नई दिल्ली February 23, 2009
उत्पादन में कमी ने सरकार की पेट्रोल में एथेनॉल मिलाने की योजना पर पानी फेर दिया है। 16 महीने पहले सरकार ने यह अनिवार्य किया था कि पेट्रोल में 5 प्रतिशत एथेनॉल मिलाया जाए, लेकिन यह योजना कभी साकार नहीं हो सकी।
इसके साथ अक्टूबर 2008 में इसकी मिलावट 10 प्रतिशत तक किए जाने का लक्ष्य भी पीछे छूट गया है। अक्टूबर 2007 में जब मिलावट की इस योजना की घोषणा की गई थी, तेल विपणन कंपनियों ने अनुमान लगाया था कि पेट्रोल में इसका 5 प्रतिशत मिश्रण करने के लक्ष्य को पूरा करने के लिए 18,000 लाख लीटर एथेनॉल की जरूरत पड़ेगी।
बहरहाल कंपनियां केवल 13,200 लाख लीटर के सौदे का प्रबंध कर सकीं और जनवरी तक के उपलब्ध हालिया आंकड़ों के मुताबिक केवल 1200 लाख लीटर एथेनॉल की वास्तविक खरीद की जा सकी है।
इस योजना के सफल न हो पाने की प्रमुख वजह चीनी उद्योग से जुड़ा हुआ है। इस साल चीनी के उत्पादन में बहुत कमी आई है और एथेनॉल इसका उप उत्पाद होता है। चीनी के कारोबार के वैश्विक परिदृष्य को अगर देखें तो चीनी की कीमतों में गिरावट आने की वजह से किसान अन्य फसलों की ओर चले गए, जहां उन्हें बेहतर मुनाफा की उम्मीद थी।
चीनी उत्पादक बड़े राज्यों में बुआई के क्षेत्रफल में 20-25 प्रतिशत की कमी आई है। उत्तर प्रदेश में चीनी मिलों को पेराई के लिए गन्ने की कमी का सामना करना पड़ रहा है। यहां पर गन्ने की पेराई में रिकॉर्ड 40-50 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है।
इसका सीधा प्रभाव शीरे के उत्पादन पर पड़ा है, जो एथेनॉल बनाने के लिए कच्चे माल के रूप में प्रयोग किया जाता है। उद्योग जगत के अनुमानों के मुताबिक फरवरी के अंत तक पेराई खत्म हो जाएगी। शीरे के कुल उत्पादन में 30 प्रतिशत से ज्यादा की कमी देखी जा सकती है।
सामान्यतया गन्ने की पेराई का काम अप्रैल महीने में ही बंद होता है। इसके साथ ही अगले साल भी गन्ने के उत्पादन में कमी का अनुमान लगाया जा रहा है, जो अक्टूबर 2009 में शुरू होगा।
पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस राज्य मंत्री दिनशा पटेल ने हाल ही में संसद में कहा, 'अभी तक 5 प्रतिशत मिलावट करने की योजना को ही अमल में नहीं लाया जा सका है। अगर मिलावट बढ़ाकर 10 प्रतिशत किया जाता है तो इसके लिए एथेनॉल की उपलब्धता भी सुनिश्चित करना होगा।'
एथेनॉल जैसे पेट्रोलियम के विकल्प पूरी दुनिया के लिए महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों में तेजी तय है। बहरहाल इस समय इसकी ओर से ध्यान हटा है, क्योंकि पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतें बहुत कम हो गई हैं।
भारतीय बास्केट का कच्चा तेल जुलाई 2008 के 142 डॉलर प्रति बैरल से कम होकर इस समय 40 डॉलर प्रति बैरल के आसपास पहुंच गया है। इसमें 71 प्रतिशत के करीब गिरावट आई है। इसके चलते ब्राजील जैसे देशों से एथेनॉल के आयात का कोई खास मतलब नहीं बनता है।
राज्य द्वारा संचालित विपणन कंपनियां चीनी मिलों से बोली के माध्यम से एथेनॉल 21.50 रुपये प्रति लीटर के हिसाब से खरीदती हैं। कुछ तेल विपणन कंपनियों ने एथेनॉल के उत्पादन के क्षेत्र में खुद भी कदम रखा है।
हिंदुस्तान पेट्रोलियम कार्पोरेशन ने पिछले साल बिहार की दो बीमार पड़ी चीनी मिलों को खरीदा, लेकिन उसके बाद कोई प्रगति नजर नहीं आ रही है। जनवरी में कंपनी आंध्र प्रदेश की 4 चीनी मिलों को खरीदने की योजना टाल दी है।
चीनी उद्योग से जुड़े सूत्रों ने संकेत दिया है कि उत्तरी भारत के राज्यों में मिलावट को व्यापक सफलता मिली है, लेकिन महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और उड़ीसा में ऐसी स्थिति नहीं है।
एथेनॉल की बड़ी उत्पादक कंपनी रेणुका शुगर्स के प्रबंध निदेशक नरेंद्र मुरकुंबी ने कहा कि खरीद का एक निश्चित तरीका चीनी उद्योग को स्पष्ट होना चाहिए, तभी मिलें एथेनॉल के उत्पादन में और ज्यादा निवेश करने के बारे में सोचेंगी। (BS Hindi)
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