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14 अप्रैल 2009

कोकिंग कोल की कीमतें और गुणवत्ता वैश्विक रूप से प्रतिस्पर्धी नहीं

April 14, 2009
कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) विश्व की बड़ी कोल कंपनियों में से एक है। इसके पास 28.7 करोड़ टन कोकिंग कोल और गैर-कोकिंग कोल का भंडार है।
कंपनी ने विकास की नई योजना बनाई है, जिसमें अधिग्रहण पर खासा जोर दिया गया है। सीआईएल के अध्यक्ष पार्थ भट्टाचार्य ने मार्गरेट विलियम्स के साथ साक्षात्कार में कंपनी की नई विकास योजना, कोयले की कीमत और कमोडिटी बाजार में हो रही उठा-पटक सहित कई मुद्दों पर चर्चा की। पेश हैं साक्षात्कार के प्रमुख अंश:
कच्चे माल की कीमतों में खासी कमी आई है। क्या इसे देखते हुए कंपनी आने वाले समय में कोयले की कीमतों की समीक्षा करेगी?
इस मुद्दे पर कुछ भी कहना मुश्किल होगा क्योंकि कीमतों में अभी भी उतार-चढाव देखने को मिल रहा है। दूसरी बात यह कि सीआईएल की थर्मल कोयले की कीमतें अंतरराष्ट्रीय कीमतों की तुलना में काफी कम हैं। इस लिहाज से अभी कीमतों में कमी करने का सवाल ही पैदा नहीं होता है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जो कीमतें हैं, उसके मुकाबले अभी भी हमारी कोयले की कीमतें 50-60 फीसदी सस्ती हैं। जहां तक कोकिंग कोल की बात है, लंबी अवधि के ठेकों के लिए हमारी कीमतों की तुलना अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जो कीमत है, उससे इसकी तुलना की जा सकती है। चूंकि हमारे कोकिं ग कोल की गुणवत्ता अच्छी नहीं है इस लिहाज से कीमतें भी उस स्तर की नहीं हैं।
कोयला खदानों की कीमतों में काफी सुधार हुआ है, क्या इसके मद्देनजर इन्हें खरीदने का यह उपयुक्त समय है?
निश्चित तौर पर कोयला खदानों को खरीदने का यह बहुत ही उपयुक्त समय है। हालांकि असूचीबध्द खदानों की कीमतों में अभी भी बहुत ज्यादा कमी नहीं आई है, इसलिए सूचीबध्द कोयला खदानों के शेयरों की कीमतों में काफी गिरावट दर्ज की गई है। असूचीबध्द कोयला खदानों के साथ बहुत ताम-झाम जुड़े हुए हैं, इस लिहाज से इनकी खरीदारी को बेहतर नहीं माना जा सकता है।
नैशनल कोल वेज एग्रीमेंट के लागू हो जाने की वजह से सीआईएल ने अपनी पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी सेंट्रल माइन प्लानिंग ऐंड डिजाइन इंस्टीच्युट (सीएमपीडीआईएल) को 77 परियोजनाओं के टिकाऊ होने के बारे में पता लगाने को कहा है। इसके लागू हो जाने से करीब 1,800 करोड रुपये का बोझ पड़ेगा। अभी इसकी क्या स्थिति है?
वेतन में इजाफा होने से खर्च में काफी बढ़ोतरी हुई है। इसके परिणामस्वरूप परियोजनाएं कितनी टिकाऊ होंगी, इसकी पुनर्समीक्षा की जा रही है। जब तक कीमतों की पुनर्समीक्षा नहीं की जाती तब तक कई ऐसी परियोजनाएं हैं जो ज्यादा टिकाऊ नजर नहीं आ रही हैं। इस बारे में 2-3 महीनों में रिपोर्ट मिल जाने की संभावना है। हमें ऐसी परियोजनाएं- जो टिकाऊ नहीं है, उस पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है।
वित्त वर्ष 2011-12 तक मांग और आपूर्ति में 200 मिलियन टन के अंतर आने की संभावना है। आप इस अंतर को किस तरह से पूरा करने की सोच रहे हैं?
फिलहाल जो आंकड़े उपलब्ध हैं उसके अनुसार 230 मिलियन टन के अंतर आने की संभावना है। देश में उत्पादन में बढ़ोतरी करना इस समय उतना आसान नहीं लग रहा है, साथ ही अन्वेषण के लिए नई भूमि खरीदना भी समस्या है। इसके अलावा और भी कई परेशानियां हैं। अभी भी हमारी कई परियोजनाओं को पर्यावरण विभाग से मंजूरी मिलने का इंतजार है।
हमने खनन की संभावनाओं वाले क्षेत्रों की पहचान करने को कहा है, लेकिन इस अंतिम रूप अभी भी नहीं दिया जा सका है। ऊर्जा की जरूरतों को पूरा करने में कोयले की भूमिका और इसके विकास का प्रमुख वाहक होने की बात को सभी लोगों को स्वीकार करने की जरूरत है। एक बार ऐसा हो जाता है तो कोयले के और उत्पादन में काफी आसानी होगी।
कोयला मंत्री ने तीन राज्यों का दौरा किया है और कोयले के उत्पादन में आने वाली रुकावटों को दूर करने की जरूरत बताई है जिससे कि परियोजनाओं को आगे बढ़ाने में मदद मिल सके। मौजूदा रुकावटों को देखते हुए उत्पादन में बढ़ोतरी की गुंजाइश नहीं हैं। इसके लिए हमें जो भी कुछ करना है वह विदेश में ही कर सकते हैं।
आप किस तरह की खदानों के अधिग्रहण के बारे में सोच रहे हैं?
कोल विदेश के लिए हम मौजूदा समय में काम करने वाले या अन्वेषण वाले खदानों को खरीदने के बारे में विकल्प को खुला रखा है। ऐसी खदान जिनका अन्वेषण अभी तक नहीं किया गया है उनको खरीदना हमारी प्राथमिकता होगी क्योंकि ये अपेक्षाकृत सस्ती होती हैं। हम बेहतर उत्पादन करने वाली खदानों का पता लगाने का प्रयास कर रहे हैं।
इस साल कंपनी की नजर किन बातों पर है?
चालू वित्त वर्ष में हम दो चीजों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। एक तो पर्यावरण के अनुकूल कोयला खनन और कॉर्पोरेट जगत की सामाजिक जिम्मेदारी। हम पर्यावरण के अनुकूल कोयला खनन पर ज्यादा ध्यान देंगे, साथ ही पर्यावरण और सामाजिक मानदंडों पर खरा उतरने वाले परिचालन पर भी हमारी नजर रहेगी। हमने अपने पुनर्वास नीति की 2008 में समीक्षा की है।
इसके अलावा इसमें और बदलाव को लेकर हमारा नजरिया खुला है। यह हर एक लिहाज से ठीक है और भूमि की कीमतों को लेकर ही समस्या है। कीमतों के भुगतान के अलावा हम कई और फायदे भी दे रहे हैं। लेकिन इसके बाद भी हमें समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। हमें एक ऐसी प्रणाली की जरूरत है जिससे कीमतों में पारदर्शिता आ सके। (BS Hindi)

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