27 फ़रवरी 2009
फर्टिलाइजर में 5 साल में आत्मनिर्भर हो सकता है भारत
नई दिल्ली: भारत अगले पांच साल में इस स्थिति में पहुंच सकता है कि उसे उर्वरकों के आयात की जरूरत न पड़े। सरकार उर्वरकों के मामले में आत्मनिर्भर होने के लिए बंद पड़े 8 कारखानों को चालू करने की योजना बना रही है। इसमें कुल 32,000 करोड़ रुपए निवेश करना होगा। यह योजना इस लिहाज से अहम है कि देश के भारी-भरकम सब्सिडी बिल में उर्वरकों की प्रमुख हिस्सेदारी है। उर्वरक सचिव अतुल चतुर्वेदी ने गुरुवार को संवाददाताओं को यहां बताया कि ये कारखाने चालू हो जाएं तो पांच वर्षों में उर्वरक आपूर्ति और मांग के बीच 60-70 लाख टन का अंतर खत्म किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि पांच साल के भीतर मांग और आपूर्ति का अंतर समाप्त हो जाएगा। उस समय तक मांग करीब 2.8 करोड़ टन होने की संभावना है। चतुर्वेदी ने बताया कि इस समय उर्वरक उत्पादन करीब दो करोड़ टन है जबकि सालाना मांग करीब 2.6 करोड़ टन है। इस वित्त वर्ष की शुरुआत में वैश्विक बाजार में उर्वरक की कीमतों में अप्रत्याशित वृद्धि होने के कारण 2008-09 में फर्टिलाइजर सब्सिडी बिल दोगुना होकर 1,02,000 करोड़ रुपए होने का अनुमान है। आयात घटाने के लिए पिछले साल अक्टूबर में कैबिनेट ने सचिवों की विशेषाधिकार प्राप्त समिति के गठन को मंजूरी दी थी और इसका मुखिया उर्वरक सचिव अतुल चतुर्वेदी को बनाया गया था ताकि फर्टिलाइजर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एफसीआईएल) की पांच इकाइयों और हिंदुस्तान फर्टिलाइजर कॉरपोरेशन (एचएफसीएल) की तीन इकाइयों को नए सिरे से चालू करने के लिए उपयुक्त वित्तीय मॉडल चुना जा सके। उर्वरक मंत्रालय के अनुमान के अनुसार इन कारखानों को चालू करने के लिए हर कारखाने पर कम से कम 4,000 करोड़ रुपए का निवेश करना पड़ेगा। एक कारखाने से करीब 12 लाख टन उर्वरक उत्पादन हो सकेगा। आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने गुरुवार को एचएफसीएल की असम इकाई ब्रह्मापुत्र वैली फर्टिलाइजर कॉरपोरेशन में घाटे के बावजूद उत्पादन जारी रखने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। (ET Hindi)
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