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19 फ़रवरी 2009

उर्वरक संयंत्रों को अप्रैल से गैस मिलने की उम्मीद

अप्रैल से उर्वरक संयंत्रों को गैस मिलनी शुरू हो जाएगी। गुजरात के कृष्णा-गोदावरी बेसिन के डी-6 ब्लॉक से रिलायंस द्वारा गैस उत्पादन शुरू होने की उम्मीद है। यहां से उत्पादित गैस के आवंटन में यूरिया संयंत्रों को प्राथमिकता दी गई है। उर्वरक कंपनियों का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था फर्टिलाइजर एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एफएआई) के एक अधिकारी ने बताया कि इसी प्राथमिकता के चलते अप्रैल से देश भर के तकरीबन 15 यूरिया संयंत्रों को गैस मिलनी शुरू हो जाएगी। फिलहाल, देश भर के उर्वरक संयंर्त् इधन के तौर पर नाफ्था का इस्तेमाल करते हैं। नाफ्था के दाम अंतरराष्ट्रीय बाजार में चल रही कच्चे तेल की कीमतों पर निर्भर करते हैं। इसी हिसाब से नाफ्था के दाम भी ऊपर-नीचे होते रहते हैं। महंगर्े इधन से राहत पाने के लिए सरकार ने उर्वरक संयंत्रों को गैस पर प्राथमिकता दी थी क्योंकि गैस नाफ्था के मुकाबले बेहद सस्ती पड़ती है। इसका सीधा फायदा केंद्र सरकार को ही होगा क्योंकि सरकार उर्वरक पर सब्सिडी देती है। 2008-09 में महंगे नाफ्था के चलते केंद्र सरकार का उर्वरक सब्सिडी बोझ 1,00,000 करोड़ रुपये को पार कर गया है। एफएआई के अधिकारी ने बताया कि चंबल फर्टिलाइजर्स, टाटा केमिकल्स लिमिटेड, इंडियन फारमर्स फर्टिलाइजर को-ऑपरेटिव लिमिटेड (इफको), कृषक भारती को-ऑपरेटिव लिमिटेड (कृभको) और इंडो-गल्फ फर्टिलाइजर्स के यूरिया संयंत्रों को केजी बेसिन से गैस सप्लाई शुरू होने की उम्मीद है। इफको के जनरल मैनेजर वीरेंद्र सिंह ने बिजनेस भास्कर को बताया कि उर्वरक संयंत्रों की गैस इस्तेमाल करने से ऊर्जा क्षमता बढ़ती है। इस लिहाज से संयंत्रों को कर्म इधन खर्च करना पड़ता है। वहीं गैस सीधे पाइपलाइन से आती है और आसानी से इस्तेमाल हो जाती है। गैस के लिए हैंडलिंग और ट्रांसपोर्ट का खर्चा नहीं करना पड़ता है। सिंह ने बताया कि उर्वरक संयंत्रों को गैस सप्लाई होने से सबसे ज्यादा फायदा सरकार को ही होगा। इससे सरकार का सब्सिडी बोझ काफी कम हो जाएगा। उर्वरक सचिव अतुल चतुर्वेदी भी इस बात से इत्तेफाक रखते हैं। उनका कहना है कि देश के सभी उर्वरक संयंत्रों को गैस सप्लाई से जोड़ दिया जाए तो केंद्र सरकार का सब्सिडी बोझ घटकर 20-30 हजार करोड़ रुपये रह जाएगा। (Business Bhaskar)

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