नई दिल्ली December 07, 2011
यूरिया की खपत में बढ़ोतरी के बावजूद देश में इसका उत्पादन पिछले 12 साल से कमोबेश स्थिर है। इसकी वजह स्पष्ट है, साल 1999 से यूरिया उत्पादन में कोई नया निवेश नहीं हुआ है।उत्पादन स्थिर रहने की वजह सख्त नियमों और मौजूदा नीति के तहत निवेश पर आकर्षक रिटर्न का नहीं मिलना है। देश में होने वाले नाइट्रोजन की खपत में यूरिया की हिस्सेदारी 75 फीसदी से ज्यादा है और यहां इसकी खपत 280 लाख टन से ज्यादा होती है और देश में महज 220 लाख टन का उत्पादन ही हो पाता है जबकि बाकी मात्रा का आयात होता है। इसके अतिरिक्त, इस साल अगस्त में सचिवों की समिति द्वारा मंजूरी दिए जाने के बाद भी यूरिया के विनियंत्रण की प्रक्रिया में कोई प्रगति नहीं हो पाई है।यूरिया उत्पादन में निवेश साल 1999 में हुआ था, तब चंबल फर्टिलाइजर्स ने उस साल कोटा में 8 लाख टन सालाना उत्पादन क्षमता वाले संयंत्र की स्थापना की थी। रसायन व उर्वरक राज्य मंत्री ने 1 दिसंबर को संसद में कहा था कि सितंबर 2008 में यूरिया के लिए निवेश संबंधी नई नीति अधिसूचित किए जाने के बाद अब तक संयंत्रों के विस्तार व नई परियोजना आदि में कोई नया निवेश नहीं हुआ है।साल 2008 से अब तक यूरिया उत्पादन में महज 20 लाख टन का इजाफा हुआ है और वह भी मौजूदा संयत्रों के जरिए। यहां इस बात पर गौर किया जा सकता है कि साल 2008 में गैस इस्तेमाल की नीति अधिसूचित किए जाने के बाद भी इस क्षेत्र में नया निवेश नहीं हुआ है। इस नीति के तहत उर्वरक विनिर्माण इकाइयों को प्राथमिकता के आधार पर गैस की आपूर्ति की जाती है।फर्टिलाइजर एसोसिएशन ऑफ इंडिया के महानिदेशक सतीश चंदर ने कहा - इस क्षेत्र में निवेश तभी होगा जब सरकार इस बात का आश्वासन देगी कि उद्योग को उचित दर पर गैस उपलब्ध हो जाएगी और कीमत की बाबत भी नई नीति बनेगी। उन्होंंने कहा कि कम से कम छह प्रस्तावित यूरिया परियोजनाएं निवेश नीति की घोषणा का इंतजार कर रहे हैं और इन परियोजनाओं के जरिए करीब 80 लाख टन यूरिया उत्पादन हो सकेगा। इफ्को को प्रबंध निदेशक डॉ. यू एस अवस्थी ने कहा कि उद्योग को आवंटित गैस भी नहीं मिल पा रहा है। यह पूछे जाने पर कि किसानों को सीधे सब्सिडी का हस्तांतरण किया जाए, तो उन्होंने कहा कि मौजूदा नीति निवेशकों में भरोसा नहीं जगाती। ऐसे में उद्योग यूरिया को एनबीएस योजना में शामिल करने की मांग कर रहा है।इंडस्ट्रियल असिस्टेंस सचिवालय के आंकड़े भी देश में उर्वरक क्षेत्र में अरुचि की पुष्टि करते हैं। एसआईए के आंकड़ों से पता चलता है कि अगस्त 1991 से अगस्त 2011 के बीच उïर्वरक उद्योग में निवेश के लिए एक भी आशय पत्र सामने नहीं आया है। हालांकि उर्वरक विभाग ऐसे आंकड़ों को सही नहीं बता रहा है।दूसरी ओर चीन (जो साल 2006 तक यूरिया का आयातक था) अब यूरिया का शुद्ध निर्यातक बन गया है। सुनिधि सिक्टोरिटीज के तरुण सुराणा ने कहा कि चीन में यूरिया उत्पादन की क्षमता में काफी बढ़ोतरी हुई है और उन संयंत्रों का 70 फीसदी हिस्सा कोयला आधारित है। भारत में कोयला आधारित यूरिया उत्पादन संयंत्र नहीं है। भारतीय उत्पादन मुख्य रूप से प्राकृतिक गैस, नेफ्था और ईंधन पर आधारित है। (BS Hindi)
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