01 अप्रैल 2009
सूखे मौसम से चाय उत्पादन में गिरावट की आशंका
कोलकाता : चाय उत्पादक प्रमुख देशों में सूखे मौसम के कारण जनवरी-मार्च 2009 तिमाही में दुनिया भर में चाय उत्पादन में गिरावट आने की आशंका है। शुरुआती आंकड़े बता रहे हैं कि उत्पादन पहले ही 1.4 करोड़ किलो कम चुका है। इसमें ज्यादा असर श्रीलंका पर पड़ा है। सूखे जैसी स्थितियों के कारण भारत में भी चाय उत्पादन की पहली खेप पर असर पड़ा है। दक्षिण भारत, असम और दोआर्स में चाय फसल प्रभावित हुई है। परिणामस्वरूप इससे न केवल वैश्विक बाजार में चाय की कीमतें बढ़ रही हैं बल्कि भारतीय नीलामी में भी कीमतों पर असर पड़ा है। मैक्लॉयड रसेल इंडिया (एमआरआईएल) के मैनेजिंग डायरेक्टर आदित्य खेतान ने बताया, 'वित्त वर्ष 2010 में भारतीय चाय सेक्टर के लिए अच्छा साबित होने जा रहा है। इस साल भारतीय चाय कंपनियों के अच्छा प्रदर्शन करने की संभावना है क्योंकि पहले ही चाय की कीमतों में 20-25 रुपए प्रति किलो का इजाफा हो चुका है।' असम की अच्छी चाय जो 2008 में 85-90 रुपए प्रति किलो के स्तर पर थी अभी वह 95-130 रुपए प्रति किलो के बीच पहुंच गई है। शुरुआती आंकड़ों के अनुसार जनवरी 2009 में भारत में चाय उत्पादन में मामूली गिरावट आई है। इस बार 2.15 करोड़ किलो चाय का उत्पादन हुआ है जबकि पिछले साल इसी अवधि में उत्पादन 2.16 करोड़ किलो का उत्पादन हुआ था। इंडियन टी असोसिएशन (आईटीए) का कहना है कि फरवरी और मार्च में फसल का नुकसान और अधिक होगा। आईटीए के एक अधिकारी का कहना है, 'पहली खेप में हुए नुकसान की भरपाई करना मुश्किल है।' चाय कंपनियों का अनुमान है कि इस साल भी कीमतों में तेजी बरकरार रहेगी, क्योंकि आंतरिक मांग को पूरा करने के लिए कोई पुराना कैरी ओवर स्टॉक भी नहीं हैं। वारेन टी के एग्जिक्यूटिव चेयरमैन विनय गोयनका का कहना है, 'नए सीजन में कीमतें पहले ही औसत रूप से 25-30 फीसदी बढ़ चुकी हैं। हम यही उम्मीद कर सकते हैं कि खराब मौसम के कारण हमें अधिक चाय का नुकसान न हो। मौसम में सुधार आना चाहिए जिससे बिक्री के लिए हमारे पास चाय हो। वारेन टी के मामले में, अपने 14 एस्टेटों में से तीन फैक्ट्रियों में हम उत्पादन शुरू नहीं कर सके हैं क्योंकि इन एस्टेटों में उत्पादन बेहद कम हुआ है।' चाय फसल के नुकसान की ऐसी ही स्थिति 1999 में भी हुई थी। उस समय 4.5-5 करोड़ किलो कम चाय का उत्पादन हुआ था। लेकिन उस साल वैश्विक स्तर पर उत्पादन पर असर नहीं पड़ा था, इस कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतों में इतना ज्यादा उछाल नहीं आया था। असम कंपनी के एक सीनियर अधिकारी का कहना है, 'इस साल स्थिति पूरी तरह से अलग है। हर जगह फसल पर असर पड़ा है।' (ET Hindi)
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