरकार भी दे रही ध्याननई दिल्ली। खाद्य राज्यमंत्री के.वी. थामस ने कहा है कि सरकार कोल्ड स्टोरेज की व्यवस्था को और दुरुस्त करने पर विचार कर रही है। इससे कम सप्लाई वाले क्षेत्रों में फल-सब्जियों को तुरंत पहुंचाया जा सकेगा। ऐसे में अचानक किसी भी सब्जी या फल की कीमत में भारी बढ़ोतरी की नौबत नहीं आएगी। उन्होंने कहा कि सरकार फलों एवं सब्जियों के भंडारण के वास्ते कोल्ड स्टारेज की एक विशाल चेन बनाने के लिए समय-समय पर बैठकें कर रही है। थामस यहां आयोजित राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस समारोह के मौके पर पत्रकारों से अलग से बातचीत कर रहे थे। थामस ने देश के कुछ हिस्सों में प्याज की कीमतों में तेज उतार-चढ़ाव के लिए बाजार ताकतों को जिम्मेदार ठहराया। (प्रेट्र)कोल्ड चेन के कारोबार में बढ़ोतरी होने से लॉजिस्टिक्स कंपनियां इसमें निवेश बढ़ा रही हैं। पिछले एक साल में कंपनियों के कारोबार में करीब 15प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड (एनएचबी) ने चालू साल में अभी तक 105 नए कोल्ड स्टोर (एक उत्पाद से मल्टी उत्पादों के लिए) बनाने की अनुमति दी है। इसलिए आगामी दिनों में लॉजिस्टिक्स के कारोबार में बढ़ोतरी की काफी संभावनाएं हैं। ग्लोबल कोल्ड चेन एलायंस (जीसीसीए) के डायरेक्टर अतुल खन्ना ने कहा कि देश में कोल्ड चेन निर्माण में काफी निवेश हो रहा है, इसीलिए आगामी दिनों में लॉजिस्टिक्स उद्योग का भविष्य काफी उज्ज्वल है। उन्होंने बताया कि देश में कोल्ड चेन उद्योग का सालाना कारोबार 10 से 15 हजार करोड़ का है तथा इसमें 20 फीसदी की दर से बढ़ोतरी हो रही है। उम्मीद है 2015 तक कोल्ड चेन का कारोबार बढ़कर 40 हजार करोड़ का हो जायेगा। कोल्ड चेन में लॉजिस्टिक्स कारोबार (संगठित और असंगठित मिलाकर) सालाना करीब 1,100 करोड़ रुपये का है। जे बी एम इंजीनियंरिग प्रा. लि. के मैनेजिंग डायरेक्टर जे एम गुप्ता ने बताया कि एक उत्पादन का कोल्ड चेन बनाने के लिए 6,000 रुपये प्रति टन और मल्टी उत्पादों के लिए 8,000 रुपये प्रति टन का खर्च आता है। इसमें तापमान के साथ ही नमी को भी नियंत्रित किया जाता है। कोल्ड चेन में किसान के खेत से बिक्री केंद्र तक फ्रेश उत्पाद पहुंचाना होता है। इसमें ग्राइंडिंग, छटाई, पैकिंग आदि होती है। उन्होंने बताया कि भारत में कोल्ड चेन शुरुआती चरणों में है तथा भविष्य में इसमें अपार संभावनाएं हैं। इसमें फल एवं सब्जियों के अलावा, दलहन, मसालों और अनाजों को स्टोर करने से उनकी लाइफ भी बढ़ती है। देवभूमि कोल्ड चेन प्रा. लि. के चेयरमैन एवं प्रबंध निदेशक संजय अग्रवाल ने बताया कि सीधे खेत से फल एवं सब्जियों की खरीद से किसानों को भी उचित भाव मिलेगा। साथ ही कोल्ड चेन से उपभोक्ताओं को ऑफ सीजन में फल एवं सब्जियां उपलब्ध होंगी।एम जे लॉजिस्टिक सर्विस लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर अनिल अरोड़ा ने बताया कि पिछले एक साल में लॉजिस्टिक कारोबार में 15 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। फल एवं सब्जियों की उपलब्धता पूरे साल बनी रहे इसके लिए कोल्ड चेन में काफी निवेश किया जा रहा है। किसान के खेत से ताजा फल एवं सब्जियों को कोल्ड स्टोर तक पहुंचाने और फिर कोल्ड स्टोर से बिक्री केंद्रों तक रेफ्रिजरेटर वैन का सहारा लिया जाता है। एनएचबी के प्रबंध निदेशक विजय कुमार ने बताया कि जून से अभी तक 105 कोल्ड स्टोर बनाने की अनुमति दी गई है। मार्च 2011 तक करीब 150 कोल्ड स्टोर को अनुमति दिए जाने की संभावना है। (Business Bhaskar....R S Rana)
महंगी हुई चीनी तो मीठा हो गया गन्ना
लखनऊ December 30, 2010
पिछले कुछ दिनों से चीनी के भाव में इजाफे और गन्ने की लगातार बढ़ती किल्लत ने किसानों के वारे न्यारे कर दिए हैं। उत्तर प्रदेश की चीनी मिलें पेराई के इस सत्र में गन्ना खरीदने के लिए किसानों को पहले से ही भुगतान कर रही हैं।सरकार ने करीब 2 महीने पहले लगभग 5 लाख टन चीनी के निर्यात को हरी झंडी दिखाई थी। इसके बाद से चीनी के भाव में भी तेजी आई है। उस वक्त चीनी का भाव 2,750 रुपये प्रति क्विंटल था, जो अब बढ़कर 3,100 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गया है। बढ़ते भाव का फायदा उठाने से चीनी मिलें चूकना नहीं चाहतीं और ज्यादा से ज्यादा चीनी उत्पादन करना चाहती हैं। इसलिए वे चाहती हैं कि गन्ने की आपूर्ति में भी किसी तरह की रुकावट न आए।प्रदेश की मिलों ने अब तक किसानों को तकरीबन 2,280 करोड़ रुपये का भुगतान कर दिया है, जबकि उनका बकाया महज 1,920 करोड़ रुपये था। प्रदेश में तकरीबन 40 लाख गन्ना किसान हैं। देश में सबसे ज्यादा गन्ना यहीं होता है और चीनी उत्पादन के मामले में महाराष्टï्र के बाद इसका दूसरा स्थान है।गन्ना विभाग के एक अधिकारी ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि चीनी मिलें बेहद तेजी के साथ किसानों का बकाया निपटा रही हैं। उनका मकसद गन्ने को गुड़-खांडसारी इकाइयों के पास जाने से रोकना है।उत्तर प्रदेश चीनी मिल संघ के अध्यक्ष सी बी पटौदिया ने कहा, 'मिलों तक गन्ने की आपूर्ति सुनिश्चित करने और गन्ने को कहीं और जाने से रोकने के लिए किसानों को फौरन भुगतान किया जा रहा है।Ó हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि चीनी के भाव में और इजाफे की सूरत अभी नजर नहीं आ रही है। उन्होंने बताया कि सरकार ने जितनी चीनी के निर्यात की मंजूरी दी है, उसमें उत्तर प्रदेश का हिस्सा महज 1.25 लाख टन है।उत्तर प्रदेश में अभी तक तकरीबन 1.79 करोड़ टन गन्ने की पेराई हो चुकी है और उससे 15.7 लाख टन चीनी बनी है। पिछले साल इस समय तक 1.53 करोड़ टन गन्ने की पेराई हुई थी और 13.2 लाख टन चीनी बनी थी। पिछले साल प्रदेश में 52 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ था और इस बार 61 लाख टन चीनी उत्पादन का लक्ष्य है।प्रदेश में इस समय 123 चीनी मिलों में पेराई चल रही है। गन्ने के भाव पर विवाद और देर से बारिश होने के कारण इस बार पेराई भी देर में चालू हुई, जिसकी वजह से गन्ने में पानी भी ज्यादा हो गया।पेराई में देर की वजह राज्य समर्थित गन्ना मूल्य (205-210 रुपये प्रति क्विंटल)पर चीनी मिलों का ऐतराज भी था। जिस पर चीनी मिलें इलाहाबाद उच्च न्यायालय भी पहुंची थीं। पेराई में तेजी तब आई, जब मुख्यमंत्री मायावती ने तमाम चीनी मिलों को सख्त चेतावनी दी। (BS Hindi)
पिछले कुछ दिनों से चीनी के भाव में इजाफे और गन्ने की लगातार बढ़ती किल्लत ने किसानों के वारे न्यारे कर दिए हैं। उत्तर प्रदेश की चीनी मिलें पेराई के इस सत्र में गन्ना खरीदने के लिए किसानों को पहले से ही भुगतान कर रही हैं।सरकार ने करीब 2 महीने पहले लगभग 5 लाख टन चीनी के निर्यात को हरी झंडी दिखाई थी। इसके बाद से चीनी के भाव में भी तेजी आई है। उस वक्त चीनी का भाव 2,750 रुपये प्रति क्विंटल था, जो अब बढ़कर 3,100 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गया है। बढ़ते भाव का फायदा उठाने से चीनी मिलें चूकना नहीं चाहतीं और ज्यादा से ज्यादा चीनी उत्पादन करना चाहती हैं। इसलिए वे चाहती हैं कि गन्ने की आपूर्ति में भी किसी तरह की रुकावट न आए।प्रदेश की मिलों ने अब तक किसानों को तकरीबन 2,280 करोड़ रुपये का भुगतान कर दिया है, जबकि उनका बकाया महज 1,920 करोड़ रुपये था। प्रदेश में तकरीबन 40 लाख गन्ना किसान हैं। देश में सबसे ज्यादा गन्ना यहीं होता है और चीनी उत्पादन के मामले में महाराष्टï्र के बाद इसका दूसरा स्थान है।गन्ना विभाग के एक अधिकारी ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि चीनी मिलें बेहद तेजी के साथ किसानों का बकाया निपटा रही हैं। उनका मकसद गन्ने को गुड़-खांडसारी इकाइयों के पास जाने से रोकना है।उत्तर प्रदेश चीनी मिल संघ के अध्यक्ष सी बी पटौदिया ने कहा, 'मिलों तक गन्ने की आपूर्ति सुनिश्चित करने और गन्ने को कहीं और जाने से रोकने के लिए किसानों को फौरन भुगतान किया जा रहा है।Ó हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि चीनी के भाव में और इजाफे की सूरत अभी नजर नहीं आ रही है। उन्होंने बताया कि सरकार ने जितनी चीनी के निर्यात की मंजूरी दी है, उसमें उत्तर प्रदेश का हिस्सा महज 1.25 लाख टन है।उत्तर प्रदेश में अभी तक तकरीबन 1.79 करोड़ टन गन्ने की पेराई हो चुकी है और उससे 15.7 लाख टन चीनी बनी है। पिछले साल इस समय तक 1.53 करोड़ टन गन्ने की पेराई हुई थी और 13.2 लाख टन चीनी बनी थी। पिछले साल प्रदेश में 52 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ था और इस बार 61 लाख टन चीनी उत्पादन का लक्ष्य है।प्रदेश में इस समय 123 चीनी मिलों में पेराई चल रही है। गन्ने के भाव पर विवाद और देर से बारिश होने के कारण इस बार पेराई भी देर में चालू हुई, जिसकी वजह से गन्ने में पानी भी ज्यादा हो गया।पेराई में देर की वजह राज्य समर्थित गन्ना मूल्य (205-210 रुपये प्रति क्विंटल)पर चीनी मिलों का ऐतराज भी था। जिस पर चीनी मिलें इलाहाबाद उच्च न्यायालय भी पहुंची थीं। पेराई में तेजी तब आई, जब मुख्यमंत्री मायावती ने तमाम चीनी मिलों को सख्त चेतावनी दी। (BS Hindi)
कपास निर्यात के लिए रजिस्ट्रेशन आज से शुरू
कोयंबटूर : इस सीजन में दूसरी बार कपास निर्यात के लिए रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया शुक्रवार से शुरू हो रही है। यह एक हफ्ते तक जारी रहेगी, लेकिन रजिस्ट्रेशन के लिए कपास की मात्रा अब तक तय नहीं हुई है। डायरेक्टर जनरल ऑफ फॉरेन ट्रेड (डीजीएफटी) की वेबसाइट पर बुधवार को ही रजिस्ट्रेशन की शर्तों और रूपरेखा के बारे में सर्कुलर जारी किया जा चुका है। इसमें कहा गया है कि इच्छुक निर्यातक 31 दिसंबर से 6 जनवरी के बीच डीजीएफटी के पास ईमेल से आवेदन करें। 10 जनवरी को कोटा आवंटित होने की उम्मीद है। निर्यातकों को असली कागजात जैसे, लेटर्स ऑफ क्रेडिट या बैंक से फॉरेन इनवार्ड रेमिटेंस सर्टिफिकेट जमा कराना होगा, जिसमें विदेशी खरीदारों की ओर से रेमिटेंस की रसीद दिखाई गई हो, जो कम से कम 25 फीसदी एडवांस पेमेंट हासिल करने का सबूत है। रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट जारी हो जाने के बाद निर्यातक को 30 दिनों के भीतर कंसाइनमेंट भेजना होगा। सर्कुलर में निर्यात की आखिरी तारीख 25 फरवरी बताई गई है। साथ ही, सरकार ने डिफॉल्ट के लिए दंड की भी घोषणा की है। सजा के तौर पर पहले राउंड में समय रहते निर्यात कोटा खत्म नहीं कर पाने वालों को इस बार उतनी ही कम मात्रा आवंटित की जाएगी। कोयंबटूर के विश्लेषक ए रमानी ने कहा, 'शर्तें और औपचारिकताएं सख्त हैं, लेकिन इससे सरकार का निष्पक्ष रुख भी जाहिर होता है। हमें किसी चूक के लिए सतर्क होकर इंतजार करना होगा।' मुंबई के एक उद्योग विश्लेषक ने कहा, 'इस बार के सख्त कदम बताते हैं कि सरकार ने यह मान लिया है कि पिछली बार कोटा आवंटन में घालमेल हुआ था।' उन्होंने कहा, 'करीब 35 लाख गांठें भेजे जाने का अनुमान है और करीब पांच लाख गांठों का निर्यात किया जाना अब भी बाकी है।' कपास निर्यात की घोषणा के बाद गुरुवार को हाजिर बाजार में शंकर-6 वैरायटी की कीमतें 3.45 फीसदी बढ़कर 43,500 प्रति कैंडी रहीं। केपीआर मिल्स के मैनेजिंग डायरेक्टर पी नटराज का कहना है, 'किसान आने वाले दिनों में दाम में और तेजी की उम्मीद कर रहे हैं, जिसके चलते बाजार में कपास की आपूर्ति नहीं हो रही है।' (BS Hindi)
28 दिसंबर 2010
थोक में लहसुन नरम, पर खुदरा बाजार में गरम
नई दिल्ली December 27, 2010
प्याज की कीमतों में गिरावट के बाद अब लहसुन की कीमतों में भी कमी आने लगी है। एक सप्ताह के दौरान लहसुन के थोक भाव 30-40 रुपये प्रति किलोग्राम घट चुके हैं। थोक कीमतें घटने के बावजूद इसके खुदरा भाव अभी भी तेज बने हुए हैं। ऐसे में ग्राहकों को अभी भी लहसुन की महंगाई से राहत नहीं मिल सकी है। कारोबारियों का कहना है अगले माह नई फसल आने वाली है, ऐसे में लहसुन की कीमतों में और गिरावट के आसार हैं। वहीं दूसरी ओर लहसुन के निर्यात में बढ़ोतरी जारी है। चालू वित्त वर्ष में अक्टूबर तक लहसुन का निर्यात दोगुने से अधिक बढ़ा है।लहसुन कारोबारी संघ आजादपुर के अध्यक्ष सुरेन्द्र बाबू ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा कि बीते एक सप्ताह के दौरान लहसुन की आवक सुधरी है। इस वजह से इसके थोक भाव में गिरावट आई है। लहसुन कारोबारी सन्नी सिंह भी लहसुन के दाम घटने की बात से इत्तेफाक रखते हैं। वे बताते है कि पिछले एक सप्ताह के दौरान लहसुन के थोक भाव 40 रुपये घटकर 160-170 रुपये प्रति किलो रह गए है। सिंह का कहना है कि इस दौरान लहसुन की आवक 3-4 गाडिय़ों से बढ़कर 7-8 गाड़ी दैनिक हो गई है। इस वजह से ही लहसुन की कीमतों में गिरावट आई है। वहीं दूसरी ओर थोक भाव घटने के बावजूद खुदरा बाजार में इसके दाम 300 रुपये प्रति किलो बने हुए हैं।लहसुन की कीमतों में राहत मिलने के बारे में राष्टï्रीय बागवानी अनुसंधान एवं विकास फाउंडेशन के निदेशक आर पी गुप्ता का कहना है कि अगले माह लहसुन की नई फसल बाजार में आ जाएगी। ऐसे में उपभोक्ताओं को लहसुन की महंगाई से राहत मिलने की उम्मीद है। लहसुन कारोबारी हरीश कुमार भी अगले माह लहसुन के दाम और घटने की बात कहते हैं। मालूम हो कि लहसुन की पैदावार में कमी और अधिक निर्यात के कारण पिछले साल के मुकाबले लहसुन के दाम तीन गुने तक बढ़ चुके हैं। लहसुन की निर्यात में बढ़ोतरी अभी भी जारी है। भारतीय मसाला बोर्ड के मुताबिक वित्त वर्ष 2010-11 में अप्रैल-अक्टूबर अवधि के दौरान 57.98 करोड़ रुपये मूल्य के 15,250 टन लहसुन का निर्यात हुआ है, पिछले साल की समान अवधि में 17.14 करोड़ रुपये मूल्य का 6,725 टन लहसुन निर्यात हुआ था। इस तरह इस अवधि में लहसुन के निर्यात में मूल्य के आधार पर 238 फीसदी और मात्रा के लिहाज से 127 फीसदी का इजाफा हुआ है। गुप्ता का कहना है कि मार्च महीने में अधिक गर्मी के कारण लहसुन की फसल को काफी नुकसान हुआ था, जिससे लहसुन की पैदावार में 20 फीसदी तक की गिरावट आई है। देश में सबसे अधिक मध्य प्रदेश में लहसुन की खेती की जाती है। इसके अलावा राजस्थान, गुजरात और उत्तर प्रदेश अन्य मुख्य लहसुन उत्पादक राज्य है। (BS Hindi)
प्याज की कीमतों में गिरावट के बाद अब लहसुन की कीमतों में भी कमी आने लगी है। एक सप्ताह के दौरान लहसुन के थोक भाव 30-40 रुपये प्रति किलोग्राम घट चुके हैं। थोक कीमतें घटने के बावजूद इसके खुदरा भाव अभी भी तेज बने हुए हैं। ऐसे में ग्राहकों को अभी भी लहसुन की महंगाई से राहत नहीं मिल सकी है। कारोबारियों का कहना है अगले माह नई फसल आने वाली है, ऐसे में लहसुन की कीमतों में और गिरावट के आसार हैं। वहीं दूसरी ओर लहसुन के निर्यात में बढ़ोतरी जारी है। चालू वित्त वर्ष में अक्टूबर तक लहसुन का निर्यात दोगुने से अधिक बढ़ा है।लहसुन कारोबारी संघ आजादपुर के अध्यक्ष सुरेन्द्र बाबू ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा कि बीते एक सप्ताह के दौरान लहसुन की आवक सुधरी है। इस वजह से इसके थोक भाव में गिरावट आई है। लहसुन कारोबारी सन्नी सिंह भी लहसुन के दाम घटने की बात से इत्तेफाक रखते हैं। वे बताते है कि पिछले एक सप्ताह के दौरान लहसुन के थोक भाव 40 रुपये घटकर 160-170 रुपये प्रति किलो रह गए है। सिंह का कहना है कि इस दौरान लहसुन की आवक 3-4 गाडिय़ों से बढ़कर 7-8 गाड़ी दैनिक हो गई है। इस वजह से ही लहसुन की कीमतों में गिरावट आई है। वहीं दूसरी ओर थोक भाव घटने के बावजूद खुदरा बाजार में इसके दाम 300 रुपये प्रति किलो बने हुए हैं।लहसुन की कीमतों में राहत मिलने के बारे में राष्टï्रीय बागवानी अनुसंधान एवं विकास फाउंडेशन के निदेशक आर पी गुप्ता का कहना है कि अगले माह लहसुन की नई फसल बाजार में आ जाएगी। ऐसे में उपभोक्ताओं को लहसुन की महंगाई से राहत मिलने की उम्मीद है। लहसुन कारोबारी हरीश कुमार भी अगले माह लहसुन के दाम और घटने की बात कहते हैं। मालूम हो कि लहसुन की पैदावार में कमी और अधिक निर्यात के कारण पिछले साल के मुकाबले लहसुन के दाम तीन गुने तक बढ़ चुके हैं। लहसुन की निर्यात में बढ़ोतरी अभी भी जारी है। भारतीय मसाला बोर्ड के मुताबिक वित्त वर्ष 2010-11 में अप्रैल-अक्टूबर अवधि के दौरान 57.98 करोड़ रुपये मूल्य के 15,250 टन लहसुन का निर्यात हुआ है, पिछले साल की समान अवधि में 17.14 करोड़ रुपये मूल्य का 6,725 टन लहसुन निर्यात हुआ था। इस तरह इस अवधि में लहसुन के निर्यात में मूल्य के आधार पर 238 फीसदी और मात्रा के लिहाज से 127 फीसदी का इजाफा हुआ है। गुप्ता का कहना है कि मार्च महीने में अधिक गर्मी के कारण लहसुन की फसल को काफी नुकसान हुआ था, जिससे लहसुन की पैदावार में 20 फीसदी तक की गिरावट आई है। देश में सबसे अधिक मध्य प्रदेश में लहसुन की खेती की जाती है। इसके अलावा राजस्थान, गुजरात और उत्तर प्रदेश अन्य मुख्य लहसुन उत्पादक राज्य है। (BS Hindi)
गैर-शुल्क पाबंदी के खिलाफ बांग्लादेश
भुवनेश्वर December 27, 2010
बांग्लादेश ने भारत में जूट की बोरी बेचे जाने पर गैर शुल्क पाबंदी लगाए जाने का विरोध किया है। बांग्लादेश ने इसके लिए विदेश मंत्रालय से आग्रह किया गया है कि बांग्लादेश में तैयार जूट की बोरी की भारतीय बाजारों में बिक्री पर लगाई गई पाबंदी हटाई जाए। बांग्लादेश ने यह भी कहा है कि भारत में तैयार जूट की बोरी को बाजार में लाने के लिए इस तरह की पाबंदी का सामना नहीं करना पड़ता है और न ही बांग्लादेश की सरकार ने इस तरह की शर्त लगाई हैे। भारत सरकार ने कुछ दिन पहले अपने एक आदेश में कहा था कि बांग्लादेश में तैयार होने वाले जूट की बोरी में तेल का अंश मात्रा 3 फीसदी से ज्यादा न हो। लेकिन यह पाया गया कि भारतीय बाजार में बिक रहे बांग्लादेशी जूट की बोरी में तेल का अंश 6 फीसदी से भी ज्यादा है। बताया जाता है कि भारत सरकार ने यह पाबंदी घरेलू जूट उद्योग को संरक्षण देने की नीति के तहत लगाई है। ताकि बांग्लादेश से जूट की बोरी के आयात को हतोत्साहित किया जा सके। सरकार ने घरेलू जूट उद्योग के संरक्षण के लिए विशेष तौर पर जूट पैकेजिंग मैनडेटरी एक्ट (जेपीएमए) 1987 में भी कुछ बदलाव किए गए। नियम के तहत देश में खाद्यान्न और चीनी जैसी खाद्य वस्तुओं की पैकेजिंग जूट की बोरी में ही करने का प्रावधान किया गया। ताकि देश में निर्मित जूट की बोरी की बिक्री बढ़ सके। बांग्लादेश ने शिकायत की है कि जूट की बोरी में ऑयल कंटेंट की मात्रा को घटाकर 3 फीसदी तक सीमित करना बांग्लादेश के जूट निर्माताओं के लिए संभव नहीं है। बांंग्लादेश का कहना है भारत सरकार केवल बांग्लादेश से जूट आयात को हतोत्साहित करने के लिए इस तरह का कदम उठा रही है। हालांकि भारत के जूट आयुक्त ने बांग्लादेश के इस तरह के आरोपों को मानने से इनकार कर दिया है। बिनोद किस्पोट्टïा का कहना है, 'भारत में तैयार सभी तरह के जूट उत्पाद भारतीय मानक ब्यूरो के मानदंडों के अनुरूप होते हैं। इसके अलावा भारत सरकार बांग्लादेश की तरह जूट उत्पाद निर्यातकों को 10 फीसदी की नकद सब्सिडी नहीं देती है।Ó बांग्लादेश सरकार जूट उत्पाद निर्यातकों को नकद सब्सिडी देती है जिसके चलते वे अंतरराष्टï्रीय बाजारों में इसकी बिक्री पर भारी छूट की पेशकश करते हैं। जूट मिल संघ के पदाधिकारी भी मानते हैं कि बांग्लादेशी जूट की बोरी के चलते भारतीय जूट की बोरी की बिक्री प्रभावित हो रही है। (BS Hindi)
बांग्लादेश ने भारत में जूट की बोरी बेचे जाने पर गैर शुल्क पाबंदी लगाए जाने का विरोध किया है। बांग्लादेश ने इसके लिए विदेश मंत्रालय से आग्रह किया गया है कि बांग्लादेश में तैयार जूट की बोरी की भारतीय बाजारों में बिक्री पर लगाई गई पाबंदी हटाई जाए। बांग्लादेश ने यह भी कहा है कि भारत में तैयार जूट की बोरी को बाजार में लाने के लिए इस तरह की पाबंदी का सामना नहीं करना पड़ता है और न ही बांग्लादेश की सरकार ने इस तरह की शर्त लगाई हैे। भारत सरकार ने कुछ दिन पहले अपने एक आदेश में कहा था कि बांग्लादेश में तैयार होने वाले जूट की बोरी में तेल का अंश मात्रा 3 फीसदी से ज्यादा न हो। लेकिन यह पाया गया कि भारतीय बाजार में बिक रहे बांग्लादेशी जूट की बोरी में तेल का अंश 6 फीसदी से भी ज्यादा है। बताया जाता है कि भारत सरकार ने यह पाबंदी घरेलू जूट उद्योग को संरक्षण देने की नीति के तहत लगाई है। ताकि बांग्लादेश से जूट की बोरी के आयात को हतोत्साहित किया जा सके। सरकार ने घरेलू जूट उद्योग के संरक्षण के लिए विशेष तौर पर जूट पैकेजिंग मैनडेटरी एक्ट (जेपीएमए) 1987 में भी कुछ बदलाव किए गए। नियम के तहत देश में खाद्यान्न और चीनी जैसी खाद्य वस्तुओं की पैकेजिंग जूट की बोरी में ही करने का प्रावधान किया गया। ताकि देश में निर्मित जूट की बोरी की बिक्री बढ़ सके। बांग्लादेश ने शिकायत की है कि जूट की बोरी में ऑयल कंटेंट की मात्रा को घटाकर 3 फीसदी तक सीमित करना बांग्लादेश के जूट निर्माताओं के लिए संभव नहीं है। बांंग्लादेश का कहना है भारत सरकार केवल बांग्लादेश से जूट आयात को हतोत्साहित करने के लिए इस तरह का कदम उठा रही है। हालांकि भारत के जूट आयुक्त ने बांग्लादेश के इस तरह के आरोपों को मानने से इनकार कर दिया है। बिनोद किस्पोट्टïा का कहना है, 'भारत में तैयार सभी तरह के जूट उत्पाद भारतीय मानक ब्यूरो के मानदंडों के अनुरूप होते हैं। इसके अलावा भारत सरकार बांग्लादेश की तरह जूट उत्पाद निर्यातकों को 10 फीसदी की नकद सब्सिडी नहीं देती है।Ó बांग्लादेश सरकार जूट उत्पाद निर्यातकों को नकद सब्सिडी देती है जिसके चलते वे अंतरराष्टï्रीय बाजारों में इसकी बिक्री पर भारी छूट की पेशकश करते हैं। जूट मिल संघ के पदाधिकारी भी मानते हैं कि बांग्लादेशी जूट की बोरी के चलते भारतीय जूट की बोरी की बिक्री प्रभावित हो रही है। (BS Hindi)
चीनी ने किया वायदा, हो गया हर कोई फिदा
मुंबई 12 27, 2010
करीब डेढ़ साल के प्रतिबंध के बाद आज से देश के दो प्रमुख जिंस एक्सचेंजों पर शुरू हुए चीनी वायदा कारोबार ने बेहतरीन आगाज किया। एमसीएक्स और एनसीडीईएक्स पर जनवरी, फरवरी और मार्च वायदा अनुबंध चालू किए गए। कारोबार के पहले ही दिन एमसीएक्स में 29.89 करोड़ रुपये और एनसीडीईएक्स में 1,884 करोड़ रुपये का कारोबार हुआ। एमसीएक्स पर चीनी (एम-30) में दोबारा वायदा शुरू हुआ और 9240 टन चीनी की खरीदफरोख्त हुई। कृषि जिंस कारोबार में दिग्गज एक्सचेंज एनसीडीईएक्स पर 1,884 करोड़ रुपये की चीनी खरीदी बेची गई। एनसीडीईएक्स में चीनी का जनवरी वायदा 3,049 रुपये पर खुलकर 3,044 रुपये पर बंद हुआ। फरवरी अनुबंध 3,140 रुपये पर खुलकर 3,107 रुपये पर बंद हुआ और मार्च अनुबंध 3,150 रुपये पर खुलकर 3,160 रुपये पर बंद हुआ। एनसीडीईएक्स पर जनवरी और फरवरी के लिए वायदा अनुबंध गिरावट के साथ बंद हुए। उधर एमसीएक्स में चीनी के जनवरी वायदा में 164 रुपये की बढ़त रही और भाव 3,214 रुपये प्रति क्विंटल पर पहुंचा, फरवरी वायदा 158 रुपये चढ़कर 3,268 रुपये और मार्च वायदा 137 रुपये बढ़कर 3,307 रुपये पर पहुंचा।चीनी वायदा कारोबार पर एमसीएक्स के उप प्रबंध निदेशक प्रवीण के सिंघल ने बताया कि चीनी के वायदा भाव और हाजिर बाजार के मूल्यों में काफी समानता है। एक्सचेंज पर मांग एवं आपूर्ति का सीधा असर दिखता है इसीलिए घरेलू उद्योग को चीनी के सही भाव पता चल जाते हैं। उन्होंने कहा, 'मुझे उम्मीद है कि चीनी वायदा शुरू होने से कारोबारियों को फायदा होगा।Óक्या हैं खासियतचीनी एम-30 के अनुबंधों की खास विशेषताएं हैं। इसकी ट्रेडिंग इकाई 10 टन और अधिकतम ऑर्डर साइज 500 टन और टिक साइज 1 रुपये है। दैनिक घटबढ़ की सीमा 3 फीसदी है और अधिकतम उतार-चढ़ाव होने पर 15 मिनट का ही विराम होता है।एमसीएक्स का प्रमुख आपूर्ति केंद्र दिल्ली है और मुजफ्फरनगर, कानपुर, सीतापुर, गोरखपुर, लुधियाना, कोलकाता में अतिरिक्त आपूर्ति केंद्र हैं। एनसीडीईएक्स का प्रमुख आपूर्ति केंद्र कोल्हापुर है और अहमदाबाद, बेलगाम, चेन्नई, दिल्ली, ईरोड, गोरखपुर, इंदौर, कानपुर, जयपुर, कोलकाता, मुजफ्फरनगर, विजयवाड़ा, पुणे और सीतापुर अतिरिक्त आपूर्ति केंद्र हैं।वायदा बाजार आयोग के अध्यक्ष बी सी खटुआ के अनुसार इस साल एक अक्टूबर से शुरू हुए चीनी वर्ष में अच्छी उपज के अनुमान के कारण चीनी वायदा कारोबार को फिर से शुरू करने की अनुमति दी गई है। यह मंजूरी इस साल जनवरी से जून तक छह सौदों के लिए दी गई है। दरअसल 2009 में चीनी के दाम में आई तेजी पर काबू करने के लिए सरकार ने इसके वायदा कारोबार पर रोक लगा दी थी। सरकारी अनुमान के अनुसार इस साल करीब 50.80 लाख हेक्टेयर में गन्ने की बुआई हुई है जबकि पिछले साल 42.02 लाख हेक्टेयर में गन्ने की बुआई हुई थी। अच्छी फसल देखते हुए अनुमान लगाया जा रहा है कि इस बार चीनी का उत्पादन 240-250 लाख टन होगा जबकि पिछले साल 188 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ था। (BS Hindi)
करीब डेढ़ साल के प्रतिबंध के बाद आज से देश के दो प्रमुख जिंस एक्सचेंजों पर शुरू हुए चीनी वायदा कारोबार ने बेहतरीन आगाज किया। एमसीएक्स और एनसीडीईएक्स पर जनवरी, फरवरी और मार्च वायदा अनुबंध चालू किए गए। कारोबार के पहले ही दिन एमसीएक्स में 29.89 करोड़ रुपये और एनसीडीईएक्स में 1,884 करोड़ रुपये का कारोबार हुआ। एमसीएक्स पर चीनी (एम-30) में दोबारा वायदा शुरू हुआ और 9240 टन चीनी की खरीदफरोख्त हुई। कृषि जिंस कारोबार में दिग्गज एक्सचेंज एनसीडीईएक्स पर 1,884 करोड़ रुपये की चीनी खरीदी बेची गई। एनसीडीईएक्स में चीनी का जनवरी वायदा 3,049 रुपये पर खुलकर 3,044 रुपये पर बंद हुआ। फरवरी अनुबंध 3,140 रुपये पर खुलकर 3,107 रुपये पर बंद हुआ और मार्च अनुबंध 3,150 रुपये पर खुलकर 3,160 रुपये पर बंद हुआ। एनसीडीईएक्स पर जनवरी और फरवरी के लिए वायदा अनुबंध गिरावट के साथ बंद हुए। उधर एमसीएक्स में चीनी के जनवरी वायदा में 164 रुपये की बढ़त रही और भाव 3,214 रुपये प्रति क्विंटल पर पहुंचा, फरवरी वायदा 158 रुपये चढ़कर 3,268 रुपये और मार्च वायदा 137 रुपये बढ़कर 3,307 रुपये पर पहुंचा।चीनी वायदा कारोबार पर एमसीएक्स के उप प्रबंध निदेशक प्रवीण के सिंघल ने बताया कि चीनी के वायदा भाव और हाजिर बाजार के मूल्यों में काफी समानता है। एक्सचेंज पर मांग एवं आपूर्ति का सीधा असर दिखता है इसीलिए घरेलू उद्योग को चीनी के सही भाव पता चल जाते हैं। उन्होंने कहा, 'मुझे उम्मीद है कि चीनी वायदा शुरू होने से कारोबारियों को फायदा होगा।Óक्या हैं खासियतचीनी एम-30 के अनुबंधों की खास विशेषताएं हैं। इसकी ट्रेडिंग इकाई 10 टन और अधिकतम ऑर्डर साइज 500 टन और टिक साइज 1 रुपये है। दैनिक घटबढ़ की सीमा 3 फीसदी है और अधिकतम उतार-चढ़ाव होने पर 15 मिनट का ही विराम होता है।एमसीएक्स का प्रमुख आपूर्ति केंद्र दिल्ली है और मुजफ्फरनगर, कानपुर, सीतापुर, गोरखपुर, लुधियाना, कोलकाता में अतिरिक्त आपूर्ति केंद्र हैं। एनसीडीईएक्स का प्रमुख आपूर्ति केंद्र कोल्हापुर है और अहमदाबाद, बेलगाम, चेन्नई, दिल्ली, ईरोड, गोरखपुर, इंदौर, कानपुर, जयपुर, कोलकाता, मुजफ्फरनगर, विजयवाड़ा, पुणे और सीतापुर अतिरिक्त आपूर्ति केंद्र हैं।वायदा बाजार आयोग के अध्यक्ष बी सी खटुआ के अनुसार इस साल एक अक्टूबर से शुरू हुए चीनी वर्ष में अच्छी उपज के अनुमान के कारण चीनी वायदा कारोबार को फिर से शुरू करने की अनुमति दी गई है। यह मंजूरी इस साल जनवरी से जून तक छह सौदों के लिए दी गई है। दरअसल 2009 में चीनी के दाम में आई तेजी पर काबू करने के लिए सरकार ने इसके वायदा कारोबार पर रोक लगा दी थी। सरकारी अनुमान के अनुसार इस साल करीब 50.80 लाख हेक्टेयर में गन्ने की बुआई हुई है जबकि पिछले साल 42.02 लाख हेक्टेयर में गन्ने की बुआई हुई थी। अच्छी फसल देखते हुए अनुमान लगाया जा रहा है कि इस बार चीनी का उत्पादन 240-250 लाख टन होगा जबकि पिछले साल 188 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ था। (BS Hindi)
गुड़ से हो गया मुंह मीठा
नई दिल्ली 12 27, 2010
पिछले साल मंहगे दाम के कारण गुड़ का जायका आम आदमी के लिए कड़वा हो गया था। लेकिन इस साल गन्ने की बेहतर उपज से गुड़ का उत्पादन बढ़ा है और उसके दाम में खासी कमी आई है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की तमाम गुड़ मंडियों में भाव नरम चल रहे हैं।मुजफ्फरनगर गुड़ मंडी में तमाम कारोबारी भाव कम होने की तसदीक करते हैं। पिछले साल अव्वल दर्जे के चाकू गुड़ का दाम यहां 1,000 रुपये प्रति 40 किलोग्राम था। लेकिन इस साल यह 920 से 940 रुपये प्रति 40 किलो के दायरे में हैं। गुड़ कारोबारी रोशन लाल कहते हैं, 'इस साल गुड़ का उत्पादन बेहतर हुआ है और आगे भी यही रुख देखने को मिलेगा। हालांकि मंडी में गुड़ की आवक उत्पादन की तुलना में नहीं बढ़ी है।Óगुड़ के भाव में नरमी की सबसे बड़ी वजह गन्ने की बंपर पैदावार है। बिजनौर के गन्ना किसान सत्येंद्र सिंह कहते हैं, 'पिछले साल चीनी और गुड़ के दाम आसमान पर थे और किसानों को गन्ने के 300 रुपये प्रति क्विंटल तक दाम मिले थे। इसीलिए किसानों ने इस बार अधिक गन्ना बोया था।Ó लेकिन पिछले साल के मुकाबले 20 से 25 फीसदी बढ़े रकबे ने किसानों को बेहतर दाम मिलने की उम्मीद पर पानी फेर दिया। पिछले साल किसानों ने 285 रुपये प्रति क्विंटल गन्ना बेचा और इस साल मिलें 205 रुपये प्रति क्विंटल ही दे रही हैं।एक अन्य गन्ना किसान नरेश चौहान कहते हैं, 'फिलहाल गन्ने की आपूर्ति अच्छी है लेकिन 15 जनवरी के बाद फिर मिलों और कोल्हुओं में होड़ दिखेगी।Ó कोल्हू भी इस साल 200 से 220 रुपये प्रति क्विंटल का भाव दे रहे हैं। मुजफ्फरनगर में 3,000 से ज्यादा कोल्हू हैं और करीब 11 चीनी मिलें हैं। चीनी मिलों को भी इस साल गन्ने की अच्छी आपूर्ति हो रही है। शहर के चीनी कारोबारी सुधीर गोयल कहते हैं, 'पिछले साल बेहतरीन चीनी का भाव इसी अवधि में 3,100 से 4,000 रुपये प्रति क्विंटल था जो अभी 2,950 से 3,000 रुपये प्रति क्विंटल चल रहा है।Óमुजफ्फरनगर के अलावा सहारनपुर, मेरठ, बिजनौर, मुरादाबाद और ज्योतिबा फुले नगर जैसे जिलों में भारी संख्या में कोल्हू चल रहे हैं। उम्मीद की जा रही है कि पिछले साल के मुकाबले इस साल 15से 20 फीसदी अधिक गुड़ होगा। (BS Hindi)
पिछले साल मंहगे दाम के कारण गुड़ का जायका आम आदमी के लिए कड़वा हो गया था। लेकिन इस साल गन्ने की बेहतर उपज से गुड़ का उत्पादन बढ़ा है और उसके दाम में खासी कमी आई है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की तमाम गुड़ मंडियों में भाव नरम चल रहे हैं।मुजफ्फरनगर गुड़ मंडी में तमाम कारोबारी भाव कम होने की तसदीक करते हैं। पिछले साल अव्वल दर्जे के चाकू गुड़ का दाम यहां 1,000 रुपये प्रति 40 किलोग्राम था। लेकिन इस साल यह 920 से 940 रुपये प्रति 40 किलो के दायरे में हैं। गुड़ कारोबारी रोशन लाल कहते हैं, 'इस साल गुड़ का उत्पादन बेहतर हुआ है और आगे भी यही रुख देखने को मिलेगा। हालांकि मंडी में गुड़ की आवक उत्पादन की तुलना में नहीं बढ़ी है।Óगुड़ के भाव में नरमी की सबसे बड़ी वजह गन्ने की बंपर पैदावार है। बिजनौर के गन्ना किसान सत्येंद्र सिंह कहते हैं, 'पिछले साल चीनी और गुड़ के दाम आसमान पर थे और किसानों को गन्ने के 300 रुपये प्रति क्विंटल तक दाम मिले थे। इसीलिए किसानों ने इस बार अधिक गन्ना बोया था।Ó लेकिन पिछले साल के मुकाबले 20 से 25 फीसदी बढ़े रकबे ने किसानों को बेहतर दाम मिलने की उम्मीद पर पानी फेर दिया। पिछले साल किसानों ने 285 रुपये प्रति क्विंटल गन्ना बेचा और इस साल मिलें 205 रुपये प्रति क्विंटल ही दे रही हैं।एक अन्य गन्ना किसान नरेश चौहान कहते हैं, 'फिलहाल गन्ने की आपूर्ति अच्छी है लेकिन 15 जनवरी के बाद फिर मिलों और कोल्हुओं में होड़ दिखेगी।Ó कोल्हू भी इस साल 200 से 220 रुपये प्रति क्विंटल का भाव दे रहे हैं। मुजफ्फरनगर में 3,000 से ज्यादा कोल्हू हैं और करीब 11 चीनी मिलें हैं। चीनी मिलों को भी इस साल गन्ने की अच्छी आपूर्ति हो रही है। शहर के चीनी कारोबारी सुधीर गोयल कहते हैं, 'पिछले साल बेहतरीन चीनी का भाव इसी अवधि में 3,100 से 4,000 रुपये प्रति क्विंटल था जो अभी 2,950 से 3,000 रुपये प्रति क्विंटल चल रहा है।Óमुजफ्फरनगर के अलावा सहारनपुर, मेरठ, बिजनौर, मुरादाबाद और ज्योतिबा फुले नगर जैसे जिलों में भारी संख्या में कोल्हू चल रहे हैं। उम्मीद की जा रही है कि पिछले साल के मुकाबले इस साल 15से 20 फीसदी अधिक गुड़ होगा। (BS Hindi)
देश में तेजी से बढ़ेगी एल्युमीनियम की मांग
December 27, 2010
भारत के खनन मंत्री बी के हांडिक और विश्व की सबसे बड़ी एल्युमीनियम उत्पादक कंपनी एल्कोआ के सीईओ क्लाउस क्लेनफेल्ड द्वारा एल्युमीनियम की दीर्घकालिक मांग और इसकी कीमतों को लेकर दिए गए बयान की समानता को कोई भी आदमी आसानी से समझ सकता है। दोनों का स्पष्टï रूप से मानना है कि वर्ष 2020 तक एल्युमीनियम की मांग में लगातार वृद्घि होगी। हालांकि इसकी कम भार की गुणवत्ता, आघातवर्धनीयता और फिर से तैयार करने की विशेषता के चलते यह बहुत हद तक आगे बढ़ती मांग और आपूर्ति के बीच संतुलन बनाने में कामयाब होगा। भारत के पास विश्व में पांचवां सबसे बड़ा बॉक्साइट का भंडार है। इसमें करीब 3 अरब टन बॉक्साइट का है, जिसमें से 2.5 अरब टन फिर से इस्तेमाल होने वाले संसाधन भी शामिल है। इसके बावजूद यहां प्रति व्यक्ति एल्युमीनियम की खपत काफी कम 1.3 टन है। इसे अच्छी बात नहीं कह सकते। दूसरी तरफ, देश की आर्थिक वृद्घि दर दहाई अंकों में पहुंच चुकी है। यानी देश में एल्युमीनियम का पर्याप्त इस्तेमाल अभी भी नहीं हो पा रहा है। इसकी तुलना में चीन की स्थिति थोड़ी अलग है। चीनी अर्थव्यवस्था की तेज रफ्तार में इन्फ्रास्ट्रक्चर और निर्माण क्षेत्र की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इन क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर धातुओं का इस्तेमाल हो रहा है। बी के हांडिक का कहना है कि बढ़ती मांग को देखते हुए देश में एल्युमीनियम का उत्पादन वर्ष 2015 तक बढ़कर 50 लाख टन तक पहुंचने का अनुमान है जो इस समय केवल 13 लाख टन के आस-पास है। वह इस बात को लेकर आश्वस्त हैं कि मांग की तुलना में इसकी आपूर्ति में कोई कमी नहीं रहेगी। उनका कहना है कि दो प्रमुख क्षेत्रों में एल्युमीनियम की मांग में भारी वृद्घि का अनुमान है। एक तो बिजली क्षेत्र में आज भी एल्युमीनियम की सबसे ज्यादा खपत होती है जबकि आगे इस क्षेत्र के विस्तार से एल्युमीनियम की मांग में और इजाफा होगा। इसके अलावा ट्रांसपोर्ट सेक्टर में भी इसकी खपत बढऩे का अनुमान है। न्यूक्लियर पावर प्लांट स्थापित करने और स्थानीय स्तर पर एयरक्राफ्ट तैयार करने जैसी हमारी महत्वाकांक्षी योजना में बड़े पैमाने पर एल्युमीनियम का उपयोग बढ़ेगा। क्लेनफेल्ड का भी मानना है कि एयरोस्पेस जैसे उभरते क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर एल्युमीनियम की मांग बढ़ेगी। अब सवाल यह उठता है कि अगले पांच साल में भारत में 50 लाख टन एल्युमीनियम का उत्पादन कैसे संभव होगा। एल्युमीनियम जैसी जरूरी धातु के लिए बॉक्साइट खनिज को लंबे समय तक के लिए संरक्षित रखने की जरूरत है। हालांकि ज्यादा एल्युमीनियम उत्पादन की आड़ में बॉक्साइट खनन के बेजा इस्तेमाल का भी खतरा है। वैसे बॉक्साइट खनन के आवंटन और पर्यावरण संबंधी मंजूरी को लेकर सरकारी या निजी क्षेत्र के निवेशकों को भारी परेशाानी का सामना करना पड़ता है। उल्लेखनीय है कि हाल ही में नियमगिरी बॉक्साइट खनन को लेकर वेदांता समूह इसका शिकार हो चुका है। इसके अलावा अन्य खनन परियोजनाओं को पर्यावरण मंत्रालय से मंजूरी मिलने की इंतजार है। ऐसे में इस क्षेत्र में निवेश को लेकर थोड़ी-बहुत बाधाएं भी हैं। एल्युमीनियम उत्पादन के क्षेत्र में हिंडाल्को बड़े पैमाने पर निवेश कर रही है। हिंडाल्को के चेयरमैन कुमार मंगलम बिड़ला का कहना है कि कंपनी करीब 40,000 करोड़ रुपये का निवेश कर लगभग 18 लाख टन एल्युमीनियम उत्पादन क्षमता का निर्माण कर रही है। सरकारी क्षेत्र की नैशनल एल्युमीनियम कंपनी (नाल्को) ने अपनी क्षमता विस्तार योजना को स्थगित कर दिया है। कंपनी देश के अलावा विदेशों में उत्पादन क्षमता बढ़ाने की योजना बना रही थी। हालांकि नाल्को के निदेशक बीएल बागरा का मानना है कि तीसरे चरण के विस्तार के लिए हमें कुछ बुनियादी चीजों पर ध्यान देना होगा। खनन मंत्री हांडिक के अनुसार देश को 2020 तक कम से कम 1 करोड़ टन एल्युमीनियम की जरूरत होगी। उन्होंने कहा कि मांग के अनुरूप एल्युमीनियम की आपूर्ति के लिए हमें घरेलू स्तर पर इसका उत्पादन बढ़ाने पर जोर देना होगा। देश ज्यादातर बॉक्साइट की खानें उड़ीस और इसके बाद आंध्र प्रदेश में स्थित है। इन राज्यों में एल्युमीनियम उत्पादन बढ़ाने के लिए सुविधाओं का विस्तार हो रहा है। वैश्विक मंदी के पूर्व जुलाई 2008 में एल्युमीनियम की कीमतों में रिकॉर्ड तेजी आई थी। हालांकि मंदी के दौरान इन्फ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित होने से एल्यूमीनियम की मांग में भारी कमी आने से कीमतों में थोड़ी गिरावट आई। जुलाई 2008 के उच्च स्तर की तुलना में इस समय एल्युमीनियम के दामों में तकरीबन 30 फीसदी की कमी आ चुकी है। (BS Hindi)
भारत के खनन मंत्री बी के हांडिक और विश्व की सबसे बड़ी एल्युमीनियम उत्पादक कंपनी एल्कोआ के सीईओ क्लाउस क्लेनफेल्ड द्वारा एल्युमीनियम की दीर्घकालिक मांग और इसकी कीमतों को लेकर दिए गए बयान की समानता को कोई भी आदमी आसानी से समझ सकता है। दोनों का स्पष्टï रूप से मानना है कि वर्ष 2020 तक एल्युमीनियम की मांग में लगातार वृद्घि होगी। हालांकि इसकी कम भार की गुणवत्ता, आघातवर्धनीयता और फिर से तैयार करने की विशेषता के चलते यह बहुत हद तक आगे बढ़ती मांग और आपूर्ति के बीच संतुलन बनाने में कामयाब होगा। भारत के पास विश्व में पांचवां सबसे बड़ा बॉक्साइट का भंडार है। इसमें करीब 3 अरब टन बॉक्साइट का है, जिसमें से 2.5 अरब टन फिर से इस्तेमाल होने वाले संसाधन भी शामिल है। इसके बावजूद यहां प्रति व्यक्ति एल्युमीनियम की खपत काफी कम 1.3 टन है। इसे अच्छी बात नहीं कह सकते। दूसरी तरफ, देश की आर्थिक वृद्घि दर दहाई अंकों में पहुंच चुकी है। यानी देश में एल्युमीनियम का पर्याप्त इस्तेमाल अभी भी नहीं हो पा रहा है। इसकी तुलना में चीन की स्थिति थोड़ी अलग है। चीनी अर्थव्यवस्था की तेज रफ्तार में इन्फ्रास्ट्रक्चर और निर्माण क्षेत्र की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इन क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर धातुओं का इस्तेमाल हो रहा है। बी के हांडिक का कहना है कि बढ़ती मांग को देखते हुए देश में एल्युमीनियम का उत्पादन वर्ष 2015 तक बढ़कर 50 लाख टन तक पहुंचने का अनुमान है जो इस समय केवल 13 लाख टन के आस-पास है। वह इस बात को लेकर आश्वस्त हैं कि मांग की तुलना में इसकी आपूर्ति में कोई कमी नहीं रहेगी। उनका कहना है कि दो प्रमुख क्षेत्रों में एल्युमीनियम की मांग में भारी वृद्घि का अनुमान है। एक तो बिजली क्षेत्र में आज भी एल्युमीनियम की सबसे ज्यादा खपत होती है जबकि आगे इस क्षेत्र के विस्तार से एल्युमीनियम की मांग में और इजाफा होगा। इसके अलावा ट्रांसपोर्ट सेक्टर में भी इसकी खपत बढऩे का अनुमान है। न्यूक्लियर पावर प्लांट स्थापित करने और स्थानीय स्तर पर एयरक्राफ्ट तैयार करने जैसी हमारी महत्वाकांक्षी योजना में बड़े पैमाने पर एल्युमीनियम का उपयोग बढ़ेगा। क्लेनफेल्ड का भी मानना है कि एयरोस्पेस जैसे उभरते क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर एल्युमीनियम की मांग बढ़ेगी। अब सवाल यह उठता है कि अगले पांच साल में भारत में 50 लाख टन एल्युमीनियम का उत्पादन कैसे संभव होगा। एल्युमीनियम जैसी जरूरी धातु के लिए बॉक्साइट खनिज को लंबे समय तक के लिए संरक्षित रखने की जरूरत है। हालांकि ज्यादा एल्युमीनियम उत्पादन की आड़ में बॉक्साइट खनन के बेजा इस्तेमाल का भी खतरा है। वैसे बॉक्साइट खनन के आवंटन और पर्यावरण संबंधी मंजूरी को लेकर सरकारी या निजी क्षेत्र के निवेशकों को भारी परेशाानी का सामना करना पड़ता है। उल्लेखनीय है कि हाल ही में नियमगिरी बॉक्साइट खनन को लेकर वेदांता समूह इसका शिकार हो चुका है। इसके अलावा अन्य खनन परियोजनाओं को पर्यावरण मंत्रालय से मंजूरी मिलने की इंतजार है। ऐसे में इस क्षेत्र में निवेश को लेकर थोड़ी-बहुत बाधाएं भी हैं। एल्युमीनियम उत्पादन के क्षेत्र में हिंडाल्को बड़े पैमाने पर निवेश कर रही है। हिंडाल्को के चेयरमैन कुमार मंगलम बिड़ला का कहना है कि कंपनी करीब 40,000 करोड़ रुपये का निवेश कर लगभग 18 लाख टन एल्युमीनियम उत्पादन क्षमता का निर्माण कर रही है। सरकारी क्षेत्र की नैशनल एल्युमीनियम कंपनी (नाल्को) ने अपनी क्षमता विस्तार योजना को स्थगित कर दिया है। कंपनी देश के अलावा विदेशों में उत्पादन क्षमता बढ़ाने की योजना बना रही थी। हालांकि नाल्को के निदेशक बीएल बागरा का मानना है कि तीसरे चरण के विस्तार के लिए हमें कुछ बुनियादी चीजों पर ध्यान देना होगा। खनन मंत्री हांडिक के अनुसार देश को 2020 तक कम से कम 1 करोड़ टन एल्युमीनियम की जरूरत होगी। उन्होंने कहा कि मांग के अनुरूप एल्युमीनियम की आपूर्ति के लिए हमें घरेलू स्तर पर इसका उत्पादन बढ़ाने पर जोर देना होगा। देश ज्यादातर बॉक्साइट की खानें उड़ीस और इसके बाद आंध्र प्रदेश में स्थित है। इन राज्यों में एल्युमीनियम उत्पादन बढ़ाने के लिए सुविधाओं का विस्तार हो रहा है। वैश्विक मंदी के पूर्व जुलाई 2008 में एल्युमीनियम की कीमतों में रिकॉर्ड तेजी आई थी। हालांकि मंदी के दौरान इन्फ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित होने से एल्यूमीनियम की मांग में भारी कमी आने से कीमतों में थोड़ी गिरावट आई। जुलाई 2008 के उच्च स्तर की तुलना में इस समय एल्युमीनियम के दामों में तकरीबन 30 फीसदी की कमी आ चुकी है। (BS Hindi)
अब चाय के भी मूल्य में तेजी आने की संभावना
पिछले साल चाय के मूल्य में खासी बढ़ोतरी हुई थी। बीते जून-जुलाई के दौरान उत्पादक क्षेत्रों में ज्यादा बारिश होने के कारण चाय के बागानों में कीटों का प्रकोप बढ़ गया है। इस वजह से चालू सीजन में प्रतिकूल मौसम से चाय का उत्पादन 2.6 फीसदी घटने की आशंका है। उत्पादन घटने के कारण चाय के मूल्य में तेजी की संभावना फिर बन गई है।चालू वित्त वर्ष में उत्पादन पिछले साल के 99.11 करोड़ किलो से घटकर 96.5 करोड़ किलो होने की संभावना है। जबकि निर्यातकों की अच्छी मांग को देखते हुए जनवरी से मार्च के दौरान निर्यात बढऩे की संभावना है। ऐसे में मार्च में नए सीजन के शुरू में चाय का बकाया स्टॉक कम होगा। जिससे चाय की मौजूदा कीमतों में पांच-छह फीसदी की तेजी की संभावना है। इंडियन टी एसोसिएशन के डायरेक्टर कमल वाहिदी ने बताया कि जून-जुलाई में उत्पादक क्षेत्रों में ज्यादा बारिश होने से चाय के बागानों में कीटों के प्रकोप से उत्पादन घटा है। प्रमुख उत्पादक राज्य असम के चाय बागानों में हेलोपेलटिस कीटों के आक्रमण से उत्पादन प्रभावित हुआ। उन्होंने बताया कि चालू वित्त वर्ष 2010-11 के पहले सात महीनों में 71.96 करोड़ किलो चाय का उत्पादन हुआ है जबकि पिछले साल की समान अवधि में इसका उत्पादन 74.84 करोड़ किलो का हुआ था। वित्त वर्ष 2009-10 में देश में चाय का कुल उत्पादन 99.11 करोड़ किलो का हुआ था। जयश्री टी एंड इंडस्ट्रीज लिमिटेड के वाइस प्रेसीडेंट (अपर असम) एच. जी. सिंह ने बताया कि भारी बारिश से असम में चाय की फसल पर कीटों का प्रकोप बढ़ गया था जिसकी वजह से सुपीरियर क्वालिटी की चाय के उत्पादन में कमी आई है। नवंबर तक उत्पादन का पीक सीजन होता है। इसीलिए जनवरी से मार्च तक बढिय़ा क्वालिटी की उपलब्धता कम होने से सुपीरियर क्वालिटी की चाय की कीमतों में तेजी आने की संभावना है। सुबोध ब्रदर्स प्रा. लि. के डायरेक्टर एस. दत्त ने बताया कि चाय में निर्यातकों की मांग अच्छी बनी हुई है।अंतरराष्ट्रीय बाजार में चाय का दाम आठ से दस डॉलर प्रति किलो चल रहा है। हालांकि चालू वित्त वर्ष के पहले सात महीनों में निर्यात 11.91 करोड़ किलो से घटकर 10.91 करोड़ किलो रह गया। जनवरी से मार्च के दौरान उत्पादन का ऑफ सीजन होता है जबकि निर्यात मांग बढऩे की संभावना है। इसीलिए मौजूदा कीमतों में तेजी की संभावना है।साउथ टी कंपनी के डायरेक्टर राकेश तायल ने बताया कि आगामी दिनों में सुपीरियर क्वालिटी की उपलब्धता कम रहेगी जिससे मौजूदा कीमतों में 10 से 12 रुपये प्रति किलो की तेजी आने की संभावना है। दिल्ली थोक बाजार में सुपीरियर क्वालिटी की चाय का भाव 160-175 रुपये और मीडियम क्वालिटी की चाय का भाव 120-140 रुपये प्रति किलो चल रहा है। ब्रांडेड चाय का दाम 250 से 290 रुपये प्रति किलो है। उत्पादक राज्यों में नीलामी केंद्रों पर चाय का भाव 105 से 125 रुपये प्रति किलो क्वालिटीनुसार चल रहा है।बात पते कीजनवरी से मार्च महीने के दौरान उत्पादन का ऑफ सीजन होता है जबकि निर्यात मांग बढऩे की संभावना है। इसीलिए मौजूदा कीमतों में तेजी की संभावना है।सुपीरियर क्वालिटी चाय की कीमतों में 10 से 12 रुपये प्रति किलो की तेजी आने की संभावना है। (Business Bhaskar.....R S Rana)
लाल मिर्च के भाव में गिरावट संभव
आंध्रप्रदेश के प्रमुख लाल मिर्च उत्पादक क्षेत्रों में भारी बारिश और बाढ़ से आने वाली फसल को करीब 25 से 30 फीसदी नुकसान होने की आशंका है। इसलिए मसाला निर्माताओं के साथ ही स्टॉकिस्टों की खरीद बढ़ गई है जबकि बिकवाली पहले की तुलना में कम हो गई है। ऐसे में चालू महीने में वायदा बाजार में लालमिर्च की कीमतों में करीब 40.7 फीसदी और हाजिर बाजार में 30 फीसदी की तेजी आ चुकी है। स्टॉकिस्टों की सक्रियता से मौजूदा कीमतों में चार-पांच फीसदी की और तेजी आने के बाद मुनाफावसूली से कीमतों में गिरावट आने की संभावना है। वायदा में भारी तेजी एनसीडीईएक्स पर निवेशकों की खरीद से चालू महीने में लाल मिर्च की कीमतों में 40.7फीसदी की भारी तेजी आ चुकी है। एक दिसंबर को फरवरी महीने के वायदा अनुबंध में लाल मिर्च का भाव 5,466 रुपये प्रति क्विंटल था जो शुक्रवार को बढ़कर 7,666 रुपये प्रति क्विंटल हो गया। फरवरी के वायदा अनुबंध में लालमिर्च में 4,965 लॉट के सौदे खड़े हुए हैं। एंजेल ब्रोकिंग के एग्री कमोडिटी विश£ेशक बदरुदीन ने बताया कि चालू महीने में उत्पादक क्षेत्रों में भारी बारिश और बाढ़ से फसल को नुकसान हुआ है। इसीलिए स्टॉकिस्टों के साथ मसाला निर्माताओं की तरफ से लाल मिर्च की मांग बढ़ी हुई है जिससे तेजी को बल मिला है। मौजूदा कीमतों में और भी 400-500 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी आने के बाद मुनाफावसूली से लाल मिर्च की कीमतों में गिरावट आने की आशंका है। फसल को 30फीसदी नुकसान की आशंका आंध्रप्रदेश के प्रमुख उत्पादक क्षेत्रों में भारी बारिश और बाढ़ से लाल मिर्च की आने वाली नई फसल को 25 से 30 फीसदी नुकसान होने की आशंका है। पिछले साल आंध्रप्रदेश में लाल मिर्च का उत्पादन 1.25 करोड़ बोरी (एक बोरी-40 किलो) का हुआ था। आंध्रप्रद्रेश कृषि विभाग के अनुसार चालू सीजन में लालमिर्च की बुवाई 42 हजार हैक्टेयर में हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 48 हजार हेक्टेयर में हो चुकी थी। ऊंचे भाव में निर्यात मांग घटी अशोक एंड कंपनी के डायरेक्टर अशोक दत्तानी ने बताया कि दिसंबर के शुरू तक पाकिस्तान, चीन, मलेशिया और बंगलादेश की अच्छी मांग बनी हुई थी लेकिन दाम ऊंचे होने के कारण इन देशों के आयातकों की मांग पहले की तुलना में कम हो गई है। इसीलिए लाल मिर्च की कीमतों में गिरावट आने की आशंका है। इस समय अंतरराष्ट्रीय बाजार में लाल मिर्च का भाव 2.54 डॉलर प्रति किलो चल रहा हैं। भारतीय मसाला बोर्ड के अनुसार चालू वित्त वर्ष के पहले सात महीनों (अप्रैल से अक्टूबर) के दौरान लाल मिर्च के निर्यात में 26 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। इस दौरान लाल मिर्च का निर्यात बढ़कर 1,41,000 टन का हो चुका है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 1,11,750 टन का ही निर्यात हुआ था। बकाया स्टॉक कम गुंटूर चिली मर्चेंटस एसोसिएशन के सचिव एस कोठारी ने बताया कि इस समय गुंटूर में लाल मिर्च का 15-16 लाख बोरी का स्टॉक बचा हुआ है जबकि अन्य मंडियों में करीब 8-9 लाख बोरी का स्टॉक बचा हुआ है। खराब मौसम के कारण नई फसल की आवक जनवरी के बजाए फरवरी में बनने की संभावना है। इसीलिए स्टॉकिस्टों ने बिकवाली घटा दी है। पिछले सप्ताह भर में ही लोकल स्टॉकिस्टों ने करीब डेढ़ से दो लाख बोरी की खरीद की है। मसाला निर्माताओं की मांग भी बनी हुई है इसीलिए मौजूदा कीमतों में और भी चार-पांच फीसदी की तेजी आने की संभावना है। हाजिर में 30 फीसदी की तेजी गुंटूर के थोक व्यापारी विनय बूबना ने बताया कि चालू महीने में लाल मिर्च की कीमतों में 1,500 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी आ चुकी है। 334 क्वालिटी का भाव बढ़कर 5,900-6,500 रुपये, ब्याडग़ी क्वालिटी का भाव 9,000-9,500 रुपये, तेजा क्वालिटी का 7,500-7,600 रुपये और फटकी क्वालिटी का 3,200-3,600 रुपये प्रति क्विंटल हो गया। इस समय दैनिक सौदे 35 से 40 हजार बोरी के हो रहे हैं। स्टॉकिस्टों की खरीद ज्यादा निकल रही है इसीलिए मुनाफावसूली से कीमतों में गिरावट आने की आशंका है। (Business Bhaskar....R S Rana)
चीनी वायदा में पहले ही दिन 5.44फीसदी की तेजी
चीनी के वायदा कारोबार में पहले ही दिन 5.44 फीसदी की तेजी दर्ज की गई। विदेशी बाजारों में चीनी में मजबूती का रुख रहने से ही यह तेजी संभव हो पाई। सोमवार को एमसीएक्स में जनवरी महीने के वायदा अनुबंध में 5.44 फीसदी की तेजी आई। एमसीएक्स में जनवरी महीने के वायदा अनुबंध में चीनी का भाव 3,050 रुपये प्रति क्विंटल पर खुला तथा निवेशकों की खरीद के बूते 3,216 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। हालांकि, एनसीडीईएक्स में सोमवार को जनवरी वायदा में ज्यादा कारोबार नहीं हुआ। एनसीडीईएक्स में जनवरी महीने के वायदा अनुबंध में चीनी का भाव 3,044 रुपये प्रति क्विंटल पर खुला तथा 3,047 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। सोमवार को चीनी वायदा के पहले दिन ट्रेडिंग के लिए पिछले शुक्रवार के हाजिर भाव को आधार माना गया। चालू पेराई सीजन में चीनी के उत्पादन में खासी बढ़ोतरी के आसार को देखते हुए 'एफएमसी' द्वारा इसके वायदा कारोबार को दोबारा शुरू करने की अनुमति देने के बाद एनसीडीईएक्स और एमसीएक्स में चीनी वायदा में कारोबार सोमवार से बाकायदा शुरू हो गया। डेढ़ साल तक इस पर पाबंदी के बाद एनसीडीईएक्स और एमसीएक्स में चीनी का पहला कांट्रैक्ट जनवरी महीने का शुरू हुआ है।मालूम हो कि चीनी की कीमतों में भारी तेजी को देखते हुए सरकार ने मई 2009 में चीनी के वायदा कारोबार पर 30 सितंबर 2010 तक के लिए रोक लगा दी थी। मई 2009 में घरेलू बाजार में चीनी के दाम बढ़कर 45-50 रुपये प्रति किलो से भी ऊपर चले गए थे, जबकि इस समय दाम 32-33 रुपये प्रति किलो चल रहे हैं। हालांकि, जानकारों का मानना है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में चीनी की कीमतों में भारी तेजी बनी हुई है तथा भारत सरकार ने पांच लाख टन चीनी का निर्यात 'ओजीएल' में करने का निर्णय लिया है। घरेलू बाजार में भी इस वजह से आने वाले दिनों में चीनी में तेजी का रुख रहने की संभावना है। विदेश में चीनी वर्ष 1981 के बाद के उच्चतम स्तर पर हैं। दूसरे शब्दों में, विदेश में चीनी के भाव पिछले 29 वर्षों के उच्चतम स्तर पर हैं। सोमवार को घरेलू बाजार में चीनी वायदा में तेजी इसी वजह से आई। इसके अलावा जनवरी के तीसरे सप्ताह से चीनी का निर्यात पुन: शुरू होने के मद्देनजर भी इसमें तेजी देखने को मिली। भारत में लंबे समय तक चीनी के वायदा कारोबार पर लगी रोक भी सोमवार की तेजी में सहायक साबित हुई। यह बात कर्वी कॉम ट्रेड के विश्लेषक वीरेश हिरेमथ ने कही। फॉरवर्ड मार्केट कमीशन (एफएमसी) ने हाल ही में चीनी के वायदा कारोबार को मंजूरी दी है। करीब डेढ़ साल से चीनी के वायदा कारोबार पर रोक लगी हुई थी। वैसे तो एफएमसी ने गत 1 अक्टूबर से ही चीनी के वायदा कारोबार पर लगी रोक को हटा लिया था, लेकिन एक्सचेंजों में इसके वायदा कारोबार की अनुमति उस समय नहीं दी गई थी। (Business Bhaskar......R S Rana)
मध्य जनवरी के बाद बासमती मूल्य में तेजी की संभावना
ईरान की मांग कमजोर होने से बामसती चावल के निर्यात में आठ फीसदी की कमी आई है। चालू वित्त वर्ष के पहले आठ महीनों (अप्रैल से नवंबर) के दौरान 19 लाख टन बासमती चावल निर्यात के रजिस्ट्रेशन ही हुए हैं जबकि पिछले साल की समान अवधि में 20.5 लाख टन हो चुके थे। निर्यातकों की कमजोर मांग से घरेलू बाजार में सप्ताह भर में ही बासमती चावल की कीमतों में करीब 100-150 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट आ चुकी है। हालांकि जनवरी-फरवरी में ईरान की मांग बढऩे की संभावना है साथ ही नए साल में यूरोप और अमेरिका की मांग भी बढ़ेगी। इसीलिए मौजूदा कीमतों में जनवरी मध्य के बाद तेजी की संभावना है। केआरबीएल लिमिटेड के संयुक्त प्रबंध निदेशक अनुप कुमार गुप्ता ने बताया कि बासमती चावल में ईरान की आयात मांग कमजोर है। साउदी अरब के बाद ईरान भारतीय बासमती चावल का सबसे बड़ा आयातक देश है। इसीलिए घरेलू बाजार में बासमती चावल की कीमतों में गिरावट आई है। उन्होंने बताया कि पाकिस्तान में बासमती धान की फसल को नुकसान हुआ है तथा ईरान के पास बकाया स्टॉक कम है। इसीलिए जनवरी-फरवरी में ईरान की मांग बढऩे की संभावना है। कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि चालू वित्त वर्ष के पहले आठ महीनों अप्रैल-नवंबर के दौरान 19 लाख टन बासमती चावल के निर्यात सौदों का रजिस्ट्रेशन हुआ है। जबकि पिछले साल इस समय तक 20.5 लाख टन का रजिस्ट्रेशन हो चुका था। ऑल इंडिया राइस एक्सपोर्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष विजय सेतिया ने बताया कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय बासमती चावल का एवरेज भाव 1,053 डॉलर प्रति टन है। जबकि बीतेे साल इन दिनों भाव 1,156 डॉलर प्रति टन था। पिछले साल भारत से कुल 25 लाख टन बासमती चावल का निर्यात का किया गया था। श्रीलाल महल लिमिटेड के वाईस प्रेसिडेंट डॉ. वीके भसीन ने बताया कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में पूसा-1121 सेला बासमती चावल का भाव 1,125-1,150 डॉलर और ट्रेडिशनल बासमती का भाव 1,500-1,800 डॉलर प्रति टन है। नए साल की छूट्टियॉं समाप्त होने के बाद मध्य जनवरी में अमेरिका और यूरोप के आयातकों की मांग बढ़ेगी जिससे घरेलू बाजार में बासमती चावल की कीमतों में तेजी की संभावना है। खुरानियॉ एग्रो के डायरेक्टर रामविलास खुरानियॉ ने बताया कि निर्यातकों की मांग कम होने से घरेलू बाजार में सप्ताह भर में ही पूसा-1121 बासमती चावल सेला की कीमतों में 150 रुपये की गिरावट आकर भाव 4,200 से 4,700 रुपये, कॉमन बासमती चावल के भाव 5,400 से 5,700 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। पूसा-1121 धान की कीमतों में भी 100 रुपये की गिरावट आकर भाव 2,300-2,400 रुपये और बासमती धान की कीमतें घटकर 2,600-2,800 रुपये प्रति क्विंटल रह गई।बात पते कीघरेलू बाजार में सप्ताह भर के दौरान ही पूसा-1121 बासमती चावल सेला की कीमतों में 150 रुपये की गिरावट के साथ भाव 4,200- 4,700 रुपये और कॉमन बासमती चावल के भाव 5,400- 5,700 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। (Business Bhaskar.....R S Rana)
मंत्रिसमूह करेगा महंगाई रोकने के उपाय
नई दिल्ली। बढ़ती महंगाई को काबू करने के लिए मंगलवार को केंद्र सरकार के मंत्री समूह की बैठक होगी। बैठक में इससे निपटने के उपायों पर विचार होगा।जानकारी के मुताबिक बैठक में जरूरी चीजों के बढ़ते दामों को काबू करने और चीनी पर आयात डयूटी लगाने संबंधी मुद्दों पर बात होगी। वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी की अध्यक्षता वाला समूह राशन दुकानों पर बिकने वाली चीनी का केंद्रीय निर्गम मूल्य (सीआईपी) बढ़ाने तथा चीी पर आयात शुल्क लगाने पर विचार कर सकता है। खाद्य मंत्रालय ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत बिकने वाली चीन का सीआईपी चार रूपए बढ़ाकर 17.50 रूपए प्रति किलो करने का प्रस्ताव किया है। मंत्री समूह सार्वजनिक वितरण प्रणाली तथा खुले बाजार बिक्री के लिए गेहूं तथा चावल का अतिरिक्त कोटा जारी करने पर भी विचार करेगा।पिछले कुछ दिनों में महंगाई का असर सब्जियों पर सबसे ज्यादा प़डा है। पिछले हफ्ते प्याज की रिटेल कीमत लगभक दोगुनी होकर 70 से 80 रूपए किलो तक पहुंच गई थी। टमाटर, अदरक और लहसुन के दाम भी बेतहाशा बढ़ गए। 11 दिसंबर को खत्म हुए हफ्ते में महंगाई दर 12.13 फीसदी पहुंच गई। सरकार पर इस समय महंगाई को काबू करने का काफी दबाव है। (Khas Khabar)
महंगाई पर आज मंत्री समूह करेगा माथापच्ची
लगता है बढ़ती महंगाई के मुद्दे पर विपक्ष के हमले झेल रही सरकार अब जोरशोर से महंगाई घटाने के उपायों में जुट गई है। इसी मुद्दे को लेकर दिल्ली में आज केंद्र सरकार के मंत्री समूह की बैठक होगी। इस बैठक में जरूरी चीजों के बढ़ते दामों को काबू करने और चीनी पर इम्पोर्ट ड्यूटी लगाने जैसे मुद्दों पर बात होगी। वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता वाला समूह राशन दुकानों पर बिकने वाली चीनी का केंद्रीय निर्गम मूल्य यानी सीआईपी बढ़ाने पर भी विचार कर सकता है।
इसके साथ ही मंत्री समूह सार्वजनिक वितरण प्रणाली और खुले बाजार ब्रिकी के लिए गेहूं तथा चावल का अतिरिक्त कोटा जारी करने पर भी विचार करेगा। आपको बता दें कि बीते कुछ दिनों में महंगाई का असर सब्जियों पर सबसे ज्यादा पड़ा है। पिछले हफ्ते प्याज की रीटेल कीमत लगभग दोगुनी होकर 70 से 80 रुपये किलो तक पहुंच गई थी। वहीं 11 दिसंबर को खत्म हुए हफ्ते में महंगाई दर 12.13 फीसदी पर पहुंच गई। (Dainik Bhaskar)
इसके साथ ही मंत्री समूह सार्वजनिक वितरण प्रणाली और खुले बाजार ब्रिकी के लिए गेहूं तथा चावल का अतिरिक्त कोटा जारी करने पर भी विचार करेगा। आपको बता दें कि बीते कुछ दिनों में महंगाई का असर सब्जियों पर सबसे ज्यादा पड़ा है। पिछले हफ्ते प्याज की रीटेल कीमत लगभग दोगुनी होकर 70 से 80 रुपये किलो तक पहुंच गई थी। वहीं 11 दिसंबर को खत्म हुए हफ्ते में महंगाई दर 12.13 फीसदी पर पहुंच गई। (Dainik Bhaskar)
27 दिसंबर 2010
यूरोप में बर्फबारी से महंगे हुए सोने के सिक्के
मुंबई December 26, 2010
पश्चिम भारत में कीमती धातु खरीदने के लिहाज से महत्वपूर्ण दिन गुरु पुष्य नक्षत्र गुरुवार से सोने के सिक्के की बिक्री 100 रुपये प्रति 10 ग्राम ज्यादा पर की जा रही है। इस अतिरिक्त रकम की मांग के पीछे विक्रेता तर्क दे रहे हैं कि यूरोपीय देशों में बर्फबारी की वजह से आपूर्ति का संकट पैदा हो गया है जबकि यह कमी जानबूझकर पैदा की जा रही है। हालांकि यूरोपीय देशों में विमान सेवाएं चार दिनों की बाधा के बाद पिछले शुक्रवार से बहाल हो गई है, इस वजह से त्योहारी सीजन में आपूर्ति की स्थिति सख्त रही।कारोबारी सूत्रों केमुताबिक, सोने की सिक्के की उपलब्धता में कमी है और पिछले कुछ दिनों से मांग के मुकाबले इसमें कमी आ गई है। भारतीय कारोबारी (ज्यादातर बैंक) भारत में बेचने के लिए स्विटजरलैंड निर्मित सोने के सिक्के का आयात करते हैं। एक अनुमान के मुताबिक, भारत में बेचे जाने वाले 90-95 फीसदी सोने के सिक्के की आवक स्विटजरलैंड से होती है। ऋद्धि सिद्धि बुलियन लिमिटेड के निदेशक और बॉम्बे बुलियन एसोसिएशन के अध्यक्ष पृथ्वीराज कोठारी ने बताया - अब सोने के सिक्के की आपूर्ति सामान्य हो गई है। लेकिन सिक्के खरीदने के लिहाज से महत्वपूर्ण दिन के बीतने के बाद भी इसकी मांग में तेजी बनी हुई है। उच्च कीमत की उम्मीद में वैयक्तिक ग्राहक और निवेशक सोने की सिक्के की बुकिंग कर रहे हैं, जो सोने की कुल बिक्री के 25 फीसदी के स्तर तक पहुंच गया है।कोठारी ने कहा - सोने के सिक्के की मांग हमेशा से ही तेज रही है क्योंंकि सोने की कीमत 20 हजार प्रति 10 ग्राम को पार कर गई है। अब उपभोक्ताओं को लग रहा है कि सोने की कीमत में कुछ समय तक मजबूती बनी रहेगी, इसी वजह से वे इसकी खरीद के प्रति उत्साहित हुए हैं। ज्यादातर बिक्रेताओं ने हालांकि इस अतिरिक्त रकम को बनाने का शुल्क बताया है। लेकिन इस तरह का शुल्क विक्रेता पहले नहीं वसूलते थे। ज्यादा कीमत सिर्फ और सिर्फ उपलब्धता में किल्लत के समय वसूला जाता है। मुंबई स्थित सोने के खुदरा बिक्रेता जुगराज कांतिलाल ऐंड कंपनी के साझेदार जितेंद्र जैन ने कहा - खुदरा जूलर्स से सोने के सिक्के खरीदना 100 रुपये प्रति 10 ग्राम का प्रीमियम देने के बाद भी सस्ता है। बैंक 5-6 फीसदी का प्रीमियम वसूलते हैं, जो प्रति 10 ग्राम 1000 रुपये बैठता है।क्षेत्रीय स्तर पर मनाए जाने वाले त्योहारों मसलन गुरु पुष्य नक्षत्र के मौकेपर वल्र्ड गोल्ड काउंसिल ने तीसरी तिमाही में सोने की खुदरा मांग में 28 फीसदी की तेजी की खबर दी है। डब्ल्यूजीसी का अनुमान है कि पहली तीन तिमाही में सोने की मांग साल 2008 के 750 टन के स्तर पर आ गई है। साल 2008 का यह आंकड़ा अब तक की सर्वोच्च मांग है। (BS Hindi)
पश्चिम भारत में कीमती धातु खरीदने के लिहाज से महत्वपूर्ण दिन गुरु पुष्य नक्षत्र गुरुवार से सोने के सिक्के की बिक्री 100 रुपये प्रति 10 ग्राम ज्यादा पर की जा रही है। इस अतिरिक्त रकम की मांग के पीछे विक्रेता तर्क दे रहे हैं कि यूरोपीय देशों में बर्फबारी की वजह से आपूर्ति का संकट पैदा हो गया है जबकि यह कमी जानबूझकर पैदा की जा रही है। हालांकि यूरोपीय देशों में विमान सेवाएं चार दिनों की बाधा के बाद पिछले शुक्रवार से बहाल हो गई है, इस वजह से त्योहारी सीजन में आपूर्ति की स्थिति सख्त रही।कारोबारी सूत्रों केमुताबिक, सोने की सिक्के की उपलब्धता में कमी है और पिछले कुछ दिनों से मांग के मुकाबले इसमें कमी आ गई है। भारतीय कारोबारी (ज्यादातर बैंक) भारत में बेचने के लिए स्विटजरलैंड निर्मित सोने के सिक्के का आयात करते हैं। एक अनुमान के मुताबिक, भारत में बेचे जाने वाले 90-95 फीसदी सोने के सिक्के की आवक स्विटजरलैंड से होती है। ऋद्धि सिद्धि बुलियन लिमिटेड के निदेशक और बॉम्बे बुलियन एसोसिएशन के अध्यक्ष पृथ्वीराज कोठारी ने बताया - अब सोने के सिक्के की आपूर्ति सामान्य हो गई है। लेकिन सिक्के खरीदने के लिहाज से महत्वपूर्ण दिन के बीतने के बाद भी इसकी मांग में तेजी बनी हुई है। उच्च कीमत की उम्मीद में वैयक्तिक ग्राहक और निवेशक सोने की सिक्के की बुकिंग कर रहे हैं, जो सोने की कुल बिक्री के 25 फीसदी के स्तर तक पहुंच गया है।कोठारी ने कहा - सोने के सिक्के की मांग हमेशा से ही तेज रही है क्योंंकि सोने की कीमत 20 हजार प्रति 10 ग्राम को पार कर गई है। अब उपभोक्ताओं को लग रहा है कि सोने की कीमत में कुछ समय तक मजबूती बनी रहेगी, इसी वजह से वे इसकी खरीद के प्रति उत्साहित हुए हैं। ज्यादातर बिक्रेताओं ने हालांकि इस अतिरिक्त रकम को बनाने का शुल्क बताया है। लेकिन इस तरह का शुल्क विक्रेता पहले नहीं वसूलते थे। ज्यादा कीमत सिर्फ और सिर्फ उपलब्धता में किल्लत के समय वसूला जाता है। मुंबई स्थित सोने के खुदरा बिक्रेता जुगराज कांतिलाल ऐंड कंपनी के साझेदार जितेंद्र जैन ने कहा - खुदरा जूलर्स से सोने के सिक्के खरीदना 100 रुपये प्रति 10 ग्राम का प्रीमियम देने के बाद भी सस्ता है। बैंक 5-6 फीसदी का प्रीमियम वसूलते हैं, जो प्रति 10 ग्राम 1000 रुपये बैठता है।क्षेत्रीय स्तर पर मनाए जाने वाले त्योहारों मसलन गुरु पुष्य नक्षत्र के मौकेपर वल्र्ड गोल्ड काउंसिल ने तीसरी तिमाही में सोने की खुदरा मांग में 28 फीसदी की तेजी की खबर दी है। डब्ल्यूजीसी का अनुमान है कि पहली तीन तिमाही में सोने की मांग साल 2008 के 750 टन के स्तर पर आ गई है। साल 2008 का यह आंकड़ा अब तक की सर्वोच्च मांग है। (BS Hindi)
25 दिसंबर 2010
अंडा : इस पर भी महंगार्ई का डंडा
नई दिल्ली 12 24, 2010
प्याज, लहसुन और टमाटर की कीमतों में तेजी की आंधी के बाद अब अंडे पर महंगाई का रंग चढऩे लगा है। ठंड बढऩे से इस माह अब तक अंडे के दाम 10 फीसदी से ज्यादा बढ़ चुके हैं। कारोबारी अंड़ों के दाम बढऩे की वजह सर्दियों में खपत बढऩा बता रहे हैं। उनके मुताबिक क्रिसमस के मौके पर केक निर्माताओं की मांग बढऩे से भी कीमतों में तेजी आई है। बढ़ती सर्दी और नए साल को देखते हुए आगे भी अंडों की मांग मजबूत रहने की संभावना है। ऐसे में अंडे के दाम कम होने के आसार नहीं है, बल्कि दाम और बढ़ सकते हैं।इस माह दिल्ली के थोक मंडियोंं मेंं अंडे के भाव 275 रुपये से बढ़कर 305 रुपये प्रति सैकड़ा हो चुके हैं। इसी तरह मुख्य उत्पादक केंद्र नमक्कल में अंडे के दाम 252 रुपये से बढ़कर 267 रुपये प्रति सैकड़ा और पंजाब में इसके दाम 255 रुपये से बढ़कर 300 रुपये प्रति सैकड़ा हो चुके हैं।अंडा कारोबारी प्रमोद नागपाल ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा कि सर्दियों के कारण अंडे की खपत बढ़ गई है। इसका अंडे के दाम पर असर देखा जा रहा है। उनका कहना है कि क्रिसमस के मौके पर केक निर्माताओं की ओर से अंडे की मांग काफी बढ़ी है। यही कारण है कि अंडे की कीमतों में तेजी आई है। अंडा कारोबारी एच आर गुप्ता भी अंडे के दाम बढऩे की बात से इत्तेफाक रखते हैं। वे बताते है कि सर्दियों में अंडे की खपत काफी बढ़ जाती है। इस कारण इनकी कीमतों में तेजी आती है। आने वाले दिनों में अंडे की कीमतों के बारे में नागपाल का कहना है कि फिलहाल क्रिसमस की मांग पूरी हो चुकी है। इस वजह से शुक्रवार को अंडे के दाम जरूर थोड़े नरम हुए, लेकिन अगले सप्ताह से नव वर्ष के लिए अंडे की मांग जोर पकडऩे लगेगी। ऐसे में अंडे के दाम घटने की संभावना नहीं है, बल्कि तेजी के आसार हैं। अंडा कारोबारी अहमद खान के मुताबिक भी अंडे की मांग अभी बनी रहेगी। खान का कहना है कि आगे सर्दी और तेज होने की संभावना है। दरअसल ठंड बढऩे पर अंडे की मांग काफी बढ़ जाती है। लिहाजा इसकी कीमतों में और तेजी आ सकती है। दिल्ली में अंडे की आवक पंजाब, हरियाणा से होती है। इन दिनों राजधानी में 55-60 लाख अंडों की दैनिक आवक हो रही है। भारत से यूएई, इराक, कतर, कुवैत आदि देशों को अंडों का निर्यात किया जाता है। इस साल नवंबर तक देश से कुल 68.79 करोड़ अंडों का निर्यात हो चुका है। पिछले साल की समान अवधि में यह आंकड़ा 95.24 करोड़ था। इस आधार पर देखें तो पिछले साल की तुलना में इस साल निर्यात में 27 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। देश में नमक्कल मुख्य अंडा निर्यात केंद्र है। उत्तर भारत में अंडे की सप्लाई पंजाब, हरियाणा से की जाती है। इन राज्यों से मांग की आपूर्ति पूरी न होने की स्थिति में अन्य अंडा उत्पादक राज्यों से भी अंडे की आवक होती है। (BS Hindi)
प्याज, लहसुन और टमाटर की कीमतों में तेजी की आंधी के बाद अब अंडे पर महंगाई का रंग चढऩे लगा है। ठंड बढऩे से इस माह अब तक अंडे के दाम 10 फीसदी से ज्यादा बढ़ चुके हैं। कारोबारी अंड़ों के दाम बढऩे की वजह सर्दियों में खपत बढऩा बता रहे हैं। उनके मुताबिक क्रिसमस के मौके पर केक निर्माताओं की मांग बढऩे से भी कीमतों में तेजी आई है। बढ़ती सर्दी और नए साल को देखते हुए आगे भी अंडों की मांग मजबूत रहने की संभावना है। ऐसे में अंडे के दाम कम होने के आसार नहीं है, बल्कि दाम और बढ़ सकते हैं।इस माह दिल्ली के थोक मंडियोंं मेंं अंडे के भाव 275 रुपये से बढ़कर 305 रुपये प्रति सैकड़ा हो चुके हैं। इसी तरह मुख्य उत्पादक केंद्र नमक्कल में अंडे के दाम 252 रुपये से बढ़कर 267 रुपये प्रति सैकड़ा और पंजाब में इसके दाम 255 रुपये से बढ़कर 300 रुपये प्रति सैकड़ा हो चुके हैं।अंडा कारोबारी प्रमोद नागपाल ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा कि सर्दियों के कारण अंडे की खपत बढ़ गई है। इसका अंडे के दाम पर असर देखा जा रहा है। उनका कहना है कि क्रिसमस के मौके पर केक निर्माताओं की ओर से अंडे की मांग काफी बढ़ी है। यही कारण है कि अंडे की कीमतों में तेजी आई है। अंडा कारोबारी एच आर गुप्ता भी अंडे के दाम बढऩे की बात से इत्तेफाक रखते हैं। वे बताते है कि सर्दियों में अंडे की खपत काफी बढ़ जाती है। इस कारण इनकी कीमतों में तेजी आती है। आने वाले दिनों में अंडे की कीमतों के बारे में नागपाल का कहना है कि फिलहाल क्रिसमस की मांग पूरी हो चुकी है। इस वजह से शुक्रवार को अंडे के दाम जरूर थोड़े नरम हुए, लेकिन अगले सप्ताह से नव वर्ष के लिए अंडे की मांग जोर पकडऩे लगेगी। ऐसे में अंडे के दाम घटने की संभावना नहीं है, बल्कि तेजी के आसार हैं। अंडा कारोबारी अहमद खान के मुताबिक भी अंडे की मांग अभी बनी रहेगी। खान का कहना है कि आगे सर्दी और तेज होने की संभावना है। दरअसल ठंड बढऩे पर अंडे की मांग काफी बढ़ जाती है। लिहाजा इसकी कीमतों में और तेजी आ सकती है। दिल्ली में अंडे की आवक पंजाब, हरियाणा से होती है। इन दिनों राजधानी में 55-60 लाख अंडों की दैनिक आवक हो रही है। भारत से यूएई, इराक, कतर, कुवैत आदि देशों को अंडों का निर्यात किया जाता है। इस साल नवंबर तक देश से कुल 68.79 करोड़ अंडों का निर्यात हो चुका है। पिछले साल की समान अवधि में यह आंकड़ा 95.24 करोड़ था। इस आधार पर देखें तो पिछले साल की तुलना में इस साल निर्यात में 27 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। देश में नमक्कल मुख्य अंडा निर्यात केंद्र है। उत्तर भारत में अंडे की सप्लाई पंजाब, हरियाणा से की जाती है। इन राज्यों से मांग की आपूर्ति पूरी न होने की स्थिति में अन्य अंडा उत्पादक राज्यों से भी अंडे की आवक होती है। (BS Hindi)
उच्च स्तर पर टिका रहेगा कपास
मुंबई December 24, 2010
निर्यातकों की ओर से मांग बढऩे की उम्मीद में कपास के दाम उच्च स्तर पर ठहरे हुए हैं। निर्यातक अब दोबारा पंजीकरण शुरू होने का इंतजार कर रहे हैं। माना जा रहा है कि सरकार जनवरी के पहले या दूसरे हफ्ते से पंजीकरण का काम शुरू कर सकती है जबकि निर्यात की खेप भेजने का काम फरवरी से शुरू हो सकता है। ऐसे में बाजार जानकार निर्यातकों की मांग बढऩे की स्थिति में एक बार फिर इसकी कीमतों में बढ़ोतरी की संभावना जता रहे हैं। पिछले कुछ सप्ताह से वैश्विक बाजारों में कपास की आपूर्ति की तंगी बनी हुई है जबकि दाम लगातार ऊपर चढ़ रहे हैं। गुजरात की मंडियों में बेंचमार्क किस्म शंकर-6 के दाम करीब 42,000 रुपये प्रति कैंडी के स्तर पर चल रहे हैं।ऐसे निर्यातक जिन्होंने कपास निर्यात का पंजीकरण तो करा लिया था लेकिन माल की सुपुर्दगी 15 दिसंबर से पहले नहीं हो पाई थी तो उन्हें फिर से दोबारा पंजीकरण कराना होगा। कपड़ा आयुक्त के पास अब तक कुल 22 लाख गांठ कपास की सुपुर्दगी की पुष्टिï हो पाई है जबकि इस दौरान कुल 30 लाख गांठ कपास का निर्यात किया जा चुका है। निर्यातकों को सुपुर्दगी की पुष्टिï की रिपोर्ट कपड़ा आयुक्त के पास 21 दिन के अंदर भेजनी होती है। इस आधार पर सरकार माल सुपुर्दगी के वास्तविक आंकड़ों का पता लगाने के लिए 5 जनवरी का तक का इंतजार कर सकती है। बाजार जानकारों को उम्मीद है कि विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) 15 जनवरी से दोबारा पंजीकरण का काम शुरू कर सकता है। सरकार ने कुल 55 लाख गांठ कपास के निर्यात की अनुमति दी थी लेकिन निर्यातक तय समय में केवल 30 लाख गांठ कपास का ही निर्यात कर पाए थे। ऐसे में शेष बचे हिस्से 25 लाख गांठ कपास के निर्यात के लिए दोबारा पंजीकरण होना है। निर्यातक इस बार जल्द से जल्द पंजीकृत कपास की सुपुर्दगी करना चाहेगा। बाजार जानकारों का पूर्वानुमान है कि इससे बाजार में अचानक निर्यातकों की मांग बढ़ सकती है और भाव में तेजी के आसार हैं। इसको देखते हुए कपास उत्पादक अभी से ही माल का स्टॉक करने लगे हैं। ताकि निर्यात मांग बढऩे की स्थिति में ज्यादा भाव मिलने पर इसे बाजार में उतारा जाए। मुुंबई के कारोबारी शिरिश शाह कहते हैं, 'कपास की निर्यातक मांग इस समय काफी अच्छी है और वैश्विक बाजारों के अनुरूप इसके दामों में तेजी आ सकती है।Ó आईसीई एक्सचेंज में कपास वायदा के भाव हाजिर बाजार की तुलना में अधिक प्रीमियम पर दर्ज हुए। कारोबारी भारत से कपास आयात कर रहे हैं और भविष्य में इसे बेच कर अच्छा मुनाफा कमाने की सोच रहे हैं। बाजार सूत्रों के अनुसार कई बहुराष्टï्रीय कंपनियां भारत से कपास खरीदने के लिए सक्रिय हो गई हैं। पहले पंजीकृत 55 लाख गांठ कपास में से 6 लाख गांठ यानी करीब 11 फीसदी कपास का पंजीकरण बहुराष्टï्रीय कंपनियों द्वारा कराया गया। हालांकि कुछ जानकारों का यह भी मानना है कि निर्यातकों की मांग पूरी हो जाने के बाद (जो निर्यात के लिए शेष बचे हिस्से हैं) घरेलू बाजार में एक बार फिर कीमतें नीचे आने लगेंगी। अहमदाबाद के कपड़ा व्यापारी अरुण दलाल कहते हैं, 'निर्यातकों की मांग घटने के बाद घरेलू बाजार में कपास की कीमतों में कुछ नरमी आएगी। इसके अलावा कुछ दिन के बाद से बाजार में नई आवक भी शुरू हो जाएगी।Ó हालांकि वे ऐसा नहीं मानते कि इसके दाम घटकर 40,000 रुपये प्रति कैंडी के स्तर से नीचे आए जाएंगे। (BS Hindi)
निर्यातकों की ओर से मांग बढऩे की उम्मीद में कपास के दाम उच्च स्तर पर ठहरे हुए हैं। निर्यातक अब दोबारा पंजीकरण शुरू होने का इंतजार कर रहे हैं। माना जा रहा है कि सरकार जनवरी के पहले या दूसरे हफ्ते से पंजीकरण का काम शुरू कर सकती है जबकि निर्यात की खेप भेजने का काम फरवरी से शुरू हो सकता है। ऐसे में बाजार जानकार निर्यातकों की मांग बढऩे की स्थिति में एक बार फिर इसकी कीमतों में बढ़ोतरी की संभावना जता रहे हैं। पिछले कुछ सप्ताह से वैश्विक बाजारों में कपास की आपूर्ति की तंगी बनी हुई है जबकि दाम लगातार ऊपर चढ़ रहे हैं। गुजरात की मंडियों में बेंचमार्क किस्म शंकर-6 के दाम करीब 42,000 रुपये प्रति कैंडी के स्तर पर चल रहे हैं।ऐसे निर्यातक जिन्होंने कपास निर्यात का पंजीकरण तो करा लिया था लेकिन माल की सुपुर्दगी 15 दिसंबर से पहले नहीं हो पाई थी तो उन्हें फिर से दोबारा पंजीकरण कराना होगा। कपड़ा आयुक्त के पास अब तक कुल 22 लाख गांठ कपास की सुपुर्दगी की पुष्टिï हो पाई है जबकि इस दौरान कुल 30 लाख गांठ कपास का निर्यात किया जा चुका है। निर्यातकों को सुपुर्दगी की पुष्टिï की रिपोर्ट कपड़ा आयुक्त के पास 21 दिन के अंदर भेजनी होती है। इस आधार पर सरकार माल सुपुर्दगी के वास्तविक आंकड़ों का पता लगाने के लिए 5 जनवरी का तक का इंतजार कर सकती है। बाजार जानकारों को उम्मीद है कि विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) 15 जनवरी से दोबारा पंजीकरण का काम शुरू कर सकता है। सरकार ने कुल 55 लाख गांठ कपास के निर्यात की अनुमति दी थी लेकिन निर्यातक तय समय में केवल 30 लाख गांठ कपास का ही निर्यात कर पाए थे। ऐसे में शेष बचे हिस्से 25 लाख गांठ कपास के निर्यात के लिए दोबारा पंजीकरण होना है। निर्यातक इस बार जल्द से जल्द पंजीकृत कपास की सुपुर्दगी करना चाहेगा। बाजार जानकारों का पूर्वानुमान है कि इससे बाजार में अचानक निर्यातकों की मांग बढ़ सकती है और भाव में तेजी के आसार हैं। इसको देखते हुए कपास उत्पादक अभी से ही माल का स्टॉक करने लगे हैं। ताकि निर्यात मांग बढऩे की स्थिति में ज्यादा भाव मिलने पर इसे बाजार में उतारा जाए। मुुंबई के कारोबारी शिरिश शाह कहते हैं, 'कपास की निर्यातक मांग इस समय काफी अच्छी है और वैश्विक बाजारों के अनुरूप इसके दामों में तेजी आ सकती है।Ó आईसीई एक्सचेंज में कपास वायदा के भाव हाजिर बाजार की तुलना में अधिक प्रीमियम पर दर्ज हुए। कारोबारी भारत से कपास आयात कर रहे हैं और भविष्य में इसे बेच कर अच्छा मुनाफा कमाने की सोच रहे हैं। बाजार सूत्रों के अनुसार कई बहुराष्टï्रीय कंपनियां भारत से कपास खरीदने के लिए सक्रिय हो गई हैं। पहले पंजीकृत 55 लाख गांठ कपास में से 6 लाख गांठ यानी करीब 11 फीसदी कपास का पंजीकरण बहुराष्टï्रीय कंपनियों द्वारा कराया गया। हालांकि कुछ जानकारों का यह भी मानना है कि निर्यातकों की मांग पूरी हो जाने के बाद (जो निर्यात के लिए शेष बचे हिस्से हैं) घरेलू बाजार में एक बार फिर कीमतें नीचे आने लगेंगी। अहमदाबाद के कपड़ा व्यापारी अरुण दलाल कहते हैं, 'निर्यातकों की मांग घटने के बाद घरेलू बाजार में कपास की कीमतों में कुछ नरमी आएगी। इसके अलावा कुछ दिन के बाद से बाजार में नई आवक भी शुरू हो जाएगी।Ó हालांकि वे ऐसा नहीं मानते कि इसके दाम घटकर 40,000 रुपये प्रति कैंडी के स्तर से नीचे आए जाएंगे। (BS Hindi)
लो..महंगाई ने खा ली होटल की थाली
मुंबई December 24, 2010
प्याज, टमाटर और दूसरी सब्जियां क्या महंगी हुईं, घर के बाहर खाना भी मुहाल होने लगा। अगर आपको होटल और रेस्तरां में खाने का शौक है तो महंगाई की मार अब वहां भी आपका पीछा नहीं छोडऩे वाली। सब्जियों और दूसरे खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमत का हवाला देते हुए होटल-रेस्तरां मालिकों ने भी अपने व्यंजनों की कीमत 20 से 25 फीसदी तक बढ़ाने का फैसला किया है। बढ़ी हुई कीमतें शनिवार से ही उनके मेन्यू पर नजर आने लगेंगी।पिछले कुछ महीनों से खाद्य पदार्थों के दाम तेजी से बढ़ रहे हैं। उनसे आजिज आकर होटल कारोबारियों ने आखिरकार खाना महंगा कर ही दिया है। भारतीय होटल एवं रेस्तरां संघ (आहार) के अध्यक्ष सुधाकर शेट्टïी के मुताबिक सभी होटल मालिकों ने दोटूक कहा है कि खाने की कीमत बढ़ाई जाए या होटल बंद कर दिए जाएं क्योंकि महंगाई की वजह से लागत निकलना भी दूभर हो रहा है। इस वजह से संघ ने दाम में 20 से 25 फीसदी इजाफे का फैसला किया है।शेट्टïी कहते हैं कि हाल के हफ्तों में प्याज, टमाटर, धनिया, गोभी समेत लगभग सभी हरी सब्जियों के दाम 2 से 3 गुना बढ़ गए हैं। इतना ही नहीं दाल, आलू, आटा और चावल के भाव में भी 10 से 30 फीसदी इजाफा हो गया है। मंडी से होटल तक माल लाने में भाड़ा भी अब 10-15 फीसदी अधिक लगता है। ऐसे में होटल कारोबारियों के लिए दाम बढ़ाना मजबूरी है।बाहर चटखारे लेने के शौकीनों के लिए बुरी खबर यहीं खत्म नहीं होती है। महंगाई की वजह से होटलों में अब मुफ्त मिलने वाली चीजों में भी कटौती शुरू हो गई है। आपकी खाने की थाली के साथ मुफ्त सजने वाले सलाद और अचार की मात्रा कम कर दी गई है। ग्राहक अब सलाद में प्याज और टमाटर तलाशते ही रह जाते हैं। उनकी जगह खीरा, गोभी और मूली के पत्ते परोसे जा रहे हैं। छोटे रेस्तरां अब अचार गायब करने लगे हैं और प्याज तथा लहसुन की गांठ भी रखना बंद कर दिया गया है। होटल वाले कहते हैं कि ग्राहक की खास मांग पर ये चीजें मुहैया कराई जाती हैं, लेकिन उन्हें इनकी कीमत चुकानी पड़ेगी।श्रीदेवी होटल के मालिक और आहार के पूर्व अध्यक्ष नारायण अल्वा कहते हैं, 'होटल में भी सामान बाजार से आता है, जहां जबरदस्त महंगाई है। हमने 3 महीने तक दाम यह सोचकर नहीं बढ़ाए कि सरकार महंगाई पर काबू पा लेगी। लेकिन महंगाई केवल आंकड़ों में कम हुई तो हम कब तक घाटे में कारोबार करेंगे।Óहोटल मालिक क्रिसमस और नए साल के मौके पर खाना महंगा कर रहे हैं, जिससे उनके यहां ग्राहक कम भी हो सकते हैं। लेकिन अल्वा कहते हैं, 'कीमत बढ़ाने का यह सही वक्त नहीं माना जा रहा है। लेकिन सबसे ज्यादा ग्राहक भी इसी वक्त आते हैं, इसलिए घाटा भी इस समय बढ़ जाता। दाम बढऩे पर ग्राहक बेशक कुछ कम हो सकते हैं, लेकिन महंगाई में थाली तो महंगी होगी ही। (BS Hindi)
प्याज, टमाटर और दूसरी सब्जियां क्या महंगी हुईं, घर के बाहर खाना भी मुहाल होने लगा। अगर आपको होटल और रेस्तरां में खाने का शौक है तो महंगाई की मार अब वहां भी आपका पीछा नहीं छोडऩे वाली। सब्जियों और दूसरे खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमत का हवाला देते हुए होटल-रेस्तरां मालिकों ने भी अपने व्यंजनों की कीमत 20 से 25 फीसदी तक बढ़ाने का फैसला किया है। बढ़ी हुई कीमतें शनिवार से ही उनके मेन्यू पर नजर आने लगेंगी।पिछले कुछ महीनों से खाद्य पदार्थों के दाम तेजी से बढ़ रहे हैं। उनसे आजिज आकर होटल कारोबारियों ने आखिरकार खाना महंगा कर ही दिया है। भारतीय होटल एवं रेस्तरां संघ (आहार) के अध्यक्ष सुधाकर शेट्टïी के मुताबिक सभी होटल मालिकों ने दोटूक कहा है कि खाने की कीमत बढ़ाई जाए या होटल बंद कर दिए जाएं क्योंकि महंगाई की वजह से लागत निकलना भी दूभर हो रहा है। इस वजह से संघ ने दाम में 20 से 25 फीसदी इजाफे का फैसला किया है।शेट्टïी कहते हैं कि हाल के हफ्तों में प्याज, टमाटर, धनिया, गोभी समेत लगभग सभी हरी सब्जियों के दाम 2 से 3 गुना बढ़ गए हैं। इतना ही नहीं दाल, आलू, आटा और चावल के भाव में भी 10 से 30 फीसदी इजाफा हो गया है। मंडी से होटल तक माल लाने में भाड़ा भी अब 10-15 फीसदी अधिक लगता है। ऐसे में होटल कारोबारियों के लिए दाम बढ़ाना मजबूरी है।बाहर चटखारे लेने के शौकीनों के लिए बुरी खबर यहीं खत्म नहीं होती है। महंगाई की वजह से होटलों में अब मुफ्त मिलने वाली चीजों में भी कटौती शुरू हो गई है। आपकी खाने की थाली के साथ मुफ्त सजने वाले सलाद और अचार की मात्रा कम कर दी गई है। ग्राहक अब सलाद में प्याज और टमाटर तलाशते ही रह जाते हैं। उनकी जगह खीरा, गोभी और मूली के पत्ते परोसे जा रहे हैं। छोटे रेस्तरां अब अचार गायब करने लगे हैं और प्याज तथा लहसुन की गांठ भी रखना बंद कर दिया गया है। होटल वाले कहते हैं कि ग्राहक की खास मांग पर ये चीजें मुहैया कराई जाती हैं, लेकिन उन्हें इनकी कीमत चुकानी पड़ेगी।श्रीदेवी होटल के मालिक और आहार के पूर्व अध्यक्ष नारायण अल्वा कहते हैं, 'होटल में भी सामान बाजार से आता है, जहां जबरदस्त महंगाई है। हमने 3 महीने तक दाम यह सोचकर नहीं बढ़ाए कि सरकार महंगाई पर काबू पा लेगी। लेकिन महंगाई केवल आंकड़ों में कम हुई तो हम कब तक घाटे में कारोबार करेंगे।Óहोटल मालिक क्रिसमस और नए साल के मौके पर खाना महंगा कर रहे हैं, जिससे उनके यहां ग्राहक कम भी हो सकते हैं। लेकिन अल्वा कहते हैं, 'कीमत बढ़ाने का यह सही वक्त नहीं माना जा रहा है। लेकिन सबसे ज्यादा ग्राहक भी इसी वक्त आते हैं, इसलिए घाटा भी इस समय बढ़ जाता। दाम बढऩे पर ग्राहक बेशक कुछ कम हो सकते हैं, लेकिन महंगाई में थाली तो महंगी होगी ही। (BS Hindi)
24 दिसंबर 2010
कोल्ड चेन लॉजिस्टिक्स में हैं काफी संभावनाएं
मौका ही मौकाकोल्ड चेन उद्योग का सालाना कारोबार 15 हजार करोड़ का कोल्ड चेन बिजनेस में 20' की दर से हो रही बढ़ोतरीवर्ष 2015 तक इसके 40 हजार करोड़ तक पहुंचने का अनुमानकोल्ड चेन में लॉजिस्टिक्स की हिस्सेदारी सालाना 1,100 करोड़ एनएचबी ने इस वर्ष दी 105 नए कोल्ड स्टोर बनाने की अनुमतिसरकार भी दे रही ध्याननई दिल्ली। खाद्य राज्यमंत्री के.वी. थामस ने कहा है कि सरकार कोल्ड स्टोरेज की व्यवस्था को और दुरुस्त करने पर विचार कर रही है। इससे कम सप्लाई वाले क्षेत्रों में फल-सब्जियों को तुरंत पहुंचाया जा सकेगा। ऐसे में अचानक किसी भी सब्जी या फल की कीमत में भारी बढ़ोतरी की नौबत नहीं आएगी। उन्होंने कहा कि सरकार फलों एवं सब्जियों के भंडारण के वास्ते कोल्ड स्टारेज की एक विशाल चेन बनाने के लिए समय-समय पर बैठकें कर रही है। थामस यहां आयोजित राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस समारोह के मौके पर पत्रकारों से अलग से बातचीत कर रहे थे। थामस ने देश के कुछ हिस्सों में प्याज की कीमतों में तेज उतार-चढ़ाव के लिए बाजार ताकतों को जिम्मेदार ठहराया। (प्रेट्र)कोल्ड चेन के कारोबार में बढ़ोतरी होने से लॉजिस्टिक्स कंपनियां इसमें निवेश बढ़ा रही हैं। पिछले एक साल में कंपनियों के कारोबार में करीब 15प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड (एनएचबी) ने चालू साल में अभी तक 105 नए कोल्ड स्टोर (एक उत्पाद से मल्टी उत्पादों के लिए) बनाने की अनुमति दी है। इसलिए आगामी दिनों में लॉजिस्टिक्स के कारोबार में बढ़ोतरी की काफी संभावनाएं हैं। ग्लोबल कोल्ड चेन एलायंस (जीसीसीए) के डायरेक्टर अतुल खन्ना ने कहा कि देश में कोल्ड चेन निर्माण में काफी निवेश हो रहा है, इसीलिए आगामी दिनों में लॉजिस्टिक्स उद्योग का भविष्य काफी उज्ज्वल है। उन्होंने बताया कि देश में कोल्ड चेन उद्योग का सालाना कारोबार 10 से 15 हजार करोड़ का है तथा इसमें 20 फीसदी की दर से बढ़ोतरी हो रही है। उम्मीद है 2015 तक कोल्ड चेन का कारोबार बढ़कर 40 हजार करोड़ का हो जायेगा। कोल्ड चेन में लॉजिस्टिक्स कारोबार (संगठित और असंगठित मिलाकर) सालाना करीब 1,100 करोड़ रुपये का है। जे बी एम इंजीनियंरिग प्रा. लि. के मैनेजिंग डायरेक्टर जे एम गुप्ता ने बताया कि एक उत्पादन का कोल्ड चेन बनाने के लिए 6,000 रुपये प्रति टन और मल्टी उत्पादों के लिए 8,000 रुपये प्रति टन का खर्च आता है। इसमें तापमान के साथ ही नमी को भी नियंत्रित किया जाता है। कोल्ड चेन में किसान के खेत से बिक्री केंद्र तक फ्रेश उत्पाद पहुंचाना होता है। इसमें ग्राइंडिंग, छटाई, पैकिंग आदि होती है। उन्होंने बताया कि भारत में कोल्ड चेन शुरुआती चरणों में है तथा भविष्य में इसमें अपार संभावनाएं हैं। इसमें फल एवं सब्जियों के अलावा, दलहन, मसालों और अनाजों को स्टोर करने से उनकी लाइफ भी बढ़ती है। देवभूमि कोल्ड चेन प्रा. लि. के चेयरमैन एवं प्रबंध निदेशक संजय अग्रवाल ने बताया कि सीधे खेत से फल एवं सब्जियों की खरीद से किसानों को भी उचित भाव मिलेगा। साथ ही कोल्ड चेन से उपभोक्ताओं को ऑफ सीजन में फल एवं सब्जियां उपलब्ध होंगी।एम जे लॉजिस्टिक सर्विस लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर अनिल अरोड़ा ने बताया कि पिछले एक साल में लॉजिस्टिक कारोबार में 15 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। फल एवं सब्जियों की उपलब्धता पूरे साल बनी रहे इसके लिए कोल्ड चेन में काफी निवेश किया जा रहा है। किसान के खेत से ताजा फल एवं सब्जियों को कोल्ड स्टोर तक पहुंचाने और फिर कोल्ड स्टोर से बिक्री केंद्रों तक रेफ्रिजरेटर वैन का सहारा लिया जाता है। एनएचबी के प्रबंध निदेशक विजय कुमार ने बताया कि जून से अभी तक 105 कोल्ड स्टोर बनाने की अनुमति दी गई है। मार्च 2011 तक करीब 150 कोल्ड स्टोर को अनुमति दिए जाने की संभावना है। (Buisness Bhaskar....R S Rana)
टमाटर के निर्यात पर लग सकती है रोक
नई दिल्ली।। केंद्रीय वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा ने कहा कि प्याज के बाद अब टमाटर के निर्यात पर पाबंदी लगाई जा सकती है, क्योंकि पिछले 10 दिनों में टमाटर की कीमत में दोगुनी बढ़ोतरी हुई है। आनंद शर्मा ने कहा कि वाणिज्य सचिव और विदेश व्यापार महानिदेशालय स्थिति पर नजर रखे हुए हैं। जरूरत पड़ने पर जरूरी कदम उठाए जाएंगे। उन्होंने कहा कि जमाखोरी के कारण प्याज और टमाटर की कीमत बढ़ी है। वाणिज्य सचिव राहुल खुल्लर ने कहा कि बहुत कम मात्रा में टमाटर का निर्यात पाकिस्तान को किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि टमाटर का व्यापक स्तर पर व्यापार नहीं होता है। कुल उत्पादन के सिर्फ एक फीसदी का ही निर्यात किया जा रहा है, जो कि बहुत कम है। मध्य प्रदेश और गुजरात में बेमौसम बरसात के कारण दिल्ली में टमाटर की सप्लाई में रुकावट आई है, जिसके कारण टमाटर की कीमत में बढ़ोतरी हुई है। ET Hindi
मुनाफे के लालच में कच्चे प्याज का खेल
नई दिल्ली प्याज ने तो लोगों की जेब में डाका डाल ही दिया है अब टमाटर में भी वसूली का खेल शुरू हो गया है। होलसेल में इसके दाम गिर रहे हैं लेकिन रिटेल में ग्राहकों को खुलकर चूना लगाया जा रहा है। आजादपुर मंडी में गुरुवार को टमाटर की होलसेल कीमतें 12 से 20 रुपये प्रति किलो रहीं जो कि बुधवार को 25 रुपये प्रति किलो तक रहीं थी। लेकिन विभिन्न इलाकों में रिटेल में बेचे जा रहे टमाटर को दुकानदारों ने 30 रुपये प्रति किलो तक बेचा। टमाटर के होलसेल व्यापारी सुभाष चुग का कहना है कि आने वाले समय में टमाटर की कीमतों में कमी आएगी। राज्य और केंद्र सरकार प्याज की कीमतों को थामने के दावे कर रहे हैं लेकिन जानकार कहते हैं कि डेढ़ महीने बाद प्याज फिर इसी तरह रुला सकता है। किसान इसकी अधिक कीमत देख खेतों से एडवांस में ही प्याज निकालने में लग गए हैं। इससे जनवरी के अंत में और फरवरी के शुरुआती दिनों में फिर भारी कमी हो सकती है। प्याज कारोबारियों का कहना है कि प्याज की कीमतें बढ़ जाने से कई इलाकों के किसानों ने अडवांस में ही कच्ची फसल खेतों से निकालनी शुरू कर दी। इससे खेतों में प्याज की जो फसल जनवरी के अंत में या फरवरी के शुरुआत में निकाली जानी चाहिए थी उसका बड़ा हिस्सा मार्केट में आने लगा है। आजादपुर मंडी में प्याज के होलसेल व्यापारी राजेंद्र शर्मा का भी कहना है कि यदि सरकार ने इस ओर ध्यान नहीं दिया तो निश्चित रूप से फरवरी में प्याज की कमी नजर आएगी। जरूरी है कि जल्द से जल्द इसकी कीमतें नीचे आएं तभी कच्चे प्याज की सप्लाई रुकेगी। बुधवार को ही दिल्ली सरकार के खाद्य एवं आपूर्ति विभाग ने प्याज के थोक और फुटकर मूल्यों पर नजर रखने के लिए एक नियंत्रण कक्ष बनाया था। इस कक्ष के लिए एक टोल फ्री नंबर- 1800-11-0841 भी जारी किया गया। मकसद था कि इस नंबर पर फोन करने वाली जनता को प्याज के बारे में जानकारी भी दी जाएगी। मगर, गुरुवार को जब इस नंबर पर फोन किया गया तो दूसरी ओर से बताया गया कि इस नंबर पर जनता की शिकायतें लेने का काम और प्याज के बारे में जानकारी देने का काम शुक्रवार से शुरू किया जाएगा। (Navbharat times)
डीज़ल की आग दबाएगा प्याज़!
नई दिल्ली December 23, 2010
अगर आप महंगाई में इजाफे पर रो रहे हैं और इसके लिए प्याज को कोस रहे हैं तो एक बार फिर सोचिए क्योंकि प्याज आपकी जेब पर चोट बचा भी सकता है। दरअसल प्याज और दूसरी सब्जियों की वजह से महंगाई 5 महीने के उच्चतम स्तर 12.13 फीसदी पर पहुंच गई है, जिससे सरकार के सामने नई मुश्किल खड़ी हो गई है। मंत्रियों का अधिकार प्राप्त समूह डीजल पर होने वाला घाटा जनता की जेब से पूरा करने के लिए 30 दिसंबर को बैठक करने वाला था, लेकिन जानकारों के मुताबिक अब इसे टाला जा सकता है।दरअसल तेल कंपनियों को डीजल पर अभी 6 रुपये प्रति लीटर घाटा हो रहा है। लेकिन अगर सरकार उसके दाम में इजाफा करती है तो खाद्यान्न और फल-सब्जियों के भाव और बढ़ जाएंगे क्योंकि उनकी ढुलाई आम तौर पर ट्रक से ही होती है। प्याज के भाव पहले ही 70-80 रुपये प्रति किलोग्राम पर हैं। मदर डेयरी ने इसी हफ्ते दूध के दाम 1 रुपये प्रति लीटर बढ़ाए हैं, जिससे दूध भी महंगा हो गया है। ऐसे में सरकार के लिए डीजल के दाम बढ़ाना मुश्किल हैं।गुरुवार को सरकारी आंकड़ों के अनुसार खाद्य मुद्रास्फीति 1 हफ्ता पहले के 9.46 फीसदी से 12.13 फीसदी हो गई। इस दौरान प्याज, फल, अंडे, मांस, मछली, दूध तथा सब्जियों के दाम बढ़े। खाद्य मुद्रास्फीति में इससे पहले लगातार तीन सप्ताह सीमित उतारचढ़ाव रहा, लेकिन यह दहाई के आंकड़े से नीचे ही रही। इस साल जनवरी से खाद्य मुद्रास्फीति लगातार दहाई अंक में बनी रही। केवल जुलाई में दो सप्ताह के लिए यह नीचे उतरी थी।यस बैंक की मुख्य अर्थशास्त्री शुभदा राव कहते हैं, 'खाने-पीने और सब्जियों के दाम में बढ़ोतरी होने से सरकार डीजल महंगा करने की योजना कुछ हफ्तों के लिए टाल सकती है। लेकिन कच्चे तेल का भाव जिस तेजी से बढ़ रहा है, उससे वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही में डीजल की कीमत बढऩा तय है।Óसरकार फिलहाल जिन 3 पेट्रो पदार्थों के मूल्य तय करती हहै, उनमें डीजल का थोक मूल्य सूचकांक पर सबसे ज्यादा 4.6702 फीसदी भार है। उसके बाद रसोई गैस (0.91468) और केरोसिन (0.73619) का नंबर आता है। क्रिसिल के मुख्य अर्थशास्त्री धर्मकीर्ति जोशी ने कहा, 'डीजल का मूल्य बढ़ाना बेहद मुश्किल है क्योंकि महंगाई पहले ही ज्यादा है और उसमें कमी के आसार भी अभी नजर नहीं आ रहे हैं। सरकार के लिए फैसला बहुत मुश्किल होगा। कीमत बढ़ते ही महंगाई की लपटें और तेज हो जाएंगी।Óपेट्रोल का थोक मूल्य सूचकांक पर 1.09015 फीसदी भार है। पिछले हफ्ते ही उसका भाव 2.95-2.96 रुपये प्रति लीटर बढ़ाया गया है और थोक मुद्रास्फीति के दिसंबर के आंकड़ों में उसका असर नजर आएगा। नवंबर में यह आंकड़ा 7.48 फीसदी था।एचडीएफसी बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री अभीक बरुआ ने भी कहा कि सरकार डीजल मूल्य वृद्घि को अधिक से अधिक टालना चाहेगी। हालांकि इसकी वजह से तेल कंपनियों को जबरदस्त घाटा हो रहा है।इन कंपनियों को डीजल पर 6.08 रुपये प्रति लीटर और केरोसिन पर 17.72 रुपये प्रति लीटर घाटा हो रहा है। रसोई गैस पर घाटा 272.19 रुपये प्रति सिलिंडर है। पेट्रोल पर भी अभी उन्हें कुछ घाटा हो रहा है। इस वजह से चालू वित्त वर्ष में उनका कुल घाटा लगभग 68,000 करोड़ रुपये होगा। (BS Hindi)
अगर आप महंगाई में इजाफे पर रो रहे हैं और इसके लिए प्याज को कोस रहे हैं तो एक बार फिर सोचिए क्योंकि प्याज आपकी जेब पर चोट बचा भी सकता है। दरअसल प्याज और दूसरी सब्जियों की वजह से महंगाई 5 महीने के उच्चतम स्तर 12.13 फीसदी पर पहुंच गई है, जिससे सरकार के सामने नई मुश्किल खड़ी हो गई है। मंत्रियों का अधिकार प्राप्त समूह डीजल पर होने वाला घाटा जनता की जेब से पूरा करने के लिए 30 दिसंबर को बैठक करने वाला था, लेकिन जानकारों के मुताबिक अब इसे टाला जा सकता है।दरअसल तेल कंपनियों को डीजल पर अभी 6 रुपये प्रति लीटर घाटा हो रहा है। लेकिन अगर सरकार उसके दाम में इजाफा करती है तो खाद्यान्न और फल-सब्जियों के भाव और बढ़ जाएंगे क्योंकि उनकी ढुलाई आम तौर पर ट्रक से ही होती है। प्याज के भाव पहले ही 70-80 रुपये प्रति किलोग्राम पर हैं। मदर डेयरी ने इसी हफ्ते दूध के दाम 1 रुपये प्रति लीटर बढ़ाए हैं, जिससे दूध भी महंगा हो गया है। ऐसे में सरकार के लिए डीजल के दाम बढ़ाना मुश्किल हैं।गुरुवार को सरकारी आंकड़ों के अनुसार खाद्य मुद्रास्फीति 1 हफ्ता पहले के 9.46 फीसदी से 12.13 फीसदी हो गई। इस दौरान प्याज, फल, अंडे, मांस, मछली, दूध तथा सब्जियों के दाम बढ़े। खाद्य मुद्रास्फीति में इससे पहले लगातार तीन सप्ताह सीमित उतारचढ़ाव रहा, लेकिन यह दहाई के आंकड़े से नीचे ही रही। इस साल जनवरी से खाद्य मुद्रास्फीति लगातार दहाई अंक में बनी रही। केवल जुलाई में दो सप्ताह के लिए यह नीचे उतरी थी।यस बैंक की मुख्य अर्थशास्त्री शुभदा राव कहते हैं, 'खाने-पीने और सब्जियों के दाम में बढ़ोतरी होने से सरकार डीजल महंगा करने की योजना कुछ हफ्तों के लिए टाल सकती है। लेकिन कच्चे तेल का भाव जिस तेजी से बढ़ रहा है, उससे वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही में डीजल की कीमत बढऩा तय है।Óसरकार फिलहाल जिन 3 पेट्रो पदार्थों के मूल्य तय करती हहै, उनमें डीजल का थोक मूल्य सूचकांक पर सबसे ज्यादा 4.6702 फीसदी भार है। उसके बाद रसोई गैस (0.91468) और केरोसिन (0.73619) का नंबर आता है। क्रिसिल के मुख्य अर्थशास्त्री धर्मकीर्ति जोशी ने कहा, 'डीजल का मूल्य बढ़ाना बेहद मुश्किल है क्योंकि महंगाई पहले ही ज्यादा है और उसमें कमी के आसार भी अभी नजर नहीं आ रहे हैं। सरकार के लिए फैसला बहुत मुश्किल होगा। कीमत बढ़ते ही महंगाई की लपटें और तेज हो जाएंगी।Óपेट्रोल का थोक मूल्य सूचकांक पर 1.09015 फीसदी भार है। पिछले हफ्ते ही उसका भाव 2.95-2.96 रुपये प्रति लीटर बढ़ाया गया है और थोक मुद्रास्फीति के दिसंबर के आंकड़ों में उसका असर नजर आएगा। नवंबर में यह आंकड़ा 7.48 फीसदी था।एचडीएफसी बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री अभीक बरुआ ने भी कहा कि सरकार डीजल मूल्य वृद्घि को अधिक से अधिक टालना चाहेगी। हालांकि इसकी वजह से तेल कंपनियों को जबरदस्त घाटा हो रहा है।इन कंपनियों को डीजल पर 6.08 रुपये प्रति लीटर और केरोसिन पर 17.72 रुपये प्रति लीटर घाटा हो रहा है। रसोई गैस पर घाटा 272.19 रुपये प्रति सिलिंडर है। पेट्रोल पर भी अभी उन्हें कुछ घाटा हो रहा है। इस वजह से चालू वित्त वर्ष में उनका कुल घाटा लगभग 68,000 करोड़ रुपये होगा। (BS Hindi)
नवंबर में 39.8 टन सोने का आयात हुआ
मुंबई December 24, 2010
इस वर्ष नवंबर में सोने का आयात लगभग 42 प्रतिशत बढ़कर 39.8 टन हो गया। बंबई सर्राफा एसोसिएशन के आंकड़ों के मुताबिक नवंबर 2009 में यह मात्रा 28 टन थी। गौरतलब है कि भारत सोने का सबसे बड़ा आयातक देश है।एसोसिएशन के अध्यक्ष पृथ्वीराज कोठारी ने पीटीआइ के मुताबिक वर्ष 2009 में मांग पर मंदी का असर देखा गया था, लेकिन इस वर्ष कीमतों में असामान्य उछाल के बावजूद सोने की अच्छी मांग देखी जा रही है। अच्छे मॉनसून के साथ-साथ शेयर और कमोडिटी बाजारों में मजबूती का असर ग्राहकों के रुझान पर रहा।घरेलू बाजार में सोने के भाव 25,000 रुपये प्रति 10 ग्राम से भी ऊंचे चल रहे हैं। इससे पहले विश्व स्वर्ण परिषद की रिपोर्ट में कहा गया था कि जनवरी-सितंबर की अवधि में सोने की मांग 79 प्रतिशत बढ़कर 650.4 टन रही। (BS Hindi)
इस वर्ष नवंबर में सोने का आयात लगभग 42 प्रतिशत बढ़कर 39.8 टन हो गया। बंबई सर्राफा एसोसिएशन के आंकड़ों के मुताबिक नवंबर 2009 में यह मात्रा 28 टन थी। गौरतलब है कि भारत सोने का सबसे बड़ा आयातक देश है।एसोसिएशन के अध्यक्ष पृथ्वीराज कोठारी ने पीटीआइ के मुताबिक वर्ष 2009 में मांग पर मंदी का असर देखा गया था, लेकिन इस वर्ष कीमतों में असामान्य उछाल के बावजूद सोने की अच्छी मांग देखी जा रही है। अच्छे मॉनसून के साथ-साथ शेयर और कमोडिटी बाजारों में मजबूती का असर ग्राहकों के रुझान पर रहा।घरेलू बाजार में सोने के भाव 25,000 रुपये प्रति 10 ग्राम से भी ऊंचे चल रहे हैं। इससे पहले विश्व स्वर्ण परिषद की रिपोर्ट में कहा गया था कि जनवरी-सितंबर की अवधि में सोने की मांग 79 प्रतिशत बढ़कर 650.4 टन रही। (BS Hindi)
23 दिसंबर 2010
सोने की मुनाफावसूली करने के बाद कर का उत्तरदायित्व निभाना न भूलें
December 05, 2010
अगर आपके पास सोना है जिसे आप निवेश के जरिये के तौर पर इस्तेमाल करना चाहते हैं तो मुनाफा कमाने का यह सबसे सुनहरा वक्त है और आप सोने की बिक्री करके मुनाफा कमा सकते हैं। शादी-ब्याह के मौजूदा मौसम के दौरान सोने की कीमतें 24 नवंबर को प्रति 10 ग्राम 20,800 रुपये के स्तर पर पहुंच गईं। फिलहाल अभी यह इसी दायरे में चल रहा है। आपने सोने को कितने लंबे समय से और किस तरह से रखा है मुनाफा भी इसी पर निर्भर करता है और इसमें कुछ कर का प्रावधान भी होगा। राइट होराइजंस के वित्तीय सलाहकार के सीईओ अनिल रेगो का कहना है, 'जमीन और शेयरों की तरह सोने को भी परिसंपत्ति के तौर पर देखा जाता है। बिक्री से होने वाले किसी भी मुनाफे पर कर लगता है।Ó कराधान के नियम गोल्ड एक्सचेंज-ट्रेडेड फंड (ईटीएफ), गोल्ड इक्विटी फंड और भौतिक सोने के लिए अलग-अलग होते हैं। किसी भौतिक सोने मसलन सोने के सिक्के, बिस्कुट या गहने को अगर 3 साल के भीतर बेचा जाता है तो इसके मुनाफे को लघु अवधि के पूंजीगत लाभ (एसटीसीजी) के तौर पर समझा जाता है।किसी साल में आपकी कुल आमदनी में इसे जोड़ा जाता है और आपको लागू होने वाले टैक्स स्लैब के मुताबिक कर देना पड़ेगा। करीब 3 साल के बाद भौतिक सोने की परिसंपत्तियों को बेचना एक बेहतर विचार है। डेलॉयट, हसकिंस ऐंड सेल्स के कर अधिकारी होमी मिस्त्री का कहना है, 'आप परिसंपत्ति को कितने दिन बनाए रखते हैं यह बेहद महत्वपूर्ण पहलू है और इस पर आयकर विभाग की नजर होती है।Ó करीब 3 साल बाद सोने की बिक्री पर लंबी अवधि का पूंजीगत लाभ कर (एलटीसीजी) लागू होता है। सोने की बढ़ती कीमतों के साथ धातुओं में वैकिल्पक निवेश के मौके की मांग मसलन गोल्ड ईटीएफ और गोल्ड इक्विटी फंडों में भी तेजी आ रही है। गोल्ड ईटीएफ और भौतिक सोना दोनों से साल दर साल मिलने वाला रिटर्न औसतन 13 फीसदी रहा है। गोल्ड ईटीएफ का ऑफर एचडीएफसी जैसे फंड करते हैं या रेलिगेयर भौतिक सोने के बिस्कुट में निवेश करता है। निवेशक जो ईटीएफ की खरीदारी करते हैं वे फंडों के यूनिट को रखते हैं।सिंगल यूनिट का भाव एक ग्राम सोने के लगभग बराबर है। गोल्ड इक्विटी फंडों मसलन डीएसपी ब्लैकरॉक वल्र्ड गोल्ड फंड और एआइजी वल्र्ड गोल्ड फंड ऐसी योजनाएं हैं जो दूसरे अंतरराष्टï्रीय फंडों के फंड में निवेश करती हैं और वे ऐसी कंपनियों के शेयरों की खरीदारी करती है जो सोने की खदान से जुड़ी है। ईटीएफ और गोल्ड इक्विटी फंडों को डेट फंड के तौर पर रखा जाता है और उसी के मुताबिक उस पर कर लगाया जाता है। एक साल के भीतर सोने की बिक्री से एसटीसीजी लगता है। एक साल के बाद की बिक्री पर किसी भी व्यक्ति को एलटीसीजी कर का भुगतान करना होगा। इसके तहत आप या तो बिना किसी इंडेक्सेशन फायदे के 10 फीसदी कर का भुगतान करते हैं या कमाई हुई रकम पर 20 फीसदी का भुगतान करते हैं। सभी एलटीसीजी करों पर 3 फीसदी अतिरिक्त शिक्षा उपकर लगता है। अगर नई प्रत्यक्ष कर संहिता 1 अप्रैल 2012 से प्रभावी होती है तो निवेशकों को निवेश की अवधि को याद रखना चाहिए। किसी वित्तीय वर्ष के दौरान खरीदी गई परिसंपत्तियों को रखा जाता है और इसे उस वित्त वर्ष के अंत तक बनाए रखा जाता है तो उस पर आयकर स्लैब के मुताबिक ही कर लगाना चाहिए। मिसाल के तौर पर अगर किसी ने 2 लाख रुपये के सोने की बिक्री की है तो इंडेक्सेशन लागत के बाद उनका मुनाफा 80,000 रुपये होगा। कर के अलावा निवेशकों को सोने की बिक्री करते वक्त भी पूरी सावधानी बरतनी चाहिए। (BS Hindi)
अगर आपके पास सोना है जिसे आप निवेश के जरिये के तौर पर इस्तेमाल करना चाहते हैं तो मुनाफा कमाने का यह सबसे सुनहरा वक्त है और आप सोने की बिक्री करके मुनाफा कमा सकते हैं। शादी-ब्याह के मौजूदा मौसम के दौरान सोने की कीमतें 24 नवंबर को प्रति 10 ग्राम 20,800 रुपये के स्तर पर पहुंच गईं। फिलहाल अभी यह इसी दायरे में चल रहा है। आपने सोने को कितने लंबे समय से और किस तरह से रखा है मुनाफा भी इसी पर निर्भर करता है और इसमें कुछ कर का प्रावधान भी होगा। राइट होराइजंस के वित्तीय सलाहकार के सीईओ अनिल रेगो का कहना है, 'जमीन और शेयरों की तरह सोने को भी परिसंपत्ति के तौर पर देखा जाता है। बिक्री से होने वाले किसी भी मुनाफे पर कर लगता है।Ó कराधान के नियम गोल्ड एक्सचेंज-ट्रेडेड फंड (ईटीएफ), गोल्ड इक्विटी फंड और भौतिक सोने के लिए अलग-अलग होते हैं। किसी भौतिक सोने मसलन सोने के सिक्के, बिस्कुट या गहने को अगर 3 साल के भीतर बेचा जाता है तो इसके मुनाफे को लघु अवधि के पूंजीगत लाभ (एसटीसीजी) के तौर पर समझा जाता है।किसी साल में आपकी कुल आमदनी में इसे जोड़ा जाता है और आपको लागू होने वाले टैक्स स्लैब के मुताबिक कर देना पड़ेगा। करीब 3 साल के बाद भौतिक सोने की परिसंपत्तियों को बेचना एक बेहतर विचार है। डेलॉयट, हसकिंस ऐंड सेल्स के कर अधिकारी होमी मिस्त्री का कहना है, 'आप परिसंपत्ति को कितने दिन बनाए रखते हैं यह बेहद महत्वपूर्ण पहलू है और इस पर आयकर विभाग की नजर होती है।Ó करीब 3 साल बाद सोने की बिक्री पर लंबी अवधि का पूंजीगत लाभ कर (एलटीसीजी) लागू होता है। सोने की बढ़ती कीमतों के साथ धातुओं में वैकिल्पक निवेश के मौके की मांग मसलन गोल्ड ईटीएफ और गोल्ड इक्विटी फंडों में भी तेजी आ रही है। गोल्ड ईटीएफ और भौतिक सोना दोनों से साल दर साल मिलने वाला रिटर्न औसतन 13 फीसदी रहा है। गोल्ड ईटीएफ का ऑफर एचडीएफसी जैसे फंड करते हैं या रेलिगेयर भौतिक सोने के बिस्कुट में निवेश करता है। निवेशक जो ईटीएफ की खरीदारी करते हैं वे फंडों के यूनिट को रखते हैं।सिंगल यूनिट का भाव एक ग्राम सोने के लगभग बराबर है। गोल्ड इक्विटी फंडों मसलन डीएसपी ब्लैकरॉक वल्र्ड गोल्ड फंड और एआइजी वल्र्ड गोल्ड फंड ऐसी योजनाएं हैं जो दूसरे अंतरराष्टï्रीय फंडों के फंड में निवेश करती हैं और वे ऐसी कंपनियों के शेयरों की खरीदारी करती है जो सोने की खदान से जुड़ी है। ईटीएफ और गोल्ड इक्विटी फंडों को डेट फंड के तौर पर रखा जाता है और उसी के मुताबिक उस पर कर लगाया जाता है। एक साल के भीतर सोने की बिक्री से एसटीसीजी लगता है। एक साल के बाद की बिक्री पर किसी भी व्यक्ति को एलटीसीजी कर का भुगतान करना होगा। इसके तहत आप या तो बिना किसी इंडेक्सेशन फायदे के 10 फीसदी कर का भुगतान करते हैं या कमाई हुई रकम पर 20 फीसदी का भुगतान करते हैं। सभी एलटीसीजी करों पर 3 फीसदी अतिरिक्त शिक्षा उपकर लगता है। अगर नई प्रत्यक्ष कर संहिता 1 अप्रैल 2012 से प्रभावी होती है तो निवेशकों को निवेश की अवधि को याद रखना चाहिए। किसी वित्तीय वर्ष के दौरान खरीदी गई परिसंपत्तियों को रखा जाता है और इसे उस वित्त वर्ष के अंत तक बनाए रखा जाता है तो उस पर आयकर स्लैब के मुताबिक ही कर लगाना चाहिए। मिसाल के तौर पर अगर किसी ने 2 लाख रुपये के सोने की बिक्री की है तो इंडेक्सेशन लागत के बाद उनका मुनाफा 80,000 रुपये होगा। कर के अलावा निवेशकों को सोने की बिक्री करते वक्त भी पूरी सावधानी बरतनी चाहिए। (BS Hindi)
हरियाणा में हासिल होगा गेहूं बुआई का तय लक्ष्य
चंडीगढ़ December 22, 2010
हरियाणा में गेहूं बुआई का आंकड़ा तेजी से तय लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है। राज्य के कृषि विभाग के अधिकारियों ने कहा कि गेहूं की बुआई देर से शुरू होने के बावजूद हम तय लक्ष्य को आसानी से हासिल कर लेंगे। कृषि विभाग के अधिकारी के मुताबिक पिछले साल राज्य में कुल 24.72 लाख हेक्टेयर भूमि में गेहूं की खेती की गई थी जबकि इस साल 24.65 लाख हेक्टेयर भूमि में गेहूं बोने का लक्ष्य रखा गया है। इसमें से अब तक कुल 24 लाख हेक्टेयर भूमि में गेहूं की बुआई पूरी हो चुकी है। यानी गेहूं की बुआई का आंकड़ा तय लक्ष्य से अब नाम मात्र ही पीछे है। अधिकारी ने स्पष्टï किया कि तय लक्ष्य को न केवल आसानी से हासिल किया जाएगा बल्कि राज्य में लक्ष्य से भी ज्यादा बुआई संभव है। हरियाणा देश में तीसरा सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक राज्य है जबकि केंद्रीय पूल में योगदान करने वाला दूसरा सबसे बड़ा राज्य है। गेहूं की बीज से उत्पन्न होने वाली बीमारी की रोकथाम के लिए सरकार ने इस साल किसानों को पूरी तरह शोधित और प्रमाणित बीज उपलब्ध कराया है। किसानों को प्रमाणित गेहूं बीज देने के अलावा इसकी बुआई से जुड़े निर्देश भी दिए जा रहे हैं ताकि किसान इसका ज्यादा से ज्यादा फायदा उठा सके। हालांकि इसके पहले भी राज्य सरकार ने किसानों को गेहूं बीज उपलब्ध कराया था लेकिन सरकारी एजेंसियों और निजी बीज एजेंटों द्वारा दिशा-निर्देशों की अवहेलना करने की वजह से यह उतना सफल नहीं रहा था। इस साल स्थिति थोड़ी अलग है। इस बार किसानों को प्रमाणित बीज की बुआई से जुड़े निर्देश सरकार द्वारा प्रमाणित बीज एजेंट दे रहे हैं। यानी सरकार का प्रयास यही है कि प्रमाणित बीजों की बुआई में किसी प्रकार की गड़बड़ी न हो। कृषि विभाग के अधिकारी का कहना है कि प्रमाणित बीज की मदद से मिट्टïी और बीज से उत्पन्न होने वाली बीमारियों की रोकथाम की जा सकेगी। बताया जाता है कि हरियाणा में इस साल अच्छी बारिश हुई है जिससे मिट्टïी में पर्याप्त नमी है और इसका फायदा गेहूं की फसल को मिलेगा। अच्छी उत्पादकता को ध्यान में रखते हुए सरकार ने इस साल राज्य में कुल 114 लाख टन गेहूं उत्पादन का लक्ष्य रखा है। हालांकि पिछले साल भी सरकार ने 114 लाख टन गेहूं उत्पादन का लक्ष्य रखा था लेकिन वास्तविक उपज 105 लाख टन रही थी। इस साल भी बुआई में देरी होने से गेहूं उत्पादकता पर असर पडऩे की बात कही जा रही है। (BS Hindi)
हरियाणा में गेहूं बुआई का आंकड़ा तेजी से तय लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है। राज्य के कृषि विभाग के अधिकारियों ने कहा कि गेहूं की बुआई देर से शुरू होने के बावजूद हम तय लक्ष्य को आसानी से हासिल कर लेंगे। कृषि विभाग के अधिकारी के मुताबिक पिछले साल राज्य में कुल 24.72 लाख हेक्टेयर भूमि में गेहूं की खेती की गई थी जबकि इस साल 24.65 लाख हेक्टेयर भूमि में गेहूं बोने का लक्ष्य रखा गया है। इसमें से अब तक कुल 24 लाख हेक्टेयर भूमि में गेहूं की बुआई पूरी हो चुकी है। यानी गेहूं की बुआई का आंकड़ा तय लक्ष्य से अब नाम मात्र ही पीछे है। अधिकारी ने स्पष्टï किया कि तय लक्ष्य को न केवल आसानी से हासिल किया जाएगा बल्कि राज्य में लक्ष्य से भी ज्यादा बुआई संभव है। हरियाणा देश में तीसरा सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक राज्य है जबकि केंद्रीय पूल में योगदान करने वाला दूसरा सबसे बड़ा राज्य है। गेहूं की बीज से उत्पन्न होने वाली बीमारी की रोकथाम के लिए सरकार ने इस साल किसानों को पूरी तरह शोधित और प्रमाणित बीज उपलब्ध कराया है। किसानों को प्रमाणित गेहूं बीज देने के अलावा इसकी बुआई से जुड़े निर्देश भी दिए जा रहे हैं ताकि किसान इसका ज्यादा से ज्यादा फायदा उठा सके। हालांकि इसके पहले भी राज्य सरकार ने किसानों को गेहूं बीज उपलब्ध कराया था लेकिन सरकारी एजेंसियों और निजी बीज एजेंटों द्वारा दिशा-निर्देशों की अवहेलना करने की वजह से यह उतना सफल नहीं रहा था। इस साल स्थिति थोड़ी अलग है। इस बार किसानों को प्रमाणित बीज की बुआई से जुड़े निर्देश सरकार द्वारा प्रमाणित बीज एजेंट दे रहे हैं। यानी सरकार का प्रयास यही है कि प्रमाणित बीजों की बुआई में किसी प्रकार की गड़बड़ी न हो। कृषि विभाग के अधिकारी का कहना है कि प्रमाणित बीज की मदद से मिट्टïी और बीज से उत्पन्न होने वाली बीमारियों की रोकथाम की जा सकेगी। बताया जाता है कि हरियाणा में इस साल अच्छी बारिश हुई है जिससे मिट्टïी में पर्याप्त नमी है और इसका फायदा गेहूं की फसल को मिलेगा। अच्छी उत्पादकता को ध्यान में रखते हुए सरकार ने इस साल राज्य में कुल 114 लाख टन गेहूं उत्पादन का लक्ष्य रखा है। हालांकि पिछले साल भी सरकार ने 114 लाख टन गेहूं उत्पादन का लक्ष्य रखा था लेकिन वास्तविक उपज 105 लाख टन रही थी। इस साल भी बुआई में देरी होने से गेहूं उत्पादकता पर असर पडऩे की बात कही जा रही है। (BS Hindi)
जनवरी में निर्यात पंजीकरण
मुंबई December 22, 2010
कपास निर्यात के बाकी बचे हिस्से के लिए पंजीकरण का काम जनवरी के पहले हफ्ते में शुरू होने की संभावना है। सरकार ने कुल 55 लाख गांठ कपास निर्यात की अनुमति दी थी, लेकिन निर्यातक तय समय में सिर्फ 30 लाख गांठ कपास का निर्यात कर पाए। बाकी 25 लाख गांठ कपास के निर्यात के लिए सरकार दोबारा पंजीकरण का काम जनवरी में शुरू करेगी। कपड़ा मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक, मंत्रालय ने बुधवार को बाकी बची 25 लाख गांठ का पंजीकरण रद्द कर दिया क्योंकि विभिन्न वजहों से निर्यातक कपास की इतनी मात्रा का निर्यात नहीं कर पाए। निर्यात की समय सीमा 15 दिसंबर को समाप्त हो गई, जिसे कपड़ा मंत्रालय ने आगे नहीं बढ़ाया था।इस हफ्ते की शुरुआत में वाणिज्य मंत्रालय ने संकेत दिया था कि विदेश व्यापार निदेशालय (डीजीएफटी) के पास दोबारा पंजीकरण की जरूरत होगी, जबकि पहले टेक्सटाइल कमिश्नर के पास ऐसा कराना होता था। निर्यात पंजीकरण और इसकी सुपुर्दगी के लिए डीजीएफटी संशोधित दिशा-निर्देश तैयार कर रहा है। कारोबारियों को भरोसा है कि यह दिशा-निर्देश उद्योगों के हित में होगा। उद्योग ने कपास के सही ढंग से निर्यात केलिए तीन आधारभूत जरूरतों का सुझाव दिया था। पहला, निर्यात का पंजीकरण तभी हो जब बैंक की तरफ से वैध लेटर ऑफ इंटेंट जारी कर दिया जाए। आज केदौर में नकदी के बदले भी निर्यात किया जा सकता है, जो कारोबार में सटोरिया गतिविधियों के लिए जगह बनाता है।दूसरा, सुपुर्दगी की अवधि 45 दिन से घटाकर 30 दिन कर दी जानी चाहिए ताकि सिर्फ सही कारोबारी खरीद समझौता कर सकेंऔर इस सौदे का क्रियान्वयन कर सकें। सुपुर्दगी की अवधि लंबी होने से कारोबारियों को खरीदारों के साथ गलत धारणा के साथ सौदेबाजी करने का मौका मिल जाता है। तीसरा, कारोबारी बांग्लादेश जैसे देश में सहायक कार्यालय खोलकर बड़ी मात्रा में कपास इकट्ठा कर लेते हैं ताकि इसका परिवहन वैसे समय में उन देशों में किया जा सके जब कीमतें सर्वोच्च स्तर पर हों या खरीदार प्रीमियम देने को राजी हों। इस प्रक्रिया में वास्तविक खरीदार भारत से वास्तविक सुपुर्दगी से पहले माल हासिल कर लेता है। कॉटन कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (सीसीआई) के सीएमडी एम. बी. लाल ने कहा कि इसके अलावा हमने सरकार से ऐसे कारोबारियों को दंड देने का भी निवेदन किया है और ऐसे लोगों को भविष्य में निर्यात करने पर रोक लगाने का भी। सितंबर में कपड़ा मंत्रालय ने 55 लाख गांठ कपास निर्यात के लिए पंजीकरण की शुरुआत की थी। लेकिन 1 अक्टूबर से 15 अक्टूबर के बीच पंजीकृत मात्रा निर्धारित कोटा को पार कर गई। इसकेबाद सरकार ने ताजा पंजीकरण से इनकार कर दिया था।पाकिस्तान में बाढ़ आने की वजह से फसल बर्बाद होने और चीन में घरेलू स्तर पर कपास के इस्तेमाल में बढ़ोतरी के बाद निर्यातकों ने भारतीय बाजार का रुख कर लिया था और इस वजह से वैश्विक बाजार में कपास की कीमतों में नाटकीय रूप से बढ़ोतरी हो गई थी। बेंचमार्क किस्म शंकर-6 की कीमत पिछले तीन महीने में बढ़कर 11838 रुपये प्रति क्विंटल पर पहुंच गई जबकि 1 सितंबर को इसकी कीमत 9617 रुपये प्रति क्विंटल थी।इस बीच, कपास के वास्तविक उत्पादन को लेकर कारोबारी बंट गए हैं। लाल को भरोसा है कि देश में कपास का कुल उत्पादन करीब 350 लाख गांठ होगा जबकि उद्योग के दिग्गज (नाम न छापने की शर्त पर) कहते हैं कि कुल उत्पादन 335 लाख गांठ रहेगा। उनका कहना है कि आंध्र प्रदेश में फसल खराब होने की वजह से कुल उत्पादन 335 लाख गांठ रहेगा।असमय बारिश की वजह से आंध्र प्रदेश में कपास की 30 फीसदी फसल खराब हो गई है। यहां कुल उत्पादन 54 लाख गांठ बताया गया है। इसके उलट कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीएआई) का अनुमान है कि इस सीजन में कपास का कुल उत्पादन 347 लाख गांठ रहेगा जबकि पिछले सीजन में 307.7 लाख गांठ कपास का उत्पादन हुआ था। कॉटन एडवाइजरी बोर्ड ने सीजन की शुरुआत में कुल उत्पादन 325 लाख गांठ रहने का अनुमान लगाया था। (BS Hindi)
