नई दिल्ली February 23, 2009
केंद्रीय कोषागार ने अनुमान लगाया है कि प्रति माह गेहूं और चावल के भंडारण पर 132 करोड़ रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं। इसकी प्रमुख वजह है कि इन जिंसों का स्टॉक बढ़ता जा रहा है। पिछले साल जितने भंडारण का अनुमान लगाया गया था, उसकी तुलना में इस साल 76 प्रतिशत ज्यादा स्टॉक हुआ है।
अब स्थिति यह है कि गेहूं की नई फसल भी आने वाली है, ऐसे में सरकारी गोदामों में और ज्यादा अनाज जमा होने का अनुमान लगाया जा रहा है। कमोवेश इन दोनों जिंसों के निर्यात पर प्रतिबंध है और इसमें निजी रुचि सीमित है।
अगर हम 1 फरवरी के आंकड़ों पर गौर करें तो केंद्रीय पूल में गेहूं का स्टॉक 168 लाख टन था और चावल का स्टॉक 202 लाख टन। इस तरह से इन दोनों जिंसों का कुल भंडार 370 लाख टन हो गया। अगर पिछले साल के भंडार पर गौर करें तो यह इसी तिथि को 210 लाख टन था।
इन दोनों अनाजों का स्टॉक मानकों से बहुत ज्यादा है। गेहूं के लिए यह 82 लाख टन और चावल के लिए 118 लाख टन है। केंद्रीय पूल का यह अनाज सार्वजनिक वितरण प्रणाली और अन्य लोक वितरण योजनाओं के माध्यम से लोगों तक पहुंचाया जाता है।
एक विश्लेषक ने कहा कि अनाज के इतने अधिक भंडारण की वजह से खुले बाजार में कीमतें स्थिर रहती हैं, क्योंकि इससे सरकार के पास विकल्प होता है कि वह खुले बाजार में अनाज उतार दे। बहरहाल इतने अधिक भंडारण से भंडारण का नुकसान भी झेलना पड़ता है।
सरकार एक क्विंटल अनाज से भंडारण और रखरखाव पर प्रतिमाह 3.58 रुपये या प्रति टन पर 35.80 रुपये खर्च करती है। इस हिसाब से अगर गणना करें तो 370 लाख टन अनाज के रखरखाव और भंडारण पर 132.46 करोड़ रुपये का खर्च आता है।
यह दर उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय द्वारा स्वीकृ त है, जिसका भुगतान विभिन्न भंडारण निगमों को भंडारण खर्च के रूप में दिया जाता है। इस तरह से 1 फरवरी 2008 को जमा 210 लाख टन अनाज के भंडारण का खर्च 75.18 करोड़ रुपये आता है।
अगर इस साल के खरीफ की फसल में चावल के उत्पादन को देखें तो यह पहले ही 232.2 लाख टन रहा जो पिछले साल के 194.6 लाख टन की तुलना में 19 प्रतिशत से ज्यादा है। पिछले रबी सत्र में गेहूं का उत्पादन अब तक का सर्वाधिक उत्पादन था, जो 225 लाख टन रहा।
इस उत्पादन में मौसम का साथ और बेहतर समर्थन मूल्य दोनों का योगदान रहा। ध्यातव्य है कि इन दोनों अनाजों के निर्यात पर प्रतिबंध है। इसके साथ ही निजी कारोबारी लोगों द्वारा इन अनाजों के भंडारण की सीमा भी तय की गई है।
इस प्रतिबंध के चलते निजी क्षेत्र से कारोबारी इसके रखरखाव के मामले में कम ही सामने आते हैं। 20 फरवरी को कृषि मंत्री शरद पवार ने संसद में कहा था कि आगामी 10 दिनों में सरकार गेहूं के निर्यात से प्रतिबंध हटाने और निजी क्षेत्र द्वारा इसके स्टॉक की सीमा में ढील दिए जाने पर विचार कर सकती है। (BS Hindi)
24 फ़रवरी 2009
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