कोच्चि 04 16, 2009
काली मिर्च के उत्पादन में कर्नाटक पहले स्थान पर आने जा रहा है। वर्तमान सत्र में कर्नाटक में इसका उत्पादन केरल के मुकाबले करीब दोगुना होने के आसार हैं।
केरल अब तक काली मिर्च के उत्पादन में पहले स्थान पर रहा है। राज्य के कुर्ग इलाके में हाल के पौधारोपण के आंकड़ों से संकेत मिलता है कि कुल उत्पादन 28,000 से 30,000 टन होगा, जबकि पिछले साल कुल उत्पादन 10,000 से 12,000 टन के बीच था।
परंपरागत रूप से अब तक पहले स्थान पर रहे केरल में कुल उत्पादन 15,000 टन रहने का अनुमान है, जहां प्रतिकूल मौसम के चलते उत्पादन में 40 प्रतिशत की गिरावट का अनुमान लगाया जा रहा है।
अगर हम केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु के कुल कालीमिर्च उत्पादन के अनुमान को देखें तो इस साल कुल उत्पादन 48,000 से 50,000 टन के बीच रहेगा, जो सामान्य वार्षिक उत्पादन की तुलना में 5,000 से 7,000 टन कम है।
दिलचस्प यह है कि ऐसा पहली बार होने जा रहा है कि कर्नाटक पहला स्थान हासिल कर लेगा। केरल में खेती और रोपण के लिहाज से पीछे छूट रहा है। केरल में उत्पादन को गहरा झटका इसलिए लगा है कि पिछले साल गर्मी बहुत ज्यादा रही, इसके साथ ही अप्रैल मई में फूल आने के मौसम में तेज बारिश हुई, जिसकी वजह से फसल को नुकसान पहुंचा।
स्थिति यह हुई कि ज्यादातर किसानों ने कालीमिर्च की खेती से मुंह मोड़ लिया और उत्पादन में 40-50 प्रतिशत की गिरावट आई। सदियों से केरल, वैश्विक रूप से कालीमिर्च का बडा उत्पादक रहा है। अरब, चीन और यूरोपीय देश के लोग कालीमिर्च खरीदने केरल आते थे।
लेकिन दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में कृषि के तौर तरीकों पिछली शताब्दी के 80 और 90 के दशक के दौरान खासा बदलाव आया और वियतनाम विश्व का सबसे बड़ा कालीमिर्च उत्पादक बनकर उभरा। अब केरल भारत में भी अपना पहला स्थान खो रहा है। सिर्फ कालीमिर्च ही नहीं बल्कि नारियल और सुपारी के मामले में भी ऐसा ही हो रहा है।
बहरहाल कर्नाटक की कालीमिर्च अब घरेलू बाजार पर राज करने जा रही है। यहां से ज्यादातर माल उत्तर भारत के बाजारों में भेजा जाता है। तमिलनाडु में कालीमिर्च की तस्करी भी होती है, क्योंकि वहां पर वैट नहीं लगता। लेकिन स्थानीय बाजारों में ऊंची कीमतों के चलते ज्यादा सक्रियता नहीं है।
वायदा बाजार में अटकलबाजियों के आधार पर कीमतों में उतार चढ़ाव होता है, जिसके चलते कीमतों के बारे में कुछ भी कहा जाना संभव नहीं होता। राज्य के एक प्रमुख कारोबारी का कहना है कि ऑनलाइन खरीद से स्थानीय स्तर के मझोले और छोटे कारोबारी खत्म हो गए हैं। बडे स्तर के कारोबारियों ने भी वायदा कारोबार में नुकसान उठाने के बाद अपना हाथ खींच लिया है।
इसके साथ ही कालीमिर्च का आयात का कारोबार भी बहुत सक्रियता से होता है और इंडोनेशिया से पिछले 6-8 सप्ताह के दौरान प्रसंस्करणकर्ताओं द्वारा करीब 1500 टन कालीमिर्च का आयात किया गया है। उम्मीद की जा रही है कि यह कारोबार इस साल के जून तक जारी रहेगा, क्योंकि भारत और वियतनाम में कालीमिर्च की कीमतों में भारी अंतर है। (BS Hindi)
18 अप्रैल 2009
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