मुंबई December 05, 2011
चीनी उद्योग विकट स्थिति का सामना कर रहा है। एक ओर जहां पेराई में देरी के बावजूद मिलों ने पिछले साल के मुकाबले ज्यादा चीनी उत्पादन के लिए ज्यादा गन्ने की पेराई की है, वहीं दूसरी ओर वैश्विक बाजार में चीनी की लगातार कम हो रही कीमतों से निर्यात अनाकर्षक बनता जा रहा है, खास तौर पर तब जबकि केंद्र ने ओजीएल के तहत 10 लाख टन चीनी निर्यात की अनुमति दी है। घरेलू बाजार में चीनी की कीमतें 2800-2920 रुपये प्रति क्विंटल (एक्स-मिल) के दायरे में हैं, वहीं वैश्विक कीमतें गिरकर 613 डॉलर प्रति टन पर आ गई हैं जबकि पहले यह 750 डॉलर प्रति टन पर बिक रही थीं।इस सीजन में 30 नवंबर तक मिलों ने 21 लाख टन चीनी का उत्पादन किया है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 18 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ था। इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के मुताबिक, पिछले साल 30 नवंबर तक 355 मिलें संचालित हो रही थीं, लेकिन इस सीजन में अब तक 350 मिलें ही संचालित हो पाई हैं। खास तौर से महाराष्ट्र में मिलों ने हालांकि इस सीजन में पेराई देरी से शुरू की है, लेकिन उत्पादन में कुल मिलाकर 17 फीसदी की उछाल आई है। चीनी उत्पादन में उत्तर प्रदेश ने बड़ी छलांग लगाई है और 30 नवंबर तक वहां 5 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 1 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ था। यह शायद उच्च उत्पादन का असर हो सकता है क्योंकि पिछले कुछ दिनों में चीनी की कीमतें थोड़ी नरम हुई हैं।देश के कुल उत्पादन में 30 फीसदी से ज्यादा भागीदारी वाले राज्य महाराष्ट्र में 118 लाख टन गन्ने की पेराई से 11.3 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 114 लाख टन गन्ने की पेराई से 10.4 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ था। फेडरेशन ऑफ कोऑपरेटिव शुगर फैक्ट्रीज महाराष्ट्र के कार्यकारी प्रबंध निदेशक अजीत चौगले ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया - इस साल रिकवरी दर 9.6 फीसदी पर पहुंच गई है जबकि पिछले साल की समान अवधि में यह 9.2 फीसदी थी। मौजूदा सीजन में 161 मिलें (115 सहकारी व 46 निजी) पेराई में हिस्सा ले रही हैं, वहीं पिछले साल की समान अवधि में 147 मिलों (112 सहकारी और 35 निजी) ने पेराई में हिस्सा लिया था। उन्होंने कहा - अगर हम रोजाना 5 लाख टन गन्ने की पेराई का अनुमान लेकर चलें तो महाराष्ट्र में 8 करोड़ टन गन्ने की पेराई के जरिए अगले साल मई तक 90 लाख टन चीनी उत्पादन की उम्मीद कर सकते हैं।हालांकि इस्मा के महानिदेशक अविनाश वर्मा ने कहा - आज हमें ज्यादा प्रीमियम नहीं मिल रहा है। चीनी की वैश्विक कीमतें लगातार गिर रही हैं, इसलिए घरेलू कीमत के मुकाबले ज्यादातर चीनी मिलों को शायद ही कोई प्रीमियम मिल पाएगा। हालांकि तटीय राज्यों में स्थित चीनी मिलों को निर्यात थोड़ा आकर्षक लग सकता है, क्योंकि उनकी परिवहन लागत कम होगी। उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय कीमतों में नरमी के बावजूद चीनी मिलें इसका निर्यात करना चाहती हैं ताकि उनकी नकदी में सुधार हो और चीनी के भंडार में थोड़ी कमी आए।महाराष्ट्र के बारे में एक सहकारी चीनी मिल के प्रबंध निदेशक ने कहा - वैश्विक बाजार में मांग घटने से राज्य की चीनी मिलें आहत हुई हैं क्योंकि वहां कीमतें 750 डॉलर प्रति टन से गिरकर 613 डॉलर प्रति टन पर आ गई हैं। ओजीएल के तहत पूर्व के 5 लाख टन चीनी के कोटे का करीब 2 लाख टन का निर्यात अनुबंध वैश्विक कीमतों के धराशायी होने के चलते एक्सपायर हो चुका है। उन्होंने कहा कि अब मिलें उम्मीद कर रही हैं कि केंद्र सरकार पूर्व के ओजीएल ऑर्डर की वैधता अवधि में विस्तार देगी। (BS Hindi)
06 दिसंबर 2011
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