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06 अप्रैल 2009

घी की खपत में 8 फीसदी इजाफा

नई दिल्ली- आप जानते हैं कि भारत की बिंदास तबियत का सबसे बुलंद सिंबल क्या है, साथ ही पश्चिमी देश जिस चीज को बिलकुल आलोचना करते हैं वह है घी। भारतीयों का घी प्रेम जगजाहिर है। और घी से प्रेम क्यों न हो, आयुर्वेद में कहा गया है कि आत्मचेतना को जगाने और बौद्धिक विकास के लिए घी सबसे अहम तत्व है। इसके अलावा घी से त्वचा में चमक भी पैदा होती है। घी स्वादिष्ट और जायकेदार होता है। घी से चुपड़ी हुई रोटी, महकते चावल और दाल भरे के कटोरे में खूब सारा तैरता हुआ घी- ये तमाम चीजें घी के जायकेदार होने की याद दिलाती हैं। ये वो दिन थे जबकि घर में घी का इस्तेमाल बहुतायत में होता था, अब पाम तेल और सोयाबीन ऑयल ने घी को भारतीय रसोई से गायब ही कर दिया है। हालांकि सोयाबीन और दूसरे खाद्य तेलों के बावजूद भारतीय रसोई में घी का दर्जा आज भी सबसे महत्वपूर्ण है। आर्थिक मंदी के दौर में जबकि नौकरी जाने का खतरा लगातार जारी हो और सैलरी में कटौती के बाद घरों का खर्च कम हो गया हो, यह आश्चर्यजनक सत्य है कि घी की खपत में आठ फीसदी का इजाफा हुआ है। दिल के मर्ज और कोलेस्ट्रॉल बढ़ने जैसी चिंताओं के बावजूद भारतीय हर साल 32,000 टन से ज्यादा घी खा जाते हैं। यह हमारा सबसे पसंदीदा फूड है जो पनीर, आइसक्रीम और मिठाई जैसे खाद्य पदार्थों को पछाड़ता आया है। पश्चिमी देशों के सैचुरेटेड फैट के डरावने सपने से बेफिक्र, भारतीय देसी घी के लिए खुशी से 35 फीसदी ज्यादा दाम दे रहे हैं। पिछले साल दिल्ली के थोक बाजार में घी की कीमत 140 रुपए प्रति किलो थी। अब इसकी कीमत 190 रुपए प्रति किलो पर चल रही है। यही नहीं अगले दो महीने में इसकी कीमतों में और इजाफा होने की उम्मीद है। शहरों से लेकर ग्रामीण आबादी तक में घी हमेशा से एक पसंदीदा फूड रहा है। प्रतिस्पर्धी वेजिटेबल फैट से तैयार होने वाले वनस्पति को भारतीय रसोई में घी के मुकाबले कोई तरजीह नहीं दी जाती है। सबसे अहम बात यह है कि घी की तेजी से बढ़ती मांग का असर हम सब पर पड़ रहा है। घी के लिए कच्चे माल के तौर पर दूध का इस्तेमाल होता है। भारत में शायद ही कोई घर हो जहां रोज ताजा दूध न खरीदा जाता हो। दूध और घी के बीच जारी इस जंग में किसी एक को तो अपना बलिदान देना ही है। और, यह बलिदान दूध का हो रहा है। इस गमिर्यों में दूध और ज्यादा महंगा होने जा रहा है। मांग और आपूर्ति में भारी अंतर है। आंकड़ों को देखा जाए तो भारत दुनिया के सबसे ज्यादा दुग्ध उत्पादक देशों में से है। भारत में करीब 7 करोड़ डेयरी किसान हर दिन 28 करोड़ दूध की बिक्री करते हैं। आपूर्ति में चार फीसदी की दर से बढ़ोतरी हो रही है। लेकिन इसका मतलब है कि हर भारतीय के हिस्से में 330 मिली से भी कम दूध आता है। इससे दूध की मांग और आपूर्ति में मौजूद अंतर का पता चलता है। दूध की तीन चौथाई हिस्सा तरल दूध के तौर पर बेचा जाता है। हर दो लीटर में से एक लीटर दूध शहरों में बेचा जाता है जहां लोग इसे खरीदने के लिए ज्यादा कीमत देने के लिए सक्षम हैं। ऐसे में शहरी आबादी की ओर से दूध की मांग पर ज्यादा दबाव रहता है। (ET Hindi)

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