मुंबई April 30, 2009
पिछले साल दुनिया भर के खदान से धातुओं के उत्पादन में 7 फीसदी की गिरावट के बावजूद इस साल दुनिया भर के बाजार में प्लेटिनम के भंडार में तिगुनी बढ़ोतरी हो चुकी है।
इस साल निवेशक बड़े उत्साह से महंगी धातुओं में निवेश करेंगे जिसमें यकीनन प्लेटिनम भी शामिल होगा। दुनिया की पहली महंगी धातुओं की कंसल्टेंसी, एफएमएस को उम्मीद है कि प्लेटिनम की कीमतें अनुकूल ही रहेंगी।
इस धातु का कारोबार इस साल 900-1,375 डॉलर प्रति औंस के दायरे में होगा और पैलेडियम की कीमत 170-325 डॉलर प्रति औंस के करीब है। जीएफएमएस सर्वे के मुताबिक प्लेटिनम का भंडार वर्ष 2008 में 260,000 औंस पहुंच चुका था। इसकी वजह यह है कि वाहनों के कम उत्पादन की वजह से भी ऑटोकैटालिस्ट फै ब्रिकेटर ने मांग कम कर दी है।
जीएफएमएस ने स्पष्ट रूप से कहा है, 'इस पूरे दशक में पहली बार पिछले साल ऑटोकैटालिस्ट एप्लीकेशंस के लिए प्लेटिनम की मांग में कमी आई।' इस साल के शुरुआती महीनों में ऑटोकैटालिस्ट फै ब्रिकेशन में भी ज्यादा कमी देखी गई।
प्लेटिनम के बड़े भंडार की वजह यह भी है कि प्लेटिनम के गहनों के निर्माण में भी 10 फीसदी तक की कमी आई। इसकी वजह यह भी कि पिछले साल की छमाही के दौरान इस धातु की कीमतें भी बहुत ज्यादा ही थीं।
पिछले साल वैश्विक स्तर पर खदान से प्लेटिनम के उत्पादन में कमी आई। वर्ष 2007 में कुशल लोगों की क्षमता की कमी और सुरक्षा प्रबंधन में बढ़ोतरी का असर भी उत्पादन पर पड़ा। पिछले साल ऊर्जा संकट का भी बोलबाला रहा।
इसके अलावा सबसे ज्यादा प्लेटिनम का उत्पादन करने वाले देश दक्षिण अफ्रीका की खानों में तो बाढ़ की स्थिति ही बन गई थी। इन सब वजहों से भी पुरानी प्लेटिनम के गहनों की भारी बिक्री हुई और कई लोगों ने बढ़ी हुई कीमत का फायदा उठाया। (BS Hindi)
30 अप्रैल 2009
सेब पड़ेगा और महंगा
नई दिल्ली April 30, 2009
आवक में जबरदस्त गिरावट से इस गर्मी में सेब का स्वाद लेना आपकी जेब को कुछ ज्यादा ही ढीला कर सकता है।
खबर है कि अप्रैल महीने के दौरान मंडियों में सेब की आवक अपने पिछले चार महीने के रिकार्ड को तोड़ते हुए जहां 60 से 70 फीसदी गिरी है। वहीं कीमतों में भी 30 से 35 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है।
सेब किसानों का मानना है कि उत्पादन कम होने के चलते इस गर्मी में सेब की आवक जहां और कम होगी, वहीं खाड़ी देशों के लिए सेब का निर्यात बढ़ने से कीमतों में 25 से 30 फीसदी बढ़ोतरी की गुजांइश भी है।
कृषि उत्पाद विपणन समिति(एपीएमसी)के विपणन अधिकारी विजय त्यागी बताते है कि 'वैसे तो इस समय बाजार में सेब की रॉयल, रिचर्ड, रेड गोल्ड, केशरी, गोल्डन और महाराजा किस्में दिखाई दे रही है। लेकिन इनकी शुरुआती आवक पिछले साल की अपेक्षा 20 से 25 फीसदी कम है। लेकिन हो सकता है यह शुरुआती हाल हो और बाद के महीनों में आवक में सुधार आ जाए। '
एपीएमसी के आंकड़ों को देखा जाए तो जनवरी महीने में दिल्ली स्थित देश की प्रमुख मंडियों में सेब की आवक 48 हजार टन थी, जो अप्रैल में घटकर 27 सौ टन ही रह गई। वहीं एप्पल बेल्ट के ऊना, सोलन, कुल्लू, किन्नौर, कश्मीर और नैनीताल की छोटी मंडियों में भी सेब की आवक जनवरी के 15-20 टन से घटकर 3 से 4 टन ही रह गई है।
राष्ट्रीय बागवानी परिषद के विशेषज्ञ आर एस शर्मा का कहना है कि 'अगर इस साल भी पिछले साल की तरह तापमान में उतार-चढ़ाव देखने को मिलता है तो सेब के उत्पादन में और भी कमी हो सकती है।' शर्मा यह भी बताते है कि वैश्विक तापन के कारण सेब का उत्पादन बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है। इसके कारण ही सेब के उत्पादन में पिछले तीन सालों में 30 फीसदी तक की कमी आई है।
एप्पल टेड्रर्स एसोसिएसन के अजय सिंह बताते है कि 'आवक कम होने की वजह से हमें सेब का आयात करना पड़ रहा है। लेकिन सेब के ऊपर आयात डयूटी फलों में सबसे ज्यादा होने के कारण कीमतें आसमान पहुंच रही है। यही कारण है विभिन्न राज्यों में सेब की कीमतें जनवरी से अब तक 35 से 70 फीसदी बढ़ चुकी है।'
लेकिन कुछ किसान और ट्रेडर्स सेब की कीमतों में बढ़ोतरी का कारण खाड़ी देशों को सेब का निर्यात मान रहें है। उनका कहना है कि इसकी वजह से घरेलू आवक प्रभावित हुई है। अगर खाड़ी देशों को सेब का निर्यात बढ़ता है तो आने वाले दो-तीन महीनों में सेब की कीमतों में और भी उछाल देखा जा सकता है।(BS Hindi)
आवक में जबरदस्त गिरावट से इस गर्मी में सेब का स्वाद लेना आपकी जेब को कुछ ज्यादा ही ढीला कर सकता है।
खबर है कि अप्रैल महीने के दौरान मंडियों में सेब की आवक अपने पिछले चार महीने के रिकार्ड को तोड़ते हुए जहां 60 से 70 फीसदी गिरी है। वहीं कीमतों में भी 30 से 35 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है।
सेब किसानों का मानना है कि उत्पादन कम होने के चलते इस गर्मी में सेब की आवक जहां और कम होगी, वहीं खाड़ी देशों के लिए सेब का निर्यात बढ़ने से कीमतों में 25 से 30 फीसदी बढ़ोतरी की गुजांइश भी है।
कृषि उत्पाद विपणन समिति(एपीएमसी)के विपणन अधिकारी विजय त्यागी बताते है कि 'वैसे तो इस समय बाजार में सेब की रॉयल, रिचर्ड, रेड गोल्ड, केशरी, गोल्डन और महाराजा किस्में दिखाई दे रही है। लेकिन इनकी शुरुआती आवक पिछले साल की अपेक्षा 20 से 25 फीसदी कम है। लेकिन हो सकता है यह शुरुआती हाल हो और बाद के महीनों में आवक में सुधार आ जाए। '
एपीएमसी के आंकड़ों को देखा जाए तो जनवरी महीने में दिल्ली स्थित देश की प्रमुख मंडियों में सेब की आवक 48 हजार टन थी, जो अप्रैल में घटकर 27 सौ टन ही रह गई। वहीं एप्पल बेल्ट के ऊना, सोलन, कुल्लू, किन्नौर, कश्मीर और नैनीताल की छोटी मंडियों में भी सेब की आवक जनवरी के 15-20 टन से घटकर 3 से 4 टन ही रह गई है।
राष्ट्रीय बागवानी परिषद के विशेषज्ञ आर एस शर्मा का कहना है कि 'अगर इस साल भी पिछले साल की तरह तापमान में उतार-चढ़ाव देखने को मिलता है तो सेब के उत्पादन में और भी कमी हो सकती है।' शर्मा यह भी बताते है कि वैश्विक तापन के कारण सेब का उत्पादन बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है। इसके कारण ही सेब के उत्पादन में पिछले तीन सालों में 30 फीसदी तक की कमी आई है।
एप्पल टेड्रर्स एसोसिएसन के अजय सिंह बताते है कि 'आवक कम होने की वजह से हमें सेब का आयात करना पड़ रहा है। लेकिन सेब के ऊपर आयात डयूटी फलों में सबसे ज्यादा होने के कारण कीमतें आसमान पहुंच रही है। यही कारण है विभिन्न राज्यों में सेब की कीमतें जनवरी से अब तक 35 से 70 फीसदी बढ़ चुकी है।'
लेकिन कुछ किसान और ट्रेडर्स सेब की कीमतों में बढ़ोतरी का कारण खाड़ी देशों को सेब का निर्यात मान रहें है। उनका कहना है कि इसकी वजह से घरेलू आवक प्रभावित हुई है। अगर खाड़ी देशों को सेब का निर्यात बढ़ता है तो आने वाले दो-तीन महीनों में सेब की कीमतों में और भी उछाल देखा जा सकता है।(BS Hindi)
सोयाबीन को स्वाइन फ्लू
नई दिल्ली April 30, 2009
भारत स्वाइन फ्लू से फिलहाल कोसों दूर है, लेकिन सोयाबीन के कारोबार पर इसका असर पड़ना शुरू हो गया है।
इसकी वजह से ही पिछले तीन दिनों से सोया केक का निर्यात ठप पड़ा है। इस हड़कंप के बाद से सोयाबीन के भाव में 150 रुपये प्रति क्विंटल तक की गिरावट आ चुकी है। सोया केक का इस्तेमाल जानवरों को खिलाने के लिए किया जाता है।
निर्यात होने वाले सोया केक के भाव में पिछले तीन दिनों के दौरान प्रति टन 15 डॉलर की कमी आ चुकी है। अचानक उपजे इस संकट से निर्यातक बाजार सुधरने का इंतजार कर रहे हैं।
सोया केक के निर्यातकों के मुताबिक स्वाइन फ्लू के कारण पिछले तीन दिनों में 495 डॉलर प्रति टन की दर से निर्यात होने वाले सोया केक की कीमतों में 3-5 फीसदी की गिरावट आ चुकी है और यह 480-475 डॉलर प्रति टन हो गई है।
अगले दो-चार दिनों तक स्वाइन फ्लू के जारी रहने पर सोया केक की कीमतों में 7 फीसदी तक की गिरावट की आशंका जताई जा रही है। सोया केक के निर्यातक पी रुइया ने बिजनेस स्टैंडर्ड को मुंबई से फोन पर बताया, 'सोया केक के निर्यात बाजार पर मुख्य रूप से मनोवैज्ञानिक असर देखने को मिल रहा है।
स्वाइन फ्लू की खबर का मनोवैज्ञानिक असर पड़ा है। फिलहाल हम बाजार का रुख देखकर कर ही आगे की रणनीति तय करेंगे। घरेलू बाजार में सोयाबीन की कीमत अधिक होने से कम कीमत पर हम निर्यात करने की स्थिति में नहीं है।'
सोया केक की मांग में कमी से सोयाबीन के भाव में भी 100 से 150 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट आ चुकी है। इंदौर मंडी में सोयाबीन की कीमत 2,550-2,600 रुपये प्रति क्विंटल चल रही है। तीन दिन पहले यही कीमत 2,700 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर थी।
निर्यातक हैरान
स्वाइन फ्लू की खबर से सोया केक का निर्यात प्रभावित मुख्य रूप से पूर्वी एशियाई देशों को निर्यात होता है सोया केकतीन दिन में 15 डॉलर प्रति टन की आ चुकी है गिरावट फिलहाल बाजार पर नजर रखे हुए हैं निर्यातक (BS Hindi)
भारत स्वाइन फ्लू से फिलहाल कोसों दूर है, लेकिन सोयाबीन के कारोबार पर इसका असर पड़ना शुरू हो गया है।
इसकी वजह से ही पिछले तीन दिनों से सोया केक का निर्यात ठप पड़ा है। इस हड़कंप के बाद से सोयाबीन के भाव में 150 रुपये प्रति क्विंटल तक की गिरावट आ चुकी है। सोया केक का इस्तेमाल जानवरों को खिलाने के लिए किया जाता है।
निर्यात होने वाले सोया केक के भाव में पिछले तीन दिनों के दौरान प्रति टन 15 डॉलर की कमी आ चुकी है। अचानक उपजे इस संकट से निर्यातक बाजार सुधरने का इंतजार कर रहे हैं।
सोया केक के निर्यातकों के मुताबिक स्वाइन फ्लू के कारण पिछले तीन दिनों में 495 डॉलर प्रति टन की दर से निर्यात होने वाले सोया केक की कीमतों में 3-5 फीसदी की गिरावट आ चुकी है और यह 480-475 डॉलर प्रति टन हो गई है।
अगले दो-चार दिनों तक स्वाइन फ्लू के जारी रहने पर सोया केक की कीमतों में 7 फीसदी तक की गिरावट की आशंका जताई जा रही है। सोया केक के निर्यातक पी रुइया ने बिजनेस स्टैंडर्ड को मुंबई से फोन पर बताया, 'सोया केक के निर्यात बाजार पर मुख्य रूप से मनोवैज्ञानिक असर देखने को मिल रहा है।
स्वाइन फ्लू की खबर का मनोवैज्ञानिक असर पड़ा है। फिलहाल हम बाजार का रुख देखकर कर ही आगे की रणनीति तय करेंगे। घरेलू बाजार में सोयाबीन की कीमत अधिक होने से कम कीमत पर हम निर्यात करने की स्थिति में नहीं है।'
सोया केक की मांग में कमी से सोयाबीन के भाव में भी 100 से 150 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट आ चुकी है। इंदौर मंडी में सोयाबीन की कीमत 2,550-2,600 रुपये प्रति क्विंटल चल रही है। तीन दिन पहले यही कीमत 2,700 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर थी।
निर्यातक हैरान
स्वाइन फ्लू की खबर से सोया केक का निर्यात प्रभावित मुख्य रूप से पूर्वी एशियाई देशों को निर्यात होता है सोया केकतीन दिन में 15 डॉलर प्रति टन की आ चुकी है गिरावट फिलहाल बाजार पर नजर रखे हुए हैं निर्यातक (BS Hindi)
बीटी बैंगन से बढ़ सकता है किसानों का मुनाफा
भुवनेश्वर April 30, 2009
बैंगन के आनुवांशिक रूप से परिष्कृत किस्म, बीटी बैगन से देश भर के किसानों की आमदनी बढ़ सकती है।
महाराष्ट्र हाइब्रिड सीड कंपनी के अनुमानों के मुताबिक इससे किसानों को प्रति एकड़ 16,000 से 21,000 रुपये की कमाई हो सकती है और देश को प्रतिसाल 2,000 करोड़ रुपये की आमदनी हो सकती है।
हाइब्रिड बीज बनाने वाली महाराष्ट्र की इस कंपनी ने बीटी बैंगन का बीज विकसित किया है। कंपनी का मानना है कि अगर किसान इस बीज का प्रयोग करते हैं तो फलों को फू्रट ऐंड शूट बोरर (एफएसबी) नाम के कीड़े से बचाया जा सकता है, जिससे 50-70 प्रतिशत फसल बर्बाद हो जाती है।
बैंगन की फसल को नुकसान पहुंचाने में एफएसबी प्रमुख है। महाराष्ट्र हाइब्रिड सीड कंपनी के प्रमुख वैज्ञानिक भरत आर चार ने कहा कि बीटी बैंगन के बीज का प्रयोग कर, बैंगन की खेती करने वाले किसान, एफएसबी से फसल को होने वाले 50-70 प्रतिशत नुकसान से बच सकते हैं।
इसके प्रयोग से किसानों का कीटनाशकों पर आने वाला 70 प्रतिशत खर्च बच सकता है। उन्होंने दावा किया कि बीटी बीज से कीड़ों, चिड़ियों, मछलियों, जानवरों या मनुष्यों पर कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता। कंपनी को अभी भारत सरकार के बायोटेक्नोलॉजी नियामक संस्था, जेनेटिक इंजीनियरिंग एप्रूवल कमेटी से अनुमति मिलना बाकी है।
उसके बाद ही कंपनी इसका व्यावसायिक इस्तेमाल कर सकेगी। इसका प्रस्ताव नियामक के पास 2006 से लंबित है। ध्यातव्य है कि कुछ स्वयंसेवी संगठनों और उपभोक्ता समूहों ने इसकी सुरक्षा और गुणवत्ता को लेकर सवाल उठाए हैं।
कंपनी का कहा है कि नियामक ने इस बीज का भौतिक परीक्षण करने को कहा था और कंपनी ने पिछले दो साल के दौरान मानकों के मुताबिक बड़े पैमाने पर इसका परीक्षण किया। कंपनी ने बीटी बीज के कुल 25 परीक्षण किए और इसके साथ ही 12 ट्रायल पशुओं पर किए गए।
इसके पहले बीटी कपास 2002 में बाजार में आया था। भारत में इसका जोरदार विरोध किसानों ने किया था। अब बीटी कपास से फसल के उत्पादन में 116 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो गई है। वहीं बीटी बैगन बनाने वाली कंपनी का दावा है कि इसके हाइब्रिड बीज के प्रयोग से उत्पादन में 166 प्रतिशत की बढोतरी होगी। (BS Hindi)
बैंगन के आनुवांशिक रूप से परिष्कृत किस्म, बीटी बैगन से देश भर के किसानों की आमदनी बढ़ सकती है।
महाराष्ट्र हाइब्रिड सीड कंपनी के अनुमानों के मुताबिक इससे किसानों को प्रति एकड़ 16,000 से 21,000 रुपये की कमाई हो सकती है और देश को प्रतिसाल 2,000 करोड़ रुपये की आमदनी हो सकती है।
हाइब्रिड बीज बनाने वाली महाराष्ट्र की इस कंपनी ने बीटी बैंगन का बीज विकसित किया है। कंपनी का मानना है कि अगर किसान इस बीज का प्रयोग करते हैं तो फलों को फू्रट ऐंड शूट बोरर (एफएसबी) नाम के कीड़े से बचाया जा सकता है, जिससे 50-70 प्रतिशत फसल बर्बाद हो जाती है।
बैंगन की फसल को नुकसान पहुंचाने में एफएसबी प्रमुख है। महाराष्ट्र हाइब्रिड सीड कंपनी के प्रमुख वैज्ञानिक भरत आर चार ने कहा कि बीटी बैंगन के बीज का प्रयोग कर, बैंगन की खेती करने वाले किसान, एफएसबी से फसल को होने वाले 50-70 प्रतिशत नुकसान से बच सकते हैं।
इसके प्रयोग से किसानों का कीटनाशकों पर आने वाला 70 प्रतिशत खर्च बच सकता है। उन्होंने दावा किया कि बीटी बीज से कीड़ों, चिड़ियों, मछलियों, जानवरों या मनुष्यों पर कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता। कंपनी को अभी भारत सरकार के बायोटेक्नोलॉजी नियामक संस्था, जेनेटिक इंजीनियरिंग एप्रूवल कमेटी से अनुमति मिलना बाकी है।
उसके बाद ही कंपनी इसका व्यावसायिक इस्तेमाल कर सकेगी। इसका प्रस्ताव नियामक के पास 2006 से लंबित है। ध्यातव्य है कि कुछ स्वयंसेवी संगठनों और उपभोक्ता समूहों ने इसकी सुरक्षा और गुणवत्ता को लेकर सवाल उठाए हैं।
कंपनी का कहा है कि नियामक ने इस बीज का भौतिक परीक्षण करने को कहा था और कंपनी ने पिछले दो साल के दौरान मानकों के मुताबिक बड़े पैमाने पर इसका परीक्षण किया। कंपनी ने बीटी बीज के कुल 25 परीक्षण किए और इसके साथ ही 12 ट्रायल पशुओं पर किए गए।
इसके पहले बीटी कपास 2002 में बाजार में आया था। भारत में इसका जोरदार विरोध किसानों ने किया था। अब बीटी कपास से फसल के उत्पादन में 116 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो गई है। वहीं बीटी बैगन बनाने वाली कंपनी का दावा है कि इसके हाइब्रिड बीज के प्रयोग से उत्पादन में 166 प्रतिशत की बढोतरी होगी। (BS Hindi)
अक्षय तृतीया पर सोने की बिक्री 14 फीसदी बढ़ी
वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल (डब्ल्यूजीसी) के मुताबिक गत 27 अप्रैल को अक्षय तृतीया के अवसर पर देश में सोने की बिक्री में पिछले वर्ष की तुलना में 14 फीसदी का उछाल आया। यह तेजी मूल्य आधारित है।
हिंदू पंचांग के मुताबिक अक्षय तृतीया एक पवित्र त्योहार है। इस अवसर पर लोग सोना-चांदी जैसी मूल्यवान धातुएं और इनसे बने आभूषण खरीदते हैं। इसके अतिरिक्त लोग हीरा सहित अन्य कीमती रत्न और अचल संपत्ति की खरीदारी भी करते हैं।
डब्ल्यूजीसी इंडिया के प्रबंध निदेशक अजय मित्रा के मुताबिक गत सोमवार को लोगों ने 7,280 करोड़ रुपये मूल्य का सोना खरीदा। पिछले वर्ष जब अक्षय तृतीया दो दिन (7-8 मई) मनाई गई थी तब लोगों ने 6,359 करोड़ रुपये मूल्य का सोना खरीदा था।
उल्लेखनीय है कि इस वर्ष अक्षय तृतीया पर सोने की कीमत 14,700 रुपये प्रति 10 ग्राम थीं जबकि पिछले वर्ष यह कीमत 11,800 रुपये प्रति 10 ग्राम थीं।
मित्रा ने कहा, “पिछले वर्ष की तुलना में कीमत 25 फीसदी ज्यादा होने के कारण कीमतों के लिहाज से बिक्री बेहतर रही।” (News Hindi)
हिंदू पंचांग के मुताबिक अक्षय तृतीया एक पवित्र त्योहार है। इस अवसर पर लोग सोना-चांदी जैसी मूल्यवान धातुएं और इनसे बने आभूषण खरीदते हैं। इसके अतिरिक्त लोग हीरा सहित अन्य कीमती रत्न और अचल संपत्ति की खरीदारी भी करते हैं।
डब्ल्यूजीसी इंडिया के प्रबंध निदेशक अजय मित्रा के मुताबिक गत सोमवार को लोगों ने 7,280 करोड़ रुपये मूल्य का सोना खरीदा। पिछले वर्ष जब अक्षय तृतीया दो दिन (7-8 मई) मनाई गई थी तब लोगों ने 6,359 करोड़ रुपये मूल्य का सोना खरीदा था।
उल्लेखनीय है कि इस वर्ष अक्षय तृतीया पर सोने की कीमत 14,700 रुपये प्रति 10 ग्राम थीं जबकि पिछले वर्ष यह कीमत 11,800 रुपये प्रति 10 ग्राम थीं।
मित्रा ने कहा, “पिछले वर्ष की तुलना में कीमत 25 फीसदी ज्यादा होने के कारण कीमतों के लिहाज से बिक्री बेहतर रही।” (News Hindi)
कॉफी की मांग हल्की पड़ने से एशियाई बाजारों में भाव गिर
लंदन में कॉफी फ्यूचर नरम रहने के कारण एशियाई बाजारों में मांग घटने से इसके भावों में गिरावट का रुख दिखाई दे रहा है। उधर कारोबारियों के अनुसार वियतनाम में किसानों ने कॉफी की बिकवाली रोककर स्टॉक करना शुरू कर दिया है। इससे कारोबार में कमी दर्ज की जा रही है। लिफ्फे में जुलाई रोबुस्ता वायदा करीब 1,471 डॉलर प्रति टन पर रहा। एक सप्ताह पहले इसका भाव करीब 1,490 डॉलर प्रति टन था। इस दौरान वियतनाम के हाजिर बाजारों में कॉफी की कीमतों में करीब 90-100 डॉलर प्रति टन की गिरावट आई है। कारोबारियों के मुताबिक आने वाले दिनों में यहां कॉफी की कीमतों में और गिरावट आने की संभावना जताई जा है। ऐसे में किसानों ने कॉफी की आवक रोक रखी है जिससे कारोबार कमजोर पड़ गया है और भाव गिर रहे हैं। इस दौरान वियतनाम के कई कॉफी उत्पादक इलाकों में बारिश भी शुरू हो गई है। लेकिन जानकारों का मानना है कि इस बारिश का असर कॉफी की फसल और कारोबार पर पड़ने के आसार नहीं है। इस बीच इंडोनेशिया में भी कॉफी की कीमतों में हफ्ते भर के दौरान करीब 50-60 डॉलर प्रति टन की गिरावट आ चुकी है। कारोबारियों के मुताबिक आढ़तियों की लिवाली ठंडी पड़ने से कीमतों में गिरावट आई है। पूर एशियाई बाजारों में कॉफी की कीमतों में आई गिरावट का असर भारतीय कारोबार पर भी पड़ा है। इस दौरान रॉबस्ता चेरी एबी का भाव करीब 1,525 डॉलर प्रति टन रहा।पिछले सप्ताह इसका भाव करीब 1,570 डॉलर प्रति था। हालांकि अरेबिका कॉफी की पैदावार घटने से इसके कारोबार पर कोई खास असर नहीं पड़ा है। भारतीय कॉफी बोर्ड के ताजा आंकड़ों के मुताबिक इस साल एक जनवरी से 27 अप्रैल के दौरान करीब 71,913 टन कॉफी का निर्यात हुआ। जो पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले करीब 18 फीसदी कम है। गुरुवार और शुक्रवार को वियतनाम और भारत का कॉफी बाजार बंद रहेगा। वहीं शुक्रवार को इंडोनेशिया का बाजार भी बंद रहेगा। (Business Bhaskar)
देश में अब तक 139 लाख टन चीनी उत्पादित : इस्मा
