सरकार ने सब्सिडी पिछले साल के 540 करोड़ रुपये से घटाकर 200 करोड़ रुपये की
एजेंसी / नई दिल्ली February 19, 2009
खाद्य तेल की कीमतों में वैश्विक स्तर पर हो रही गिरावट से सरकार की सब्सिडी का बोझ कम हुआ है जिसके कारण अगले वित्त वर्ष के बजट में इस मद में होने वाले बजटीय आवंटन में 63 फीसदी की कटौती की गई है।
वित्त वर्ष 2009-10 में खाद्य तेल से जुड़ी सब्सिडी के लिए बजटीय आवंटन घटाकर 200 करोड़ रुपये कर दिया गया है जो पिछले साल 540 करोड़ रुपये था। हालांकि, तेल पर सब्सिडी 15 रुपये प्रति किलो से बढ़ाकर 25 रुपये प्रति किलो कर दी गई है।
सब्सिडी के लिए आवंटित राशि का उपयोग देश भर की राशन की दुकानों के जरिए आम आदमी को सस्ती दर पर आयातित तेल मुहैया कराने के लिए किया जाएगा। उद्योग के विशेषज्ञों का मानना है कि अप्रैल 2008 के बाद से कच्चे पाम आयल और सोयाबीन के तेल की वैश्विक कीमतों में गिरावट के कारण सरकार का सब्सिडी का बोझ कम हुआ है।
सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन आफ इंडिया (एसईए) के आंकड़ों के मुताबिक कच्चे पाम आयल की वैश्विक कीमत फिलहाल 510 डालर प्रति टन है जबकि अप्रैल 2008 में यह 1,150 डॉलर प्रति टन थी जबकि कच्चे सोयाबीन तेल की कीमत 1,398 डॉलर प्रति टन से घटकर 725 डॉलर प्रति टन हो गई।
भारत में सालाना 120 लाख टन खाद्य तेल की खपत होती है जिसमें से आधे का आयात किया जाता है। बढ़ती कीमतों से आम आदमी को राहत देने के लिए सरकार ने पिछले साल एक योजना की घोषणा की ताकि सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) की अंत्योदय अन्न योजना और गरीबी रेखा के नीचे के परिवारों को 15 रुपये प्रति किलो की रियायती दर पर राशन की दुकानों पर उपलब्ध हो सके।
हालांकि जनवरी में विदेश मंत्री प्रणव मुखर्जी की अध्यक्षता वाले मंत्रिसमूह ने तेल की कीमत बढ़ाकर 25 रुपये प्रति किलो करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। दरअसल सब्सिडी सरकारी उपक्रमों को दी जा रही थी जिन पर आयात और सस्ती दर पर राज्यों को तेल पहुंचाने का जिम्मा था।
सब्सिडी वाले खाद्य तेलों का आयात नेफेड, पीईसी, एमएमटीसी और एसटीसी के माध्यम से किया जा रहा है। (BS Hindi)
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