कपास निर्यात के बाकी बचे हिस्से के लिए पंजीकरण का काम जनवरी के पहले हफ्ते में शुरू होने की संभावना है। सरकार ने कुल 55 लाख गांठ कपास निर्यात की अनुमति दी थी, लेकिन निर्यातक तय समय में सिर्फ 30 लाख गांठ कपास का निर्यात कर पाए। बाकी 25 लाख गांठ कपास के निर्यात के लिए सरकार दोबारा पंजीकरण का काम जनवरी में शुरू करेगी। कपड़ा मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक, मंत्रालय ने बुधवार को बाकी बची 25 लाख गांठ का पंजीकरण रद्द कर दिया क्योंकि विभिन्न वजहों से निर्यातक कपास की इतनी मात्रा का निर्यात नहीं कर पाए। निर्यात की समय सीमा 15 दिसंबर को समाप्त हो गई, जिसे कपड़ा मंत्रालय ने आगे नहीं बढ़ाया था।इस हफ्ते की शुरुआत में वाणिज्य मंत्रालय ने संकेत दिया था कि विदेश व्यापार निदेशालय (डीजीएफटी) के पास दोबारा पंजीकरण की जरूरत होगी, जबकि पहले टेक्सटाइल कमिश्नर के पास ऐसा कराना होता था। निर्यात पंजीकरण और इसकी सुपुर्दगी के लिए डीजीएफटी संशोधित दिशा-निर्देश तैयार कर रहा है। कारोबारियों को भरोसा है कि यह दिशा-निर्देश उद्योगों के हित में होगा। उद्योग ने कपास के सही ढंग से निर्यात केलिए तीन आधारभूत जरूरतों का सुझाव दिया था। पहला, निर्यात का पंजीकरण तभी हो जब बैंक की तरफ से वैध लेटर ऑफ इंटेंट जारी कर दिया जाए। आज केदौर में नकदी के बदले भी निर्यात किया जा सकता है, जो कारोबार में सटोरिया गतिविधियों के लिए जगह बनाता है।दूसरा, सुपुर्दगी की अवधि 45 दिन से घटाकर 30 दिन कर दी जानी चाहिए ताकि सिर्फ सही कारोबारी खरीद समझौता कर सकेंऔर इस सौदे का क्रियान्वयन कर सकें। सुपुर्दगी की अवधि लंबी होने से कारोबारियों को खरीदारों के साथ गलत धारणा के साथ सौदेबाजी करने का मौका मिल जाता है। तीसरा, कारोबारी बांग्लादेश जैसे देश में सहायक कार्यालय खोलकर बड़ी मात्रा में कपास इकट्ठा कर लेते हैं ताकि इसका परिवहन वैसे समय में उन देशों में किया जा सके जब कीमतें सर्वोच्च स्तर पर हों या खरीदार प्रीमियम देने को राजी हों। इस प्रक्रिया में वास्तविक खरीदार भारत से वास्तविक सुपुर्दगी से पहले माल हासिल कर लेता है। कॉटन कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (सीसीआई) के सीएमडी एम. बी. लाल ने कहा कि इसके अलावा हमने सरकार से ऐसे कारोबारियों को दंड देने का भी निवेदन किया है और ऐसे लोगों को भविष्य में निर्यात करने पर रोक लगाने का भी। सितंबर में कपड़ा मंत्रालय ने 55 लाख गांठ कपास निर्यात के लिए पंजीकरण की शुरुआत की थी। लेकिन 1 अक्टूबर से 15 अक्टूबर के बीच पंजीकृत मात्रा निर्धारित कोटा को पार कर गई। इसकेबाद सरकार ने ताजा पंजीकरण से इनकार कर दिया था।पाकिस्तान में बाढ़ आने की वजह से फसल बर्बाद होने और चीन में घरेलू स्तर पर कपास के इस्तेमाल में बढ़ोतरी के बाद निर्यातकों ने भारतीय बाजार का रुख कर लिया था और इस वजह से वैश्विक बाजार में कपास की कीमतों में नाटकीय रूप से बढ़ोतरी हो गई थी। बेंचमार्क किस्म शंकर-6 की कीमत पिछले तीन महीने में बढ़कर 11838 रुपये प्रति क्विंटल पर पहुंच गई जबकि 1 सितंबर को इसकी कीमत 9617 रुपये प्रति क्विंटल थी।इस बीच, कपास के वास्तविक उत्पादन को लेकर कारोबारी बंट गए हैं। लाल को भरोसा है कि देश में कपास का कुल उत्पादन करीब 350 लाख गांठ होगा जबकि उद्योग के दिग्गज (नाम न छापने की शर्त पर) कहते हैं कि कुल उत्पादन 335 लाख गांठ रहेगा। उनका कहना है कि आंध्र प्रदेश में फसल खराब होने की वजह से कुल उत्पादन 335 लाख गांठ रहेगा।असमय बारिश की वजह से आंध्र प्रदेश में कपास की 30 फीसदी फसल खराब हो गई है। यहां कुल उत्पादन 54 लाख गांठ बताया गया है। इसके उलट कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीएआई) का अनुमान है कि इस सीजन में कपास का कुल उत्पादन 347 लाख गांठ रहेगा जबकि पिछले सीजन में 307.7 लाख गांठ कपास का उत्पादन हुआ था। कॉटन एडवाइजरी बोर्ड ने सीजन की शुरुआत में कुल उत्पादन 325 लाख गांठ रहने का अनुमान लगाया था। (BS Hindi)
वार गई बढ़ मगर भाव भी गए चढ़
नई दिल्ली December 22, 2010
सरकार पिछले सत्र के दौरान उत्पादन में कमी का हवाला देकर जिंसों के दाम बढऩे की वजह बताकर अपना बचाव करती रही है, लेकिन अब यही दाव उस पर उलटा पडऩे लगा है। देश में कपास, चीनी, तिलहन समेत कई खाद्यान्न का बंपर उत्पादन है, फिर भी इनके दाम घटने के बजाय आसमान छू रहे हैं।जानकार दाम बढऩे की वजह सरकारी की नीतियों को मान रहे हैं। सरकार द्वारा कपास निर्यात में छूट देने के फैसले के बाद इसके भाव 10 फीसदी बढ़ चुके हैं। चीनी निर्यात की अनुमति और वायदा कारोबार फिर शुरू होने की खबरों से इसके दाम भी बढ़े हैं। साल भर में खाद्य तेलों के दाम भी 20 फीसदी से अधिक बढ़ चुके हैं। आंध्र प्रदेश में बारिश से दलहन की फसल चौपट हो सकती है। ऐसे में दालें एक बार फिर उबल सकती हैं।मुक्तसर कॉटन प्राइवेट लिमिटेड के नवीन ग्रोवर ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि कपास निर्यात की अनुमति और सीमा और बढ़ाने के फैसले के बाद से कपास के दाम 500 रुपये बढ़कर 4500 रुपये प्रति मन (40 किलोग्राम ) हो चुके हैं। चीनी का भी यही हाल है। चालू चीनी वर्ष में उत्पादन 250 लाख टन से अधिक होने की संभावना है। यह पिछले चीनी वर्ष के 189 लाख टन से 32 फीसदी से भी अधिक है, बावजूद इसके चीनी की कीमतों में तेजी आई है। चीनी कारोबारी भीमसेन बंसल ने बताया कि निर्यात की अनुमति मिलने के बाद से चीनी कीमतों में 120 रुपये प्रति क्विंटल का इजाफा हो चुका है। आश्चर्य है कि पेराई सत्र होने के बावजूद चीनी महंगी हो रही है। ऑफ सीजन से चीनी की कीमतों में 400 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी आ चुकी है। खाद्य तेलों के दाम भी खरीफ सत्र 2010-11 में तिलहन उत्पादन करीब 12 फीसदी से अधिक बढ़कर 154 लाख टन होने के बावजूद बढ़े हैं। पिछले दिसंबर के मुकाबले सोयाबीन रिफाइंड तेल के दाम करीब 23 फीसदी बढ़कर 580 रुपये प्रति 10 किलो और सरसों तेल के दाम 7 फीसदी बढ़कर 620 रुपये हो चुके है। इस दौरान रिफाइंड सूरजमुखी के तेल की कीमतों 42 फीसदी, मूंगफली तेल में 11 फीसदी का इजाफा हुआ है। (BS Hindi)
सरकार पिछले सत्र के दौरान उत्पादन में कमी का हवाला देकर जिंसों के दाम बढऩे की वजह बताकर अपना बचाव करती रही है, लेकिन अब यही दाव उस पर उलटा पडऩे लगा है। देश में कपास, चीनी, तिलहन समेत कई खाद्यान्न का बंपर उत्पादन है, फिर भी इनके दाम घटने के बजाय आसमान छू रहे हैं।जानकार दाम बढऩे की वजह सरकारी की नीतियों को मान रहे हैं। सरकार द्वारा कपास निर्यात में छूट देने के फैसले के बाद इसके भाव 10 फीसदी बढ़ चुके हैं। चीनी निर्यात की अनुमति और वायदा कारोबार फिर शुरू होने की खबरों से इसके दाम भी बढ़े हैं। साल भर में खाद्य तेलों के दाम भी 20 फीसदी से अधिक बढ़ चुके हैं। आंध्र प्रदेश में बारिश से दलहन की फसल चौपट हो सकती है। ऐसे में दालें एक बार फिर उबल सकती हैं।मुक्तसर कॉटन प्राइवेट लिमिटेड के नवीन ग्रोवर ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि कपास निर्यात की अनुमति और सीमा और बढ़ाने के फैसले के बाद से कपास के दाम 500 रुपये बढ़कर 4500 रुपये प्रति मन (40 किलोग्राम ) हो चुके हैं। चीनी का भी यही हाल है। चालू चीनी वर्ष में उत्पादन 250 लाख टन से अधिक होने की संभावना है। यह पिछले चीनी वर्ष के 189 लाख टन से 32 फीसदी से भी अधिक है, बावजूद इसके चीनी की कीमतों में तेजी आई है। चीनी कारोबारी भीमसेन बंसल ने बताया कि निर्यात की अनुमति मिलने के बाद से चीनी कीमतों में 120 रुपये प्रति क्विंटल का इजाफा हो चुका है। आश्चर्य है कि पेराई सत्र होने के बावजूद चीनी महंगी हो रही है। ऑफ सीजन से चीनी की कीमतों में 400 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी आ चुकी है। खाद्य तेलों के दाम भी खरीफ सत्र 2010-11 में तिलहन उत्पादन करीब 12 फीसदी से अधिक बढ़कर 154 लाख टन होने के बावजूद बढ़े हैं। पिछले दिसंबर के मुकाबले सोयाबीन रिफाइंड तेल के दाम करीब 23 फीसदी बढ़कर 580 रुपये प्रति 10 किलो और सरसों तेल के दाम 7 फीसदी बढ़कर 620 रुपये हो चुके है। इस दौरान रिफाइंड सूरजमुखी के तेल की कीमतों 42 फीसदी, मूंगफली तेल में 11 फीसदी का इजाफा हुआ है। (BS Hindi)
आज से चीनी का वायदा
मुंबई December 22, 2010
वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) आखिरकार चीनी के वायदा कारोबार पर लगी रोक हटाने की तैयारी कर रहा है। गुरुवार को चीनी वायदा को मंजूरी दिए जाने की उम्मीद है। हालांकि पहले सौदे का निपटान जनवरी में हो पाएगा। इस कदम से चीनी के भाव में उछाल आ सकती है। नाम न छापने की शर्त पर एफएमसी के एक अधिकारी ने बताया, 'हम इस मामले में पहले ही अंतिम फैसला ले चुकेे हैं लेकिन औपचारिक ऐलान गुरुवार को किया जाएगा।Ó अधिकारी ने संकेत दिए कि शुरुआत में तीन महीनों के अनुबंध वाले सौदे किए जाएंगे।नियामक ने इस मामले में फैसला लेने के लिए इस कारोबार से जुड़े विभिन्न पक्षों के साथ पिछले हफ्ते बैठक की थी। तकरीबन दो महीने पहले केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने भी एफएमसी से व्यापक समीक्षा कर इस मामले में अंतिम फैसला लेने को कहा था। सरकार ने चीनी की बढ़ती कीमतों पर लगाम लगाने के लिए मई 2009 में चीनी वायदा पर रोक लगाई थी। ये रोक 1अक्टूबर से हटा ली गई थी लेकिन कारोबारियों के विरोध की वजह से अभी तक चीनी वायदा अनुंबध दोबारा शुरू नहीं हो पाया है।इस मामले में नैशनल कमोडिटी ऐंड डेरिवेटिव एक्सचेंज के प्रवक्ता का कहना है कि अभी तक हमें एफएमसी से कोई लिखित जानकारी नहीं मिली है लेकिन हम कल से ही कारोबार शुरू करने के लिए तैयार हैं। मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज ने कहा कि फिलहाल कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी। (BS Hindi)
वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) आखिरकार चीनी के वायदा कारोबार पर लगी रोक हटाने की तैयारी कर रहा है। गुरुवार को चीनी वायदा को मंजूरी दिए जाने की उम्मीद है। हालांकि पहले सौदे का निपटान जनवरी में हो पाएगा। इस कदम से चीनी के भाव में उछाल आ सकती है। नाम न छापने की शर्त पर एफएमसी के एक अधिकारी ने बताया, 'हम इस मामले में पहले ही अंतिम फैसला ले चुकेे हैं लेकिन औपचारिक ऐलान गुरुवार को किया जाएगा।Ó अधिकारी ने संकेत दिए कि शुरुआत में तीन महीनों के अनुबंध वाले सौदे किए जाएंगे।नियामक ने इस मामले में फैसला लेने के लिए इस कारोबार से जुड़े विभिन्न पक्षों के साथ पिछले हफ्ते बैठक की थी। तकरीबन दो महीने पहले केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने भी एफएमसी से व्यापक समीक्षा कर इस मामले में अंतिम फैसला लेने को कहा था। सरकार ने चीनी की बढ़ती कीमतों पर लगाम लगाने के लिए मई 2009 में चीनी वायदा पर रोक लगाई थी। ये रोक 1अक्टूबर से हटा ली गई थी लेकिन कारोबारियों के विरोध की वजह से अभी तक चीनी वायदा अनुंबध दोबारा शुरू नहीं हो पाया है।इस मामले में नैशनल कमोडिटी ऐंड डेरिवेटिव एक्सचेंज के प्रवक्ता का कहना है कि अभी तक हमें एफएमसी से कोई लिखित जानकारी नहीं मिली है लेकिन हम कल से ही कारोबार शुरू करने के लिए तैयार हैं। मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज ने कहा कि फिलहाल कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी। (BS Hindi)
तेजी से बढऩे लगी है इलायची की कीमतें
कोच्चि 12 22, 2010
कम उत्पादन और स्टॉक की खबरों के बीच इस हफ्ते इलायची की कीमतें अचानक बढ़ गई हैं। पिछले हफ्ते के मुकाबले इलायची की कीमत 200 रुपये प्रति किलोग्राम बढ़कर 1336 रुपये प्रति किलोग्राम पर पहुंच गई है। इसके अलावा सबसे अच्छी किस्म की इलायची 1475-1500 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंच गई है। उत्पादकों और कारोबारियों को भरोसा है कि अगले साल इलायची की कीमतें 2000 रुपये प्रति किलो के मनोवैज्ञानिक स्तर को पार कर जाएंगी। अब तक की सर्वोच्च कीमतें पिछले साल रिकॉर्ड की गई थी, जो 1750 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंची थी। पिछले साल दिसंबर में इलायची की औसत कीमत सिर्फ 1200 रुपये प्रति किलोग्राम थी।पिछले महीने इलायची का उत्पादन पूरे जोर-शोर से हो रहा था, लिहाजा इसकी कीमतें घटकर 850-900 रुपये प्रति किलोग्राम पर आ गई थी। लेकिन इस महीने के मध्य में इसकी कीमतें बढऩी शुरू हुई क्योंकि नीलामी केंद्रों में इसकी आवक घट गई थी।इलायची की कटाई का मुख्य सीजन अब समाप्ति पर है और पिछले कुछ हफ्तों से इसकी ताजा आवक कम हो गई है। इसी वजह से इसकी कीमतों में अचानक बढ़ोतरी देखी जा रही है। बाजार के सूत्रों का कहना है कि इस सीजन में उत्पादन में 25-30 फीसदी की कमी आएगी और इसकी कई वजहें हैं। विदेशी बाजारों में भारतीय इलायची की मांग अगले साल बढऩे की संभावना है क्योंकि दुनिया में इलायची का सबसे बड़ा उत्पादक ग्वाटेमाला मौसम की वजह से उत्पादन की बाबत संकट का सामना कर रहा है। उत्पादकों को उम्मीद है कि अगले साल स्थानीय बाजार के साथ-साथ विदेशी बाजार में भारतीय इलायची की मांग बढ़ेगी और इसका असर कीमतों पर पड़ेगा। ऐसे में बाजार को इसकी कीमत 2000 रुपये प्रति किलोग्राम पर पहुंचने की उम्मीद है।इलायची उत्पादन का मौजूदा सत्र इस महीने के आखिर तक समाप्त हो जाएगा और बाजार को अगले 7-8 महीने तक मौजूदा स्टॉक से ही काम चलाना होगा। नए साल में बेहतर कमाई के मौके की संभावना मानकर इलायची के बड़े उत्पादक नए साल के लिए इलायची का स्टॉक जमा कर रहे हैं। इस वजह से फिलहाल आपूर्ति पर प्रभाव पड़ा है। इडुक्की जिले में हुई असमय बारिश की वजह से उत्पादन का नुकसान हुआ है, जहां कुल उत्पादन का 55 फीसदी पैदा होता है। असमय बारिश की वजह से इलायची के पौधे में संक्रमण भी हुआ है और इस वजह से भी उत्पादन प्रभावित हुआ है। इससे इलायची की गुणवत्ता पर भी भारी असर पड़ा है। अग्रणी ïउत्पादकों के मुताबिक, संक्रमण की वजह से इस समय उत्पादन में करीब 30 फीसदी का नुकसान हुआ है। उत्पादकों केताजा अनुमान के मुताबिक यहां सालाना 13000 टन इलायची का उत्पादन होता है, लेकिन इस समय यह 10 हजार टन के आसपास रह सकता है। (BS Hindi)
कम उत्पादन और स्टॉक की खबरों के बीच इस हफ्ते इलायची की कीमतें अचानक बढ़ गई हैं। पिछले हफ्ते के मुकाबले इलायची की कीमत 200 रुपये प्रति किलोग्राम बढ़कर 1336 रुपये प्रति किलोग्राम पर पहुंच गई है। इसके अलावा सबसे अच्छी किस्म की इलायची 1475-1500 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंच गई है। उत्पादकों और कारोबारियों को भरोसा है कि अगले साल इलायची की कीमतें 2000 रुपये प्रति किलो के मनोवैज्ञानिक स्तर को पार कर जाएंगी। अब तक की सर्वोच्च कीमतें पिछले साल रिकॉर्ड की गई थी, जो 1750 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंची थी। पिछले साल दिसंबर में इलायची की औसत कीमत सिर्फ 1200 रुपये प्रति किलोग्राम थी।पिछले महीने इलायची का उत्पादन पूरे जोर-शोर से हो रहा था, लिहाजा इसकी कीमतें घटकर 850-900 रुपये प्रति किलोग्राम पर आ गई थी। लेकिन इस महीने के मध्य में इसकी कीमतें बढऩी शुरू हुई क्योंकि नीलामी केंद्रों में इसकी आवक घट गई थी।इलायची की कटाई का मुख्य सीजन अब समाप्ति पर है और पिछले कुछ हफ्तों से इसकी ताजा आवक कम हो गई है। इसी वजह से इसकी कीमतों में अचानक बढ़ोतरी देखी जा रही है। बाजार के सूत्रों का कहना है कि इस सीजन में उत्पादन में 25-30 फीसदी की कमी आएगी और इसकी कई वजहें हैं। विदेशी बाजारों में भारतीय इलायची की मांग अगले साल बढऩे की संभावना है क्योंकि दुनिया में इलायची का सबसे बड़ा उत्पादक ग्वाटेमाला मौसम की वजह से उत्पादन की बाबत संकट का सामना कर रहा है। उत्पादकों को उम्मीद है कि अगले साल स्थानीय बाजार के साथ-साथ विदेशी बाजार में भारतीय इलायची की मांग बढ़ेगी और इसका असर कीमतों पर पड़ेगा। ऐसे में बाजार को इसकी कीमत 2000 रुपये प्रति किलोग्राम पर पहुंचने की उम्मीद है।इलायची उत्पादन का मौजूदा सत्र इस महीने के आखिर तक समाप्त हो जाएगा और बाजार को अगले 7-8 महीने तक मौजूदा स्टॉक से ही काम चलाना होगा। नए साल में बेहतर कमाई के मौके की संभावना मानकर इलायची के बड़े उत्पादक नए साल के लिए इलायची का स्टॉक जमा कर रहे हैं। इस वजह से फिलहाल आपूर्ति पर प्रभाव पड़ा है। इडुक्की जिले में हुई असमय बारिश की वजह से उत्पादन का नुकसान हुआ है, जहां कुल उत्पादन का 55 फीसदी पैदा होता है। असमय बारिश की वजह से इलायची के पौधे में संक्रमण भी हुआ है और इस वजह से भी उत्पादन प्रभावित हुआ है। इससे इलायची की गुणवत्ता पर भी भारी असर पड़ा है। अग्रणी ïउत्पादकों के मुताबिक, संक्रमण की वजह से इस समय उत्पादन में करीब 30 फीसदी का नुकसान हुआ है। उत्पादकों केताजा अनुमान के मुताबिक यहां सालाना 13000 टन इलायची का उत्पादन होता है, लेकिन इस समय यह 10 हजार टन के आसपास रह सकता है। (BS Hindi)
22 दिसंबर 2010
महंगाई की भारी मार, चूल्हा ठंडा ठप कारोबार
नई दिल्ली 12 21, 2010
पीपली लाइव का गाना याद है, 'सखी सैयां तो खूब ही कमात है, महंगाई डायन खाय जात है। रोजमर्रा के सामान के दाम जिस कदर बढ़ रहे हैं, उससे तय है कि महंगाई डायन फिर रुलाएगी। प्याज ही नहीं हर मामले में महंगाई नए रिकॉर्ड बनाती दिख रही है।साल की शुरुआत में खाने पीने की वस्तुएं आसमान पर थीं और साल बीतते-बीतते औद्योगिक जिंसों के दाम भी रिकॉर्ड छू रहे हैं। प्याज, लहसुन के दाम सुनकर हैरान हुए लोगों को चीनी, हल्दी और खाद्य तेल परेशान कर रहा है। औद्योगिक जिंसों में तांबा, निकल, इस्पात और एल्युमीनियम के भाव काफी बढ़ चुके हैं और अगले माह से और बढ़ोतरी के आसार हैं। शादी-ब्याह के मौसम में कपड़ों और सोने-चांदी की कीमत भी माथे पर पसीना ला रही है।ऐसे ही हालात आगे भी रहे तो नया साल महंगाई डायन की भेंट ही चढ़ जाएगा। ऐसे में ऊंची आर्थिक विकास दर, नौकरियों की बहार और पगार में बढ़ोतरी से आम आदमी को मिली खुशी पर महंगाई पानी फेर सकती है।रसोई को ही देखिए। थोक बाजार में प्याज के दाम 90 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गए है और लहसुन के दाम 300 रुपये प्रति किलो से ऊपर चले गए है। जानकार मानते हैं कि महंगाई की वजह सरकारी नीतियां ही हैं। हरियाणा चैंबर ऑफ कार्मर्स के महासचिव ए एल अग्रवाल का कहना है कि सरकारी इस्पात कंपनी द्वारा इस्पात के दाम बढ़ाने से आम लोगों पर बोझ और बढ़ जाएगा। चीनी कारोबारी भीमसेन बंसल इस बारे में बताते है कि निर्यात की अनुमित देने और वायदा कारोबार फिर से शुरू करने पर चीनी कीमतों में और तेजी आएगी। (BS Hindi)
पीपली लाइव का गाना याद है, 'सखी सैयां तो खूब ही कमात है, महंगाई डायन खाय जात है। रोजमर्रा के सामान के दाम जिस कदर बढ़ रहे हैं, उससे तय है कि महंगाई डायन फिर रुलाएगी। प्याज ही नहीं हर मामले में महंगाई नए रिकॉर्ड बनाती दिख रही है।साल की शुरुआत में खाने पीने की वस्तुएं आसमान पर थीं और साल बीतते-बीतते औद्योगिक जिंसों के दाम भी रिकॉर्ड छू रहे हैं। प्याज, लहसुन के दाम सुनकर हैरान हुए लोगों को चीनी, हल्दी और खाद्य तेल परेशान कर रहा है। औद्योगिक जिंसों में तांबा, निकल, इस्पात और एल्युमीनियम के भाव काफी बढ़ चुके हैं और अगले माह से और बढ़ोतरी के आसार हैं। शादी-ब्याह के मौसम में कपड़ों और सोने-चांदी की कीमत भी माथे पर पसीना ला रही है।ऐसे ही हालात आगे भी रहे तो नया साल महंगाई डायन की भेंट ही चढ़ जाएगा। ऐसे में ऊंची आर्थिक विकास दर, नौकरियों की बहार और पगार में बढ़ोतरी से आम आदमी को मिली खुशी पर महंगाई पानी फेर सकती है।रसोई को ही देखिए। थोक बाजार में प्याज के दाम 90 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गए है और लहसुन के दाम 300 रुपये प्रति किलो से ऊपर चले गए है। जानकार मानते हैं कि महंगाई की वजह सरकारी नीतियां ही हैं। हरियाणा चैंबर ऑफ कार्मर्स के महासचिव ए एल अग्रवाल का कहना है कि सरकारी इस्पात कंपनी द्वारा इस्पात के दाम बढ़ाने से आम लोगों पर बोझ और बढ़ जाएगा। चीनी कारोबारी भीमसेन बंसल इस बारे में बताते है कि निर्यात की अनुमित देने और वायदा कारोबार फिर से शुरू करने पर चीनी कीमतों में और तेजी आएगी। (BS Hindi)
खाद्य निगम करेगा गेहूं की ऑनलाइन बिक्री
मुंबई December 21, 2010
खाद्यान्न के बढ़ते भंडार और अनाज भंडारण में हो रही समस्या के मद्देनजर सरकारी अनाज खरीद एजेंसी भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) खुले बाजार में गेहूं की बिक्री के लिए कदम उठा रहा है। इसके लिए खुले बाजार में बिक्री योजना (ओएमएसएस) के तहत ऑनलाइन स्पॉट एक्सचेजों में बिक्री के लिए गेहूं आवंटित किया गया है। एफसीआई ने आंध्र प्रदेश के विभिन्न गोदामों से करीब 40,000 टन गेहूं एनसीडीईएक्स स्पॉट (हाजिर बाजार) को आवंटित किया है। एनसीडीईएक्स स्पॉट, नैशनल कमोडिटी ऐंड डेरिवेटिव्स एक्सचेंज (एनसीडीईएक्स) की हाजिर बाजार इकाई है। आटा मिलें यहां से प्रचलित दामों पर गेहूं की ऑनलाइन खरीदारी कर सकती हैं। इस सप्ताह के बाद से गेहूं बिक्री के लिए पहला टेंडर जारी कर दिया जाएगा। एनसीडीईएक्स स्पॉट के प्रमुख राजेश सिन्हा कहते हैं, 'राज्य में 60,000 टन से ज्यादा गेहूं बिक्री के लिए उपलब्ध है। हालांकि एफसीआई ने पहले लॉट में सिर्फ 40,000 टन गेहूं बिक्री के लिए आवंटित किया है। इसकी बिक्री हो जाने के बाद अतिरिक्त 20,000 टन गेहूं भी उपलब्ध कराया जाएगा।Ó दूसरी तरफ, एफसीआई के चेयरमैन सिराज हुसैन का कहना है कि एनसीडीईएक्स स्पॉट अगर चाहे तो अतिरिक्त गेहूं भी उपलब्ध कराया जा सकता है। एफसीआई ने 11 अक्टूबर को नैशनल स्पॉट एक्सचेंज (एनएसईएल) के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किया था। इसके तहत देश के विभिन्न हाजिर जिंस बाजार के माध्यम गेहूं की बिक्री की जाएगी। एनएसईएल को अब तक कई ऑडर्स प्राप्त हो चुके हैं और ओएमएसएस योजना के तहत कुल 15,000 टन गेहूं की बिक्री की जा चुकी है। देश में गरीबी रेखा से नीचे गुजर-बसर करने वाले परिवारों (बीपीएल) की खाद्य सुरक्षा के लिए सरकार कई तरह की योजनाएं चला रही है। योजना के तहत सरकार गरीब परिवारों को को सस्ती दरों पर खाद्यान्न मुहैया कराती है। इसके अलावा एपीएल परिवारों (गरीबी रेखा से ऊपर) को भी खाद्य सुरक्षा योजना में शामिल करने पर विचार चल रहा है। जिसके लिए बड़ी मात्रा में खाद्यान्न की दरकार होगी। इसके बावजूद एफसीआई गेहूं की बिक्री की योजना पर काम कर रहा है। पिछले दो महीनों में एफसीआई ने करीब 40 लाख टन गेहूं की बिक्री की है। बताया जाता है कि एफसीआई के पास फिलहाल बफर मानकों से ज्यादा अनाज का भंडार है। बफर के नियम के अनुसार, 1 जनवरी 2011 तक देश में गेहूं और चावल का कुल भंडार कम से कम 2 करोड़ टन होना चाहिए जबकि एफसीआई के पास 1 दिसंबर 2010 तक कुल 4.48 करोड़ टन अनाज का भंडार हो चुका है। इसमें खास बात यह है कि अकेले गेहूं का भंडार 2.39 करोड़ टन हो चुका है जबकि गेहूं का बफर स्टॉक मानक केवल 82 लाख टन है। यानी भंडारण की अधिकता को देखते हुए एफसीआई ने इसकी बिक्री के लिए कदम उठाए हैं। (BS Hindi)