चालू सीजन में 15 अप्रैल तक देश में 139 लाख टन चीनी का उत्पादन हो चुका है। करीब 35 चीनी मिलों में पेराई का कार्य अभी भी चल रहा है। बुधवार को इंडिया शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के अध्यक्ष समीर एस. सोमैया ने एक सेमिनार में बताया कि वर्ष 2008-09 (अक्टूबर-सितंबर) पेराई सीजन में देश में चीनी का उत्पादन पिछले साल 264 लाख टन के मुकाबले घटकर 147 लाख टन ही होने की संभावना है। ऐसे में बकाया 80 लाख टन मिलाकर कुल उपलब्धता 227 लाख टन की बैठेगी। जबकि हमारी सालाना खपत 220 लाख टन की होती है। इसलिए नई फसल के समय बकाया स्टॉक न के बराबर रहेगा।देश में चीनी के उत्पादन में भारी गिरावट से थोक और फुटकर बाजार में इसके भाव काफी तेज हो गए थे। चुनावी वर्ष में चीनी की बढ़ती कीमतें सरकार को चुभन पैदा कर रही हैं, इसलिए केंद्र सरकार ने कीमतों पर काबू पाने के लिए कई कदम उठाए हैं। सरकारी प्रयासों का असर यह रहा कि पिछले पंद्रह दिनों में थोक बाजार में चीनी की कीमतों में करीब 300 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट आकर भाव 2400 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। जबकि एक्स-फैक्ट्री चीनी की कीमतें घटकर 2225 से 2325 रुपये प्रति क्विंटल रह गई। सरकारी प्रयासों से थोक बाजार में तो इसकी कीमतों में गिरावट आई है लेकिन फुटकर बाजार में अभी भी इसके दाम 28 से 30 रुपये प्रति किलो चल रहे हैं। इस्मा के महानिदेशक शांति लाल जैन ने बताया कि अभी तक 13 लाख टन रॉ शुगर के आयात सौदे हो चुके हैं तथा इसमें से नौ लाख टन चीनी भारत में आ चुकी हैं। सिंभावली शुगर लिमिटेड के कार्यकारी निदेशक डा. जी. एस. सी. राव ने बताया कि वर्ष 2008-09 में घरेलू आवश्यकता की पूर्ति के लिए लगभग 30 लाख टन रॉ शुगर आयात होने की संभावना है। हालांकि भारत की खरीद बढ़ने से अंतरराष्ट्रीय बाजार में चीनी की कीमतों में उछाल आया है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में पिछले पंद्रह दिनों में चीनी की कीमतों में करीब 30 डॉलर की तेजी आकर भाव 420 डॉलर और रॉ शुगर के दाम बढ़कर 315 डॉलर प्रति टन हो गए हैं। सोमैया ने बताया कि चालू पेराई सीजन में किसानों को चूंकि गन्ने के अच्छे दाम मिल हैं। ऐसे में अगर मौसम ने साथ दिया तो गन्ने के बुवाई क्षेत्रफल में अच्छी बढ़ोतरी होने की आशा है। पिछले वर्ष खासकर उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब में गन्ने के बुवाई क्षेत्रफल में भारी कमी आई थी। (Business Bhaskar....R S Rana)
शेयर बाजार में भरोसा बढ़ने से सोने की चमक फीकी : सिटी
सोने की कीमतों में आने वाले महीनों के दौरान तेजी की संभावना जताई जा रही थी। लेकिन शेयर बाजारों में हलचल बढ़ने से सोने की चमक फीकी पड़ सकती है। सिटी ग्रुप की एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक जिस रफ्तार से शेयर बाजारों में निवेशकों का भरोसा बढ़ा है। उसी रफ्तार में सोने की कीमतों में गिरावट भी आई है। सिटी इंडिया की अर्थशास्त्री रोहिणी मलकानी के मुताबिक आने वाले महीनों में अर्थव्यवस्था कमजोर पड़ने, वित्तीय स्थिति खराब होने और महंगाई बढ़ने से सोने में तेजी आ सकती है लेकिन हमारी कमोडिटी टीम के विशेषज्ञों का अब मानना है कि सोने में कारोबार कुछ ज्यादा ही हो रहा है और शेयर बाजार में भरोसा बहाल होने से सोने की चाल उलट हो सकती है। रिपोर्ट के अनुसार सोने में तेजी निवेश बढ़ने और इसे सुरक्षित निवेश माने जाने के कारण आई थी। जबकि पारंपरिक तौर पर सोने की तेजी को बल महंगाई और कमजोर डॉलर से मिलता रहा है। गौरतलब है कि चीन में सोने का रिजर्व 2003 के 454 टन से बढ़कर 1,054 टन हो गया है। माना यह जा रहा है कि यहां आगे भी सोने की खरीद जारी रह सकती है जो सोने के लिए सकारात्मक संकेत है। हालांकि जी-20 की बैठक के बाद कई देशों द्वारा सुधार योजनाओं के बीच इंटरनेशनल मॉनिटरी फंड द्वारा सोना बेचने से कीमतों में गिरावट का रुख है। इस दौरान भारत में पिछले दो महीनों के बाद अप्रैल में सोने का आयात शुरू हो गया है जो वैश्विक सोना बाजार के लिए एक सकारात्मक संकेत है। बॉम्बे बुलियन मर्चेट एसोसिएशन के मुताबिक 1 से 15 अप्रैल के दौरान करीब दस टन सोने का आयात हो चुका है। (Business Bhaskar)
इक्विटी मार्केट में तेजी के बाद गिरेंगी सोने की कीमतें: सिटी
नई दिल्ली : सिटीग्रुप की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि आने वाले महीनों में सोने की कीमतों में और बढ़ोतरी संभव है लेकिन एक बार इक्विटी मार्केट में तेजी लौटने के बाद ट्रेंड उलट सकता है। सिटी इंडिया में अर्थशास्त्री रोहिणी मलकानी ने एक रिपोर्ट में कहा है , ' हमारी कमोडिटी टीम का मानना है कि अर्थव्यवस्था में और कमजोरी , वित्तीय स्थिति बिगड़ने और महंगाई जैसे कारणों के कारण आने वाले महीनों में कीमतों में और तेजी आ सकती है। टीम का मानना है कि सोने में काफी ट्रेडिंग हो रही है और बाजार में निवेशकों का भरोसा लौटने के बाद सोने की कीमतों में गिरावट का दौर शुरू हो सकता है। ' रिपोर्ट में कहा गया है कि सोने की कीमतों में तेजी के पीछे परंपरागत कारण जैसे महंगाई और कमजोर डॉलर नहीं है। सोने के भाव बढ़ने के पीछे निवेशकों की मांग और सुरक्षित निवेश प्राप्त होने की उम्मीद मुख्य कारण हैं। इस बात की खबर है कि चीन भारी मात्रा में सोने की खरीद कर रहा है। 2003 में चीन का सोने का भंडार 454 टन था , जो अब बढ़कर 1,054 टन हो चुका है। सोने की कीमतों में बढ़ोतरी के पीछे इसे भी एक बड़ी वजह माना जा रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि जी 20 बैठक में दुनिया की बड़ी आर्थिक शक्तियों के छह अरब डॉलर की सहायता की बात के बाद कुछ सुधार देखने को मिला है। इस कारण कीमतों में कुछ गिरावट दर्ज की गई है। इस बीच , दो महीनों तक आयात ठप रहने के बाद भारत में फिर से सोने का आयात हुआ है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 1-15 अप्रैल के बीच बॉम्बे बुलियन एसोसिएशन ने 10 टन सोने का आयात किया है। (ET Hindi)
कमोडिटी की हाजिर और वायदा कीमतों में अंतर पर एफएमसी ने टिकाई निगाह
मुंबई: कमोडिटी बाजार नियामक फॉरवर्ड मार्केट कमीशन (एफएमसी) ने एक्सचेंजों को निर्देश दिए हैं कि वे आलू की हाजिर-वायदा कीमतों में मौजूद अंतर की फिर से समीक्षा करें। मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) और नेशनल कमोडिटी एंड डेरिवेटिव्स एक्सचेंज (एनसीडीईएक्स) के मुहैया कराए गए आलू के ऊंची वायदा कीमतों के आंकड़े बाजार नियामक को इनकी कीमतों में उछाल की वजह समझाने में असफल रहे हैं। इस हफ्ते के अंत तक एक्सचेंज फिर से एफएमसी के पास जा सकते हैं। कुछ हफ्ते पहले बजार नियामक ने एनसीडीईएक्स, एमसीएक्स और अहमदाबाद के एनएमसीई से चीनी, रबर, हल्दी और आलू की ऊंची वायदा कीमतों के बारे में स्पष्टीकरण मांगा था। चीनी और रबड़ के मामले में कीमतों के ऊंचा रहने के लिए इनकी मांग और आपूर्ति में बरकरार अंतर को वजह माना जा सकता है लेकिन एफएमसी को पता चला है कि टायर बनाने वाली कंपनियों से फॉरवर्ड ऑर्डर हासिल कर चुके रबर कारोबारी खुद इसकी कीमतों को ऊपर चढ़ा रहे थे। एफएमसी ने इसके बाद रबर बोर्ड से इस मामले की जांच करने को कहा है। आलू की ऊंची कीमतों ने एफएमसी को परेशानी में डाल दिया है। कृषि मंत्रालय के इस साल आलू की फसल के 3.15 करोड़ टन के जबरदस्त स्तर पर रहने की उम्मीद जताई है। यह पिछले साल हुई आलू की फसल से 10 लाख टन ज्यादा है। आलू की बंपर फसल के अनुमान को देखते हुए एफएमसी को लग रहा है कि इसकी वायदा कीमतों के ऊंचे स्तर पर रहने के पीछे कोई खेल तो नहीं चल रहा है। एफएमसी के चेयरमैन बी सी खटुआ ने कहा, 'इस तरह की सप्लाई की स्थिति में कीमतों के वायदा बाजार में उछाल की कोई वजह नहीं दिखाई नहीं देती है। इन कमोडिटी की हाजिर और वायदा कीमतों में अंतर होने के कारणों को देखना होगा। मैने दोनों कमोडिटी एक्सचेंजों से कहा है कि वह इनकी हाजिर और वायदा कीमतों में अंतर की वजहों का पता लगाएं। कहीं कुछ ऐसा है, जो कि वास्तविकता के धरातल से परे है।' एफएमसी को लग रहा है कि जिन कारोबारियों के पास कमोडिटी का स्टॉक मौजूद है वे इनकी कीमतों के और ऊपर जाने के कयास में इसकी खरीदारी के सौदे कर रहे हैं। चूंकि कोई कारोबारी महीने की 15 तारीख तक अपने कॉन्ट्रैक्ट का सेटलमेंट कर सकता है, इसलिए ऐसा लग रहा है कि जिनके पास कोल्ड स्टोरेज में स्टॉक मौजूद है वे ही इसकी कीमतों को ऊपर चढ़ा रहे हैं। 15 के बाद अपनी पोजीशन को ओपन रखने के जरिए कारोबारी को या तो डिलीवरी देनी या लेनी होती है। सौदे को काटने की स्थिति में कारोबारी मुनाफा कमाता है और वह अपने स्टॉक को या तो फिजिकल बाजार में डंप कर सकता है या अपने स्टॉक को दूसरे महीने के वायदा में बेच सकता है। (ET Hindi)
अगले साल सुधर सकता है चीनी का उत्पादन
नई दिल्ली: दुनिया में चीनी की सबसे ज्यादा खपत करने वाले भारत को अगले साल चीनी की कमी के संकट से कुछ राहत मिल सकती है। शुगर इंडस्ट्री के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, खरीदारी की वजह से देश में चीनी का स्टॉक बढ़ेगा साथ ही इसकी ऊंची चल रही कीमतों की वजह से किसानों को गन्ने की खेती के लिए प्रोत्साहन मिलेगा। अधिकारी के मुताबिक, इसके बावजूद देश को अगले साल भी चीनी का आयात करना पड़ेगा। इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (आईएसएमए) के अध्यक्ष समीर सोमैया ने कहा, 'ऊंची कीमतों से किसानों को मदद मिली है और अगर अच्छा मानसून रहा तो गन्ने की पैदावार निश्चित तौर पर ज्यादा होगी।' आईएसएमए ने देश में 1 अक्टूबर को रहने वाले चीनी के भंडार के अनुमान को भी दोगुना कर 40 लाख टन कर दिया है। अक्टूबर से ही चीनी सीजन की शुरुआत होती है। पिछले महीने संस्था ने अनुमान लगाया था कि चीनी भंडार में पिछले साल के 80 लाख टन की तुलना में 75 फीसदी की कमी आ सकती है। हालांकि सरकारी अनुमानों के मुताबिक पिछले साल चीनी सीजन की शुरुआत के वक्त इसका भंडार एक करोड़ टन था। सोमैया के मुताबिक, देश को साल 2009-10 में चीनी के आयात की जरूरत होगी। उन्होंने कहा कि देश में साल 2008-09 में चीनी का उत्पादन करीब 1.48 करोड़ टन के स्तर पर रह सकता है। यह पहले के 1.45 करोड़ टन के अनुमान से कुछ ज्यादा है। इससे एक साल पहले देश में 2.65 करोड़ टन चीनी का उत्पादन हुआ था। सोमैय्या ने कहा कि देश करीब 30 लाख टन कच्ची चीनी का आयात करेगा। देश की चीनी मिलें अब तक 13 लाख टन कच्ची चीनी के आयात के कॉन्ट्रैक्ट कर चुकी हैं, जिसमें से नौ लाख टन चीनी देश में आ चुकी है। (ET Hindi)
अक्षय तृतीया पर इस बार फीकी रही सोने की खरीदारी!
मुंबई : अक्षय तृतीया के अवसर पर इस बार सोने की खरीदारी पिछले साल के मुकाबले फीकी रही। वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल ने गुरुवार को बताया कि पिछले साल के मुकाबले इस साल इस मौके पर सोने की खरीदारी में 8 परसेंट की गिरावट देखने को मिली। अक्षय तृतीया पर भारतीयों ने 45 टन सोने की खरीदारी की। हालांकि इस अवसर पर की जाने वाली खरीदारी स्थानीय कारोबारी संगठनों और ज्वेलर्स के अनुमानों से बेहतर रही। भारत दुनिया का सबसे बड़ा बुलियन कंज्यूमर है और अक्षय तृतीया के मौके पर देश में (खासकर दक्षिण भारत में) सोना खरीदने की परंपरा है। इसके अलावा धनतेरस भी बड़ा अवसर होता है, जिस पर लोग सोने-चांदी की खरीदारी करते हैं। हालांकि कुछ ज्वेलर्स का कहना है कि फेस्टिवल के मौके पर सोने पर बिक्री में पिछले साल के मुकाबले 20 से 40 परसेंट की गिरावट रही है। हाल के महीने मे भारत में सोने की मांग काफी सुस्त रही है। बहरहाल वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल का कहना है कि आर्थिक मंदी के बावजूद बिक्री अच्छी रही और साथ ही पिछले साल यह त्योहार 2 दिन 7 और 8 मई को मनाया गया था। वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल की भारतीय इकाई के मैनेजिंग डायरेक्टर अजय मित्रा कहते हैं कि अक्षय तृतीया पर सोने की खरीद के आंकड़े काफी सकारात्मक हैं। उन्होंने कहा कि हमें चीजों को वर्तमान आर्थिक संकट के लिहाज से देखना चाहिए। इस बीच बॉम्बे बुलियन असोसिएशन ने बताया कि अप्रैल के पहले चार हफ्तों में सोने का इंपोर्ट 15 टन रहा, जो पिछले साल इसी दौरान किए गए आयात से 40 परसेंट कम है। इस महीने के इंपोर्ट का पूरा इस्तेमाल अक्षय तृतीया के मौके पर किया गया। (ET Hindi)
29 अप्रैल 2009
विदेशी मंदी से सोना-चांदी सस्ते
अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने की कीमतों में आई मंदी से दिल्ली सराफा बाजार में मंगलवार को 160 रुपये की गिरावट आकर भाव 14,870 रुपये प्रति दस ग्राम रह गए। ऊंचे भावों में मांग का समर्थन न मिलने से भी गिरावट को बल मिला है। सोमवार को दिल्ली सराफा बाजार में सोने के दाम बढ़कर 15,030 रुपये प्रति दस ग्राम हो गए थे। इस दौरान चांदी के भावों में भी 325 रुपये प्रति किलो की गिरावट देखने को मिली। मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) में सोने के अगस्त महीने के वायदा में मंगलवार को 1.51 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। आल इंडिया सराफा एसोसिएशन के अध्यक्ष शील चंद जैन ने बताया कि ऊंचे भावों में ज्वैलर्स की मांग कमजोर होने से सोने के भाव घटे हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजार में आई गिरावट से भी इसकी गिरावट को बल मिला है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में 17 अप्रैल से 24 अप्रैल तक सोने के भावों में करीब 40 डॉलर प्रति औंस की तेजी आकर सोने के दाम 910 डॉलर प्रति औंस से ऊपर हो गये थे। 17 अप्रैल को अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसके दाम 870 डॉलर प्रति औंस थे। ऊंचे भावों में निवेशकों की बिकवाली बढ़ने से मंगलवार को सोने के भाव 899 डॉलर प्रति औंस पर कारोबार करते देखा गया। 28 अप्रैल को अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसके दाम 916 डॉलर प्रति औंस पर खुले थे तथा बिकवाली के दबाव से 906 डॉलर प्रति औंस पर बंद हुए थे।गोयल ज्वैलर्स के वी. के. गोयल ने बताया कि घरेलू बाजार में 20 अप्रैल को सोने के दाम 14,440 रुपये प्रति दस ग्राम थे। हालांकि इन भावों में भी ग्राहकी कमजोर थी लेकिन अंतरराष्ट्रीय बाजार में आई एकतरफा तेजी से दिल्ली सराफा बाजार में भी 28 अप्रैल तक सोने की कीमतों में 590 रुपये की तेजी आकर भाव 15,030 रुपये प्रति दस ग्राम हो गए। जबकि मांग का समर्थन न मिलने से गिरावट दर्ज की गई। उन्होंने बताया कि घरेलू बाजार में सोने के दाम घटकर 13,500 डॉलर प्रति औंस के स्तर पर आएं तो अच्छी खरीद देखने को मिल सकती है।एमएसीएक्स पर सोने के अगस्त महीने के वायदा में मंगलवार को 1.51 फीसदी की गिरावट आकर 14,508 रुपये प्रति दस ग्राम पर कारोबार करते देखा गया। चांदी सितंबर वायदा में भी निवेशकों की मुनाफावसूली से 3.35 फीसदी की गिरावट आकर भाव 21,100 रुपये प्रति किलो पर कारोबार करते देखा गया। अंतरराष्ट्रीय बाजार में मंगलवार को चांदी की कीमतों में भी गिरावट दर्ज की गई। इसके भाव 12.60 डॉलर प्रति औंस पर खुले तथा निवेशकों की मुनाफावसूली आने से 12.46 डॉलर प्रति औंस पर कारोबार करते देखा गया। घरेलू बाजार में भी इसकी कीमतों में 325 रुपये का मंदा आकर भाव 21,500 रुपये प्रति किलो रह गए। चांदी में औद्योगिक मांग के साथ-साथ गहनों की मांग भी इस दौरान कमजोर रही। (Business Bhaskar)
विदेशी तेजी के बाद भी घरेलू बाजार में चीनी नरम
भारत में सरकार द्वारा चीनी की बढ़ती कीमतों पर अंकुश की कोशिशें रंग ला रही हैं। लंदन समेत एशियाई बाजारों में चीनी में जारी तेजी के बावजूद भारतीय बाजारों में भाव तुलनात्मक रूप से नरम हैं। सरकार द्वारा ज्यादा कोटा जारी करने से बाजार में चीनी की सप्लाई बढ़ी है। जिसका असर कीमतों पर देखा जा रहा है। मौजूदा समय में थाईलैंड में रॉ शुगर की कीमतों में बढ़त हुई है। कारोबारियों के मुताबिक आईसीई रॉ शुगर वायदा में आई तेजी का असर स्पष्ट है। आईसीई में मई रॉ शुगर वायदा सोमवार को करीब 13.70 सेंट प्रति पौंड पर रहा। एक सप्ताह पहले यह करीब 12.92 सेंट प्रति पौंड था। बैंकाक के एक कारोबारी के मुताबिक थाईलैंड में चीनी के उत्पादन में कमी की आशंका से भी भाव में तेजी आई है। थाईलैंड में इस साल गन्ने की पैदावार में गिरावट की आशंका जताई जा रही है। केन एंड शुगर बोर्ड के मुताबिक इस साल यहां करीब 6.7 करोड़ टन गन्ना पैदा होने का अनुमान है। बोर्ड के प्रवक्ता के मुताबिक इस साल भारत और मध्य पूर्व एशियाई देशों से चीनी की आयात मांग निकलने की संभावना जताई जा रही है। इस दौरान लंदन में चीनी की कीमतों में भी इजाफा हुआ है। वहीं इस दौरान भारत में चीनी की कीमतों में तगड़ी गिरावट देखी गई है। पिछले एक सप्ताह के दौरान भारतीय हाजिर और वायदा बाजारों में चीनी के भाव करीब 250 रुपये प्रति क्विंटल तक लुढ़क चुके हैं। सरकार द्वारा ज्यादा चीनी का कोटा जारी करने से भाव में नरमी आई है। जानकारों के मुताबिक सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों द्वारा ब्राजील और थाईलैंड से चीनी का आयात करने की संभावना से भी कीमतों में गिरावट आई है। मंगलवार को मुंबई के वाशी थोक बाजार में एस-30 ग्रेड चीनी का भाव 2220-2230 रुपये प्रति क्विंटल रहा। एक सप्ताह पहले यहां 2325 रुपये क्विंटल तक चीनी बिकी थी। बॉंम्बे शुगर मर्चेट एसोसिएशन के सचिव मुकेश कुवाडिया ने बताया कि बाजार में चीनी की सप्लाई बढ़ने से कीमतों कर दबाव बढ़ा है। सरकार ने इस महीने के कोटे की चीनी को माह के अंत तक बेचने का निर्देश दिया है। (Business Bhaskar)
एफसीआई की बिकवाली आने की संभावना से बाजरा सस्ता
भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के गोदामों से करीब तीन लाख टन बाजरा की खुले बाजार में बिक्री होने की संभावना है। इससे व्यापारी बाजरा के भाव में बड़ी गिरावट का अनुमान लगा रहे हैं। दूसरी ओर बिहार में नई मक्का की आवक के बाद पशुआहार के लिए बाजरा की मांग घटने लगी है। इससे राजस्थान की मंडियों में अप्रैल के दूसर पखवाड़े के दौरान बाजरा में पांच फीसदी से ज्यादा की गिरावट दर्ज की गई है।हरियाणा में भारतीय खाद्य निगम के सूत्रों के मुताबिक एफसीआई ने तीन लाख टन बाजरा बेचने के लिए मार्च में निविदाएं मांगी थी और अब जल्दी ही इसकी बिक्री शुरू होने की उम्मीद है। आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक एफसीआई शुरू में पांच से सात हजार टन बाजरा बेच सकती है। यह देखते हुए व्यापारियों का कहना है कि एफसीआई की बिकवाली के बाद बाजरा के भावों में पंद्रह फीसदी तक गिरावट संभव है।जयपुर के थोक व्यापारी राकेश खंडेलवाल का कहना है कि हरियाणा में एफसीआई की ओर से लगभग 750 रुपए क्विंटल के भाव पर बाजरा बेचने की संभावना है। बिहार में नई मक्का की आवक के बाद पशुअहार के लिए बाजरा का उठान नगण्य रह गई है क्योंकि नई मक्का तथा बाजरा के भाव लगभग समान स्तर पर होने से पशुआहार में अब मक्का ही उपयोग की जा रही है। दूसरी तरफ शराब फैक्ट्रियों ने भी बाजरा की खरीद बंद कर दी है। अब केवल राजस्थान के रगिस्तानी इलाके बाड़मेर लाइन में ही खाने के लिए बाजरा की छिटपुट मांग निकल रही है। इस कारण कई दिनों से जयपुर मंडी में बाजरा 900 से 910 रुपए प्रति क्विंटल पर टिका हुआ है जबकि अलवर व भरतपुर मंडी में इस पखवाड़े बाजरा के भाव पांच फीसदी से ज्यादा घटकर 850 से 875 रुपए क्विंटल रह गए हैं। एफसीआई द्वारा बाजरा बेचने के लिए मांगी गई निविदाओं में खरीदारों की ओर से 612 से 866 रुपए क्विंटल तक की बोली लगाने का अनुमान है। जयपुर के व्यापारी के.जी झालानी ने बताया कि मार्च में मक्का और ज्वार महंगा पड़ने के कारण बाजरा में तेजी का रुख बना था लेकिन बिहार में नई मक्का आने के बाद बाजरा में तेजी पर ब्रेक ही नहीं लगा बल्कि इसके भावों पर दबाव बन गया है। इस समय जयपुर मंडी में मक्का के भाव 970 से 980 रुपए, जबकि बाजरा 900 से 925 रुपए क्विंटल के बीच है। ऐसे में पशुआहार के लिए बाजरा का उठान काफी घट गया है। अलवर के व्यापारी हीरालाल अग्रवाल ने बताया कि पहले गुजरात से मांग निकलने के कारण अलवर समेत भरतपुर संभाग की मंडियों में बाजरा का उठाव बढ़ा था लेकिन अब गुजरात की मांग लगभग समाप्त होने से भी बाजरा पर चौतरफा दबाव आ गया है। (Business Bhaksar)
स्वाइन फ्लू से बीमार हुआ कैटलफीड बाजार
मेक्सिको में स्वाइन फ्लू नामक बीमारी फैलने से अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोया व सरसों खली और मक्का की कीमतों में गिरावट दर्ज की गई है। इससे घरेलू बाजार में भी सोया व सरसों खली के भावों में क्रमश: तीन और चार फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। मक्का में भी 20 रुपये प्रति क्विंटल का मंदा आ चुका है। गौरतलब है कि मेक्सिको में फैले इस रोग के विषाणु से अब तक 81 लोगों की मृत्यु हो चुकी है। यही नहीं, इससे व्यापार के प्रभावित होने की आशंका जताई जा रही है। सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सोपा) के प्रवक्ता राजेश अग्रवाल ने त्नबिजनेस भास्करत्न को बताया कि मेक्सिको में स्वाइन फ्लू के फैलने से अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोया खली के भाव गिर गए हैं। ऐसे में घरेलू बाजार में भी इसकी गिरावट को बल मिला है। कांडला पोर्ट पर मंगलवार को सोया खली के भाव 24,500 रुपये से घटकर 23,800-24,000 रुपये प्रति टन रह गए। यही नहीं, इन भावों पर भी मांग का अभाव रहा। आगामी दिनों में अंतरराष्ट्रीय बाजार खासकर अमेरिका में मौसम कैसा रहता है, इस पर सोया खली और सोयाबीन की तेजी-मंदी निर्भर करेगी। वैसे, जून-जुलाई में भारत में सोयाबीन की बुवाई शुरू हो जाएगी तथा अगर मौसम अनुकूल रहा तो बुवाई क्षेत्रफल में बढ़ोतरी की उम्मीद की जा सकती है।मुंबई के कैटलफीड निर्यातक दलीप काबरा ने बताया कि स्वाइन फ्लू के फैलने से अंतरराष्ट्रीय बाजार में कैटलफीड (पशुचारा) की मांग में गिरावट दर्ज की गई है। इससे घरेलू बाजार में मंगलवार को सरसों खली के भाव 500 रुपये की गिरावट के साथ 10,300 रुपये प्रति टन रह गए। मक्का में भी निर्यात मांग न होने से 20 रुपये की गिरावट के साथ मुंबई में इसके भाव 900 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। अंतरराष्टीय बाजार में भारतीय मक्का के भाव 175 डॉलर प्रति टन एफओबी चल रहे हैं, लेकिन इन भावों पर कोई सौदा नहीं हुआ। साई सिमरन फूड के नरेश गोयनका ने बताया कि सोया खली के भावों में आई गिरावट से घरेलू बाजार में सोयाबीन की कीमतें भी 150 रुपये की गिरावट के साथ 2600 रुपये प्रति क्विंटल रह र्गई। एनसीडीईएक्स में मई वायदा के भावों में भी पिछले दो दिनों में करीब छह फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। मंगलवार को मई वायदा के भाव 2605 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोयाबीन के भावों में गिरावट बनी हुई है। (Business Bhaskar....R S Rana)
चावल निर्यातकों को क्वॉलिटी का ख्याल रखने की हिदायत
नई दिल्ली: अमेरिका द्वारा भारत के बासमती चावल की खेप यह कहते हुए लौटाने के बाद कि इसमें कचरे की मात्रा बहुत अधिक है, भारत ने निर्यातकों को सलाह दी है कि वह निर्यात किए जाने वाले बासमती चावल में वांछित गुणवत्ता को पूरा करने की कोशिश करें। अमेरिकी फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन का कहना है कि भारत से आई बासमती चावल की 6 कंसाइनमेंट को इसलिए वापस किया गया है, क्योंकि इसमें मानकों का ध्यान नहीं रखा गया है और इसमें काफी मात्रा में कचरा है। जिन कंपनियों के बासमती चावल की खेप को लौटाया गया है, उनमें एम आर ओवरसीज(दिल्ली), केशव एक्सपोर्ट्स (बंगलुरु), न्यू भारत राइस मिल्स (पंजाब), एवरग्रीन एक्सपोर्ट्स (मुंबई), बेसिक इंडिया और भानू फूड्स इंडिया (दोनों सूत्रों का कहना है कि प्रत्येक निर्यातक का करीब 20 टन चावल वापस लौटाया गया है और इनमें से ज्यादा निर्यातक ऐसे हैं जिन्होंने पहली बार अमेरिका को चावल का निर्यात किया था। अमेरिका के इस कदम के बाद व्यापार को बढ़ावा देने वाली सरकारी संस्था एग्रीकल्चर एंड प्रोसेस्ड फूड प्रोडक्ट एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथॉरिटी (एपेडा)ने निर्यातकों को निर्यात संबंधी दिशा-निर्देश जारी किए हैं। इसमें निर्यातकों को सलाह दी गई है कि वह कोई भी खेप अमेरिका भेजने से पहले प्रोसेस, पैकिंग और लेबलिंग से जुड़े सभी मानकों को ध्यान में रखें। ऑल इंडिया राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के प्रेसिडेंट विजय सेतिया ने बताया, 'हमने एसोसिएशन के सभी सदस्यों से कहा है कि वह गुणवत्ता संबंधी मानकों का पूरी तरह से पालन करें।' इस पूरे मामले में विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, 'निर्यातकों को सलाह जारी करने का मकसद यह है कि वे मानकों पर खरा उतरने की कोशिश करें। हालांकि बासमती चावल की खेप लौटाने से भारत की छवि को थोड़ा नुकसान पहुंचा है, फिर भी जिन निर्यातकों ने पहली बार अमेरिका को चावल का निर्यात किया है, उन्हें एक मौका और दिया जाना चाहिए।' (ET Hindi)
मुंबई- सोने के दामों में भले ही उतार-चढ़ाव देखा जा रहा है लेकिन एमसीएक्स में सोने की गिन्नी के कॉन्ट्रैक्ट ने अपने लॉन्च के एक वर्ष के अंदर ही निवेशको
नई दिल्ली: स्टील निर्यात करने वाले प्रमुख देश दक्षिण कोरिया ने भारत से विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में स्टील उत्पादों के आयात पर बंदिशें लगाने की वजह बताने को कहा है। डब्ल्यूटीओ एक बहुराष्ट्रीय संस्था है जो देशों के बीच व्यापार के नियमों को तय करती है। अगर भारत इस सवाल का संतोषजनक उत्तर देने में सफल नहीं रहता है तो दक्षिण कोरिया डब्ल्यूटीओ की विवाद सुलझाने वाली संस्था के पास इन प्रतिबंधों को चुनौती दे सकता है। यह संस्था इस तरह के विवाद पर फैसला देती है। पिछले साल के अंत में भारत ने तमाम उत्पादों को प्रतिबंधात्मक उत्पादों की सूची में डाल दिया था। वाहनों के कलपुर्जे, हॉट रोल्ड कॉइल्स, सीमलेस ट्यूब्स और पाइप समेत कई स्टील उत्पाद शामिल किए गए थे। इन उत्पादों को प्रतिबंधात्मक सूची में डालने से केवल इस्तेमाल करने वाली इंडस्ट्री ही सरकार से लाइसेंस लेकर इनका आयात कर सकती है। एक सरकारी अधिकारी ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर बताया कि भारत के लिए इन प्रतिबंधों के बारे में डब्ल्यूटीओ में जवाब देना मुश्किल साबित हो सकता है, क्योंकि ऐसा करने के लिए कोई खास आधार नहीं था। सरकारी हलकों में इस बात के लिए पहले से काफी मजबूत राय है कि एंटी-डंपिंग ड्यूटी या सेफगार्ड ड्यूटी जैसे विशेष शुल्क लागू करना ही बेहतर है। इस तरह के विशेष शुल्क लगाने के बारे में डब्ल्यूटीओ में प्रावधान हैं। कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता वाली सचिवों की समिति (सीओएस) पहले ही फैसला ले चुकी है कि आयात प्रतिबंधों को यदा-कदा ही लगाया जाए। इससे पहले इस साल सीओएस ने वाणिज्य मंत्रालय से कहा था कि वह आयात पर प्रतिबंध तभी लगाए जबकि ऐसा करना अनिवार्य हो। एक अधिकारी ने कहा, 'अगर प्रतिबंधों के मामले में डब्ल्यूटीओ पैनल का गठन किया जाता है तो इसके फैसले से भारत के दूसरे उत्पादों पर भविष्य में इसी तरह के प्रतिबंध लगाने की क्षमता पर असर पड़ सकता है। हालांकि इस तरह की प्रक्रियाओं में लंबा वक्त लगता है।' डब्ल्यूटीओ में दाखिल की गई अपनी शिकायत में दक्षिण कोरिया ने भारत से इस बात की जानकारी भी मांगी है कि नई लाइसेंसिंग स्कीम में आयात पर अवरोध न लगाने के बारे में वह क्या कदम उठा रहा है। दक्षिण कोरिया ने अपने दस्तावेज में सवाल किया है, 'भारत सरकार ने लाइसेंसिंग स्कीम से आयात पर प्रतिबंध न लगें, इस बारे में क्या कदम उठाए हैं?' ग्लोबल आर्थिक संकट की वजह से स्टील की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में तेज गिरावट आई है। इस वजह से सरकार को घरेलू इंडस्ट्री को बचाने के लिए कई कदम उठाने के लिए मजबूर होना पड़ा है। (ET Hindi)
गोल्ड गिन्नी कॉन्ट्रैक्ट में 20 फीसदी का रिटर्न
मुंबई- सोने के दामों में भले ही उतार-चढ़ाव देखा जा रहा है लेकिन एमसीएक्स में सोने की गिन्नी के कॉन्ट्रैक्ट ने अपने लॉन्च के एक वर्ष के अंदर ही निवेशकों को लगभग 20 फीसदी का रिटर्न दिया है। कमोडिटी एक्सचेंज एमसीएक्स ने पिछले वर्ष अक्षय तृतीया के मौके पर सोने की गिन्नी का कॉन्ट्रैक्ट शुरू किया था, इसमें कम से कम आठ ग्राम तक का निवेश किया जा सकता है। पिछले वर्ष आठ मई को प्रति आठ ग्राम सोने की गिन्नी के कॉन्ट्रैक्ट का मूल्य 9,661 रुपए पर बंद हुआ था। इस वर्ष अक्षय तृतीया के दिन अप्रैल कॉन्ट्रैक्ट का मूल्य 11,531 रुपए पर बंद हुआ जो कि पिछले वर्ष के मुकाबले 20 फीसदी का लाभ दर्शाता है। बाजार के जानकारों का कहना है कि ज्यादातर निवेशक पास के महीने के कॉन्ट्रैक्ट पर ट्रेडिंग करते हैं और वह उसके एक्पायरी से पहले इसे बेच कर नई पोजीशन लेते हैं। इस तरह सोने के दाम ऊंचे होने पर वे ज्यादा मुनाफा भी कमा सकते हैं। निवेशक सोने की गिन्नी को एमसीएक्स से जुड़े वेयरहाउस में बिना किसी शुल्क के रखा जा सकता है लेकिन इसकी डिलीवरी लेने पर उन्हें 200 रुपए का प्रीमियम चुकाना होता है। एमसीएक्स के अधिकारियों का कहना है कि सोने की आठ ग्राम की एक गिन्नी की भी डिलीवरी ली जा सकती है। पिछले वर्ष 44,125 गिन्नियों की डिलीवरी दी गई, जिनका कुल वजन 353 किलोग्राम था। पिछले वर्ष अगस्त से नवंबर के बीच सोने की गिन्नियों की डिलीवरी की तादाद काफी अधिक थी। अक्टूबर, 2008 के कॉन्ट्रैक्ट में 87 किलोग्राम की रिकॉर्ड डिलीवरी दी गई। सोने के दाम चढ़ने की वजह से इस वर्ष डिलीवरी लेने वालों की संख्या काफी घट गई है। फरवरी 2009 में यह आंकड़ा छह किलोग्राम और मार्च में 9.2 किलोग्राम का था। सोने की गिन्नी का कॉन्ट्रैक्ट मुख्य तौर पर डिलीवरी लेने वाले खरीदारों और छोटे निवेशकों के लिए फायदेमंद है। इसके डिलीवरी सेंटर अहमदाबाद, नई दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद, बंगलुरु, चेन्नई और कोलकाता में हैं। (ET Hindi)
सीपीआरआई ने विकसित की आलू की नई किस्म कुफरी फ्राईसोना
नई दिल्ली: केन्द्रीय आलू शोध संस्थान (सीपीआरआई) शिमला ने आलू की एक किस्म कुफरी फ्राईसोना विकसित की है। आलू की यह नई प्रजाति फ्रेंच फ्राइज के लिए खासी उपयोगी है। सीपीआरआई के डायरेक्टर एस के पांडेय ने बताया कि कुफरी फ्राईसोना काफी लंबा होता है और इसमें 20 फीसदी से अधिक ठोस तत्व होते हैं। इसमें चीनी की मात्रा भी काफी कम होती है, इसलिए यह चिप्स और फ्रेंच फ्राइज तैयार के लिए उपयुक्त है। उन्होंने बताया कि कुफरी फ्राईसोना में पत्तियों की लेट ब्लाइट बीमारी के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता होती है। पांडेय ने कहा कि कुफरी फ्राईसोना की उपज स्थान विशेष के हिसाब से होती है, जो मौसम और मिट्टी की स्थिति पर निर्भर करती है। उन्होंने कहा कि यह किस्म प्रति हेक्टेयर औसतन 25-30 टन आलू की उपज देती है जिसमें 30-35 फीसदी से भी अधिक फ्रेंच फ्राइज बनाने लायक आलू होता है। उन्होंने कहा कि कुफरी फ्राईसोना अगले साल से वाणिज्यिक उत्पादन के लिए उपलब्ध होगी। पांडेय ने कहा, 'अगले साल से हम इसकी मात्रा को बढ़ाएंगे, जो इसकी मांग और हमारे पास इसके बीज की उपलब्धता पर निर्भर करेगा।' इससे पहले सीपीआरआई ने चिप्स, पापड़ और पाउडर जैसे दूसरे प्रोसेस्ड उत्पाद बनाने के लिए आलू की चार अन्य किस्मों को विकसित किया था। ये किस्में हैं- कुफरी चिपसोना, कुफरी चिपसोना-2, कुफ्री चिपसोना-3 और कुफ्री हिमसोना। पांडे ने कहा कि कुफरी चिपसोना-1 का उपयोग फ्रेंच फ्राइज बनाने के लिए भी किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि संस्थान ने आलू की 45 किस्मों को विकसित किया है और कई दूसरी किस्में विकसित किए जाने की प्रक्रिया में हैं। मौजूदा समय में भारत में जो आलू पैदा किया जाता है, उसके 4 फीसदी हिस्से का उपयोग पौटेटो प्रोसेसिंग इंडस्ट्री में किया जाता है। भारत हर साल करीब 2.4-2.5 करोड़ टन आलू का उत्पादन 12.5-14.5 लाख हेक्टेयर में किया जाता है, जो कि देश की कुल खेती योग्य जमीन का महज 0.6 - 0.67 फीसदी हिस्सा ही है। (ET Hindi)
जून तक सोना घटेगा, फिर इसके चढ़ने का अनुमान
मुंबई : विश्लेषकों का मानना है कि सोने की कीमतों में जून के अंत तक गिरावट रहेगी और इसके बाद इसमें तेजी देखने को मिल सकती है। रॉयटर्स के एक पोल के मुताबिक, 2009 की तीसरी और चौथी तिमाही में मुद्रास्फीति के तेज होने के साथ-साथ सोने की कीमतें भी चढ़ सकती है। सर्वे के नतीजे बताते हैं कि जून के अंत तक सोना 13,995 रुपए तक पहुंच सकता है। जबकि सितंबर के अंत तक ये 15,000 रुपए तक और दिसंबर के अंत तक 15,830 रुपए तक जा सकता है। कार्वी कॉमट्रेड के रिसर्च प्रमुख हरीश गलीपल्ली का कहना है कि इकॉनमी को संभालने के लिए उठाए गए कदमों से मंदी का खतरा कम होगा। ऐसे में सोने की चमक फीकी पड़ सकती है। पिछले साल सितंबर में दुनिया की कई इकॉनमी ने कैश की कमी झेली और कई अर्थव्यवस्थाएं मंदी के दौर में चली गई। इस वजह से कई देशों के सेंट्रल बैंकों को रेट कट करने पड़े और डिमांड बढ़ाने के लिए उपाय करने पड़े। ऐसे उपाय भारत में भी किए जा रहे हैं और सोने की कीमत पर इकॉनमी की चाल का असर पड़ता है।
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गोल्ड गिन्नी कॉन्ट्रैक्ट में 20 फीसदी का रिटर्न
और स्टोरीज़ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करेंमंबई के एक सरकारी बैंक से जुड़े गोल्ड डीलर ने कहा कि सरकारी खर्च बढ़ने से महंगाई बढ़ने के आसार है और इसके असर से सोना तेज हो सकता है। एनालिस्ट का कहना है कि गोल्ड की कीमत में गिरावट मिडियम टर्म में जारी रहेगी और 13,500 से 13,700 को वैल्यू एरिया माना जा सकता है। इस स्तर पर गोल्ड की खरीदारी की जा सकती है। गौरतलब है कि 20 फरवरी के सोने के अपने उच्चतम स्तर 16,040 रुपये पर पहुंचने के बाद इसमें अब तक 10 परसेंट की गिरावट देखने को मिल चुकी है। (ET Hindi)
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गोल्ड गिन्नी कॉन्ट्रैक्ट में 20 फीसदी का रिटर्न
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दमकेगा हीरा हिंदुस्तानी
मुंबई April 28, 2009
आर्थिक मंदी की चक्की में बुरी तरह पिसने वाले हीरा कारोबारियों के दिन फिर बुहरने लगे हैं।
मंदी की वजह से अमेरिकी बाजार में गिर चुकी मांग फिर बढ़ने लगी है, जिससे हीरा कारोबारियों के चेहरों पर चमक लौटने लगी है। अमेरिका भारतीय हीरों का सबसे बड़ा बाजार है और वहां पर मांग बढ़ने का मतलब देश के समूचे हीरा कारोबार को संजीवनी बूटी मिलने से कम नहीं है।
रत्न एवं आभूषण संघ के अध्यक्ष वसंत मेहता के अनुसार पिछले छह महीनों से हीरों की मांग दिन प्रति दिन कम होती जा रही थी लेकिन पिछले एक-दो सप्ताह से हीरों की मांग फिर शुरू हो गई है। वैश्विक बाजारों के साथ देसी बाजार से भी मांग में तेजी आ रही है।
मेहता कहते हैं कि अमेरिकी और यूरोपीय बाजार से मांग आना भारतीय हीरा उद्योग के लिए बहुत बड़ी राहत की बात है। विदेशी बाजार से जिस तरह की मांग शुरू हुई है, उसको देखते हुए अगले छह महीनों में भारतीय हीरा उद्योग पटरी पर वापस आ सकता है।
साल के आखिर में यूरोप और अमेरिका में फ्री क्रिसमस और फ्री हॉलीडे पैकेज शुरू हो जाएगे। अच्छे ऑफरों को देखकर लोग भी भारी तादाद में खरीदारी करते हैं। मांग बढ़ने के मामले पर मेहता कहते हैं कि यह कहना गलत होगा कि मंदी खत्म हो गई लेकिन मंदी थम जरूर गई है। लोगों को भी लगता है कि कीमतें जितना नीचे जा सकती थीं उतनी जा चुकी हैं।
हीरों की मांग बढ़ने के साथ ही अच्छी गुणवता वाले हीरों की कीमतों में भी तकरीबन 10 फीसदी का इजाफा हुआ है। इस पर पी एंड एस ज्वैलरी के चेयरमैन परेश भाई शाह कहते हैं कि पिछले छह महीनों से हीरा तराशने का काम लगभग पूरी तरह से बंद पड़ा था क्योंकि बाजार में खरीदार ही नहीं थे। अब अचानक मांग बढ़ने की वजह से अच्छी गुणवता और ऊंची कीमत वाले हीरों की बाजार में कमी हो गई है। इस वजह से कीमतों में भी उछाल देखने को मिल रहा है।
हीरा तराशने का काम कराने वाले प्रदीप शाह कहते हैं कि अमेरिकी और यूरोपीय बाजारों से करीबन 20 फीसदी मांग बढ़ी है जिससे हीरा तराशने यानी कटिंग और पॉलिश का काम भी शुरू हो गया हैं। अगर सिलसिला यूं ही जारी रहा तो जिन लोगों की नौकरी छिनी हैं उन्हें जल्द ही वापस काम मिल सकता है।
भारत में हीरों का सालाना कारोबार तकरीबन 80,000 करोड़ रुपये का है। भारत में तराशे गए हीरों में से 70 फीसदी हीरे अमेरिकी बाजार में बिकते हैं। मंदी का दौर शुरू होने के पहले तक दुनिया में 10 बिकने वाले हीरों में से 9 भारत में तराशे जाते थे।
हीरा उद्योग के कुल वैश्विक बाजार में कीमत के आधार पर 57 फीसदी हिस्से पर भारत का कब्जा है और यह कारोबार सालाना 20 फीसदी की दर से बढ़ रहा था, लेकिन पिछले साल शुरू हुई मंदी ने इसकी चाल को पलट कर रख दिया। इसकी सबसे प्रमुख वजह अमेरिकी बाजार में पिछले साल आई मंदी थी, जो भारतीय हीरों का सबसे बड़ा बाजार है।
अमेरिकी और यूरोपीय बाजार में 20 फीसदी तक बढ़ गई मांगबढ़िया किस्म और ऊंचे दाम वाले हीरों की ज्यादा मांगसालाना 80,000 करोड़ रुपये का है देसी हीरा उद्योग, बढ़ गईं उम्मीद70 फीसदी हीरे खरीद लेता है अकेला अमेरिका (BS Hindi)
आर्थिक मंदी की चक्की में बुरी तरह पिसने वाले हीरा कारोबारियों के दिन फिर बुहरने लगे हैं।
मंदी की वजह से अमेरिकी बाजार में गिर चुकी मांग फिर बढ़ने लगी है, जिससे हीरा कारोबारियों के चेहरों पर चमक लौटने लगी है। अमेरिका भारतीय हीरों का सबसे बड़ा बाजार है और वहां पर मांग बढ़ने का मतलब देश के समूचे हीरा कारोबार को संजीवनी बूटी मिलने से कम नहीं है।
रत्न एवं आभूषण संघ के अध्यक्ष वसंत मेहता के अनुसार पिछले छह महीनों से हीरों की मांग दिन प्रति दिन कम होती जा रही थी लेकिन पिछले एक-दो सप्ताह से हीरों की मांग फिर शुरू हो गई है। वैश्विक बाजारों के साथ देसी बाजार से भी मांग में तेजी आ रही है।
मेहता कहते हैं कि अमेरिकी और यूरोपीय बाजार से मांग आना भारतीय हीरा उद्योग के लिए बहुत बड़ी राहत की बात है। विदेशी बाजार से जिस तरह की मांग शुरू हुई है, उसको देखते हुए अगले छह महीनों में भारतीय हीरा उद्योग पटरी पर वापस आ सकता है।
साल के आखिर में यूरोप और अमेरिका में फ्री क्रिसमस और फ्री हॉलीडे पैकेज शुरू हो जाएगे। अच्छे ऑफरों को देखकर लोग भी भारी तादाद में खरीदारी करते हैं। मांग बढ़ने के मामले पर मेहता कहते हैं कि यह कहना गलत होगा कि मंदी खत्म हो गई लेकिन मंदी थम जरूर गई है। लोगों को भी लगता है कि कीमतें जितना नीचे जा सकती थीं उतनी जा चुकी हैं।
हीरों की मांग बढ़ने के साथ ही अच्छी गुणवता वाले हीरों की कीमतों में भी तकरीबन 10 फीसदी का इजाफा हुआ है। इस पर पी एंड एस ज्वैलरी के चेयरमैन परेश भाई शाह कहते हैं कि पिछले छह महीनों से हीरा तराशने का काम लगभग पूरी तरह से बंद पड़ा था क्योंकि बाजार में खरीदार ही नहीं थे। अब अचानक मांग बढ़ने की वजह से अच्छी गुणवता और ऊंची कीमत वाले हीरों की बाजार में कमी हो गई है। इस वजह से कीमतों में भी उछाल देखने को मिल रहा है।
हीरा तराशने का काम कराने वाले प्रदीप शाह कहते हैं कि अमेरिकी और यूरोपीय बाजारों से करीबन 20 फीसदी मांग बढ़ी है जिससे हीरा तराशने यानी कटिंग और पॉलिश का काम भी शुरू हो गया हैं। अगर सिलसिला यूं ही जारी रहा तो जिन लोगों की नौकरी छिनी हैं उन्हें जल्द ही वापस काम मिल सकता है।
भारत में हीरों का सालाना कारोबार तकरीबन 80,000 करोड़ रुपये का है। भारत में तराशे गए हीरों में से 70 फीसदी हीरे अमेरिकी बाजार में बिकते हैं। मंदी का दौर शुरू होने के पहले तक दुनिया में 10 बिकने वाले हीरों में से 9 भारत में तराशे जाते थे।
हीरा उद्योग के कुल वैश्विक बाजार में कीमत के आधार पर 57 फीसदी हिस्से पर भारत का कब्जा है और यह कारोबार सालाना 20 फीसदी की दर से बढ़ रहा था, लेकिन पिछले साल शुरू हुई मंदी ने इसकी चाल को पलट कर रख दिया। इसकी सबसे प्रमुख वजह अमेरिकी बाजार में पिछले साल आई मंदी थी, जो भारतीय हीरों का सबसे बड़ा बाजार है।
अमेरिकी और यूरोपीय बाजार में 20 फीसदी तक बढ़ गई मांगबढ़िया किस्म और ऊंचे दाम वाले हीरों की ज्यादा मांगसालाना 80,000 करोड़ रुपये का है देसी हीरा उद्योग, बढ़ गईं उम्मीद70 फीसदी हीरे खरीद लेता है अकेला अमेरिका (BS Hindi)
उत्तर प्रदेश में 30 लाख टन गेहूं खरीद का लक्ष्य
लखनऊ 04 29, 2009
इस साल उत्तर प्रदेश में रिकॉर्ड 270 लाख टन गेहूं उत्पादन का अनुमान है। इसे देखते हुए राज्य सरकार की एजेंसियों ने 20 लाख टन गेहूं खरीद का लक्ष्य रखा है।
इसके साथ ही 30 जून तक भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) ने भी 10 लाख टन गेहूं खरीदने का लक्ष्य रखा है। इस तरह से कुल मिलाकर उत्तर प्रदेश में गेहूं की सरकारी खरीद 30 लाख टन रहने का अनुमान है।
उत्तर प्रदेश, भारत का सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक राज्य है। देश के कुल उत्पादन में 35 प्रतिशत योगदान इस राज्य का है। उत्तर प्रदेश खाद्य और नागरिक आपूर्ति के मुख्य विपणन अधिकारी (सीएमओ) महबूब खान ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा कि अब तक सरकार ने 6,50,000 टन गेहूं सीधे किसानों से खरीदा है।
इस साल केंद्र सरकार ने गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ा दिया है। 80 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ने के बाद अब गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1080 रुपये प्रति क्विंटल है। खान ने कहा कि हमने राज्य भर में कुल 4,380 खरीद केंद्र बनाए हैं।
यह केंद्र मुख्य रूप से राज्य खाद्य विपणन विभाग, प्राविंसियल कोआपरेटिव फेडरेशन, यूपी एग्रो, यूपी सहकारी संघ, यूपी स्टेट फूड कार्पोरेशन और नेशनल एग्रीकल्चर कोआपरेटिव मार्केटिंग फेडरेशन आफ इंडिया लिमिटेड (नेफेड) से संबध्द हैं।
पिछले साल के 255 लाख टन की तुलना में इस साल उत्तर प्रदेश में 276 लाख टन गेहूं उत्पादन का अनुमान है। गेहूं की मड़ाई का काम अभी भी चल रहा है और जब सभी जिलों में फसल की मड़ाई खत्म हो जाएगी, तभी अंतिम आंकड़ा आ सकेगा।
बहरहाल उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव अतुल कुमार गुप्ता ने कुछ मंडलीय अधिकारियों और जिलाधिकारियों से विडियो कान्फ्रेंसिंग कर सरकारी खरीद के बारे में जानकारी ली। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि कमीशन एजेंटों की बजाय सीधे किसानों से खरीद की जानी चाहिए।
