28 नवंबर 2008
जल्द मिलेगी दस मेगा फूड पार्को को मंजूरी
खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय जल्द ही दस मेगा फूड पाकरे को मंजूरी देने वाला है। इसके लिए कुल चालीस कंपनियों के प्रस्ताव मंत्रालय को प्राप्त हुए है। खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र के तेज विकास के लिए महत्वपूर्ण मानी जा रही इस परियोजना के अंतर्गत कुल तीस मेगा फूड पार्क बनाये जाने है। खाद्य मंत्रालय के सरकारी सूत्रों के अनुसार अगले हफ्ते में इस पर फैसला हो जायेगा। इसके लिए कुल चालीस कंपनियों ने अपनी रुचि जाहिर करते हुए एक्सप्रेशन ऑफ इंट्रेस्ट (ईओआई) मंत्रालय के पास दिये है, जिन पर विचार चल रहा है। इसमें आईटीसी, जेएमएल इंटरनेशनल और सेंट्रल वेयर हाउसिंग कारपोरेशन जैसी कंपनियां शामिल हैं। इसके अंतर्गत दस राज्यों में एक-एक मेगा फूड पार्क खोला जायेगा। ये दस मेगा फूड पार्क कर्नाटक, झारखण्ड, उत्तर प्रदेश, उत्तर पूर्व, पंजाब, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और उत्तरांचल में खोले जायेगें। उम्मीद की जा रही है कि ये मेगा फूड पार्क इस वित्तीय वर्ष में अपना काम शुरु कर देगें। केन्द्र सरकार ने इस साल अगस्त में तीस मेगा फूड पार्क खोलने की योजना बनाई है। इसके लिए सरकार कुल प्रोजेक्ट लागत का 50 फीसदी या 50 करोड़ रुपये सरकारी सहायता के रुप में उपलब्ध करायेगी। परियोजना के पहले चरण में दस मेगा फूड पाकरे को मंजूरी दी जा रही है। इस वित्त वर्ष में खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय में 350 करोड़ रुपये के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश होने का अनुमान है। इस मंदी के माहौल में भी खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र निवेश लगातार जारी है। मौजूदा वित्त वर्ष में इस क्षेत्र की विकास दर 12 फीसदी रहने की संभावना है। वित्त वर्ष 2007-08 में भी विकास दर 12 फीसदी थी। इसके साथ ही देश भर में कोल्ड स्टोरेज की एक श्रृंखला तैयार करने की योजना है जो तैयार किये जाने वाले 30 मेगा फूड पाकरे को आपस में जोड़ेगी। इससे देश में खाद्य प्रसंस्करण के स्तर में भी सुधार होगा। अभी खाद्य प्रसंस्करण स्तर 10 फीसदी है। (Business Bhaskar)
भारत और चीन में कॉपर बढ़ा, लंदन में गिरा
वैव्श्रिक बाजारों में गुरुवार के कारोबार के दौरान कॉपर के भाव में काफी घटबढ़ देखी गई। इस दौरान लंदन मेटल एक्सचेंज में कॉपर के भाव में करीब 70 डॉलर की गिरावट देखी गई। वहीं चीन और भारत में कॉपर की कीमतों में तेजी रही। गौरतलब है कि लंदन मेटल एक्सचेंज में थ्री मंथ कॉपर वायदा करीब 70 डॉलर की गिरावट के साथ 3,685 डॉलर प्रति टन पर कारोबार किया। कारोबारियों के मुताबिक अमेरिका में मांग घटने की आशंका से यहां कॉपर की कीमतों में गिरावट आई है। हालांकि इस गिरावट का असर भारत और चीन के कॉपर कारोबार पर नहीे देखा गया। आम तौर पर वैव्श्रिक स्तर पर कॉपर का कारोबार लंदन मेटल एक्सचेंज की तर्ज पर ही होता है। लेकिन इसके उलट गुरुवार को कारोबार के दौरान शंघाई मेटल एक्सचेंज में कॉपर की कीमतों में करीब दो फीसदी की बढ़त रही।दिन भर के कारोबार के दौरान यहां पर थर्ड मंथ कॉपर वायदा करीब 520 युआन की बढ़त के साथ 28,350 युआन प्रति टन पर कारोबार किया। सोमवार के कारोबार के दौरान करीब सात फीसदी की गिरावट आने की वजह से यह 26,520 युआन प्रति टन पर कारोबार किया था। जो पिछले चार सालों का न्यूनतम स्तर है। कारोबारियों के मुताबिक आने वाले दिनों में मांग बढ़ने की संभावना से कॉपर की कीमतों में इजाफा हुआ है। दरअसल चीन सरकार द्वारा राहत पैकेज जारी करने के साथ ही ब्याज दरों में भारी कटौती की है। पिछले 11 सालों के बाद का यह सबसे बड़ी कटौती है। इस दौरान चीन में कॉपर की मांग में इजाफ की संभावना से भारत के हाजिर बाजारों में भी इसकी कीमतों में तेजी देखी गई। हालांकि मुंबई में आतंकवादी हमले की वजह से वायदा कारोबार के साथ मुंबई में हाजिर कारोबार भी बंद रहा। लेकिन दिल्ली में कारोबार होने से यहां कॉपर की कीमतों में करीब पांच रुपये प्रति किलो की बढ़त देखी गईद्ध दिन भर के कारोबार के दौरान यहां कॉपर वायदा करीब 230 रुपये किलो बिका। कारोबारियों के मुताबिेक चीन में भाव बढ़ने की वजह से घरलू बाजारों में कॉपर व कॉपर उत्पादों में औद्योगिक मांग बढ़ी है। (Business Bhaskar)
आंध्र में लालमिर्च के उत्पादन में कमी आने की आशंका
आंध्रप्रदेश में लालमिर्च के उत्पादन में करीब 15-20 फीसदी की गिरावट आ सकती है। पिछले साल यहां करीब 150 लाख बोरी लाल मिर्च का उत्पादन हुआ था। लेकिन चालू सीजन में इसका रकबा घटने से उत्पादन का स्तर करीब 115 लाख बोरी रह सकता है।गुंटूर मंडी के लालमिर्च व्यापारी मांगीलाल मुंदड़ा के मुताबिक उत्पादक क्षेत्रों में बूंदा-बांदी हो रही है जोकि आने वाली फसल के लिए अच्छी है। लेकिन बारिश तेज होती है तो फसल को नुकसान पहुंच सकता है। गुंटूर में इस समय लालमिर्च का 15 लाख बोरी का स्टॉक बचा हुआ है। जो पिछले साल से थोड़ा कम है। इसमें भी बढ़िया लाल माल महज 35-40 फीसदी ही है। ज्यादातर माल फटकी क्वालिटी का बचा हुआ है।इस दौरान गुंटूर में तेजा क्वालिटी की लालमिर्च के भाव 6500-7500 रुपये, 334 क्वालिटी के भाव 5200-6100 रुपये, सनम के भाव 5700-6300 रुपये, ब्याड़गी क्वालिटी के भाव 7000-7500 रुपये, 273 क्वालिटी के भाव 5800-6400 रुपये व फटकी क्वालिटी के भाव 1400-2500 रुपये प्रति क्विंटल पर स्थिर बने हुए हैं। नई फसल की आवक उत्पादक मंडियों में फरवरी के प्रथम पखवाड़े में शुरू हो जाएगी।मुंबई के निर्यातक अशोक दत्तानी ने बताया कि चालू वित्त वर्ष के अप्रैल से अक्टूबर तक लालमिर्च का निर्यात 1,21,500 टन का हो चुका है जोकि बीते वर्ष की समान अवधि के 1,21,420 टन से ज्यादा है। शुरूआत में मलेशिया, श्रीलंका, थाईलैंड व इंडोनेशिया के साथ खाड़ी देशों की अच्छी मांग बनी हुई थी। लेकिन पाकिस्तान और चीन में नई फसल आने के कारण भारत से निर्यात में पिछले एक महीने से काफी कमी आई है। उनका कहना है कि बढ़िया माल के अभाव में निर्यात मांग कम होने के बावजूद भाव स्थिर हैं। इंदौर के खजोरमल प्रजापति के मुताबिक राज्य में विधानसभा चुनाव के कारण मंडियों में लालमिर्च की आवक कमी हुई है। चुनाव तक आवक प्रभावित रहने की उम्मीद है। राज्य की मंडियों में लालमिर्च के भाव 5000- 6000 रुपये प्रति क्विंटल क्वालिटीनुसार बोले जा रहे हैं। बीते वर्ष राज्य में 35 लाख बोरी लालमिर्च का उत्पादन हुआ था लेकिन लालमिर्च के बजाए किसानों द्वारा सोयाबीन की बुवाई ज्यादा करने से चालू वर्ष में यहां भी उत्पादन में कमी आने की आशंका है। (Business Bhaskar.....R S Rana)
चीनी में स्टॉकिस्टों की खरीद रह सकती है कमजोर
नए सीजन में चीनी के उत्पादन में कमी और बकाया स्टॉक भी बीते वर्ष के मुकाबले कम होने के बावजूद भी स्टॉकिस्टों की खरीद कम रहने की संभावना है। जानकारों का मानना है कि आगामी वर्ष के शुरू में लोकसभा चुनाव होने हैं तथा चुनावी वर्ष में सरकार चाहेगी कि आवश्यक वस्तुओं के दामों में तेजी न आए। वैसे भी संवेदनशील कृषि जिंस होने के नाते सरकार की चीनी के दामों पर पैनी नजर रहती है। दिल्ली के चीनी व्यापारी सुधीर भालोठिया ने बताया कि उत्तर प्रदेश में कुछ मिलों ने गन्ने की पेराई शुरू की है लेकिन मिलों द्वारा पुरानी चीनी की बिकवाली बढ़ा देने से घरेलू बाजारों में चीनी के भावों में गिरावट आई है। पिछले एक सप्ताह में दिल्ली बाजार में एम ग्रेड चीनी के भावों में 25 रुपये की गिरावट आकर भाव 1880 से 1920 रुपये और एस ग्रेड चीनी के भाव घटकर 1830 से 1870 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। मुजफ्फरनगर के चीनी व्यापारी जय प्रकाश अग्रवाल ने बताया कि चालू वर्ष में गन्ने के क्षेत्रफल में आई कमी और गन्ना मिलों पेराई में देरी की वजह से चीनी के उत्पादन में गिरावट तो आएगी लेकिन स्टॉकिस्टों की खरीद नए सीजन में कमजोर रहने की संभावना है। उन्होंने बताया कि चालू वर्ष में देश में चीनी का उत्पादन 190 लाख टन का रह सकता है जबकि बकाया स्टॉक इस समय 80-90 लाख टन से ज्यादा का नहीं है। उन्होंने बताया कि जैसे ही राज्य की सभी मिलों में चीनी का उत्पादन शुरू होगा इसके मौजूदा भावों में और भी 40 से 50 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट तो आ सकती है लेकिन भारी गिरावट के आसार नहीं है।चालू सीजन में देश में चीनी उत्पादन का अनुमान 220 लाख टन और बकाया स्टॉक 110 लाख का है। कृषि मंत्री शरद पवार का कहना है कि उत्पादन व बकाया स्टॉक मिलाकर देश में चीनी की कुल उपलब्धता पर्याप्त रहेगी। (Business Bhaskar....R S Rana)
कमोडिटी और टेक सेक्टर में किया जा सकता है निवेश
बाजार में पिछले काफी समय से उतार-चढ़ाव का दौर जारी है और आने वाले समय में भी इसे कोई दिशा मिलती नजर नहीं आ रही। हाल की गिरावट ने प्रत्येक शेयर पर कहर ढाया है और बहुत से लॉर्ज कैप शेयर 4-5 वर्षों बाद अब आकर्षक दाम पर उपलब्ध हैं। मेटल (विशेषकर स्टील और एल्युमीनियम) सेक्टर की बहुत से कंपनियों की मध्यम अवधि की संभावनाओं पर प्रश्न उठ सकते हैं लेकिन लंबी अवधि की सोच के साथ इनमें निवेश किया जा सकता है। कमोडिटी सेक्टर में अभी सुधार आने में समय लगेगा लेकिन मौजूदा स्तरों पर इसमें खरीदारी करना अच्छा रहेगा। निवेशक अपने पोर्टफोलियो में टेक्नोलॉजी सेक्टर को भी जगह दे सकते हैं। इस सेक्टर का हाल का प्रदर्शन मिला-जुला रहा है। आउटसोर्सिंग पर लगाम लगाने के अमेरिका के अगले राष्ट्रपति बराक ओबामा के इरादे का असर पहले ही शेयरों पर पड़ चुका है। लेकिन घरेलू आईटी सेक्टर ने पिछले एक दशक में बड़ा मुकाम हासिल किया है और भारत की बड़ी आईटी कंपनियों की मदद के बिना वैश्विक कंपनियों का आगे बढ़ पाना मुश्किल होगा। आईटी कंपनियों को कीमत और मार्जिन को लेकर कुछ समझौते करने पड़ सकते हैं लेकिन आने वाले समय में उनके कारोबार पर बहुत अधिक असर पड़ने की उम्मीद नहीं है। कम से कम तीन वर्ष के लिए निवेश करने वाले लोग टेक सेक्टर में रकम लगा सकते हैं। ऐसे शेयरों को चुनना अच्छा रहेगा जिनमें मंदी की मार सहने की क्षमता हो। इसके साथ ही आप कंपनी के पिछले प्रदर्शन और ऑर्डर बुक पर भी नजर डाल सकते हैं। जो निवेशक म्यूचुअल फंड के जरिए इक्विटी में निवेश करना चाहते हैं, उनके लिए डाइवर्सिफाइड फंड बेहतर होंगे। निवेशकों का एकमुश्त धन लगाने से बचना चाहिए। म्यूचुअल फंड में सिस्टेमेटिक इनवेस्टमेंट प्लान (एसआईपी) के जरिए निवेश कर सकते हैं। अगर आप सीधे शेयरों में निवेश करते हैं और पांच वर्ष का नजरिया रखते हैं तो नियमित अंतराल पर प्रॉफिट बुक करें। (ET Hindi)
कमोडिटी निवेश से जुड़े सवालों के जवाब
इस साल मुझे शेयर बाजार में निवेश से काफी नुकसान उठाना पड़ा है। क्या ऐसे में मुझे कमोडिटी में निवेश करना चाहिए?- अनूप मल्होत्रा, वसंत विहार
देखिए, कमोडिटी में निवेश को शेयर बाजार का विकल्प नहीं माना जा सकता है। इसके अलावा किसी भी निवेश में मुनाफा और नुकसान कई चीजों पर निर्भर करता है। अगर आप कमोडिटी बाजार में पहली बार निवेश करने जा रहे हैं तो आपको फ्यूचर्स बाजार में निवेश को स्टॉप लॉस के साथ करना चाहिए। कमोडिटी में निवेश करने से पहले फंडामेंटल, टेक्निकल और कमोडिटी चक्र के बारे में अच्छी तरह से पता कर लेना चाहिए। आपको मेटल, कृषि और दूसरे सभी कमोडिटी के बारे में निवेश से पहले जानकारी होनी चाहिए। अगर आप ज्यादा जोखिम नहीं उठाना चाहते हैं तो आपको स्पॉट-फ्यूचर्स आर्बि़ट्राज करना चाहिए। मुझे हाजिर बाजार में निवेश करना चाहिए या फिर फ्यूचर्स बाजार में?- रश्मि शर्मा, करोल बाग फ्यूचर्स कारोबार काफी लोकप्रिय है और यह आकर्षक भी है। इसमें जोखिम भी ज्यादा है। अगर आप वित्तीय अनुशासन में रहते हैं तो आपको फ्यूचर्स में कारोबार करना चाहिए। इसमें हमेशा स्टॉप लॉस को रखना चाहिए। साथ ही केवल उतनी ही रकम से कारोबार करना चाहिए जितनी आपके पास हो। स्पॉट बाजार में आने वाले दिनों में अच्छा कारोबार मिल सकता है। हालांकि, इस वक्त इस बाजार में ज्यादा कारोबार नहीं हो रहा है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में इस वक्त कच्चे तेल की कीमतें 50-60 डॉलर प्रति बैरल के बीच चल रही हैं, ऐसे में क्या मुझे क्रूड ऑयल में निवेश करना चाहिए?-पवन दीवान, खारी बावली पहली बात फ्यूचर्स बाजार में इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि कीमतें ऊपर जा रही हैं या नीचे। चूंकि यह कारोबार डिलीवरी आधारित नहीं होता है ऐसे में आपको जब लगे कि कीमतें कम चल रही हैं तो आप खरीदारी कर सकते हैं और कीमतों के ऊपर होने पर आप बिकवाली कर सकते हैं। कमोडिटी फ्यूचर्स कारोबार में सबसे बड़ा फायदा यही है। जहां तक क्रूड ऑयल का सवाल है तो इस वक्त कीमतों के नीचे होने की सबसे बड़ी वजह मांग में कमी का होना है। हालांकि, दुनिया भर में वित्तीय संकट से निपटने के लिए सरकारें जो कोशिशें कर रही हैं, उससे तेल की मांग बढ़ेगी। कुल मिलाकर तेल का कारोबार काफी अच्छा है और इसकी कीमतों में खासा बदलाव देखा जाता है। क्या केवल एक या दो कमोडिटी में निवेश करना चाहिए या कमोडिटी निवेश को डायवर्सिफाई करना चाहिए? -संदीप कुमार, साकेत यह निवेश और कारोबारी अनुभवों से तय होता है। अगर आप कमोडिटी में निवेश की शुरुआत ही कर रहे हैं तो आपको केवल एक ही कमोडिटी में पैसा लगाना चाहिए। इससे आपको कमोडिटी कीमतों में बदलाव और जोखिम का पता चल सकेगा। मिसाल के तौर पर, बेस मेटल कीमतों का पता उनके स्टॉक से चलता है। कृषि कमोडिटी की कीमतों का भविष्य भी उत्पादन और मांग जैसी बातों से तय होता है। एक बार कमोडिटी कारोबार के बारे में बेहतर जानकारी हो जाने के बाद आप निवेश को डायवर्सिफाई कर सकते हैं। स्टील कीमतों में क्या फिर से उछाल आ सकता है। क्या इसमें निवेश किया जा सकता है?-विजय प्रकाश, राजौरी गार्डन स्टील कीमतों में आई गिरावट ने कारोबारियों को बेहतर मौका मुहैया कराया है। हालांकि, मांग में कमी के चलते अब कंपनियां उत्पादन में कमी कर रही हैं। अगले साल की पहली तिमाही के अंत तक स्टील कीमतों में उछाल आने की संभावना है। स्टील के अलावा आपको एनर्जी, सर्राफा, बेस मेटल और कृषि कमोडिटी के बारे में भी विचार करना चाहिए। (ET Hindi)
देखिए, कमोडिटी में निवेश को शेयर बाजार का विकल्प नहीं माना जा सकता है। इसके अलावा किसी भी निवेश में मुनाफा और नुकसान कई चीजों पर निर्भर करता है। अगर आप कमोडिटी बाजार में पहली बार निवेश करने जा रहे हैं तो आपको फ्यूचर्स बाजार में निवेश को स्टॉप लॉस के साथ करना चाहिए। कमोडिटी में निवेश करने से पहले फंडामेंटल, टेक्निकल और कमोडिटी चक्र के बारे में अच्छी तरह से पता कर लेना चाहिए। आपको मेटल, कृषि और दूसरे सभी कमोडिटी के बारे में निवेश से पहले जानकारी होनी चाहिए। अगर आप ज्यादा जोखिम नहीं उठाना चाहते हैं तो आपको स्पॉट-फ्यूचर्स आर्बि़ट्राज करना चाहिए। मुझे हाजिर बाजार में निवेश करना चाहिए या फिर फ्यूचर्स बाजार में?- रश्मि शर्मा, करोल बाग फ्यूचर्स कारोबार काफी लोकप्रिय है और यह आकर्षक भी है। इसमें जोखिम भी ज्यादा है। अगर आप वित्तीय अनुशासन में रहते हैं तो आपको फ्यूचर्स में कारोबार करना चाहिए। इसमें हमेशा स्टॉप लॉस को रखना चाहिए। साथ ही केवल उतनी ही रकम से कारोबार करना चाहिए जितनी आपके पास हो। स्पॉट बाजार में आने वाले दिनों में अच्छा कारोबार मिल सकता है। हालांकि, इस वक्त इस बाजार में ज्यादा कारोबार नहीं हो रहा है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में इस वक्त कच्चे तेल की कीमतें 50-60 डॉलर प्रति बैरल के बीच चल रही हैं, ऐसे में क्या मुझे क्रूड ऑयल में निवेश करना चाहिए?-पवन दीवान, खारी बावली पहली बात फ्यूचर्स बाजार में इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि कीमतें ऊपर जा रही हैं या नीचे। चूंकि यह कारोबार डिलीवरी आधारित नहीं होता है ऐसे में आपको जब लगे कि कीमतें कम चल रही हैं तो आप खरीदारी कर सकते हैं और कीमतों के ऊपर होने पर आप बिकवाली कर सकते हैं। कमोडिटी फ्यूचर्स कारोबार में सबसे बड़ा फायदा यही है। जहां तक क्रूड ऑयल का सवाल है तो इस वक्त कीमतों के नीचे होने की सबसे बड़ी वजह मांग में कमी का होना है। हालांकि, दुनिया भर में वित्तीय संकट से निपटने के लिए सरकारें जो कोशिशें कर रही हैं, उससे तेल की मांग बढ़ेगी। कुल मिलाकर तेल का कारोबार काफी अच्छा है और इसकी कीमतों में खासा बदलाव देखा जाता है। क्या केवल एक या दो कमोडिटी में निवेश करना चाहिए या कमोडिटी निवेश को डायवर्सिफाई करना चाहिए? -संदीप कुमार, साकेत यह निवेश और कारोबारी अनुभवों से तय होता है। अगर आप कमोडिटी में निवेश की शुरुआत ही कर रहे हैं तो आपको केवल एक ही कमोडिटी में पैसा लगाना चाहिए। इससे आपको कमोडिटी कीमतों में बदलाव और जोखिम का पता चल सकेगा। मिसाल के तौर पर, बेस मेटल कीमतों का पता उनके स्टॉक से चलता है। कृषि कमोडिटी की कीमतों का भविष्य भी उत्पादन और मांग जैसी बातों से तय होता है। एक बार कमोडिटी कारोबार के बारे में बेहतर जानकारी हो जाने के बाद आप निवेश को डायवर्सिफाई कर सकते हैं। स्टील कीमतों में क्या फिर से उछाल आ सकता है। क्या इसमें निवेश किया जा सकता है?-विजय प्रकाश, राजौरी गार्डन स्टील कीमतों में आई गिरावट ने कारोबारियों को बेहतर मौका मुहैया कराया है। हालांकि, मांग में कमी के चलते अब कंपनियां उत्पादन में कमी कर रही हैं। अगले साल की पहली तिमाही के अंत तक स्टील कीमतों में उछाल आने की संभावना है। स्टील के अलावा आपको एनर्जी, सर्राफा, बेस मेटल और कृषि कमोडिटी के बारे में भी विचार करना चाहिए। (ET Hindi)
कमोडिटी बाजार में शेयर बाजार जितना जोखिम नहीं
इक्विटी बाजार में जहां कारोबार घट रहा है , उसके उलट कमोडिटी वायदा बाजार में वॉल्यूम लगातार बढ़ रहा है। साफ है कि निवेशकों की इस बाजार में दिलचस्पी बढ़ रही है। मौजूदा हालात में कमोडिटी बाजार में शेयर बाजार जितना जोखिम नहीं है। आप सट्टेबाज हों , हेजर या आर्बिट्राज करने वाले , कमोडिटी बाजार में सभी के लिए कुछ न कुछ है। कम मार्जिन , ट्रेडिंग के ज्यादा घंटे और अंतरराष्ट्रीय कमोडिटी की जानकारी की वजह से यह बाजार छोटे निवेशकों का भी पसंदीदा बनता जा रहा है। कमोडिटी बाजार में निवेशक जोखिम क्षमता के मुताबिक मुनाफे की रणनीति चुन सकता है। 1 . हाजिर - वायदा आर्बिट्राज : कमोडिटी बाजार में यह बहुत कम जोखिम में ज्यादा मुनाफा कमाने का सबसे उम्दा जरिया है। इसमें दो चरण होते हैं। पहले स्तर पर ब्रोकर मंडी या हाजिर बाजार से आपके लिए कमोडिटी खरीदता है और साथ ही साथ दूसरे चरण में उस कमोडिटी को वायदा बाजार में बेचकर मुनाफा सुनिश्चित करता है। कृषि आधारित कमोडिटी के कारोबार में सबसे ज्यादा मुनाफा मिलता है। खरीदे जाने वाले सामान की गुणवत्ता से जुड़े मुद्दे को लेकर कुछ जोखिम जरूर हो सकता है। इस उत्पाद के लिए अपने ब्रोकर से जरूर बातचीत कीजिए। 2. स्प्रेड ट्रेडिंग : इक्विटी और कमोडिटी बाजार समेत सभी किस्म के बाजारों में यह पसंदीदा रणनीति है। इसमें निवेशक किसी महीने के कॉन्ट्रैक्ट में एक पोजीशन लेता है और उसके अगले कॉन्ट्रैक्ट में उलटी पोजीशन। यानी अगर एक कॉन्ट्रैक्ट को आप खरीदते हैं तो दूसरे में बिकवाली करते हैं। इसमें आप दोनों कॉन्ट्रैक्ट के अंतर से मुनाफा कमा सकते हैं। आम तौर पर अंतर घटने या इसका उलटा होने पर व्यक्ति विशेष करीब के महीने का कॉन्ट्रैक्ट खरीदता है और दूर के महीने का अनुबंध और रिवर्स पोजीशन बेच देता है। इसमें जोखिम भी शामिल होता है क्योंकि दोनों पोजीशन आपके खिलाफ जा सकते हैं , लेकिन अनुभव कारोबारियों के लिए यह पसंदीदा ट्रेडिंग रणनीति है। (ET Hindi)
कतर में उर्वरक संयंत्र लगाने पर भारत कर रहा है विचार
नई दिल्ली November 27, 2008
कतर के साथ संयुक्त उद्यम के तहत भारत खाड़ी देश से निर्धारित कीमत पर यूरिया मंगाने के लिए बाईबैक व्यवस्था के आधार पर जल्दी ही वहां 16 लाख टन क्षमता वाला उर्वरक संयंत्र लगा सकता है।
आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि उर्वरक सचिव अतुल चतुर्वेदी और इफको के प्रबंध निदेशक यूएस अवस्थी प्रस्तावित संयंत्र के बारे में बातचीत के लिए इस समय कतर में हैं। यह ओमान में स्थापित किए गए संयंत्र जैसा ही होने की उम्मीद है। कतर प्रस्तावित उर्वरक इकाई के लिए भारत की शर्तों के मुताबिक कीमत पर गैस देने को सहमत हो गया है। उर्वरक मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, 'अगर जरूरत पड़ी तो सरकार प्रस्तावित यूरिया संयंत्र में निवेश करने से पीछे नहीं हटेगी।परियोजना के लिए आवश्यक गैस वाजिब कीमत पर उपलब्ध कराने के लिए कतर ने आश्वासन दिया है।' भारत कतर से न्यूनतम 25 लाख टन अतिरिक्त एलएनजी और उर्वरक खरीदने का इच्छुक है।इस महीने खाड़ी देश की यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कतर से उर्वरक की आपूर्ति पर विचार-किया था। उवर्रक आपूर्ति या तो भारत स्थित उर्वरक संयंत्रों में निवेश के जरिए या फिर बाईबैक व्यवस्था के तहत कतर संयंत्र के विस्तार से की जा सकती है।अधिकारी ने बताया कि भारत और कतर, ओमान इंडिया फर्टिलाइजर कंपनी की तर्ज पर 50-50 फीसदी इक्विटी के साथ संयुक्त उद्यम लगाने पर विचार कर रहे हैं। (BS Hindi)
कतर के साथ संयुक्त उद्यम के तहत भारत खाड़ी देश से निर्धारित कीमत पर यूरिया मंगाने के लिए बाईबैक व्यवस्था के आधार पर जल्दी ही वहां 16 लाख टन क्षमता वाला उर्वरक संयंत्र लगा सकता है।
आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि उर्वरक सचिव अतुल चतुर्वेदी और इफको के प्रबंध निदेशक यूएस अवस्थी प्रस्तावित संयंत्र के बारे में बातचीत के लिए इस समय कतर में हैं। यह ओमान में स्थापित किए गए संयंत्र जैसा ही होने की उम्मीद है। कतर प्रस्तावित उर्वरक इकाई के लिए भारत की शर्तों के मुताबिक कीमत पर गैस देने को सहमत हो गया है। उर्वरक मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, 'अगर जरूरत पड़ी तो सरकार प्रस्तावित यूरिया संयंत्र में निवेश करने से पीछे नहीं हटेगी।परियोजना के लिए आवश्यक गैस वाजिब कीमत पर उपलब्ध कराने के लिए कतर ने आश्वासन दिया है।' भारत कतर से न्यूनतम 25 लाख टन अतिरिक्त एलएनजी और उर्वरक खरीदने का इच्छुक है।इस महीने खाड़ी देश की यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कतर से उर्वरक की आपूर्ति पर विचार-किया था। उवर्रक आपूर्ति या तो भारत स्थित उर्वरक संयंत्रों में निवेश के जरिए या फिर बाईबैक व्यवस्था के तहत कतर संयंत्र के विस्तार से की जा सकती है।अधिकारी ने बताया कि भारत और कतर, ओमान इंडिया फर्टिलाइजर कंपनी की तर्ज पर 50-50 फीसदी इक्विटी के साथ संयुक्त उद्यम लगाने पर विचार कर रहे हैं। (BS Hindi)
चीन से आयातित लहसुन को जलाने का निर्देश
नई दिल्ली November 28, 2008
भारत में चीन से आयातित लहसुन को लोगों और खेती के लिए खतरनाक बताते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने गुरुवार को इसकी खेप नष्ट करने का आदेश दिया है।
न्यायालय ने साफ कहा कि यदि इस लहसुन को नष्ट न किया गया तो लोगों और खेती को काफी नुकसान पहुंचेगा। कस्टम अधिकारियों का निर्देश दिया गया है कि वे गोदामों से माल उठाकर जला दें। जबकि इसका नुकसान आयातक फर्म एक्जिम रजती इंडिया लिमिटेड को उठाना पड़ेगा। इससे पहले बंबई उच्च न्यायालय का आदेश था कि बाजार में उतारने से पहले सभी 56 टन लहसुन को धुएं का इस्तेमाल कर दोषमुक्त किया जाए। लेकिन उच्च न्यायालय के इस निर्णय को प्रशासन ने सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी। अधिकारियों का तर्क था कि इस प्रक्रिया के चलते आयातित लहसुन में मौजूद फंगस के पूरे देश में फैलने का खतरा है, जो अब तक यहां नदारद हैं। यदि ये फंगस देश में फैल गए तो भविष्य में यहां की खेती को तगड़ा नुकसान पहुंचेगा। अधिकारियों के मुताबिक, इस लहसुन में ऐसे खतरनाक फंगस हैं, जो इसे जल्द ही कूड़े में बदल देते हैं। यदि सतर्कता न बरती गई तो इसके भारत समेत अन्य देशों में भी फैलने का खतरा है। यदि ऐसा हो गया तो कृषि विशेषज्ञों के लिए इस विपदा पर नियंत्रण कर पाना काफी मुश्किल होगा। लहसुन को चीन से भारत भेजते समय माना गया था कि मिथाइल ब्रोमाइड के जरिए इसे दोषमुक्त कर लिया जाएगा। लेकिन जानकारों की राय में इस तरीके से केवल कीड़े-मकोड़ों को ही नष्ट किया जा सकता है। फंगस को खत्म करना इसके जरिए संभव नहीं है। इसे खत्म करने के लिए तो फंगसनाशी का इस्तेमाल करना पड़ता है। (BS Hindi)
भारत में चीन से आयातित लहसुन को लोगों और खेती के लिए खतरनाक बताते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने गुरुवार को इसकी खेप नष्ट करने का आदेश दिया है।
न्यायालय ने साफ कहा कि यदि इस लहसुन को नष्ट न किया गया तो लोगों और खेती को काफी नुकसान पहुंचेगा। कस्टम अधिकारियों का निर्देश दिया गया है कि वे गोदामों से माल उठाकर जला दें। जबकि इसका नुकसान आयातक फर्म एक्जिम रजती इंडिया लिमिटेड को उठाना पड़ेगा। इससे पहले बंबई उच्च न्यायालय का आदेश था कि बाजार में उतारने से पहले सभी 56 टन लहसुन को धुएं का इस्तेमाल कर दोषमुक्त किया जाए। लेकिन उच्च न्यायालय के इस निर्णय को प्रशासन ने सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी। अधिकारियों का तर्क था कि इस प्रक्रिया के चलते आयातित लहसुन में मौजूद फंगस के पूरे देश में फैलने का खतरा है, जो अब तक यहां नदारद हैं। यदि ये फंगस देश में फैल गए तो भविष्य में यहां की खेती को तगड़ा नुकसान पहुंचेगा। अधिकारियों के मुताबिक, इस लहसुन में ऐसे खतरनाक फंगस हैं, जो इसे जल्द ही कूड़े में बदल देते हैं। यदि सतर्कता न बरती गई तो इसके भारत समेत अन्य देशों में भी फैलने का खतरा है। यदि ऐसा हो गया तो कृषि विशेषज्ञों के लिए इस विपदा पर नियंत्रण कर पाना काफी मुश्किल होगा। लहसुन को चीन से भारत भेजते समय माना गया था कि मिथाइल ब्रोमाइड के जरिए इसे दोषमुक्त कर लिया जाएगा। लेकिन जानकारों की राय में इस तरीके से केवल कीड़े-मकोड़ों को ही नष्ट किया जा सकता है। फंगस को खत्म करना इसके जरिए संभव नहीं है। इसे खत्म करने के लिए तो फंगसनाशी का इस्तेमाल करना पड़ता है। (BS Hindi)
बंद रहे कमोडिटी बाजार आज फिर होगा कारोबार
नई दिल्ली November 28, 2008
मुंबई में हुए आतंकी हमलों के कारण वायदा बाजार से जुड़े प्रमुख एक्सचेंजों मसलन मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स), नैशनल कमोडिटी एंड डेरिवेटिव एक्सचेंज (एनसीडीईएक्स) और नैशनल मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एनएमसीई) में गुरुवार को कोई कारोबार नहीं हुआ।
सतर्कता बरतने के सरकारी फरमान के चलते ये तीनों एक्सचेंज बंद रहे। जिंस विश्लेषकों के मुताबिक, बंदी के चलते पूरी उम्मीद है कि शुक्रवार को बाजार में गिरावट होगी। कुछ जानकारों का तो मानना है कि मुंबई एक दिन के बाद ही पटरी पर लौट आती है लिहाजा किसी प्रकार की गिरावट नहीं आने वाली। उनका यह भी कहना है कि सरकार को बाजार बंद करने का फैसला नहीं लेना चाहिए, इससे आतंकियों के हौसले और बुलंद होते हैं। दूसरी ओर, दिल्ली के हाजिर बाजार में गुरुवार को जिंसों में थोड़ी गिरावट हुई। वैसे सोने का हाजिर कारोबार बुधवार की दर पर ही हुआ।उल्लेखनीय है कि एमसीएक्स में रोजाना 18-19 हजार करोड़ रुपये का कारोबार होता है तो एनसीडीईएक्स में करीब 2.5-3 हजार करोड़ रुपये का। एनसीडीईएक्स के उत्तरी और पूर्वी क्षेत्र प्रमुख आर रघुनाथन कहते हैं कि एक्सचेंज बंद होने से निश्चित रूप से नुकसान हुआ है। एक तो कारोबार ठप होने से करोड़ों रुपये रोजाना का कारोबार बंद रहा। दूसरा, शुक्रवार को एक्सचेंज खुलने पर बाजार का रुख नकारात्मक रहेगा। इससे जिंसों में गिरावट आ सकती है। मंदी के चलते पहले ही टूटा पड़ा जिंस बाजार इससे और टूटेगा और बाजार को संभलने में दो-तीन दिन लग जाएंगे। एमसीएक्स के उपाध्यक्ष संजीत प्रसाद इस मामले में अलग राय रखते हैं। उन्होंने मुंबई से बताया कि इस हमले का और इस बंदी का बाजार पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। प्रसाद के मुताबिक, मुंबई में ट्रेन ब्लास्ट के बाद शुक्रवार को बाजार तेजी के साथ खुला था।बहरहाल, गुरुवार को दिल्ली के सर्राफा बाजार में कोई बदलाव नहीं देखा गया, जबकि किराना बाजार में बिकवाली का अभाव दिखा। कारोबार बुधवार के 13,100 रुपये प्रति दस ग्राम की दर पर ही किया गया। मालूम हो कि पिछले एक सप्ताह से सोने में रोजाना 50-150 रुपये प्रति दस ग्राम की बढ़ोतरी हो रही थी। दिल्ली किराना कमेटी के अध्यक्ष प्रेम कुमार अरोड़ा ने बताया कि आतंकी हमले का असर कम से कम चार-पांच दिनों तक रहेगा। उन्होंने बताया कि किराना बाजार पहले से ही मंदी की चपेट में है और इस वारदात के बाद थोड़ी-बहुत और गिरावट हो सकती है। (BS Hindi)
मुंबई में हुए आतंकी हमलों के कारण वायदा बाजार से जुड़े प्रमुख एक्सचेंजों मसलन मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स), नैशनल कमोडिटी एंड डेरिवेटिव एक्सचेंज (एनसीडीईएक्स) और नैशनल मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एनएमसीई) में गुरुवार को कोई कारोबार नहीं हुआ।
सतर्कता बरतने के सरकारी फरमान के चलते ये तीनों एक्सचेंज बंद रहे। जिंस विश्लेषकों के मुताबिक, बंदी के चलते पूरी उम्मीद है कि शुक्रवार को बाजार में गिरावट होगी। कुछ जानकारों का तो मानना है कि मुंबई एक दिन के बाद ही पटरी पर लौट आती है लिहाजा किसी प्रकार की गिरावट नहीं आने वाली। उनका यह भी कहना है कि सरकार को बाजार बंद करने का फैसला नहीं लेना चाहिए, इससे आतंकियों के हौसले और बुलंद होते हैं। दूसरी ओर, दिल्ली के हाजिर बाजार में गुरुवार को जिंसों में थोड़ी गिरावट हुई। वैसे सोने का हाजिर कारोबार बुधवार की दर पर ही हुआ।उल्लेखनीय है कि एमसीएक्स में रोजाना 18-19 हजार करोड़ रुपये का कारोबार होता है तो एनसीडीईएक्स में करीब 2.5-3 हजार करोड़ रुपये का। एनसीडीईएक्स के उत्तरी और पूर्वी क्षेत्र प्रमुख आर रघुनाथन कहते हैं कि एक्सचेंज बंद होने से निश्चित रूप से नुकसान हुआ है। एक तो कारोबार ठप होने से करोड़ों रुपये रोजाना का कारोबार बंद रहा। दूसरा, शुक्रवार को एक्सचेंज खुलने पर बाजार का रुख नकारात्मक रहेगा। इससे जिंसों में गिरावट आ सकती है। मंदी के चलते पहले ही टूटा पड़ा जिंस बाजार इससे और टूटेगा और बाजार को संभलने में दो-तीन दिन लग जाएंगे। एमसीएक्स के उपाध्यक्ष संजीत प्रसाद इस मामले में अलग राय रखते हैं। उन्होंने मुंबई से बताया कि इस हमले का और इस बंदी का बाजार पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। प्रसाद के मुताबिक, मुंबई में ट्रेन ब्लास्ट के बाद शुक्रवार को बाजार तेजी के साथ खुला था।बहरहाल, गुरुवार को दिल्ली के सर्राफा बाजार में कोई बदलाव नहीं देखा गया, जबकि किराना बाजार में बिकवाली का अभाव दिखा। कारोबार बुधवार के 13,100 रुपये प्रति दस ग्राम की दर पर ही किया गया। मालूम हो कि पिछले एक सप्ताह से सोने में रोजाना 50-150 रुपये प्रति दस ग्राम की बढ़ोतरी हो रही थी। दिल्ली किराना कमेटी के अध्यक्ष प्रेम कुमार अरोड़ा ने बताया कि आतंकी हमले का असर कम से कम चार-पांच दिनों तक रहेगा। उन्होंने बताया कि किराना बाजार पहले से ही मंदी की चपेट में है और इस वारदात के बाद थोड़ी-बहुत और गिरावट हो सकती है। (BS Hindi)
27 नवंबर 2008
देश में अनाज उत्पादन हो सकता है अनुमान से ज्यादा
इस साल खरीफ सीजन में खाद्यान्नों और तिलहन का उत्पादन अनुमान से ज्यादा हो सकता है। कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) द्वारा आयोजित एक सेमिनार में कृषि सचिव टी. नंद कुमार ने यह जानकारी दी। उन्होने कहा कि रबी सीजन के लिए फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करने के लिए सरकार ने चुनाव आयोग से अनुमति मांगी है। नंद कुमार ने कहा कि खरीफ 2008-09 सीजन के लिए खाद्यान्न उत्पादन का अनुमान बढ़ाकर 11.8-11.9 करोड़ टन किया जा सकता है। कृषि मंत्रालय ने इस साल सितंबर में खरीफ सीजन के लिए उत्पादन के पहले अनुमान जारी किये थे। जिसमें 11.53 करोड़ टन खाद्यान्न उत्पादन का अनुमान किया गया था। यह बढ़ोतरी मुख्य रुप से चावल ,बाजरा और ज्वार के उत्पादन बढ़ने के चलते हुई है। उन्होने कहा कि इस साल धान के बुआई क्षेत्रफल में बढ़त की वजह से चावल का उत्पादन अनुमान बढ़ाकर 850 लाख टन किया जा सकता है। इसके अलावा बाजरा और ज्वार के उत्पादन अनुमान में भी बढ़ोतरी की संभावना है। पहले बाजरा का उत्पादन 91.7 लाख टन और ज्वार का उत्पादन 30.9 लाख टन होने का अनुमान था। उन्होने कहा कि हमारा अनुमान है कि इस साल खरीफ उत्पादन रिकार्ड 12.09 करोड़ टन को पार कर जायेगा। साथ ही पिछले साल के मुकाबले इस साल गेहूं और तिलहन के बुआई क्षेत्रफल में बढ़ोतरी हुई है। जिसके आधार पर कहा जा सकता है कि इस साल इनके रिकार्ड उत्पादन होने के आसार है। कृषि मंत्रालय ने सितंबर में जारी पहले उत्पादन अनुमान के अनुसार इस साल 785 लाख टन गेहूं उत्पादन का लक्ष्य तय किया है। इस साल 20 नवंबर तक रबी सीजन में तिलहन का बुआई क्षेत्रफल 59 लाख हैक्टेयर से बढ़कर 73 लाख हैक्टेयर हो गई है। नंद कुमार ने यह भी कहा कि कुछ राज्यों में हो रहे विधान सभा चुनावों को देखते हुए रबी सीजन के न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा करने से पहले सरकार ने चुनाव आयोग से अनुमति मांगी है। उसके बाद ही उसकी घोषणा की जायेगी। गौरतलब है कि पिछले साल के दौरान देश के कई उत्पादक इलाकों में बेहतर मौसम रहने की वजह से गेहूं का उत्पादन बढ़ा है। यही स्थिति इस साल धान के उत्पादन में भी देखी गई है। हालांकि उत्पादन बढ़ाने में सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य भी एक बड़ा कारण साबित हुआ है। पिछले साल सरकार ने गेहूं के समर्थन मूल्य को बढ़ाकर एक हजार रुपये `िटल कर दिया था। इस साल भी एमएसपी में इजाफा होने की संभावना जताई जा रही है। ऐसे में ज्यादा एमएसपी की आस में इस साल भी गेहूं का रकबा बढ़ सकता है। सरकार द्वारा धान के एमएसपी में इजाफा और चालू साल के दौरान बाजारों में बेहतर भाव मिलने की वजह से भी इस साल धान का रकबा बढ़ा है। जिसका असर उत्पादन पर पड़ना तय है। कमोबेश यही हालत तिलहनों में भी देखी गई है। इस साल तीन हजार रुपये `िंटल के उच्च स्तर पर चले जाने की वजह से किसानों को सोयाबीन के बेहतर भाव मिलें हैं। (Business Bhaskar)
प्रतिबंधित कमोडिटी के वायदा कारोबार पर फैसला हफ्ते भर में
केंद्र सरकार इस सप्ताह के दौरान चार जिंसों के वायदा कारोबार के प्रतिबंध पर फैसला कर सकती है। इस महीने के अंत में प्रतिबंध की मियाद पूरी हो रही है। आर्थिक संपादकों के सम्मेलन को संबोधित करते हुए कृषि मंत्री शरद पवार ने कहा कि पेट्रोलियम और उवर्रक सब्सिडी में बढ़ोतरी के बाद इस वित्त वर्ष के लिए खाद्य सब्सिडी बिल भी अनुमान से ज्यादा हो सकता है। इसे बढ़कर 60,000 करोड़ रुपये होने का अनुमान है। जबकि कि मौजूदा वित्त वर्ष के बजट में इसके 34,600 करोड़ रुपये होने का अनुमान किया गया था। कई फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी और सार्वजनिक वितरण प्रणाली के जरिए खाद्य तेलों के वितरण को देखते हुए इस साल सब्सिडी बिल में बढ़ोतरी होने के अनुमान है। चार जिंसों के वायदा कारोबार पर लगी रोक के बारे में उन्होंने बताया कि इस हफ्ते में इसके बारे में कोई फैसला ले लिया जायेगा। सोया तेल, चना, रबर और आलू के वायदा कारोबार पर लगी रोक 30 नवंबर को समाप्त हो रही है। सरकार के अनुसार, इस साल चीनी उत्पादन 220 लाख टन रहने के अनुमान है। एक अक्टूबर को बकाया स्टॉक 110 लाख टन था। इस साल चीनी उत्पादन में कमी होने के बावजूद उन्होंने कहा कि देश में चीनी की कोई कमी नही होगी। चीनी वर्ष (सितंबर-अक्टूबर) 2008-09 के अंत में अंतिम स्टॉक 75 लाख टन होने का अनुमान है जबकि इस साल चीनी का निर्यात 8-20 लाख टन के बीच हो सकता है। उन्होंने बासमती चावल पर लगे निर्यात शुल्क को हटाने की किसी भी संभावना से इंकार किया। पवार ने कहा कि सरकार अगले पांच महीनों में चावल के दामों में बढ़ोतरी नही होने देना चाहती, इसलिए निर्यात शुल्क हटाने का कोई विचार नही है। अभी बासमती पर 8000 रुपये प्रति टन का निर्यात शुल्क है। पवार ने कहा कि दालों के सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के जरिए वितरण के लिए सरकार पूरी तरह से तैयार है। कुछ राज्यों में हो रहे विधान सभा चुनावों के बाद इसको शुरु किया जा सकता है। पॉम तेल पर आयात शुल्क लगाने से संबंधित सवाल के जवाब में पवार ने कहा कि यदि तिलहन के दाम न्यूनतम समर्थन मूल्य के नीचे जाते है, तभी केन्द्र सरकार पाम तेल पर शुल्क लगाने पर विचार करेगी। ज्ञात हो कि घरलू बाजारों में पिछले दो महीनों के दौरान सोयाबीन और मूंगफली की कीमतों में काफी गिरावट आ चुकी है। वहीं इस साल सरसों का रकबा भी बढ़ने रहा है। उन्होंने कहा कि अभी हमारे पास गेहूं का पर्याप्त स्टॉक है। उसे देखते हुए हम पड़ोसी राज्यों से गेहूं की मांग आने पर उन्हें उपलब्ध करा सकते है। हाल ही में अफगानिस्तान से इस तरह की मांग आई है। (Bubsiness Bhaskar)
अरहर के हल्के स्टॉक पर भारी पड़ी नई फसल की आवक
नई आवक और स्टॉक सीमा का दबाव अरहर के हल्के स्टॉक पर भारी पड़ रहा है। हाजिर बाजार में अरहर का स्टॉक हल्का है लेकिन भाव लगातार गिरते जा रहे हैं। पिछले दो महीने में इसके भावों में 250 से 300 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट आई जिससे जलगांव मंडी में इसके भाव 3050 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। गुजरात के बाद कर्नाटक व आंध्रप्रदेश की मंडियों में नई अरहर की आवक शुरू हो गई है। लेकिन कई राज्यों में दालों पर स्टॉक लिमिट लगी होने के कारण मिलों के साथ-साथ स्टॉकिस्टों की मांग कमजोर रहने की उम्मीद है। इसलिए आवक का दबाव बनने के बाद अरहर के मौजूदा भावों में और 300 से 400 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट आ सकती है। जलगांव मंडी के दाल व्यापारी संतोष उपाध्याय ने बिजनेस भास्कर को बताया कि आयातित अरहर में भी ग्राहकी कमजोर चल रही है। अगस्त-सितंबर महीने में आयातकों ने बर्मा और तंजानिया से अरहर के सौदे 3200 रुपये प्रति क्विंटल मुंबई पहुंच में किए थे लेकिन उसके बाद घरेलू बाजारों में दालों के भावों में आई गिरावट के साथ ही रुपये के मुकाबले डॉलर में आई तेजी से आयातकों को भारी घाटा लग रहा है। इस समय बर्मा लेमन अरहर के भाव मुंबई में 2850 से 2900 रुपये और तंजानिया अरहर के भाव 2800 से 2850 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं लेकिन इन भावों में मांग नहीं है।अकोला मंडी के दाल व्यापारी विजेंद्र गोयल ने बताया कि कर्नाटक की रायचूर, यादगिरी और नारंगपेट में नई फसल की 2000 से 2500 बोरी की आवक हो रही है तथा भाव 2850 से 2900 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं। उधर, आंध्रप्रदेश की खम्मम और ताडूंर मंडियों में नई अरहर की 1500 से 2000 बोरी की आवक शुरू हो गई है जबकि भाव यहां भी 2850 से 2900 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं। उन्होंने बताया कि दिसंबर के प्रथम पखवाड़े में कर्नाटक व आंध्रप्रदेश में अरहर की आवकों का दबाव तो बनेगा ही, साथ महाराष्ट्र में भी नई फसल की आवक शुरू हो जाएगी। इन हालातों में आवकों का दबाव बनने पर अरहर के मंडियों में नीचे में 2500 से 2600 रुपये प्रति क्विंटल बन सकते हैं।अहमदाबाद के दाल व्यापारी राज कुमार ने बताया कि गुजरात की दमोह मंडी में लाल अरहर की 2000 बोरी की आवक हो रही है। नए मालों में नमी की मात्रा होने के कारण इसके भाव यहां 2425 से 2500 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं। उम्मीद है कि यहां भी दिसंबर के प्रथम सप्ताह में आवक का दबाव बन जाएगा। दिल्ली के दाल व्यापारी दुर्गा प्रसाद ने बताया कि दिल्ली में पुरानी अरहर के भाव 2900 से 3000 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं जबकि नए मालों के भाव 2600 से 2650 रुपये प्रति क्विंटल बोले जा रहे हैं। हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में नए मालों में नमी की मात्रा ज्यादा है। (Business Bhaskar....R S Rana)
उत्तर प्रदेश में फिर उलटा कृषि समीकरण
लखनऊ November 25, 2008
अब से ठीक छह महीने पहले भंडारण शुल्क बढ़ाकर मुनाफा कमाने का इरादा पाले बैठे उत्तर प्रदेश के कोल्ड स्टोरेज मालिकों को आलू के चलते तगड़ी चपत लगी है।
औंधे मुंह गिरे बाजार के न सुधरने से उत्तर प्रदेश के कोल्ड स्टोरेजों में करीब दस लाख टन आलू फंसा रह गया है। किसानों के आलू निकालने से इंकार के बाद कोल्ड स्टोरेजों के मालिकों की शामत आ गयी है। एक अनुमान के मुताबिक कोल्ड स्टोरेज मालिकों को 250 करोड़ रुपए का नुकसान किसानों के आलू न निकालने से हुआ है। समय सीमा के बीत जाने पर भी आलू न निकालने से स्टोरेज मालिकों के कर्ज और भाड़े के करीब इतने रुपए डूबे हैं। उत्तर प्रदेश में इस समय 1300 से ज्यादा कोल्ड स्टोरेज हैं। इनमें से 300 कोल्ड स्टोरेज तो अपनी क्रेडिट लिमिट भी अदा नही कर पाएंगे। उत्तर प्देश कोल्ड स्टोरेज एसोसिएशन के अध्यक्ष महेंद्र स्वरूप ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि आलू के रेट कोल्ड स्टोरेजों के भरते ही गिरना शुरु हो गया था लिहाजा किसान सीजन की शुरुआत होते ही घाटे में आ गए। महेंद्र स्वरूप ने कहा कि आज हालात ऐसे हो गए हैं कि कोल्ड स्टोरों के मालिक किसानों को भाड़ा माफ कर आलू ले जाने देने को तैयार हैं। जबकि आलू के दाम थोक बाजार में इस कदर गिर चुके हैं कि किसान भाड़ा माफी के बावजूद आलू नही निकाल रहे हैं।किसानों का तर्क है कि बाजार की ऐसी हालत में कोल्ड स्टोर से आलू निकाल कर मंडी तक ले जाने का पैसा भी चुकता हो पाना मुश्किल है। गौरतलब है कि इस साल प्देश में 130 लाख टन आलू की पैदावार हुई है, जो कि अपने आप में एक रिकॉर्ड है।आलू की सीजन के शुरुआत में इसकी कीमत थोक बाजारों ंमें 400 रुपए प्ति क्विंटल थी, जो कि अब घटकर 200 रुपए रह गयी है। कोल्ड स्टोरेज मालिकों ने आलू किसानों से इस साल 110 से 125 रुपए के बीच का भाड़ा लगाया था। आलू निकालने पर किसानों को सभी खर्च मिलाकर माल 550 रुपये प्रति क्विंटल पड़ेगा। ऐसे में कोई घाटा उठाने को तैयार नही है। (BS Hindi)
अब से ठीक छह महीने पहले भंडारण शुल्क बढ़ाकर मुनाफा कमाने का इरादा पाले बैठे उत्तर प्रदेश के कोल्ड स्टोरेज मालिकों को आलू के चलते तगड़ी चपत लगी है।
औंधे मुंह गिरे बाजार के न सुधरने से उत्तर प्रदेश के कोल्ड स्टोरेजों में करीब दस लाख टन आलू फंसा रह गया है। किसानों के आलू निकालने से इंकार के बाद कोल्ड स्टोरेजों के मालिकों की शामत आ गयी है। एक अनुमान के मुताबिक कोल्ड स्टोरेज मालिकों को 250 करोड़ रुपए का नुकसान किसानों के आलू न निकालने से हुआ है। समय सीमा के बीत जाने पर भी आलू न निकालने से स्टोरेज मालिकों के कर्ज और भाड़े के करीब इतने रुपए डूबे हैं। उत्तर प्रदेश में इस समय 1300 से ज्यादा कोल्ड स्टोरेज हैं। इनमें से 300 कोल्ड स्टोरेज तो अपनी क्रेडिट लिमिट भी अदा नही कर पाएंगे। उत्तर प्देश कोल्ड स्टोरेज एसोसिएशन के अध्यक्ष महेंद्र स्वरूप ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि आलू के रेट कोल्ड स्टोरेजों के भरते ही गिरना शुरु हो गया था लिहाजा किसान सीजन की शुरुआत होते ही घाटे में आ गए। महेंद्र स्वरूप ने कहा कि आज हालात ऐसे हो गए हैं कि कोल्ड स्टोरों के मालिक किसानों को भाड़ा माफ कर आलू ले जाने देने को तैयार हैं। जबकि आलू के दाम थोक बाजार में इस कदर गिर चुके हैं कि किसान भाड़ा माफी के बावजूद आलू नही निकाल रहे हैं।किसानों का तर्क है कि बाजार की ऐसी हालत में कोल्ड स्टोर से आलू निकाल कर मंडी तक ले जाने का पैसा भी चुकता हो पाना मुश्किल है। गौरतलब है कि इस साल प्देश में 130 लाख टन आलू की पैदावार हुई है, जो कि अपने आप में एक रिकॉर्ड है।आलू की सीजन के शुरुआत में इसकी कीमत थोक बाजारों ंमें 400 रुपए प्ति क्विंटल थी, जो कि अब घटकर 200 रुपए रह गयी है। कोल्ड स्टोरेज मालिकों ने आलू किसानों से इस साल 110 से 125 रुपए के बीच का भाड़ा लगाया था। आलू निकालने पर किसानों को सभी खर्च मिलाकर माल 550 रुपये प्रति क्विंटल पड़ेगा। ऐसे में कोई घाटा उठाने को तैयार नही है। (BS Hindi)
