07 अप्रैल 2009
कीटनाशकों में हो रहे फर्जीवाड़े का भंडाफोड़
देश भर के किसान अपनी फसलों को विभिन्न कीटों और रोगों से बचाने के लिए अपनी गाढ़ी कमाई का अहम हिस्सा कीटनाशकों पर यह सोचकर खर्च करते हैं कि इससे उनकी पैदावार बढ़ेगी। हालांकि, कई कीटनाशक कंपनियों की हकीकत देश भर के करोड़ों किसानों को ठेस पहुंचा सकती है। भारतीय कृषक समाज द्वारा कराई गई जांच में कई कंपनियों के कीटनाशक फर्जी निकले हैं।भारतीय कृषक समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. कृष्णबीर चौधरी ने बताया कि उन्होंने विभिन्न कंपनियों के कीटनाशक एवं खरपतवार नाशक दवाओं के सील बंद नमूने एकत्र किए और गुड़गांव स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ पेस्टीसाइड्स फॉरम्यूलेशन टेक्नोलॉजी की प्रयोगशाला में उनकी जांच करवाई। इनमें से अधिकांश कंपनियों के कीटनाशक नकली पाए गए जो कीटों और खरपतवारों से फसलों को बचाने में पूरी तरह अप्रभावी साबित हुए हैं। चौधरी ने प्रयोगशाला की प्रामाणिकता के सवाल पर बताया कि यह प्रयोगशाला रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय के अधीनस्थ है और राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता देने वाले बोर्ड से इसे मान्यता प्राप्त है।उन्होंने बताया कि देश में हर साल 1,500 करोड़ रुपये से ज्यादा मूल्य के नकली कीटनाशकों और खरपतवार नाशकों की बिक्री हो रही है जिससे 25,000 करोड़ रुपये से ज्यादा की फसल का नुकसान हो रहा है। चौधरी ने बताया कि नकली कीटनाशकों के इस गारेखधंधे में कुछ कंपनियों, इंस्पेक्टरों और नमूनों की जांच करने वाली प्रदेशों की प्रयोगशालाओं की मिलीभगत है जिसे रोकने के लिए सरकार को कड़े कदम उठाने होंगे।उन्होंने बताया कि गन्ना, गेहूं, धान, सब्जी आदि की फसलों को बचाने के लिए कीटनाशक फोरेट दस फीसदी का इस्तेमाल किया जाता है। उन्होंने मोनतारी एग्रो इंडस्ट्रीज, श्री पुलवरीसिंग मिल्स, श्री रामसाइंडस केमिकल्स, श्री राम एग्रो केमिकल्स और जय श्री रसायन के अलावा कई कंपनियों के नमूने लेकर जांच कराई जिनमें से कई कंपनियों के नमूनों में तो फोरेट दस फीसदी में फोरेट तत्व न के बराबर पाया गया है।वहीं, धान की फसल में प्रयोग किए जाने वाला खरपतवार कीटनाशक 2,4-डी, ईथाइल ईस्टर 38 फीसदी तरल पदार्थ में डाला जाता है। (Business Bhaskar)
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