गुप्ता ने कहा कि सरकारी खरीद का लक्ष्य 15 मई तक हासिल कर लिया जाएगा, क्योंकि हर खरीद केंद्र की क्षमता में 600 क्विंटल की बढ़ोतरी हुई है। दिलचस्प है कि गेहूं खरीद को बढ़ाने के लिए पिछले साल कमीशन एजेंटों की नियुक्ति की गई थी, लेकिन 2007-08 की तुलना में गेहूं की खरीद में मामूली कमी आई थी। (BS Hindi)
इस साल उत्तर प्रदेश में रिकॉर्ड 270 लाख टन गेहूं उत्पादन का अनुमान है। इसे देखते हुए राज्य सरकार की एजेंसियों ने 20 लाख टन गेहूं खरीद का लक्ष्य रखा है।
इसके साथ ही 30 जून तक भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) ने भी 10 लाख टन गेहूं खरीदने का लक्ष्य रखा है। इस तरह से कुल मिलाकर उत्तर प्रदेश में गेहूं की सरकारी खरीद 30 लाख टन रहने का अनुमान है।
उत्तर प्रदेश, भारत का सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक राज्य है। देश के कुल उत्पादन में 35 प्रतिशत योगदान इस राज्य का है। उत्तर प्रदेश खाद्य और नागरिक आपूर्ति के मुख्य विपणन अधिकारी (सीएमओ) महबूब खान ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा कि अब तक सरकार ने 6,50,000 टन गेहूं सीधे किसानों से खरीदा है।
इस साल केंद्र सरकार ने गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ा दिया है। 80 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ने के बाद अब गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1080 रुपये प्रति क्विंटल है। खान ने कहा कि हमने राज्य भर में कुल 4,380 खरीद केंद्र बनाए हैं।
यह केंद्र मुख्य रूप से राज्य खाद्य विपणन विभाग, प्राविंसियल कोआपरेटिव फेडरेशन, यूपी एग्रो, यूपी सहकारी संघ, यूपी स्टेट फूड कार्पोरेशन और नेशनल एग्रीकल्चर कोआपरेटिव मार्केटिंग फेडरेशन आफ इंडिया लिमिटेड (नेफेड) से संबध्द हैं।
पिछले साल के 255 लाख टन की तुलना में इस साल उत्तर प्रदेश में 276 लाख टन गेहूं उत्पादन का अनुमान है। गेहूं की मड़ाई का काम अभी भी चल रहा है और जब सभी जिलों में फसल की मड़ाई खत्म हो जाएगी, तभी अंतिम आंकड़ा आ सकेगा।
बहरहाल उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव अतुल कुमार गुप्ता ने कुछ मंडलीय अधिकारियों और जिलाधिकारियों से विडियो कान्फ्रेंसिंग कर सरकारी खरीद के बारे में जानकारी ली। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि कमीशन एजेंटों की बजाय सीधे किसानों से खरीद की जानी चाहिए।
गुप्ता ने कहा कि सरकारी खरीद का लक्ष्य 15 मई तक हासिल कर लिया जाएगा, क्योंकि हर खरीद केंद्र की क्षमता में 600 क्विंटल की बढ़ोतरी हुई है। दिलचस्प है कि गेहूं खरीद को बढ़ाने के लिए पिछले साल कमीशन एजेंटों की नियुक्ति की गई थी, लेकिन 2007-08 की तुलना में गेहूं की खरीद में मामूली कमी आई थी। (BS Hindi)
फ्रैंचाइजी देगी सहकारी संस्था नेफेड
नई दिल्ली 04 29, 2009
सहकारी संस्था, नैशनल एग्रीकल्चरल ऐंड कोआपरेटिव मार्केटिंग फेडरेशन (नेफेड) ने फ्रैंचाइजी मॉडल पर किराना की दुकानें खोलने की योजना बनाई है।
वर्तमान में यह कंपनी नेफेड बाजार नाम से 10 रिटेल आउटलेट चलाती है, जिसमें 8 दिल्ली में हैं, जबकि 2 शिमला में। इन सभी पर कंपनी का मालिकाना हक है। इसके अलावा नेफेड अस्पतालों, होटलों और सरकारी विभागों में किराना उत्पादों की बिक्री करती है।
पिछले सप्ताह हुई एक बैठक में बोर्ड ने नेफेड के फ्रैंचाइजी के लिए बने दिशानिर्देश को मंजूरी दे दी। नेफेड के प्रबंध निदेशक यूकेएस चौहान ने कहा कि कुछ लोगों ने व्यक्तिगत स्तर पर और कंपनियों ने भी फ्रैंचाइजी लेने के लिए संबंधित जानकारी मांगी है।
फ्रैंचाइजी के तहत जो दुकानें खोली जाएंगी, उनका नाम फी नेफेड बाजार ही रहेगा। जारी दिशानिर्देशों में एक सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि फ्रेंचाइजी लेने वाले को बिक्री के सभी उत्पादों की खरीद नेफेड के माध्यम से करनी होगी।
मुंबई की ओमेगा इनवेस्टमेंट ऐंड प्रॉपर्टीज, जो रियल एस्टेट के कारोबार और कुछ अन्य व्यवसायों में लगी है, ने कोआपरेटिव की फ्रैंचाइजी बनने में रुचि दिखाई है। यह केवल दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के लिए है।
नेफेड शुरुआती दौर में राजधानी और उससे जुड़े कस्बों पर ध्यान केंद्रित करने की योजना बना रही है, जहां पर पहले से ही विकसित सप्लाई चेन है। उसके बाद समय के साथ अन्य शहरों की ओर बढ़ने की योजना है।
हालांकि उसका लक्ष्य इसके देश भर में विस्तार का है। नेफेड केंद्र सरकार की एजेंसी है, जो विभिन्न कृषि जिंसों की सरकारी खरीद, वितरण, निर्यात और आयात का काम करती है। फेडरेशन दालों और तिलहन की कीमतों पर नजर रखती है और इसकी नोडल एजेंसी भी है।
इसके अलावा जूट, कपास और कोपरा जैसे कृषि जिंसों के कारोबार में भी दखल रखती है। जहां नेफेड तिलहन, दालों, प्याज आदि की खरीद घरेलू बाजार में करती है, यह दालों और तेलों जैसे जिंसों का आयात भी करती है- अगर देश में इसकी कमी हो। (BS Hindi)
सहकारी संस्था, नैशनल एग्रीकल्चरल ऐंड कोआपरेटिव मार्केटिंग फेडरेशन (नेफेड) ने फ्रैंचाइजी मॉडल पर किराना की दुकानें खोलने की योजना बनाई है।
वर्तमान में यह कंपनी नेफेड बाजार नाम से 10 रिटेल आउटलेट चलाती है, जिसमें 8 दिल्ली में हैं, जबकि 2 शिमला में। इन सभी पर कंपनी का मालिकाना हक है। इसके अलावा नेफेड अस्पतालों, होटलों और सरकारी विभागों में किराना उत्पादों की बिक्री करती है।
पिछले सप्ताह हुई एक बैठक में बोर्ड ने नेफेड के फ्रैंचाइजी के लिए बने दिशानिर्देश को मंजूरी दे दी। नेफेड के प्रबंध निदेशक यूकेएस चौहान ने कहा कि कुछ लोगों ने व्यक्तिगत स्तर पर और कंपनियों ने भी फ्रैंचाइजी लेने के लिए संबंधित जानकारी मांगी है।
फ्रैंचाइजी के तहत जो दुकानें खोली जाएंगी, उनका नाम फी नेफेड बाजार ही रहेगा। जारी दिशानिर्देशों में एक सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि फ्रेंचाइजी लेने वाले को बिक्री के सभी उत्पादों की खरीद नेफेड के माध्यम से करनी होगी।
मुंबई की ओमेगा इनवेस्टमेंट ऐंड प्रॉपर्टीज, जो रियल एस्टेट के कारोबार और कुछ अन्य व्यवसायों में लगी है, ने कोआपरेटिव की फ्रैंचाइजी बनने में रुचि दिखाई है। यह केवल दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के लिए है।
नेफेड शुरुआती दौर में राजधानी और उससे जुड़े कस्बों पर ध्यान केंद्रित करने की योजना बना रही है, जहां पर पहले से ही विकसित सप्लाई चेन है। उसके बाद समय के साथ अन्य शहरों की ओर बढ़ने की योजना है।
हालांकि उसका लक्ष्य इसके देश भर में विस्तार का है। नेफेड केंद्र सरकार की एजेंसी है, जो विभिन्न कृषि जिंसों की सरकारी खरीद, वितरण, निर्यात और आयात का काम करती है। फेडरेशन दालों और तिलहन की कीमतों पर नजर रखती है और इसकी नोडल एजेंसी भी है।
इसके अलावा जूट, कपास और कोपरा जैसे कृषि जिंसों के कारोबार में भी दखल रखती है। जहां नेफेड तिलहन, दालों, प्याज आदि की खरीद घरेलू बाजार में करती है, यह दालों और तेलों जैसे जिंसों का आयात भी करती है- अगर देश में इसकी कमी हो। (BS Hindi)
28 अप्रैल 2009
अब स्वाइन फ्लू का खौफ
नई दिल्ली/मैक्सिको 04 28, 2009
मैक्सिको में स्वाइन फ्लू से मरने वालों की संख्या बढ़कर 100 के आंकड़े को पार कर गई है। इसकी चपेट में मैक्सिको के साथ अमेरिका और कनाडा भी आ गए हैं।
इस खतरनाक बीमारी से बचने के लिए भारत सहित तमाम देशों में एहतियाती कदम उठाए जाने लगे हैं। भारत सरकार ने आज स्वाइन फ्लू से प्रभावित देशों की यात्रा करने वाले भारतीयों के लिए परामर्श जारी किया है। इसके साथ ही उन यात्रियों के लिए स्क्रीनिंग की व्यवस्था लागू की है, जो प्रभावित देशों से भारत आ रहे हैं।
मैक्सिको, अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, कनाडा और न्यूजीलैंड से आने वाले यात्रियों की स्वास्थ्य जांच की जाएगी, साथ ही इन देशों से 10 दिनों के बीच भारत आए यात्रियों को उनके नजदीकी स्वास्थ्य केंद्रों पर स्वास्थ्य जांच कराने के निर्देश दिए गए हैं।
दिल्ली में आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में इंडियन काउंसिल फार मेडिकल रिसर्च के डॉयरेक्टर जनरल डॉ. वीएन क टोच ने कहा कि इन व्यवस्थाओं के साथ सरकार ने बंदरगाहों और हवाईअड्डों पर इस बीमारी की जांच के लिए सर्विलांस यूनिट की व्यवस्था करने का भी फैसला किया है।
उन्होंने कहा कि इस तरह के वायरस से बचने के लिए देश में पहले से ही टामीफ्लू नाम की प्रभावी दवा है, जिसका इस्तेमाल बर्ड फ्लू फैलने के दौरान किया जाता है। उन्होंने कहा, 'इसके अलावा भी हमने 10 लाख टामीफ्लू की गोलियां खरीदने की योजना बनाई है।'
एनआईसीडी के डॉयरेक्टर शिवलाल ने कहा है कि अभी तक इस बीमारी के जानवरों के माध्यम से फैलने की खबर नहीं मिली है, यह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को हो रही है। इसे देखते हुए राज्य सरकार की संक्रमण रोधी सभी एजेंसिंयों को सक्रिय कर दिया गया है।
डॉ. कटोच ने कहा कि भारत आने वाली सभी विमान सेवाओं को भी विशेष दिशा निर्देश दिए गए हैं। उन्होंने कहा कि भारत में अभी तक यह रोग नहीं फैला है लेकिन हम किसी भी स्थिति से निपटने के लिए तैयार हैं। सभी राज्यों से भी इस संबंध में सतर्क रहने को कहा गया है। केंद्र सरकार की ओर से इस तैयारी के लिए राज्यों को सहायता भी दी जा रही है।
अमेरिका के पांच राज्यों में 20 मामलों की पुष्टि होने के बाद सरकार ने स्वाइन फ्लू को स्वास्थ्य इमरजेंसी घोषित कर दिया है। विश्व बैंक ने कहा है कि हाल में मैक्सिको में फैले स्वाइन फ्लू को रोकने में मदद के लिए वह मैक्सिको को 20 करोड़ डॉलर का अतिरिक्त कर्ज मुहैया करा रहा है।
मैक्सिको के स्वास्थ्य मंत्री ने बताया कि देश में 13 अप्रैल को स्वाइन फ्लू फैलने के बाद से अब तक 103 लोगों की मृत्यु हो चुकी है तथा 400 लोग अस्पतालों में भर्ती हैं। वहीं जापान ने सोमवार को कैबिनेट की आपातकालीन बैठक बुलाई, जिसमें फैसला किया गया कि निरोधक उपाय और आब्रजन के जरिए देश में स्वाइन फ्लू के प्रवेश को रोकने के प्रयास तेज किए जाएंगे।
साथ ही मैक्सिको से आने वाले लोगों की सरकार सख्ती से निगरानी कर रही है। संयुक्त अरब अमीरात में स्वाइन फ्लू के प्रसार को रोकने के लिए तुरंत कदम उठाने का प्रयास करते हुए देश के स्वास्थ्य मंत्रालय ने अस्पतालों और चिकित्सकों को पूरी तरह से तैयार रहने को कहा है।
मंत्रालय में निरोधक दवा के तकनीकी निदेशक जमाल अल तुर्की ने बताया, 'संयुक्त अरब अमीरात में अभी स्वाइन फ्लू का कोई वास्तविक खतरा नहीं है।' विशेषज्ञों ने यह चेतावनी दी है कि यह बीमारी, महामारी का रूप भी ले सकती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारत से कहा है कि घनी आबादी के चलते यहां यह बीमारी ज्यादा खतरनाक हो सकती है। (BS Hindi)
मैक्सिको में स्वाइन फ्लू से मरने वालों की संख्या बढ़कर 100 के आंकड़े को पार कर गई है। इसकी चपेट में मैक्सिको के साथ अमेरिका और कनाडा भी आ गए हैं।
इस खतरनाक बीमारी से बचने के लिए भारत सहित तमाम देशों में एहतियाती कदम उठाए जाने लगे हैं। भारत सरकार ने आज स्वाइन फ्लू से प्रभावित देशों की यात्रा करने वाले भारतीयों के लिए परामर्श जारी किया है। इसके साथ ही उन यात्रियों के लिए स्क्रीनिंग की व्यवस्था लागू की है, जो प्रभावित देशों से भारत आ रहे हैं।
मैक्सिको, अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, कनाडा और न्यूजीलैंड से आने वाले यात्रियों की स्वास्थ्य जांच की जाएगी, साथ ही इन देशों से 10 दिनों के बीच भारत आए यात्रियों को उनके नजदीकी स्वास्थ्य केंद्रों पर स्वास्थ्य जांच कराने के निर्देश दिए गए हैं।
दिल्ली में आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में इंडियन काउंसिल फार मेडिकल रिसर्च के डॉयरेक्टर जनरल डॉ. वीएन क टोच ने कहा कि इन व्यवस्थाओं के साथ सरकार ने बंदरगाहों और हवाईअड्डों पर इस बीमारी की जांच के लिए सर्विलांस यूनिट की व्यवस्था करने का भी फैसला किया है।
उन्होंने कहा कि इस तरह के वायरस से बचने के लिए देश में पहले से ही टामीफ्लू नाम की प्रभावी दवा है, जिसका इस्तेमाल बर्ड फ्लू फैलने के दौरान किया जाता है। उन्होंने कहा, 'इसके अलावा भी हमने 10 लाख टामीफ्लू की गोलियां खरीदने की योजना बनाई है।'
एनआईसीडी के डॉयरेक्टर शिवलाल ने कहा है कि अभी तक इस बीमारी के जानवरों के माध्यम से फैलने की खबर नहीं मिली है, यह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को हो रही है। इसे देखते हुए राज्य सरकार की संक्रमण रोधी सभी एजेंसिंयों को सक्रिय कर दिया गया है।
डॉ. कटोच ने कहा कि भारत आने वाली सभी विमान सेवाओं को भी विशेष दिशा निर्देश दिए गए हैं। उन्होंने कहा कि भारत में अभी तक यह रोग नहीं फैला है लेकिन हम किसी भी स्थिति से निपटने के लिए तैयार हैं। सभी राज्यों से भी इस संबंध में सतर्क रहने को कहा गया है। केंद्र सरकार की ओर से इस तैयारी के लिए राज्यों को सहायता भी दी जा रही है।
अमेरिका के पांच राज्यों में 20 मामलों की पुष्टि होने के बाद सरकार ने स्वाइन फ्लू को स्वास्थ्य इमरजेंसी घोषित कर दिया है। विश्व बैंक ने कहा है कि हाल में मैक्सिको में फैले स्वाइन फ्लू को रोकने में मदद के लिए वह मैक्सिको को 20 करोड़ डॉलर का अतिरिक्त कर्ज मुहैया करा रहा है।
मैक्सिको के स्वास्थ्य मंत्री ने बताया कि देश में 13 अप्रैल को स्वाइन फ्लू फैलने के बाद से अब तक 103 लोगों की मृत्यु हो चुकी है तथा 400 लोग अस्पतालों में भर्ती हैं। वहीं जापान ने सोमवार को कैबिनेट की आपातकालीन बैठक बुलाई, जिसमें फैसला किया गया कि निरोधक उपाय और आब्रजन के जरिए देश में स्वाइन फ्लू के प्रवेश को रोकने के प्रयास तेज किए जाएंगे।
साथ ही मैक्सिको से आने वाले लोगों की सरकार सख्ती से निगरानी कर रही है। संयुक्त अरब अमीरात में स्वाइन फ्लू के प्रसार को रोकने के लिए तुरंत कदम उठाने का प्रयास करते हुए देश के स्वास्थ्य मंत्रालय ने अस्पतालों और चिकित्सकों को पूरी तरह से तैयार रहने को कहा है।
मंत्रालय में निरोधक दवा के तकनीकी निदेशक जमाल अल तुर्की ने बताया, 'संयुक्त अरब अमीरात में अभी स्वाइन फ्लू का कोई वास्तविक खतरा नहीं है।' विशेषज्ञों ने यह चेतावनी दी है कि यह बीमारी, महामारी का रूप भी ले सकती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारत से कहा है कि घनी आबादी के चलते यहां यह बीमारी ज्यादा खतरनाक हो सकती है। (BS Hindi)
नेचुरल रबर का निर्यात 48 हजार टन घटाने पर सहमति`
दुनिया की 70 फीसदी नेचुरल रबर पैदा करने वाले तीन देशों इंडोनेशिया, मलेशिया व थाईलैंड के बीच निर्यात में कटौती पर सहमति बन गई है। ये तीनों देश निर्यात मूल्यों में गिरावट रोकने को दूसरी तिमाही से निर्यात में 48 हजार टन मासिक की कटौती करेंगे। इंटरनेशनल रबर कंसोर्टियम के सचिव यिउम थावारोविट के अनुसार निर्यात में कटौती होने से रबर के मूल्यों को कम से कम स्वीकार्य स्तर तक लाने में मदद मिलेगी। उधर मांग में आई कमी से इंडोनेशिया से रबर निर्यात में इस साल की पहली तिमाही के दौरान करीब 30 फीसदी की गिरावट आई है। कारोबारी सूत्रों के मुताबिक इस साल जनवरी-मार्च के दौरान करीब 418,000 टन रबर का निर्यात हुआ है। रबर एसोसिएशन ऑफ इंडोनेशिया के कार्यकारी निदेशक सुहातरे होंगोकुसुमो ने बताया कि पिछले साल की इसी अवधि के मुकाबले निर्यात में करीब 197,500 टन की कमी आई है। साल 2008 के दौरान इंडोनेशिया में करीब 28 लाख टन नेचुरल रबर का उत्पादन हुआ है। उन्होंने बताया कि वैश्विक स्तर पर आई मंदी की वजह से रबर की मांग में कमी आई है। जिसका असर इसकी कीमतों पर गिरावट के रूप में देखी जा रही है। भाव गिरने से किसानों और उत्पादकों को बेहतर मुनाफा नहीं मिल पा रहा है। कई जगह छोटे रबर किसानों को नुकसान भी उठाना पड़ रहा है। उन्होंने बताया कि इस तिमाही के साथ अगली तिमाही में भी नेचुरल रबर के निर्यात में गिरावट देखी जा सकती है। हालांकि गिरावट के स्तर के बार में अभी कुछ भी अनुमान नहीं लगाया जा सकता है। मौजूदा समय में रबर का पूरा कारोबार वैश्विक आर्थिक हालात और कच्चे तेल की कीमतों के आधार पर हो रहा है। गौरतलब है कि पिछले साल जून में टोक्यो कमोडिटी एक्सचेंज में रबर की कीमतें 356.9 येन प्रति किलो के रिकार्ड स्तर पर चली गई थीं। लेकिन साल भर में ऑटो और टायर कंपनियों की मांग में आई कमी की वजह से कीमतों में तगड़ी गिरावट दर्ज हुई है। रबर के पूर वैश्विक उत्पादन का करीब 70 फीसदी हिस्सा टायर बनाने में इस्तेमाल होता है। सोमवार को टोक्यो कमोडिटी एक्सचेंज में बेंचमार्क अक्टूबर रबर वायदा करीब 155 येन प्रति किलो पर रहा। भारत के कोट्टायम में सोमवार को आरएसएस4 नेचुरल रबर के भाव बढ़कर ख्क्क् रुपये किलो और आरएसएस5 के भाव 98 रुपये प्रति किलो हो गए। (Business Bhaskar)
अमेरिका को आम निर्यात के लिए एपीडा के नए मानक
भारत से अमेरिका को आम निर्यात के लिए सरकार ने गुणवत्ता के नए मानक तय किए हैं। गुणवत्ता के आधार निर्यात की खेप निरस्त होने की घटनाओं पर रोक लगाने के लिए कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) की ओर से आम निर्यात के लिए नए नियम जारी हुए हैं। एपीडा द्वारा जारी नए नियमों के तहत निर्यातकों को चमक सहित और बीमारी व घाव रहित आम का निर्यात करने को कहा है। अमेरिका को निर्यात होने वाले आमों का इरेडिएशन प्रक्रिया पिछले साल ही अनिवार्य कर दी गई थी। एपीडा के महाप्रबंधक आर. के. बोयल ने बताया कि निर्यात होने वाले आम की गुणवत्ता से जुड़ी कोई शिकायत न आए इसके लिए यह कदम उठाया जा रहा है। इसके जरिये निर्यात होने वाले आम की गुणवत्ता भी सुनिश्चित हो सकेगी। आम निर्यात में कि सी भी शिकायत को गंभीरता से लिया जाएगा। निर्यातकों को भी अमेरिका भेजने वाले आमों की गुणवत्ता से काई समझौता नहीं करने दिया जाएगा। इसके लिए स्टैंडर्ड ऑपरटिंग प्रोसिजर (एसओपीएस) की भी व्यवस्था की गई है। एसओपीएस के जरिये अमेरिका को आम का निर्यात करने की इच्छुक पै¨कग हाउस को एपीडा में रजिस्ट्रेशन कराना होगा। इसके तहत पैकिं ग हाउस और एपीडा के बीच इरेडिएशन ट्रीटमेंट सुविधा के लिए करार हो जाएगा। मौजूदा समय में इरेडिएशन सुविधा नासिक में है। एपीडा के मुताबिक रजिस्टर्ड पैकिंग हाउस बागों से आम हासिल कर सकेंगे। साथ ही उन्हें फल की आवक के समय, प्रोसेसिंग और शिपिंग से जुड़े सार विवरण उपलब्ध कराने होंगे। पैकिंग हाउसों को एपीडा और अमेरिकी एनिमल प्लांट हेल्थ इंस्पेक्शन डिपार्टमेंट को आम के बागाों की सूची भी देनी होगी। (Business Bhaskar)
कृषि वैज्ञानिकों की कमी से बढ़ेगी खाद्य असुरक्षा
जलवायु परिवर्तन के गहराते संकट के दौर में गेहूं प्रजनक में विशेषज्ञता वाले वैज्ञानिकों की कमी से देश में खाद्य असुरक्षा को और बढ़ावा मिलने की आशंका है। वैज्ञानिकों के मुताबिक इससे देश की कृषि विकास दर भी प्रभावित हो सकती है। गेहूं शोध निदेशालय में प्रोजेक्ट डायरक्टर जगशरण के मुताबिक देश में गेहूं प्रजनक की विशेषज्ञता वाले कृषि वैज्ञानिकों की भारी कमी है। जिससे गेहूं की पैदावार बढ़ाने वाले बीजों पर शोध करने में दिक्कतें आ सकती हैं। इस कमी को यदि पूरा किया जाता है तो खाद्य असुरक्षा और जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से काफी हद तक निपटा जा सकता है।देश भर में गेहं प्रजनक वैज्ञानिकों की संख्या महज 240 है। साल 1960 में हरित क्रांति के समय देश में इन वैज्ञानिकों की संख्या करीब 400 थी। लेकिन उसके बाद से वैज्ञानिकों की संख्या में तेज गिरावट आई है। गेहूं प्रजनक वैज्ञानिक शोध के जरिये उज्जा पैदावार वाले गेहूं के बीज विकसित करते हैं। (Business Bhaskar)
राजस्थान में सरसों की आवक 40फीसदी घटने के बावजूद भाव घटे