खाद्यान्न के बढ़ते भंडार और अनाज भंडारण में हो रही समस्या के मद्देनजर सरकारी अनाज खरीद एजेंसी भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) खुले बाजार में गेहूं की बिक्री के लिए कदम उठा रहा है। इसके लिए खुले बाजार में बिक्री योजना (ओएमएसएस) के तहत ऑनलाइन स्पॉट एक्सचेजों में बिक्री के लिए गेहूं आवंटित किया गया है। एफसीआई ने आंध्र प्रदेश के विभिन्न गोदामों से करीब 40,000 टन गेहूं एनसीडीईएक्स स्पॉट (हाजिर बाजार) को आवंटित किया है। एनसीडीईएक्स स्पॉट, नैशनल कमोडिटी ऐंड डेरिवेटिव्स एक्सचेंज (एनसीडीईएक्स) की हाजिर बाजार इकाई है। आटा मिलें यहां से प्रचलित दामों पर गेहूं की ऑनलाइन खरीदारी कर सकती हैं। इस सप्ताह के बाद से गेहूं बिक्री के लिए पहला टेंडर जारी कर दिया जाएगा। एनसीडीईएक्स स्पॉट के प्रमुख राजेश सिन्हा कहते हैं, 'राज्य में 60,000 टन से ज्यादा गेहूं बिक्री के लिए उपलब्ध है। हालांकि एफसीआई ने पहले लॉट में सिर्फ 40,000 टन गेहूं बिक्री के लिए आवंटित किया है। इसकी बिक्री हो जाने के बाद अतिरिक्त 20,000 टन गेहूं भी उपलब्ध कराया जाएगा।Ó दूसरी तरफ, एफसीआई के चेयरमैन सिराज हुसैन का कहना है कि एनसीडीईएक्स स्पॉट अगर चाहे तो अतिरिक्त गेहूं भी उपलब्ध कराया जा सकता है। एफसीआई ने 11 अक्टूबर को नैशनल स्पॉट एक्सचेंज (एनएसईएल) के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किया था। इसके तहत देश के विभिन्न हाजिर जिंस बाजार के माध्यम गेहूं की बिक्री की जाएगी। एनएसईएल को अब तक कई ऑडर्स प्राप्त हो चुके हैं और ओएमएसएस योजना के तहत कुल 15,000 टन गेहूं की बिक्री की जा चुकी है। देश में गरीबी रेखा से नीचे गुजर-बसर करने वाले परिवारों (बीपीएल) की खाद्य सुरक्षा के लिए सरकार कई तरह की योजनाएं चला रही है। योजना के तहत सरकार गरीब परिवारों को को सस्ती दरों पर खाद्यान्न मुहैया कराती है। इसके अलावा एपीएल परिवारों (गरीबी रेखा से ऊपर) को भी खाद्य सुरक्षा योजना में शामिल करने पर विचार चल रहा है। जिसके लिए बड़ी मात्रा में खाद्यान्न की दरकार होगी। इसके बावजूद एफसीआई गेहूं की बिक्री की योजना पर काम कर रहा है। पिछले दो महीनों में एफसीआई ने करीब 40 लाख टन गेहूं की बिक्री की है। बताया जाता है कि एफसीआई के पास फिलहाल बफर मानकों से ज्यादा अनाज का भंडार है। बफर के नियम के अनुसार, 1 जनवरी 2011 तक देश में गेहूं और चावल का कुल भंडार कम से कम 2 करोड़ टन होना चाहिए जबकि एफसीआई के पास 1 दिसंबर 2010 तक कुल 4.48 करोड़ टन अनाज का भंडार हो चुका है। इसमें खास बात यह है कि अकेले गेहूं का भंडार 2.39 करोड़ टन हो चुका है जबकि गेहूं का बफर स्टॉक मानक केवल 82 लाख टन है। यानी भंडारण की अधिकता को देखते हुए एफसीआई ने इसकी बिक्री के लिए कदम उठाए हैं। (BS Hindi)
अभी नहीं थमने वाले हैं प्याज के आंसू
मुंबई December 21, 2010
प्याज की कीमतों ने देश भर की गृहणियों की आंखों से आंसू निकाल दिए हैं। सरकार भी यह मान रही है कि अगले तीन सप्ताह तक प्याज की कीमतों में कमी नहीं आने वाली है। बाजार जानकारों का मानना है कि इस तरह के बयान से सटोरियों को और बल मिलता है। ऐसे में प्याज के दाम यदि अगले दो-चार दिनों में करीब 100 रुपये की ऊंचाई पर पहुंच जाएं तो आश्चर्य नहीं किया जाना चाहिए। देश में इस समय प्याज 50 से 90 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से बिक रहा है।मीडिया में प्याज के दामों को लेकर मचे बवाल को देखते हुए सरकार ने 15 जनवरी तक प्याज के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है। कृषि मंत्री शरद पवार ने प्याज को काबू में करने के लिए तीन सप्ताह का समय मांगा है। बतौर पवार, प्याज की कीमतें तीन सप्ताह तक ऊंची बनी रहेंगी। हालांकि निर्यात प्रतिबंधित करने से दो सप्ताह के बाद स्थिति में सुधार दिखाई देने लगेगा। प्याज की बढ़ी कीमतों पर राजनीति भी गरमाने लगी है। भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष नितिन गडकरी ने इसके लिए सरकार की अर्थिक नीतियों को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा है कि सरकार ने समय रहते कदम नहीं उठाए हैं जिसकी वजह से कीमतों में बढ़ोतरी हुई है।कृषि मंत्री के इस बयान पर बाजार जानकार भी हैरान हैं। कृषि मामलों के जानकार मेहुल अग्रवाल कहते हैं कि कीमतों को काबू में करने का प्रयास सरकार को करना चाहिए लेकिन समय-सीमा तय करने का बाजार में उल्टा असर होगा। एक तरीके से सरकार कह रही है कि तीन सप्ताह तक वह कुछ नहीं कर सकती है। इस बयान से सटोरियों को प्रोत्साहन मिलेगा और अगले दो चार दिन में प्याज की कीमत 100 रुपये किलोग्राम तक भी पहुंच सकती है। ऐसा ही बयान दाल की बढ़ती कीमतों पर दिया गया था तो एक सप्ताह के अंदर दाल के दामों में 30 फीसदी तक की बढ़ोतरी देखने को मिली थी।बताया जा रहा है कि आसमान छूती प्याज की कीमतों की प्रमुख वजह देश के कई हिस्सों में अक्टूबर-नवंबर महीने में हुई बारिश है। कहा जा रहा है कि बारिश की वजह से आपूर्ति घट गई है। लेकिन महाराष्ट्र राज्य कृषि मार्केटिंग बोर्ड से प्राप्त आंकड़ों को देखने से आपूर्ति में बहुत ज्यादा कमी की बात गले नहीं उतर रही है। पिछले साल मुंबई कांदा-बटाटा मार्केट में प्रति दिन औसतन 1000 टन प्याज की आपूर्ति हो रही थी जबकि इस साल भी अभी तक आपूर्ति का औसतन आंकड़ा लगभग यही है। फिर सवाल उठता है कि पिछले साल जहां प्याज 30-35 रुपये किलोग्राम था तो इस बार 80 रुपये प्रति किलोग्राम के स्तर पर कैसे चला गया। कारोबारी मानते हैं कि पिछले कुछ दिनों से ऐसी खबरें आ रही थी कि बारिश की वजह से प्याज खराब हुई है। इस बात को आधार बनाकर सटोरियों ने बाजार में कीमतें एक महीने के अंदर दोगुनी कर दी। मुंबई के विभिन्न हिस्सों में प्याज इस समय 70 रुपये से 90 रुपये प्रति किलोग्राम तक बेची जा रही है। जबकि देश के दूसरे हिस्सों में 35 रुपये से 70 रुपये प्रति किलोग्राम तक बिक रही है। महाराष्ट्र राज्य कृषि मार्केटिंग बोर्ड से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार देश की सबसे बड़ी प्याज मंडी नासिक में एक महीने पहले प्याज की औसत कीमत 1400 रुपये प्रति क्विंटल थी जो इस समय बढ़कर 2400 रुपये प्रति क्ंिवटल हो गई है। जबकि सबसे बड़ी उपभोक्ता मंडी मुंबई कांदा बटाटा मार्केट में एक महीने पहले प्याज की औसत कीमत 2400 रुपये थी जो इस समय बढ़कर 4750 रुपये पहुंच गई है। कारोबारियों की मानी जाए तो अभी कीमतें और बढ़ेगी, क्योंकि नई फसल आने में अभी कम से कम एक महीने का समय है और सरकार आयात करती भी है तो भी देशभर में वितरण करने में तकरीबन एक सप्ताह का समय लगेगा। प्याज की बढ़ती कीमतों पर काबू पाने के लिए पाकिस्तान से आयात की बात की जा रही है लेकिन कृषि मंत्री आयात करने की बात से इनकार कर रहे हैं। हालांकि सूत्रों का कहना है कि पाकिस्तान से आयात किये जाने की बात चल रही है और इसकी प्रक्रिया भी शुरू कर दी गई है। पाकिस्तान से प्याज आती है तो सभी तरह के करों के बाद भी बाजार में प्याज 18 से 22 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से मिलना शुरू हो जाएगा। उधर, पाकिस्तान से प्याज आयात करने की खबर से वहां भी प्याज के दामों में करीब 25 से 30 फीसदी की उछाल आ गई है। इस बीच, एजेंसी की खबरों के मुताबिक दिल्ली के थोक बाजार में प्याज की आपूर्ति में करीब 20 फीसदी की कमी आई है। कारोबारियों के अनुसार, हालांकि भाव 60 रुपये की ऊंचाई पर होने से बाजार में प्याज के खरीदार भी घट गए हैं। आजादपुर मंडी में पिछले दिनों जहां 1,020 टन प्याज की आवक रही थी वहीं मंगलवार को यह घट कर 810 टन रह गई। (BS Hindi)
प्याज की कीमतों ने देश भर की गृहणियों की आंखों से आंसू निकाल दिए हैं। सरकार भी यह मान रही है कि अगले तीन सप्ताह तक प्याज की कीमतों में कमी नहीं आने वाली है। बाजार जानकारों का मानना है कि इस तरह के बयान से सटोरियों को और बल मिलता है। ऐसे में प्याज के दाम यदि अगले दो-चार दिनों में करीब 100 रुपये की ऊंचाई पर पहुंच जाएं तो आश्चर्य नहीं किया जाना चाहिए। देश में इस समय प्याज 50 से 90 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से बिक रहा है।मीडिया में प्याज के दामों को लेकर मचे बवाल को देखते हुए सरकार ने 15 जनवरी तक प्याज के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है। कृषि मंत्री शरद पवार ने प्याज को काबू में करने के लिए तीन सप्ताह का समय मांगा है। बतौर पवार, प्याज की कीमतें तीन सप्ताह तक ऊंची बनी रहेंगी। हालांकि निर्यात प्रतिबंधित करने से दो सप्ताह के बाद स्थिति में सुधार दिखाई देने लगेगा। प्याज की बढ़ी कीमतों पर राजनीति भी गरमाने लगी है। भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष नितिन गडकरी ने इसके लिए सरकार की अर्थिक नीतियों को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा है कि सरकार ने समय रहते कदम नहीं उठाए हैं जिसकी वजह से कीमतों में बढ़ोतरी हुई है।कृषि मंत्री के इस बयान पर बाजार जानकार भी हैरान हैं। कृषि मामलों के जानकार मेहुल अग्रवाल कहते हैं कि कीमतों को काबू में करने का प्रयास सरकार को करना चाहिए लेकिन समय-सीमा तय करने का बाजार में उल्टा असर होगा। एक तरीके से सरकार कह रही है कि तीन सप्ताह तक वह कुछ नहीं कर सकती है। इस बयान से सटोरियों को प्रोत्साहन मिलेगा और अगले दो चार दिन में प्याज की कीमत 100 रुपये किलोग्राम तक भी पहुंच सकती है। ऐसा ही बयान दाल की बढ़ती कीमतों पर दिया गया था तो एक सप्ताह के अंदर दाल के दामों में 30 फीसदी तक की बढ़ोतरी देखने को मिली थी।बताया जा रहा है कि आसमान छूती प्याज की कीमतों की प्रमुख वजह देश के कई हिस्सों में अक्टूबर-नवंबर महीने में हुई बारिश है। कहा जा रहा है कि बारिश की वजह से आपूर्ति घट गई है। लेकिन महाराष्ट्र राज्य कृषि मार्केटिंग बोर्ड से प्राप्त आंकड़ों को देखने से आपूर्ति में बहुत ज्यादा कमी की बात गले नहीं उतर रही है। पिछले साल मुंबई कांदा-बटाटा मार्केट में प्रति दिन औसतन 1000 टन प्याज की आपूर्ति हो रही थी जबकि इस साल भी अभी तक आपूर्ति का औसतन आंकड़ा लगभग यही है। फिर सवाल उठता है कि पिछले साल जहां प्याज 30-35 रुपये किलोग्राम था तो इस बार 80 रुपये प्रति किलोग्राम के स्तर पर कैसे चला गया। कारोबारी मानते हैं कि पिछले कुछ दिनों से ऐसी खबरें आ रही थी कि बारिश की वजह से प्याज खराब हुई है। इस बात को आधार बनाकर सटोरियों ने बाजार में कीमतें एक महीने के अंदर दोगुनी कर दी। मुंबई के विभिन्न हिस्सों में प्याज इस समय 70 रुपये से 90 रुपये प्रति किलोग्राम तक बेची जा रही है। जबकि देश के दूसरे हिस्सों में 35 रुपये से 70 रुपये प्रति किलोग्राम तक बिक रही है। महाराष्ट्र राज्य कृषि मार्केटिंग बोर्ड से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार देश की सबसे बड़ी प्याज मंडी नासिक में एक महीने पहले प्याज की औसत कीमत 1400 रुपये प्रति क्विंटल थी जो इस समय बढ़कर 2400 रुपये प्रति क्ंिवटल हो गई है। जबकि सबसे बड़ी उपभोक्ता मंडी मुंबई कांदा बटाटा मार्केट में एक महीने पहले प्याज की औसत कीमत 2400 रुपये थी जो इस समय बढ़कर 4750 रुपये पहुंच गई है। कारोबारियों की मानी जाए तो अभी कीमतें और बढ़ेगी, क्योंकि नई फसल आने में अभी कम से कम एक महीने का समय है और सरकार आयात करती भी है तो भी देशभर में वितरण करने में तकरीबन एक सप्ताह का समय लगेगा। प्याज की बढ़ती कीमतों पर काबू पाने के लिए पाकिस्तान से आयात की बात की जा रही है लेकिन कृषि मंत्री आयात करने की बात से इनकार कर रहे हैं। हालांकि सूत्रों का कहना है कि पाकिस्तान से आयात किये जाने की बात चल रही है और इसकी प्रक्रिया भी शुरू कर दी गई है। पाकिस्तान से प्याज आती है तो सभी तरह के करों के बाद भी बाजार में प्याज 18 से 22 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से मिलना शुरू हो जाएगा। उधर, पाकिस्तान से प्याज आयात करने की खबर से वहां भी प्याज के दामों में करीब 25 से 30 फीसदी की उछाल आ गई है। इस बीच, एजेंसी की खबरों के मुताबिक दिल्ली के थोक बाजार में प्याज की आपूर्ति में करीब 20 फीसदी की कमी आई है। कारोबारियों के अनुसार, हालांकि भाव 60 रुपये की ऊंचाई पर होने से बाजार में प्याज के खरीदार भी घट गए हैं। आजादपुर मंडी में पिछले दिनों जहां 1,020 टन प्याज की आवक रही थी वहीं मंगलवार को यह घट कर 810 टन रह गई। (BS Hindi)
नए साल में बढ़ेगी हीरे की चमक
मुंबई December 21, 2010
साल 2011 में अपरिष्कृत व तराशे गए हीरे की कीमतें 20 से 25 फीसदी तक बढऩे की संभावना है। कीमती पत्थरों की खोज करने वाली दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी डी बीयर्स द्वारा ज्यादा उत्पादन का लक्ष्य रखे जाने के बावजूद ऐसा होगा। आर्थिक सुधार का संकेत मिलने के बाद अमेरिका और एशियाई बाजारों में उपभोक्ताओं की बढ़ती मांग और आपूर्ति में कमी की वजह से अपरिष्कृत हीरे की कीमतें जुलाई 2009 के मुकाबले अब तक 50 फीसदी बढ़ चुकी है।गीतांजलि ग्रुप के चेयरमैन मेहुल चोकसी ने कहा - घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों ही बाजारों में मांग का रुख काफी मजबूत नजर आ रहा है। ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि यह मांग भंडारण की वजह से नहीं है बल्कि खुदरा ग्राहकों की तरफ से है, जो टिकाऊ बनी रहेगी। ऐसे में मुझे उम्मीद है कि अपरिष्कृत और तराशे गए हीरे की कीमतों में उछाल जारी रहेगी।वैश्विक अर्थव्यवस्था में अनिश्चितता के बीच वैश्विक मांग में गिरावट के बाद अपरिष्कृत हीरे की कीमतें थम गई थी। ऐसे में वैश्विक बाजार में कुल अपरिष्कृत हीरे की करीब 45 फीसदी की आपूर्ति करने वाली कंपनी डी बीयर्स ने उत्पादन में नाटकीय रूप से कटौती कर दी थी। लेकिन साल 2009 की दूसरी छमाही में मांग में धीरे-धीरे सुधार आया और उस दौरान कंपनी का उत्पादन 180 लाख कैरट पर पहुंच गया, जो इसी साल की पहली छमाही के मुकाबले 173 फीसदी ज्यादा था। साल 2008 की दूसरी छमाही में डी बीयर्स का अपरिष्कृत हीरे का कुल उत्पादन 240 लाख कैरट था।इस तरह से साल 2009 में अपरिष्कृत हीरे का कुल उत्पादन 246 लाख कैरट पर पहुंचा, जो एक साल पहले के मुकाबले 49 फीसदी कम था। भारत में आयातकों ने उन अपरिष्कृत हीरों को आभूषणों की जरूरतों के हिसाब से काटा और उसे तराशा। एक अनुमान के मुताबिक प्रति नग के हिसाब से कुल 92 फीसदी और कीमत के हिसाब से 60 फीसदी अपरिष्कृत हीरे का प्रसंस्करण भारत में हुआ। हालांकि अतिरिक्त उत्पादन से भारतीय ग्राहकों को बढ़ती कीमत से राहत नहीं मिली क्योंकि घरेलू बाजार में मांग बढ़ गई। ग्राहक शुद्ध सोने के आभूषण की बजाय कम कीमत वाले हीरे की तरफ मुड़ गए और अमेरिकी अर्थव्यवस्था के बेहतर आंकड़ों ने अपरिष्कृत हीरों की मांग को तेजी से बहाल कर दिया।जेम्स ऐंड जूलरी एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल के चेयरमैन राजीव जैन के मुताबिक, पिछले 4-5 महीने में खुदरा ग्राहकों की तरफ से त्योहारी सीजन में की गई खरीद की वजह से हीरे की कीमतें 20-25 फीसदी बढ़ी है। भारतीय ग्राहक शादी विवाह के सीजन के प्रति उत्साहित रहते हैं, जहां पारंपरिक आभूषणों के मुकाबले हीरे के आभूषण की ज्यादा बुकिंग होती है। अमेरिका में भी क्रिसमस और नए साल के सीजन की वजह से रुख मजबूत रहता है और इस वजह से कीमतें बढ़ जाती हैं।अप्रैल-नवंबर 2010 के दौरान दुनिया के सबसे बड़े हीरा प्रसंस्करण हब भारत ने 7.37 अरब डॉलर का अपरिष्कृत हीरा आयात किया जबकि पिछले साल की समान अवधि में 5.44 अरब डॉलर का अपरिष्कृत हीरा आयात किया गया था। कैरट के हिसाब से देखें तो इस अवधि में 1025.37 लाख कैरट हीरे का आयात हुआ जबकि एक साल पहले की समान अवधि में 899.96 लाख कैरट हीरे का आयात हुआ था। (BS Hindi)
साल 2011 में अपरिष्कृत व तराशे गए हीरे की कीमतें 20 से 25 फीसदी तक बढऩे की संभावना है। कीमती पत्थरों की खोज करने वाली दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी डी बीयर्स द्वारा ज्यादा उत्पादन का लक्ष्य रखे जाने के बावजूद ऐसा होगा। आर्थिक सुधार का संकेत मिलने के बाद अमेरिका और एशियाई बाजारों में उपभोक्ताओं की बढ़ती मांग और आपूर्ति में कमी की वजह से अपरिष्कृत हीरे की कीमतें जुलाई 2009 के मुकाबले अब तक 50 फीसदी बढ़ चुकी है।गीतांजलि ग्रुप के चेयरमैन मेहुल चोकसी ने कहा - घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों ही बाजारों में मांग का रुख काफी मजबूत नजर आ रहा है। ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि यह मांग भंडारण की वजह से नहीं है बल्कि खुदरा ग्राहकों की तरफ से है, जो टिकाऊ बनी रहेगी। ऐसे में मुझे उम्मीद है कि अपरिष्कृत और तराशे गए हीरे की कीमतों में उछाल जारी रहेगी।वैश्विक अर्थव्यवस्था में अनिश्चितता के बीच वैश्विक मांग में गिरावट के बाद अपरिष्कृत हीरे की कीमतें थम गई थी। ऐसे में वैश्विक बाजार में कुल अपरिष्कृत हीरे की करीब 45 फीसदी की आपूर्ति करने वाली कंपनी डी बीयर्स ने उत्पादन में नाटकीय रूप से कटौती कर दी थी। लेकिन साल 2009 की दूसरी छमाही में मांग में धीरे-धीरे सुधार आया और उस दौरान कंपनी का उत्पादन 180 लाख कैरट पर पहुंच गया, जो इसी साल की पहली छमाही के मुकाबले 173 फीसदी ज्यादा था। साल 2008 की दूसरी छमाही में डी बीयर्स का अपरिष्कृत हीरे का कुल उत्पादन 240 लाख कैरट था।इस तरह से साल 2009 में अपरिष्कृत हीरे का कुल उत्पादन 246 लाख कैरट पर पहुंचा, जो एक साल पहले के मुकाबले 49 फीसदी कम था। भारत में आयातकों ने उन अपरिष्कृत हीरों को आभूषणों की जरूरतों के हिसाब से काटा और उसे तराशा। एक अनुमान के मुताबिक प्रति नग के हिसाब से कुल 92 फीसदी और कीमत के हिसाब से 60 फीसदी अपरिष्कृत हीरे का प्रसंस्करण भारत में हुआ। हालांकि अतिरिक्त उत्पादन से भारतीय ग्राहकों को बढ़ती कीमत से राहत नहीं मिली क्योंकि घरेलू बाजार में मांग बढ़ गई। ग्राहक शुद्ध सोने के आभूषण की बजाय कम कीमत वाले हीरे की तरफ मुड़ गए और अमेरिकी अर्थव्यवस्था के बेहतर आंकड़ों ने अपरिष्कृत हीरों की मांग को तेजी से बहाल कर दिया।जेम्स ऐंड जूलरी एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल के चेयरमैन राजीव जैन के मुताबिक, पिछले 4-5 महीने में खुदरा ग्राहकों की तरफ से त्योहारी सीजन में की गई खरीद की वजह से हीरे की कीमतें 20-25 फीसदी बढ़ी है। भारतीय ग्राहक शादी विवाह के सीजन के प्रति उत्साहित रहते हैं, जहां पारंपरिक आभूषणों के मुकाबले हीरे के आभूषण की ज्यादा बुकिंग होती है। अमेरिका में भी क्रिसमस और नए साल के सीजन की वजह से रुख मजबूत रहता है और इस वजह से कीमतें बढ़ जाती हैं।अप्रैल-नवंबर 2010 के दौरान दुनिया के सबसे बड़े हीरा प्रसंस्करण हब भारत ने 7.37 अरब डॉलर का अपरिष्कृत हीरा आयात किया जबकि पिछले साल की समान अवधि में 5.44 अरब डॉलर का अपरिष्कृत हीरा आयात किया गया था। कैरट के हिसाब से देखें तो इस अवधि में 1025.37 लाख कैरट हीरे का आयात हुआ जबकि एक साल पहले की समान अवधि में 899.96 लाख कैरट हीरे का आयात हुआ था। (BS Hindi)
चीनी पर 60 फीसदी का आयात शुल्क
मुंबई December 21, 2010
साल 2011 में पहली जनवरी से चीनी आयात पर सरकार 60 फीसदी का आयात शुल्क बरकरार रख सकती है। पिछले साल आपूर्ति की किल्लत को दूर करने के लिए सरकार ने जून 2009 से 31 दिसंबर 2010 तक आयात शुल्क घटाकर शून्य कर दिया था। इस फेरबदल से पहले चीनी आयात पर 60 फीसदी का शुल्क लगता था और यह साल 2000 से लागू है।कृषि मंत्रालय आयात शुल्क में कमी करने का सुझाव देता रहा है ताकि जरूरत के समय आयात महंगा न पड़े। आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक, इस बाबत मंत्रालय चाहता है कि आयात शुल्क 10 से 30 फीसदी के दायरे में हो। सूत्रों ने कहा कि मौजूदा परिस्थितियों में वित्त मंत्रालय आयात शुल्क को 60 फीसदी से नीचे लाने का इच्छुक नहीं है।सूत्रों ने कहा - मौजूदा परिस्थिति में बेहतर उत्पादन को देखते हुए आयात की दरकार नहीं है। अगर हम ऐसा करते हैं तो घरेलू बाजार में बिक्री के लिहाज से यह लाभदायक नहीं होगा। ऐसे में अगर आयात शुल्क में कमी की जाती है तो भी किसी को फायदा नहीं मिलेगा। उच्च आयात शुल्क और इसके निहितार्थ से जुड़े सवाल उन परिस्थितियों में उठ खड़े होते हैं जब मांग में तेजी से बढ़ोतरी होती है और आपूर्ति में गिरावट आती है। ऐसे में कृषि मंत्रालय आयात शुल्क को उचित स्तर पर रखने की बाबत काम में जुटा हुआ है और औपचारिक रूप से इसने वित्त मंत्रालय को सुझाव भेज दिया है।सूत्रों ने कहा कि आयात शुल्क में कटौती की बाबत औपचारिक प्रस्ताव जनवरी 2011 में चीनी उत्पादन के आकलन के बाद भेजा जाएगा। कृषि मंत्रालय को उम्मीद है कि जनवरी 2011 तक उसे गन्ने का रकबा, उत्पादन और चीनी उत्पादन आदि के बारे में सही अनुमान हासिल हो जाएगा। सूत्रों ने कहा कि इन चीजों को बजट की सिफारिशों के तौर पर मंत्रालय को भेजा जाएगा। आधिकारिक तौर पर इस साल 245 लाख टन चीनी उत्पादन का अनुमान है, जबकि उद्योग ने 255 लाख टन चीनी ïउत्पादन का अनुमान लगाया है। देश में 230 लाख टन चीनी की खपत का अनुमान है। बेहतर कीमत मिलने की आस में सरकार ने हाल में 5 लाख टन चीनी निर्यात की अनुमति दी है। इससे पहले 10 लाख टन चीनी निर्यात की अनुमति एडवांस्ड लाइसेंस स्कीम के तहत दी गई थी और फिर बंदरगाह से इसे पुनर्निर्यात की अनुमति दी गई थी। (BS Hindi)
साल 2011 में पहली जनवरी से चीनी आयात पर सरकार 60 फीसदी का आयात शुल्क बरकरार रख सकती है। पिछले साल आपूर्ति की किल्लत को दूर करने के लिए सरकार ने जून 2009 से 31 दिसंबर 2010 तक आयात शुल्क घटाकर शून्य कर दिया था। इस फेरबदल से पहले चीनी आयात पर 60 फीसदी का शुल्क लगता था और यह साल 2000 से लागू है।कृषि मंत्रालय आयात शुल्क में कमी करने का सुझाव देता रहा है ताकि जरूरत के समय आयात महंगा न पड़े। आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक, इस बाबत मंत्रालय चाहता है कि आयात शुल्क 10 से 30 फीसदी के दायरे में हो। सूत्रों ने कहा कि मौजूदा परिस्थितियों में वित्त मंत्रालय आयात शुल्क को 60 फीसदी से नीचे लाने का इच्छुक नहीं है।सूत्रों ने कहा - मौजूदा परिस्थिति में बेहतर उत्पादन को देखते हुए आयात की दरकार नहीं है। अगर हम ऐसा करते हैं तो घरेलू बाजार में बिक्री के लिहाज से यह लाभदायक नहीं होगा। ऐसे में अगर आयात शुल्क में कमी की जाती है तो भी किसी को फायदा नहीं मिलेगा। उच्च आयात शुल्क और इसके निहितार्थ से जुड़े सवाल उन परिस्थितियों में उठ खड़े होते हैं जब मांग में तेजी से बढ़ोतरी होती है और आपूर्ति में गिरावट आती है। ऐसे में कृषि मंत्रालय आयात शुल्क को उचित स्तर पर रखने की बाबत काम में जुटा हुआ है और औपचारिक रूप से इसने वित्त मंत्रालय को सुझाव भेज दिया है।सूत्रों ने कहा कि आयात शुल्क में कटौती की बाबत औपचारिक प्रस्ताव जनवरी 2011 में चीनी उत्पादन के आकलन के बाद भेजा जाएगा। कृषि मंत्रालय को उम्मीद है कि जनवरी 2011 तक उसे गन्ने का रकबा, उत्पादन और चीनी उत्पादन आदि के बारे में सही अनुमान हासिल हो जाएगा। सूत्रों ने कहा कि इन चीजों को बजट की सिफारिशों के तौर पर मंत्रालय को भेजा जाएगा। आधिकारिक तौर पर इस साल 245 लाख टन चीनी उत्पादन का अनुमान है, जबकि उद्योग ने 255 लाख टन चीनी ïउत्पादन का अनुमान लगाया है। देश में 230 लाख टन चीनी की खपत का अनुमान है। बेहतर कीमत मिलने की आस में सरकार ने हाल में 5 लाख टन चीनी निर्यात की अनुमति दी है। इससे पहले 10 लाख टन चीनी निर्यात की अनुमति एडवांस्ड लाइसेंस स्कीम के तहत दी गई थी और फिर बंदरगाह से इसे पुनर्निर्यात की अनुमति दी गई थी। (BS Hindi)
21 दिसंबर 2010
पाकिस्तान से 12 साल बाद बही प्याज की उल्टी धारा
चंडीगढ़ / पुणे : प्याज की बढ़ती कीमत देखकर भले ही लोगों के आंसू निकल रहे हों, लेकिन भारतीय कारोबारियों के चेहरे पर मुनाफे की चमक नजर आ रही है। अभी तक भारत पाकिस्तान को सब्जियों का निर्यात करता था, लेकिन प्याज की कीमतों में आए भारी उछाल को देखकर भारतीय कारोबारियों ने 12 साल बाद सड़क मार्ग से पाकिस्तान से प्याज आयात करना शुरु कर दिया है। इसके अलावा, कीमतों पर लगाम कसने के लिए सरकार ने भी प्याज निर्यात के लिए दिया जाना वाला अनापत्ति प्रमाण पत्र रोक दिया है। नैफेड, एनसीसीएफ और अन्य सरकारी ट्रेडिंग एजेंसियों ने पहले से जारी किए जा चुके एनओसी के लिए न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) मौजूदा 525 डॉलर प्रति टन से बढ़ाकर 1,200 डॉलर प्रति टन कर दिया है। सोमवार को जारी बयान में कहा गया, 'नैफेड और एनसीसीएफ 21 दिसंबर 2010 से अपने आउटलेट के जरिए प्याज की खुदरा बिक्री शुरू करेंगे ताकि उपभोक्ताओं को सही कीमत पर इसकी आपूर्ति सुनिश्चित की जा सके।' अभी हाल ही में नवंबर के आखिर में सरकार ने एमईपी में 150 डॉलर प्रति टन की बढ़ोतरी की थी ताकि घरेलू आपूर्ति बढ़ाई जा सके। इसी से जुड़े एक अन्य घटनाक्रम में सोमवार को ही अटारी-वाघा बॉर्डर से प्याज से लदे ट्रकों का पहला जत्था भारत पहुंचा। भारत के थोक बाजार में प्याज का भाव 40 से 70 रुपए के बीच चल रहा है। पंजाब और दिल्ली के कारोबारियों ने बताया कि 1998 में एनडीए शासन के दौरान सड़क रास्ते से पाकिस्तान से प्याज आयात किया गया था। उस दौरान थोक बाजार में प्याज की कीमत 50-60 रुपए प्रति किलोग्राम थी। सोमवार को प्याज से लदे 12 ट्रक (एक ट्रक में में 10-15 टन प्याज होता है) वाघा बॉर्डर पार कर अमृतसर में अटारी सीमा से भारत में दाखिल हुए। अमृतसर में आयात-निर्यात का कारोबार करने वाले राजदीप उप्पल ने कहा, 'देश में प्याज की खराब फसल और ऊंची कीमत को देखते हुए हम पाकिस्तान से सड़क मार्ग से प्याज का आयात कर रहे हैं।' कारोबारियों ने 500 टन प्याज के ठेके के साथ शुरुआत की है। फिलहाल गुलाबी रंग के प्याज पाकिस्तान के सिंध प्रांत से आयात किए जा रहे हैं। लाहौर की कंपनी राशिद खान नाबिद खान कंपनी के मालिक राशिद खान ने कहा कि भारत से प्याज की मांग काफी बढ़ गई है। उन्होंने कहा, 'पाकिस्तान में प्याज की कीमत 15-18 रुपए प्रति किलोग्राम है। इस साल यहां प्याज की खेती कम हुई है, लेकिन भारत से आने वाली मांग और कीमत दोनों काफी अच्छी हैं।' सड़क मार्ग से प्याज आयात करने पर भारत सरकार 7 फीसदी का शुल्क वसूलती है, जिसे कारोबारी अवरोध के रूप में देख रहे हैं। कारोबारियों का कहना है कि अगर यह शुल्क हटा लिया जाए तो खुदरा बाजार में प्याज के भाव में गिरावट आएगी। इस साल अप्रैल-अगस्त के दौरान भारत ने हजारों टन प्याज पाकिस्तान को निर्यात किया था। उस वक्त पाकिस्तान में बाढ़ आने से वहां की सारी फसल बर्बाद हो गई थी। हालांकि, महाराष्ट्र और गुजरात में बेमौसम बरसात होने की वजह से पिछले कुछ दिनों में प्याज की कीमतों में जबर्दस्त तेजी आई है। पिछले साल महाराष्ट्र में प्याज का थोक भाव 10 रुपए प्रति किलोग्राम था जो इस साल बढ़कर 30 से 35 रुपए प्रति किलोग्राम हो गया है। कुछ खास बाजारों में जहां प्याज की आवक में भारी गिरावट हुई है, वहां प्याज की कीमत पिछले दो दिनों में बढ़कर 60 से 70 रुपए प्रति किलोग्राम हो गई है। सोमवार को सांगली में प्याज का भाव 75 रुपए प्रति किलोग्राम था। (ET Hindi)
