February 17, 2009
अंतरिम बजट होने से इसमें बहुत अनिश्चितता है। आने वाले दिनों में कितनी परियोजनाओं को सुचारू रूप से कार्यान्वित किया जाएगा, यह देखने लायक होगा। हालांकि नई सरकार पर भी बहुत सारी बातें निर्भर करेंगी।
इस बजट से एक बात तो साफ जाहिर हो रही है कि अगला साल काफी दुखदायी होने जा रहा है और ऐसा इसलिए भी है क्योंकि कर वसूली बहुत कम हुई है। इसके इतर खर्चे बढ़ते ही जाएंगे।
इसका मतलब यह हुआ कि सरकार का वित्तीय घाटा काफी बढ़ जाएगा। लिहाजा अगर सरकार खर्चा अधिक करती है तो उस पर उधारी का दबाव बढ़ेगा और उसके परिणामस्वरूप राजकोषीय घाटा बढ़ेगा।
पहली बात तो यह भी कि यह अंतरिम बजट है यानी यह कुछ ही महीनों के लिए है। नई सरकार के आने के बाद एक बार फिर से आम बजट को पेश किया जाएगा। ऐसे में इस अंतरिम बजट से मंदी के इस दौर में कोई खास फायदा नहीं होने वाला है।
यह अंतरिम बजट अप्रैल से लागू होना है। उसके बाद सरकार चुनाव की तैयारी में जुट जाएगी। मसलन, इस अंतरिम बजट के विभिन्न प्रस्तावों को लागू किए जाने और आगामी चुनाव की तैयारियों के बीच बहुत ज्यादा समय नहीं बचेगा। उस वक्त तक सरकार कितनी परियोजनाओं को कार्यान्वित कर पाएगी, यह देखना होगा।
कोई भी अनुमान लगा सकता है कि इतने कम समय में सरकार किन-किन परियोजनाओं को लागू कर सकती है।
बातचीत : पवन
अंतरिम बजट में बुनियादी क्षेत्रों पर बहुत जोर दिया गया है और सार्वजनिक-निजी साझेदारी (पीपीपी मॉडल) के तहत निवेश की बात कही गई, लेकिन निवेश प्रारूप को तय नहीं किया गया है, बल्कि उसे अगली सरकार पर छोड़ दिया गया है।
अश्विनी कुमारउद्योग राज्यमंत्री
मौजूदा वैश्विक स्थिति को देखते हुए कोई कदम नहीं उठाया गया है। सही मायने में वित्त मंत्री ने एक राजनीतिक बजट पेश किया है, जबकि मंदी के माहौल में सरकार से हर क्षेत्र को काफी आशा थी। लेकिन इस बजट से किसी क्षेत्र का भला नहीं होने वाला है।
उदय कोटकउपाध्यक्ष, कोटक महिंद्रा बैंक (BS Hindi)
17 फ़रवरी 2009
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