अक्षय तृतीया के विवाह मुहूर्त के कारण आवक चालीस फीसदी कम रही। इसके बावजूद सरसों वायदा सौदों के भाव में गिरावट दर्ज की गई। सोमवार को राजस्थान की मंडियों में एक ही दिन में सरसों के भाव करीब तीन फीसदी तक लुढक गए। मौजूदा भावों में अभी दो फीसदी और गिरावट की आशंका व्यक्त की जा रही है।जयपुर मंडी के थोक व्यापारी अनिल चतर ने बताया कि अक्षय तृतीया के अबूझ विवाह मुहूर्त के कारण किसानों के ब्याह-शादी में व्यस्त होने से राजस्थान की मंडियों में आज सरसों की आवक चालीस फीसदी घटकर करीब डेढ लाख बोरी रह जाने का अनुमान है जो पिछले शनिवार को ढाई लाख बोरी थी। इसके बावजूद वायदा में नरमी और खली व तेल की कमजोर मांग से सरसों सीड में दो से तीन फीसदी की गिरावट दर्ज की गई तथा मौजूदा भाव में अभी दो फीसदी तक और गिरावट की आशंका है। वायदा में नरमी के कारण पिछले सोमवार को भी सरसों के भाव करीब चार फीसदी तक टूट गए थे। उन्होंने बताया कि वायदा में नरमी के कारण मंडियों में उठाव कमजोर रहने से आज जयपुर मंडी में सरसों 42 प्रतिशत कंडीशन के भाव शनिवार के मुकाबले आज 60 रुपए टूटकर 2480 से 2485 रुपये, भरतपुर में 2340 से 2365 रुपये और अलवर में 2325 से 2350 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। एनसीडीईएक्स में 25 अप्रैल को मई वायदा सरसों 2604 रुपए क्विंटल दर्ज की गई थी जो 27 अप्रैल को करीब तीन फीसदी घटकर 2530 रुपए क्विंटल रह गई। पिछले एक सप्ताह के दौरान सरसों तेल में भी पांच फीसदी की गिरावट देखने को मिली है जबकि सरसों खली के भाव उतरकर 1200 रुपये क्विंटल रह गए हैं। उन्होंने बताया कि पिछले पंद्रह दिन से सरसों की आवक में लगातार कमी देखने को मिल रही है। यह देखते हुए अब आवक बढ़ने के आसार कम है और आवक घटने से अगले महीने सरसों में फिर तेजी देखने को मिल सकती है। भरतपुर के थोक व्यापारी पूरणमल अग्रवाल का कहना है कि सरसों में मौजूदा गिरावट का कारण तो वायदा सौदों में नरमी आना ही है लेकिन सरसों तेल का उठाव काफी कमजोर होने से भी भावों पर दबाव बना है। पिछले सप्ताह तक सरसों खली की मांग निकल रही थी लेकिन भाव ऊंचे होने के कारण खली की मांग में कमी आई है। कमोडिटी विशेषज्ञ चंद्र प्रकाश गोयल का कहना है कि वायदा में नरमी से भले ही इन दिनों सरसों के भावों पर दबाव बना है लेकिन सरसों में मंदी की धारण नहीं है तथा सरसों में फिर से तेजी बन सकती है। उन्होंने बताया कि सरसांे में तेजी-मंदी में सटोरियों का भी काफी हाथ होने तथा वायदा में सौदों में कटान से ही हाजिर मंडियों में सरसों के भावों पर दबाव बना है। (Business Bhaskar)
मंदी से मांग कम होने पर भी कॉटन यार्न महंगा
आर्थिक संकट के कारण कॉटन यार्न की मांग में कमी आई है। लेकिन मांग की कमी के चलते कॉटन यार्न के भाव कम नहीं हैं बल्कि कॉटन के दाम अधिक होने के कारण मूल्य पिछले साल के मुकाबले करीब 12 फीसदी तक ऊपर हैं। कारोबारी मांग में कमी और दाम अधिक होने से कॉटन यार्न की खरीदारी जरूरत के हिसाब से ही कर रहे हैं। अग्रवाल थ्रेड कंपनी के विपिन बंसल ने बिजनेस भास्कर को बताया कि आर्थिक संकट के चलते कॉटन यार्न की मांग में पिछले साल के मुकाबले 20 फीसदी तक की कमी आई है। वहीं दूसरी ओर यार्न बनाने में उपयोग होने वाले को कच्चे माल के महंगा होने के कारण इसकी कीमतों में भी बढ़ोतरी दर्ज की गई है। पिछले एक साल के दौरान बाजार में 4x6 कॉटन यार्न के भाव 330 रुपये से बढ़कर 380 रुपये प्रति बंडल (4.5 किलो), 6x6 यार्न के दाम 340 रुपये से बढ़कर 390 रुपये प्रति बंडल हो चुके है। कारोबारियों के मुताबिक कॉटन यार्न की मांग में गिरावट की दूसरी वजह इसके दाम अधिक होने को भी माना जा रहा है। रुई मंडी ट्रेडर्स एसोसिएशन के चेयरमैन और मैसर्स गर्ग ब्रदर्स के मालिक के. के. गर्ग ने बताया कि इन दिनों कारोबारी यार्न की खरीदारी जरूरत के हिसाब से ही कर रहे है। उनका कहना है कि आर्थिक संकट के चलते कारोबारियों के पास धन की तंगी भी चल रही है। ऐसे में कारोबारी यार्न का स्टॉक करके जोखिम उठाना नहीं चाह रहे है। सरकार ने कॉटन का न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी वित्त वर्ष 2007-08 के मुकाबले इस साल करीब 40 फीसदी बढ़ा दिया था। वहीं चालू कॉटन सीजन में इसकी पैदावार में गिरावट आने का अनुमान है। भारतीय कपास निगम (सीसीआई) के मुताबिक कॉटन की पैदावार घटकर 290 लाख गांठ (एक गांठ 170 किलो) रहने का अनुमान है जबकि वित्त वर्ष 2007-08 में 315 लाख गांठ कॉटन की पैदावार हुई थी।कारोबारियों का कहना है कि कॉटन का एमएसपी बढ़ने और पैदावार में कमी के चलते इसकी कीमतें पिछले साल के मुकाबले अधिक हैं। यही कारण है कि कॉटन यार्न के मूल्यों में बढ़ोतरी हुई है। भारत से कॉटन यार्न का निर्यात भी किया जाता है। मिस्र भारतीय कॉटन यार्न का सबसे बड़ा आयातक है। (Business Bhaskar)
दाल मिलों की मांग घटने से अरहर नरम
ऊंचे भावों में दाल मिलों के साथ-साथ स्टॉकिस्टों की मांग घटने से अरहर के भावों में पांच फीसदी की नरमी दर्ज की गई। जलगांव दाल मिलर एसोसिएशन के अध्यक्ष प्रेम कोगता ने बताया कि अरहर के ऊंचे भाव होने के कारण दाल मिलों के साथ-साथ स्टॉकिस्टों की खरीद कमजोर पड़ गई है। जिससे घरेलू मंडियों में इसके भावों में 150 से 200 रुपये की गिरावट आकर भाव 3750-3800 रुपये और आयातित अरहर के भाव मुंबई में घटकर 3600 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। अरहर दाल के भाव खुदरा बाजार में इस समय 69-70 रुपये प्रति किलो चल रहे हैं। अरहर की घरेलू पैदावार में कमी और म्यांमार के निर्यातकों द्वारा भाव बढ़ा देने से चालू माह में इसकी कीमतों में करीब 250 से 300 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी आ गई थी। केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में जारी दूसरे अग्रिम उत्पादन अनुमान के मुताबिक चालू फसल सीजन में देश में अरहर की पैदावार घटकर 24 लाख टन ही होने की संभावना है। जबकि पैदावार का लक्ष्य 29 लाख टन का था। पिछले वर्ष देश में इसकी पैदावार 30 लाख टन की हुई थी। दलहन आयातक संतोष उपाध्याय ने बताया कि उत्पादक मंडियों आवक घटने और म्यांमार के निर्यातकों द्वारा भाव बढ़ा देने से चालू माह में भाव काफी तेज हो गये थे। इस समय म्यांमार के निर्यातकों द्वारा 720-730 डॉलर प्रति टन के भाव बोले जा रहे है लेकिन ऊंचे भावों में मांग कमजोर होने से आयातकों द्वारा इन भावों में नए सौदे नहीं किये जा रहे हैं।मार्च महीने के मध्य में म्यांमार से 610-620 डॉलर प्रति टन में सौदे हुए थे। सूत्रों के अनुसार वित्त वर्ष 2008-09 के दौरान सरकारी एजेंसियों ने लगभग 84,140 टन अरहर के आयात सौदे किए हैं।दाल मिलर्स सुनील बंदेवार ने बताया कि प्रमुख उत्पादक राज्यों महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्रप्रदेश की उत्पादक मंडियों में अरहर की दैनिक आवक घटकर मात्र आठ से दस हजार बोरी की रह गई है। जलगांव मंडी में भाव घटकर 3750 से 3800 रुपये, अकोला में 3825 रुपये और गुलबर्गा में 3700 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। उन्होंने बताया कि नई फसल की आवक में अभी करीब आठ माह का समय शेष है। (Business Bhaskar....R S Rana)
सोने की खरीद पर सुस्ती का ग्रहण
नई दिल्ली, पानीपत, चंडीगढ़, लुधियाना, भोपाल। सोने के दाम ऊंचे होने और आर्थिक मंदी गति के कारण अक्षय तृतीया पर सोने की खरीद इस साल हल्की रही। सोने के भाव पिछले साल के मुकाबले करीब 29 फीसदी तेज चल रहे हैं। ऐसे में अक्षय तृतीया पर सोने की खरीद को बढ़ावा देने के लिए ज्वैलर्स द्वारा ग्राहकों को लुभाने के लिए कई तरह के ऑफर भी ज्यादा कारगर साबित नहीं हुए। वल्र्ड गोल्ड काउंसिल ने अक्षय तृतीया के मौके पर 55 टन सोने की बिक्री का लक्ष्य रखा था।आल इंडिया सराफा एसोसिएशन के अध्यक्ष शील चंद जैन ने बिजनेस भास्कर को बताया कि सोने के दाम पिछले साल के मुकाबले लगभग 29 फीसदी ऊपर चल रहे हैं। वैसे भी आर्थिक मंदी के कारण लोगों के पास पैसे की किल्लत हैं। ऐसे में गहनों की खरीद पर असर पड़ना लाजिमी है। पिछले साल के मुकाबले इस साल अक्षय तृतीया पर सोने के गहनों की मांग 40-50 फीसदी कम रहने का अनुमान है। दिल्ली सराफा बाजार में सोमवार को अक्षय तृतीया के मौके पर सोने की कीमतों में 140 रुपये की तेजी आकर भाव 15,030 रुपये प्रति दस ग्राम हो गए। पिछले साल की समान अवधि में इसके भाव 11,850 रुपये प्रति दस ग्राम थे। दिल्ली स्थित पी पी ज्वैलर्स के डायरेक्टर मोहित गुप्ता ने बताया कि आम दिनों के मुकाबले तो सोमवार को मांग अच्छी देखी गई। भाव ऊंचे होने और आर्थिक मंद गति का असर अक्षय तृतीया पर गहनों की खरीद पर साफ देखा गया है। सोमवार को मुंबई में सोने के दाम 14,800 रुपये प्रति दस ग्राम रहे। त्रिभुवन दास भीमजी जावेरी के मार्केटिंग हेड किरन दीक्षित के अनुसार शाम छह बजे तक मुंबई के सभी आउटलेट पर अच्छी खासी भीड़ देखने को मिली और खरीदारी भी अच्छी हुई। वल्र्ड गोल्ड काउंसिल के निदेशक धर्मेश सोडा के मुताबिक अक्षय तृतीया के अवसर पर ग्राहकों का अच्छा प्रतिसाद मिला। चंडीगढ़ में अक्षय तृतीया को एक राष्ट्रीय पर्व के तौर पर पेशकर ज्वैलर्स ने ऐसा भुनाया कि आम दिनों की तुलना में सोने की बिक्री में 30 से 40 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई। गोल्डमाइन ज्वैलर्स के निदेशक प्रेम सपरा का कहना है कि शुभ मानते हुए अक्षय तृतीया के दिन बिक्री में इजाफा हुआ है। आम दिनों क ी तुलना में पानीपत के सराफा बाजार में म्-ख्क् फीसदी तथा करनाल में ख्म्-फ्क् फीसदी अधिक ही सोने की खरीदारी हुई। पानीपत सर्राफा बाजार एसोसिएशन के सदस्य दिनेश जैन ने बताया कि मंदी से जूझ रहे लोगों में सोने की खरीदारी के प्रति रुचि कम देखी गई।लुधियाना के नीटा ज्वैलर्स के मालिक हरबंस नीटा के मुताबिक ज्वैलरी की मांग में अक्षय तृतीय त्यौहार का कुछ असर देखने को मिला है। वहीं पटियाला से सतिंदर ज्वैलर्स के मालिक सतिंदर गुप्ता के मुताबिक अक्ष्य तृतीय के त्यौहार का 5 से 10 फीसदी ही फर्क पड़ा है। भोपाल में खरीदारी के प्रति कोई विशेष रुझान नहीं देखा गया। ग्राहकों ने शुभ दिन के कारण सिर्फ टोकन खरीदारी की। ग्राहकों में खरीदारी के प्रति उदासीनता बीते एक सप्ताह में सोने के दामों में करीब 700 रुपये प्रति दस ग्राम बढ़ना रहा। अग्रवाल ज्वैलर्स के मनोज अग्रवाल ने बताया कि अक्षय तृतीया के मौके पर बाजारों में विशेष उत्साह देखने को नहीं मिला। (Business Bhaskar...R S Rana & Others)
भारी आयात से भी नहीं लग सकी खाद्य तेल की कीमतों में तेजी पर लगाम
कोलकाता: पिछले सात हफ्ते में देश में 13 लाख टन खाद्य तेल आयात होने के बावजूद घरेलू बाजार में तेल की कीमतों में गिरावट नहीं आ रही है। आयात के जरिए आपूर्ति में इजाफा होने से भी घरेलू बाजार में खाद्य तेल की कीमतें पिछले महीने की तुलना में 10 से 15 फीसदी ऊपर चल रही हैं। ट्रेडरों और रिफाइनरों के बीच कुकिंग ऑयल के आयात का आकर्षण बना हुआ है और इस वजह से अनुमान लगाया जा रहा है कि अप्रैल में देश में करीब सात लाख टन खाद्य तेल का आयात होगा। गौरतलब है कि मौजूदा तेल वर्ष (नवंबर 2008 से अक्टूबर 2009) के पहले पांच महीने में करीब 34.34 लाख टन तेल का आयात हो चुका है। यह पिछले तेल वर्ष की इसी अवधि के मुकाबले 78 फीसदी ज्यादा है। आश्यर्चजनक यह है कि इस साल के रबी सीजन में ऑयलसीड का उत्पादन पिछले साल के मुकाबले 15 लाख टन ज्यादा रहकर 96 लाख टन पर पहुंचने के कृषि मंत्रालय की रिपोर्ट के आने के बावजूद कुकिंग ऑयल का आयात इतने ऊंचे स्तर पर चला गया है। पिछले पांच महीने में तेल के आयात के ट्रेंड को देखते हुए खाद्य तेल उद्योग को उम्मीद है कि मौजूदा तेल वर्ष में इसका आयात पिछले साल के 56 लाख टन से बढ़कर 75 लाख टन पर पहुंच जाएगा। सॉल्वेंट एक्सटैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) के प्रेसिडेंट अशोक सेठिया के मुताबिक, यह काफी आश्चर्यजनक है कि तेल आयात महीने आधार पर बढ़ रहा है जबकि पहले से भारतीय पोर्ट और पाइपलाइनों में भारी मात्रा में तेल मौजूद है। यहां तक कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों में आए उछाल के बावजूद आयात बढ़ रहा है। आयात में इजाफा होने की एक वजह खरीफ सीजन में पैदा हुए ऑयलसीड के स्टॉक के बारे में चल रही कयासबाजी है। इस बारे में सेठिया कहते हैं कि ऐसा लग रहा है कि खरीफ सीजन में ऑयलसीड के कम उत्पादन की वजह से घरेलू बाजार में तेल की उपलब्धता में कमी आई है। इसके अलावा, चावल की पेराई पर भी चावल के निर्यात पर लगी रोक की वजह से असर पड़ा है। इस वजह से राइस ब्रान की उपलब्धता कम हुई है और इसी वजह से राइस ब्रान ऑयल में भी कमी आई है। मौजूदा वक्त में, सोयाबीन और रेपसीड मस्टर्ड की कीमतें 2,500 रुपए प्रति क्विंटल के स्तर पर चल रही हैं इसके बावजूद किसान अपनी फसल बेचने के लिए तैयार नहीं हैं। किसानों को लग रहा है कि आने वाले वक्त में उन्हें इसकी ज्यादा कीमत मिल सकेगी। तेल इंडस्ट्री इस वक्त किसानों को ज्यादा कीमत देने में असमर्थ है क्योंकि उन्हें बाहर से तेल आयात ज्यादा सस्ता पड़ रहा है और इस वजह से ही तेल आयात में इजाफा हो रहा है। (ET Hindi)
चीनी पर लगा स्पेशल मार्जिन
नई दिल्ली: देश के दो प्रमुख कमोडिटी एक्सचेंजों एमसीएक्स और एनसीडीईएक्स ने चीनी के वायदा कारोबार पर स्पेशल मार्जिन लगाया गया है। इन एक्सचेंजों ने वायदा बाजार में चीनी की कीमतों में जारी अस्थिरता के चलते यह फैसला लिया है। सूत्रों का कहना है कि कमोडिटी बाजार नियामक फारवर्ड मार्केट कमीशन (एफएमसी) के निदेर्शों के बाद स्पेशल मार्जिन लगाने का फैसला लिया गया है। सचिवों की एक कमेटी ने एफएमसी से हाल में कहा था कि वह वायदा बाजार में चीनी की कीमतों में जारी उतार-चढ़ाव पर नजर रखे और अस्थिरता को देखते हुए एहतियाती कदम उठाए। एनसीडीईएक्स के हालिया दिशा-निर्देश के मुताबिक एक्सचेंज ने अगस्त 2009 को खत्म हो रहे कॉन्ट्रैक्ट के अलावा चीनी के सभी कॉन्ट्रैक्ट के तहत खरीदारी के सौदों पर 5 फीसदी का स्पेशल मार्जिन लगाया है। इसके अलावा एमसीएक्स ने एम और एस ग्रेड की चीनी पर 10 फीसदी का स्पेशल मार्जिन तय कर दिया है। इन दोनों ही एक्सचेंजों में सोमवार से स्पेशल मार्जिन प्रभावी होगा। (ET Hindi)
बीटी कॉटन का हाइब्रिसाइड लॉन्च करेंगे माहिको मोनसैंटो
कोलकाता: माहिको मॉनसैंटो बायोटेक (इंडिया) लिमिटेड ने राउंडअप रेडी फ्लेक्स (आरआरपी) ब्रांड नाम से बीटी कॉटन का हाइब्रिसाइड लॉन्च करने का प्रोग्राम तैयार किया है। इसे हाल ही में कंपनी ने विकसित किया है। माहिको मोनसैंटो बायोटेक अमेरिकी एग्री बायोटेक कंपनी मोनसैंटो और महाराष्ट्र हाइब्रिड सीड्स कंपनी लिमिटेड (माहिको) का 50:50 फीसदी का संयुक्त उद्यम है। आरआरपी मोनसैंटो के एग्रीकल्चर हाइब्रिसाइड्स के फ्लैगशिप ब्रांड राउंडअप का ही हिस्सा है। आरआरपी कॉटन की बोल्गार्ड किस्म में घास फूस को रोकने में काफी मददगार है। बीटी कॉटन के लिए खास तौर पर तैयार किए गए हाइब्रिसाइड को कमर्शल तौर पर घरेलू बाजार में लॉन्च करने से पहले अनिवार्य कदम के तौर पर कंपनी ने देश के कई हिस्सों में इसका फील्ड ट्रायल किया है। इसका कमर्शल लॉन्च करने में कुछ वक्त लग सकता है, क्योंकि भारत में इस बारे में काफी सख्त नियामक कानून हैं। मॉनसैंटो के एक अधिकारी ने बताया कि सबसे पहला आरआरएफ साल 2012-13 में ही लॉन्च हो पाएगा। (ET Hindi)
अक्षय तृतीया ने लौटाई सोने की चमक
मुंबई: देश भर के ज्वैलरी बाजारों से चमक अब तक गायब थी, लेकिन अक्षय तृतीया के पावन अवसर पर ग्राहकों की भीड़ इस बाजार में लौटी। ऊंची कीमतों के बावजूद ग्राहकों ने सिक्कों और आभूषणों की खरीदारी की। इस मौके पर खास तौर से हल्के वजन वाले गहने खूब बिके। त्रिभुवनदास भीमजी झावेरी एंड संस के माकेर्टिंग हेड किरण दीक्षित ने बताया, 'साधारण खरीदारों की ओर से बढि़या प्रतिक्रिया देखने को मिली जिन्होंने 5 से 15 ग्राम के वजन वाले सिक्के और हल्के भार वाले आभूषण खरीदे।' उन्होंने बताया कि ये साधारण ग्राहक इस साल जनवरी से अप्रैल के बीच काफी कम खरीदारी कर रहे थे। उन्होंने बताया कि देश भर में फैले 11 शोरूम की बात करें तो सबसे बढि़या प्रतिक्रिया देश के दक्षिणी हिस्से से मिली है। मुंबई के स्थानीय झावेरी बाजार में लोग दोपहर 12 बजे से सिक्कों और आभूषणों की खरीदारी के लिए पहुंचने लगे थे। इस मौके पर ज्वैलर ग्राहकों को छूट का भी ऑफर दे रहे थे। दक्षिण भारत में भी काफी उत्साह देखा गया, जहां ज्यादातर ज्वैलरों ने बिक्री में इजाफा दर्ज किया। जेम एंड ज्वैलरी टेड फेडरेशन के चेयरमैन और बंगलुरु स्थित के कृष्णया चेट्टी एंड संस के मैनेजिंग डायरेक्टर विनोद हयाग्रिव ने बताया कि ज्यादातर खरीदारों ने खरीद का फैसला ज्यादा दाम की वजह से टाल दिया था और बीते तीन दिन में उन्होंने काफी खरीदारी की है। उन्होंने कहा, 'हमें इस बार अक्षय तृतीया के मौके पर बीते वर्षों के मुकाबले बिक्री में 20 फीसदी बढ़ोतरी दर्ज करनी चाहिए।' मुंबई में 2 मार्च को स्टैंडर्ड गोल्ड के दाम 15,665 रुपए पर पहुंच गए थे। 11 अप्रैल को कीमत 14,300 रुपए तक पहुंची, लेकिन 27 अप्रैल को दोबारा 14,830 रुपए तक जा चढ़ी। अहमदाबाद में ग्रामीण इलाकों में भी खरीदारी में तेजी दर्ज की गई। अहमदाबाद के ए बी ज्वैलर्स के मनोज सोनी के मुताबिक शादी-ब्याह पर आभूषणों की खरीदारी के लिए लोग इस दिन का इंतजार कर रहे थे। ए बी ज्वैल्स बाजार भाव की तुलना में डिस्काउंट दे रहा था। सोनी ने कहा, 'कीमतें आकर्षक हैं क्योंकि उनमें स्थिरता आ गई है और हम अतिरिक्त डिस्काउंट देने में कामयाब रहे क्योंकि हमने कोई विज्ञापन नहीं किया।' इंदौर में भी हल्के वजन के आभूषणों की बिक्री में चमक लौटी। पंजाबी सर्राफ ज्वैलर्स के सुमित आनंद ने कहा, 'इंदौर में इस त्योहार को लेकर खास उत्साह था जिससे छोटे आभूषणों की बिक्री में रफ्तार पकड़ी।' (ET Hindi)
27 अप्रैल 2009
आसमानी बादलों से बरस रही मायूसी
नई दिल्ली 04 27, 2009
सर्दी का मौसम बीतने पर होने वाली बारिश इस बार देश के ज्यादातर हिस्सों के साथ आंख मिचौली खेल रही है।
इसकी वजह से गर्मी के मौसम में पानी की जबरदस्त किल्लत झेलनी पड़ रही है। देश में कुल 36 मौसम विज्ञान उपखंड हैं, जिनमें 27 में 1 मार्च के बाद से या तो बरसात ही नहीं हुई है या बहुत कम हुई है।
अधिकतर जलाशयों में पानी के भंडार का स्तर बहुत नीचे गिर गया है, जिसकी वजह से बिजली का उत्पादन करने में तो दिक्कत आ ही सकती है, सिंचाई और पीने के लिए भी पानी मिलना मुहाल हो सकता है।
देश के 81 बड़े जलाशयों में से 20 में अब इतना पानी ही नहीं बचा है कि उसका इस्तेमाल हो सके। केंद्रीय जल आयोग के मुताबिक 81 जलाशयों में 23 अप्रैल को 3,062 घन मीटर पानी था, जो उनकी कुल भंडारण क्षमता (15,176 घन मीटर)का महज 20 फीसदी है। पिछले साल 23 अप्रैल को इन जलाशयों में मौजूद पानी से यह मात्रा 10 फीसदी कम है।
भारतीय मौसम विभाग के आंकड़ों को देखें, तो समूचे देश में 1 मार्च से 23 अप्रैल के बीच केवल 35 मिलीमीटर बरसात हुई। आमतौर पर इस अवधि के दौरान औसतन 59 मिलीमीटर बरसात होती है। देश के 36 मौसम विज्ञान उपखंडों में से केवल 9 में ही अच्छी बारिश हो पाई है जबकि 27 मौसम विज्ञान उपखंड पानी के लिए तरस रहे हैं।
मार्च से अप्रैल के दौरान इतनी कम बारिश हुई है हालात 2004 की इस अवधि से भी खराब हो गए हैं, जिस वर्ष सूखा पड़ा था। वैसे मौसम विभाग ने जून से सितंबर के बीच मानसून के सामान्य रहने का अनुमान लगाया है।
जिन सूबों में कम बारिश से हालात खराब हुए हैं उनमें उत्तर प्रदेश का पूर्वी हिस्सा, मध्य प्रदेश, पूर्वी राजस्थान, महाराष्ट्र का मराठवाड़ा क्षेत्र, गुजरात के कुछ हिस्से, उत्तरी कर्नाटक और आंध्र प्रदेश के तटीय इलाके के साथ-साथ तेलंगाना क्षेत्र शामिल है। (BS Hindi)
सर्दी का मौसम बीतने पर होने वाली बारिश इस बार देश के ज्यादातर हिस्सों के साथ आंख मिचौली खेल रही है।
इसकी वजह से गर्मी के मौसम में पानी की जबरदस्त किल्लत झेलनी पड़ रही है। देश में कुल 36 मौसम विज्ञान उपखंड हैं, जिनमें 27 में 1 मार्च के बाद से या तो बरसात ही नहीं हुई है या बहुत कम हुई है।
अधिकतर जलाशयों में पानी के भंडार का स्तर बहुत नीचे गिर गया है, जिसकी वजह से बिजली का उत्पादन करने में तो दिक्कत आ ही सकती है, सिंचाई और पीने के लिए भी पानी मिलना मुहाल हो सकता है।
देश के 81 बड़े जलाशयों में से 20 में अब इतना पानी ही नहीं बचा है कि उसका इस्तेमाल हो सके। केंद्रीय जल आयोग के मुताबिक 81 जलाशयों में 23 अप्रैल को 3,062 घन मीटर पानी था, जो उनकी कुल भंडारण क्षमता (15,176 घन मीटर)का महज 20 फीसदी है। पिछले साल 23 अप्रैल को इन जलाशयों में मौजूद पानी से यह मात्रा 10 फीसदी कम है।
भारतीय मौसम विभाग के आंकड़ों को देखें, तो समूचे देश में 1 मार्च से 23 अप्रैल के बीच केवल 35 मिलीमीटर बरसात हुई। आमतौर पर इस अवधि के दौरान औसतन 59 मिलीमीटर बरसात होती है। देश के 36 मौसम विज्ञान उपखंडों में से केवल 9 में ही अच्छी बारिश हो पाई है जबकि 27 मौसम विज्ञान उपखंड पानी के लिए तरस रहे हैं।
मार्च से अप्रैल के दौरान इतनी कम बारिश हुई है हालात 2004 की इस अवधि से भी खराब हो गए हैं, जिस वर्ष सूखा पड़ा था। वैसे मौसम विभाग ने जून से सितंबर के बीच मानसून के सामान्य रहने का अनुमान लगाया है।
जिन सूबों में कम बारिश से हालात खराब हुए हैं उनमें उत्तर प्रदेश का पूर्वी हिस्सा, मध्य प्रदेश, पूर्वी राजस्थान, महाराष्ट्र का मराठवाड़ा क्षेत्र, गुजरात के कुछ हिस्से, उत्तरी कर्नाटक और आंध्र प्रदेश के तटीय इलाके के साथ-साथ तेलंगाना क्षेत्र शामिल है। (BS Hindi)
इस साल सोना हो सकता है और महंगा
मुंबई 04 27, 2009
वैश्विक मंदी के इस दौर में भी सोना निवेशकों की पहली पसंद बना हुआ है। पिछले 10 सालों में सोने में निवेश करने वालों को औसत 26 फीसदी का रिटर्न मिला है।