2-3 तीन सप्ताह से पहले नीचे नहीं आएंगे प्याज के दाम: पवार
नई दिल्ली: प्याज की आसमान छूती कीमतों के बीच सरकार का मानना है कि इसके दाम नीचे आने में कम से कम दो से तीन सप्ताह का समय लगेगा। इस समय खुदरा बाजार में प्याज 70 से 80 रुपए प्रति किलोग्राम की ऊंचाई पर पहुंच चुका है। पाकिस्तान से प्याज की एक खेप हालांकि भारत पहुंची है, पर सरकार ने कीमतों पर अंकुश के लिए प्याज का आयात किए जाने की संभावना से इनकार किया है। प्याज के सबसे बड़े उत्पादक केंद्र महाराष्ट्र के नासिक में इसका थोक भाव 70 रुपए प्रति किलोग्राम को पार कर गया है। ऐसे में आशंका जताई जा रही है कि दिल्ली और अन्य स्थानों पर यह सौ रुपए प्रति किलोग्राम पर पहुंच जाएगा। केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने आज संवाददाताओं से कहा कि दाम अभी दो-तीन सप्ताह तक ऊंचाई पर बने रहेंगे और उसके बाद ही इसमें कुछ गिरावट आएगी। सिर्फ कुछ दिनों में दिल्ली और अन्य प्रमुख शहरों में प्याज का खुदरा दाम 35-40 रुपए प्रति किलोग्राम से बढ़कर 70 रुपए प्रति किलोग्राम पर पहुंच गया है। प्याज की कीमतों में तेजी की वजह पूछे जाने पर कृषि मंत्री ने कहा, भारी बारिश की वजह से प्याज की फसल को काफी नुकसान हुआ है। उन्होंने कहा कि हमें उम्मीद है कि उत्तर प्रदेश, गुजरात और मध्य प्रदेश से प्याज की आवक शुरु होने के बाद दो-तीन सप्ताह में इसके दाम नीचे आ जाएंगे। नासिक की विभिन्न कृषि उपज मंडी समितियों में प्याज का दाम 7,100 रुपए प्रति क्विंटल की ऊंचाई पर पहुंच गया है। नवंबर में महाराष्ट्र में हुई बारिश की वजह से प्याज का उत्पादन घटा है, जिससे इसके दाम बढ़े हैं। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री आनंद शर्मा और नाफेड के प्रबंध निदेशक संजीव चोपड़ा ने कल प्याज की कीमतों में तेजी की वजह जमाखोरी और सट्टेबाजी को बताया था। यह पूछे जाने पर कि सरकार घरेलू आपूर्ति बढ़ाने के लिए प्याज का आयात करेगी, पवार ने कहा, की तारीख तक ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं है। इस बीच, उत्तर भारत के कई व्यापारियों ने पाकिस्तान से प्याज का आयात शुरु कर दिया है। अमृतसर में सीमा शुल्क विभाग के एक अधिकारी ने कल बताया कि पाकिस्तान से 13 ट्रक प्याज आया है। पाकिस्तान से आयातित प्याज की कीमत 18 से 20 रुपए प्रति किलोग्राम बैठ रही है। पवार ने कहा कि सरकार ने जो कदम उठाए हैं उससे प्याज की कीमतों को नीचे लाने में मदद मिलेगी। सरकार ने कल प्याज के निर्यात पर 15 जनवरी तक प्रतिबंध लगा दिया था। इसके अलावा, प्याज के न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) को 525 डॉलर प्रति टन से बढ़ाकर 1,200 डॉलर प्रति टन कर दिया गया है। इस बीच, प्याज निर्यात का नियमन करने वाली एजेंसी नाफेड और नेशनल कोऑपरेटिव कंज्यूमर्स फेडरेशन आफ इंडिया (एनसीसीएफ) ने आज से राष्ट्रीय राजधानी में 35 से 40 रुपए के भाव पर प्याज की बिक्री शुरु कर दी है। राष्ट्रीय राजधानी में नाफेड और एनसीसीएफ के 25 स्टोर हैं। वित्त वर्ष 2009-10 में देश में प्याज का उत्पादन 1.2 करोड़ टन का रहा था। इसमें से 19 लाख टन प्याज का निर्यात किया गया था। 2010-11 में खरीफ सीजन का उत्पादन 50 लाख टन रहने का अनुमान है। (ET Hindi)
काली मिर्च के दाम बढऩे के हैं आसार
उत्पादक क्षेत्रों में प्रतिकूल मौसम से काली मिर्च की आवक नहीं बढ़ पा रही है इसीलिए कीमतें तेज बनी रह सकती है। उत्पादक क्षेत्रों में पिछले दो दिनों में काली मिर्च की कीमतें करीब 600-700 रुपये प्रति क्विंटल और वायदा बाजार में दो फीसदी बढ़ चुकी हैं। विश्व में काली मिर्च का उत्पादन वर्ष 2011 में दो फीसदी घटने की आशंका है। जनवरी के मध्य में घरेलू फसल की आवक का दबाव बनने की संभावना है। जबकि फरवरी-मार्च में वियतनाम की नई फसल आयेगी। लेकिन प्रमुख उत्पादक देशों के पास बकाया स्टॉक कम है इसीलिए जनवरी तक काली मिर्च की कीमतों में तेजी की ही संभावना है। वायदा में मजबूती : नेशनल कमोडिटी एंड डेरिवेटिव्स एक्सचेंज लिमिटेड (एनसीडीईएक्स) पर निवेशकों की खरीद से कालीमिर्च की कीमतों में दो फीसदी की तेजी आई है। 16 दिसंबर को जनवरी महीने के वायदा अनुबंध में कालीमिर्च का भाव 21,923 रुपये प्रति क्विंटल था जोकि शुक्रवार को बढ़कर 22,370 रुपये प्रति क्विंटल पर कारोबार करते देखा गया। जनवरी महीने के वायदा अनुबंध में कालीमिर्च में 10,903 लॉट के सौदे खड़े हुए हैं। कमोडिटी विश£ेशक अभय लाखवान ने बताया कि उतपादक क्षेत्रों में मौसम खराब बना हुआ है जिससे नई फसल की आवक में देरी हो रही है। इसीलिए मौजूदा कीमतों में तेजी को बल मिल रहा है। विश्व में उत्पादन घटने की संभावना : इंटरनेशनल पीपर कम्युनिटी (आईपीसी) के अनुसार वर्ष 2011 में विश्व में काली मिर्च का उत्पादन घटकर 3,09,952 टन ही होने का अनुमान है जोकि वर्ष 2010 के 3,16,380 टन से कम है। वर्ष 2009 में विश्व में काली मिर्च का उत्पादन 3,18,662 टन का हुआ था। प्रमुख उत्पादक देशों में बकाया स्टॉक भी वर्ष 2011 में घटकर 94,582 टन ही रहने की संभावना है जबकि वर्ष 2010 में बकाया स्टॉक 95,442 टन का था। उत्पादक केद्रों पर भाव तेज : केरल के प्रमुख उत्पादक क्षेत्रों में बारिश और खराब मौसम से काली मिर्च की तुड़ाई में बाधा आ रही है। इसीलिए पिछले दो दिनों में काली मिर्च की कीमतों में 600 से 700 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी आ चुकी है। शुक्रवार को कोच्चि में एमजी-वन काली मिर्च का भाव बढ़कर 21,200 रुपये और अनर्गाब्लड का भाव 20,700 रुपये प्रति क्विंटल हो गया। काली मिर्च का नया सीजन मध्य दिसंबर में शुरू हो जाता है लेकिन अक्टूबर-नवंबर में उत्पादक क्षेत्रों में बारिश हुई थी। चालू महीने में भी बीच-बीच में मौसम खराब हो जाता है इसीलिए नई फसल की आवक मध्य जनवरी में ही बनने की संभावना है। भारत में भी उत्पादन अनुमान कम : मसाला बोर्ड के अनुसार चालू सीजन में भारत में काली मिर्च का उत्पादन पहले के अनुमान 50,000 टन से घटकर 48,000 टन ही होने का अनुमान है। उद्योग का उत्पादन अनुमान पिछले साल के लगभग बराबर 45,000 टन ही होने का है। निर्यात घटा : चालू वित्त वर्ष के पहले सात महीनों अप्रैल से अक्टूबर के दौरान भारत से काली मिर्च के निर्यात में 14 फीसदी की कमी आई है। इस दौरान निर्यात घटकर 10,500 टन का ही हुआ है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 12,250 टन का निर्यात हुआ था। बंगलुरू के काली मिर्च निर्यातक अनीश रावथर ने बताया कि इंडोनेशिया और वियतनाम में स्टॉक कम है इसीलिए अंतरराष्ट्रीय बाजार में काली मिर्च के भाव बढ़कर 5.51 डॉलर प्रति किलो हो गए है जबकि पिछले महीने इसका भाव 5.40 डॉलर प्रति किलो था। पिछले साल की समान अवधि में कालीमिर्च का भाव अंतरराष्ट्रीय बाजार में 3.46 डॉलर प्रति किलो था। फरवरी में आंशिक गिरावट की संभावना : केदारनाथ एंड संस के पार्टनर अजय अग्रवाल ने बताया कि जनवरी के आखिर में घरेलू फसल की आवक बढ़ जायेगी। फरवरी-मार्च में वियतनाम में नई फसल की आवक शुरू हो जायेगी। इसीलिए काली मिर्च की कीमतों में फरवरी में आंशिक गिरावट आने की आशंका है। (Business Bhaskar....R S Rana)
निर्यात मांग घटने से मेंथा तेल में सुस्ती की संभावना
क्रिसमस की छुट्टियों के कारण मध्य जनवरी तक मेंथा उत्पादों में निर्यात मांग कमजोर रह सकती है जिससे मेंथा तेल और क्रिस्टल बोल्ड के दाम घटने की संभावना है। पिछले दस दिनों में अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रिस्टल बोल्ड की कीमतों में करीब पांच डॉलर प्रति किलो की गिरावट आकर भाव 32-33 डॉलर प्रति किलो रह गए हैं। एसेंशियल एसोसिएशन ऑफ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष जुगल किशोर ने बताया कि क्रिसमस की छुट्टियों के कारण मध्य जनवरी तक अमेरिका और यूरोपीय देशों के आयातकों की मांग कम रहेगी। इस दौरान नए निर्यात सौदे सीमित मात्रा में ही होंगे। इसीलिए अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रिस्टल बोल्ड की कीमतों में गिरावट आई है। पिछले दस दिनों में ही अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रिस्टल बोल्ड की कीमतों में पांच डॉलर की गिरावट आकर भाव 32-33 डॉलर प्रति किलो (सीएंडएफ) रह गए। घरेलू बाजार में क्रिस्टल बोल्ड के दाम घटने के कारण निर्यातकों को इन भाव में ज्यादा लाभ हो रहा हैं। शुक्रवार को दिल्ली में क्रिस्टल बोल्ड का भाव घटकर 1,375 रुपये प्रति किलो रह गया जबकि रुपये के मुकाबले डॉलर 45.34 के स्तर पर रहा। उत्तर प्रदेश मेंथा उद्योग एसोसिएशन के अध्यक्ष फूल प्रकाश ने बताया कि निर्यात मांग कमजोर रहने से अगले पंद्रह-बीस दिन मेंथा तेल की कीमतों में सीमित घटबढ़ ही बनी रहने की संभावना है। लेकिन चालू सीजन में मेंथा तेल का उत्पादन कम हुआ है तथा करीब 50 फीसदी माल बाजार में आ चुका है। इसीलिए जनवरी मध्य के बाद निर्यातकों के साथ ही घरेलू फार्मा कंपनियों की मांग बढऩे से मेंथा तेल के दाम बढऩे की संभावाना है। चालू फसल सीजन में देश में मेंथा तेल का उत्पादन पिछले साल के 32-33 हजार टन से घटकर 27-28 हजार टन रहने का अनुमान है। चंदौसी मंडी स्थित ग्लोरियस केमिकल के डायरेक्टर अनुराग रस्तोगी ने बताया कि मांग कमजोर होने से पिछले तीन-चार दिनों में मेंथा तेल की कीमतों में 25 रुपये की गिरावट आकर भाव 1,220-1225 रुपये प्रति किलो रह गए। कीमतों में गिरावट आने से उत्पादक मंडियों में मेंथा तेल की दैनिक आवक भी घटकर 350-400 ड्रम (एक ड्रम-180 किलो) की रह गई है। ज्यादातर माल स्टॉकिस्टों के पास है इसीलिए भाव घटते ही स्टॉकिस्ट बिकवाली कम कर देते हैं।भारतीय मसाला बोर्ड के अनुसार चालू वित्त वर्ष 2010-11 के पहले सात महीनों (अप्रैल से अक्टूबर) के दौरान मेंथा उत्पादों के निर्यात में 14 फीसदी की गिरावट आई है। इस दौरान निर्यात घटकर 10,500 टन का ही हुआ है। जबकि पिछले साल की समान अवधि में 12,175 टन का निर्यात हुआ था। मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) पर जनवरी महीने के वायदा अनुबंध में मेंथा तेल की कीमतों में शुक्रवार को करीब 16 रुपये की गिरावट आकर भाव 1,124 रुपये प्रति किलो रह गए।बात पते कीचालू वित्त वर्ष 2010-11 के पहले सात महीनों (अप्रैल से अक्टूबर) के दौरान मेंथा उत्पादों के निर्यात में 14 फीसदी की गिरावट आई है। इस दौरान निर्यात घटकर 10,500 टन का ही हुआ है। जबकि पिछले साल की समान अवधि में 12,175 टन का निर्यात हुआ था। (Business Bhaskar Hindi)
आपूर्ति घटने से बढ़े नारियल के दाम
कोच्चि December 19, 2010
पिछले कुछ सप्ताह के दौरान बाजार में आपूर्ति घटने से नारियल, खोपरा और नारियल तेल के दामों में भारी वृद्घि हुई है। बाजार सूत्रों के अनुसार केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक से अगले 5 से 6 सप्ताह तक आपूर्ति में तंगी रहने का अनुमान है। बताया जाता है कि इन राज्यों में असमय बारिश ने नारियल की फसल को भारी क्षति पहुंचाई है। इसके चलते बाजार में इसकी आवक और घटने की आशंका है जिससेे इसके दामों में अभी और बढ़ोतरी हो सकती है। स्थानीय मंडियों में नारियल के दाम बढ़कर 12 से 16 रुपये हो गए हैं जबकि चार महीने पहले इसके दाम 6 से 7 रुपये थे। नारियल के दाम बढऩे का असर खोपरा और नारियल तेल की कीमतों पर भी देखा जा रहा है। दाम बढऩे के बावजूद खरीदारों को स्थानीय मंडियों में नारियल और खोपरा खोजने से भी नहीं मिल रहे हैं। बहरहाल, उपलब्धता कम होने के वजह से कोच्चि और तिरुवनंतपुरम में नारियल की कीमत 16 से 20 रुपये के स्तर पर पहुंच चुकी है। नारियल महंगा होने का असर साफ तौर पर नारियल तेल के दामों पर भी पड़ा है। थोक बाजार में नारियल तेल के दाम रिकॉर्ड 8,000 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर से ऊपर निकल चुके हैं। जबकि खुदरा बाजार में एक किलोग्राम नारियल तेल का मूल्य बढ़कर 85 से 90 रुपये के स्तर पर पहुंच चुका है। बाजार सूत्रों के अनुसार नारियल, खोपरा और नारियल तेल के दामों में गिरावट अगले एक से डेढ़ महीने के बाद हो सकती है। नए सत्र में नई फसल तैयार होने के बाद ही स्थानीय बाजारों में नारियल की आपूर्ति बढ़ सकती है। बाजार सूत्रों के मुताबिक इस समय तमिलनाडु के प्रशिद्घ शबरीमाला मंदिर में पूजा-अर्चना के लिए नारियल की भारी मांग हो रही है। इसके चलते भी तमिलनाडु से आपूर्ति घटी है। तमिलनाडु देश में नारियल का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है। लेकिन हाल के दिनों में यहां भारी वर्षा की वजह से इसके उत्पादन पर असर पड़ा है। बारिश की वजह से नारियल और खोपरा की गुणवत्ता भी प्रभावित हुई है। आमतौर पर केरल में खोपरा का उत्पादन दिसंबर महीने से शुरू होता है। लेकिन इस समय ज्यादातर खोपरा उत्पादकों को नारियल की आपूर्ति नहीं हो पा रही है ऐसे में खोपरा उत्पदान अब तक रुका पड़ा है। नारियल तेल के कारोबारियों का अनुमान है कि मध्य जनवरी के बाद से ही बाजार की स्थिति सुधार सकती है।आयुर्वेदिक दवाइयां तैयार करने और एफएमसीजी सेक्टर में नारियल तेल की भारी मांग की वजह से नारियल और खोपरा की औद्योगिक मांग में भी इजाफा हुआ है। हालांकि इस दौरान पाम ऑयल, सुरजमुखी तेल आदि खाद्य तेलों के दामों में भी वृद्घि होने का भी असर नारियल तेल पर पड़ा है। नारियल तेल मिलों को नारियल न मिलने की वजह से नारियल के छिलके की आपूर्ति का भी संकट मंडरा रहा है और इसके दामों में भी वृद्घि के आसार हैं। (BS Hindi)
पिछले कुछ सप्ताह के दौरान बाजार में आपूर्ति घटने से नारियल, खोपरा और नारियल तेल के दामों में भारी वृद्घि हुई है। बाजार सूत्रों के अनुसार केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक से अगले 5 से 6 सप्ताह तक आपूर्ति में तंगी रहने का अनुमान है। बताया जाता है कि इन राज्यों में असमय बारिश ने नारियल की फसल को भारी क्षति पहुंचाई है। इसके चलते बाजार में इसकी आवक और घटने की आशंका है जिससेे इसके दामों में अभी और बढ़ोतरी हो सकती है। स्थानीय मंडियों में नारियल के दाम बढ़कर 12 से 16 रुपये हो गए हैं जबकि चार महीने पहले इसके दाम 6 से 7 रुपये थे। नारियल के दाम बढऩे का असर खोपरा और नारियल तेल की कीमतों पर भी देखा जा रहा है। दाम बढऩे के बावजूद खरीदारों को स्थानीय मंडियों में नारियल और खोपरा खोजने से भी नहीं मिल रहे हैं। बहरहाल, उपलब्धता कम होने के वजह से कोच्चि और तिरुवनंतपुरम में नारियल की कीमत 16 से 20 रुपये के स्तर पर पहुंच चुकी है। नारियल महंगा होने का असर साफ तौर पर नारियल तेल के दामों पर भी पड़ा है। थोक बाजार में नारियल तेल के दाम रिकॉर्ड 8,000 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर से ऊपर निकल चुके हैं। जबकि खुदरा बाजार में एक किलोग्राम नारियल तेल का मूल्य बढ़कर 85 से 90 रुपये के स्तर पर पहुंच चुका है। बाजार सूत्रों के अनुसार नारियल, खोपरा और नारियल तेल के दामों में गिरावट अगले एक से डेढ़ महीने के बाद हो सकती है। नए सत्र में नई फसल तैयार होने के बाद ही स्थानीय बाजारों में नारियल की आपूर्ति बढ़ सकती है। बाजार सूत्रों के मुताबिक इस समय तमिलनाडु के प्रशिद्घ शबरीमाला मंदिर में पूजा-अर्चना के लिए नारियल की भारी मांग हो रही है। इसके चलते भी तमिलनाडु से आपूर्ति घटी है। तमिलनाडु देश में नारियल का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है। लेकिन हाल के दिनों में यहां भारी वर्षा की वजह से इसके उत्पादन पर असर पड़ा है। बारिश की वजह से नारियल और खोपरा की गुणवत्ता भी प्रभावित हुई है। आमतौर पर केरल में खोपरा का उत्पादन दिसंबर महीने से शुरू होता है। लेकिन इस समय ज्यादातर खोपरा उत्पादकों को नारियल की आपूर्ति नहीं हो पा रही है ऐसे में खोपरा उत्पदान अब तक रुका पड़ा है। नारियल तेल के कारोबारियों का अनुमान है कि मध्य जनवरी के बाद से ही बाजार की स्थिति सुधार सकती है।आयुर्वेदिक दवाइयां तैयार करने और एफएमसीजी सेक्टर में नारियल तेल की भारी मांग की वजह से नारियल और खोपरा की औद्योगिक मांग में भी इजाफा हुआ है। हालांकि इस दौरान पाम ऑयल, सुरजमुखी तेल आदि खाद्य तेलों के दामों में भी वृद्घि होने का भी असर नारियल तेल पर पड़ा है। नारियल तेल मिलों को नारियल न मिलने की वजह से नारियल के छिलके की आपूर्ति का भी संकट मंडरा रहा है और इसके दामों में भी वृद्घि के आसार हैं। (BS Hindi)
हल्दी का भाव सातवें आसमान पर
मुंबई December 20, 2010
बाजार में स्टॉक की कमी और तेज मांग के साथ नई फसल आने में हो रही देरी की वजह से हल्दी के दाम एक बार फिर ऊपर जाना शुरू हो गए हैं। मौजूदा हालात को देखते हुए जानकारों का मानना है कि जनवरी में हल्दी की कीमतें नया रिकॉर्ड बना सकती है जबकि हमेशा जनवरी में हल्दी की कीमतें नीचले स्तर पर रहती है। निर्यात मांग निकलना भी कीमतों में उछाल की एक वजह मानी जा रही है।सबसे ज्यादा मुनाफा देने वाली फसलों में सूमार होने की वजह से किसानों ने इस साल हल्दी के फसल को पहली प्रथामिकता दी है। रकबा बढऩे और फसल के अनुरुप मौसम होने की वजह से पिछले साल की अपेक्षा इस बार 43 फीसदी ज्यादा उत्पादन होने की उम्मीद की जा रही है। कृषि मंत्रालय के अनुमान के मुताबिक इस बार 67 लाख बैग (एक बैग बराबर 75-75 किलोग्राम)हल्दी का उत्पादन होगा जबकि पिछले साल (2009-10) में 48 लाख बैंग और 2008-09 में 42 लाख बैंग का उत्पादन हुआ था। उत्पादन ज्यादा होने की उम्मीद का फर्क बाजार पर भी पड़ा और हल्दी की कीमतें गिरने लगी। लेकिन पिछले दिनों हुई बरसात ने हल्दी की कीमतों को एक बार फिर से उडऩे का मौका दे गई। दो सप्ताह के अंदर हल्दी की कीमतों में करीबन 5 फीसदी की बढ़ोत्तरी दर्ज की जा चुकी है जो आगे भी बनी रह सकती है। बाजार में हावी हो रहे सटोरियों को देखते हुए जानकारों का मानना है कि अगले एक दो सप्ताह के अंदर हल्दी की कीमत में 30 फीसदी तक की बढ़ोत्तरी हो सकती है।हल्दी की कीमतें बढऩे पर एंजेल ब्रोकिंग की कमोडिटी विशेषज्ञ नलिनी राव कहती है कि इस बार उत्पादन बहुत ज्यादा है इसके बावजूद कीमते बढऩे की प्रमुख वजह फसल में हो रही देरी है। दरअसल हर साल जनवरी की शुरूआत में नई फसल बाजार में पहुंच जाती थी लेकिन इस बार बरसात हो जाने की वजह से करीबन 20 दिन नई फसल देर से आने वाली है। घरेलू मांग के साथ विदेशी मांग भी तेजी है, जबकि मांग की अपेक्षा बाजार में स्टॉक नहीं है जिसके वजह से कीमतें तेजी से ऊपर की तरफ चढ़ रही है जो फरवरी तक ऊपर जाती रहेगी क्योंकि अब नई फसल जनवरी की अपेक्षा फरवरी में ही मंडिय़ों तक पहुंच सकेगी।मंडियों में इस समय जो माल है भी वह अच्छा नहीं है। अनुमानत: अब बाजार में महज 3-4 लाख बैंग स्टॉक बचा हुआ है। जबकि पिछले महीने यह स्टॉक 8-9 लाख बैग था। इस बात को सटोरिये अच्छी तरह समझ रहे हैं और उनको यह भी पता है कि नई फसल आने में अभी करीबन 45 दिन का समय है। जिसको देखते हुए माना जा रहा है कि हाजिर बाजार में कीमतें नया रिकॉड बना सकती है। वायदा बाजार में अक्टूबर महीने में हल्दी की औसत कीमत 12,892 रुपये प्रति क्विंटल थी जो नवंबर में 22.37 फीसदी बढ़कर 15,776 रुपये प्रति क्विंटल हो गई है। इस साल हाजिर बाजार में 18,000 रुपये प्रति क्विंटल और वायदा बाजार में 16350 रुपये प्रति क्विंटल हल्दी बिक चुकी है। इस समय वायदा बाजार में हल्दी 14,000 और हाजिर बाजार में 17,000 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच चुकी है। इस वर्ष जनवरी में वायदा हल्दी 6600 रुपये और हाजिर में 7700 रुपये में बिक थी, जबकि इस बार जनवरी (2011) में यह कीमत दोगुनी या फिर तीन गुनी हो सकती है। (BS Hindi)
बाजार में स्टॉक की कमी और तेज मांग के साथ नई फसल आने में हो रही देरी की वजह से हल्दी के दाम एक बार फिर ऊपर जाना शुरू हो गए हैं। मौजूदा हालात को देखते हुए जानकारों का मानना है कि जनवरी में हल्दी की कीमतें नया रिकॉर्ड बना सकती है जबकि हमेशा जनवरी में हल्दी की कीमतें नीचले स्तर पर रहती है। निर्यात मांग निकलना भी कीमतों में उछाल की एक वजह मानी जा रही है।सबसे ज्यादा मुनाफा देने वाली फसलों में सूमार होने की वजह से किसानों ने इस साल हल्दी के फसल को पहली प्रथामिकता दी है। रकबा बढऩे और फसल के अनुरुप मौसम होने की वजह से पिछले साल की अपेक्षा इस बार 43 फीसदी ज्यादा उत्पादन होने की उम्मीद की जा रही है। कृषि मंत्रालय के अनुमान के मुताबिक इस बार 67 लाख बैग (एक बैग बराबर 75-75 किलोग्राम)हल्दी का उत्पादन होगा जबकि पिछले साल (2009-10) में 48 लाख बैंग और 2008-09 में 42 लाख बैंग का उत्पादन हुआ था। उत्पादन ज्यादा होने की उम्मीद का फर्क बाजार पर भी पड़ा और हल्दी की कीमतें गिरने लगी। लेकिन पिछले दिनों हुई बरसात ने हल्दी की कीमतों को एक बार फिर से उडऩे का मौका दे गई। दो सप्ताह के अंदर हल्दी की कीमतों में करीबन 5 फीसदी की बढ़ोत्तरी दर्ज की जा चुकी है जो आगे भी बनी रह सकती है। बाजार में हावी हो रहे सटोरियों को देखते हुए जानकारों का मानना है कि अगले एक दो सप्ताह के अंदर हल्दी की कीमत में 30 फीसदी तक की बढ़ोत्तरी हो सकती है।हल्दी की कीमतें बढऩे पर एंजेल ब्रोकिंग की कमोडिटी विशेषज्ञ नलिनी राव कहती है कि इस बार उत्पादन बहुत ज्यादा है इसके बावजूद कीमते बढऩे की प्रमुख वजह फसल में हो रही देरी है। दरअसल हर साल जनवरी की शुरूआत में नई फसल बाजार में पहुंच जाती थी लेकिन इस बार बरसात हो जाने की वजह से करीबन 20 दिन नई फसल देर से आने वाली है। घरेलू मांग के साथ विदेशी मांग भी तेजी है, जबकि मांग की अपेक्षा बाजार में स्टॉक नहीं है जिसके वजह से कीमतें तेजी से ऊपर की तरफ चढ़ रही है जो फरवरी तक ऊपर जाती रहेगी क्योंकि अब नई फसल जनवरी की अपेक्षा फरवरी में ही मंडिय़ों तक पहुंच सकेगी।मंडियों में इस समय जो माल है भी वह अच्छा नहीं है। अनुमानत: अब बाजार में महज 3-4 लाख बैंग स्टॉक बचा हुआ है। जबकि पिछले महीने यह स्टॉक 8-9 लाख बैग था। इस बात को सटोरिये अच्छी तरह समझ रहे हैं और उनको यह भी पता है कि नई फसल आने में अभी करीबन 45 दिन का समय है। जिसको देखते हुए माना जा रहा है कि हाजिर बाजार में कीमतें नया रिकॉड बना सकती है। वायदा बाजार में अक्टूबर महीने में हल्दी की औसत कीमत 12,892 रुपये प्रति क्विंटल थी जो नवंबर में 22.37 फीसदी बढ़कर 15,776 रुपये प्रति क्विंटल हो गई है। इस साल हाजिर बाजार में 18,000 रुपये प्रति क्विंटल और वायदा बाजार में 16350 रुपये प्रति क्विंटल हल्दी बिक चुकी है। इस समय वायदा बाजार में हल्दी 14,000 और हाजिर बाजार में 17,000 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच चुकी है। इस वर्ष जनवरी में वायदा हल्दी 6600 रुपये और हाजिर में 7700 रुपये में बिक थी, जबकि इस बार जनवरी (2011) में यह कीमत दोगुनी या फिर तीन गुनी हो सकती है। (BS Hindi)
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