कोच्चि February 19, 2009
काली मिर्च उत्पादक सभी देश अभी भारी दबाव में हैं क्योंकि अधिकांश आयातक देश, खास तौर से यूरोपीय यूनियन और अमेरिका अपने भंडार बढ़ाने में दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं।
वियतनाम और भारत में काली मिर्च की कटाई अभी मध्य में है। अमेरिकी और यूरोपीय खरीदारों का बाजार से दूर रहना आश्चर्य की बात है। कटाई के इस सीजन में वे केवल आवश्यक न्यूनतम मात्रा की खरीदारी कर रहे हैं।
वैश्विक काली मिर्च कारोबार में यह समय भंडार बनाने के नजरिये से काफी उपयुक्त है क्योंकि इन महीनों में कुल वैश्विक आपूर्ति के लगभग 50 फीसदी की आपूर्ति की जाती है। वर्तमान वैश्विक वित्तीय संकट से पश्चिमी देशों के खुदरा वर्ग में मसालों की मांग गंभीर रुप से प्रभावित हुई है।
कम खरीद से प्रमुख उत्पादक देशों पर दबाव बढ़ा है और इसलिए कीमतों में भारी गिरावट आई है। वियतनाम ने कीमतों में कटौती की है और 500जीएल की कीमत 1,850 डॉलर प्रति टन, 550जीएल की 1,950 डॉलर प्रति टन और एएसटीए की कीमत घटा कर 2,150 टन कर दी है।
यह भी आश्चर्य की बात है कि इंडोनेशिया जो आम तौर पर अधिक कीमतों का उल्लेख करता है, एएसटीए की कीमत घटा कर 2,150 डॉलर प्रति टन कर दिया है जो ब्राजील और वियतनाम की कीमतों के समतुल्य है।
वर्तमान में भारतीय काली मिर्च की कीमतें सबसे अधिक, कोच्चि में 2,300 से 2,350 डॉलर प्रति टन है और यह वैश्विक बाजार से पूरी तरह कट गया है। अग्रणी निर्यातकों के अनुसार, वियतनाम में कटाई शुरू होने से बाजार का रुख मंदी की ओर है। अगर, खरीद की रफ्तार इतनी ही धीमी रही और बाजार में काली मिर्च की आवक जारी रही तो कीमतों में भारी कमी आने के आसार नजर आते हैं।
कीमतें दैनिक आधार पर कम हो रही हैं और घरेलू मांग कुछ बेहतर होने से भारत की स्थिति अच्छी है। वियतनाम के नवीनतम आंकड़ों से जाहिर होता है कि कुल उत्पादन 1,05,000 से 1,10,000 टन के दायरे में होगा। वियतनाम का पिछला भंडार 15,000 टन का है और कुल आपूर्ति लगभग 1,25,000 टन की होगी।
यद्यपि, भारत में इस सीजन में काली मिर्च का उत्पदन 30 फीसदी कम हुआ है लकिन इससे वैश्विक आपूर्ति गंभीर रूप से प्रभावित नहीं होगी। यूरोपीय यूनियन और अमेरिका के रुख से आपूर्ति पर दबाव बनेगा जिससे कीमतों में भारी गिरावट आएगी।
केरल में काली मिर्च की कटाई अंतिम चरण में है। वाइनाड से काली मिर्च की आपूर्ति में भी तेजी आई है और कर्नाटक में कटाई की शुरुआत हो चुकी है। कर्नाटक में 25,000 टन काली मिर्च के उत्पादन का अनुमान है।
तमिलनाडु ने काली मिर्च को शून्य-वैट की श्रेणी में रखा है। इससे मसाले की तस्करी में तेजी आ सकती है। विशेषज्ञों ने कहा कि तमिलनाडु में काली मिर्च के कारोबार में बढ़ोतरी होगी क्योंकि तमिलनाडु के क्षेत्र में काली मिर्च के आ जाने के बाद बिना कर चुकाए आधिकारिक तौर पर इसका कारोबार किया जा सकता है। (BS Hindi)
20 फ़रवरी 2009
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