हालांकि पिछले एक साल में सोने की ऊंची कीमतों ने खरीदारों की संख्या में थोड़ी कमी जरूर की है। इसके बावजूद वर्ष 2009 की पहली तिमाही के दौरान सोने में निवेश करने वालों को 17 फीसदी का रिटर्न प्राप्त हुआ है और अनुमान व्यक्त किया जा रहा है कि इस साल घरेलू बाजार में सोने की कीमतों में 24 फीसदी तक की बढ़ोतरी हो सकती है।
जबकि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में सोने की कीमतें अब तक के सारे रिकॉर्ड तोड़ते हुए 1100 डॉलर प्रति औंस तक जा सकती हैं। वर्ल्ड गोल्ड कॉउंसिल की ताजा रिपोर्ट के अनुसार पिछले 10 वर्षों (1999-2008) के दौरान सोने से औसत रिटर्न 26 फीसदी प्राप्त हुआ है।
रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2009 की पहली तिमाही (जनवारी-मार्च) के दौरान सोने की औसत कीमत 14,180 रुपये प्रति 10 ग्राम थी जबकि वर्ष 2008 में सोने की औसत कीमत 12,147 रुपये प्रति 10 ग्राम थी। इस साल की पहली तिमाही के दौरान सोने में निवेश करने वालों को सिर्फ 17 फीसदी का रिटर्न प्राप्त हो सका है।
इस अवधि में सोने की कीमतें अब तक के सर्वोच्च शिखर पर 24 फरवरी 2009 को पहुंची थी। इस दिन प्रति 10 ग्राम सोने की कीमत 15,780 रुपये हो गई थी। पिछले 10 वर्षों में सोने ने अपने निवेशकों को सबसे ज्यादा औसत रिटर्न 2007 में 37 फीसदी दिया, जबकि सबसे कम 1999 में 24 फीसदी औसत रिटर्न प्राप्त हो सका था।
वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिहाज से खराब साल के रुप में गुजरे 2008 के दौरान भी जब निवेश के दूसरे विकल्पों में लोगों को नुकसान ही नुकसान हो रहा था तब भी सोने के निवेशकों को औसत 31 फीसदी से ज्यादा का रिटर्न प्राप्त हुआ है।
पिछले एक साल के दौरान सोने की कीमतों में भारी उछाल के चलते सोने में निवेश करने वाले लोगों की संख्या में भी कमी आई है। लेकिन हाल ही में सोने की कीमतों में आई हल्की गिरावट और वैश्विक माहौल को देखते हुए जानकार कहते हैं कि सोना अभी भी निवेश के लिए सबसे बेहतरीन विकल्प है।
वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल के निदेशक धर्मेश सोडा कहते हैं कि सोने की कीमतें 15000 रुपये प्रति 10 ग्राम से गिरकर 14000 रुपये प्रति 10 ग्राम के आसपास चल रही है सोने में निवेश करने का यही सही समय है क्योंकि दुनियाभर में सोने का उत्पादन कम हो रहा है।
पिछले साल की अपेक्षा इस बार भी 4-5 फीसदी सोने का उत्पादन कम हो सकता है, डॉलर के मुकाबले रुपया भी मजबूत हो रहा है और निवेश के दूसरे विकल्पों में अभी भी अनिश्चितता का माहौल बना हुआ है। इसके अलावा अमेरिकी निवेशक तेजी से सोने में निवेश कर रहे हैं। जिसको देखकर कहा जा सकता है कि सोने की कीमतों में बढ़ोतरी होना ही होना है।
दूसरी तरफ जीएफएमएस ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इस साल सोना 1000 डॉलर प्रति औंस की सीमा तक आसानी से पहुंच जाएगा लेकिन मौजूदा माहौल को देखते हुए लगता है कि सोना इस साल 1100 डॉलर प्रति औंस को भी पार कर सकता है। यानी भारतीय बाजारों में इस साल सोने की कीमतें 17000 रुपये प्रति 10 ग्राम की नई ऊंचाई को तय कर सकती है।
इस रिपोर्ट में साफतौर पर कहा गया है कि वर्ष 2009 में सोने की कीमतों में 24 फीसदी तक की बढ़ोतरी हो सकती है जबकि रुपये और डॉलर अपने मौजूदा कीमत पर बने रह सकते हैं। कमोडिटी रिसर्च के शैलेन्द्र कुमार कहते है कि सोना हमेशा से निवेश का भरोसेमंद विकल्प रहा है और आज भी है। निवेशकों को चाहिए कि सोना यदि निवेश के लिए लें, तो मूलधातू के रुप में। (BS Hindi)
वैश्विक मंदी के इस दौर में भी सोना निवेशकों की पहली पसंद बना हुआ है। पिछले 10 सालों में सोने में निवेश करने वालों को औसत 26 फीसदी का रिटर्न मिला है।
हालांकि पिछले एक साल में सोने की ऊंची कीमतों ने खरीदारों की संख्या में थोड़ी कमी जरूर की है। इसके बावजूद वर्ष 2009 की पहली तिमाही के दौरान सोने में निवेश करने वालों को 17 फीसदी का रिटर्न प्राप्त हुआ है और अनुमान व्यक्त किया जा रहा है कि इस साल घरेलू बाजार में सोने की कीमतों में 24 फीसदी तक की बढ़ोतरी हो सकती है।
जबकि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में सोने की कीमतें अब तक के सारे रिकॉर्ड तोड़ते हुए 1100 डॉलर प्रति औंस तक जा सकती हैं। वर्ल्ड गोल्ड कॉउंसिल की ताजा रिपोर्ट के अनुसार पिछले 10 वर्षों (1999-2008) के दौरान सोने से औसत रिटर्न 26 फीसदी प्राप्त हुआ है।
रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2009 की पहली तिमाही (जनवारी-मार्च) के दौरान सोने की औसत कीमत 14,180 रुपये प्रति 10 ग्राम थी जबकि वर्ष 2008 में सोने की औसत कीमत 12,147 रुपये प्रति 10 ग्राम थी। इस साल की पहली तिमाही के दौरान सोने में निवेश करने वालों को सिर्फ 17 फीसदी का रिटर्न प्राप्त हो सका है।
इस अवधि में सोने की कीमतें अब तक के सर्वोच्च शिखर पर 24 फरवरी 2009 को पहुंची थी। इस दिन प्रति 10 ग्राम सोने की कीमत 15,780 रुपये हो गई थी। पिछले 10 वर्षों में सोने ने अपने निवेशकों को सबसे ज्यादा औसत रिटर्न 2007 में 37 फीसदी दिया, जबकि सबसे कम 1999 में 24 फीसदी औसत रिटर्न प्राप्त हो सका था।
वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिहाज से खराब साल के रुप में गुजरे 2008 के दौरान भी जब निवेश के दूसरे विकल्पों में लोगों को नुकसान ही नुकसान हो रहा था तब भी सोने के निवेशकों को औसत 31 फीसदी से ज्यादा का रिटर्न प्राप्त हुआ है।
पिछले एक साल के दौरान सोने की कीमतों में भारी उछाल के चलते सोने में निवेश करने वाले लोगों की संख्या में भी कमी आई है। लेकिन हाल ही में सोने की कीमतों में आई हल्की गिरावट और वैश्विक माहौल को देखते हुए जानकार कहते हैं कि सोना अभी भी निवेश के लिए सबसे बेहतरीन विकल्प है।
वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल के निदेशक धर्मेश सोडा कहते हैं कि सोने की कीमतें 15000 रुपये प्रति 10 ग्राम से गिरकर 14000 रुपये प्रति 10 ग्राम के आसपास चल रही है सोने में निवेश करने का यही सही समय है क्योंकि दुनियाभर में सोने का उत्पादन कम हो रहा है।
पिछले साल की अपेक्षा इस बार भी 4-5 फीसदी सोने का उत्पादन कम हो सकता है, डॉलर के मुकाबले रुपया भी मजबूत हो रहा है और निवेश के दूसरे विकल्पों में अभी भी अनिश्चितता का माहौल बना हुआ है। इसके अलावा अमेरिकी निवेशक तेजी से सोने में निवेश कर रहे हैं। जिसको देखकर कहा जा सकता है कि सोने की कीमतों में बढ़ोतरी होना ही होना है।
दूसरी तरफ जीएफएमएस ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इस साल सोना 1000 डॉलर प्रति औंस की सीमा तक आसानी से पहुंच जाएगा लेकिन मौजूदा माहौल को देखते हुए लगता है कि सोना इस साल 1100 डॉलर प्रति औंस को भी पार कर सकता है। यानी भारतीय बाजारों में इस साल सोने की कीमतें 17000 रुपये प्रति 10 ग्राम की नई ऊंचाई को तय कर सकती है।
इस रिपोर्ट में साफतौर पर कहा गया है कि वर्ष 2009 में सोने की कीमतों में 24 फीसदी तक की बढ़ोतरी हो सकती है जबकि रुपये और डॉलर अपने मौजूदा कीमत पर बने रह सकते हैं। कमोडिटी रिसर्च के शैलेन्द्र कुमार कहते है कि सोना हमेशा से निवेश का भरोसेमंद विकल्प रहा है और आज भी है। निवेशकों को चाहिए कि सोना यदि निवेश के लिए लें, तो मूलधातू के रुप में। (BS Hindi)
मसाला कारोबार में कमजोर रुख
मुंबई 04 27, 2009
मसालों के कारोबार में इस समय मंदी चल रही है। कारोबार पर चुनाव का असर तो है ही, पिछले दो सप्ताह के दौरान मांग में कमी आने से कारोबारी गतिविधियां मंद पड़ गई हैं।
इससे अनुमान लगाया जा रहा है कि इस हफ्ते के दौरान भी मसालों का कारोबार एक सीमा के भीतर और कमजोर रहेगा। जिंस विश्लेषकों और कारोबारियों का कहना है कि वर्तमान माहौल में मसालों के कारोबार में कमजोरी बनी रहेगी।
पिछले सप्ताह के दौरान कुल मिलाकर ज्यादातर मसालों के कारोबार में कमजोरी का ही रुख रहा,हल्दी, मिर्च, कालीमिर्च का कारोबार कम कीमतों पर बंद हुआ। एग्रीवाच कमोडिटीज की विश्लेषक सुधा आचार्य का मानना है कि बीते सप्ताहों में कारोबार बहुत कम मात्रा में हुआ, मांग भी बहुत कम रही, क्योंकि इस समय देश भर में चुनावी माहौल है। अगले सप्ताह में भी उम्मीद की जा रही है कि स्थिति कुछ ऐसी ही रहेगी।
नैशनल कमोडिटी ऐंड डेरिवेटिव्स एक्सचेंज (एनसीडीईएक्स) में हाल के महीने का हल्दी का वायदा कारोबार शनिवार को 5,320 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। हाल के उच्च स्तर 5,639 रुपये प्रति क्विंटल की तुलना में हल्दी 5.66 प्रतिशत पर गिरकर बंद हुई। यही हाल कुछ अन्य मसालों का रहा।
उदाहरण के लिए जीरे का हाल के महीने का वायदा कारोबार 4.59 प्रतिशत गिरकर 12,382 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ, जबकि हाल ही में इसकी कीमतें 12,978 रुपये प्रति क्विंटल पर थीं। कालीमिर्च की कीमतों में 5.35 प्रतिशत की गिरावट आई और यह 12,871 रुपये प्रति क्विंटल रही, वहीं मिर्च का वायदा कारोबार 12.8 प्रतिशत गिरकर 4,850 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ।
ऊंझा के एक कारोबारी दिलीप पटेल ने कहा कि आवक घटने के साथ साथ मांग भी कम हो गई है। गुजरात में अगले हफ्ते में चुनाव है, ऐसे में हम उम्मीद करते हैं कि कारोबार पिछले हफ्ते जैसा ही रहेगा। ग्राइंडिंग इकाइयों में मांग लगभग खत्म होने से जीरे की मांग में कमी आई है।
उसके साथ ही समुद्रपार के बाजारों में भी सक्रियता नहीं है। अगले सप्ताह जीरे का समर्थन स्तर 12,125 रुपये प्रति क्विंटल रहने की उम्मीद है, जबकि 12,656 रुपये प्रति क्विंटल पर प्रतिरोध बना रहेगा।
कालीमिर्च की बात करें तो अगर बाजार से जुड़े सूत्रों की मानें तो देश में करीब 1500 टन कालीमिर्च का आयात वियतनाम, इंडोनेशिया और ब्राजील से हुआ है। आयातित कालीमिर्च स्टॉक बनाने के काम ही आ रही है।
आचार्य ने कहा कि तकनीकी आधार पर देखें तो अगले सप्ताह के दौरान इसकी कीमतों में गिरावट आएगी। कालीमिर्च के घरेलू उत्पादन में खासी कमी आई है और चालू साल में इसका उत्पादन 90,000 टन से गिरकर 48,000 टन रह गया है।
मिर्च का कारोबार भी मंदा रहा। मुंबई के एक मिर्च कारोबारी अशोक दातानी ने कहा कि मिर्च के बाजार में ज्यादा गतिविधियों के आसार नहीं हैं। सत्र का समापन फीका रहा, चुनाव भी कारोबार पर असर डाल रहा है।
ताजा हालात
चुनावों का असर मांग परआवक में आई कमीविश्व बाजारों को भी लगा 5.2 अरब डॉलर का चूनाहल्दी की मांग विदेश मेंकालीमिर्च के आयात से कीमतें गिरीं (BS Hindi)
मसालों के कारोबार में इस समय मंदी चल रही है। कारोबार पर चुनाव का असर तो है ही, पिछले दो सप्ताह के दौरान मांग में कमी आने से कारोबारी गतिविधियां मंद पड़ गई हैं।
इससे अनुमान लगाया जा रहा है कि इस हफ्ते के दौरान भी मसालों का कारोबार एक सीमा के भीतर और कमजोर रहेगा। जिंस विश्लेषकों और कारोबारियों का कहना है कि वर्तमान माहौल में मसालों के कारोबार में कमजोरी बनी रहेगी।
पिछले सप्ताह के दौरान कुल मिलाकर ज्यादातर मसालों के कारोबार में कमजोरी का ही रुख रहा,हल्दी, मिर्च, कालीमिर्च का कारोबार कम कीमतों पर बंद हुआ। एग्रीवाच कमोडिटीज की विश्लेषक सुधा आचार्य का मानना है कि बीते सप्ताहों में कारोबार बहुत कम मात्रा में हुआ, मांग भी बहुत कम रही, क्योंकि इस समय देश भर में चुनावी माहौल है। अगले सप्ताह में भी उम्मीद की जा रही है कि स्थिति कुछ ऐसी ही रहेगी।
नैशनल कमोडिटी ऐंड डेरिवेटिव्स एक्सचेंज (एनसीडीईएक्स) में हाल के महीने का हल्दी का वायदा कारोबार शनिवार को 5,320 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। हाल के उच्च स्तर 5,639 रुपये प्रति क्विंटल की तुलना में हल्दी 5.66 प्रतिशत पर गिरकर बंद हुई। यही हाल कुछ अन्य मसालों का रहा।
उदाहरण के लिए जीरे का हाल के महीने का वायदा कारोबार 4.59 प्रतिशत गिरकर 12,382 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ, जबकि हाल ही में इसकी कीमतें 12,978 रुपये प्रति क्विंटल पर थीं। कालीमिर्च की कीमतों में 5.35 प्रतिशत की गिरावट आई और यह 12,871 रुपये प्रति क्विंटल रही, वहीं मिर्च का वायदा कारोबार 12.8 प्रतिशत गिरकर 4,850 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ।
ऊंझा के एक कारोबारी दिलीप पटेल ने कहा कि आवक घटने के साथ साथ मांग भी कम हो गई है। गुजरात में अगले हफ्ते में चुनाव है, ऐसे में हम उम्मीद करते हैं कि कारोबार पिछले हफ्ते जैसा ही रहेगा। ग्राइंडिंग इकाइयों में मांग लगभग खत्म होने से जीरे की मांग में कमी आई है।
उसके साथ ही समुद्रपार के बाजारों में भी सक्रियता नहीं है। अगले सप्ताह जीरे का समर्थन स्तर 12,125 रुपये प्रति क्विंटल रहने की उम्मीद है, जबकि 12,656 रुपये प्रति क्विंटल पर प्रतिरोध बना रहेगा।
कालीमिर्च की बात करें तो अगर बाजार से जुड़े सूत्रों की मानें तो देश में करीब 1500 टन कालीमिर्च का आयात वियतनाम, इंडोनेशिया और ब्राजील से हुआ है। आयातित कालीमिर्च स्टॉक बनाने के काम ही आ रही है।
आचार्य ने कहा कि तकनीकी आधार पर देखें तो अगले सप्ताह के दौरान इसकी कीमतों में गिरावट आएगी। कालीमिर्च के घरेलू उत्पादन में खासी कमी आई है और चालू साल में इसका उत्पादन 90,000 टन से गिरकर 48,000 टन रह गया है।
मिर्च का कारोबार भी मंदा रहा। मुंबई के एक मिर्च कारोबारी अशोक दातानी ने कहा कि मिर्च के बाजार में ज्यादा गतिविधियों के आसार नहीं हैं। सत्र का समापन फीका रहा, चुनाव भी कारोबार पर असर डाल रहा है।
ताजा हालात
चुनावों का असर मांग परआवक में आई कमीविश्व बाजारों को भी लगा 5.2 अरब डॉलर का चूनाहल्दी की मांग विदेश मेंकालीमिर्च के आयात से कीमतें गिरीं (BS Hindi)
आलू बीज आपूर्तिकर्ता कंपनी का लाइसेंस निरस्त
जालंधर 04 27, 2009
पंजाब के आलू उत्पादकों के विरोध को देखते हुए सरकार ने आलू बीज आपूर्तिकर्ता बहुराष्ट्रीय कंपनी का लाइसेंस निरस्त कर दिया है।
किसानों का आरोप था कि कंपनी के बीज के प्रयोग से उनकी फसलें खराब हो गईं हैं। किसानों के आरोप के बाद राज्य सरकार ने चंडीगढ़ की कंपनी टेक्निको एग्री साइंसेज लिमिटेड का लाइसेंस निरस्त करने का फैसला किया है।
कॉनफेडरेशन आफ पोटैटो सीड फार्मर्स के सचिव जंग बहादुर सिंह सांघा ने कहा कि हम सरकार के इस फैसले का स्वागत करते हैं, क्योंकि खराब बीज की आपूर्ति के चलते हमारे विरोध को देखते हुए सरकार ने त्वरित कार्रवाई की है।
उन्होंने कहा कि देश भर के कुल आलू बीज की मांग का 85 प्रतिशत इस इलाके से पूरा होता है। फसलों के खराब होने से किसानों को भारी नुकसान हुआ है और बीज उत्पादकों की साख भी गिरी है। (BS Hindi)
पंजाब के आलू उत्पादकों के विरोध को देखते हुए सरकार ने आलू बीज आपूर्तिकर्ता बहुराष्ट्रीय कंपनी का लाइसेंस निरस्त कर दिया है।
किसानों का आरोप था कि कंपनी के बीज के प्रयोग से उनकी फसलें खराब हो गईं हैं। किसानों के आरोप के बाद राज्य सरकार ने चंडीगढ़ की कंपनी टेक्निको एग्री साइंसेज लिमिटेड का लाइसेंस निरस्त करने का फैसला किया है।
कॉनफेडरेशन आफ पोटैटो सीड फार्मर्स के सचिव जंग बहादुर सिंह सांघा ने कहा कि हम सरकार के इस फैसले का स्वागत करते हैं, क्योंकि खराब बीज की आपूर्ति के चलते हमारे विरोध को देखते हुए सरकार ने त्वरित कार्रवाई की है।
उन्होंने कहा कि देश भर के कुल आलू बीज की मांग का 85 प्रतिशत इस इलाके से पूरा होता है। फसलों के खराब होने से किसानों को भारी नुकसान हुआ है और बीज उत्पादकों की साख भी गिरी है। (BS Hindi)
क्रूड ऑयल में तेजी से मोम दस फीसदी महंगा
क्रूड ऑयल के दाम बढ़ने का असर मोम की कीमतों पर दिखने लगा है। पिछले एक महीने के दौरान मोम के मूल्य दस फीसदी तक बढ़ चुके हैं। जबकि क्रूड ऑयल के दाम इस दौरान 35 डॉलर से बढ़कर 52 डॉलर प्रति बैरल हो गए हैं।दिल्ली की खारी बावली स्थित केमिकल बाजार में इंडियन (आईओसी) मोम के दाम एक माह के दौरान 70 रुपये से बढ़कर 80 रुपये, चीन का मोम 72 रुपये से बढ़कर 78 रुपये और ईरानी मोम 52-58 रुपये से बढ़कर 65-68 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बिक रहा है। मोम कारोबारी राजेश कुमार ने बिज़नेस भास्कर को बताया कि क्रूड ऑयल की कीमतों में वृद्धि होने की वजह से मोम की कीमतों में 10 रुपये प्रति किलो की बढ़ोतरी दर्ज की गई। उनका कहना है कि इससे पहले के महीनों में क्रूड के दाम लगातार घटने की वजह से मोम की कीमतों में कमी आ रही थी लेकिन अब क्रूड के महंगा होने से इसके दाम भी बढ़ने लगे हैं।अप्रैल महीनें के पहले दो सप्ताह के दौरान भी मोम की कीमतों में तेजी आई थी। इस दौरान मोम में इंडियन (आईओसी) मोम की कीमतें एक 66 रुपये से बढ़कर 70 रुपये, चीन का मोम 65 रुपये से बढ़कर 72 रुपये और ईरानी मोम 50-55 रुपये से बढ़कर 52-58 रुपये प्रति किलो हा गई थी। पिछले साल क्रूड ऑयल में रिकार्ड तेजी के दौरान दो बार में मोम के भाव में 29 रुपये प्रति किलो की तेजी आई थी। क्रूड ऑयल की कीमत 112 डॉलर प्रति बैरल होने पर मोम 17 रुपये महंगा हुआ था। बाद में जब क्रूड 135 से 147 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर पहुंचा तो मोम 11 रुपये प्रति किलो और तेज हो गया। लेकिन क्रूड की कीमतों में गिरावट के अनुरूप इसके मूल्यों में कमी नहीं करने से पिछली दिवाली पर मोम की मांग में 30 फीसदी तक की कमी आई थी।दरअसल दिवाली पर मोमबत्ती की खपत काफी बढ़ जाती है। कारोबारियों का कहना है कि दिवाली पर कारोबारी जरूरत के अनुरूप ही इसकी खरीदारी कर रहे थे। इस दौरान इंडियन (आईओसी) मोम के भाव 96 रुपये, चीन का मोम 94 रुपये और ईरानी मोम के भाव 84-85 रुपये प्रति किलो थे।मालूम हो कि दिसंबर माह के बाद मोम की कीमतों में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही थी। जिसके बाद मोम की मांग भी सुधरने लगी थी। भारत में मोम का चीन और ईरान से आयात किया जाता है। इनमें सबसे सस्ता ईरान का मोम रहता है। जबकि देशी और चीन से आयातित मोम के मूल्यों में कोई खास अंतर नहीं होता है। (Businsess Bhaskar)
निर्यात मांग से कैस्टर में तेजी का रुख
नए माल की आवक बढ़ने के बावजूद निर्यात मांग निकलने से जोधपुर तथा डीसा मंडी में पिछले दस दिन के दौरान अरंडी सीड (कैस्टर सीड) और अरंडी तेल की कीमतों में पांच से छह फीसदी का सुधार देखा गया है। एनसीडीईएक्स में भी मई वायदा अरंडी सीड के भाव करीब चार फीसदी बढ़ गए हैं। वहीं पिछले वित्त वर्ष में अरंडी तेल निर्यात में 75 फीसदी से ज्यादा की बढ़ोतरी दर्ज की गई है।राजस्थान की जोधपुर मंडी के अरंडी तेल उत्पादक सुरश संकलेचा ने बताया कि मंडी में इन दिनों अरंडी सीड की जोरदार आवक हो रही है। इसके बावजूद निर्यात मांग निकलने से पिछले दस दिन के दौरान जोधपुर मंडी में अरंडी तेल के भाव छह फीसदी से ज्यादा बढ़कर 5200 रुपए क्विंटल पर पहुंच गए। गुजरात की डीसा मंडी में भी अरंडी सीड के भाव पांच फीसदी से ज्यादा बढ़कर 2430 रुपए क्विंटल के ऊपर निकल गए हैं। निर्यात मांग के कारण एनसीडीईएक्स में भी मई वायदा अरंडी सीड के भाव 13 से 24 अप्रैल तक चार फीसदी से ज्यादा बढ़कर 2472 रुपए क्विंटल हो गए। अक्षय तृतीया के बाद आवक में कमी की आशंका के चलते अरंडी सीड और अरंडी तेल की कीमतों और सुधार की संभावना है। मार्च से अरंडी तेल निर्यात में सुधार हुआ है। इससे पहले जनवरी-फरवरी में निर्यात घटने के कारण मार्च के पहले सप्ताह में जोधपुर मंडी में अरंडी तेल के भाव उतरकर 4600 रुपए क्विंटल पर रह गए थे। लेकिन मार्च में अरंडी तेल को विशेष कृषि एवं ग्रामोद्योग योजना के दायर में लाने से निर्यातकों को पांच फीसदी शुल्क वापसी का लाभ मिलने लगा। इससे निर्यातकों और स्टॉकिस्टों के सक्रिय होने के कारण डेढ महीने में अरंडी सीड और तेल की कीमतों काफी सुधार दर्ज किया गया है। वित्त वर्ष 2008-09 की पहली छमाही में जोरदार निर्यात मांग से अक्टूबर में जोधपुर में अरंडी तेल 6800 रुपए क्विंटल तक बिक गया था लेकिन दूसरी छमाहीं में निर्यात में गिरावट से अरंडी तेल के भाव घटकर 4600 रुपए क्विंटल तक उतर गए थे। दूसरी तरफ साल्वेंट एक्सट्रेक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अनुसार वित्त वर्ष 2008-09 की पहली छमाही में अरंडी तेल निर्यात करीब 138 फीसदी बढ़ा था, लेकिन मंदी के चलते दूसरी छमाही में निर्यात में कमी दर्ज की गई थी। इसके बावजूद पिछले 2008-09 के दौरान अरंडी तेल निर्यात 75 फीसदी से ज्यादा बढ़कर 308625 टन हो गया जो पिछले वित्त वर्ष में 176177 टन था। उल्लेखनीय है कि दुनियाभर में भारत अरंडी तेल का सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक है और वर्ष 2008-09 (अक्टूबर से सितंबर) में अरंडी सीड उत्पादन करीब 21 फीसदी बढ़कर 11 लाख टन होने का अनुमान है लेकिन निर्यात मांग तथा स्टॉक प्रवृति के कारण अरंडी तेल में नरमी की धारणा नहीं है। (Business Bhaskar)
