02 फ़रवरी 2009
बासमती चावल में फिलहाल सुधार की संभावना कम
केंद्र सरकार द्वारा निर्यात शुल्क वापस लेने और न्यूनतम निर्यात मूल्य में कमी के बावजूद बासमती चावल में मार्च तक सुधार की संभावना कम है। उधर, निर्यात मांग में कमी और मिलों द्वारा देनदारियां निपटाने के लिए बिकवाली बढ़ाने की संभावना के चलते अगले दो महीने के दौरान घरलू बाजार में बासमती चावल पंद्रह फीसदी तक और सस्ता हो सकता है।केंद्र सरकार ने पिछले वर्ष एक मई को बासमती चावल पर 8000 रुपए प्रति टन का निर्यात कर लगाने के साथ न्यूनतम निर्यात मूल्य भी बढ़ाकर 1200 डॉलर प्रति टन कर दिया था। इससे अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय बासमती चावल पाकिस्तान के बासमती के मुकाबले करीब 500 डॉलर प्रति टन तक महंगा हो गया और भारतीय निर्यातकों को मिलने वाले निर्यात ऑर्डर पाकिस्तानी निर्यातकों की झोली में चले गए। चालू वित्त वर्ष में बासमती चावल का निर्यात 12 फीसदी घटकर 7.63 लाख टन रह गया। हालांकि अब सरकार ने पर्याप्त स्टॉक, उत्पादन में बढ़ोतरी और महंगाई दर में कमी के साथ चावल निर्यातकों की मांग के मद्देनजर निर्यात शुल्क को समाप्त करने के साथ न्यूनतम निर्यात मूल्य को घटाकर 1100 डॉलर प्रति टन कर दिया है। लेकिन अंतरराष्ट्रीय बाजार में बासमती चावल के भाव 900 से 1000 डॉलर बीच होने के कारण भारत से बासमती चावल के निर्यात में बढ़ोतरी की संभावना कम है।भारतीय बासमती चावल की निर्यात मांग में कमी घटने से घरलू बाजार में बासमती चावल के भाव करीब तीस फीसदी तक घटकर गए हैं। बासमती श्रेणी के ही पूसा 1121 क्वालिटी का चावल 52 रुपए और डुप्लिकेट बासमती चावल 20 से 40 रुपए किलो के भाव बिक रहा है। मिलर्स की समस्या यह है कि आर्थिक मंदी के बाद उपजे हालात में बैंकों से आसानी से कर्जे नहीं मिलने के कारण मिलों पर किसानों का करोड़ रुपए चढ़ गया है। उत्पादन के मोर्चे पर सरकार के लिए तो हालात बेहतर है लेकिन किसानों और निर्यातकों के लिए यह मुश्किल का समय है, क्योंकि वर्ष 2008-09 में देश में चावल की पैदावार पूर्व वर्ष के 9.64 करोड़ टन से बढ़कर 9.74 करोड़ टन होने का अनुमान है।इसमें करीब 14-15 लाख टन बासमती चावल होगा और देश में पैदा होने वाले बासमती चावल का दो-तिहाई हिस्सा अब तक निर्यात होता आया है। लेकिन निर्यात में कमी के साथ चावल का पर्याप्त कैरी फॉर्वर्ड स्टॉक और अक्टूबर में नया सीजन शुरू होने के समय सरकार के पास 65.94 लाख टन चावल का बफर स्टॉक होगा, जोकि तय बफर 52 लाख टन से काफी ज्यादा है। मौजूदा सीजन में चावल की सरकारी खरीद पिछले वर्ष के स्तर को पार करने के पूर आसार है। ऐसें में मई तक होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले सरकार भी चावल की कीमतों में तेजी नहीं आने देगी। यह देखते हुए अगले दो महीनों में चावल उत्पादकों, व्यापारियों और निर्यातकों को राहत मिलने के कोई आसार नहीं हैं। (Business Bhaskar)
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