मुंबई December 22, 2011
प्राकृतिक रबर की कीमतों में 15 फीसदी गिरावट के बावजूद टायर निर्माताओं को ऊर्जा जैसी दूसरी लागत की ऊंची कीमतों के कारण परिचालन मार्जिन में कमी की चिंता सता रही है। अपोलो टायर्स के भारतीय कारोबार के प्रमुख सतीश शर्मा ने कहा, 'चाहे प्राकृतिक रबर की कीमतों में 15 फीसदी गिरावट आई हो, लेकिन अन्य कच्चे माल और साधन की लागत देखिए, जो लगातार बढ़ रही है। कन्वर्जन लागत में 60 फीसदी हिस्सा रखने वाली ऊर्जा लागत 50 से 60 फीसदी बढ़ चुकी है। हम शुद्ध आयातक हैं और रुपये के अवमूल्यन में भारी गिरावट से आयात लागत पर असर पड़ा है। मार्जिन 16 फीसदी से घटकर 7 फीसदी पर आ गया है। मांग बहुत कम है।'उन्होंने कहा, 'अंतरराष्ट्रीय बाजार में टायर कंपनियों ने एक बार में ही कीमतें 8 से 10 फीसदी बढ़ाई हैं, लेकिन भारत में ऐसा करना संभव नहीं है। यहां हम कीमत नहीं बढ़ा पा रहे हैं।' इस साल अप्रैल में 240 रुपये प्रति किलोग्राम की ऊंचाई छूने के बाद टायर निर्माण में प्रयुक्त होने वाले प्रमुख कच्चे माल (प्राकृतिक रबर) की कीमतें घटकर हाजिर बाजार में 200 रुपये प्रति किलोग्राम के स्तर पर आ गई हैं। बेंचमार्क मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एनएमसीई) पर जनवरी 2012 में डिलिवरी वाले प्राकृतिक रबर की कीमत 0.5 फीसदी गिरकर 203.25 रुपये प्रति किलोग्रााम पर आ गई है। इसी तरह सबसे ज्यादा कारोबार होने वाले आरएसएस-4 रबर की कीमत मंगलवार को केरल के कोट्टायम बाजार में 50 पैसे बढ़कर 200.50 रुपये प्रति किलोग्राम पर पहुंच गई। हालांकि इस जिंस की कीमत बैंकॉक (थाईलैंड) में 4.61 रुपये गिरकर 177.18 रुपये प्रति किलोग्राम रही। विश्लेषकों का मानना है कि सर्दी के सीजन में कमजोर मांग के कारण कीमतें और गिर सकती हैं। ऑल इंडिया टायर डीलर्स फेडरेशन के संयोजक एस पी सिंह ने कहा, 'टायरों की मांग सर्दी के सीजन में घटती है और इसलिए कीमतों में गिरावट असामान्य बात नहीं है। लेकिन टायर कंपनियों को कच्चे माल की कम कीमत का फायदा ग्राहकों को देना चाहिए।'सार्वजनिक क्षेत्र के रबर बोर्ड द्वारा जुटाए गए आंकड़ों के अनुसार देश का रबर आयात नवंबर में 4.6 फीसदी बढ़कर 15,069 टन रहा। विदेशी बाजारों में इसकी कीमतों में तेज गिरावट से टायर निर्माताओं के लिए रबर आयात आकर्षक बना रहेगा। वहीं, संदर्भित महीने में प्राकृतिक रबर का उत्पादन 4.3 फीसदी बढ़कर 94,400 टन रहा। इस दौरान कुल खपत 82,000 टन रही जो पिछले साल के समान महीने में 78,010 टन था। सिएट के प्रबंध निदेशक पारस चौधरी ने कहा, '240 रुपये प्रति किलोग्राम के सर्वोच्च स्तर से कीमतें 15 फीसदी गिर चुकी हैं। अगर रुपये का अवमूल्यन नहीं हुआ होता तो यह गिरावट ज्यादा होती। रबर की कीमतें अब भी मजबूत बनी हुई हैं। यह देखना चाहिए कि वर्तमान कीमतें पिछले तीन साल के निम्नतम स्तर 78 रुपये प्रति किलोग्राम से अब भी 2.5 गुना अधिक हैं।' (BS Hindi)
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