चुनावी मौसम में भी अन्नदाता बेसहारा
दोसाल पहले अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं के लिए करीब 400 डॉलर प्रति टन तक की कीमत चुकाने को तैयार केंद्र सरकार उस संकट को भूल गई है। या यूं कहें कि केंद्र में अगली सरकार पर कब्जे की होड़ में राजनीतिक दलों और चुनावी काम के बहाने नौकरशाहों को भी किसानों के बारे में सोचने की फुर्सत ही नहीं है। यही वजह है कि पंजाब और हरियाणा को छोड़ दें तो देश के अधिकांश राज्यों में किसान एमएसपी से कम दाम पर गेहूं बेचने को मजबूर हैं। उससे भी अधिक विडंबना यह है कि लोकसभा चुनाव का दौर होने के बावजूद कोई भी राजनीतिक दल किसानों के इस संकट पर बात ही नहीं कर रहा है। चालू रबी विपणन सीजन (2009-10) की शुरुआत से ही किसानों के सामने सरकार द्वारा तय 1080 रुपये प्रति क्विंटल के एमएसपी पर गेहूं बेचने में दिक्कत शुरू हो गई थी। हालांकि पंजाब और हरियाणा में किसानों को इस तरह की दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ा। लेकिन गुजरात से लेकर राजस्थान, मध्य प्रदेश और देश में गेहूं के सबसे बड़े उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश तक सभी जगह किसान इस संकट का सामना कर रहे हैं। सबसे बुरी हालत उत्तर प्रदेश की है। जहां किसानों की कोई सुनने वाला ही नहीं है। देश में गेहूं उत्पादन में सबसे बड़ी हिस्सेदारी रखने वाले इस राज्य के किसानों क्या कसूर है? इसका जवाब अभी तो कोई देने को तैयार नहीं है। बसपा प्रमुख व मुख्यमंत्री मायावती दिल्ली की गद्दी की जुगाड़ के लिए लोकसभा चुनाव में इतनी मशगूल हैं कि उनको यह भी नहीं दिख रहा है कि लखनऊ से कुछ ही दूरी पर किसानों को समर्थन मूल्य नहीं मिल रहा है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, मेरठ, बागपत, मथुरा और अलीगढ़ जिलों से लेकर शाहजहांपुर, हरदोई, एटा, कानपुर से राज्य के उत्तरांचल के जिलों तक सभी जगह किसान व्यापारियों के रहमो-करम पर हैं। यहां सरकारी खरीद केवल नाममात्र की हो रही है। असल में उत्तर प्रदेश ने केंद्र सरकार के सरकारी खरीद के विकेंद्रीकरण के फामरूले को स्वीकार कर रखा है। यह फामरूला जब स्वीकार किया गया, उस समय राजनाथ सिंह राज्य के मुख्यमंत्री थे। उस समय केंद्र की एनडीए सरकार के इस प्रस्ताव को स्वीकार करने वाला उत्तर प्रदेश पहला बड़ा राज्य था। जबकि पंजाब, हरियाणा और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों ने इसका विरोध किया था। यही वजह है कि अब उत्तर प्रदेश का किसान राज्य की नकारा मशीनरी के भरोसे है। जबकि पड़ोसी राज्य हरियाणा और पंजाब में सरकारी खरीद का जिम्मा भारतीय खाद्य निगम ही उठाता है। इसके चलते ही हरियाणा से सटे उत्तर प्रदेश के किसान इसका फायदा उठाते रहे हैं। लेकिन इस साल संकट में फंसे उत्तर प्रदेश के किसानों को हरियाणा में एमएसपी पर गेहूं बेचने से हरियाणा सरकार ने रोक दिया है। दिलचस्प बात यह है कि मौजूदा लोकसभा चुनाव के लिए जारी चुनाव घोषणा पत्र में कांग्रेस ने किसानों की जिंसों की देश भर में आवाजाही की वकालत की है। लेकिन उसकी ही पार्टी की हरियाणा सरकार किसानों को इस हक से वंचित कर रही है। अगर उत्तर प्रदेश की लापरवाह सरकार की वजह से उनको सही दाम नहीं मिल रहा है तो क्या हरियाणा में जाकर बेहतर दाम पर गेहूं बेचने के विकल्प से किसानों को वंचित करना जायज है। दूसरी ओर स्वयं को किसानों का नेता साबित करने में जुटे भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह को उनके किए का फल भुगत रहे किसानों की अपने गृह राज्य में भी सुध नहीं है। इस सारी स्थिति को नजरअंदाज कर रही केंद्र सरकार भी जिम्मेदारी से नहीं बच सकती है। एमसएपी व्यवस्था लागू करना उसका काम है। अगर कोई राज्य इसमें नाकाम है तो उसे किसान हितों को देखते हुए हस्तक्षेप करना चाहिए। लेकिन पिछले दो साल में हर दिन की सरकारी खरीद का हिसाब लगाने वाली केंद्र सरकार की इस साल इसमें दिलचस्पी नहीं है क्योंकि अब गेहूं की कोई किल्लत नहीं है। घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजार में दाम भी काबू में हैं। दो साल पहले इसी केंद्र सरकार ने उत्तर प्रदेश में एफसीआई को सीधे गेहूं खरीद के लिए भेजा था। साथ ही एमएसपी से अधिक दाम देने की छूट भी दी थी ताकि आढ़तियों को कमीशन देकर अधिक गेहूं खरीदा जा सके।यही नहीं नेफेड को राज्य में गेहूं खरीद का लाइसेंस दिलवाने से लेकर निजी कंपनियों पर अंकुश लगाने के लिए भी राज्य सरकार की मदद ली थी। उस समय बिहार में तो सरकार ने एफसीआई अधिकारियों को मोबाइल देकर उनके नंबर अखबारों में प्रकाशित करा दिए थे। इसमें कहा गया था कि अगर किसी गांव में एक ट्रक लोड भी गेहूं उपलब्ध है तो एफसीआई के अधिकारी वहां जाकर गेहूं की खरीद करेंगे। लेकिन पिछले साल हुई 220 लाख टन की खरीद और 7.78 करोड़ के गेहूं उत्पादन ने सरकार के खाद्यान्न भंडार भर दिए। कुछ ऐसा ही पिछले साल तक चीनी के मामले में भी था। लेकिन किसान के सामने जब संकट पैदा हुआ तो उसने गन्ने की फसल से मुंह मोड़ लिया और अब सरकार पूरी ताकत लगाकर भी चीनी के दाम को काबू नहीं कर पा रही है। जिस तरह से बेहतर उत्पादन का खामियाजा गेहूं किसानों को इस साल झेलना पड़ रहा है। उसके चलते सरकारी भंडार और कीमतें कब तक काबू रहेंगी। यह कह पाना मुश्किल है। (Business Bhaskar)
स्टॉकिस्टों की मांग घटने से लालमिर्च 18 फीसदी सस्ती
स्टॉकिस्टों और निर्यातकों की मांग कमजोर पड़ने से चालू महीने में लालमिर्च की कीमतों में 18 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। गुंटूर में लाल मिर्च का स्टॉक भी 40 लाख बोरी (एक बोरी 45 किलो) से ज्यादा हो चुका है। जबकि तीसरी तुड़ाई की सप्लाई होने लगी है। पहली तुड़ाई के मुकाबले दूसरी और तीसरी तुड़ाई में हल्की क्वालिटी के माल की सप्लाई ज्यादा रहती है। जिसके कारण स्टॉकिस्टों की खरीद घट गई है। बांग्लादेश और श्रीलंका की मांग में भी पहले की तुलना में कमी आई है। इसके मौजूदा भावों में 150 से 200 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट आ सकती है। हालांकि पैदावार में पिछले साल के मुकाबले लगभग 15 से 20 फीसदी की कमी आने की आशंका है। इससे गिरावट ज्यादा दिन टिकने की संभावना नहीं है।लालमिर्च के व्यापारी विनय बूबना ने बिजनेस भास्कर को बताया कि गुंटूर में लाल मिर्च का करीब 40 लाख बोरी का स्टॉक हो चुका है। जबकि मंडी में लालमिर्च की दैनिक आवक करीब 50 से 60 हजार बोरी की हो रही है। उन्होंने बताया कि अब चूंकि तीसरी तुड़ाई की सप्लाई हो रही है। तीसरी तुड़ाई में हल्की क्वालिटी के माल की ज्यादा सप्लाई होने से स्टॉकिस्टों की खरीद कम हो गई है। जिससे भाव में गिरावट को बल मिला है। स्टॉक ज्यादा होने के कारण भी खरीद में कमी आई है। गुंटूर में पिछले साल लालमिर्च का करीब 55 से 60 लाख बोरी का स्टॉक हुआ था। लेकिन चालू सीजन में स्टॉकिस्टों की अभी तक जोरदार खरीद रही है। उम्मीद है कि मई के प्रथम सप्ताह तक कोल्ड स्टोर पूरी तरह से भर जाएंगे।निर्यातकों के साथ ही स्टॉकिस्टों की मांग घटने से चालू माह में लालमिर्च के भावों में करीब 1,000 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट आ चुकी है। इस दौरान तेजा क्वालिटी की लालमिर्च के भाव घटकर 5200 रुपये, ब्याड़गी क्वालिटी के भाव 5800 रुपये, 334 क्वालिटी के भाव घटकर 4500 रुपये तथा सनम क्वालिटी के भाव घटकर 4700 रुपये और फटकी क्वालिटी के भाव 1700 से 2500 रुपये प्रति क्विंटल रह गए हैं। मुंबई स्थित लालमिर्च के निर्यातक अशोक दत्तानी ने बताया कि इस समय बांग्लादेश की मांग काफी कमजोर पड़ गई है। जबकि श्रीलंका की मांग भी पहले की तुलना में घटी है। भारतीय मसाला बोर्ड के सूत्रों के अनुसार वित्त वर्ष 2008-09 के अप्रैल से फरवरी तक देश से लालमिर्च का निर्यात घटकर 166,000 टन रह गया जबकि इसके पिछले साल की समान अवधि में इसका निर्यात 176,255 टन रहा था। चालू वर्ष के फरवरी महीने में निर्यात मात्र 10,000 टन का ही हुआ है जबकि पिछले वर्ष फरवरी में निर्यात 15,325 टन का हुआ था। अत: फरवरी महीने में निर्यात में काफी गिरावट आई है।गुंटूर मंडी के लालमिर्च व्यापारी मांगीलाल मुंदड़ा ने बताया कि चालू वर्ष में अभी तक मौसम फसल के अनुकूल रहा है लेकिन किसानों ने लालमिर्च के बजाय कॉटन की बुवाई को प्राथमिकता दी। जिससे लालमिर्च के बुवाई क्षेत्रफल में 15 से 20 फीसदी की कमी आई है। पिछले वर्ष आंध्र प्रदेश में लालमिर्च का कुल उत्पादन 150 लाख बोरी का हुआ था लेकिन बुवाई रकबा घटने से चालू सीजन में उत्पादन घटकर 130 से 135 लाख बोरी ही होने की संभावना है। (Business Bhaskar...R S Rana)
उत्तर प्रदेश के गेहूं किसानों पर हरियाणा सरकार की बढ़ी सख्ती
उत्तर प्रदेश के किसानों को हरियाणा की मंडियों मंे गेहूं बेचने से रोकने के लिए राज्य सरकार ने मंडियांे मंे वीडियोग्राफी शुरू करा दी है। हरियाणा खाद्य एवं आपूर्ति विभाग की तरफ से शनिवार से शुरू हुई इस सख्ती से किसान व आढ़ती दोनों परशान हैं। गुस्साए किसानों व आढ़तियों ने इसके विरोध में सड़कों पर उतरने की चेतावनी दी है। आढ़तियों ने तो यहां तक कहा है कि अगर सरकार इन कदमों को वापस नहीं लेती है तो वे लोकसभा चुनाव का बहिष्कार करेंगे। भारतीय किसान यूनियन के प्रदेश अध्यक्ष गुरनाम सिंह ने भी कहा है कि वह यूपी के किसानों के साथ हैं और जरूरत पड़ी तो वह उनके साथ सड़कों पर उतरेंगे।हरियाणा में प्रवेश पर रोक के विरोध में एक दिन पहले करनाल-मेरठ राजमार्ग पर यूपी के किसानों ने करीब तीन घंटे का जाम लगाया था। उनका कहना है कि अगर हरियाणा सरकार ने गेहूं ले जाने पर रोक नहीं हटाई तो वे भी हरियाणा से यूपी में किसी भी वस्तु या खाद्यान्न को नहीं आने देंगे। उन्होंने कहा कि हरियाणा का किसान अपना गन्ना पंजाब में ले जाकर बेचता है। अगर पंजाब सरकार उनका गन्ना खरीदने से मना कर दे तो क्या होगा।हरियाणा सरकार की सख्ती से हरियाणा के भी किसान काफी परेशान हैं। करनाल मंडी आने वाले कई किसानों ने कहा कि खरीद अधिकारियों ने उनसे परिचय पत्र दिखाने को कहा, लेकिन उनके पास राज्य का किसान होने का कोई सबूत उस समय नहीं था। तब उन्होंने गांव से अपने पहचान पत्र मंगवाए। उसके बाद गेहूं की ढेरी के पास खड़ा कर उनकी वीडियोग्राफी की गई। करनाल अनाज मंडी आढ़ती एसोसिएशन के अध्यक्ष विनोद गोयल ने बताया कि किसानों के साथ गेहूं खरीदने वाले आढ़ती की भी वीडियोग्राफी की जा रही है। उनसे यह भी कहलवाया जा रहा है कि मैं किसान को जानता हूं और अगर किसान हरियाणा का नहीं हुआ तो उसकी जिम्मेदारी आढ़ती की होगी।गोयल का आरोप है कि करनाल-मेरठ रोड पर यमुना पुल के रास्ते पिछले एक सप्ताह से रोजाना 200 से 300 ट्रालियां लाने वाले किसानों को डरा-धमका कर रोका जा रहा है। त्नबिजनेस भास्करत्न ने दोनों राज्यों की सीमा पर जाकर देखा तो पाया कि यमुना पुल की दूसरी तरफ यूपी सीमा में गेहूं से लदे सैकड़ों टैक्ट्रर-ट्रॉली खड़े थे।गोयल ने बताया कि करीब तीन दशकों से करनाल मंडी के तकरीबन 500 आढ़तियों से यूपी के शामली, केराना, चौसाना, गंगों, ननौता व झींझाना आदि इलाक ों से आने वाले किसानांे का लेन-देन जारी है। किसान इन आढ़तियों से फसलांे व अपनी अन्य जरूरतों के लिए इस शर्त पर कर्ज उठाते हैं कि फसल आने पर कर्ज उतार देंगे। लेकिन अब अगर किसानों को यहां आने ही नहीं दिया जाएगा तो वे आढ़तियों का कर्ज कैसे चुकाएंगे। परेशान आढ़तियों ने करनाल में शुक्रवार को सांकेतिक हड़ताल करते हुए खरीद प्रक्रिया ठप रखी। गोयल ने बताया कि पिछले साल यूपी के किसान यहां की मंडी में तकरीबन ढाई लाख क्विंटल गेहूं लेकर आए थे। करनाल मंडी एसोसिएशन के सदस्य व आढ़ती वीरन्द्र गुप्ता ने कहा कि सरकार के इस रुख का खामियाजा किसानों के साथ-साथ आढ़तियों को भी भुगतना पड़ेगा।सख्ती की बात को स्वीकार करते हुए हरियाणा के खाद्य एवं आपूर्ति विभाग के संयुक्त नियंत्रक एस.के.गर्ग ने कहा कि पहचान पत्र और जमीन की फर्द दिखाने पर यूपी के किसानों को नहीं रोका जा रहा है। वीडियोग्राफी पर उनकी सफाई थी कि खरीद प्रक्रिया मंे पारदर्शिता बरतने के लिए ऐसा किया जा रहा है। उनके अनुसार विभाग को परशानी इस बात से है कि अपने को किसान बताने वाले हरियाणा के आढ़ती ही यूपी से सस्ता गेहूं लाकर मंडियों में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर बेच रहे हैं। विभाग के उप निदेशक खरीद अश्वनी कुमार गौड़ ने भी कहा कि पाबंदी सिर्फ उन लोगों पर है, जो किसान के नाम पर यूपी से सस्ता गेहूं खरीद कर यहां की मंडियों में बेच रहे हैं। (Business Bhaskar)
मलेशिया के नए नियमों ने बढ़ाया मिर्च निर्यातकों का खर्च
नई दिल्ली- मलेशिया सरकार के नए नियमों ने मंदी के समय में देश के लाल मिर्च निर्यातकों के लागत खर्च को बढ़ा दिया है, जिससे उन्हें अपने करोड़ों का माल खराब होने का डर सताने लगा है। नए नियमों के मुताबिक मलेशिया सरकार ने आयातित लाल मिर्च को एक खास टेस्ट से गुजरना जरूरी बना दिया है। लाल मिर्च निर्यातकों के मुताबिक यदि लाल मिर्च में कीटनाशक का स्तर तय मानक से कम नहीं पाया जाता तो माल को नष्ट कर दिया जाएगा। भारतीय निर्यातकों का दावा है कि उन्हें इस नए नियम के बारे में पहले कोई जानकारी नहीं दी गई और एक बार जब उनका माल मलेशिया के 'पीनांग' और अन्य बंदरगाहों पर पहुंच गया, तो वहां के कस्टम विभाग ने सभी बंदरगाहों पर देश के करीबन 100 कंटेनर को ब्लॉक कर माल को नष्ट करने के लिए कहा। 'स्पाइस बोर्ड' के सदस्य और 'नागपुर विदर्भ चैंबर ऑफ कॉमर्स' के अध्यक्ष प्रकाश वाधवानी ने कहा, 'ट्रेड प्रोटोकॉल के मुताबिक कोई भी नया नियम लागू होने या उसमें संशोधन की स्थिति में मलेशिया और भारतीय अधिकारी, निर्यातकों को नियमों की जानकारी देते हैं और साथ ही नियम लागू करने की समय सीमा भी रखी जाती है, लेकिन इस मामले में ऐसा कुछ नहीं किया गया।' करोड़ों का माल बचाने के लिए देश के निर्यातकों ने वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के 'स्पाइस बोर्ड' से मदद की गुहार की जिसके बाद माल को नष्ट करने के बजाए उसे वापिस भेजा जा रहा है। स्पाइस बोर्ड के डायरेक्टर (मार्केटिंग) एस कानन ने ईटी को कहा, 'दूसरे देशों में पहले ऐसे नियम बने हुए हैं, लेकिन मलेशिया में नए नियम अब बने हैं इसलिए भारतीय निर्यातकों को इसकी जानकारी नहीं थी।' स्पाइस बोर्ड से मिले आंकड़ों के मुताबिक वित्त वर्ष 2008 से फरवरी 2009 तक 33,750 टन लगभग 2.16 अरब रुपए की मिर्च का निर्यात किया गया है। यह देश में उत्पादित होने वाली लाल मिर्च का करीबन 15 फीसदी है, जो निर्यात किया जाता है। इस 15 फीसदी निर्यात का 5-6 फीसदी केवल मलेशिया को जाता है। देश के लाल मिर्च निर्यातक मलेशिया सरकार के एक-पक्षीय फैसले से खासे परेशान है क्योंकि यह फैसला उन्हें बताए बिना अचानक लिए गया। प्रकाश वाधवानी ने कहा, 'लाल मिर्च जल्द खराब होने वाले उत्पादों में से एक है। पहले शिपिंग में 10 दिन, फिर बंदरगाह पर 25 दिन और वापिस लौटने में 15 दिन लगने से निर्यातकों के करोड़ों के माल के खराब होने की आशंका बनी हुई है।' वाधवानी ने कहा कि मंदी के समय में करोड़ों का माल खराब होने का डर, दुबारा माल मंगाने, माल का टेस्ट कराकर फिर दुबारा निर्यात करने में निर्यातकों का खर्च बढ़ जाएगा। इसका असर मिर्च निर्यात के वॉल्यूम और घरेलू बाजार में मिर्च के दामों पर भी पड़ेगा, क्योंकि नए ऑर्डर पूरे करने के लिए निर्यातक घरेलू बाजार से ही माल उठाएंगे। (ET Hindi)
अक्षयतृतीया के दिन सोने ने दिखाई तेजी
मुंबई: कमजोर रुपए और अक्षयतृतीया पर सोने की अच्छी खरीदारी की वजह से सोने में आज लगातार पांचवें दिन भी तेजी है। भारत में सोने का इंपोर्ट डॉलर में होता है और रुपए की कमजोरी से सोना मजबूत होता है। सोने का अप्रैल कॉन्ट्रेक्ट 11.26 बजे 0.72 परसेंट ऊपर 14,730 रुपए प्रति 10 ग्राम पर था। इससे पहले के चार कारोबारी दिनों में सोना 2.3 परसेंट चढ़ चुका है। सोने में मौजूदा तेजी की एक वजह चार्ट पर आधारित खरीदारी भी है। महत्वपूर्ण रेसिस्टेंट लेवल के तेजी से टूटने से निवेशकों को लग रहा है कि सोने में तेजी का दौर लौट रहा है। शेयर मार्केट का निगेटिव सेंटिमेंट भी सोने को मजबूती दे रहा है। 11.26 बजे एमसीएक्स पर गोल्ड का जून और अगस्त कॉन्ट्रेक्ट 106 रुपए बढ़कर 14,730 और 14,740 रुपए प्रति 10 ग्राम पर था। (ET Hindi)
25 अप्रैल 2009
तंबाकू की कीमतें बढ़ने से महंगी होगी सिगरेट
कोलकाता April 25, 2009
तंबाकू की कीमतों में 50 फीसदी तक की बढ़ोतरी होने की वजह से सिगरेट विनिर्माताओं ने कीमतों को बढ़ाने का फै सला लिया है।
वास्तव में इस क्षेत्र के एक बड़े खिलाड़ी आईटीसी ने अपने सिगरेट के ब्रांड गोल्ड फ्लेक की कीमतों को बढ़ाने का फैसला लिया है और इसने 10 सिगरेट वाली पैकेट का दाम 40 रुपये से बढ़ाकर 44 रुपये कर दिया है।
आईटीसी के एक प्रवक्ता का कहना है कि सिगरेट की कीमतों में बढ़ोतरी की एक वजह यह है कि तंबाकू की कीमत भी बहुत ज्यादा है। गोल्ड फ्लेक आईटीसी का सबसे ज्यादा बिकने वाला ब्रांड है। देसी तंबाकू की कीमतें फिलहाल लगभग 1,300-2,000 रुपये प्रति 20 किलोग्राम है। यह तंबाकू की गुणवत्ता और भुगतान की अवधि पर भी निर्भर करता है।
पिछले साल समान किस्म की तंबाकू की कीमत 1,200-1,400 रुपये प्रति 20 किलोग्राम थीं। हालांकि आईटीसी ने केवल गोल्ड फ्लेक ब्रांड के लिए कीमतों में बढ़ोतरी की है। आईटीसी के और भी ब्रांड हैं मसलन इंसिग्नियां, इंडिया किंग्स, क्लासिक, सिल्क कट, नेवी कट, सिजर्स, कैप्सटन, बर्कले, ब्रिस्टॉल, फ्लेक।
दूसरे सिगरेट निर्मार्णकत्ता, गॉडफ्रे फिलिप्स (इंडिया), कीमतों में बढ़ोतरी के लिए अब फैसला लेने ही वाली है। गॉडफ्रे फिलिप्स की उपाध्यक्ष (मार्केटिंग ऐंड कॉर्पोरेट अफेयर्स) नीता कपूर का कहना है, 'कंपनी साल में दो बार वित्तीय वर्ष की शुरुआत में और अप्रैल के अंत या साल के मध्य में कीमतों की समीक्षा करती है।'
वह कहती हैं, 'हमलोगों ने अभी किसी तरह की कोई योजना नहीं बनाई है।' कपूर हालांकि इस बात की ओर संकेत करती हैं कि कीमतें सीधे तौर पर लागत पर निर्भर करती हैं और कुछ किस्मों की कीमतें पिछले साल के मुकाबले लगभग दोगुनी हो चुकी हैं। सिगरेट मैन्यूफैक्चर्स अपने लिए कच्चे माल की सभी जरूरतें तंबाकू की नीलामी के जरिए पूरी करते हैं।
तंबाकू बोर्ड हर साल नीतियां बनाती है ताकि वर्जीनिया तंबाकू के उत्पादन और संसाधनों का नियमन किया जा सके। बोर्ड घरेलू और निर्यात के लिए फसल की जरूरतों का जायजा लेती है। इसके लिए किसानों के संगठन और भारतीय तंबाकू एसोसिएशन के साथ भी बातचीत करती है, उसके बाद फसल का आकार तय किया जाता है। (BS Hindi)
तंबाकू की कीमतों में 50 फीसदी तक की बढ़ोतरी होने की वजह से सिगरेट विनिर्माताओं ने कीमतों को बढ़ाने का फै सला लिया है।
वास्तव में इस क्षेत्र के एक बड़े खिलाड़ी आईटीसी ने अपने सिगरेट के ब्रांड गोल्ड फ्लेक की कीमतों को बढ़ाने का फैसला लिया है और इसने 10 सिगरेट वाली पैकेट का दाम 40 रुपये से बढ़ाकर 44 रुपये कर दिया है।
आईटीसी के एक प्रवक्ता का कहना है कि सिगरेट की कीमतों में बढ़ोतरी की एक वजह यह है कि तंबाकू की कीमत भी बहुत ज्यादा है। गोल्ड फ्लेक आईटीसी का सबसे ज्यादा बिकने वाला ब्रांड है। देसी तंबाकू की कीमतें फिलहाल लगभग 1,300-2,000 रुपये प्रति 20 किलोग्राम है। यह तंबाकू की गुणवत्ता और भुगतान की अवधि पर भी निर्भर करता है।
पिछले साल समान किस्म की तंबाकू की कीमत 1,200-1,400 रुपये प्रति 20 किलोग्राम थीं। हालांकि आईटीसी ने केवल गोल्ड फ्लेक ब्रांड के लिए कीमतों में बढ़ोतरी की है। आईटीसी के और भी ब्रांड हैं मसलन इंसिग्नियां, इंडिया किंग्स, क्लासिक, सिल्क कट, नेवी कट, सिजर्स, कैप्सटन, बर्कले, ब्रिस्टॉल, फ्लेक।
दूसरे सिगरेट निर्मार्णकत्ता, गॉडफ्रे फिलिप्स (इंडिया), कीमतों में बढ़ोतरी के लिए अब फैसला लेने ही वाली है। गॉडफ्रे फिलिप्स की उपाध्यक्ष (मार्केटिंग ऐंड कॉर्पोरेट अफेयर्स) नीता कपूर का कहना है, 'कंपनी साल में दो बार वित्तीय वर्ष की शुरुआत में और अप्रैल के अंत या साल के मध्य में कीमतों की समीक्षा करती है।'
वह कहती हैं, 'हमलोगों ने अभी किसी तरह की कोई योजना नहीं बनाई है।' कपूर हालांकि इस बात की ओर संकेत करती हैं कि कीमतें सीधे तौर पर लागत पर निर्भर करती हैं और कुछ किस्मों की कीमतें पिछले साल के मुकाबले लगभग दोगुनी हो चुकी हैं। सिगरेट मैन्यूफैक्चर्स अपने लिए कच्चे माल की सभी जरूरतें तंबाकू की नीलामी के जरिए पूरी करते हैं।
