मुंबई December 15, 2011
कच्चे तांबे का शोधन शुल्क अगले साल के लिए 12.4 फीसदी ज्यादा तय किया गया है, लिहाजा भारतीय तांबा स्मेल्टर को इससे काफी लाभ मिलेगा। हिंडाल्को इंडस्ट्रीज व स्टरलाइट इंडस्ट्रीज समेत देश के तांबा उत्पादकों को रुपये में आई गिरावट का लाभ मिलने की संभावना है क्योंकि ये शुल्क डॉलर में चुकाए जाते हैं।चीन की अग्रणी स्मेल्टर जे कॉपर कॉरपोरेशन और फ्रीपोर्ट एम कॉपर गोल्ड ने साल 2012 के लिए शोधन शुल्क क्रमश: 63.5 डॉलर प्रति टन व 6.35 सेंट प्रति पाउंड देने पर सहमत हुई है। यह वैश्विक कॉपर स्मेल्टर और खनन कंपनियों के लिए बेंचमार्क तय करेगा। ट्रीटमेंट और शोधन का खर्च खनन कंपनियां स्मेल्टर को देती हैं और बदले में उन्हें कैथोड व सिल्लियों समेत शुद्ध तांबे का उत्पाद मिलता है। पीडब्ल्यूसी के वरिष्ठ कंसल्टेंट पी. सेतिया ने कहा - ट्रीटमेंट व शोधन शुल्क में बढ़ोतरी से तांबे के प्रसंस्करण करने में जुटी कंपनियों का राजस्व बढ़ेगा, लेकिन यह सिर्फ प्रसंस्करण शुल्क तक ही सीमित होगा क्योंकि भारत में मोटे तौर पर कॉपर कंसन्ट्रेट का ही आयात होता है।खनन क्षेत्र में अयस्क से धातु निकालने के लिए ट्रीटमेंट व शोधन का खर्च ही मुख्य लागत है। स्मेल्टिंग की प्रक्रिया में धातुओं को गरम कर उससे शुद्ध धातु निकालने का खर्च ही ट्रीटमेंट लागत है यानी इस प्रक्रिया में मशीन के जरिए अयस्क से धातु निकाली जाती है। ऐसे धातुओं के शोधन में इलेक्ट्रो रिफाइनिंग प्रक्रिया का इस्तेमाल होता है और फिर शुद्ध धातु का उत्पादन होता है। ट्रीटमेंट व शोधन लागत खनन कंपनियों की नकद लागत के दो महत्वपूर्ण हिस्से हैं।सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी हिंदुस्तान कॉपर घरेलू खदानों से कंसन्ट्रेट निकालकर 20,000-30,000 टन कॉपर कैथोड व सिल्लियों का सालाना उत्पादन करता है। भारत में 6.80 लाख टन तांबे का उत्पादन होता है और इसमें हिंडाल्को की हिस्सेदारी करीब 3.40 टन है और स्टरलाइट इंडस्ट्रीज 3.10 लाख टन की भागीदारी करता है। इन दोनों अग्रणी कॉपर स्मेल्टर के पास भारत में तांबे की खदान नहीं हैं और ऐसे में यह पूरी तरह आयातित कंसन्ट्रेट पर आश्रित होता है। ऐसे में इन दोनों कंपनियों का वित्तीय प्रदर्शन मोटे तौर पर विदेशी खदानों में अयस्क की गुणवत्ता और डॉलर के मुकाबले रुपये की चाल पर निर्भर करता है। हिंडाल्को इंडस्ट्रीज के प्रबंध निदेशक डी भट्टाचार्य ने हाल में वैश्विक स्तर पर अयस्क में आई कमी पर चिंता जताई थी।पी रिसर्च के एक विश्लेषक बिकास भलोटिया ने कहा - अगस्त से अब तक रुपये में 22 फीसदी की गिरावट आई है, ऐसे में यह निश्चित तौर पर स्मेल्टर को ज्यादा रकम हासिल करने में मदद करेगा। लेकिन कुल मांग पर देश की मौजूदा वित्तीय स्थिति का प्रभाव निश्चित तौर पर पड़ेगा और यह चिंता की बात है। इस बात की खबर है कि प्रतिकूल आर्थिक परिस्थितियों में तांबे की मांग पर दबाव बना रहेगा। कंसन्ट्रेट के आयात की मात्रा हालांकि अयस्क की गुणवत्ता और इसमें मौजूद तांबे की मात्रा पर निर्भर करता है। मौजूदा वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में औद्योगिक गतिविधियों में नरमी देखी गई है, जो आर्थिक गतिविधियों में गिरावट का संकेत देता है। पहले अनुमान था कि मौजूदा वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में उपभोग में सुधार आएगा, लेकिन मांग पर दबाव बना हुआ है।ऐंजल ब्रोकिंग की वरिष्ठ शोध विश्लेषक रीना वालिया ने कहा - अगले कैलेंडर वर्ष में दूसरी छमाही तक यह रुख जारी रहने की संभावना है क्योंकि सुधार की उम्मीद अभी भी धुंधली है। अगर औद्योगिक गतिविधियों में सुधार के लिए पर्याप्त कदम उठाए गए, तब भी जून 2012 तक उसके वास्तविक असर शायद ही देखने को मिले। भारत में करीब 6.20 लाख टन तांबे की खपत होती है, जो इसके उत्पादन के आसपास ही है। हिंडाल्को व स्टरलाइट हर साल करीब 95,000 टन रिफाइंड तांबे का निर्यात करता है। भारत करीब 1.20 लाख टन तांबे का आयात करता है। (BS Hindi)
16 दिसंबर 2011
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