आंदोलन का हथियार बना गन्ना
नई दिल्ली November 25, 2008
उत्तर प्रदेश में राज्य समर्थित गन्ने की कीमत के विरूद्ध चीनी मिलों की ओर से दायर याचिका भले ही अदालत में लंबित हो, लेकिन राज्य भर में गन्ना किसानों के विरोध का स्वर सुनाई देने लगा है।
यही नहीं, यह विरोध अब उग्र रूप लेने लगा है। मुजफ्फनगर के खतौली में स्थानीय गन्ना खरीद समिति के समक्ष सोमवार को किसानों के धरना-प्रदर्शन के दौरान एक गन्ना किसान की मौत हो गई। इससे पहले, शनिवार को करीब 200 किसानों ने दिल्ली के अंसल प्लाजा में इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन के मुख्यालय के सामने भी प्रदर्शन किया था।गन्ना कीमत पर उपजे विवाद के कारण इस साल पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ज्यादातर किसानों ने कम कीमत पर गुड़ उत्पादकों को ही अपनी फसल बेचने का निर्णय किया। ऐसा इसलिए भी किया गया, क्योंकि चीनी मिलें गन्ना खरीद से इनकार कर रही थीं, वहीं किसान गेहूं की फसल के लिए अपना खेत खाली करना चाहते थे।उद्योग जगत के सूत्रों का कहना है कि राज्य में मौजूद 92 निजी चीनी मिलों में से एक-चौथाई में भी अब तक गन्ने की पेराई शुरू नहीं हो पाई है। जबकि किसानों के विरोध के कारण राज्य में कानून-व्यवस्था बिगड़ने का खतरा बढ़ गया है। उनके मुताबिक, अब चीनी मिलों को गन्ने की पेराई शुरू कर देनी चाहिए।इस बीच, चीनी मिलें किसानों को गन्ने की आपूर्ति के बदले एक पर्ची दे रही हैं, जिसमें कहा गया है कि कोर्ट में गन्ने की जो कीमत तय की जाएगी, उसी का भुगतान किया जाएगा। हालांकि राज्य के गन्ना आयुक्त ने सभी जिलों के जिलाधिकारियों से कहा है कि ऐसी पर्ची देने वाली मिलों के खिलाफ सख्ती से पेश आएं। उल्लेखनीय है कि 18 अक्टूबर को राज्य सरकार ने गन्ने की कीमत 140 रुपये प्रति क्विंटल तय की थी, जिसका चीनी मिल वाले विरोध कर रहे हैं। पिछले साल अदालत की ओर से गन्ने की कीमत 110 रुपये प्रति क्विंटल तय की गई थी। (BS Hindi)
उत्तर प्रदेश में राज्य समर्थित गन्ने की कीमत के विरूद्ध चीनी मिलों की ओर से दायर याचिका भले ही अदालत में लंबित हो, लेकिन राज्य भर में गन्ना किसानों के विरोध का स्वर सुनाई देने लगा है।
यही नहीं, यह विरोध अब उग्र रूप लेने लगा है। मुजफ्फनगर के खतौली में स्थानीय गन्ना खरीद समिति के समक्ष सोमवार को किसानों के धरना-प्रदर्शन के दौरान एक गन्ना किसान की मौत हो गई। इससे पहले, शनिवार को करीब 200 किसानों ने दिल्ली के अंसल प्लाजा में इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन के मुख्यालय के सामने भी प्रदर्शन किया था।गन्ना कीमत पर उपजे विवाद के कारण इस साल पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ज्यादातर किसानों ने कम कीमत पर गुड़ उत्पादकों को ही अपनी फसल बेचने का निर्णय किया। ऐसा इसलिए भी किया गया, क्योंकि चीनी मिलें गन्ना खरीद से इनकार कर रही थीं, वहीं किसान गेहूं की फसल के लिए अपना खेत खाली करना चाहते थे।उद्योग जगत के सूत्रों का कहना है कि राज्य में मौजूद 92 निजी चीनी मिलों में से एक-चौथाई में भी अब तक गन्ने की पेराई शुरू नहीं हो पाई है। जबकि किसानों के विरोध के कारण राज्य में कानून-व्यवस्था बिगड़ने का खतरा बढ़ गया है। उनके मुताबिक, अब चीनी मिलों को गन्ने की पेराई शुरू कर देनी चाहिए।इस बीच, चीनी मिलें किसानों को गन्ने की आपूर्ति के बदले एक पर्ची दे रही हैं, जिसमें कहा गया है कि कोर्ट में गन्ने की जो कीमत तय की जाएगी, उसी का भुगतान किया जाएगा। हालांकि राज्य के गन्ना आयुक्त ने सभी जिलों के जिलाधिकारियों से कहा है कि ऐसी पर्ची देने वाली मिलों के खिलाफ सख्ती से पेश आएं। उल्लेखनीय है कि 18 अक्टूबर को राज्य सरकार ने गन्ने की कीमत 140 रुपये प्रति क्विंटल तय की थी, जिसका चीनी मिल वाले विरोध कर रहे हैं। पिछले साल अदालत की ओर से गन्ने की कीमत 110 रुपये प्रति क्विंटल तय की गई थी। (BS Hindi)
मजबूत होने लगी खाद्य तेल की धार
नई दिल्ली November 26, 2008
खाद्य तेल का बाजार सुधरने लगा है। कारोबारियों का डगमगाया विश्वास फिर से लौट रहा है। पिछले एक सप्ताह के दौरान खाद्य तेल की कीमत में 3-4 रुपये प्रति किलोग्राम की बढ़ोतरी दर्ज की गयी है।
दस दिन पहले तक वनस्पति तेल के दाम लगातार गिर रहे थे। तेल बाजार में आयी इस फुर्ती से थोक कारोबरियों के साथ आयातकों में भी उत्साह आ गया है। वे फिर से वनस्पति तेल के आयात का आर्डर देने लगे है। एक सप्ताह पहले सरकार ने कच्चे सोया तेल के आयात पर 20 फीसदी का शुल्क लगा दिया था। बाजार सूत्रों के मुताबिक इस कारण रिफाइन सोयाबीन तेल के आयात में तेजी आ गयी है। खाद्य तेल बाजार के थोक कारोबारियों के मुताबिक वनस्पति तेल में खासकर कच्चे पाम तेल (सीपीओ) की कीमत में लगभग 20 सप्ताह के बाद सुधार दर्ज की गयी है। गत अप्रैल-मई के दौरान 62 रुपये प्रति किलोग्राम तक की कीमत छूने वाला सीपीओ 8 दिन पहले तक 22-23 (कांडला पोर्ट पर) रुपये प्रति किलोग्राम के स्तर पर था। 65 रुपये प्रति किलोग्राम की ऊंचाई छूने वाला सोयाबीन तेल थोक बाजार में 360-375 रुपये प्रति किलोग्राम तक नीचे चला गया। कारोबारी कहते हैं, 'वनस्पति में आयी इस जबरदस्त गिरावट के कारण 100 से अधिक तेल आयातक डिफॉल्टर साबित हो गए तो उनके आपस के संबंध भी बिगड़ने लगे थे।' लेकिन पिछले चार-पांच दिनों में हुई तेजी के बरकरार रहने से फिर से बाजार में उम्मीद जगी है। दिल्ली खाद्य तेल कारोबार संघ के पदाधिकारी लक्ष्मीचंद अग्रवाल कहत हैं, 'कारोबार में 20 फीसदी तक की तेजी जरूर आयी है। वैसे भी ठंड के मौसम में वनस्पति तेल की मांग 5-10 फीसदी तक बढ़ जाती है।' आयातक हरीश कहते हैं, 'धंधे में फर्क आना शुरू हो गया है। तेल की कीमत निचले स्तर पर पहुंच गयी थी इसलिए अब सुधार होना लाजिमी था।' उन्होंने यह भी बताया कि पिछले दो महीनों से आयात बंद करने वाले आयातक अब नया ऑर्डर भी देने लगे हैं। रिफाइन सोयाबीन तेल के आयात पर मात्र 7.5 फीसदी का शुल्क है। कारोबारियों के मुताबिक सीपीओ पर आयात शुल्क लगने की चर्चा का बाजार पर जरूर फर्क पड़ा है। हालांकि कच्चे सोया तेल पर आयात शुल्क लगाने से सोयाबीन के किसानों को जरूर राहत मिली है। इसकी कीमत में प्रति क्विंटल 100 रुपये की तेजी (1600 रुपये प्रति क्विंटल) आ गयी है।चढ़ रहा वनस्पति तेल का भाववनस्पति तेल सप्ताह पहले का भाव वर्तमान भावकच्चा पाम तेल 230 260सोया तेल 375 445कॉटन तेल 360 405राइस तेल 250 290सरसों तेल 610 650(कीमत रुपये में प्रति 10 किलोग्राम) (BS Hindi)
खाद्य तेल का बाजार सुधरने लगा है। कारोबारियों का डगमगाया विश्वास फिर से लौट रहा है। पिछले एक सप्ताह के दौरान खाद्य तेल की कीमत में 3-4 रुपये प्रति किलोग्राम की बढ़ोतरी दर्ज की गयी है।
दस दिन पहले तक वनस्पति तेल के दाम लगातार गिर रहे थे। तेल बाजार में आयी इस फुर्ती से थोक कारोबरियों के साथ आयातकों में भी उत्साह आ गया है। वे फिर से वनस्पति तेल के आयात का आर्डर देने लगे है। एक सप्ताह पहले सरकार ने कच्चे सोया तेल के आयात पर 20 फीसदी का शुल्क लगा दिया था। बाजार सूत्रों के मुताबिक इस कारण रिफाइन सोयाबीन तेल के आयात में तेजी आ गयी है। खाद्य तेल बाजार के थोक कारोबारियों के मुताबिक वनस्पति तेल में खासकर कच्चे पाम तेल (सीपीओ) की कीमत में लगभग 20 सप्ताह के बाद सुधार दर्ज की गयी है। गत अप्रैल-मई के दौरान 62 रुपये प्रति किलोग्राम तक की कीमत छूने वाला सीपीओ 8 दिन पहले तक 22-23 (कांडला पोर्ट पर) रुपये प्रति किलोग्राम के स्तर पर था। 65 रुपये प्रति किलोग्राम की ऊंचाई छूने वाला सोयाबीन तेल थोक बाजार में 360-375 रुपये प्रति किलोग्राम तक नीचे चला गया। कारोबारी कहते हैं, 'वनस्पति में आयी इस जबरदस्त गिरावट के कारण 100 से अधिक तेल आयातक डिफॉल्टर साबित हो गए तो उनके आपस के संबंध भी बिगड़ने लगे थे।' लेकिन पिछले चार-पांच दिनों में हुई तेजी के बरकरार रहने से फिर से बाजार में उम्मीद जगी है। दिल्ली खाद्य तेल कारोबार संघ के पदाधिकारी लक्ष्मीचंद अग्रवाल कहत हैं, 'कारोबार में 20 फीसदी तक की तेजी जरूर आयी है। वैसे भी ठंड के मौसम में वनस्पति तेल की मांग 5-10 फीसदी तक बढ़ जाती है।' आयातक हरीश कहते हैं, 'धंधे में फर्क आना शुरू हो गया है। तेल की कीमत निचले स्तर पर पहुंच गयी थी इसलिए अब सुधार होना लाजिमी था।' उन्होंने यह भी बताया कि पिछले दो महीनों से आयात बंद करने वाले आयातक अब नया ऑर्डर भी देने लगे हैं। रिफाइन सोयाबीन तेल के आयात पर मात्र 7.5 फीसदी का शुल्क है। कारोबारियों के मुताबिक सीपीओ पर आयात शुल्क लगने की चर्चा का बाजार पर जरूर फर्क पड़ा है। हालांकि कच्चे सोया तेल पर आयात शुल्क लगाने से सोयाबीन के किसानों को जरूर राहत मिली है। इसकी कीमत में प्रति क्विंटल 100 रुपये की तेजी (1600 रुपये प्रति क्विंटल) आ गयी है।चढ़ रहा वनस्पति तेल का भाववनस्पति तेल सप्ताह पहले का भाव वर्तमान भावकच्चा पाम तेल 230 260सोया तेल 375 445कॉटन तेल 360 405राइस तेल 250 290सरसों तेल 610 650(कीमत रुपये में प्रति 10 किलोग्राम) (BS Hindi)
मांग के समर्थन से सोना फिर चमका
नई दिल्ली November 26, 2008
मंदी की आग में भी सोना लगातार दमकता जा रहा है। हाल यह है कि महज दस दिनों में ही सोने की कीमत में करीब 1,600 रुपये प्रति 10 ग्राम का उछाल आ चुका है।
10 दिन पहले 10 ग्राम का सोना जहां 11,500 रुपये में मिल रहा था, अब उसकी कीमत 13,100 रुपये को पार गई है। केवल सोना ही नहीं चांदी की चमक भी साथ-साथ बढ़ती जा रही है। कुछ दिन पहले 16,000 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से बिकने वाली चांदी 17,500 रुपये तक पहुंच गई है। भाव में आई इस तेजी का असर कारोबार पर दिख रहा है और अब कारोबार गिरने लगा है। सर्राफा कारोबारियों के मुताबिक, दीपावली के एक-दो दिन पहले से कारोबार में तेजी आनी शुरू हुई थी। इस तेजी से 10-12 नवंबर तक सर्राफा कारोबार में पिछले दो महीनों के मुकाबले करीब 40 फीसदी की वृद्धि हो चुकी थी। वैवाहिक मौसम के कारण भी कारोबार में मजबूती बनी रही। करीब 10 दिन पहले सोने की कीमत में एक बार फिर तेजी आनी शुरू हुई। अब तो यह 13,000 की सीमा को भी पार कर चुका है। एक दिलचस्प बात यह है कि इसके भाव में किसी भी दिन 300-400 रुपये की तेजी नहीं आई, बल्कि यह तेजी महज 100-150 रुपये रोजाना की रही है।कारोबारियों के मुताबिक, वायदा बाजार में 30 नवंबर को डिलीवरी की तारीख है। सोने के भाव में इसलिए भी तेजी हो रही है। वैसे कारोबारियों ने बताया कि शादी का सीजन खत्म होने से सोने की कीमतों में बहुत ज्यादा बढ़ोतरी के आसार नहीं हैं। कीमतों में हुई इस बढ़ोतरी का असर अब सोने के कारोबार पर दिखने लगा है। थोक कारोबारी पी झलानी कहते हैं कि दीपावली से लेकर 15 नवंबर तक के कारोबार में जो 40-45 फीसदी की तेजी आई थी, वह अब महज 30 फीसदी की रह गई है। कारोबारियों ने बताया कि 12,000 रुपये प्रति 10 ग्राम तक की कीमत निवेशकों के लिए मनोवैज्ञानिक सीमा का काम करती है। सोने का भाव इसके पार जाते ही मांग में कमी होने लगती है। हालांकि कारोबारियों का कहना है कि सोने की मांग बहुत ज्यादा नहीं गिरेगी क्योंकि बाजार की हालत फिलहाल अच्छी नहीं है।भारत में सोनातारीख कीमत19 नवंबर 1210020 नवंबर 1217021 नवंबर 1235022 नवंबर 1240023 नवंबर 1260024 नवंबर 1272025 नवंबर 1292026 नवंबर 13100(रुपये प्रति 10 ग्राम) (BS Hindi)
मंदी की आग में भी सोना लगातार दमकता जा रहा है। हाल यह है कि महज दस दिनों में ही सोने की कीमत में करीब 1,600 रुपये प्रति 10 ग्राम का उछाल आ चुका है।
10 दिन पहले 10 ग्राम का सोना जहां 11,500 रुपये में मिल रहा था, अब उसकी कीमत 13,100 रुपये को पार गई है। केवल सोना ही नहीं चांदी की चमक भी साथ-साथ बढ़ती जा रही है। कुछ दिन पहले 16,000 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से बिकने वाली चांदी 17,500 रुपये तक पहुंच गई है। भाव में आई इस तेजी का असर कारोबार पर दिख रहा है और अब कारोबार गिरने लगा है। सर्राफा कारोबारियों के मुताबिक, दीपावली के एक-दो दिन पहले से कारोबार में तेजी आनी शुरू हुई थी। इस तेजी से 10-12 नवंबर तक सर्राफा कारोबार में पिछले दो महीनों के मुकाबले करीब 40 फीसदी की वृद्धि हो चुकी थी। वैवाहिक मौसम के कारण भी कारोबार में मजबूती बनी रही। करीब 10 दिन पहले सोने की कीमत में एक बार फिर तेजी आनी शुरू हुई। अब तो यह 13,000 की सीमा को भी पार कर चुका है। एक दिलचस्प बात यह है कि इसके भाव में किसी भी दिन 300-400 रुपये की तेजी नहीं आई, बल्कि यह तेजी महज 100-150 रुपये रोजाना की रही है।कारोबारियों के मुताबिक, वायदा बाजार में 30 नवंबर को डिलीवरी की तारीख है। सोने के भाव में इसलिए भी तेजी हो रही है। वैसे कारोबारियों ने बताया कि शादी का सीजन खत्म होने से सोने की कीमतों में बहुत ज्यादा बढ़ोतरी के आसार नहीं हैं। कीमतों में हुई इस बढ़ोतरी का असर अब सोने के कारोबार पर दिखने लगा है। थोक कारोबारी पी झलानी कहते हैं कि दीपावली से लेकर 15 नवंबर तक के कारोबार में जो 40-45 फीसदी की तेजी आई थी, वह अब महज 30 फीसदी की रह गई है। कारोबारियों ने बताया कि 12,000 रुपये प्रति 10 ग्राम तक की कीमत निवेशकों के लिए मनोवैज्ञानिक सीमा का काम करती है। सोने का भाव इसके पार जाते ही मांग में कमी होने लगती है। हालांकि कारोबारियों का कहना है कि सोने की मांग बहुत ज्यादा नहीं गिरेगी क्योंकि बाजार की हालत फिलहाल अच्छी नहीं है।भारत में सोनातारीख कीमत19 नवंबर 1210020 नवंबर 1217021 नवंबर 1235022 नवंबर 1240023 नवंबर 1260024 नवंबर 1272025 नवंबर 1292026 नवंबर 13100(रुपये प्रति 10 ग्राम) (BS Hindi)
25 नवंबर 2008
दक्षिण में बारिश से कालीमिर्च महंगी
काली मिर्च के प्रमुख उत्पादक राज्यों केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु में बारिश होने से आने वाली नई फसल में देरी होने की आशंका बन गई है। इसी के परिणाम स्वरूप स्टॉकिस्टों द्वारा बिकवाली घटा देने से पिछले दो-तीन दिनों में इसके भावों में 500 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी आकर अनगार्बल्ड के भाव 11200 रुपये और एमजी वन के भाव 11800 रुपये प्रति क्विंटल हो गए।कोचीन स्थित केदारनाथ संस के अजय अग्रवाल ने बताया कि कालीमिर्च के उत्पादक क्षेत्रों में पिछले दो-तीन दिनों से वर्षा हो रही है जिसके कारण आने वाली नई फसल की आवक जो कि दिसंबर के आखिर में शुरू होनी थी अब 15 जनवरी के बाद ही शुरू हो पाएगी इसलिए स्टॉकिस्टों ने बिकवाली घटा दी है। इस समय कालीमिर्च का स्टॉक मात्र 7,000 से 8,000 टन का ही बचा हुआ है जबकि गत वर्ष की समान अवधि में इसका स्टॉक 16,000 से 17,000 हजार टन का बचा हुआ था। गत वर्ष देश में काली मिर्च का उत्पादन 50,000 टन का हुआ था लेकिन चालू वर्ष में जून-जुलाई महीने में केरल के उत्पादक क्षेत्रों में पर्याप्त वर्षा न होने से उत्पादन घटकर 45,000 हजार टन का ही होने की संभावना है।घरेलू बाजारों में भाव बढ़ने से निर्यातकों ने भी भाव बढ़ाकर बोलने शुरू कर दिए हैं। एमजी वन कालीमिर्च के भाव यूरोप के लिए 2500 डॉलर प्रति टन सी एंड एफ और अमेरिका के लिए 2600 डॉलर प्रति टन सी एंड एफ बोले जा रहे हैं। भारतीय मसाला बोर्ड द्वारा जारी ताजा आंकड़ों के मुताबिक चालू वित्त वर्ष के अप्रैल से अक्टूबर के दौरान तक देश से काली मिर्च के निर्यात में 35 फीसदी की गिरावट देखी गई है। इस दौरान करीब 14,750 टन का ही निर्यात हो सका है। पिछले साल के समान अवधि के दौरान भारत से करीब 22,800 टन काली मिर्च का हुआ था। (Business Bhaskar.........R S Rana)
ऊंचे एमएसपी के खिलाफ जिनर्स आज से हड़ताल पर
सरकार द्वारा किसानों से खरीद के लिए कपास का काफी ऊंचा न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) तय किए जाने के बाद खुले बाजार में भाव ऊंचे होने से परेशान जिनिंग मिलें हड़ताल पर जा रही हैं। गुजरात कॉटन जिनर्स एसोसिएशन के आह्वान पर गुजरात, महाराष्ट्र, पंजाब व हरियाणा समेत देश कई अन्य राज्यों की जिनिंग मिलें 25 व 26 नवंबर को हड़ताल करेंगी। हालांकि माना जा रहा है कि इस हड़ताल का असर मामूली ही होगा क्योंकि ज्यादातर मिलें ऊंचे भाव होने से पहले ही उत्पादन नहीं कर रही हैं या फिर कम उत्पादन कर रही हैं।दूसरी ओर कृषि मंत्री शरद पवार ने कपास के एमएसपी में कोई भी बदलाव करने से इंकार कर दिया है जबकि वाणिज्य सचिव जीके पिल्लई ने कहा है कि कपास के समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी असाधारण है इसलिए सरकार इस पर विचार कर सकती है। पंजाब फैक्ट्रीज एंड जिनर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष भगवानदास बंसल ने बताया कि सरकार ने कपास का समर्थन मूल्य 2800 रुपए प्रति क्विंटल घोषित किया है जो कि अंतरराष्ट्रीय भाव से भी काफी ऊंचा है। इसलिए वे इसका मुकाबला नहीं कर पा रहे हैं। उन्होंने मांग की कि सरकार को उन्हें 200 रुपए प्रति क्विंटल का बोनस दिया जाना चाहिए। कॉटन जिनिंग मिलों का कहना है कि कॉटन कारपोरेशन ऑफ इंडिया (सीसीआई) द्वारा एमएसपी पर खरीद करने के कारण उन्हें ऊंचे भावों पर कपास खरीदनी पड़ रही है।जबकि विश्व बाजार में भावों में आई गिरावट के कारण उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है। जिनिंग मिलों के मुताबिक चार महीने पहले विश्व बाजार में कॉटन के भाव 90 सेंट प्रति पौंड हो गए थे जबकि इस समय भाव घटकर 52 सेंट प्रति पौंड रह गए हैं। अत: भारत से कॉटन का निर्यात प्रभावित हो रहा है। भारतीय कॉटन के भाव विश्व बाजार में 55 सेंट प्रति पौंड पड़ रहा है। एमएसपी में बढ़ोतरी से घरेलू बाजार में इसके भाव इतने ऊंचे हो गए है कि विदेशी बाजार से घरेलू कॉटन मुकाबला नहीं कर पा रहा है। अबोहर के राकेश राठी ने बताया कि उत्तर भारत की मंडियों में कपास की आवक घटकर 14,500 गांठ (एक गांठ 170 किलो) रह गई तथा सीसीआई 2800 रुपये प्रति क्विंटल की दर से खरीद कर रही है। जबकि टैक्सटाइल मिलें जिनर्स से बिनौला अलग की हुई रुई 2185-2215 रुपये प्रति मन (एक मन 40 किलो) के भाव खरीद रही हैं। यह भाव जिनिंग मिलों के लिए फायदेमंद नहीं है। मुक्तसर कॉटन प्राइवेट लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर नवीन ग्रोवर ने बताया कि मंडियों में भाव तेज होने से मिलें कपास की खरीद नहीं कर रही है। (BS Hindi)
पूसा 1121 को बासमती के दर्जे पर पाक को आपत्ति
पंजाब हरियाणा, कनार्टक और आंध्र प्रदेश में बड़े पैमाने पर बोए जाने वाले पूसा1121 को बासमती का दर्जा दिए जाने से पड़ोसी देश पाकिस्तान की त्यौरियां चढ़ गई हैं। उसने बासमती की परिभाषा में संशोधन किए जाने का विरोध जताया है। संभावना है कि बासमती की परिभाषा के मसले पर भारत व पाकिस्तान में अगले फरवरी के दौरान बातचीत हो सकती है।सूत्रों के मुताबिक इस मसले पर अगले साल दोनों देशों के प्रतिनिधियों की बैठक होने वाली है। माना यह जा जा रहा है कि अगले साल फरवरी में इस मुद्दे पर दोनों देशों के बीच बातचीत होगी। दोनों ही देश निश्चित परिभाषा के तहत भौगोलिक स्थिति (जीआई) के पेटेंट का संयुक्त रूप से दावा करते हैं। माना जाता है कि इसी कारण पाकिस्तान एकतरफा तौर पर बासमती की परिभाषा बदलने का विरोध कर रहा है। सूत्रों का कहना है कि इस महीने के शुरू में इस्लामाबाद में हुए बैठक में यह मामला उठाया गया था। जीआई के तहत उन उत्पादों को लाया जाता है, जो किसी खास भोगोलिक स्थान में ही पैदा होते हैं। सूत्रों का कहना है कि अगले साल जनवरी या फरवरी में होने वाली बैठक में दोनों देशों के वैज्ञानिक इस मसले पर चर्चा करेंगे। गौरतलब है कि देश में पूसा 1121 की खेती कर्नाटक और आंध्रप्रदेश के अलावा पंजाब और उत्तर प्रदेश में भी होता है। इस साल आंध्र प्रदेश में करीब एक हजार एकड़ में और कर्नाटक में करीब पांच सौ एकड़ में पूसा 1121 की खेती हुई है। पाकिस्तान को भय है कि भारत इसे बासमती का दर्जा देकर अपना कारोबार बढ़ा सकता है। दोनों देशों के कुछ ही ऐसे इलाके ऐसे हैं, जहां बोई जाने वाली सभी बासमती में सभी विशेषताएं पाई जाती हैं। भारत में आमतौर पर बासमती की खेती पंजाब और हरियाणा में होती है। पंजाब में बोई जाने वाली कई किस्मों की खेती पाकिस्तान में भी होती है। पूसा 1121 के शामिल होने के बाद छह पारंपरिक किस्में हो गई हैं जबकि दो संकर किस्में हैं। जानकारों का मानना है कि पूसा 1121 एक ऐसा किस्म है, जिसकी खेती किसी भी इलाके में करने के बावजूद इसकी सारी विशेषताए मौजूद रहेंगी। (Business Bhaskar)
खुदरा मांग निकलने से चढ़ने लगे सोने के भाव
विदेशी बाजारों में सोने के भाव में जोरदार तेजी आने और स्थानीय मांग अनायास तेज हो जाने के कारण दो दिनों के कारोबार में ही सोना 13000 के पार पहुंच गया है। पिछले सप्ताह शनिवार और इस सप्ताह सोमवार के कारोबार के दौरान सोने में करीब 870 रुपये की तेजी आई है। सोना अरसे बाद एक बार फिर 13 हजार का आंकड़ा पार कर गया। पिछले कुछ हफ्तों से चली आ रही सोने और चांदी की गिरावट सोमवार को अचानक उफान में बदल गई। सोमवार को सोने के भाव पिछले कुछ हफ्तों के सबसे उच्च स्तर पर नजर आए। सोना 870 रुपए प्रति दस ग्राम की रिकार्ड बढ़त के साथ 13,270 रुपए प्रति दस ग्राम और साथ ही साथ चांदी 650 रुपए प्रति किलो ग्राम बढ़कर 16,900 रुपए प्रति किलो ग्राम हो गया। भारत के त्योहारी मौसम में हुई जबरदस्त बढ़त के बाद से सोने में लगातार गिरावट बनी हुई थी जो कि अब लगन के मौसम में एक बार फिर बढ़ती मांग के रूप में सोमवार को नजर आई। सोना में 870 -1000 रुपए तक की तेजी आई। साथ ही साथ चांदी में तगड़ी तेजी रही।लंदन में सोना करीब तीन फीसदी बढ़कर 825 डालर प्रति औंस पर पहुंच गया। इससे पहले 16 अक्टूबर को सोना 824.9 से 826.9 डालर प्रति औंस के स्तर पर पहुंच गया था। दरअसल अमेरिकी सरकार द्वारा सिटी ग्रुप को दिवालिया होने से बचाने के लिए गए बड़े पैकेज की वजह से सोने के कारोबार को दम मिला है। घरेलू बाजार में सोने के भाव को समर्थन सहालगी मांग से भी मिल रहा है। शादी-विवाह के लिए सोने की खरीदारी करने का इंतजार कर रहे ग्राहकों को अब लगने लगा है कि भाव इससे नीचे नहीं जाएंगे। इसी वजह से सोने की खरीदारी निकलने लगी है। सोने के भाव लंबे अरसे बाद 13 हजार रुपये प्रति दस ग्राम के आंकड़े को लंबे अरसे बाद पार कर पाया है। दूसरी ओर चंडीगढ़ में सोने के भाव एक हजार रुपये प्रति दस ग्राम बढ़ गए। (Business Bhaskar)
