21 फ़रवरी 2009
बासमती निर्यातकों में सरकारी नीति को लेकर आशंका
नई दिल्ली : देश के प्रमुख निर्यातकों ने सरकार से यह साफ करने को कहा है कि वह कितनी मात्रा में बासमती चावल निर्यात की मंजूरी देना चाहती है। इन्होंने वाणिज्य मंत्रालय से भी अनुरोध किया है कि न्यूनतम निर्यात कीमत (एमईपी)सीधे बासमती और दूसरी किस्मों की उस मात्रा से जोड़ा जाए जिसे सरकार अगले छह महीने में निर्यात के लिए मंजूरी देना चाहती है। चावल की अच्छी फसल को देखते हुए निर्यातक चिंतित हैं कि सरकार इस वक्त तो एमईपी घटा सकती है लेकिन चुनावों की घड़ी करीब आने पर दो-तीन महीनों में सरकार फिर एमईपी बढ़ा सकती है और कर लगा सकती है। निर्यातकों को आशंका है कि इससे उनके कारोबार पर काफी बुरा असर पड़ सकता है। इस बात के संकेत दिख रहे हैं कि सरकार अगले छह महीने में 20 लाख टन से ज्यादा बासमती के निर्यात को मंजूरी नहीं देगी। दिल्ली के एक एक्सपोर्ट हाउस के वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, 'यह उचित होगा कि इस मामले पर सरकार का नजरिया पता चल जाए कि वह कितनी मात्रा में बासमती निर्यात की मंजूरी देने की इच्छुक है। इस मसले पर दोनों पक्षों के बीच एक सहमति बननी जरूरी है।' बासमती निर्यात मसले पर सरकार के कभी भी नीति को बदलने की आशंका से ग्रस्त कारोबारी हलके ने यह मांग तेज कर दी है कि सरकार इस चीज को साफ कर दे कि वह अगले छह महीने में बासमती की कितनी मात्रा को निर्यात के लिए मंजूरी देने में आरामदायक स्थिति में है। निर्यातकों को डर है कि अगर बासमती निर्यात की नीति में सरकार अचानक बदलाव करती है तो आने वाले वक्त में उनके कारोबार पर काफी बुरा असर पड़ सकता है। चावल निर्यात सेक्टर के एक विश्लेषक के मुताबिक, 'हमारा मानना है कि सरकार 20 लाख टन बासमती और दूसरी किस्मों के निर्यात की मंजूरी देने में आरामदायक स्थिति में है और वह इतनी मात्रा पर कोई भी कठोर कदम नहीं उठाएगी। छह महीने के लिए निर्यात की इतनी मात्रा पर्याप्त है। हमारा मानना है कि बासमती और दूसरी किस्मों के चावल पर चल रहे कर और प्रतिबंध प्रतिगामी और गैरजरूरी हैं।' सरकार ने बासमती चावल के निर्यात पर लगने वाले 8,000 रुपए प्रति टन के एक्सपोर्ट उपकर को हटा दिया है। इसके अलावा सरकार जनवरी में इसके न्यूनतम निर्यात मूल्य को भी 1,200 रुपए प्रति टन से घटाकर 1,100 रुपए प्रति टन कर चुकी है। सरकार के इन कदमों से हालांकि निर्यातकों को ज्यादा फायदा नहीं मिला है। मौजूदा वक्त में चुनावों को देखते हुए सरकार ने बासमती की एमईपी में कटौती के संकेत दिए थे लेकिन इस बारे में कोई ठोस काम नहीं किया गया। इस बारे में कोई स्पष्ट संकेत दिखाई नहीं दे रहे हैं कि सरकार कब तक इन करों को हटाएगी। (ET Hindi)
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें