आर.एस. राणा नई दिल्ल
वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) को स्वतंत्र नियामक बनने में अभी और भी देरी होने की संभावना है। क्योंकि संसदीय समिति ने उपभोक्ता मामले मंत्रालय को वायदा अनुबंध (विनियमन) अधिनियम, 1952 (एफसीआरए) पर राज्य सरकारों से भी सलाह लेने के लिए कहा गया है। स्वतंत्र नियामक बनने के बाद एफएमसी को भी वायदा बाजार के बाबत उसी तरह का अधिकार मिल जायेगा, जैसा कि पूंजी बाजार के लिए सेबी को मिला हुआ है।
उपभोक्ता मामले मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि संसदीय समिति ने एफसीआरए पर राज्य सरकारों से भी सलाह लेने के लिए कहा है। खाद्य उपभोक्ता मामले और जन वितरण पर संसदीय स्थाई समिति ने एफएमसी और कमोडिटी एक्सचेंजों के अधिकारियों से बातचीत के बाद यह निर्णय लिया है।
ऐसे में एफएमसी को स्वायत्तता के लिए केंद्र सरकार से मंजूरी मिलने में और भी देरी होने की संभावना है। एफसीआरए का मसौदा संसदीय समिति के पास पहले ही काफी लंबे समय से लंबित पड़ा हुआ है। इस संदर्भ में पहला विधेयक लोकसभा में मार्च 2006 में रखा गया था जिसे स्थाई समिति को भेज दिया गया था।
उन्होंने बताया कि वर्तमान एफसीआरए में कुछ मूलभूत कमियां हैं जिन्हें दूर किए जाने की जरूरत है जिससे यह और सरल हो जाए। वर्तमान में ऑप्शन और डेरिवेटिव्स जैसे हैजिंग के उत्पाद उपलब्ध नहीं है। ऐसे में किसान जोखिम के समय हैजिंग का लाभ नहीं उठा पाते। इसके अलावा कमोडिटी वायदा कारोबार में वित्तीय संस्थानों को अनुमति नहीं दी गई है।
एफएमसी के अधिकार भी कई मामलों में सीमित है और कई बातों के लिए उसे सरकार पर निर्भर रहना होता है। वर्तमान अधिनियम के तहत एफएमसी को वित्तीय और दैनिक परिचालन के लिए पूरी तरह सरकार पर निर्भर रहना होता है।
उन्होंने बताया कि बाजार के वर्तमान आकार और तेज विकास को देखते हुए कमोडिटी वायदा कारोबार को एक स्वतंत्र और मजबूत नियामक की आवश्यकता है। एफएमसी को कारोबारियों के गलत व्यापार पर पेनल्टी लगाने और उसकी जांच करने का अधिकार मिलना चाहिए। कमोडिटी वायदा कारोबार को आगे बढ़ाने के लिए एफएमसी को वित्तीय स्वायत्तता मिलनी चाहिए ताकि इसके दायरे का विस्तार हो सके और इसे सभी वर्गों तक पहुंचाया जा सके।(Business Bhaskar....R S Rana)
07 दिसंबर 2011
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