मेंथा ऑयल की विदेशों में बढ़ी मांग, वायदा भाव में तेजी
मुंबई : मेंथा ऑयल की घरेलू और विदेशी बाजार में मांग बढ़ रही है, लेकिन सप्लाई इससे तालमेल नहीं बिठा पा रही। इसी वजह से वायदा बाजार में इसकी कीमत तेजी से बढ़ रही है। उत्तर प्रदेश के चंदौसी बाजार में पिछले एक सप्ताह में मेंथा ऑयल की सप्लाई घटी है, लेकिन मांग में रफ्तार तेज हुई है। इससे कीमतें 540-545 रुपए प्रति किलोग्राम के स्तर पर आ गई हैं। यहां तक कि पिछले 3 कारोबारी सत्रों में मेंथा ऑयल के वायदा भाव में तेजी आ रही है। अब मेंथा की अगली फसल 6-7 महीने बाद ही आएगी। इन खबरों के बाद सोमवार को एमसीएक्स पर मेंथा ऑयल का नवंबर वायदा 4 फीसदी के ऊपरी सर्किट के साथ 501 रुपए प्रति किलोग्राम पर बंद हुआ। सबसे ज्यादा सक्रिय दिसंबर वायदा का भाव भी चार फीसदी ऊपर चढ़कर 511.7 रुपए प्रति किलोग्राम पर बंद हुआ। दिसंबर कॉन्ट्रैक्ट के लिए सोमवार को 2,288 लॉट की मांग रही जबकि 11 नवंबर को यह मांग 1,358 लॉट की थी। आमतौर पर मेंथा ऑयल और इससे संबंधित उत्पादों की मांग सर्दियों के दौरान बढ़ जाती है। इससे भी कीमतों को समर्थन मिला, लेकिन फ्यूचर एक्सचेंज में स्टॉक के कारण हाजिर बाजार के मुकाबले कीमतों में बढ़ोतरी कम है। इस समय हाजिर बाजार में आवक है। बोनांजा कमोडिटी के विभुरत्न धारा के मुताबिक, हाजिर और वायदा बाजार में कीमतों में अंतर है, इस कारण शॉर्ट कवरिंग और प्रॉफिट बुकिंग में तेजी आई। (ET Hindi)
चीनी उद्योग की हकीकत जुदा है सरकार के सुनहरे दावों से
November 24, 2008
अक्टूबर में शुरू हुए नए सीजन में चीनी का घरेलू उत्पादन घटने से सरकार के माथे पर बल पड़ता दिख रहा है।
पिछले दो सालों में चीनी के जबरदस्त उत्पादन के बाद इस साल चीनी का उत्पादन औंधे मुंह गिरा है। उत्पादन घटने की वजहों में रकबे में कमी और पेराई शुरू होने में हुई देरी है। कई वजहें हैं जिसके चलते सरकार इसके आयात को लेकर परेशान है। गौरतलब है कि थोक मूल्य सूचकांक में चीनी का हिस्सा अच्छा-खासा है। जानकारों के मुताबिक, सूचकांक में चीनी की हिस्सेदारी जरूरत से कहीं ज्यादा है। ऐसे में होता यह है कि जैसे ही चीनी महंगी होती है, महंगाई की सुई उपभोक्ताओं समेत सरकार को भी चुभने लगती है। उसे डर है कि चीनी महंगी हुई तो मौजूदा वित्त वर्ष के अंतिम महीनों में महंगाई की तपिश में फिर वृद्धि हो जाएगी। सरकार इन वजहों से चीनी की कीमत को लेकर काफी सतर्क है। हालांकि, महंगाई के बोझ से उपभोक्ताओं को बचाने के लिए एक उपाय है।वह यह कि कच्ची चीनी का आयात किया जाए। तमाम चीनी उत्पादक राज्यों में यह मानकर चला जा रहा है कि इस बार चीनी के उत्पादन में करीब 25 फीसदी की कमी होगी। मौसम की तमाम अनिश्चितताओं जैसे मानसून का देर से आना, जोरदार बारिश, बाढ़ और मानसून की देर से वापसी आदि के चलते गन्ने की फसल और उत्पादकता बुरी तरह से प्रभावित हुई। देश के सबसे बड़े गन्ना उत्पादक राज्यों में से एक उत्तर प्रदेश में इस बार गन्ने की फसल काफी बर्बाद हुई। इस बार तो गन्ने की पेराई भी देर से शुरू हुई। इसके चलते आशंका है कि गन्ने की उत्पादकता इस बार खासी कम रहेगी। उत्तर प्रदेश में गन्ने की फसल तबाह करने में जहां आवश्यकता से अधिक बारिश का योगदान रहा है। वहीं महाराष्ट्र में इसके पीछे सूखे की भूमिका रही है। महाराष्ट्र के हालात काफी खराब हैं। यहां गन्ने की फसल का एक हिस्सा तो चारे के रूप में इस्तेमाल हो रहा है।भारतीय चीनी मिल संघ (इस्मा) के महानिदेशक एस एल जैन के मुताबिक, चीनी उत्पादन में हुई गिरावट के असर को दूर करने की चीनी उद्योग की क्षमता में जबरदस्त कमी हुई है। वह इसलिए कि जनवरी 2007 से जून 2008 के बीच चीनी के भाव तेजी से नीचे की ओर गए हैं। जैन ने बताया कि उत्तर प्रदेश के करीब सभी मिलों को चीनी उत्पादन में काफी नुकसान हुआ है। कई मिलों को तो चीनी उत्पादन में हुए नुकसान की भरपाई अपने सहयोगी इकाइयों जैसे रासायनिक और ऊर्जा उत्पादक संयंत्रों के जरिए करनी पड़ रही है। नुकसान इतना तगड़ा है कि इसके बावजूद इसकी भरपाई नहीं हो पा रही है।जनवरी 2007 से जून 2008 के बीच चीनी की कीमतों में कमी की मुख्य वजह सरकार की ओर से निर्यात पर लगाई गई पाबंदी है। गौरतलब है कि चीनी की कीमतों पर अंकुश लगाने के लिए सरकार ने जून 2006 में निर्यात पर रोक लगा दी थी। तब वैश्विक बाजार में चीनी की कीमत 480 डॉलर प्रति टन हुआ करती थी। इस्मा के पूर्व अध्यक्ष ओम धानुका कहते हैं कि इस दौरान चीनी के बाजार भाव उत्पादन लागत से भी कम थे। ऐसे में कई चीनी मिलें गन्ने का अपना बकाया चुका पाने में असमर्थ रहीं। ऐसे मुश्किल हालात को देखते हुए किसानों ने तब गन्ने की बजाय गेहूं जैसे खाद्यान्न का रुख करना ज्यादा बेहतर समझा। सभी सहमत हैं कि कई नकारात्मक चीजों के चलते मौजूदा सीजन में चीनी उत्पादन में जोरदार कमी होगी। मालूम हो कि पिछले सीजन में चीनी का उत्पादन करीब 2.63 करोड़ टन रहा था। हालांकि उत्पादन में कितनी कमी होगी इसके लेकर सरकार और चीनी उद्योग एकमत नहीं है। सरकार का कहना है कि 2008-09 सीजन में चीनी का उत्पादन 43 लाख टन घटकर 2.2 करोड़ टन तक सिमट जाएगा। चीनी उद्योग का अनमाुन है कि इस सीजन में उत्पादन 1.8 से 1.95 करोड़ टन के बीच रहेगा। धानुका कहते हैं कि पहले देखा गया है कि सरकार के आंकड़े बिल्कुल सटीक नहीं होते। बहरहाल मौजूदा सीजन के शुरू होते वक्त भंडारों में करीब 80 लाख टन चीनी जमा है। ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि चीने के दाम में फिलहाल कोई वृद्धि नहीं होगी। धानुका के मुताबिक, भंडारों में इस वक्त इतनी चीनी जमा है कि देर से पेराई शुरू होने का असर कम से कम कीमतों पर नहीं पड़ने की उम्मीद नहीं है। वे कहते हैं कि पिछले साल भर में चीनी की जितनी खपत हुई, यदि उस दर से खपत हुई तो मौजूदा भंडार अगले 4 महीने से ज्यादा समय तक घरेलू जरूरतों की पूर्ति करने में सक्षम है। वैसे अनुमान है कि मंदी के बावजूद मौजूदा सीजन में चीनी की मांग में कम से कम 10 लाख टन की बढ़ोतरी होगी। इस बात के पूरे आसार हैं कि निकट भविष्य में चीनी की कीमतों में वृद्धि होगी। इस पर नियंत्रण तभी संभव है जब इस समय कच्ची चीनी का पर्याप्त आयात कर लिया जाए। संवेदनशील कृषि जिंस होने के नाते सरकार चीनी पर पैनी नजर रखती है और रखनी भी चाहिए। यदि सरकार चाहती है कि अगले सीजन के शुरू में चीनी का भंडार ठीक-ठाक रहे तो सिवाए आयात के कोई दूसरा विकल्प नहीं है। ऐसे में कच्ची चीनी की आयातित मात्रा को लेकर कयासबाजी शुरू हो गई है। अभी चीनी उद्योग को राहत देते हुए सरकार ने वास्तविक उपभोक्ताओं को अग्रिम प्रमाणन योजना के तहत कच्ची चीनी के शुल्करहित आयात की अनुमति दे दी है। इसका मतलब यह कि केवल चीनी मिल ही इस तरह का आयात कर सकेंगे। ऐसे हालात में इन मिलों को महज 24 महीने के अंदर आयातित कच्ची चीनी जितनी परिष्कृत चीनी का निर्यात करना होगा। हां विशेष परिस्थिति में इन मिलों को समय-सीमा में छह-छह महीने के दो विस्तार दिया जा सकता है। (BS Hindi)
अक्टूबर में शुरू हुए नए सीजन में चीनी का घरेलू उत्पादन घटने से सरकार के माथे पर बल पड़ता दिख रहा है।
पिछले दो सालों में चीनी के जबरदस्त उत्पादन के बाद इस साल चीनी का उत्पादन औंधे मुंह गिरा है। उत्पादन घटने की वजहों में रकबे में कमी और पेराई शुरू होने में हुई देरी है। कई वजहें हैं जिसके चलते सरकार इसके आयात को लेकर परेशान है। गौरतलब है कि थोक मूल्य सूचकांक में चीनी का हिस्सा अच्छा-खासा है। जानकारों के मुताबिक, सूचकांक में चीनी की हिस्सेदारी जरूरत से कहीं ज्यादा है। ऐसे में होता यह है कि जैसे ही चीनी महंगी होती है, महंगाई की सुई उपभोक्ताओं समेत सरकार को भी चुभने लगती है। उसे डर है कि चीनी महंगी हुई तो मौजूदा वित्त वर्ष के अंतिम महीनों में महंगाई की तपिश में फिर वृद्धि हो जाएगी। सरकार इन वजहों से चीनी की कीमत को लेकर काफी सतर्क है। हालांकि, महंगाई के बोझ से उपभोक्ताओं को बचाने के लिए एक उपाय है।वह यह कि कच्ची चीनी का आयात किया जाए। तमाम चीनी उत्पादक राज्यों में यह मानकर चला जा रहा है कि इस बार चीनी के उत्पादन में करीब 25 फीसदी की कमी होगी। मौसम की तमाम अनिश्चितताओं जैसे मानसून का देर से आना, जोरदार बारिश, बाढ़ और मानसून की देर से वापसी आदि के चलते गन्ने की फसल और उत्पादकता बुरी तरह से प्रभावित हुई। देश के सबसे बड़े गन्ना उत्पादक राज्यों में से एक उत्तर प्रदेश में इस बार गन्ने की फसल काफी बर्बाद हुई। इस बार तो गन्ने की पेराई भी देर से शुरू हुई। इसके चलते आशंका है कि गन्ने की उत्पादकता इस बार खासी कम रहेगी। उत्तर प्रदेश में गन्ने की फसल तबाह करने में जहां आवश्यकता से अधिक बारिश का योगदान रहा है। वहीं महाराष्ट्र में इसके पीछे सूखे की भूमिका रही है। महाराष्ट्र के हालात काफी खराब हैं। यहां गन्ने की फसल का एक हिस्सा तो चारे के रूप में इस्तेमाल हो रहा है।भारतीय चीनी मिल संघ (इस्मा) के महानिदेशक एस एल जैन के मुताबिक, चीनी उत्पादन में हुई गिरावट के असर को दूर करने की चीनी उद्योग की क्षमता में जबरदस्त कमी हुई है। वह इसलिए कि जनवरी 2007 से जून 2008 के बीच चीनी के भाव तेजी से नीचे की ओर गए हैं। जैन ने बताया कि उत्तर प्रदेश के करीब सभी मिलों को चीनी उत्पादन में काफी नुकसान हुआ है। कई मिलों को तो चीनी उत्पादन में हुए नुकसान की भरपाई अपने सहयोगी इकाइयों जैसे रासायनिक और ऊर्जा उत्पादक संयंत्रों के जरिए करनी पड़ रही है। नुकसान इतना तगड़ा है कि इसके बावजूद इसकी भरपाई नहीं हो पा रही है।जनवरी 2007 से जून 2008 के बीच चीनी की कीमतों में कमी की मुख्य वजह सरकार की ओर से निर्यात पर लगाई गई पाबंदी है। गौरतलब है कि चीनी की कीमतों पर अंकुश लगाने के लिए सरकार ने जून 2006 में निर्यात पर रोक लगा दी थी। तब वैश्विक बाजार में चीनी की कीमत 480 डॉलर प्रति टन हुआ करती थी। इस्मा के पूर्व अध्यक्ष ओम धानुका कहते हैं कि इस दौरान चीनी के बाजार भाव उत्पादन लागत से भी कम थे। ऐसे में कई चीनी मिलें गन्ने का अपना बकाया चुका पाने में असमर्थ रहीं। ऐसे मुश्किल हालात को देखते हुए किसानों ने तब गन्ने की बजाय गेहूं जैसे खाद्यान्न का रुख करना ज्यादा बेहतर समझा। सभी सहमत हैं कि कई नकारात्मक चीजों के चलते मौजूदा सीजन में चीनी उत्पादन में जोरदार कमी होगी। मालूम हो कि पिछले सीजन में चीनी का उत्पादन करीब 2.63 करोड़ टन रहा था। हालांकि उत्पादन में कितनी कमी होगी इसके लेकर सरकार और चीनी उद्योग एकमत नहीं है। सरकार का कहना है कि 2008-09 सीजन में चीनी का उत्पादन 43 लाख टन घटकर 2.2 करोड़ टन तक सिमट जाएगा। चीनी उद्योग का अनमाुन है कि इस सीजन में उत्पादन 1.8 से 1.95 करोड़ टन के बीच रहेगा। धानुका कहते हैं कि पहले देखा गया है कि सरकार के आंकड़े बिल्कुल सटीक नहीं होते। बहरहाल मौजूदा सीजन के शुरू होते वक्त भंडारों में करीब 80 लाख टन चीनी जमा है। ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि चीने के दाम में फिलहाल कोई वृद्धि नहीं होगी। धानुका के मुताबिक, भंडारों में इस वक्त इतनी चीनी जमा है कि देर से पेराई शुरू होने का असर कम से कम कीमतों पर नहीं पड़ने की उम्मीद नहीं है। वे कहते हैं कि पिछले साल भर में चीनी की जितनी खपत हुई, यदि उस दर से खपत हुई तो मौजूदा भंडार अगले 4 महीने से ज्यादा समय तक घरेलू जरूरतों की पूर्ति करने में सक्षम है। वैसे अनुमान है कि मंदी के बावजूद मौजूदा सीजन में चीनी की मांग में कम से कम 10 लाख टन की बढ़ोतरी होगी। इस बात के पूरे आसार हैं कि निकट भविष्य में चीनी की कीमतों में वृद्धि होगी। इस पर नियंत्रण तभी संभव है जब इस समय कच्ची चीनी का पर्याप्त आयात कर लिया जाए। संवेदनशील कृषि जिंस होने के नाते सरकार चीनी पर पैनी नजर रखती है और रखनी भी चाहिए। यदि सरकार चाहती है कि अगले सीजन के शुरू में चीनी का भंडार ठीक-ठाक रहे तो सिवाए आयात के कोई दूसरा विकल्प नहीं है। ऐसे में कच्ची चीनी की आयातित मात्रा को लेकर कयासबाजी शुरू हो गई है। अभी चीनी उद्योग को राहत देते हुए सरकार ने वास्तविक उपभोक्ताओं को अग्रिम प्रमाणन योजना के तहत कच्ची चीनी के शुल्करहित आयात की अनुमति दे दी है। इसका मतलब यह कि केवल चीनी मिल ही इस तरह का आयात कर सकेंगे। ऐसे हालात में इन मिलों को महज 24 महीने के अंदर आयातित कच्ची चीनी जितनी परिष्कृत चीनी का निर्यात करना होगा। हां विशेष परिस्थिति में इन मिलों को समय-सीमा में छह-छह महीने के दो विस्तार दिया जा सकता है। (BS Hindi)
बासमती की परिभाषा से भारत-पाक रिश्तों में कड़वाहट
नई दिल्ली November 24, 2008
बासमती चावल की परिभाषा बदलने की कोशिशों के चलते पाकिस्तान के साथ भारत के रिश्ते पहले से तनावपूर्ण थे।
लेकिन हाल ही में पूसा-1121 को बासमती चावल की सूची में शामिल कर लेने से दोनों देशों के कटु संबंधों में और कड़वाहट आ गई है। हालांकि दोनों देश इस मुद्दे को सुलझाने की लगातार कोशिशें कर रहे हैं।मसले को सुलझाने के लिए इस महीने की शुरुआत में पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद में हुई बैठक में दोनों देशों के मतभेद खुलकर सामने आ गए थे। हालांकि उद्योग सूत्रों का कहना है कि अगले साल फरवरी में ये दोनों देश इस कड़वाहट को दूर करने के लिए बातचीत की मेज पर मिल सकते हैं। संभावना जताई जा रही है कि दोनों देश भौगोलिक संकेतक (जीआई) प्रणाली के तहत बासमती चावल की संयुक्त परिभाषा तय कर सकते हैं और इसका पंजीकरण करा सकते हैं। मालूम हो कि कोई भी जिंस या उत्पाद यदि जीआई प्रणाली के तहत पंजीकृत हो जाता है तो इसकी मार्केटिंग में काफी सहूलियत मिलती है।ऐसा इसलिए कि पंजीकरण के बाद इन उत्पादों का कहीं और उत्पादन नहीं किया जा सकता है। इनका उत्पादन वहीं हो सकता है जहां के लिए इनका पंजीकरण किया गया है। इस बातचीत में शामिल सूत्र का कहना है कि दोनों देशों के वैज्ञानिक जनवरी या फरवरी में नई दिल्ली में मिलेंगे और मतभेद की वजहों को दूर करने की कोशिश करेंगे। मजेदार बात है कि पूसा-1121 की खेती गंगा के मैदानी इलाकों से बाहर हो रही है। कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में इसकी खेती बड़े पैमाने पर होती है। वैसे इस समय उत्तर प्रदेश में भी इसकी खेती खूब हो रही है। कर्नाटक में जहां 1,000 एकड में तो आंध्र प्रदेश में 500 एकड़ में इसकी खेती हो रही है। पाकिस्तान को भय है कि यदि बासमती चावल की परिभाषा में परिवर्तन कर लेती है तो भारत इसका फायदा उठा ले जाएगा। मालूम हो कि केवल भारत और पाकिस्तान में ही बासमती पैदा किया जाता है। बता दें कि 29 अक्टूबर को पूसा-1121 को बासमती की श्रेणी में शामिल किया गया था। (BS Hindi)
बासमती चावल की परिभाषा बदलने की कोशिशों के चलते पाकिस्तान के साथ भारत के रिश्ते पहले से तनावपूर्ण थे।
लेकिन हाल ही में पूसा-1121 को बासमती चावल की सूची में शामिल कर लेने से दोनों देशों के कटु संबंधों में और कड़वाहट आ गई है। हालांकि दोनों देश इस मुद्दे को सुलझाने की लगातार कोशिशें कर रहे हैं।मसले को सुलझाने के लिए इस महीने की शुरुआत में पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद में हुई बैठक में दोनों देशों के मतभेद खुलकर सामने आ गए थे। हालांकि उद्योग सूत्रों का कहना है कि अगले साल फरवरी में ये दोनों देश इस कड़वाहट को दूर करने के लिए बातचीत की मेज पर मिल सकते हैं। संभावना जताई जा रही है कि दोनों देश भौगोलिक संकेतक (जीआई) प्रणाली के तहत बासमती चावल की संयुक्त परिभाषा तय कर सकते हैं और इसका पंजीकरण करा सकते हैं। मालूम हो कि कोई भी जिंस या उत्पाद यदि जीआई प्रणाली के तहत पंजीकृत हो जाता है तो इसकी मार्केटिंग में काफी सहूलियत मिलती है।ऐसा इसलिए कि पंजीकरण के बाद इन उत्पादों का कहीं और उत्पादन नहीं किया जा सकता है। इनका उत्पादन वहीं हो सकता है जहां के लिए इनका पंजीकरण किया गया है। इस बातचीत में शामिल सूत्र का कहना है कि दोनों देशों के वैज्ञानिक जनवरी या फरवरी में नई दिल्ली में मिलेंगे और मतभेद की वजहों को दूर करने की कोशिश करेंगे। मजेदार बात है कि पूसा-1121 की खेती गंगा के मैदानी इलाकों से बाहर हो रही है। कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में इसकी खेती बड़े पैमाने पर होती है। वैसे इस समय उत्तर प्रदेश में भी इसकी खेती खूब हो रही है। कर्नाटक में जहां 1,000 एकड में तो आंध्र प्रदेश में 500 एकड़ में इसकी खेती हो रही है। पाकिस्तान को भय है कि यदि बासमती चावल की परिभाषा में परिवर्तन कर लेती है तो भारत इसका फायदा उठा ले जाएगा। मालूम हो कि केवल भारत और पाकिस्तान में ही बासमती पैदा किया जाता है। बता दें कि 29 अक्टूबर को पूसा-1121 को बासमती की श्रेणी में शामिल किया गया था। (BS Hindi)
काली मिर्च के निर्यात में भारी कमी
कोच्चि November 24, 2008
मसाला बोर्ड के नवीनतम आकलन के अनुसार, चालू वित्त वर्ष में अप्रैल से अक्टूबर के दौरान भारत से काली मिर्च के निर्यात में भारी गिरावट आई है।
निर्यात के परिमाण में 35.5 प्रतिशत की गिरावट आई है। इस अवधि में काली मिर्च का कुल निर्यात घट कर 14,750 टन हो गया जबकि साल 2007-08 की समान अवधि में यह 22,800 टन था। निर्यात से होने वाली आय में 25.5 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई और यह 246.70 करोड़ रुपये रहा जबकि पिछले वर्ष की समान अवधि में यह 330.37 करोड़ रुपये था। ध्यान देने योग्य बात यह है कि काली मिर्च की औसत प्रति किलो अंतरराष्ट्रीय कीमतें साल 2007-08 में 144.90 रुपये से बढ़ कर 167.25 रुपये हो गई थीं। बोर्ड ने कहा कि आर्थिक मंदी के कारण प्रमुख बाजारों से भंडार के कम होने की खबरों का आना निर्यात के कम होने का प्रमुख कारण है। यद्यपि सभी मसालों के निर्यात के परिमाण में 7 प्रतिशत और मूल्य के मामले में 14 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है, लेकिन काली मिर्च के निर्यात में भारी कमी आई है। कोच्चि के जाने माने निर्यातकों ने बताया कि अमेरिका और यूरोपीय यूनियन के देशों में आई मंदी इसका प्रमुख कारण है और काली मिर्च इससे सर्वाधिक प्रभावित हुआ है। अन्य मसालों के निर्यात के प्रमुख केद्र खाड़ी के देश और जापान हैं जबकि काली मिर्च मुख्य रूप से यूरोपीय यूनियन और अमेरिका को भेजा जाता है। पिछले सात महीनों से इस पर गौर किया जा रहा है कि वैसे कुछ मसालों में काली मिर्च भी शामिल है जिसके निर्यात में चालू वित्त वर्ष के दौरान लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है।वर्तमान वित्तीय उठा पटक के कारण आयात करने वाले देशों खास तौर से अमेरिका द्वारा कम खरीदारी की जा रही है। चालू वर्ष के पहले नौ महीनों में अमेरिका द्वारा काली मिर्च की खरीदारी 7 प्रतिशत घट कर 36,305 टन रह गई है जबकि साल 2007 की समान अवधि में यह 39,061 टन की थी। अमेरिका का काली मिर्च का आयात घटने से सभी प्रमुख निर्यातक देश बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। इस मामले में इंडोनेशिया एक अपवाद है। अमेरिका मालाबार ग्रेड की काली मिर्च (भारतीय) का आयात करता है और जनवरी से सितंबर की अवधि में इसमें पिछले वर्ष के मुकाबले 30 प्रतिशत की कमी आई है। साल 2007 के जनवरी से सितंबर की अवधि में अमेरिका ने 10,825 टन काली मिर्च का आयात किया था जबकि साल 2008 की समान अवधि में यह घट कर 7,368 टन रह गया। इसी प्रकार, अमेरिका में ब्राजील से आयातित होने वाली काली मिर्च 4,264 टन से घट कर 2,627टन और वियतनाम से होने वाला आयात 6,468 टन से घट कर 5,684 टन हो गया।लेकिन आश्चर्य की बात है कि जनवरी से सितंबर की अवधि में अमेरिका द्वारा इंडोनेशिया से की गई काली मिर्च की खरीदारी दोगुनी होकर 16,772 टन हो गई है। पिछले वर्ष की समान अवधि में अमेरिका ने इंडोनेशिया से 8,771 टन काली मिर्च की खरीदारी की थी। अनुमान है कि काली मिर्च का वैश्विक उत्पादन 2,25,000 टन से 2,50,000 टन से थोड़ा कम या अधिक होगा। इसलिए काली मिर्च उत्पादकों और निर्यातकों के लिए यह वक्त काफी कठिन है। (BS Hindi)
मसाला बोर्ड के नवीनतम आकलन के अनुसार, चालू वित्त वर्ष में अप्रैल से अक्टूबर के दौरान भारत से काली मिर्च के निर्यात में भारी गिरावट आई है।
निर्यात के परिमाण में 35.5 प्रतिशत की गिरावट आई है। इस अवधि में काली मिर्च का कुल निर्यात घट कर 14,750 टन हो गया जबकि साल 2007-08 की समान अवधि में यह 22,800 टन था। निर्यात से होने वाली आय में 25.5 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई और यह 246.70 करोड़ रुपये रहा जबकि पिछले वर्ष की समान अवधि में यह 330.37 करोड़ रुपये था। ध्यान देने योग्य बात यह है कि काली मिर्च की औसत प्रति किलो अंतरराष्ट्रीय कीमतें साल 2007-08 में 144.90 रुपये से बढ़ कर 167.25 रुपये हो गई थीं। बोर्ड ने कहा कि आर्थिक मंदी के कारण प्रमुख बाजारों से भंडार के कम होने की खबरों का आना निर्यात के कम होने का प्रमुख कारण है। यद्यपि सभी मसालों के निर्यात के परिमाण में 7 प्रतिशत और मूल्य के मामले में 14 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है, लेकिन काली मिर्च के निर्यात में भारी कमी आई है। कोच्चि के जाने माने निर्यातकों ने बताया कि अमेरिका और यूरोपीय यूनियन के देशों में आई मंदी इसका प्रमुख कारण है और काली मिर्च इससे सर्वाधिक प्रभावित हुआ है। अन्य मसालों के निर्यात के प्रमुख केद्र खाड़ी के देश और जापान हैं जबकि काली मिर्च मुख्य रूप से यूरोपीय यूनियन और अमेरिका को भेजा जाता है। पिछले सात महीनों से इस पर गौर किया जा रहा है कि वैसे कुछ मसालों में काली मिर्च भी शामिल है जिसके निर्यात में चालू वित्त वर्ष के दौरान लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है।वर्तमान वित्तीय उठा पटक के कारण आयात करने वाले देशों खास तौर से अमेरिका द्वारा कम खरीदारी की जा रही है। चालू वर्ष के पहले नौ महीनों में अमेरिका द्वारा काली मिर्च की खरीदारी 7 प्रतिशत घट कर 36,305 टन रह गई है जबकि साल 2007 की समान अवधि में यह 39,061 टन की थी। अमेरिका का काली मिर्च का आयात घटने से सभी प्रमुख निर्यातक देश बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। इस मामले में इंडोनेशिया एक अपवाद है। अमेरिका मालाबार ग्रेड की काली मिर्च (भारतीय) का आयात करता है और जनवरी से सितंबर की अवधि में इसमें पिछले वर्ष के मुकाबले 30 प्रतिशत की कमी आई है। साल 2007 के जनवरी से सितंबर की अवधि में अमेरिका ने 10,825 टन काली मिर्च का आयात किया था जबकि साल 2008 की समान अवधि में यह घट कर 7,368 टन रह गया। इसी प्रकार, अमेरिका में ब्राजील से आयातित होने वाली काली मिर्च 4,264 टन से घट कर 2,627टन और वियतनाम से होने वाला आयात 6,468 टन से घट कर 5,684 टन हो गया।लेकिन आश्चर्य की बात है कि जनवरी से सितंबर की अवधि में अमेरिका द्वारा इंडोनेशिया से की गई काली मिर्च की खरीदारी दोगुनी होकर 16,772 टन हो गई है। पिछले वर्ष की समान अवधि में अमेरिका ने इंडोनेशिया से 8,771 टन काली मिर्च की खरीदारी की थी। अनुमान है कि काली मिर्च का वैश्विक उत्पादन 2,25,000 टन से 2,50,000 टन से थोड़ा कम या अधिक होगा। इसलिए काली मिर्च उत्पादकों और निर्यातकों के लिए यह वक्त काफी कठिन है। (BS Hindi)
'खाद की नहीं वितरण की है समस्या'
लखनऊ November 24, 2008
उत्तर प्देश में खाद के गहराते संकट की खबरों के बीच राज्य सरकार ने एक बार यह साफ किया है कि समूचे प्देश में खाद की कोई कमी नही है।
राज्य के कृषि निदेशक राजित राम वर्मा का कहना है कि खाद की कमी नही है समस्या वितरण की हो रही है। उनका कहना है कि इस साल बीते साल से 30 फीसदी ज्यादा खाद केंद्र से मिली है।वर्मा ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि डीएपी की फिलहाल कहीं कोई कमी नही है। इस साल अब तक न केवल यूरिया भरपूर मात्रा में मिली है बल्कि एनपीके भी ज्यादा मिली है। उन्होंने माना कि साधन सहकारी समितियों से खाद का वितरण किया जाता और सुस्ती की वजह से खाद का पूरा वितरण हो नही पा रहा है। यूरिया इस साल नवंबर तक 10.03 लाख टन खाद आ गयी है पर वितरण केवल 3.30 लाख टन ही खाद बंट पायी है। पिछले साल अब तक केवल 9 लाख टन यूरिया ही केद्र सरकार से मिली थी। जहां तक डीएपी का सवाल है नवंबर के आखिरी सप्ताह में 6.75 लाख टन खाद आ चुकी पर वितरण केवल 3.95 लाख टनों का ही हो पाया है।श्री वर्मा के मुताबिक अकेले अक्टूबर माह में ही किसानों को 2.5 लाख टन डीएपी मिल गयी थी जबकि मार्च तक प्देश में 10.5 लाख टन डीएपी उपलब्ध करायी जाएगी। कृषि निदेशक का कहना है कि राज्य में इस साल डीएपी की कुल मांग 9.5 लाख टन होने का अनुमान है जिसके सापेक्ष 10.5 लाख टन खाद मिलनी थी। पर उन्होंने बताया कि किसान उपज अच्छी करने के लिए खाद का ज्यादा इस्तेमाल कर रहे हैं जिसके चलते अब खाद की मांग बढ़कर 14 लाख टन हो गयी है। राज्य सरकार ने केंद्र को अपनी बढ़ी जरुरत के बारे में बता कर अधिक खाद की मांग कर ली है।गौरतलब है कि डीएपी के संभावित संकट को देखते हुए किसानों ने एडवांस में खाद जमा करना शुरु कर दिया है। श्री वर्मा के मुताबिक डीएपी खाद को ज्यादा से ज्यादा एक महीने तक ही इस्तेमाल में लाना चाहिए उसके बाद वो बेकार हो जाती है। उन्होंने बताया कि किसानों को बोआई के बाद तो डीएपी का इस्तेमाल बिलकुल नही करना चाहिए। गोंडा जनपद के किसान और साधन सहकारी समिति के पदाधिकारी अमरेंद्र सिंह ने भी इस बात का समर्थन किया और बताया कि किसानों को पहले जैविक खाद को ही अपनाना चाहिए। उनका कहना है कि किसानों को डीएपी के साथ ही बराबर मात्रा में गोबर की खाद भी इस्तेमाल में लानी चाहिए।कृषि निदेशक ने माना है कि अधिक गेंहू का उत्पादन करने वाले पीलीभीत जिले में डीएपी का संकट बना है जबकि बदायूं में समस्या पर काबू पा लिया गया है। (BS Hindi)
उत्तर प्देश में खाद के गहराते संकट की खबरों के बीच राज्य सरकार ने एक बार यह साफ किया है कि समूचे प्देश में खाद की कोई कमी नही है।
राज्य के कृषि निदेशक राजित राम वर्मा का कहना है कि खाद की कमी नही है समस्या वितरण की हो रही है। उनका कहना है कि इस साल बीते साल से 30 फीसदी ज्यादा खाद केंद्र से मिली है।वर्मा ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि डीएपी की फिलहाल कहीं कोई कमी नही है। इस साल अब तक न केवल यूरिया भरपूर मात्रा में मिली है बल्कि एनपीके भी ज्यादा मिली है। उन्होंने माना कि साधन सहकारी समितियों से खाद का वितरण किया जाता और सुस्ती की वजह से खाद का पूरा वितरण हो नही पा रहा है। यूरिया इस साल नवंबर तक 10.03 लाख टन खाद आ गयी है पर वितरण केवल 3.30 लाख टन ही खाद बंट पायी है। पिछले साल अब तक केवल 9 लाख टन यूरिया ही केद्र सरकार से मिली थी। जहां तक डीएपी का सवाल है नवंबर के आखिरी सप्ताह में 6.75 लाख टन खाद आ चुकी पर वितरण केवल 3.95 लाख टनों का ही हो पाया है।श्री वर्मा के मुताबिक अकेले अक्टूबर माह में ही किसानों को 2.5 लाख टन डीएपी मिल गयी थी जबकि मार्च तक प्देश में 10.5 लाख टन डीएपी उपलब्ध करायी जाएगी। कृषि निदेशक का कहना है कि राज्य में इस साल डीएपी की कुल मांग 9.5 लाख टन होने का अनुमान है जिसके सापेक्ष 10.5 लाख टन खाद मिलनी थी। पर उन्होंने बताया कि किसान उपज अच्छी करने के लिए खाद का ज्यादा इस्तेमाल कर रहे हैं जिसके चलते अब खाद की मांग बढ़कर 14 लाख टन हो गयी है। राज्य सरकार ने केंद्र को अपनी बढ़ी जरुरत के बारे में बता कर अधिक खाद की मांग कर ली है।गौरतलब है कि डीएपी के संभावित संकट को देखते हुए किसानों ने एडवांस में खाद जमा करना शुरु कर दिया है। श्री वर्मा के मुताबिक डीएपी खाद को ज्यादा से ज्यादा एक महीने तक ही इस्तेमाल में लाना चाहिए उसके बाद वो बेकार हो जाती है। उन्होंने बताया कि किसानों को बोआई के बाद तो डीएपी का इस्तेमाल बिलकुल नही करना चाहिए। गोंडा जनपद के किसान और साधन सहकारी समिति के पदाधिकारी अमरेंद्र सिंह ने भी इस बात का समर्थन किया और बताया कि किसानों को पहले जैविक खाद को ही अपनाना चाहिए। उनका कहना है कि किसानों को डीएपी के साथ ही बराबर मात्रा में गोबर की खाद भी इस्तेमाल में लानी चाहिए।कृषि निदेशक ने माना है कि अधिक गेंहू का उत्पादन करने वाले पीलीभीत जिले में डीएपी का संकट बना है जबकि बदायूं में समस्या पर काबू पा लिया गया है। (BS Hindi)
कपास की कीमतें बढ़ीं पर आवक में हुई कमी
नई दिल्ली November 24, 2008
कपास के किसानों के लिए मुश्किल की घड़ी है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में इस साल उत्पादन कम होने के बावजूद कीमत में गिरावट है तो दूसरी तरफ घरेलू बुनकर भी कपास के न्यूनतम समर्थन मूल्य पर उसे खरीदने को तैयार नहीं है।
घरेलू टेक्सटाइल मिलों को उम्मीद है कि खरीदार नहीं मिलने की स्थिति में कपास का मूल्य कम हो जाएगा। और तब जाकर वे कपास की खरीदारी करेंगे। फिलहाल कपास का समर्थन मूल्य 2600 रुपये प्रति क्विंटल है। बुनकर इसका लगातार विरोध कर रहे हैं।पिछले दो सालों के दौरान भारतीय कपास की अंतरराष्ट्रीय बाजार में अच्छी मांग बन गयी थी। इस कारण किसानों का रुझान कपास की ओर अधिक हो चला। पिछले साल (2007-08) के दौरान कपास का उत्पादन 315 लाख बेल (1 बेल = 170 किलोग्राम) था तो इस साल लगभग 322 लाख बेल के उत्पादन की उम्मीद है। हालांकि कपास उत्पादन के लिहाज से विश्व में तीसरा स्थान रखने वाले अमेरिका में इस साल 13 से लेकर 30 लाख टन कम कपास होने की संभावना है। लेकिन विश्वव्यापी मंदी के कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में कपास की मांग जोर नहीं पकड़ रही है। भारतीय टेक्सटाइल एसोसिएशन के पदाधिकारी अशोक जुनेजा कहते हैं, 'बाहर के देशों में इन दिनों यार्न की कोई मांग नहीं है। ऐसे में कपास की खरीदारी कौन करेगा।' पिछले डेढ़ महीनों के अंदर अंतरराष्ट्रीय बाजार में कपास की कीमत में 30 फीसदी तक की गिरावट दर्ज की गयी है। भारतीय बाजार चालू कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार से 10 फीसदी तक अधिक बतायी जा रही है। दूसरी तरफ टेक्सटाइल उद्योग से जुड़े छोटे मिल मालिकों का कहना है कि अमेरिका एवं यूरोप में आयी मंदी के कारण धागे की मांग 50-60 फीसदी तक कम हो गयी है।दूसरी बात है कि मांग नहीं होने के बावजूद कपास का समर्थन मूल्य 2600 है जो कि काफी ज्यादा है। फिलहाल कपास की मंडियों में सरकार द्वारा ही अधिकतम खरीदारी की जा रही है।दूसरी तरफ इस साल पिछले साल के मुकाबले कपास के उत्पादन में बढ़ोतरी की संभावना के बावजूद मंडियों में कपास की आवक कम हो रही है। पिछले साल नवंबर माह के दूसरे सप्ताह तक 46 लाख बेल से अधिक कपास की आवक हो चुकी थी जो इस साल लगभग 10 लाख बेल कम है। मिल मालिकों के मुताबिक जो सक्षम किसान है वे कपास के भाव में बढ़ोतरी की उम्मीद कर रहे हैं। लेकिन दक्षिण भारत के 40 फीसदी से अधिक छोटी बुनाई मिलों के बंद होने के कारण कपास के दाम बढ़ने की संभावना कम नजर आ रही है। जुनेजा के मुताबिक तमिलनाडु में तो 60 फीसदी से अधिक बुनाई मिल बंद हो चुकी है। (BS Hindi)
कपास के किसानों के लिए मुश्किल की घड़ी है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में इस साल उत्पादन कम होने के बावजूद कीमत में गिरावट है तो दूसरी तरफ घरेलू बुनकर भी कपास के न्यूनतम समर्थन मूल्य पर उसे खरीदने को तैयार नहीं है।
घरेलू टेक्सटाइल मिलों को उम्मीद है कि खरीदार नहीं मिलने की स्थिति में कपास का मूल्य कम हो जाएगा। और तब जाकर वे कपास की खरीदारी करेंगे। फिलहाल कपास का समर्थन मूल्य 2600 रुपये प्रति क्विंटल है। बुनकर इसका लगातार विरोध कर रहे हैं।पिछले दो सालों के दौरान भारतीय कपास की अंतरराष्ट्रीय बाजार में अच्छी मांग बन गयी थी। इस कारण किसानों का रुझान कपास की ओर अधिक हो चला। पिछले साल (2007-08) के दौरान कपास का उत्पादन 315 लाख बेल (1 बेल = 170 किलोग्राम) था तो इस साल लगभग 322 लाख बेल के उत्पादन की उम्मीद है। हालांकि कपास उत्पादन के लिहाज से विश्व में तीसरा स्थान रखने वाले अमेरिका में इस साल 13 से लेकर 30 लाख टन कम कपास होने की संभावना है। लेकिन विश्वव्यापी मंदी के कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में कपास की मांग जोर नहीं पकड़ रही है। भारतीय टेक्सटाइल एसोसिएशन के पदाधिकारी अशोक जुनेजा कहते हैं, 'बाहर के देशों में इन दिनों यार्न की कोई मांग नहीं है। ऐसे में कपास की खरीदारी कौन करेगा।' पिछले डेढ़ महीनों के अंदर अंतरराष्ट्रीय बाजार में कपास की कीमत में 30 फीसदी तक की गिरावट दर्ज की गयी है। भारतीय बाजार चालू कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार से 10 फीसदी तक अधिक बतायी जा रही है। दूसरी तरफ टेक्सटाइल उद्योग से जुड़े छोटे मिल मालिकों का कहना है कि अमेरिका एवं यूरोप में आयी मंदी के कारण धागे की मांग 50-60 फीसदी तक कम हो गयी है।दूसरी बात है कि मांग नहीं होने के बावजूद कपास का समर्थन मूल्य 2600 है जो कि काफी ज्यादा है। फिलहाल कपास की मंडियों में सरकार द्वारा ही अधिकतम खरीदारी की जा रही है।दूसरी तरफ इस साल पिछले साल के मुकाबले कपास के उत्पादन में बढ़ोतरी की संभावना के बावजूद मंडियों में कपास की आवक कम हो रही है। पिछले साल नवंबर माह के दूसरे सप्ताह तक 46 लाख बेल से अधिक कपास की आवक हो चुकी थी जो इस साल लगभग 10 लाख बेल कम है। मिल मालिकों के मुताबिक जो सक्षम किसान है वे कपास के भाव में बढ़ोतरी की उम्मीद कर रहे हैं। लेकिन दक्षिण भारत के 40 फीसदी से अधिक छोटी बुनाई मिलों के बंद होने के कारण कपास के दाम बढ़ने की संभावना कम नजर आ रही है। जुनेजा के मुताबिक तमिलनाडु में तो 60 फीसदी से अधिक बुनाई मिल बंद हो चुकी है। (BS Hindi)
ओटाई करने वाले हड़ताल पर
चंडीगढ़ November 24, 2008
पंजाब और हरियाणा के कपास की ओटाई करने वालों ने तय किया है कि वे सरकार द्वारा कपास का न्यूनतम समर्थन मूल्य अधिक तय किए जाने और राज्य सरकार के अधिक शुल्कों के विरोध में विभिन्न गिन्निंग एसोसिएशन द्वारा 25 नवंबर से शुरू होने वाले दो दिनों के हड़ताल में शामिल होंगे।
पंजाब कॉटन फैक्ट्रीज ऐंड गिन्नर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष भगवान बंसल ने कहा, 'केंद्र सरकार की गलत नीतियों, जो कपास की ओटाई और सूत बनाने वाले मिलों के लिए घातक साबित हुई हैं, के विरोध में हम बाजार से दो दिनों तक कपास की खरीदारी नहीं करेंगे।'इस हड़ताल में पंजाब और हरियाणा के लगभग 500 ओटाई करने वाले शामिल हो रहे हैं, जिससे दोनों राज्यों के 52 केंद्रों पर कपास की खरीदारी प्रभावित होगी। (BS Hindi)
पंजाब और हरियाणा के कपास की ओटाई करने वालों ने तय किया है कि वे सरकार द्वारा कपास का न्यूनतम समर्थन मूल्य अधिक तय किए जाने और राज्य सरकार के अधिक शुल्कों के विरोध में विभिन्न गिन्निंग एसोसिएशन द्वारा 25 नवंबर से शुरू होने वाले दो दिनों के हड़ताल में शामिल होंगे।
पंजाब कॉटन फैक्ट्रीज ऐंड गिन्नर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष भगवान बंसल ने कहा, 'केंद्र सरकार की गलत नीतियों, जो कपास की ओटाई और सूत बनाने वाले मिलों के लिए घातक साबित हुई हैं, के विरोध में हम बाजार से दो दिनों तक कपास की खरीदारी नहीं करेंगे।'इस हड़ताल में पंजाब और हरियाणा के लगभग 500 ओटाई करने वाले शामिल हो रहे हैं, जिससे दोनों राज्यों के 52 केंद्रों पर कपास की खरीदारी प्रभावित होगी। (BS Hindi)
आवक काफी बढ़ी, फिर भी कम नहीं हुए सब्जियों के दाम
नई दिल्ली November 24, 2008
इस बार पिछले साल की तुलना में सब्जियों की आपूर्ति में 35 से 60 फीसदी का इजाफा हुआ है।
इसके बावजूद, सब्जियों की कीमतें आसमान को छू रही हैं। राजधानी की मशहूर सब्जी मंडी आजादपुर को ही लें तो इस बार यहां कई सब्जियों की आवक 100 से 150 फीसदी तक बढ़ी है।लेकिन उसी तरह इनकी कीमतें भी 50 से 100 फीसदी बढ़ गई हैं। कृषि उत्पाद और विपणन समिति (एपीएमसी) के मुताबिक, पिछले साल अक्टूबर मे टमाटर की आवक 4056 टन और हरी मिर्च की 1175 टन थी। मटर, बैंगन और गाजर की आवक क्रमश: 730, 639 और 76 टन थी, जबकि इस अक्टूबर में टमाटर और हरी मिर्च की आवक बढ़कर 8585 टन और 1754 टन हो गई। मटर, बैंगन और गाजर की आवक क्रमश: 775, 2107 और 1491 टन पर पहुंच गई। आवक में इस जोरदार बढ़ोतरी के बावजूद कीमतों में कोई कमी नहीं हुई। उल्टा इसमें जोरदार उछाल आ गया। कीमतों की बात करें तो पिछले अक्टूबर में टमाटर, हरी मिर्च, मटर, बैंगन और गाजर क्रमश: 852, 223, 2933, 614 और 903 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से बिक रहे थे। इस अक्टूबर में इनकी कीमतें बढ़कर क्रमश: 1673, 242, 4,275, 962 और 1,218 रुपये प्रति क्विंटल हो गई। इस तरह पिछले साल की तुलना में सब्जियों की कीमतों में 35 से 70 फीसदी का उछाल हो चुका है। आजादपुर सब्जी मंडी ट्रेडर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष जयराम बंसल का कहना है कि मजदूरी, किराया और अन्य लागतों के बढ़ने से सब्जियों की कीमतें बढ़ी हैं। एपीएमसी के किसान सहायता विभाग के रवि तिवारी कहते हैं कि इस बार सब्जियों की मांग भी पिछले साल से ज्यादा रही है। यही नहीं, लागत बढ़ने के बावजूद आढ़तियों द्वारा अपना मार्जिन कम न करने से सब्जियों की कीमतों में जोरदार बढ़ोतरी हुई है। टमाटर थोक विक्रेता विजय सिंह मानते है कि बिहार में अगर बाढ़ न आती तो मंडी में सब्जियों की आवक और ज्यादा होती। लेकिन बाढ़ की वजह से कई सब्जियों की आवक न हो पाने के कारण कीमतें और ज्यादा उछल गई। समय से पहले आए मानसून ने भी कई फसलों को बरबाद कर दिया। प्याज और टमाटर की काफी फसल तो इसी कारण सड़ गई। इसके कारण सब्जियों की आवक अच्छी होने के बावजूद कीमतों में सीधे तौर पर उछाल आया। (BS Hindi)
इस बार पिछले साल की तुलना में सब्जियों की आपूर्ति में 35 से 60 फीसदी का इजाफा हुआ है।
इसके बावजूद, सब्जियों की कीमतें आसमान को छू रही हैं। राजधानी की मशहूर सब्जी मंडी आजादपुर को ही लें तो इस बार यहां कई सब्जियों की आवक 100 से 150 फीसदी तक बढ़ी है।लेकिन उसी तरह इनकी कीमतें भी 50 से 100 फीसदी बढ़ गई हैं। कृषि उत्पाद और विपणन समिति (एपीएमसी) के मुताबिक, पिछले साल अक्टूबर मे टमाटर की आवक 4056 टन और हरी मिर्च की 1175 टन थी। मटर, बैंगन और गाजर की आवक क्रमश: 730, 639 और 76 टन थी, जबकि इस अक्टूबर में टमाटर और हरी मिर्च की आवक बढ़कर 8585 टन और 1754 टन हो गई। मटर, बैंगन और गाजर की आवक क्रमश: 775, 2107 और 1491 टन पर पहुंच गई। आवक में इस जोरदार बढ़ोतरी के बावजूद कीमतों में कोई कमी नहीं हुई। उल्टा इसमें जोरदार उछाल आ गया। कीमतों की बात करें तो पिछले अक्टूबर में टमाटर, हरी मिर्च, मटर, बैंगन और गाजर क्रमश: 852, 223, 2933, 614 और 903 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से बिक रहे थे। इस अक्टूबर में इनकी कीमतें बढ़कर क्रमश: 1673, 242, 4,275, 962 और 1,218 रुपये प्रति क्विंटल हो गई। इस तरह पिछले साल की तुलना में सब्जियों की कीमतों में 35 से 70 फीसदी का उछाल हो चुका है। आजादपुर सब्जी मंडी ट्रेडर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष जयराम बंसल का कहना है कि मजदूरी, किराया और अन्य लागतों के बढ़ने से सब्जियों की कीमतें बढ़ी हैं। एपीएमसी के किसान सहायता विभाग के रवि तिवारी कहते हैं कि इस बार सब्जियों की मांग भी पिछले साल से ज्यादा रही है। यही नहीं, लागत बढ़ने के बावजूद आढ़तियों द्वारा अपना मार्जिन कम न करने से सब्जियों की कीमतों में जोरदार बढ़ोतरी हुई है। टमाटर थोक विक्रेता विजय सिंह मानते है कि बिहार में अगर बाढ़ न आती तो मंडी में सब्जियों की आवक और ज्यादा होती। लेकिन बाढ़ की वजह से कई सब्जियों की आवक न हो पाने के कारण कीमतें और ज्यादा उछल गई। समय से पहले आए मानसून ने भी कई फसलों को बरबाद कर दिया। प्याज और टमाटर की काफी फसल तो इसी कारण सड़ गई। इसके कारण सब्जियों की आवक अच्छी होने के बावजूद कीमतों में सीधे तौर पर उछाल आया। (BS Hindi)
...लगातार महंगा हो रहा है सोना
नई दिल्ली November 24, 2008
मंदी की आग में सोना और निखर रहा है। स्थानीय बाजार में सोने के प्रति निवेशकों का रुझान जारी है और आगे भी इसमें गिरावट की गुंजाइश नहीं है।
वैवाहिक मौसम होने के कारण सोने का कारोबार और मजबूत हो चला है। लगातार बढ़ रही मांग के कारण कीमत भी लगातार बढ़ रही है। वायदा बाजार में सोने के कारोबार में पूरे सप्ताह तेजी का दौर रहा। सोने के दिसंबर वायदा में 583 रुपये प्रति दस ग्राम की तेजी रही। दिल्ली सर्राफा बाजार में भी सोने के दाम धीमी गति से ही सही लेकिन लगातार चढ़ रहे हैं। गत 11 नवंबर को सर्राफा बाजार में सोने की कीमत 11,800 रुपये प्रति दस ग्राम थी तो शुक्रवार को (24 नवंबर) को यह कीमत 13,100 रुपये प्रति दस ग्राम के स्तर पर पहुंच गयी। हालांकि सर्राफा बाजार के अधिकारी सुरेंद्र खंडेलवाल कहते है कि अभी कीमतों में 300-400 रुपये का और इजाफा होने की संभावना है। लेकिन वायदा बाजार सोने की कीमत में लगातार तेजी दिखा रहा है। दिसंबर वायदा प्रति दस ग्राम 12109 रुपये, फरवरी वायदा 12134, अप्रैल वायदा 12141 रुपये पर बंद हुआ। हाजिर बाजार में वायदा भाव से 300 रुपये प्रति दस ग्राम अधिक कीमत होती है। सोने के कारोबारी अवधेश चंद्र कहते हैं, जब चाहे नगदी में बदल डालने की सोने की खासियत के कारण निवेशकों का रुझान इस मंदी में सोने की तरफ काफी बढ़ गया है। दूसरा शादी-ब्याह के मौसम से भी थोड़ी तेजी आयी है। सर्राफा कारोबारियों का यह भी कहना है कि 12,000 रुपये प्रति 10 ग्राम के स्तर को पार करने के बाद ग्राहक बाजार से गायब होते दिखाई दे रहें हैं। कीमत 11,500-12000 रुपये प्रति 10 ग्राम तक रहने पर सोने की मांग में तेजी बनी रह सकती है। दिल्ली सर्राफा बाजार में दीपावली से लेकर अब तक सोने के कारोबार में 40 फीसदी से अधिक की तेजी देखी गयी है और यह तेजी कमोबेश इसी स्तर पर कायम है। (BS Hindi)
मंदी की आग में सोना और निखर रहा है। स्थानीय बाजार में सोने के प्रति निवेशकों का रुझान जारी है और आगे भी इसमें गिरावट की गुंजाइश नहीं है।
वैवाहिक मौसम होने के कारण सोने का कारोबार और मजबूत हो चला है। लगातार बढ़ रही मांग के कारण कीमत भी लगातार बढ़ रही है। वायदा बाजार में सोने के कारोबार में पूरे सप्ताह तेजी का दौर रहा। सोने के दिसंबर वायदा में 583 रुपये प्रति दस ग्राम की तेजी रही। दिल्ली सर्राफा बाजार में भी सोने के दाम धीमी गति से ही सही लेकिन लगातार चढ़ रहे हैं। गत 11 नवंबर को सर्राफा बाजार में सोने की कीमत 11,800 रुपये प्रति दस ग्राम थी तो शुक्रवार को (24 नवंबर) को यह कीमत 13,100 रुपये प्रति दस ग्राम के स्तर पर पहुंच गयी। हालांकि सर्राफा बाजार के अधिकारी सुरेंद्र खंडेलवाल कहते है कि अभी कीमतों में 300-400 रुपये का और इजाफा होने की संभावना है। लेकिन वायदा बाजार सोने की कीमत में लगातार तेजी दिखा रहा है। दिसंबर वायदा प्रति दस ग्राम 12109 रुपये, फरवरी वायदा 12134, अप्रैल वायदा 12141 रुपये पर बंद हुआ। हाजिर बाजार में वायदा भाव से 300 रुपये प्रति दस ग्राम अधिक कीमत होती है। सोने के कारोबारी अवधेश चंद्र कहते हैं, जब चाहे नगदी में बदल डालने की सोने की खासियत के कारण निवेशकों का रुझान इस मंदी में सोने की तरफ काफी बढ़ गया है। दूसरा शादी-ब्याह के मौसम से भी थोड़ी तेजी आयी है। सर्राफा कारोबारियों का यह भी कहना है कि 12,000 रुपये प्रति 10 ग्राम के स्तर को पार करने के बाद ग्राहक बाजार से गायब होते दिखाई दे रहें हैं। कीमत 11,500-12000 रुपये प्रति 10 ग्राम तक रहने पर सोने की मांग में तेजी बनी रह सकती है। दिल्ली सर्राफा बाजार में दीपावली से लेकर अब तक सोने के कारोबार में 40 फीसदी से अधिक की तेजी देखी गयी है और यह तेजी कमोबेश इसी स्तर पर कायम है। (BS Hindi)
24 नवंबर 2008
आमदनी का अच्छा जरीया है गन्ने का सिरका
सिरका ऐसा प्रिजर्वेटर है जिसका उपयोग खान-पान की वस्तुएं बनाने में सदियों से होता रहा है। लोगों की बदलती जीवनशैली में सिरका की अहमियत और बढ़ गई है। लेकिन इसमें मुश्किल यह है कि बाजार में सिंथेटिक सिरका ही ज्यादा मिलता है। सिंथेटिक सिरका खाद्य वस्तुओं के प्रिजर्वेशन का काम तो करते हैं लेकिन इसका साइड इफैक्ट भी होता है। आश्चर्य है कि इन सबके बावजूद फलों से बना सिरका बाजार में ज्यादा जगह नहीं बना पा रहे हैं। लुधियाना की पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी ने किसानों को फलों से बना सिरका बनाने की विधि बनाकर उन्हें आय का एक और जरिया मुहैया कराने की पहल की है। उम्मीद की जा सकती है कि इससे उपभोक्ताओं को फलों से बना सेहतमंद सिरका औसत मूल्य पर ही मिल जाएगा।पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी ने किसानों को इसकी ट्रेनिंग देकर आमदनी हासिल करने के लिए प्रेरित की पहल की है। फलों के रस से बनने वाला सिरका किसान 22 दिन में तैयार कर बाजार में बेचकर अच्छी आमदनी हासिल कर सकते हैं। यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञों के मुताबिक यह सिरका सिंथेटिक सिरके के मुकाबले कहीं ज्यादा सेहतमंद है। गन्ने के रस से सिरका बनाया जा सकता है जिसकी लागत तकरीबन 25 रुपये प्रति बोतल आती है जबकि किसान इसे आसानी से 35 से 40 रुपये में स्थानीय बाजार में दुकानदारों को बेच सकते हैं।यूनिवर्सिटी के माइक्रोबायोलॉजी विभाग के प्रमुख एवं बेसिक साइंस रिसर्च कोऑर्डिनेटर पी. के. खन्ना के मुताबिक पंजाब स्टेट काउंसिल ऑफ साइंस एंड टैक्नोलॉजी की पहल पर बड़ी संख्या में किसानों को सिरका बनाने की ट्रेनिंग यूनिवर्सिटी के जरिये दिलाई है। इसका फायदा यह रहेगा कि जहां उपभोक्ताओं के लिए स्वास्थ्यवर्धक सिरका बाजार में सुलभ होगा वहीं किसान इससे अच्छा खासा पैसा भी कमा सकेंगे। अभी उन्हें बाजार में सिंथेटिक सिरकी ही मिल पाता है लेकिन अब लोग इसके साइड इफैक्ट के प्रति जागरुक हो रहे हैं। खन्ना के मुताबिक गन्ने के अलावा सेब व अंगूर से भी यह सिरका तैयार किया जा सकता है।दस लीटर सिरका तैयार करने के लिए 10 लीटर गन्ने का रस (या जूस) उबाल लिया जाता है। सिरका बनाने के लिए इसमें खमीरण व एक अन्य तत्व (खास किस्म का बैक्टारिया) मिलाने की जरूरत होती है। ये दोनों वस्तुएं यूनीवर्सिटी खुद ही सुलभ करा रही है। यह खमीरण भी गुड़ से तैयार होता है इसमें कोई केमिकल नहीं रहता है। खमीरण की एक बोतल (750 मिलीलीटर) और दूसरे तत्व का मूल्य 150 रुपये यूनीवर्सिटी लेती है। खमीरण डालकर रस को खमीर बनने दिया जाता है। ठंडा होने के लिए रस में एक दिन बाद खमीर मिलाया जाता है। इसकी मात्रा व तरीका यूनिवर्सिटी का स्टाफ खुद बताता है। इसके बाद इस जूस को तीन-चार दिन के लिए ऐसी जगह रख दिया जाता है जहां का तापमान 25 से 30 डिग्री के बीच हो। इसके बाद इसे छानकर साफ बर्तन में निकाल लिया जाता है और छठे दिन इसमें विशेष बैक्टीरिया वाले तत्व (तरल पदार्थ) थोड़ी मात्रा में डाला जाता है। साथ ही इसमें पुराने सिरका (पहले से तैयार ऐसे ही सिरका) की कुछ मात्रा भी मिला दी जाती है। इसके बाद इस प्रक्रिया को सात दिनों के लिए फिर चलने दिया जाता है। 14वें दिन सिरके के ऊपर एक झिल्ली बन जाती है। जिसे हटाकर ठंडी जगह पर रख दिया जाता है। 22वें दिन सिरका तैयार हो जाता है। जिसे उपयोग में लाया जा सकता है। इसे साफ बोतलों में भरकर रखा जा सकता है। डॉ. खन्ना के मुताबिक इस इस प्रक्रिया में 10 लीटर सिरका बनाने में करीब 250 रुपए का खर्च होता है। इसमें करीब 50 रुपए का गन्ने का रस, 150 रुपए की बोतल खमीरण की, 10 बोतल की कीमत क रीब 30 रुपए एवं रस उबालने के लिए ईंधन खर्च 20 रुपए पड़ता है। डॉ. खन्ना के मुताबिक सिरका बनाने की विधि यूनीवर्सिटी की एक टीम ने विकसित की है। जिसमें माइक्रोबायोलॉजी विभाग के डॉ. जी.एस कोछड़, आरपी फुटेला व डॉ. केएल कालड़ा शामिल थे। बाजार में बिक रहे मौजूदा सिरके की बात की जाए तो वह सिंथेटिक होता है। जिसे काफी लोग सीधे ही एसिड को हलका कर तैयार कर रहे हैं। उससे सेहत को नुकसान पहुंच सकता है जबकि जूस से तैयार होने वाला सिरका पूरी तरह फायदेमंद है। इस सिरके का उपयोग भोजन की सुरक्षा, आचार बनाने के लिए, सब्जियों व सलाद में डालने के लिए किया जा सकता है। इसी वजह से ही पंजाब स्टेट काउंसिल फॉर साइंस एंड टैक्नोलॉजी किसानों को यूनीवर्सिटी से ट्रेनिंग दिलाने के लिए आगे भी पहल कर रही है। (Business Bhaskar)
कृषि विकास दर 4.5 फीसदी : पवार
सकल घरेलू उत्पादन में गिरावट की आशंका के बावजूद भारत में कृषि विकास दर में वृद्धि की उम्मीद जताई जा रही है। इस बात की जानकारी देते हुए केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने बताया कि चालू वित्त वर्ष के दौरान कृषि विकास दर साढ़े चार फीसदी तक रह सकती है। कृषि मंत्री के मुताबिक मौजूदा समय में रबी फसलों की स्थिति बेहतर है। इससे आसानी से साढ़े चार फीसदी की कृषि विकास दर हासिल की जा सकती है। उन्होंने बताया कि यह स्थिति देश के कई राज्यों में मानसून में देरी के बावजूद देखी जा रही है। पावर के मुताबिक पिछले तीन सालों से कृषि क्षेत्र का लगातार विकास हो रहा है। पिछले साल भी देश की कृषि विकास दर करीब साढ़े चार फीसदी रही है। इस क्रम में इस साल भी स्थिति सकारात्मक है।गेहूं के रकबे में किसी भी तरह की गिरावट की बातों को दरकिनार करते हुए उन्होंने कहा कि साल 2009 के दौरान भी गेहूं के उत्पादन में इजाफा हो सकता है। इस क्रम में केंद्र सरकार किसानों और कृषि आयुक्तो से लगातार संपर्क में है। अब तक की रिपोर्ट के मुताबिक गेहूं का रकबा और फसल की स्थिति संतोषजनक है। देश में चीनी उत्पादन पर पवार ने कहा कि महाराष्ट्र, गुजरात, आंध्रप्रदेश और कर्नाटक में मानसून में देरी होने की वजह से इस साल चीनी के उत्पादन में पिछले साल के मुकाबले गिरावट आ सकती है।हालांकि पिछले साल के110 लाख टन के बकाया स्टॉक की वजह से उत्पादन में गिरावट के बावजूद घरलू बाजारों में चीनी की पर्याप्त उपलब्धता रहेगी। कॉटन के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर उन्होंने कहा कि समर्थन मूल्य में कटौती का कोई प्रस्ताव सरकार के सामने नहीं आया है। ज्ञात हो कि जिनरों ने कॉटन के एमएसपी में कटौती की मांग की है। ऊंचे एमएसपी की वजह से बिनौला और धुनी रुई की बेहतर कीमतें उन्हें नहीं मिल पा रही हैं। पावर ने कहा किकीमतों को एमएसपी से नीचे आने से रोकने के लिए तीन सरकारी एजेंसियां खरीदी कर रही हैं। कृ षि जिंसों के वायदा पर लगे प्रतिबंध के बार में उन्होंने कहा कि यह प्रतिबंध महज नवंबर तक के लिए है। अवधि समाप्त होने के बाद यदि आयोग इसे आगे नहीं बढ़ाता है तो वायदा कारोबार पर लगा प्रतिबंध खुद समाप्त हो जाएगा। इस साल के शुरूआत में बढ़ती महंगाई का हवाला देकर सरकार ने चना, रबर, आलू और सोया तेल के वायदा कारोबार पर प्रतिबंध लगा दिया था। वाण्ज्यि सचिव जीके पिल्लई ने कहा कि कॉटन के समर्थ मूल्य में त्तक्क् रुपये की बढ़ोतरी असाधारण। सरकार इस पर कर सकती है विचार । (Business Bhaskar)
शुल्क लगने के अंदेशे से अक्टूबर में पाम तेल का जमकर आयात
पाम तेल पर आयात शुल्क लगने की संभावना को देखते हुए कंपनियों ने अक्टूबर में जमकर पाम तेल का आयात किया। इस महीने में पाम तेल का आयात पिछले महीनों के औसत आयात की तुलना में करीब 44 फीसदी बढ़ गया है।साल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन द्वारा एकत्रित आंकड़ों के अनुसार इस साल अक्टूबर महीने में पाम तेल का कुल आयात 6.45 लाख टन हुआ है। जिसमें 4.52 लाख टन कच्च पाम तेल और 1.93 लाख टन रिफाइंड पाम तेल का आयात हुआ है जबकि इस साल औसतन हर माह 4.50 लाख टन पाम तेल का आयात हुआ है। इसी साल सितंबर में करीब 4.69 लाख टन पाम तेल का आयात हुआ था। पाम तेल के आयात में आए इस उछाल के पीछे खाद्य तेलों पर लगने वाले आयात शुल्क की संभावना को माना जा रहा है। किंतु केंद्र सरकार द्वारा पाम तेल पर आयात शुल्क न लगाने से कंपनियों को आयातित पाम तेल पर नुकसान उठाना पडेगा। ेलेकिन सरकार ने पाम तेल के आयात पर कोई शुल्क नहीं लगाया। केवल कच्चे सोया तेल पर 20 फीसदी का आयात शुल्क लगाया है। आयात शुल्क न लगने के बाद कंपनियों को इस पर काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है। अक्टूबर के दौरान आयातित पाम तेल का औसत दाम 550 डॉलर प्रति टन था जबकि इस समय पॉम तेल के दाम 475 डॉलर प्रति टन के स्तर पर है। इस महीने में ज्यादा पाम तेल आयात करने वाली प्रमुख कंपनियां रुचि सोया, कारगिल, अदानी विलमर, झुनझुनवाला वनस्पति, लिबर्टी, गोकुल कांचन ऑयल और कानपुर एडीबिल ऑयल है। इन्होनें पहले की तुलना में काफी ज्यादा मात्रा में पाम तेल का आयात किया।सरकार द्वारा टैक्स न लगाने के कारण कंपनियां बंदरगाहों से तेल उठाने में ज्यादा जल्दबाजी नहीं दिखा रही हैं। कई कंपनियों ने आयातित पाम तेल बंदरगाहों से नहीं उठाया है। हालांकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में इस दौरान पाम तेल के भाव घटने से उन्हें नुकसान जरूर हो रहा है। (Business Bhaskar)
महीने भर में रबर के भाव 29 फीसदी गिर
रबर की कीमतों में पिछले चार महीनों से लगातर गिरावट जारी है। घरलू बाजारों में प्राकृतिक रबर के भाव ऊंचा स्तर से करीब 80 रुपये प्रति किलो तक टूट चुके हैं। पिछले महज एक सप्ताह के दौरान कीमतों में करीब 29 फीसदी की गिरावट दर्ज हुई है। पिछले सप्ताह शुक्रवार को कोट्टायम में आरएसएस4 रबर करीब 62 रुपये प्रति किलो के भाव बिका। इस साल 20 अक्टूबर को यहां आरएसएस4 रबर 86.50 रुपये किलो बिका था। रबर बोर्ड के मुताबिक वैव्श्रिक बाजारों के साथ घरलू बाजारों में भी मांग में आई कमी की वजह से कीमतों में गिरावट देखी जा रही है। दरअसल वित्तीय मंदी की वजह से घरलू टायर कंपनियों ने भी अपने उत्पादन में करीब 20 फीसदी की कटौती की हैं। जिसका असर रबर की मांग पर देखा जा रहा रहा है। इस दौरान सिंथेटिक रबर की कीमतों में भी गिरावट का दौर जारी है। वैव्श्रिक बाजारों में भी मांग में आई कमी की वजह से भारतीय रबर का निर्यात प्रभावित हो रहा है। इस दौरान वैव्श्रिक बाजारों में भी रबर की कीमतों में तगड़ी गिरावट दर्ज हुई है।पिछले सप्ताह के अंतिम कारोबारी दिवस को बैंकॉक में आरएसएस1 रबर करीब 166.45 डॉलर प्रति `िं टल बिका। इस महीने के तीन तारीख को वहां इसका भाव करीब 199.20 डॉलर प्रति `िंटल था। वहीं पिछले सप्ताह में कुआलालंपुर में रबर एसएमआर-20 का भाव करीब 158.90 डॉलर प्रति `िंटल रहा। जानकारों के मुताबिक वैव्श्रिक बाजारों में कच्चे तेल की कीमतों में आ रही गिरावट और टायर कंपनियों की मांग में आ रही लगातर कमी की वजह से रबर की कीमतें गिरती जा रही हैं। माना यह जा रहा है कि मांग और भाव में आ रही गिरावट की वजह से भारत में रबर आयात और निर्यात पर असर पड़ सकता है।ऐसे हालात में भारतीय रबर बोर्ड भी आयात और निर्यात के अनुमान की समीक्षा को लेकर वेट एंड वाच का रुख अपनाए हुए है। रबर बोर्ड के अध्यक्ष सजेन पीटर के मुताबिक टायर कंपनियों ने अपने उत्पादन में करीब 20 फीसदी की कटौती किया है। ऐसे में रबर की मांग लगातार घटती जा रही है। उन्होंने बताया कि मौजूदा हालात पर बोर्ड पूरी तरह से नजर बनाए हुए है। लेकिन फिलहाल किसी अनुमान के बार में कुछ भी नहीं कहा जा सकता है। उन्होंने कहा कि चालू वित्त वर्ष के पहले छह महीनों के दौरान घरलू बाजारों में रबर करीब 123 रुपये किलो के औसत भाव पर बिका है। जो पिछले साल के मुकाबले काफी ज्यादा है। लिहाजा मौजूदा गिरावट में च्यादा नुकसान की आशंका कम है। बहरहाल वैव्श्रिक बाजारों में रबर की गिरती कीमतों को लेकर दुनिया के कमोबेश सभी उत्पादक देश चिंतित हैं। अगले सप्ताह इस मसले पर बैंकॉक में रबर उत्पादक देशों के संगठन की एक बैठक होने वाली है। जिसमें भारत, चीन, इंडोनेशिया, श्रीलंका, थाईलैंड और वियतनाम को शामिल होने की उम्मीद है। इस साल जुलाई के बाद से रबर की कीमतों में लगातार गिरावट हो रही है।12 जुलाई के बाद कच्चे तेल की कीमतों में लगातार गिरावट जारी रहने से सबसे पहले प्रकृ तिक रबर की मांग में कमी आई। क्योंकि सिंथेटिक रबर की कीमतें तुलनात्मक रुप से कम रहने की वजह से उपभोक्ता कंपनियाों की मांग प्राकृतिक रबर में घट गई। जिसका असर घरलू रबर क कीमतों में ज्यादा दिखा। वही इसके बाद से वैव्श्रिक स्तर पर छाई मंदी की वजह से मांग और घटती चली गई। ऐसे में रबर की मांग घटती जा रही है। जिससे भाव गिरते जा रहे हैं। (BS Hindi)
हल्दी में तेजी का रुख बरकरार
हल्दी का उत्पादक मंडियों में बकाया स्टॉक अच्छा होने के साथ ही आने वाली नई फसल का उत्पादन भी गत वर्ष से ज्यादा होने के बावजूद स्टॉकिस्टों की सक्रियता से तेजी का रूख बना हुआ है। पिछले एक महीने में इरोड़ मंडी में हल्दी के भावों में 150 से 200 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी आकर भाव 4000 से 4100 रुपये प्रति क्विंटल हो गए।इरोड़ मंडी के हल्दी व्यापारी सुभाष गुप्ता ने बिजनेस भास्कर को बताया कि बुवाई क्षेत्रफल में हुई बढ़ोतरी और अक्टूबर महीने में उत्पादक क्षेत्रों में हुई वर्षा से आने वाली नई फसल का उत्पादन गत वर्ष के 43 लाख बोरी (एक बोरी 70 किलो) से बढ़कर 45 लाख बोरी होने की उम्मीद है। उन्होंने बताया कि मंडी में इस समय हल्दी की दैनिक आवक 7000 से 8000 बोरियों की हो रही है लेकिन स्टॉकिस्टों की सक्रियता से इसके भावों में तेजी बनी हुई है। उत्तर भारत के पहाड़ी इलाकों में बर्फ गिरने और तेज सर्दी का समय आ गया है इसलिए इन क्षेत्रों की हल्दी में मांग घटने की संभावना है। अत: आगामी दिनों में इसके मौजूदा भावों में 100 से 150 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट भी आ सकती है।निजामाबाद मंडी के हल्दी व्यापारी पूनम चंद गुप्ता ने बताया कि इस समय उत्पादक मंडियों में हल्दी का बकाया स्टॉक इरोड़ में चार लाख बोरी, डुग्गीराला में दो लाख बोरी, निजामाबाद में 60,000 हजार बोरी, वारंगल में 75,000 हजार बोरी, सांगली में डेढ़ लाख बोरी, नानंदेड़ में 75,000 हजार बोरी तथा अन्य मंडियों में एक लाख बोरी मिलाकर कुल स्टॉक लगभग 10.5 से 11 लाख बोरियों का बचा हुआ है। उत्पादक मंडियों में नई फसल की आवक 15 जनवरी के बाद शुरू हो जाएगी तथा आवकों का दबाव फरवरी महीने के प्रथम पखवाड़े में बन जाएगा। उन्होंने बताया कि नई फसल की आवकों के समय उत्पादक मंडियों में हल्दी का बकाया स्टॉक करीब पांच से छ: लाख बोरी बचने के उम्मीद है। निजामाबाद मंडी में हल्दी के भाव साप्ताहांत तक 3850 से 3900 रुपये प्रति क्विंटल पर मजबूत बने हुए थे। उन्होंने बताया कि स्टॉकिस्टों की बिकवाली कम आने से इस समय हल्दी के भाव तेज बने हुए हैं लेकिन 15 दिसंबर के बाद स्टॉकिस्टों की बिकवाली शुरू हो जाएगी जिससे भावों में मंदे की रूख बन सकता है। सांगली में राजापुरी पावडर क्वालिटी की हल्दी के भाव 5000 से 5200 रुपये, देसी कडप्पा के भाव 4500 से 4700 रुपये और सेलम के भाव 5200 से 5400 रुपये प्रति क्विंटल पर मजबूती लिए रहे। भारतीय मसाला बोर्ड के सूत्रों के अनुसार चालू वित्त वर्ष में अप्रैल से अगस्त महीने तक हल्दी का निर्यात बढ़कर 24,500 टन का हो चुका है तथा इसमें बीते वर्ष की समान अवधि के मुकाबले सात फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। (BS Hindi)
नहीं बिक रहा एफसीआई का गेहूं
भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) पंजाब के खुले बाजार में गेहूं नहीं बेच पाने के कारण इन दिनों खासा परेशान है। खुले बाजार से खरीदारों को गेहूं सभी खर्चे मिलाकर तकरीबन 1200 रुपये क्विंटल पड़ रहा है, जबकि एफसीआई का गेहूं करीब 1300 रुपये प्रति क्विंटल पड़ रहा है।एफसीआई के पंजाब क्षेत्रीय कार्यालय ने तकरीबन दो महीने पहले 40 हजार टन गेहूं खुले बाजार में बेचे जाने का टेंडर निकाला। इसके लिए तय किये गये भाव 1021 रुपये प्रति क्विंटल (स्त्र फीसदी वैट अलग से) पर भी अभी तक एफसीआई मात्र 12 हजार टन गेहूं खुले बाजार मंे बेच पाई है। ऊपर से इस बार हुई गेहूं की बम्पर फसल एफसीआई के लिए मुसीबत बनी हुई है। पंजाब में एफसीआई की भंडारण क्षमता 105 लाख टन कवर्ड स्थान और 60 लाख टन पलिंथ खुले स्थान की है। आज के दिन भी एफसीआई का 48 लाख टन गेहूं खुले में पड़ा है। इस बार पंजाब में सरकारी एंजेसिंयों ने 100 लाख टन गेहूं की खरीद की थी। एफसीआई के पास दो साल पुराना 12 लाख टन गेहूं भी बिक्री के इतंजार में पड़ा है।भंडारण क्षमता से अधिक गेहूं और धान के चलते एफसीआई के पंजाब कार्यालय ने केन्द्र को भंडारण क्षमता बढ़ाने के लिए नहीं कहा है। एफसीआई के पंजाब क्षेत्र के महाप्रबन्धक सर्वजीत सिंह ने कहा कि उन्होंने केन्द्र को राज्य में एफसीआई की भंडारण क्षमता बढ़ाने की बजाय खाद्यान्नों के जल्द उठान की सिफारिश की है। सर्वजीत सिंह ने बिजनेस भास्क र को बताया कि केन्द्र को पत्र लिख कर मांग की गई है कि पंजाब से 50 लाख टन गेहूं खुले बाजार में बेचने या जन वितरण प्रणाली के लिए जल्द उठाया जाए, ताकि इसे खराब होने से बचाया जा सके। उन्होंने बताया कि एफसीआई द्वारा चार साल पुराने एक लाख टन चावल को बेचने के लिए टेंडर निकाले गए, जिसमें से 68 हजार टन चावल 1021 रुपये क्विंटल के भाव पर बेचा जा चुका है। (Business Bhaskar)
व्यापारियों-मिल मालिकों ने खरीदा 60 फीसदी कम धान
गैर बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध और अमेरिका और यूरोप के बाजार में मंदी का असर इस बार पंजाब के राइस मिल्र्स और चावल निर्यातकों पर साफ दिख रहा है। पंजाब के राइस मिल्र्स और व्यापारियों ने इस बार पिछले साल की तुलना में 60 फीसदी कम धान की खरीद की है। भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) द्वारा जुटाए गये ताजे आंकड़ों के अनुसार इस बार 20 नवंबर तक पंजाब की मंडियों में 151 लाख टन धान की आवक हो चुकी है जिसमें से मात्र 10 लाख टन यहां के मिल्र्स और व्यापारियों ने खरीदा है। पिछले साल यहां की मंडियों मंे आए 143 लाख टन धान में से व्यापारियों और मिल्र्स द्वारा 23 लाख टन धान की खरीद की गई थी। व्यापारियों द्वारा इस साल 60 फीसदी कम खरीदारी करने के सवाल पर पंजाब राइस मिल्र्स एसोसिएशन के अध्यक्ष तरसेम सैनी ने कहा कि पंजाब में धान की खरीद पर पड़ोसी राज्य हरियाणा की तुलना में कर 4 फीसदी अधिक है। राज्य सरकार ने इस बार 2 फीसदी आरडीएफ (रूरल डवलपमेंट फंड) अलग से लगा दिया है, जबकि 2 फीसदी पीआईडीएफ (पंजाब इन्फ्रास्ट्रक्चर डवलपमेंट फंड) पहले से ही लिया जा रहा है। इसके अलावा यहां मार्केट फीस भी 2 फीसदी है जो पड़ोसी राज्य हरियाणा में एक फीसदी है। यहां आढ़ती कमीशन भी ढ़ाई फीसदी है जो अन्य राज्यों में एक से ढ़ेड फीसदी है।सैनी का कहना है कि गैर बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबन्ध, अमेरिका और यूरोप के बाजार में मंदी के चलते और सरकार द्वारा चावल का लेवी रट कम दिए जाने से इस बार राइस मिल्र्स ने अपना धान खरीदने के बजाय सरकारी धान की मिलिंग करने में ही भलाई समझी है। वहीं, एफसीआई द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों अनुसार इस बार पंजाब की मंडियों में बासमती धान की आवक पिछले साल की तुलना में तकरीबन चार गुना बढ़ गई है। पिछले साल यहां की मंडियों में 2.त्त लाख टन बासमती धान की आवक हुई थी जो इस बार 11 लाख टन है। पंजाब की मंडियों में अभी तक 151 लाख टन की आवक हो चुकी है जिसमें से 11 लाख टन धान की खरीद एमएसपी घोषित होने से पहले ही मंडियों में बिक्री के लिए आ गई थी, जबकि 130 लाख टन एमएसपी घोषित होने के बाद आई है। इसमें से सरकारी एंजेंसियों अभी तक 120 लाख टन धान की खरीद की गई है। एफसीआई पंजाब क्षेत्र के महाप्रबन्धक सर्वजीत सिंह ने बताया कि इस बार एफसीआई ने 2.ख् लाख टन धान की खरीद की है जबकि पिछली बार 1.ब् लाख टन धान की खरीद की गई थी। (Business Bhaskar)
घटी मांग से सीमेंट में आई थोड़ी नरमी
मुंबई/कोलकाता November 24, 2008
सीमेंट की कम मांग की वजह से देश के पूर्वी भाग में नवंबर में सीमेंट की कीमतें 10-12 रुपये प्रति 50 किलोग्राम सस्ती हो गई है।
देश के उत्तरी और दक्षिणी बाजारों में यह गिरावट 2 से 4 रुपये प्रति बोरी (एक बोरी=50 किलोग्राम) की रही है। कोलकाता के एक डीलर ने कहा कि सीमेंट की कीमतों में 10 से 15 फीसदी की गिरावट से अब यह 240 रुपये प्रति बोरी के खुदरा मूल्य पर उपलब्ध है। अगर देश के पूर्वी भाग के थोक बाजारों की बात करें, तो सीमेंट 210 से 230 रुपये प्रति बोरी पर मिल रहा है। कोलकाता के डीलरों ने यह संकेत दिया है कि एसीसी और अंबुजा जैसी दिग्गज सीमेंट निर्माता कंपनियों ने अंकित मूल्य पर 10 रुपये प्रति बैग की कमी कर दी है।सूत्रों का कहना है कि ओरिएंट सीमेंट लिमिटेड जैसी मझोली सीमेंट निर्माता कंपनी भी डीलरों को 210 रुपये प्रति बोरी की दर से सीमेंट दे रही है। देश के उत्तरी बाजारों में बड़ी सीमेंट कंपनियों ने जहां सीमेंट की कीमतों में प्रति बैग 2 रुपये की कमी की है, वहीं मझोली कंपनियों ने 3 से 4 रुपये प्रति बोरी की कमी की है। दिल्ली के बाजारों में सीमेंट का थोक मूल्य 215 से 230 रुपये प्रति बोरी है। श्री सीमेंट के प्रबंध निदेशक और सीमेंट मैन्यूफैक्चरर्स एसोसिएयशन के अध्यक्ष एच. एम. बांगुर ने बताया कि कंपनियां सीमेंट का स्टॉक खत्म करना चाहती है। इसी वजह से इसकी कीमत में कमी की गई है।' हालांकि बिनानी सीमेंट के प्रबंध निदेशक विनोद जुनेजा कहते हैं, 'कंपनियां उपभोक्ताओं को छूट दे रही है।' डीलरों का कहना है कि चेन्नई में सीमेंट 4 रुपये प्रति बोरी सस्ता हुआ है और अब प्रति बोरी कीमत 253-254 रुपये हो गई है। अगर खुदरा बिक्री की बात करें, तो चेन्नई में सीमेंट 265 से 280 रुपये प्रति बोरी है, जबकि हैदराबाद में यह 225 से 240 रुपये प्रति बोरी में बिक रहा है। इस लिहाज से पश्चिमी और मध्य बाजार हीं ऐसे हैं, जहां सीमेंट की कीमतंट स्थिर है। मुंबई के खुदरा बाजार में अभी भी 258 रुपये प्रति बोरी की दर से सीमेंट बिक रहा है। (BS Hindi)
सीमेंट की कम मांग की वजह से देश के पूर्वी भाग में नवंबर में सीमेंट की कीमतें 10-12 रुपये प्रति 50 किलोग्राम सस्ती हो गई है।
देश के उत्तरी और दक्षिणी बाजारों में यह गिरावट 2 से 4 रुपये प्रति बोरी (एक बोरी=50 किलोग्राम) की रही है। कोलकाता के एक डीलर ने कहा कि सीमेंट की कीमतों में 10 से 15 फीसदी की गिरावट से अब यह 240 रुपये प्रति बोरी के खुदरा मूल्य पर उपलब्ध है। अगर देश के पूर्वी भाग के थोक बाजारों की बात करें, तो सीमेंट 210 से 230 रुपये प्रति बोरी पर मिल रहा है। कोलकाता के डीलरों ने यह संकेत दिया है कि एसीसी और अंबुजा जैसी दिग्गज सीमेंट निर्माता कंपनियों ने अंकित मूल्य पर 10 रुपये प्रति बैग की कमी कर दी है।सूत्रों का कहना है कि ओरिएंट सीमेंट लिमिटेड जैसी मझोली सीमेंट निर्माता कंपनी भी डीलरों को 210 रुपये प्रति बोरी की दर से सीमेंट दे रही है। देश के उत्तरी बाजारों में बड़ी सीमेंट कंपनियों ने जहां सीमेंट की कीमतों में प्रति बैग 2 रुपये की कमी की है, वहीं मझोली कंपनियों ने 3 से 4 रुपये प्रति बोरी की कमी की है। दिल्ली के बाजारों में सीमेंट का थोक मूल्य 215 से 230 रुपये प्रति बोरी है। श्री सीमेंट के प्रबंध निदेशक और सीमेंट मैन्यूफैक्चरर्स एसोसिएयशन के अध्यक्ष एच. एम. बांगुर ने बताया कि कंपनियां सीमेंट का स्टॉक खत्म करना चाहती है। इसी वजह से इसकी कीमत में कमी की गई है।' हालांकि बिनानी सीमेंट के प्रबंध निदेशक विनोद जुनेजा कहते हैं, 'कंपनियां उपभोक्ताओं को छूट दे रही है।' डीलरों का कहना है कि चेन्नई में सीमेंट 4 रुपये प्रति बोरी सस्ता हुआ है और अब प्रति बोरी कीमत 253-254 रुपये हो गई है। अगर खुदरा बिक्री की बात करें, तो चेन्नई में सीमेंट 265 से 280 रुपये प्रति बोरी है, जबकि हैदराबाद में यह 225 से 240 रुपये प्रति बोरी में बिक रहा है। इस लिहाज से पश्चिमी और मध्य बाजार हीं ऐसे हैं, जहां सीमेंट की कीमतंट स्थिर है। मुंबई के खुदरा बाजार में अभी भी 258 रुपये प्रति बोरी की दर से सीमेंट बिक रहा है। (BS Hindi)
'नहीं आएगी चीनी आयात की नौबत'
मुंबई November 24, 2008
पिछले साल के जमा 1 करोड़ टन के भंडार के चलते कृषि और खाद्य मंत्री शरद पवार को उम्मीद है कि इस साल सफेद (परिष्कृत) चीनी के आयात की जरूरत नहीं पड़ेगी।
पवार के मुताबिक, इस बात की पूरी संभावना है कि इस साल 2.1 से 2.2 करोड़ टन चीनी की कुल मांग की पूर्ति आसानी से हो जाएगी। ऐसे में इस साल सफेद चीनी के आयात की जरूरत नहीं होगी। पवार रविवार को कमोडिटी एक्सचेंजों के सातवें राष्ट्रीय सम्मेलन के उद्धाटन समारोह को संबोधित कर रहे थे।हालांकि पवार ने चेताया कि सीजन 2004-05 जैसी मौजूदा स्थिति की समीक्षा की जा सकती है। गौरतलब है कि तब कच्ची चीनी के बजाय सफेद चीनी का आयात किया गया था। पवार ने बताया कि इस बार उम्मीद है कि देश में चीनी का उत्पादन पिछले साल के रिकॉर्ड 2.8 करोड़ टन की तुलना में घटकर महज 1.8 से 1.9 करोड़ टन रह जाएगा। उत्पादन में गिरावट की वजह मानसून लौटने में देरी के साथ ही पेराई में देर होना है। इस वजह से खेतों में नमी ज्यादा रही है जिसके चलते पेराई में देरी हो रही है और उत्पादकता कम होने की संभावना है। पवार के मुताबिक, महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और गुजरात में पेराई देर से शुरू होने और खेतों में बहुत ज्यादा नमी होने से उत्पादन में कमी होने जा रही है। पवार ने बताया कि इस बार गेहूं का उत्पादन पिछले साल के 7.84 करोड़ टन के स्तर को हर हाल में छू लेगा। उन्होंने कहा कि रकबे में कमी के बावजूद गेहूं का उत्पादन पिछले साल जितना जरूर रहेगा। इस साल तो सरकार ने पिछले साल से भी एक लाख टन ज्यादा यानी कुल 7.85 करोड़ टन गेहूं पैदा करने का लक्ष्य रखा है। उन्होंने बताया कि मानूसन लौटने में देर होने से उत्तर प्रदेश में गन्ने की पेराई में देरी हुई है। इसलिए उत्तर प्रदेश में गेहूं के रकबे में कमी की आशंका जताई जा रही है। पवार का मानना है कि इस वजह से बुआई में देरी तो हो सकती है पर रकबे में कोई खास कमी नहीं होगी। पवार ने इनकार किया कि हाल ही में सोया तेल पर लगाए गए 20 फीसदी के सीमा शुल्क की तरह पाम तेल पर आयात शुल्क लगाने की उनकी कोई योजना है। उन्होंने कहा कि हम पूरे मामले पर गहरी नजर रख रहे हैं। यदि तिलहन की कीमतें कभी न्यूनतम समर्थन मूल्य से नीचे गईं तो सरकार इससे जुड़े लोगों के हित में कदम उठाएगी। बहरहाल तिलहन की कीमतें एमएसपी स्तर से ऊंची हैं। (BS Hindi)
पिछले साल के जमा 1 करोड़ टन के भंडार के चलते कृषि और खाद्य मंत्री शरद पवार को उम्मीद है कि इस साल सफेद (परिष्कृत) चीनी के आयात की जरूरत नहीं पड़ेगी।
पवार के मुताबिक, इस बात की पूरी संभावना है कि इस साल 2.1 से 2.2 करोड़ टन चीनी की कुल मांग की पूर्ति आसानी से हो जाएगी। ऐसे में इस साल सफेद चीनी के आयात की जरूरत नहीं होगी। पवार रविवार को कमोडिटी एक्सचेंजों के सातवें राष्ट्रीय सम्मेलन के उद्धाटन समारोह को संबोधित कर रहे थे।हालांकि पवार ने चेताया कि सीजन 2004-05 जैसी मौजूदा स्थिति की समीक्षा की जा सकती है। गौरतलब है कि तब कच्ची चीनी के बजाय सफेद चीनी का आयात किया गया था। पवार ने बताया कि इस बार उम्मीद है कि देश में चीनी का उत्पादन पिछले साल के रिकॉर्ड 2.8 करोड़ टन की तुलना में घटकर महज 1.8 से 1.9 करोड़ टन रह जाएगा। उत्पादन में गिरावट की वजह मानसून लौटने में देरी के साथ ही पेराई में देर होना है। इस वजह से खेतों में नमी ज्यादा रही है जिसके चलते पेराई में देरी हो रही है और उत्पादकता कम होने की संभावना है। पवार के मुताबिक, महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और गुजरात में पेराई देर से शुरू होने और खेतों में बहुत ज्यादा नमी होने से उत्पादन में कमी होने जा रही है। पवार ने बताया कि इस बार गेहूं का उत्पादन पिछले साल के 7.84 करोड़ टन के स्तर को हर हाल में छू लेगा। उन्होंने कहा कि रकबे में कमी के बावजूद गेहूं का उत्पादन पिछले साल जितना जरूर रहेगा। इस साल तो सरकार ने पिछले साल से भी एक लाख टन ज्यादा यानी कुल 7.85 करोड़ टन गेहूं पैदा करने का लक्ष्य रखा है। उन्होंने बताया कि मानूसन लौटने में देर होने से उत्तर प्रदेश में गन्ने की पेराई में देरी हुई है। इसलिए उत्तर प्रदेश में गेहूं के रकबे में कमी की आशंका जताई जा रही है। पवार का मानना है कि इस वजह से बुआई में देरी तो हो सकती है पर रकबे में कोई खास कमी नहीं होगी। पवार ने इनकार किया कि हाल ही में सोया तेल पर लगाए गए 20 फीसदी के सीमा शुल्क की तरह पाम तेल पर आयात शुल्क लगाने की उनकी कोई योजना है। उन्होंने कहा कि हम पूरे मामले पर गहरी नजर रख रहे हैं। यदि तिलहन की कीमतें कभी न्यूनतम समर्थन मूल्य से नीचे गईं तो सरकार इससे जुड़े लोगों के हित में कदम उठाएगी। बहरहाल तिलहन की कीमतें एमएसपी स्तर से ऊंची हैं। (BS Hindi)
वायदा कारोबार में कृषि जिंसों का घटता हिस्सा चिंता का सबब: पवार
मुंबई November 24, 2008
मौजूदा वित्त वर्ष में कृषि क्षेत्र की विकास दर पिछले साल के 4 फीसदी के आसपास रहने के बावजूद वायदा कारोबार में कृषि जिंसों की घटती हिस्सेदारी चिंता का विषय है।
यह बात केंद्रीय कृषि और खाद्य मंत्री शरद पवार ने रविवार को कमोडिटी एक्सजेंजों के सातवें राष्ट्रीय सम्मेलन के उद्धाटन के मौके पर कही। पवार ने कहा कि इसके लिए सरकार की ओर से कई जिसों के वायदा कारोबार पर लगाई गई पाबंदी को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, लेकिन यह सही बात नहीं होगी। यह तो पूरे परिदृश्य का एक हिस्सा मात्र है। पवार के मुताबिक, ऐसे में जरूरी हो जाता है कि विशेष प्रयास किए जाएं ताकि लाभ कृषि और किसानों को मिले। मालूम हो कि पिछले साल की तुलना में इस साल अक्टूबर में राष्ट्रीय एक्सचेंजों में जिंसों के वायदा कारोबार में 22 फीसदी का उछाल आया है। इसके बावजूद कृषि जिंसों की हिस्सेदारी में करीब 34 फीसदी घट गई है। फिलहाल देश के तीनों राष्ट्रीय कमोडिटी एक्सचेंजों में जिंसों के कुल वायदा कारोबार का 95 फीसदी कारोबार होता है। इस बार अक्टूबर महीने में इन एक्सचेंजों का कुल कारोबार 3,97,237 करोड़ रुपये रहा, जबकि पिछले साल इस दौरान इन एक्सचेंजों का कारोबार 3,23,182 करोड़ रुपये था। इसके बावजूद, वायदा कारोबार में कृषि जिंसों की हिस्सेदारी पिछले साल अक्टूबर के 52,462 करोड़ रुपये से घटकर इस अक्टूबर में महज 34,461 करोड़ रुपये रह गई। पवार ने कहा कि 2003 में वायदा कारोबार के दुबारा शुरू होने से अब तक इस कारोबार में करीब 6,000 फीसदी का उछाल आ चुका है। गौरतलब है कि वायदा कारोबार पर लगी पाबंदी 2003 में उठाई गई थी। तब करीब चालीस सालों बाद देश में वायदा कारोबार को दुबारा शुरू किया गया था। पवार ने बताया कि यह काफी मुश्किल काम है। वायदा बाजार आयोग हो या कोई एक्सचेंज; किसी के लिए भी इस मामले में कुछ खास करने को नहीं है, जब तक कि राज्य सरकारों की इसमें प्रत्यक्ष भागीदारी नहीं होगी। (BS Hindi)
मौजूदा वित्त वर्ष में कृषि क्षेत्र की विकास दर पिछले साल के 4 फीसदी के आसपास रहने के बावजूद वायदा कारोबार में कृषि जिंसों की घटती हिस्सेदारी चिंता का विषय है।
यह बात केंद्रीय कृषि और खाद्य मंत्री शरद पवार ने रविवार को कमोडिटी एक्सजेंजों के सातवें राष्ट्रीय सम्मेलन के उद्धाटन के मौके पर कही। पवार ने कहा कि इसके लिए सरकार की ओर से कई जिसों के वायदा कारोबार पर लगाई गई पाबंदी को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, लेकिन यह सही बात नहीं होगी। यह तो पूरे परिदृश्य का एक हिस्सा मात्र है। पवार के मुताबिक, ऐसे में जरूरी हो जाता है कि विशेष प्रयास किए जाएं ताकि लाभ कृषि और किसानों को मिले। मालूम हो कि पिछले साल की तुलना में इस साल अक्टूबर में राष्ट्रीय एक्सचेंजों में जिंसों के वायदा कारोबार में 22 फीसदी का उछाल आया है। इसके बावजूद कृषि जिंसों की हिस्सेदारी में करीब 34 फीसदी घट गई है। फिलहाल देश के तीनों राष्ट्रीय कमोडिटी एक्सचेंजों में जिंसों के कुल वायदा कारोबार का 95 फीसदी कारोबार होता है। इस बार अक्टूबर महीने में इन एक्सचेंजों का कुल कारोबार 3,97,237 करोड़ रुपये रहा, जबकि पिछले साल इस दौरान इन एक्सचेंजों का कारोबार 3,23,182 करोड़ रुपये था। इसके बावजूद, वायदा कारोबार में कृषि जिंसों की हिस्सेदारी पिछले साल अक्टूबर के 52,462 करोड़ रुपये से घटकर इस अक्टूबर में महज 34,461 करोड़ रुपये रह गई। पवार ने कहा कि 2003 में वायदा कारोबार के दुबारा शुरू होने से अब तक इस कारोबार में करीब 6,000 फीसदी का उछाल आ चुका है। गौरतलब है कि वायदा कारोबार पर लगी पाबंदी 2003 में उठाई गई थी। तब करीब चालीस सालों बाद देश में वायदा कारोबार को दुबारा शुरू किया गया था। पवार ने बताया कि यह काफी मुश्किल काम है। वायदा बाजार आयोग हो या कोई एक्सचेंज; किसी के लिए भी इस मामले में कुछ खास करने को नहीं है, जब तक कि राज्य सरकारों की इसमें प्रत्यक्ष भागीदारी नहीं होगी। (BS Hindi)
रसायन बाजार में मंदी का घोल, कारोबार हुआ धुंधला
नई दिल्ली November 24, 2008
रसायन बाजार में मंदी का घोल मिल गया है। कीमत का रंग मध्दिम पड़ गया है तो कारोबार धुंधला हो चला है।
रुपये के मूल्य में भारी गिरावट के कारण चीन से आयातित रसायन में 70 फीसदी की कमी दर्ज की जा चुकी है। घरेलू रसायन निर्माता माल उठाने के लिए दुकानदार से गुहार कर रहे हैं। इधर दुकानदार कह रहे हैं कि लगातार हो रही मंदी के कारण रसायन की ग्राहकी 60 फीसदी गिर चुकी है। पेट्रोलियम से सीधे तौर पर जुडे होने के कारण रसायन के कारोबार में अभी और मंदी की आशंका है। हालांकि सोडा एश (21 रुपये प्रति किलोग्राम) जैसे कुछ रसायन अपने पूर्व स्तर पर कायम है और उनका कारोबार मंदी से अछूता बताया जा रहा है।रसायन कारोबारियों के मुताबिक ओलंपिक खेल के दौरान चीन ने जून से लेकर अगस्त महीने तक रसायन की आपूर्ति बंद कर दी थी। लिहाजा स्थानीय रसायन निर्माताओं ने इसका जमकर फायदा उठाया। उस दौरान कच्चे तेल की कीमत 145 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गयी। लिहाजा रसायन की कीमत में जबरदस्त इजाफा देखा गया। रसायन बाजार में 40 फीसदी माल की आपूर्ति चीन से ही होती है। चीन से आपूर्ति बाधित होने के कारण 60 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से बिकने वाले सोडियम हाइड्रो सल्फाइट की कीमत जुलाई के आखिर तक 110 रुपये प्रति किलोग्राम के स्तर पर पहुंच गयी तो साइट्रिक एसिड की कीमत दोगुनी बढ़ोतरी के साथ 80 रुपये प्रति किलोग्राम हो गयी। नाइट्राइट 35 रुपये प्रति किलोग्राम से उछलकर 100 रुपये प्रति किलोग्राम के स्तर पर चला गया तो सल्फयूरिक एसिड की कीमत 3 रुपये प्रति किलोग्राम से बढ़कर 18 रुपये प्रति किलोग्राम के स्तर पर जा पहुंची। पिपरमेंट के भाव 600 रुपये प्रति किलोग्राम से बढ़कर 1200 रुपये प्रति किलोग्राम हो गए। लेकिन अब ये सभी रसायन लगभग पुराने स्तर पर आ चुके हैं। दिल्ली के तिलक बाजार स्थित रसायन व्यापारी संघ के पदाधिकारी विनोद अग्रवाल कहते हैं, 'जब कीमत में तेजी होती है तब कारोबार में भी तेजी होती है क्योंकि उन्हें और बढ़ोतरी का डर होता है। इसके विपरीत मंदी के दौरान कीमत में और गिरावट की संभावना के कारण कारोबार और गिर जाता है। फिलहाल यही हो रहा है।' कारोबारियों ने बताया कि कीमत में और गिरावट की उम्मीद इसलिए भी है कि अमेरिका एवं यूरोप का बाजार खराब होने के कारण चीन इन दिनों लगातार सस्ते दामों पर रसायन देने की पेशकश कर रहा है। लेकिन एक डॉलर का मूल्य 50 रुपये होने के कारण वहां से आयात करने की हिम्मत नहीं हो पा रही है। दूसरी बात है कि तेजी के दौरान खरीदे गए रसायन की खपत भी नहीं हो पायी है। तिलक बाजार रसायन बाजार व्यापार संघ के प्रधान सुशील गोयल कहते हैं, 'जो साइट्रिक एसिड 80 रुपये प्रति किलोग्राम कारोबारियों ने खरीदे थे उसकी कीमत 58 रुपये प्रति किलोग्राम हो गयी है। व्यापारी घाटे में ही सही पहले उस माल को निकालना चाहेगा।' उन्होंने बताया कि कच्चे तेल की कीमत 145 डॉलर प्रति बैरल के स्तर से 50 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गयी है। और इसमें गिरावट की और उम्मीद है। लिहाजा रसायन व्यापारियों का धंधा अभी और चौपट होगा। रसायन का इस्तेमाल मुख्य रूप से डिटरजेंट बनाने से लेकर घरेलू व औद्योगिक उत्पादों के निर्माण में होता है। (BS Hindi)
रसायन बाजार में मंदी का घोल मिल गया है। कीमत का रंग मध्दिम पड़ गया है तो कारोबार धुंधला हो चला है।
रुपये के मूल्य में भारी गिरावट के कारण चीन से आयातित रसायन में 70 फीसदी की कमी दर्ज की जा चुकी है। घरेलू रसायन निर्माता माल उठाने के लिए दुकानदार से गुहार कर रहे हैं। इधर दुकानदार कह रहे हैं कि लगातार हो रही मंदी के कारण रसायन की ग्राहकी 60 फीसदी गिर चुकी है। पेट्रोलियम से सीधे तौर पर जुडे होने के कारण रसायन के कारोबार में अभी और मंदी की आशंका है। हालांकि सोडा एश (21 रुपये प्रति किलोग्राम) जैसे कुछ रसायन अपने पूर्व स्तर पर कायम है और उनका कारोबार मंदी से अछूता बताया जा रहा है।रसायन कारोबारियों के मुताबिक ओलंपिक खेल के दौरान चीन ने जून से लेकर अगस्त महीने तक रसायन की आपूर्ति बंद कर दी थी। लिहाजा स्थानीय रसायन निर्माताओं ने इसका जमकर फायदा उठाया। उस दौरान कच्चे तेल की कीमत 145 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गयी। लिहाजा रसायन की कीमत में जबरदस्त इजाफा देखा गया। रसायन बाजार में 40 फीसदी माल की आपूर्ति चीन से ही होती है। चीन से आपूर्ति बाधित होने के कारण 60 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से बिकने वाले सोडियम हाइड्रो सल्फाइट की कीमत जुलाई के आखिर तक 110 रुपये प्रति किलोग्राम के स्तर पर पहुंच गयी तो साइट्रिक एसिड की कीमत दोगुनी बढ़ोतरी के साथ 80 रुपये प्रति किलोग्राम हो गयी। नाइट्राइट 35 रुपये प्रति किलोग्राम से उछलकर 100 रुपये प्रति किलोग्राम के स्तर पर चला गया तो सल्फयूरिक एसिड की कीमत 3 रुपये प्रति किलोग्राम से बढ़कर 18 रुपये प्रति किलोग्राम के स्तर पर जा पहुंची। पिपरमेंट के भाव 600 रुपये प्रति किलोग्राम से बढ़कर 1200 रुपये प्रति किलोग्राम हो गए। लेकिन अब ये सभी रसायन लगभग पुराने स्तर पर आ चुके हैं। दिल्ली के तिलक बाजार स्थित रसायन व्यापारी संघ के पदाधिकारी विनोद अग्रवाल कहते हैं, 'जब कीमत में तेजी होती है तब कारोबार में भी तेजी होती है क्योंकि उन्हें और बढ़ोतरी का डर होता है। इसके विपरीत मंदी के दौरान कीमत में और गिरावट की संभावना के कारण कारोबार और गिर जाता है। फिलहाल यही हो रहा है।' कारोबारियों ने बताया कि कीमत में और गिरावट की उम्मीद इसलिए भी है कि अमेरिका एवं यूरोप का बाजार खराब होने के कारण चीन इन दिनों लगातार सस्ते दामों पर रसायन देने की पेशकश कर रहा है। लेकिन एक डॉलर का मूल्य 50 रुपये होने के कारण वहां से आयात करने की हिम्मत नहीं हो पा रही है। दूसरी बात है कि तेजी के दौरान खरीदे गए रसायन की खपत भी नहीं हो पायी है। तिलक बाजार रसायन बाजार व्यापार संघ के प्रधान सुशील गोयल कहते हैं, 'जो साइट्रिक एसिड 80 रुपये प्रति किलोग्राम कारोबारियों ने खरीदे थे उसकी कीमत 58 रुपये प्रति किलोग्राम हो गयी है। व्यापारी घाटे में ही सही पहले उस माल को निकालना चाहेगा।' उन्होंने बताया कि कच्चे तेल की कीमत 145 डॉलर प्रति बैरल के स्तर से 50 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गयी है। और इसमें गिरावट की और उम्मीद है। लिहाजा रसायन व्यापारियों का धंधा अभी और चौपट होगा। रसायन का इस्तेमाल मुख्य रूप से डिटरजेंट बनाने से लेकर घरेलू व औद्योगिक उत्पादों के निर्माण में होता है। (BS Hindi)
23 नवंबर 2008
वायदा कारोबार में कैसे चुनें ब्रोकर
कमोडिटी बाजार में कामकाज शुरू करने से पहले जो पहला प्रश्न आपके जेहन में आता है वह है आपका ब्रोकर। निवेश करने से पहले एक अच्छे ब्रोकर का चुनाव करना बहुत जरूरी है। एक जरा सी चूक आपकी जिंदगी भर की गाढ़ी कमाई को डुबो भी सकती है। भारत में ऑनलाइन कमोडिटी वायदा कारोबार पिछले पांच साल से चल रहा है। कमोडिटी वायदा कारोबार में काम करना फायदा दे सकता है अगर कारोबार करने से पहले निवेशक थोड़ा होमवर्क कर ले और कुछ बातों का ध्यान रखे। इस समय स्मार्ट निवेशक कमोडिटी वायदा कारोबार में अच्छा पैसा कमा रहे हैं। पिछले दो-तीन महीने से अंतर्राष्ट्रीय शेयर बाजारों में आई गिरावट के परिणामस्वरूप भारतीय शेयर बाजारों में भारी गिरावट का दौर देखने को मिला है। अगर बात की जाए इस दौरान कमोडिटी वायदा कारोबार की तो इस दौरान कमोडिटी कारोबार में बढ़ोतरी देखी गई है।देखें बुनियादी सुविधाएं हैं या नहींकमोडिटी वायदा कारोबार में पिछले चार साल से कारोबार कर रहे लॉरेंस रोड के भारत भूषण ने बताया कि ब्रोकर का चुनाव करने से पहले यह जानना आवश्यक है कि क्या आपका ब्रोकर कारोबार की आपकी सभी जरूरतें पूरी कर सकता है या नहीं। वह आपको हर सर्विस दे सकने की बुनियादी सुविधाएं रखता है या नहीं। हर सौदा जो आप कर रहे हैं चाहे आप किसी कमोडिटी को खरीद रहे हैं या फिर उसकी बिकवाली कर रहे हैं अपने ब्रोकर से लगातार बातचीत करते रहें। ब्रोकर की महत्वपूर्ण टिप्पणियों को लिखते रहना बेहता रहता है। भूषण ने बताया कि यह भी जानना जरूरी है कि आपके ब्रोकर की जिंसों पर कितनी पकड़ है साथ ही उसके मंडियों में कैसा सम्पर्क हैं।ब्रोकर की बाजार में साख कैसी हैरेलिगेयर के कमोडिटी हेड जयंत मांगलिक ने बिजनेस भास्कर को बताया कि कमोडिटी वायदा बाजार में कारोबार शुरू करने से पहले निवेशक को अपने ब्रोकर के बारे में जानना जरूरी है। देख लें कि आप जिस ब्रोकर से जुड़ना चाहते हैं उसकी बाजार में साख कैसी है। उसकी वित्तीय स्थिति कैसी है, जिंसों की डिलीवरी के समय सर्तक होकर काम करता है या निवेशक पर ही सब-कुछ छोड़ देता है। ब्रोकर को कमोडिटी बाजार कारोबार का कितना अनुभव है। साथ ही यह भी देख लें कि ब्रोकर कितने समय से जिंसों की ट्रेडिंग से जुडा है। ब्रोकर का एक्सचेंज में रजिस्टर्ड सदस्य होना भी जरूरी है। अगर ब्रोकर फ्यूचर मार्केट कमीशन का रजिस्टर्ड सदस्य नहीं है तो भूल कर भी उसके साथ काम न करें। ये भी जानना जरूरी है कि क्या ब्रोकर केवल ग्राहकों के लिए कारोबार करता है या फिर अपना खुद का कारोबार करके भी सौदे खड़े रखता है। ब्रोकर मार्जिन के पैसे सही समय पर एक्सचेंज को देता है या नहीं। ब्रोकर निवेशक से ब्रोकरेज के रूप में कितना कमीशन लेता है।ऑफिस में फोन करेंअगर कोई एजेंट आपसे पैसे लेने आता है तो पहले ब्रोकिंग फर्म से जुड़े उसके दस्तावेजों की पड़ताल करें। उसका और उसके उच्च अधिकारियों का नंबर लें। बेहतर होगा कि कंपनी के लेंड लाइन नंबर पर फोन करके एजेंट की वास्तविकता का पता कर लें। एजेंट का फर्म आइडेंटिटी प्रूफ जरूर देख लें। इसके अलावा जिस जिंस में वह पैसा लगवाने की बात कर रहा है उससे जुड़ी उसकी जानकारी का आकलन पूछताछ के जरिए करें। इसके अलावा अगर एजेंट आपसे कैश में भुगतान की मांग करता है तो उस पर बिलकुल भरोसा न करें। दरअसल कमोडिटी वायदा बाजार में सभी सौदे चेक से किए जाते हैं। (Business Bhaskar..............R S Rana)
10 लाख टन चीनी निर्यात की उम्मीद
अंतरराष्ट्रीय चीनी संगठन (आईएसओ) ने अनुमान व्यक्त किया है कि भारत साल 2008-09 के दौरान ख्क् लाख टन चीनी का निर्यात करगा। संगठन के अर्थशास्त्री लियोनाडरे बिशरा रोशा ने बताया कि भारत का कुल चीनी निर्यात 10 लाख टन रहेगा लेकिन पांच लाख टन चीनी आयात होने से भारत का शुद्ध निर्यात 10 लाख टन होगा। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस साल देश क ा चीनी उत्पादन फ्क्0 से फ्फ्म् लाख टन के आसपास रहेगा। इसमें पिछले साल के फ्स्त्रब् लाख टन के स्तर से कमी आएगी। आईएसओ ने साल फ्क्क्8-क्9 के लिए वैश्विक चीनी उत्पादन में पिछले साल से ब्.8 फीसदी की गिरावट आने का अनुमान लगाया है। इस साल भारत तथा यूरोप में चीनी उत्पादन कम रहने से पूरी दुनिया में उत्पादन घटकर ख्स्त्रफ्ब् लाख टन रह जाएगा। हालांकि इस दौरान ब्राजील के चीनी उत्पादन में फ्स्त्र लाख टन की बढ़ोतरी होने की उम्मीद है। लियोनाडरे रोशा के मुताबिक भारत के कुछ चीनी उत्पादक अभी और रॉ चीनी का आयात कर सकते हैं लेकिन आयात होने के बावजूद भारत इस साल चीनी निर्यातक देश बना रहेगा। उन्होंने संभावना जताई कि साल फ्क्क्9-ख्क् के दौरान भारत शुद्ध रूप से चीनी आयातक देश हो सकता है। आईएसओ का अनुमान है कि साल फ्क्क्8-क्9 के दौरान चीनी की वैश्विक खपत फ्.भ् फीसदी बढ़कर ख्स्त्रम्9 लाख टन हो जाएगी तब भी जरूरत के हिसाब से ब्स्त्र लाख टन चीनी की कमी रहेगी। भारत विश्व का दूसरा सबसे ज्यादा चीनी उत्पादन करने वाला देश है तथा इस साल भारत में चीनी खपत ख्क् लाख टन बढ़कर फ्फ्क् लाख टन हो जाने का अनुमान लगाया गया है। (Business Bhaskar)
