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संसदीय समिति उस विधेयक का परीक्षण कर रही है जिसके अंतर्गत कमोडिटी डेरिवेटिव मार्केट नियामक को स्वायत्तता देने की बात कही गई है। आठ महीने के बाद अब खाद्य, उपभोक्ता मामले और जन वितरण पर संसदीय स्थाई समिति कमोडिटी फ्यूचर्स मार्केट रेगुलेटर, फारवर्ड मार्केट कमीशन के अधिकारियों और कमोडिटी एक्सचेंजों के अधिकारियों से बातचीत कर रही है।
कमोडिटी फ्यूचर्स मार्केट को और सशक्त बनाने के लिए केंद्र सरकार ने फॉरवर्ड कॉन्ट्रैक्ट्स (रेगुलेशन) एक्ट (एफसीआरए) 1952 में संशोधन के लिए संसद के सामने प्रस्तुत किया है। इस अधिनियम के तहत ही भारत के कमोडिटी फ्यूचर्स मार्केट विनियमित होते हैं। साथ ही कमोडिटी फ्यूचर मार्केट के नियामक वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) को कमोडिटी डेरिवेटिव्स मार्केट के विकास और नियमों के कार्यान्वयन हेतु अधिकार मिलते हैं।
इस संदर्भ में पहला विधेयक लोक सभा में मार्च 2006 में रखा गया था जिसे स्थाई समिति को भेज दिया गया था। दिसंबर 2006 में ही स्थाई समिति ने अपनी रिपोर्ट दे दी थी। इसके बाद विधेयक में संशोधन हेतु कैबिनेट के लिए एक नोट तैयार किया गया था जिस पर मई 2007 में विचार भी किया गया। बाद में इस पर व्यापक विचार-विमर्श का निर्णय लिया गया और इसे अंजाम भी दिया गया।
बाद में यह निर्णय लिया गया कि साल 2006 के विधेयक को वापस लेते हुए एक नया बिल पेश किया जाए और अभी समिति इसी नये विधेयक पर विचार कर रही है।अगर हम कमोडिटी एक्सचेंजों के ऐतिहासिक कारोबार पर एक नजर डालें तो पिछले सात वर्षों में संचयित कारोबार 40 प्रतिशत सीएजीआर के हिसाब से बढ़ कर साल 2010-11 में 120 लाख करोड़ रुपये को पार कर चुका है।
वर्तमान एफसीआरए में कुछ मूलभूत कमियां हैं जिन्हें दूर करने की जरूरत है ताकि यह और सरल बनें। वर्तमान में ऑप्शन और वेदर डेरिवेटिव्स जैसे हेजिंग के उत्पाद उपलब्ध नहीं हैं। इसके जरिये किसान जोखिम के समय हेजिंग का लाभ उठा सकते हैं। इसके अलावा अब तक फ्यूचर्स मार्केट में वित्तीय संस्थानों को अनुमति नहीं दी गई है।
नियामक के हाथ भी कई मामलों में बंधे हुए हैं और कई बातों के लिए उसे सरकार पर निर्भर रहना होता है। वर्तमान अधिनियम के तहत नियामक को वित्तीय और दैनिक परिचालन के लिए पूरी तरह सरकार पर निर्भर रहना होता है। सरकार पर वित्तीय निर्भरता के कारण इंफ्रास्ट्रक्चर, टेक्नोलॉजी, मानव संसाधन में निवेश सीमित हो गया है जिस वजह से नियमनों के व्यवस्थित परिचालन और भावी विकास संभावनाओं में कठिनाई हो रही है।
देखा जाए तो बाजार के वर्तमान आकार और तेज विकास को देखते हुए फ्यूचर्स मार्केट को एक स्वायत्त और मजबूत नियामक की जरूरत है। नियामक को बाजार के कारोबारियों के गलत व्यापार पर पेनाल्टी लगाने और उसकी जांच करने का अधिकार मिलना चाहिए साथ ही फ्यूचर्स मार्केट के व्यापार को बेहतर निगरानी के लिए संपूर्ण पर्यवेक्षण का अधिकार मिलना चाहिए। सरकार को चाहिए कि वह वायदा बाजार आयोग को नियमों के सख्त कार्यान्वयन के लिए सबल बनाए जिसे वर्तमान में संबद्ध मंत्रालय की अनुमति पर निर्भर रहना होता है।
कमोडिटी फ्यूचर्स मार्केट को और आगे बढ़ाने के लिए एफएमसी को वित्तीय स्वायत्तता मिलनी चाहिए ताकि इसके दायरे का विस्तार हो सके और इसे सभी वर्गों तक पहुंचाया जा सके।
दशकों से अर्थव्यवस्था में परिवर्तन के साथ नियामकों की भूमिका में बदलाव आया है लेकिन एक एफएमसी ही ऐसा नियामक है जो सशक्तीकरण के मामले में पीछे छूट गया है। एक सशक्त एफएमसी दूसरे नियामकों से फ्यूचर्स मार्केट में वित्तीय संस्थानों की स्वीकृति हेतु पहल और मदद कर कसता है। अगर बैंक सहभागी बन जाए तो ग्रामीण क्षेत्रों में उनकी पहुंच की बदौलत किसानों भी फ्यूचर्स मार्केट में भाग ले सकते हैं।
इसके अलावा नेटवर्क मजबूत होने की वजह से फ्यूचर्स के भाव का प्रसारण भी बड़े पैमाने पर हो सकेगा। वर्तमान में भारतीय कॉरपोरेट जो हेजिंग के लिए वैश्विक एक्सचेंजों का उपयोग कर रहे हैं वह भारतीय एक्सचेंजों और सेवाओं का उपयोग करने लगेंगे। यह सब तभी संभव होगा जब कमोडिटी फ्यूचर्स मार्केट के फायदे एक समर्पित, सशक्त और सक्षम नियामकीय ढांचे के जरिये समाज के सभी वर्गों तक पहुंचाया जाए। (Business Bhaskar)
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