चेन्नई 04 02, 2009
मौजूदा आर्थिक मंदी के बावजूद भारतीय ग्लास कंटेनर उद्योग में दोहरे अंकों की वृद्धि देखी गई है।
इस उद्योग में फिलहाल 10 बड़े खिलाड़ी हैं और मौजूदा वित्तीय वर्ष के अंत में इसका कारोबार 4,500 करोड़ रुपये का हुआ है। उद्योग से जुड़े प्रतिनिधियों का कहना है कि शराब, बियर, दवा, फूड ऐंड बेवरेजस इंडस्ट्री से मांग आने की वजह से ही ग्लास कंटेनर उद्योग में बढ़ोतरी हो रही थी।
ऑल इंडिया ग्लास मैन्युफैक्चर्स फेडरेशन (एआईजीएमएफ) के प्रवक्ता वी. श्रीराम का कहना है, 'एक साल पहले के 4,000 करोड़ रुपये के कारोबार की तुलना में इस वित्तीय वर्ष में 12 फीसदी की वृद्धि दर के हिसाब से कारोबार 4,500 करोड़ रुपये पर बंद होने की उम्मीद है।' इस उद्योग में तेजी आ रही है और अगले कुछ साल तक इसमें दोहरे अंकों की वृद्धि का अनुमान है।
श्रीराम का कहना है कि इस उद्योग के दस बड़े खिलाड़ियों में से तीन बड़े खिलाड़ी हिन्दुस्तान नेशनल ग्लास ऐंड इंडस्ट्रीज, गुजरात ग्लास ऐंड एसोसिएटेड ग्लास इंडस्ट्रीज का ही बाजार में 80 फीसदी तक का हिस्सा है। इन दस ग्लास निर्माताओं की कुल उत्पादन क्षमता लगभग 4,000 टन प्रति दिन है।
देश के ग्लास कंटेनर उत्पादन के लगभग 65 फीसदी हिस्से का इस्तेमाल शराब और बियर इंडस्ट्री जबकि फूड इंडस्ट्री में 20 फीसदी इस्तेमाल होता है। इसके अलावा सॉफ्ट ड्रिंक्स, कॉस्मेटिक्स में बाकी हिस्से का इस्तेमाल होता है। एजीआई को यह उम्मीद है कि शराब और बियर इंडस्ट्री में ग्लास की मांग मौजूदा स्तर से बढ़ सकती है।
श्रीराम का कहना है, 'हमारे कुछ खास ग्राहक इस सेगमेंट में शराब और बियर की उत्पादन क्षमता को बढ़ाने की कवायद में जुटेंगे। इससे हमारे उत्पाद की मांग भी बढ़ेगी।' उनका कहना है कि इस इंडस्ट्री से कुल निर्यात 10 फीसदी होता है और इससे 4,500 करोड़ रुपये का राजस्व आता है। अमेरिका और यूरोप के बाजार में फूड, कॉस्मेटिक्स के लिए इस इंडस्ट्री से मांग पूरी की जाती है।
भारत में ग्लास कंटेनर इंडस्ट्री में हाल के वर्षो में एकीकरण देखा गया है। नए फर्नेस में निवेश और तकनीक के सुधार पर ही ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है। इसी वजह से ग्लास कंटेनर का उत्पादन दोगुना से ज्यादा हो गया और यह वर्ष 1997-98 में 800,000 टन से बढ़कर 14 लाख टन हो गई। इस तरह इसमें 80 फीसदी तक की बढ़ोतरी देखी गई।
दूसरे पैकेजिंग के विकल्पों के मौजूद होने और कड़ी प्रतियोगिता के बावजूद ग्लास कंटेनर के उत्पादन में बढ़ोतरी हुई। प्लास्टिक, पेपर और बोर्ड जैसे पैकिजिंग के विकल्प की वजह से ही ग्लास की गुणवत्ता पर भी खास जोर दिया जा रहा है। ग्लास निर्माता, गुणवत्ता के सुधार के साथ ही उसके रंगों आकार और डिजाइन की संभावनाओं पर काम कर रहे हैं।
इसके अलावा वे पैकेजिंग के दूसरे विकल्पों से दमदार मुकाबला करने के मद्देनजर तकनीक के सुधार पर भी ध्यान दे रहे हैं ताकि ग्लास कं टेनर के वजन और मजबूती बेहतर हो। ग्लास का इस्तेमाल एक प्रीमियम प्रोडक्ट के तौर पर किया जाता है ताकि ब्रांड की छवि बेहतर बने।
भारतीय ग्लास कंटेनर इंडस्ट्री का बेहतर इतिहास रहा है। पहले परंपरागत तरीके से हाथ से ग्लास बनाया जाता था लेकिन अब तकनीक के विकास की वजह से ग्लास बनाने का काम ऑटोमेटिक हो गया है। सजावटी और टेबल ग्लास बनाने में हस्तशिल्प का ही इस्तेमाल होता है और इसका निर्यात ज्यादा मात्रा में होता है।
शराब, खाद्य पदार्थ और दवाइयों के लिए पारदर्शी ग्लास से की जाने वाली पैकेजिंग बेहतर होती है। ग्लास कं टेनर को दूसरे पैकेजिंग माध्यमों मसलन प्लास्टिक, अल्युमिनियम और टे्रटापैक से कड़ी टक्कर मिल रही है। इसके अलावा सेकेंड हैंड ग्लास बोतल का इस्तेमाल बढ़ रहा है।
श्रीराम का कहना है कि सेकंड हैंड ग्लास बोतल का इस्तेमाल चिंता की बात है। जहां तक कमाई की बात है तो पूरे कंटेनर ग्लास मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री से मिलने वाला कुल उत्पाद कर और बिक्री कर में सेकेंड हैंड ग्लास बोतल के इस्तेमाल से केंद्रीय उत्पादन और बिक्री कर प्राधिकरण को नुकसान हो रहा है।
जहां तक स्वास्थ्य का मुद्दा है उसमें सबसे खास दिक्कत पुनरावर्तित बोतल से होती है क्योंकि ऐसे बोतल स्वास्थ्य के लिहाज से बेहतर नहीं होते। उनका कहना है कि इंडस्ट्री अब एक्सपाइरी तारीख को बोतल पर लिखने की योजना बना रही है ताकि उपभोक्ता जागरुक रहें। (BS Hindi)
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