नई दिल्ली 03 30, 2009
सरकार ने गेहूं को उन उत्पादों की श्रेणी में शामिल नहीं करने का फैसला किया है जिन पर राज्यों की ओर से व्यापारियों के भंडारण की सीमा लगाई जा सकती है।
साथ ही कुछ अन्य कृषि उत्पादों की जमाखोरी रोकने के उद्देश्य से कार्रवाई करने के राज्यों के अधिकार सितंबर तक बढ़ा दिए। गृह मंत्री पी चिदंबरम ने बताया कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने अधिसूचनाओं की वैधता को 30 सितंबर 2009 तक बढ़ाने का फैसला किया है।
ये अधिसूचनाएं आवश्यक वस्तु कानून के तहत राज्यों को जमाखोरी के खिलाफ कार्रवाई करने का अधिकार देती है। विदेश मंत्री प्रणव मुखर्जी की अध्यक्षता वाले मंत्रियों के उच्चाधिकार प्राप्त समूह ने इस महीने की शुरूआत में इस आशय के फैसले को अंतिम रूप दिया था।
चावल, खाद्य तेल और तिलहन के लिए भंडारण सीमा पिछले साल सात अप्रैल को तय की गई थी। यह सीमा छह अप्रैल को समाप्त हो रही थी। धान के मामले में अधिसूचना की सीमा 30 अप्रैल को समाप्त होनी थी। अगस्त 2006 में केन्द्र ने राज्यों को भंडार की सीमा गेहूं और दाल के मामले में तय करने का अधिकार दिया था ताकि बढ़ती कीमतों पर अंकुश लगाया जा सके।
अधिसूचना शुरूआत में छह महीन के लिए वैध है लेकिन इसे समय समय पर बढ़ाया जा सकता है। गेहूं तथा आटा मिलों ने केंद्र के इस फैसले का स्वागत किया है। रोलर्स फ्लोर मिलर फेडरेशन की सचिव वीणा शर्मा ने कहा, 'इससे पहले मिलों को गेहूं कारोबारियों तथा सरकार से लेना होता था। लेकिन गेहूं पर आज के फैसले से पूर्ण आजादी मिल गई है। वे अपनी मांग की पूर्ति मंडियों से सीधी खरीद से कर सकते हैं।'
उन्होंने कहा कि हालांकि उद्योग जगत इस साल अधिक खरीद नहीं करेगा लेकिन उपलब्धता पर्याप्त रहेगी। केंद्र ने आज गेहूं को उन उत्पादों की श्रेणी में शामिल नहीं करने का फैसला किया है जिन पर राज्यों की ओर से व्यापारियों के भंडारण की सीमा लगाई जा सकती है। साथ ही कुछ अन्य कृषि उत्पादों की जमाखोरी रोकने के उद्देश्य से कार्रवाई करने के राज्यों के अधिकार सितंबर तक बढ़ा दिए। (BS Hindi)
01 अप्रैल 2009
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें