December 16, 2011
एल्युमीनियम उत्पादकों को काफी राहत मिली है, क्योंकि सफेद धातु 2,000 डॉलर प्रति टन के मनोवैज्ञानिक स्तर से नीचे ज्यादा दिन नहीं रही। जबकि इस समय स्मेल्टरों की 30 फीसदी क्षमता का इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है। हालिया सप्ताहों में ऐसी स्थिति नहीं आई जैसी उद्योग को 2008-09 की विध्वंसकारी मंदी के दौरान देखने को मिली थी। उस समय मांग में गिरावट और स्टॉक में बढ़ोतरी के कारण एल्युमीनियम 1,500 डॉलर प्रति टन से नीचे बिका था।हालांकि यह पूरे वैश्विक एल्युमीनियम उद्योग के लिए मामूली राहत है, जिसकी आमदनी दिसंबर में समाप्त होने वाली तिमाही में 2011 की पहली तीन तिमाहियों के मुकाबले कम रहने की संभावना है। पिछले महीने के तीसरे सप्ताह से एल्युमीनियम करीब 150 डॉलर सुधरकर 2,150 डॉलर प्रति टन पर आ गया, लेकिन यह इस धातु के मई के सर्वोच्च स्तर 2,800 डॉलर प्रति टन से काफी नीचे है। कुल मिलाकर जिंस मंदे बाजार की गिरफ्त में हैं। यह कोई नहीं जानता कि मांग में भारी बढ़ोतरी कब आएगी। मांग में तेजी ही केवल इसकी कीमतों को ऊपर ले जा सकती है। इस माहौल में स्टॉकिस्ट और एल्युमीनियम के वास्तविक उपयोगकर्ताओं के अपना स्टॉक कम रखने की संभावना की जा सकती है। यही हाल इस्पात का है।एल्युमीनियम की वर्तमान दरों पर केवल कुछ उत्पादक ही न फायदे और न नुकसान की स्थिति में हैं या कुछ लाभ कमा रहे हैं। वैश्विक एल्युमीनियम उद्योग को बढ़ती ऊर्जा लागत का सामना करना पड़ रहा है। यह उद्योग अपने उपयोग की एक तिहाई बिजली पैदा करने में आत्मनिर्भर है। यह सही है कि प्रति 5 इकाई वैश्विक एल्युमीनियम खपत में दो इकाइयों की खपत चीन में होती है। शोध संस्था ब्रूक हंट के मुताबिक एल्युमीनियम की स्मेल्टिंग लागत में अकेली ऊर्जा लागत का हिस्सा ही 30-40 फीसदी होता है। बाजार में इसकी कीमतें गिरने, यूरो जोन के मंदी में फंसने से कीमतों में भारी उतार-चढ़ाव का विश्वास पुख्ता होने और यूनियन बैंक ऑफ स्विटजरलैंड जैसी संस्थाओं के इन अनुमानों से कि जिंस खुद को 2012 में जोखिमभरी स्थिति में पाएंगी तो लोग एल्युमीनियम शेयरों को खरीदने से दूरी बनाएंगे।इसलिए हिंडाल्को और नाल्को के शेयरों की कीमतों में गिरावट चौंकाने वाली नहीं है। इसी तरह एल्युमीनियम कॉरपोरेशन ऑफ चाइना का शेयर इस साल हांगकांग में कारोबार के दौरान करीब 40 फीसदी गिर चुका है। एंग्लो ऑस्ट्रेलियन कंपनी रियो टिंटो की कीमत लंदन मेटल एक्सचेंज में करीब 25 फीसदी घट चुकी है। इसकी वजह इसके पास विस्तृत एल्युमीनियम परिसंपत्तियां होना है। विश्व की प्रमुख एल्युमीनियम उत्पादक एल्कोआ की स्थिति भी शेयर बाजार में ज्यादा अच्छी नहीं रही। एल्युमीनियम की कीमतें मई के स्तर पर कब पहुंचेंगी या कितनी जल्द हिंडाल्को अपने 52 सप्ताह के उच्च स्तर पर लौटेगा? इसका अभी अनुमान लगाना अंधेरे में पत्थर फेंकने जैसा ही होगा। केवल एल्युमीनियम ही नहीं बल्कि अन्य बहुत सी धातुओं और खनिजों की कीमतों में भारी गिरावट आ चुकी है। रियो टिंटो के सीईओ जैकींथ कहते हैं कि भविष्य में एल्युमीनियम की कीमतों में तेजी आएगी। हालांकि उन्होंने इसका संकेत नहीं दिया कि इस धातु में चमक आनी कब शुरू होगी।