राजकोषीय घाटा - चालू वित्त वर्ष में सरकार का राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पादन का 6 फीसदी होने का अनुमान है।
बीएस संवाददाता / नई दिल्ली February 17, 2009
अंतरिम बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री ने कहा कि चालू वित्त वर्ष में सरकार का राजकोषीय घाटा भारतीय उत्पादन का 6 फीसदी होने का अनुमान है। राजकोषीय घाटे का मतलब है सरकार की आय से व्यय का अधिक होना।
इस बार राजकोषीय घाटा पिछले 14 सालों में सबसे ज्यादा है। इस बारे में सरकार का कहना है कि मंदी की वजह से कर संग्रह में कमी और सरकारी खर्चों में बढ़ोतरी के कारण सरकार का राजकोषीय घाटा बढ़ा है।
वित्त वर्ष 2009-10 में घाटा सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की तुलना में 0.5 प्रतिशत घटकर 5.5 फीसदी रहने का अनुमान है। हालांकि इसमें सरकार की ओर से जारी किए जाने वाले 96,000 करोड़ रुपये के बॉन्ड, जो तेल और उर्वरक कंपनियों को दिया जाता है, उसे शामिल नहीं किया गया है।
अगर राजकोषीय घाटे में इसे भी शामिल किया जाता है, तो कुल राजकोषीय घाटा चालू वित्त वर्ष में बढ़कर 7.8 फीसदी हो सकता है। लेकिन सरकार की ओर से बाद में बताया गया कि वर्ष 2009-10 के लिए कोई भी गैर बजटीय प्रावधान नहीं रखा गया है और सभी तरह की सब्सिडी केंद्र सरकार की ओर से नकद में दी जाएगी।
उल्लेखनीय है कि राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन कानून में तय किया गया था कि राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद का 3 फीसदी होना चाहिए। हालांकि प्रणव मुखर्जी ने अंतरिम बजट पेश करते हुए कहा कि इस बार की स्थितियां प्रतिकूल हैं, ऐसे में राजकोषीय घाटे का बढ़ना तय था। यही वजह है कि सरकार इस लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाई।
हालांकि उन्होंने कहा कि जब अर्थव्यवस्था पटरी पर आ जाएगी और स्थितियां अनुकूल हो जाएंगे, तब एफआरबीएम के लक्ष्य को पूरा किया जा सकता है। इधर, विशेषज्ञों का कहना है कि इससे सरकार को कर्ज लेने में किसी तरह की परेशानी नहीं आएगी और अर्थव्यवस्था में सुधार आते ही निजी क्षेत्रों में भी निवेश बढ़ेगा।
चालू वित्त वर्ष में सरकार की ओर से 2,61,972 करोड़ रुपये का कर्ज लेने का लक्ष्य रखा गया है। हालांकि पहले 1,00,571 करोड़ रुपये के कर्ज का अनुमान लगाया गया था। इसमें अल्पअवधि के कर्ज शामिल नहीं हैं, जिसमें 57,500 करोड़ रुपये लिए जाने हैं।
यह इसलिए किया गया है, क्योंकि चालू वित्त वर्ष के लिए कुल अनुमानित खर्च बढ़कर 1,50,000 करोड़ रुपये हो सकता है, जबकि राजस्व प्राप्तियां घटकर 40,762 करोड़ रुपये रहने का अंदेशा है।
इस बारे में जब आर्थिक मामलों के सचिव अशोक चावला से पूछा गया, तो उन्होंने बताया कि इस घाटे को पूरा करने के लिए बाजार से कर्ज नहीं जुटाया जाएगा, बल्कि भारतीय रिजर्व बैंक से इस बारे में बात की जा रही है और संभव है रकम वहीं से जुर्टाई जाएगी।
वर्ष 2009-10 में बाजार से करीब 3,09,000 करोड़ रुपये लिया जाना है। वर्ष 2008-09 में राजस्व घाटा 4 फीसदी रहने का अनुमान है, जबकि बजट में 1 फीसदी का अनुमान किया गया था।
हालांकि प्राथमिक घाटा (प्राइमरी डेफिसिट), जिसमें ब्याज भुगतान शामिल है, वह सकल घरेलू उत्पाद का 1.8 फीसदी रहने का अनुमान है, जबकि पिछले दो वित्त वर्ष (2006-07 और 2007-08) में यह नकारात्मक था।
प्रणव मुखर्जी ने कहा कि 12वें वित्त आयोग में राज्यों को राजकोषीय घाए के लक्ष्य में कुछ राहत मिल सकती है। इसके तहत राज्यों की सकल घरेलू उत्पाद की तुलना में यह 0.5 फीसदी घटकर 3.5 फीसदी रहने का अनुमान है। (BS Hindi)
17 फ़रवरी 2009
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें