13 दिसंबर 2011
ग़रीबों को मिलेगा अन्न का अधिकार
देश में पहली बार खाद्य सुरक्षा का क़ानूनी अधिकार देने वाले बिल पर आज कैबिनेट में अंतिम मुहर लगेगी। ग़रीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों के साथ ही देश की बड़ी आबादी को अन्न का अधिकार देने वाला यह बिल यूपीए सरकार का ड्रीम प्रोजेक्ट है, जिससे आम आदमी के साथ होने का सरकार का दावा सही साबित होता दिखे। यूपीए सरकार मनरेगा के बाद अब तक के सबसे बड़े प्रॉजेक्ट को पेश करने जा रही है। देश की 63 फ़ीसदी आबादी को खाने की गारंटी देने वाले इस बिल के रास्ते में हालांकि कई रुकावटें भी आईं और सरकार के भीतर ही इसपर काफ़ी विरोध हुआ, लेकिन सोनिया गांधी की पहल के बाद आख़िरकार इस बिल को इसी सत्र में लाने का फ़ैसला किया गया। खाद्य सुरक्षा बिल के तहत-हर महीने ग़रीबों को 25 किलो अनाज तीन रुपये प्रति किलो की सस्ती दर पर उपलब्ध कराया जाएगा -खाद्य सुरक्षा बिल में पहली बार अनाज देने के लिए ग़रीबी रेखा को आधार नहीं बनाया गया है -बिल के मुताबिक, ग्रामीण इलाक़ों में 75 फ़ीसदी लोगों को खाद्य सुरक्षा के तहत लाया जाएगा, जबकि शहरी क्षेत्रों में भी 50 फ़ीसदी लोगों को भोजन का क़ानूनी अधिकार मिलेगा -ग्रामीण क्षेत्रों में 46 फ़ीसदी और शहरी इलाक़ों में 28 फ़ीसदी लोगों को प्रॉयोरिटी ग्रुप का दर्ज़ा दिया जाएगा, जिन्हें ग़रीबी रेखा से नीचे के लोगों के बराबर अनाज मिलेगा -बिल के मुताबिक, प्रॉयरिटी ग्रुप में आने वाले हर शख़्स को हर महीने 7 किलो राशन दिया जाएगा, जबकि अन्य लोगों के लिए 3 किलो राशन का प्रावधान होगा -संयुक्त राष्ट्र द्वारा परिभाषित ग़रीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की संख्या भारत में 41 करोड़ है। यह संख्या उन लोगों की है, जिनकी एक दिन की आमदनी 1.25 डॉलर से भी कम है ऐसे में ग़रीबी और भुखमरी से जुझते लोंगों के लिए खाद्य सुरक्षा बिल में उम्मीद की किरण दिख रही है। राजनीतिक और आर्थिक फ़्रंट पर विपक्ष का हमला झेल रही यूपीए सरकार को खाद्य बिल से काफ़ी उम्मीदें हैं। हालांकि खाद्य सुरक्षा बिल अगर क़ानूनी शक्ल लेता है, तो सरकार पर 32 हज़ार करोड़ रुपये का आर्थिक बोझ बढ़ेगा। हालांकि इस बिल के तहत आने वाले ग़रीबों की पहचान और क़ानूनी अड़चनों को लेकर भी कुछ परेशानी है। लेकिन अब तक के सबसे बड़े राजनीतिक और आर्थिक संकट से जूझ रही यूपीए सरकार को इस बिल से काफ़ी उम्मीदें हैं। (PZ news)
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