तंबाकू बोर्ड हर साल नीतियां बनाती है ताकि वर्जीनिया तंबाकू के उत्पादन और संसाधनों का नियमन किया जा सके। बोर्ड घरेलू और निर्यात के लिए फसल की जरूरतों का जायजा लेती है। इसके लिए किसानों के संगठन और भारतीय तंबाकू एसोसिएशन के साथ भी बातचीत करती है, उसके बाद फसल का आकार तय किया जाता है। (BS Hindi)
जरूरत की आधी ही उपलब्ध है चीनी
नई दिल्ली April 25, 2009
आगामी जुलाई से लेकर अक्टूबर तक के लिए देश की मांग के मुताबिक 80 लाख टन चीनी की आवश्यकता होगी, लेकिन सरकार के पास चीनी की उपलब्धता महज 40-45 लाख टन होगी ।
गत अक्टूबर से लेकर आगामी जून तक के लिए सरकार लगभग 160 लाख टन चीनी बाजार के लिए जारी कर चुकी है। जबकि वर्ष 2008-09 (अक्टूबर से सितंबर तक) के दौरान कुल उत्पादन 150 लाख टन से भी कम बताया जा रहा है।
सरकार के पास पिछले साल की 30-35 लाख टन चीनी बची हुई है। और 10 लाख टन रिफाइन चीनी तो 15 लाख टन कच्ची चीनी का आयात किया जा रहा है। चीनी कारोबारियों के मुताबिक सरकार चीनी के दाम पर नियंत्रण के लिए लगातार अतिरिक्त कोटा जारी कर रही है।
इस कदम से फौरी तौर पर चीनी की कीमत जरूर कम हो जाती है, लेकिन हफ्ते- दस दिनों के बाद चीनी की कीमत में फिर से उछाल आ जा रहा है। चार दिन पहले इस माह के लिए 6 लाख टन चीनी का अतिरिक्त कोटा जारी करने के बाद महाराष्ट्र से लेकर उत्तर प्रदेश में चीनी की कीमत में 200 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट आ गयी।
महाराष्ट्र में चीनी 2400 रुपये प्रति क्विंटल से गिरकर 2150-2200 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर आ गयी तो उत्तर प्रदेश में 2600 रुपये प्रति क्विंटल से गिरकर 2400 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर। अप्रैल, मई व जून के लिए सरकार 54 लाख टन का कोटा पहले ही जारी कर चुकी थी लेकिन कीमत में लगातार बढ़ोतरी देख 6 लाख टन का अतिरिक्त कोटा जारी कर दिया गया।
चीनी के थोक कारोबारी नाम नहीं छापने की शर्त पर कहते हैं, 'सरकार आगे का बिल्कुल नहीं सोच रही है सिर्फ व सिर्फ चुनाव तक किसी भी कीमत पर चीनी के भाव को नहीं बढ़ने देना चाहती है।' देश की घरेलू खपत प्रति माह 20 लाख टन है और इस हिसाब से जुलाई से अक्टूबर तक के लिए 80 लाख टन चीनी की जरूरत होगी।
आयात होने वाली चीनी व पुराने स्टॉक को इस स ाल के उत्पादन के साथ जोड़ने पर चीनी की कुल उपलब्धता 200-210 लाख टन के आसपास होती है। इनमें से 160 लाख टन चीनी निकल चुकी है। दया शुगर के सलाहकार डीके शर्मा कहते हैं, '15 लाख टन कच्ची चीनी को इस साल यानी कि अक्टूबर के पहले रिफाइन कर लिया जाएगा इसमें संदेह है।
क्योंकि किसी भी मिल में अब पेराई का काम नहीं हो रहा है और बॉयलर चलाने के लिए बगास नहीं होने के कारण इसे रिफाइन करने में मिल वालों को लागत काफी अधिक आएगी।' दूसरी बात यह है कि 10 लाख टन सफेद चीनी का जो आयात किया जाना है वह भी चीनी की घरेलू कीमत के मुकाबले कम दाम पर नहीं होने जा रहा है। क्योंकि इस साल विश्व में चीनी का उत्पादन पिछले साल के मुकाबले 5 फीसदी कम है।
पाकिस्तान पहले से ही सफेद चीनी का आयात कर रहा है। पाकिस्तान में सफेद चीनी की कीमत 50 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंच गयी है। ऐसे में आयातित चीनी के आने से चीनी की कीमत कम हो जाएगी, ऐसा नहीं लगता है।
कारोबारियों के मुताबिक नई सरकार के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती चीनी उपलब्ध कराना होगा। क्योंकि चालू हालात को देखते हुए सितंबर तक चीनी का स्टॉक समाप्त हो जाएगा।
गोदाम खाली
जुलाई से अक्टूबर तक के लिए चाहिए 80 लाख टन चीनी, लेकिन सरकार के पास मात्र 40 लाख टन सरकार ने कीमतें कम करने के लिए जारी किया 6 लाख टन अतिरिक्त चीनी का कोटा (BS Hindi)
आगामी जुलाई से लेकर अक्टूबर तक के लिए देश की मांग के मुताबिक 80 लाख टन चीनी की आवश्यकता होगी, लेकिन सरकार के पास चीनी की उपलब्धता महज 40-45 लाख टन होगी ।
गत अक्टूबर से लेकर आगामी जून तक के लिए सरकार लगभग 160 लाख टन चीनी बाजार के लिए जारी कर चुकी है। जबकि वर्ष 2008-09 (अक्टूबर से सितंबर तक) के दौरान कुल उत्पादन 150 लाख टन से भी कम बताया जा रहा है।
सरकार के पास पिछले साल की 30-35 लाख टन चीनी बची हुई है। और 10 लाख टन रिफाइन चीनी तो 15 लाख टन कच्ची चीनी का आयात किया जा रहा है। चीनी कारोबारियों के मुताबिक सरकार चीनी के दाम पर नियंत्रण के लिए लगातार अतिरिक्त कोटा जारी कर रही है।
इस कदम से फौरी तौर पर चीनी की कीमत जरूर कम हो जाती है, लेकिन हफ्ते- दस दिनों के बाद चीनी की कीमत में फिर से उछाल आ जा रहा है। चार दिन पहले इस माह के लिए 6 लाख टन चीनी का अतिरिक्त कोटा जारी करने के बाद महाराष्ट्र से लेकर उत्तर प्रदेश में चीनी की कीमत में 200 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट आ गयी।
महाराष्ट्र में चीनी 2400 रुपये प्रति क्विंटल से गिरकर 2150-2200 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर आ गयी तो उत्तर प्रदेश में 2600 रुपये प्रति क्विंटल से गिरकर 2400 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर। अप्रैल, मई व जून के लिए सरकार 54 लाख टन का कोटा पहले ही जारी कर चुकी थी लेकिन कीमत में लगातार बढ़ोतरी देख 6 लाख टन का अतिरिक्त कोटा जारी कर दिया गया।
चीनी के थोक कारोबारी नाम नहीं छापने की शर्त पर कहते हैं, 'सरकार आगे का बिल्कुल नहीं सोच रही है सिर्फ व सिर्फ चुनाव तक किसी भी कीमत पर चीनी के भाव को नहीं बढ़ने देना चाहती है।' देश की घरेलू खपत प्रति माह 20 लाख टन है और इस हिसाब से जुलाई से अक्टूबर तक के लिए 80 लाख टन चीनी की जरूरत होगी।
आयात होने वाली चीनी व पुराने स्टॉक को इस स ाल के उत्पादन के साथ जोड़ने पर चीनी की कुल उपलब्धता 200-210 लाख टन के आसपास होती है। इनमें से 160 लाख टन चीनी निकल चुकी है। दया शुगर के सलाहकार डीके शर्मा कहते हैं, '15 लाख टन कच्ची चीनी को इस साल यानी कि अक्टूबर के पहले रिफाइन कर लिया जाएगा इसमें संदेह है।
क्योंकि किसी भी मिल में अब पेराई का काम नहीं हो रहा है और बॉयलर चलाने के लिए बगास नहीं होने के कारण इसे रिफाइन करने में मिल वालों को लागत काफी अधिक आएगी।' दूसरी बात यह है कि 10 लाख टन सफेद चीनी का जो आयात किया जाना है वह भी चीनी की घरेलू कीमत के मुकाबले कम दाम पर नहीं होने जा रहा है। क्योंकि इस साल विश्व में चीनी का उत्पादन पिछले साल के मुकाबले 5 फीसदी कम है।
पाकिस्तान पहले से ही सफेद चीनी का आयात कर रहा है। पाकिस्तान में सफेद चीनी की कीमत 50 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंच गयी है। ऐसे में आयातित चीनी के आने से चीनी की कीमत कम हो जाएगी, ऐसा नहीं लगता है।
कारोबारियों के मुताबिक नई सरकार के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती चीनी उपलब्ध कराना होगा। क्योंकि चालू हालात को देखते हुए सितंबर तक चीनी का स्टॉक समाप्त हो जाएगा।
गोदाम खाली
जुलाई से अक्टूबर तक के लिए चाहिए 80 लाख टन चीनी, लेकिन सरकार के पास मात्र 40 लाख टन सरकार ने कीमतें कम करने के लिए जारी किया 6 लाख टन अतिरिक्त चीनी का कोटा (BS Hindi)
मंदी रोकने को रबर निर्यात घटाएंगे थाईलैंड, मलेशिया व इंडोनेशिया
रबर के भाव में गिरावट को रोकने के लिए दुनिया के तीन बड़े रबर उत्पादक देश थाईलैंड, मलेशिया और इंडोनेशिया एकजुट होकर सक्रिय हो गए हैं। ये देश दूसरी तिमाही से रबर के निर्यात में कटौती करने जा रहे हैं। इस साल जनवरी-मार्च के दौरान करीब 2.70 लाख टन रबर का निर्यात हुआ है। इस प्रस्ताव से निर्यात में करीब 48 हजार टन की कटौती की जाएगी। भारत में पिछले सप्ताह रबर के दामों में आई गिरावट के बाद उत्पादकों की बिकवाली घट गई है। बैंकाक में सम्पन्न हुए दो दिवसीय इंटरनेशनल रबर कंसोर्टियम (आईआरसीओ) के सदस्यों की बैठक के बाद आईआरसीओ के मुख्य अर्थशास्त्री इयूम तावारोलिट ने कहा कि कीमतों में अस्थिरता से निपटने के लिए तीनों देश वायदा में हेजिंग पर भी विचार कर सकते हैं। आईआरसीओ जल्दी ही टोक्यो कमोडिटी एक्सचेंज में रबर वायदा में हेजिंग शुरू कर सकता है। पिछले साल भर के दौरान रबर के भाव रिकार्ड स्तर पर जाने के बाद काफी नीचे आ चुके हैं। पिछले कुछ दिनों से भाव में सुधार के बाद दोबारा कीमतों में गिरावट आई है। इससे रबर उत्पादकों और देशों के कारोबार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। उन्होंने बताया कि मौजूदा समय में कंसोर्टियम की ओर से रबर की कीमतों और कारोबार की कड़ी निगरानी की जा रही है। हर महीने की समीक्षा के आधार पर जरूरत के मुताबिक रबर के निर्यात को व्यवस्थित किया जा रहा है। थाईलैंड और मलेशिया में सूखे की वजह से रबर के स्टॉक में पहले से कमी आनी शुरू हो चुकी है। उधर भारत के कोट़टायम में उत्पादकों की बिकवाली कम आने से आरएसएस-4 नेचुरल रबर के भाव बढ़कर 99 रुपये और आरएसएस-5 के भाव 97 रुपये प्रति किलो हो गए। 11 अप्रैल को आरएसएस-4 नेचुरल रबर के दाम 93 रुपये और आरएसएस-5 के भाव 92 रुपये प्रति किलो रह गए थे। उल्लेखनीय है कि पिछले साल अक्टूबर और दिसंबर में हुई बैठक में कंसोर्टियम के सदस्यों ने कीमतों को स्थिर करने के लिए उठाए जाने वाले कदमों पर सहमति जताई थी। नतीजन उत्पादक देशों में रिप्लांटिंग प्रोग्राम शुरू करने से अब बाजार में करीब 9.15 लाख टन रबर की आपूर्ति घटेगी। निर्यात में 48 हजार टन की कटौती भी पहले से तय कार्यक्रम का ही हिस्सा है। इयूम ने बताया कि फिलहाल रबर सप्लाई में और कटौती के उपायों पर भी विचार किया जा रहा है। जब तक तार्किक स्तर पर भाव नहीं आते हैं, सप्लाई पर निगरानी रखी जाएगी। पिछले साल जून के दौरान टोक्यो कमोडिटी एक्सचेंज में रबर 356.9 येन प्रति किलो के रिकार्ड स्तर पर था। लेकिन ऑटो जैसे खपत वाले क्षेत्रों में छाई मंदी से कीमतों में काफी गिरावट आ चुकी है। दिसंबर में यह 99.8 येन प्रति किलो के न्यूनतम स्तर पर रह गई। शुक्रवार को टोकम में यह करीब 159.2 येन प्रति किलो पर रही। कुल उत्पादन का करीब 70 फीसदी रबर टायर बनाने में इस्तेमाल होती है। (Business Bhaskar)
चीन की खरीद घटने से कॉपर 6फीसदी सस्ता
चीन द्वारा कॉपर की खरीदारी कम करने के कारण इसके मूल्य पांच दिनों में छह फीसदी तक घट चुके हैं। इस दौरान लंदन मेटल एक्सचेंज (एलएमई) में हाजिर के दाम 4650 डॉलर से घटकर 4540 डॉलर प्रति टन और शंघाई फ्यूचर एक्सचेंज में कॉपर के दाम पांच दिन के निचले स्तर पर पहुंच गए। यहां अगस्त वायदा दो फीसदी घटकर 35400 युआन प्रति टन रह गया है। वहीं घरेलू बाजार में कॉपर स्क्रैप के मूल्य 270 रुपये से घटकर 250 रुपये किलो, कॉपर रॉड 295 रुपये से घटकर 275 रुपये, कॉपर बार वायर 295 रुपये से घटकर 278 रुपये और कॉपर बाइंडिंग के मूल्य 295 रुपये से घटकर 275 रुपये प्रति किलो रह गए हैं।बीते दिनों में चीन में सरकार द्वारा राहत पैकेज देने के बाद धातुओं की औद्योगिक मांग बढ़ने लगी थी। मांग की पूर्ति करने के लिए चीन ने मार्च महीने के दौरान 374,956 टन कॉपर और कॉपर एलॉय का आयात किया। यह आयात फरवरी के 329,311 टन आयात के मुकाबले 13 फीसदी अधिक है। जिससे मार्च और अप्रैल (शुरू के तीन सप्ताह तक) में इसके मूल्यों में तेजी आई थी। झिलमिल एंड फ्रेंडस कॉलोनी इंडस्ट्रियल एरिया सीईटीपी सोसायटी के उपाध्यक्ष सुरेश चंद गुप्ता ने बिजनेस भास्कर को बताया कि चीनी रिजर्ब ब्यूरो ने कॉपर की खरीद कम कर दी है। इस वजह से एलएमई में कॉपर के मूल्यों में गिरावट आई है। यही कारण है कि घरेलू बाजार में भी पिछले पांच दिनों में इसके मूल्यों में 20 रुपये प्रति किलो की कमी आ चुकी हैं।आने वाले दिनों में कॉपर के मूल्यों में फिर तेजी आने की संभावना जताई जा रही है। एसोसिएशन के अध्यक्ष अजीत प्रसाद सिंह का कहना है कि कॉपर की इलैक्ट्रिकल उपकरणों के निर्माण में खपत अभी भी बनी हुई है। जिससे आने वाले दिनों में कॉपर के दाम फिर से बढ़ सकते है। उधर एंजिल ब्रोकिंग के टेक्निकल विशेषज्ञ अनुज गुप्ता का कहना है कि कॉपर के नीचे आने के बाद चीनी रिजर्व ब्यूरो फिर से खरीदा बढ़ा सकता है। ऐसे में कॉपर के भाव बढ़ने की संभावना है। मालूम हो कि वैश्विक आर्थिक संकट की वजह से औद्योगिक और भवन निर्माण क्षेत्र से कॉपर की मांग में कमी आई है। (Business Bhaskar)
Wheat plunges below support price in Delhi
New Delhi, April 24 Wheat is selling below minimum support price (MSP) in the national Capital.
On Friday, wheat dara (loose) was being quoted at Rs 1,058-1,070 a quintal in Lawrence Road, while ruling even lower at Rs 1,040-1,050 and Rs 1,020-1,030 in Delhi’s other two major grain markets at Narela and Najafgarh, respectively.
This is against the MSP of Rs 1,080 a quintal fixed by the Centre for the wheat crop being marketed in the current 2009-10 season (April-June).
The gap between the MSP and open market prices is even more in Uttar Pradesh (UP), where wheat is now fetching Rs 930-940 a quintal in Shahjahanpur and Hardoi and Rs 980-1,020 in mandis closer to Delhi, such as Mathura, Agra, Etah and Mainpuri.
“We are seeing a virtual free market in Delhi and much of UP. Government agencies have not bought a single grain in Delhi. In UP, they have so far purchased 4.79 lakh tonnes (lt), but procurement will end up nowhere near last year’s 31.37 lt level. Bulk of the State’s wheat is going to flour mills in the South and the rest of the country,” according to market sources.
The Food Corporation of India (FCI) and other Government agencies are concentrating their procurement operations mainly in Punjab and Haryana, where farmers are a more organised lobby.
“Unlike in UP or Bihar, there is an established governmental purchase machinery in these two States, which nobody can dismantle. There is no question of farmers there receiving a price below the MSP,” the sources pointed out.Heading to Haryana
The resulting dichotomy is, nevertheless, creating distortions of a different kind. A lot of wheat grown in the border areas of UP is, for example, finding its way to the neighbouring mandis of Haryana.
“Farmers from the Kosi Kalan-Mathura belt of UP are taking their wheat to the Palwal, Hodal and Nuh markets in Haryana.
A similar movement is happening from Meerut and Baghpat to Sonepat, from Muzaffarnagar to Panipat and Karnal, and from Saharanpur to Yamunanagar and Jagadhri,” the sources informed.
Even wheat being traded in Delhi is said to be eventually heading to Haryana.
“It makes sound business sense. I can buy wheat here at Rs 1,030 a quintal, incur transport and mandi charges of about Rs 13 and still make money by selling at the MSP in Haryana,” they noted.
All this is finally reflected in the official procurement figures from Haryana.
As on Friday, the FCI and State agencies had purchased 57.34 lt of wheat from the State, which is more than the 52.37 lt bought in the entire 2008-09 marketing season. Procurement
“Given the rate at which wheat is coming from UP and Delhi, total procurement in Haryana is definitely going to surpass the record 64.07 lt achieved in 2001-02. We won’t be surprised if it even crosses 70 lt,” the sources said.
Meanwhile, progressive all-India wheat procurement for the 2008-09 rabi marketing season stood at 165.41 lt as on Friday, as against 95.39 lt mopped-up during the corresponding period of the preceding season.
Of the total 165.41 lt, Punjab accounted for 86.68 lt, followed by Haryana (57.34), Madhya Pradesh (9.88), Rajasthan (5.97) and Uttar Pradesh (4.79).
The 2008-09 season had witnessed an all-time-high aggregate wheat procurement of 226.89 lt, including 99.41 lt from Punjab, 52.37 lt from Haryana, 31.37 lt from UP, 24.10 lt from Madhya Pradesh, 9.35 lt from Rajasthan, 5 lt from Bihar and 4.15 lt from Gujarat.
“This time, procurement will be higher in Punjab and Haryana, but will fall short substantially in the other States. So, on the whole, total buys may just about touch 200 lt,” they added. (Hindu)
On Friday, wheat dara (loose) was being quoted at Rs 1,058-1,070 a quintal in Lawrence Road, while ruling even lower at Rs 1,040-1,050 and Rs 1,020-1,030 in Delhi’s other two major grain markets at Narela and Najafgarh, respectively.
This is against the MSP of Rs 1,080 a quintal fixed by the Centre for the wheat crop being marketed in the current 2009-10 season (April-June).
The gap between the MSP and open market prices is even more in Uttar Pradesh (UP), where wheat is now fetching Rs 930-940 a quintal in Shahjahanpur and Hardoi and Rs 980-1,020 in mandis closer to Delhi, such as Mathura, Agra, Etah and Mainpuri.
“We are seeing a virtual free market in Delhi and much of UP. Government agencies have not bought a single grain in Delhi. In UP, they have so far purchased 4.79 lakh tonnes (lt), but procurement will end up nowhere near last year’s 31.37 lt level. Bulk of the State’s wheat is going to flour mills in the South and the rest of the country,” according to market sources.
The Food Corporation of India (FCI) and other Government agencies are concentrating their procurement operations mainly in Punjab and Haryana, where farmers are a more organised lobby.
“Unlike in UP or Bihar, there is an established governmental purchase machinery in these two States, which nobody can dismantle. There is no question of farmers there receiving a price below the MSP,” the sources pointed out.Heading to Haryana
The resulting dichotomy is, nevertheless, creating distortions of a different kind. A lot of wheat grown in the border areas of UP is, for example, finding its way to the neighbouring mandis of Haryana.
“Farmers from the Kosi Kalan-Mathura belt of UP are taking their wheat to the Palwal, Hodal and Nuh markets in Haryana.
A similar movement is happening from Meerut and Baghpat to Sonepat, from Muzaffarnagar to Panipat and Karnal, and from Saharanpur to Yamunanagar and Jagadhri,” the sources informed.
Even wheat being traded in Delhi is said to be eventually heading to Haryana.
“It makes sound business sense. I can buy wheat here at Rs 1,030 a quintal, incur transport and mandi charges of about Rs 13 and still make money by selling at the MSP in Haryana,” they noted.
All this is finally reflected in the official procurement figures from Haryana.
As on Friday, the FCI and State agencies had purchased 57.34 lt of wheat from the State, which is more than the 52.37 lt bought in the entire 2008-09 marketing season. Procurement
“Given the rate at which wheat is coming from UP and Delhi, total procurement in Haryana is definitely going to surpass the record 64.07 lt achieved in 2001-02. We won’t be surprised if it even crosses 70 lt,” the sources said.
Meanwhile, progressive all-India wheat procurement for the 2008-09 rabi marketing season stood at 165.41 lt as on Friday, as against 95.39 lt mopped-up during the corresponding period of the preceding season.
Of the total 165.41 lt, Punjab accounted for 86.68 lt, followed by Haryana (57.34), Madhya Pradesh (9.88), Rajasthan (5.97) and Uttar Pradesh (4.79).
The 2008-09 season had witnessed an all-time-high aggregate wheat procurement of 226.89 lt, including 99.41 lt from Punjab, 52.37 lt from Haryana, 31.37 lt from UP, 24.10 lt from Madhya Pradesh, 9.35 lt from Rajasthan, 5 lt from Bihar and 4.15 lt from Gujarat.
“This time, procurement will be higher in Punjab and Haryana, but will fall short substantially in the other States. So, on the whole, total buys may just about touch 200 lt,” they added. (Hindu)
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