इस समय रियो की एल्युमीनियम इकाई ने दूसरी छमाही की आमदनी से सब्र कर लिया है, जो पहली छमाही से काफी कम थी। हिंडाल्को के विस्तार की तरह रियो भी कनाड़ा में अपने किटीमाट स्मेलटर की क्षमता 4,20,000 टन करने के लिए इसके पुनर्निमाण और विस्तार पर 3.3 अरब डॉलर का निवेश कर रही है। यह स्मेलटर जलविद्युत से चलेगा, जिससे उत्सर्जन आधा कम हो जाएगा। इसका मकसद किटीमाट को विश्व के सबसे कम लागत वाले स्मेलटरों में से एक बनाना है, जो रियो की अपनी जूझ रही एल्युमीनियम इकाइयों के मार्जिन में सुधार की रणनीति पर बिल्कुल सटीक बैठता है। रियो अपने एल्युमीनियम कारोबार में जान डालने की कोशिश कर रही है। इसके लिए अच्छी परिसंपत्तियों पर ध्यान दिया जा रहा है, क्योंकि यह ऊंची लागत वाले परिचालन से बाहर निकलने की कोशिश कर रही है। भारतीय उद्योग के अधिकारी बीएचपी बिलिटन के एल्युमीनियम पोर्टफोलियो की जारी समीक्षा के नतीजे पर नजर रख रहे हैं। बीएचपी बिलिटन के पोर्टफोलियो में कुछ पूर्ण स्वामित्व वाली परिसंपत्तियां और कुछ संयुक्त उपक्रम शामिल हैं। उनका कहना है कि बीएचपी अपनी सभी या कुछ एल्युमीनियम/एल्युमिना परिसंपत्तियों की बिक्री कर सकती है। भारतीय कारोबारी घरानों ने विदेशी अधिग्रहण के लिए काफी उत्सुकता दिखाई है। अधिकारियों के अनुसार अगर बीएचपी एल्युमीनियम कारोबार से बाहर निकलने का निर्णय लेती है तो अन्य साझेदारों के पास परिसंपत्तियों के अधिग्रहण का अच्छा मौका होगा। एल्युमीनियम की वैश्विक उत्पादन क्षमता और यूरो जोन के संकट ने यूरोप से बाहर इस धातु की मांग पर असर डाला है और उत्पादक इस पर दो तरह से प्रतिक्रिया दे रहे हैं, बंद पड़े स्मेल्टर को फिर से चालू करना और उच्च लागत वाले स्मेल्टर को बंद करना। एल्युमीनियम के अग्रणी यूरोपीय उत्पादक हाइड्रो ने कहा है कि वह नॉर्वे के स्मेल्टर को तभी चालू करेगी, जब बाजार की स्थिति बेहतर होगी। ऐसे में समय में यह भी अटकलें हैं कि चीनी उत्पादकों ने सालाना उत्पादन में 15 लाख टन की कटौती की है। बाजार ने इस अटकल से निश्चित तौर पर सबक लिया होगा कि चीन के कदम से कुछ हद तक उद्योग की अति उत्पादन क्षमता का ख्याल रखा जा सकेगा। मॉर्गन स्टैनली के एक अधिकारी ने कहा कि विश्व में उत्पादकों की तरफ से आपूर्ति व मांग के बीच संतुलन बनाए रखने का अनुशासन नजर आ रहा है। लेकिन एल्युमीनियम की कीमतों में बढ़त का मामला आपूर्ति की अनुशासित स्थिति व मांग में मजबूत बहाली से आगे की बात है। (BS Hindi)
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