मुंबई December 12, 2011
कपास की कीमतें महाराष्ट्र सरकार के लिए गले की हड्डी बनती जा रही है। जहां किसान संगठन व विपक्षी दल कपास का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) बढ़ाए जाने की मांग कर रहे हैं, वहीं सरकार चुनाव आचार संहिता लागू होने का हवाला देकर इस पर कुछ भी बोलने से बच रही है। कपास की कीमतों को लेकर जारी हो हल्ला को देखते हुए घरेलू मांग कमजोर बनी हुई है। सोमवार से शुरू हुआ राज्य विधानसभा के शीतकालीन सत्र का पहला दिन कपास की कीमतों की भेंट चढ़ गया। विपक्षी दलों ने किसानों को ज्यादा मूल्य दिये जाने के मुद्दे को लेकर सदन की कार्यवाही नहीं चलने दी। किसान संगठनों और विपक्षी दलों का कहना है कि सरकार कपास किसानों के साथ भेदभाव कर रही है। जब गन्ने का न्यूनतम मूल्य बढ़ाया जा सकता है तो कपास, सोयाबीन और धान का मूल्य बढ़ाने में सरकार को परेशानी क्यों हो रही है। विपक्षी नेता एकनाथ खडसे के मुताबिक जब तक किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्य नहीं मिलेगा, तब तक सदन में कामकाज नहीं हो पाएगा। बिजली का बिल, पानी, खाद और मजदूरी में बढ़ोतरी हो गई है, जिससे प्रति हेक्टेयर उपज की लागत बढ़ गई है। ऐसे में किसानों को उनकी फसल के लिए जो मूल्य तय किया गया है, वह कम है। इसीलिए किसान संगठन और विपक्षी दल लंबे समय से सरकार से मांग कर रहे हैं कि कपास सहित सोयाबीन और धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाया जाए, लेकिन सरकार चुप है। इसके लिए सदन की कार्यवाही में विपक्षी दल शामिल नहीं हो रहे हैं और न ही सदन को चलने दे रहे हैं।सत्ताधारी कांग्रेस और एनसीपी विपक्ष के इस रवैये को गैरजिम्मेदाराना बताते हुए कहते हैं - सभी लोग चाहते हैं कि किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्य मिले, जिसके लिए राज्य सरकार ने केंद्र से बात भी की है। लेकिन फिलहाल कीमतों को नहीं बढ़ाया जा सकता है क्योंकि राज्य के कई हिस्सों में निकाय चुनाव हो रहे हैं, जिसके चलते आचार संहिता लागू है। बकौल मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण कपास का एमएसपी बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार से बात हो चुकी है। उन्होंने कहा - हमने तय किया है कि प्रति क्ंिवटल नहीं बल्कि प्रति हेक्टेयर के हिसाब से किसानों को सब्सिडी दी जाएगी, लेकिन निकाय चुनाव के कारण चल रही आचार संहिता की वजह से राहत दिये जाने की घोषणा रोक ली गई है। जैसे ही चुनाव की प्रक्रिया पूरी हो जाती है, इसका ऐलान कर दिया जाएगा। इस साल केंद्र सरकार ने कपास का एमएसपी 3150 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है, जबकि किसान संगठन 6000 रुपये प्रति क्विंटल की मांग कर रहे हैं। सत्ता पक्ष के सूत्रों की मानी जाए तो सरकार कपास की कीमतें बढ़ाने का खाका तैयार कर चुकी है। अगर प्रति क्विंटल कीमतें दी जाएंगी तो इसका मूल्य 4285 रुपये प्रति क्विंटल दिये जाने की योजना बनाई गई है, लेकिन चुनाव आचार संहिता लागू होने के कारण सरकार इस बात की घोषणा नहीं कर पा रही है। कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया से प्राप्त कीमतों के अनुसार इस समय शंकर-6 किस्म का कपास 9870 रुपये ( 35100 रुपये प्रति कैंडी) के भाव बिक रहा है जबकि एक महीना पहले इसका भाव 10770 रुपये प्रति क्विंटल था। कपास की कीमतों में लगातार हो रही गिरावट की वजह घरेलू बाजार में कमजोर मांग को माना जा रहा है। इस समय देश भर की मंडिय़ों में हर दिन करीब 85,000 से 90,000 गांठ की आवक हो रही है, लेकिन कीमतों में अभी और कमी होने की आशंका को देखते हुए घरेलू मिले खरीदारी करने से बच रही हैं। पिछले साल की अपेक्षा इस साल देश में कपास की पैदावार भी 8 फीसदी बढ़कर 361 लाख गांठ (एक गांठ बराबर 170 किलोग्राम) होने की संभावना है, जिसकी वजह से कीमतों में गिरावट हो रही है। (BS Hindi)
13 दिसंबर 2011
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