दक्षिण भारत में मक्का की सरकारी खरीद शुरू
दक्षिण भारत में मक्का की सरकारी खरीद शुरू
आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में मक्का की न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीद तो शुरू हो गई है लेकिन सरकारी खरीद सीमित मात्रा में होने के कारण किसान अभी भी मक्का एमएसपी से नीचे बेचने को मजबूर हैं। विश्व बाजारों में मक्का के भावों में आई गिरावट के कारण इस समय निर्यातकों की मांग भी काफी कमजोर है। जानकारों का मानना है कि जैसे-जैसे सर्दी बढ़ेंगी, मक्का में पोल्ट्री उद्योग व स्टॉर्च मिलों की मांग तो बढ़ेगी, लेकिन जब तक सरकारी खरीद गति नहीं पकड़ेगी तब तक मक्का में लंबी तेजी के आसार नहीं हैं।निजामाबाद मंडी के मक्का व्यापारी पूनम चंद गुप्ता ने बताया कि आंध्रप्रदेश में मार्कफेड ने न्यूनतम समर्थन मूल्य 840 रुपये प्रति क्विंटल की दर से मक्का की सरकारी खरीद तो शुरू कर दी है लेकिन खरीद सीमित मात्रा में की जा रही है। मार्कफेड द्वारा 3000 से 3500 क्विंटल की ही दैनिक खरीद की जा रही है जबकि आंध्रप्रदेश की मंडियों में मक्का की दैनिक आवक 12,000 से 15,000 हजार बोरियों की हो रही है। अत: लूज में निजामाबाद मंडी में मक्का 815 रुपये व वारंगल में 800 रुपये प्रति क्विंटल बिक रही है। उन्होंने बताया कि आज सुरजीत स्टॉर्च के साथ-साथ पोल्ट्री की मांग से निजामाबाद मंडी में मक्का के भावों में 5 से 7 रुपये प्रति क्विंटल का सुधार आकर बिल्टीकट भाव 850 रुपये प्रति क्विंटल बोले गए। बंगलुरू स्थित मैसर्स अग्रवाल ट्रेडिंग कंपनी के एस. अग्रवाल ने बताया कि कर्नाटक की मंडियों में मक्का की दैनिक आवक बढ़कर 28,000 से 30,000 बोरियों को हो गई है लेकिन समर्थन मूल्य पर सरकारी खरीद सीमित मात्रा में होने के कारण मंडियों में किसानी माल लूज में 790 से 795 रुपये और बिल्टीकट मक्का के भाव 825 से 830 रुपये प्रति क्विंटल बोले जा रहे हैं। आगामी दिनों में उत्पादक मंडियों में आवक तो बढ़ेगी, लेकिन अगर सरकारी खरीद सीमित मात्रा में ही रही तो मौजूदा भावों में और भी 20 से 30 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट आ सकती है। अकोला मंडी के मक्का व्यापारी विजेंद्र गोयल ने बताया कि महाराष्ट्र की उत्पादक मंडियों में वर्तमान में मक्का की दैनिक आवक 55,000 से 60,000 हजार बोरियों की हो रही है लेकिन पोल्ट्री के साथ-साथ स्टॉर्च मिलों की मांग कमजोर होने के कारण भाव 750 से 760 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं। निर्यातकों की हल्की-फुल्की मांग निकल रही है तथा निर्यातक मुंबई पोर्ट पहुंच 860 से 870 रुपये प्रति क्विंटल में सौदे कर रहे हैं। (Business Bhaskar..........R S Rana)
आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में मक्का की न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीद तो शुरू हो गई है लेकिन सरकारी खरीद सीमित मात्रा में होने के कारण किसान अभी भी मक्का एमएसपी से नीचे बेचने को मजबूर हैं। विश्व बाजारों में मक्का के भावों में आई गिरावट के कारण इस समय निर्यातकों की मांग भी काफी कमजोर है। जानकारों का मानना है कि जैसे-जैसे सर्दी बढ़ेंगी, मक्का में पोल्ट्री उद्योग व स्टॉर्च मिलों की मांग तो बढ़ेगी, लेकिन जब तक सरकारी खरीद गति नहीं पकड़ेगी तब तक मक्का में लंबी तेजी के आसार नहीं हैं।निजामाबाद मंडी के मक्का व्यापारी पूनम चंद गुप्ता ने बताया कि आंध्रप्रदेश में मार्कफेड ने न्यूनतम समर्थन मूल्य 840 रुपये प्रति क्विंटल की दर से मक्का की सरकारी खरीद तो शुरू कर दी है लेकिन खरीद सीमित मात्रा में की जा रही है। मार्कफेड द्वारा 3000 से 3500 क्विंटल की ही दैनिक खरीद की जा रही है जबकि आंध्रप्रदेश की मंडियों में मक्का की दैनिक आवक 12,000 से 15,000 हजार बोरियों की हो रही है। अत: लूज में निजामाबाद मंडी में मक्का 815 रुपये व वारंगल में 800 रुपये प्रति क्विंटल बिक रही है। उन्होंने बताया कि आज सुरजीत स्टॉर्च के साथ-साथ पोल्ट्री की मांग से निजामाबाद मंडी में मक्का के भावों में 5 से 7 रुपये प्रति क्विंटल का सुधार आकर बिल्टीकट भाव 850 रुपये प्रति क्विंटल बोले गए। बंगलुरू स्थित मैसर्स अग्रवाल ट्रेडिंग कंपनी के एस. अग्रवाल ने बताया कि कर्नाटक की मंडियों में मक्का की दैनिक आवक बढ़कर 28,000 से 30,000 बोरियों को हो गई है लेकिन समर्थन मूल्य पर सरकारी खरीद सीमित मात्रा में होने के कारण मंडियों में किसानी माल लूज में 790 से 795 रुपये और बिल्टीकट मक्का के भाव 825 से 830 रुपये प्रति क्विंटल बोले जा रहे हैं। आगामी दिनों में उत्पादक मंडियों में आवक तो बढ़ेगी, लेकिन अगर सरकारी खरीद सीमित मात्रा में ही रही तो मौजूदा भावों में और भी 20 से 30 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट आ सकती है। अकोला मंडी के मक्का व्यापारी विजेंद्र गोयल ने बताया कि महाराष्ट्र की उत्पादक मंडियों में वर्तमान में मक्का की दैनिक आवक 55,000 से 60,000 हजार बोरियों की हो रही है लेकिन पोल्ट्री के साथ-साथ स्टॉर्च मिलों की मांग कमजोर होने के कारण भाव 750 से 760 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं। निर्यातकों की हल्की-फुल्की मांग निकल रही है तथा निर्यातक मुंबई पोर्ट पहुंच 860 से 870 रुपये प्रति क्विंटल में सौदे कर रहे हैं। (Business Bhaskar..........R S Rana)
मेंथा ऑयल के भाव और गिरे
वैश्विक स्तर पर मंदी से मेंथा ऑयल की निर्यात मांग में कमी आई है। ऐसे में घरलू बाजारों में इसकी कीमतें पिछले एक 10 दिनों के दौरान करीब 10 फीसदी तक टूट चुकी हैं। वहीं दूसरी ओर मांग में कमी और किसानों की बिक्री से इसका स्टॉक काफी बढ़ गया है। मेंथा कारोबारियों के मुताबिक आने वाले दिनों में भाव और कम हो सकती है। कारोबारी बताते हैं कि इन दिनों फार्मा कंपनियों और कन्फैक्शनरी कंपनियों की लिवाली हल्की चल रही है।मेंथा ऑय कारोबारी सुधीर गावा ने बताया कि मेंथा आयल की मांग में लगातार कमी देखी जा रही है। जिससे इसके भाव पिछले दस दिनों में 10 फीसदी तक गिर चुके हैं। दिल्ली के मेंथा ऑयल बाजार में मेंथा ऑयल सस्ता होने से मैंथोल क्रिस्टल बोल्ड 630 से गिरकर 570 रुपये, मेंथोल फ्लैक्स 615 से गिरकर 553 रुपये और डीएमओ 410 से गिरकर 360 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बिक रहा है जबकि मेंथा ऑयल 545 से घटकर 493 रुपये प्रति किलो रह गया है। मेंथा ऑयल की कीमतों में और गिरावट आ सकती है। गावा का कहना है कि इसके मूल्य 20 से 25 रुपये प्रति किलो और गिर सकते हैं। हालांकि दिसंबर के बाद मांग बढ़ने से इसमें दोबारा तेजी की भी संभावना जताई जा रही है। आने वाले दिनों में मेंथा तेल में उपभोक्ता उद्योगों की मांग निकलने की संभावना जताई जा रही है। गावा का भी मानना है कि जनवरी के आसपास भाव सुधर सकते हैं। चंदौसी के मेंथा में कारोबार करने वाले धमेर्ंद्र कुमार ने बताया कि मेंथा के भाव काफ ी गिर चुके है ऐसे उम्मीद है कि अब इसकी मांग में बढ़ोतरी हो सकते है।उनका भी कहना है कि इसके मूल्यों में और नरमी आ सकती है। तीन माह पहले सट्टेबाजी होने से इसके भाव 750 रुपये प्रति किलो से भी ऊपर चले गए थे जबकि सितंबर माह के अंतिम सप्ताह में इसक ा भाव 625 रुपये किलो था। लेकिन अब सट्टेबाजी कम होने और मांग में आ रही लगातार गिरावट से भाव गिरने लगे हैं। (Business Bhaskar)
खाद्य तेलों की मंदी का लाभ उपभोक्ताओं तक नहीं
जब तेजी आई तब तो फुटकर विक्रेताओं ने खाद्य तेल के भाव बढ़ाने में गजब की फुर्ती दिखाई थी लेकिन अब गिरावट के दौर में यह फुर्ती गायब है। घरेलू बाजारों में खाद्य तेलों के भाव पिछले तीन महीनों में करीब 30 से 50 फीसदी गिर चुके हैं लेकिन फुटकर में भाव बमुश्किल 10 से 15 फीसदी ही गिरे हैं। गिरावट के कारण एक ओर सोयाबीन व मूंगफली उगाने वाले किसानों को अपेक्षित मूल्य नहीं मिल पा रहा है। दूसरी ओर गिरावट का पर्याप्त फायदा उपभोक्ताओं को नहीं मिल रहा है।सॉल्वेंट एक्सट्रेक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के मुताबिक जून महीने में घरेलू बाजारों में मूंगफली तेल के भाव 7200 रुपये, सरसों तेल के भाव 6700 रुपये, सोयाबीन तेल के भाव 6500 रुपये और आरबीडी पामोलीन के भाव 5800 रुपये प्रति क्विंटल थे। वर्तमान में मूंगफली तेल के भाव 5800 रुपये, सरसों तेल के भाव 5900 रुपये, सोयाबीन तेल के भाव 4000 रुपये और आरबीडी पामोलीन के भाव 3000 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं। अत: इस दौरान खाद्य तेलों के भावों में 800 से 2800 रुपये प्रति क्विंटल की भारी गिरावट आ चुकी है। दिल्ली वेजीटेबल ऑयल ट्रेडर्स एसोसिएशन के सचिव हेमंत गुप्ता ने बिजनेस भास्कर को बताया कि जिस अनुपात में थोक बाजारों में पिछले दो-तीन महीने में खाद्य तेलों के भाव घटे हैं, उस अनुपात में खुदरा बाजार में भाव नहीं घटे हैं जिसके कारण उपभोक्ताओं को गिरावट का फायदा नहीं मिल पा रहा है। उनके अनुसार इसका फायदा मिलें उठा रही हैं।खारी बावली के तेलों के व्यापारी सरदार अजित सिंह ने बताया कि जुलाई-अगस्त में थोक बाजारों में सरसों तेल के भाव 1200 रुपये प्रति 15 किलो थे तथा खुदरा बाजार में इसके भाव 90 से 105 रुपये प्रति किलो थे। वर्तमान में थोक बाजार में सरसों तेल के भाव घटकर 1060 से 1100 रुपये प्रति 15 किलो हैं लेकिन खुदरा बाजार में आज भी सरसों तेल 80 से 105 रुपये प्रति किलो बिक रहा है। सोयाबीन रिफाइंड के भाव जुलाई-अगस्त में थोक बाजार में 950 रुपये प्रति 15 किलो थे जबकि खुदरा बाजार में इसके भाव 75 से 85 रुपये किलो थे। वर्तमान में थोक बाजार में इसके भाव घटकर 725 से 730 रुपये प्रति 15 किलो रह गए लेकिन उपभोक्ताओं को आज भी एक किलो सोयाबीन रिफाइंड की कीमत 70 से 80 रुपये ही देनी पड़ रही है। इसी तरह से आरबीडी पामोलीन के भाव जूलाई-अगस्त में थोक बाजारों में 900 रुपये प्रति 15 किलो थे तथा खुदरा में इसके भाव 70 से 75 रुपये किलो थे। वर्तमान में थोक बाजार में इसके भाव घटकर 600 रुपये प्रति 15 किलो रह गए हैं लेकिन खुदरा बाजार में इसके भाव 65 से 75 रुपये किलो ही चल रहे हैं। (Business Bhaskar...........R S Rana)
गेहूं की बुवाई पिछड़ी
केंद्र सरकार द्वारना चालू रबी सीजन में गेहूं उत्पादन लक्ष्य को झटका लगा सकता है। उत्पादक राज्यों में अनुकूल मौसम के बावजूद गेहूं की अब रकबे में 1.21 लाख हैक्टेयर की कमी दर्ज की गई है। कृषि मंत्रालय द्वारा जारी ताजा आंकड़ों के अनुसार चालू रबी बुवाई सीजन में देश में अभी तक गेहूं की कुल बुवाई 83.78 लाख हैक्टेयर में ही हो पाई है । पिछले साल इस अवधि के दौरान करीब 84.99 लाख हैक्टेयर में बुवाई हुई थी। न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) तय न होने और यूपी में चीनी मिलों द्वारा गन्ने की पिराई शुरू न होने से गेहूं की बुवाई में देरी हो रही है। बीते वर्ष रबी फसलों के एमएसपी की घोषणा अक्टूबर के प्रथम पखवाड़े में हो गई थी। नई फसल के लिए कृषि लागत एवं मूल्य आयोग ने एमएसपी 1080 रुपये क्विंटल तय करने की सिफारिश की है। लेकिन अब तक घोषणा नहीं हुई है। भारतीय कृषक समाज के डॉ. कृष्ण बीर चौधरी का कहना है कि केंद्र सरकार को जितनी जल्दी हो सके रबी फसलों का एमएसपी घोषित कर देना चाहिए। किसान नेता युद्धवीर सिंह का कहना है कि डीजल, खाद, बीज व दवाइयों के दामों में हो रही बढ़ोतरी से किसानों की लागत तो बढ़ रही है लेकिन उस अनुपात में समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी न होने से किसानों को भारी घाटा उठाना पड़ता है। केंद्र के साथ-साथ राज्य सरकारों को भी किसानों को उच्च क्वालिटी के बीज और कीटनाशक दवाइयों के अलावा समय पर खाद उपलब्ध करवानी चाहिए। केंद्र सरकार को ये भी सुनिश्चित करना चाहिए कि किसानों की फसल एमएसपी से नीचे ना बिके। इस समय खरीफ की फसलें मक्का, बाजरा तथा कपास कई राज्यों में एमएसपी से नीचे बिक रहे हैं। उन्होंने कहा कि बीते वर्ष केंद्र सरकार ने रबी फसलों के एमएसपी अक्टूबर के शुरू में घोषित कर दिए थे जिससे देश में गेहूं का रिकार्ड 784 लाख टन का उत्पादन हुआ था।चना और सरसों का रकबा बढ़ानई दिल्ली। चालू रबी बुवाई सीजन में सरसों और चना के बुवाई क्षेत्रफल में बढ़ोतरी सरकार के लिए राहत की बात हो सकती है। कृषि मंत्रालय द्वारा जारी ताजा आंकड़ों के अनुसार चालू रबी बुवाई सीजन में तिलहनों के बुवाई क्षेत्रफल में गत वर्ष की समान अवधि के मुकाबले 14 फीसदी और दलहनों के बुवाई क्षेत्रफल में 17 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। तिलहनों की प्रमुख फसल सरसों की बुवाई अभी तक 56.25 लाख हैक्टयर में हो चुकी है जबकि बीते वर्ष की समान अवधि में इसकी बुवाई मात्र 43.81 लाख हैक्टेयर में ही हो पाई थी। इस साल अभी तक रबी सीजन में तिलहनों का बुवाई क्षेत्रफल बढ़कर 72.81 लाख हैक्टेयर हो गया है जो पिछले साल की इसी अवधि तक 58.79 लाख हैक्टेयर था। चने की बुवाई भी गत वर्ष के 47.35 लाख हैक्टेयर से बढ़कर 58.14 लाख हैक्टेयर में हो चुकी है। (Business Bhaskar.........R S Rana)
चालू सीजन में 71 करोड़ डॉलर मसाले का निर्यात
कोच्चि : देश से 2008-09 अप्रैल से अक्टूबर के बीच 71.06 करोड़ अमेरिकी डॉलर के मसालों का निर्यात हुआ। पिछले साल इस दौरा न हुए निर्यात से यह 7 फीसदी ज्यादा है। इस साल अप्रैल से अक्टूबर के बीच भारत से 2,84,056 टन मसाले विदेश भेजे गए। हालांकि, अगर रुपए के लिहाज से देखें तो पिछले साल अप्रैल से अक्टूबर के मुकाबले इस साल इन महीनों में इसका निर्यात 14 फीसदी बढ़ा है यानी मसालों की विदेश में बिक्री से करीब 3,080.25 करोड़ रुपए की कमाई हुई। भारत ने इस दौरान 4,25,000 टन मसालों के निर्यात का लक्ष्य रखा था। इससे 4,350 करोड़ रुपए की कमाई का अनुमान था। अप्रैल से अक्टूबर के बीच मसालों का निर्यात लक्ष्य मात्रा के हिसाब से 67 फीसदी रहा। रुपए के लिहाज से भारत ने इस दौरान 71 फीसदी का लक्ष्य पूरा कर लिया है। वहीं, डॉलर में आमदनी के लिहाज से निर्यात लक्ष्य 69 फीसदी हासिल हो चुका है। स्पाइस ऑयल्स और मिंट उत्पाद समेत ओलिरियंस का कुल निर्यात आय में 41 फीसदी, मिर्च का 21 फीसदी, जीरे का 9 फीसदी, काली मिर्च का 8 फीसदी और हल्दी का 5 फीसदी योगदान रहा है। अप्रैल से अक्टूबर के बीच पिछले साल की इसी अवधि के मुकाबले ज्यादातर मसालों के निर्यात की मात्रा बढ़ी है। वहीं, इससे आमदनी में भी इजाफा हुआ है। इस दौरान भारत ने 14,750 टन काली मिर्च का निर्यात किया, जिससे उसे 246.70 करोड़ रुपए की आमदनी हुई। पिछले साल अप्रैल से अक्टूबर के बीच 22,800 टन काली मिर्च का निर्यात हुआ था, जिससे 330.38 करोड़ रुपए की आमदनी हुई थी। निर्यात से होने वाली आमदनी में कमी की वजह काली मिर्च का कम स्टॉक रहना है।(ET Hindi)
21 नवंबर 2008
मसालों का निर्यात अक्टूबर में मात्रा में घटा, मूल्य में बढ़ा
भारत से इस साल अक्टूबर में 402.99 करोड़ रुपये के मसालों का निर्यात किया गया है जो कि पिछले साल इसी महीने के निर्यात मूल्य ब्त्तक्.9स्त्र करोड़ रुपये से नौ फीसदी ज्यादा है। हालांकि कुल निर्यात मात्रा के आधार पर इसमें कमी दर्ज की गई है। पिछले अक्टूबर में निर्यात जहां ब्फ्,भ्9भ् टन था वहीं इस बार यह घटकर फ्8,क्त्तक् टन रहा। भारतीय मसाला बोर्ड के अनुसार इस बार मिंट उत्पाद, मसाला तेल, लाल मिर्च, काली मिर्च, जीरा तथा हल्दी का निर्यात किया गया। अप्रैल से अक्टूबर तक कुल ब्,क्8क्.फ्म् करोड़ रुपये के फ्,8भ्,म्स्त्रक् टन मसालों का निर्यात किया गया जबकि गत वर्ष की समान अवधि के दौरान फ्त्तक्क्.म्क् करोड़ रुपये के फ्,स्त्रस्त्र,ब्फ्म् टन मसालों का निर्यात हुआ था। कुल निर्यात में मसाला तेल, ओलियोरजिन तथा मिंट उत्पादों का हिस्सा भ्ख् फीसदी तथा मिर्च का हिस्सा फ्ख् फीसदी था। काली मिर्च का पिछले साल का निर्यात फ्फ्,8क्क् टन था जबकि इस बार निर्यात ख्भ्,त्तम्क् टन रहा। मलेशिया, इंडोनेशिया और श्रीलंका से मांग बढ़ने से इस साल लाल मिर्च तथा इसके उत्पादों के निर्यात में बढ़त देखी गई।इन देशों को निर्यात पिछले साल के ख्,फ्ख्,भ्फ्क् टन से बढ़कर ख्,फ्ख्,म्क्क् टन रहा। धनिया का निर्यात इस साल ख्ब् फीसदी बढ़कर ख्त्त,ख्क्क् रहा तथा इसका निर्यात मूल्य ख्ख्स्त्र.8क् करोड़ था, इसमें 9म् फीसदी की बढ़त रही। जीरा निर्यात त्तभ् फीसदी बढ़कर फ्स्त्र हजार टन रहा। इसका निर्यात मूल्य फ्स्त्र9.98 करोड़ रुपये था इसमें त्तख् फीसदी की बढ़त रही। (Business Bhaskar)
तय मात्रा में खाद्य तेल निर्यात को मंजूरी
महंगाई जैसे-जैसे काबू में आ रही है,सरकार धीरे-धीरे खाद्य तेल निर्यात खोलती जा रही है। सरकार ने गुरुवार को कंज्यूमर पैक में ब्रांडेड खाद्य तेल निर्यात की अनुमति दे दी है। हालांकि शर्त यह है कि यह खाद्य तेल पांच-पांच किलो के पैक में ही निर्यात होगा। निर्यात के लिए दस लाख टन की सीमा भी तय की गई है। उधर बाजार के जानकारों का मानना है कि इससे घरेलू बाजारों में खाद्य तेलों के भाव पर तात्कालिक असर तो आ सकता है लेकिन तेल व तिलहन के भाव में कोई लंबी तेजी नहीं आएगी।विदेश व्यापार महानिदेशालय द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार यह खाद्य तेल एक साल के भीतर अगले अक्टूबर तक निर्यात किया जाना है। यह निर्यात सिर्फ इलैक्ट्रानिक डाटा इंचरचेंज सिस्टम से लैस बंदरगाहों से ही हो सकेगा। फिश ऑयल के मामले में सभी पाबंदियां हटा ली गई हैं। डीजीएफटी के अनुसार निर्यात होने वाले खाद्य तेलों की निगरानी वाणिज्य विभाग के जरिये की जाएगी। अधिसूचना के अनुसार इनमें सिर्फ प्रीमियम खाद्य तेल जैसे नारियल, मूंगफली, सरसों व तिल का ही निर्यात किया जाएगा। सेंट्रल आर्गेनाईजेशन फॉर ऑयल इंडस्ट्री एंड ट्रेड (कोएट) के कार्यकारी निदेशक डी. एन. पाठक ने बताया कि मात्र 10,000 टन तेल के निर्यात की अनुमति से घरेलू बाजार में तिलहनों व खाद्य तेलों के भाव सुधरने की उम्मीद नहीं है। वैसे भी महंगाई बढ़ने में खाद्य तेलों की भूमिका न के बराबर थी क्योंकि अगर खाद्य तेलों की तेजी से महंगाई बढ़ती तो पिछले दो-तीन महीने में खाद्य तेलों के भावों में आई भारी गिरावट से महंगाई दर काफी नीचे आ जानी चाहिए थी। जबकि महंगाई में कमी पिछले कुछ सप्ताहों में ही दिखाई दी है।सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष अशोक सेतिया ने बताया कि निर्यात के लिए तय की गई मात्रा सीमा बहुत ही कम है। गत वर्ष भारत से करीब 50,000 टन मूंगफली तेल का निर्यात हुआ था। पिछले दिनों सरकार ने क्रूड सोयाबीन तेल के आयात पर 20 प्रतिशत आयात शुल्क लगाया, उसका घरेलू बाजारों में तिलहनों व तेलों के भावों पर कोई फर्क नहीं पड़ा। उत्पादक मंडियों में सोयाबीन के भाव घटकर 1450 से 1500 रुपये व मूंगफली के भाव 2100 से 2200 रुपये प्रति क्विंटल रह गए हैं। सोयाबीन का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1390 रुपये व मूंगफली का 2100 रुपये प्रति क्विंटल है। मूंगफली तेल के निर्माता श्री राजमोती इंडस्ट्रीज के मैनेजिंग डायरेक्टर समीर भाई शाह ने बताया कि अभी तक मूंगफली तेल का निर्यात थोक मात्रा में ही होता था लेकिन अब सरकार ने कंज्यूमर पैक में निर्यात की अनुमति दी है इसलिए अगले दस-बारह दिनों में पता चलेगा कि विदेशों से कैसे आर्डर मिलते हैं। (Business Bhaskar...........R S Rana)
खाद्य तेल इंडस्ट्री को है निर्यात छूट की दरकार
कोलकाता : ग्लोबल मंदी की आंच में भारतीय निर्यात कारोबार पर भी काफी असर दिखाई दे रहा है। निर्यात में आ रही मंदी को देखते हुए घरेलू खाद्य तेल इंडस्ट्री को सरकार से मदद की दरकार है। खाद्य का मानना है कि सरकार को करीब सात महीने पहले खाद्य तेलों के निर्यात पर लगे तमाम प्रतिबंधों को अब उठा लेना चाहिए। इस साल मार्च तक देश से खाद्य तेलों के निर्यात पर कोई रोक नहीं थी। कंज्यूमर पैक और बल्क दोनों तरह से खाद्य तेलों के निर्यात को सरकार की मंजूरी हासिल थी, लेकिन अंतरराष्ट्रीय और घरेलू बाजारों में इनकी कीमतों में हुए इजाफे की वजह से सरकार ने इसके निर्यात पर रोक लगा दी थी। सरकार ने इसके निर्यात पर 17 मार्च से रोक लगा दी थी। आसमान छू रही महंगाई पर नियंत्रण के लिए सरकार ने खाद्य तेलों की कीमतों पर रोक लगाने का फैसला लिया था। हालांकि, मौजूदा स्थितियों को देखकर माना जा रहा है कि सरकार को खाद्य तेलों के निर्यात पर छूट देनी चाहिए। इस बारे में सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) ने इस प्रतिबंध पर रोक हटाने के लिए वाणिज्य और उद्योग मंत्री कमलनाथ और कृषि मंत्री शरद पवार को पत्र लिखा है। एसईए ने अपने पत्र में सरकार को लिखा है कि पिछले तीन महीनों में माहौल पूरी तरह से बदल गया है। दुनिया के बाजारों में खाद्य तेलों की कीमतों में इस दौरान 30 फीसदी की गिरावट हुई है। इसके अलावा घरेलू बाजार में खाद्य तेलों की कीमतें गिरकर 25,000 से 30,000 रुपए प्रति टन हो गई हैं। इस साल खरीफ की फसल के बढ़िया होने की वजह से खाद्य तेलों की कीमतों के आगे भी मौजूदा स्तर पर बने रहने की उम्मीद है। मौजूदा खरीफ सीजन की मूंगफली की फसल के बढ़िया रहने की उम्मीद जताई जा रही है। इस सीजन में करीब 50 लाख टन मूंगफली के उत्पादन होने की उम्मीद है। मौजूदा वक्त में अंतरराष्ट्रीय बाजार में मूंगफली के तेल की बेहतर मांग (ET Hindi)
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