नई दिल्ली February 03, 2009
उत्तर प्रदेश के आलू किसानों के गम को दूर करने के लिए मायावती सरकार ने कदम तो बहुत सारे उठा लिये है लेकिन मांग में कमी के चलते आलू की आने वाली बंपर पैदावार आलू किसानों के जख्मों को फिर से ताजा कर सकती है।
उत्तर प्रदेश के कृषि विभाग के आंकड़ों के हिसाब से आने वाली उपज में आलू का उत्पादन लगभग 140 लाख टन रहने का अनुमान है। जबकि 123 लाख टन रही आलू की पिछली उपज को ही ठिकाने लगाने में राज्य सरकार का पसीना छूट गया है।
उत्तर प्रदेश के आलू किसानों का कहना है कि सबसे बड़ी समस्या तो रिकार्ड तोड़ पैदा हो रहे आलू उपज की खपत की है। उत्तर प्रदेश में आलू की खपत, कुल उत्पादन का 10 फीसदी भी नही है। वहीं पड़ोसी राज्यों से उठने वाली मांग भी लगभग इतनी ही है।
राज्य के आलू में शीरे की मात्रा ज्यादा होने से अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी यहां के आलू की मांग कम रहती है। हर साल कुल उत्पादन का 25 से 30 फीसदी ही अंतरराष्ट्रीय बाजार में निर्यात हो पाता है। ऐसे में हर साल राज्य सरकार के सामने आलू के कुल उत्पादन के 40 से 50 फीसदी की खपत का सवाल खड़ा हो जाता है।
यही नहीं, राज्य में केवल 90 भंडार गृह हैं जिसमें 40 से 50 लाख टन आलू की भंडारण व्यवस्था नहीं हो पाती है। ऐसे में निर्यात अच्छा न होने से हर साल आलू सड़ने की नौबत आ जाती है। उत्तर प्रदेश के कृषि बागवानी विभाग के आंकड़ों के हिसाब से इस साल राज्य में आलू की उपज लगभग 123 लाख टन थी।
जबकि भंडारण क्षमता केवल 87 लाख टन थी। ऐसे में लगभग 36 लाख टन आलू के भंडारण के लिए राज्य में टोटा था। इसके अलावा राज्य में आलू की 13 लाख टन की कुल खपत और 29 लाख टन के निर्यात को निकाल दिया जाए तो बचे हुए 81 लाख टन आलू की खपत की भी कोई व्यवस्था नहीं थी।
यही कारण है कि इस साल आलू को सड़क पर फेकने की नौबत आ गई थी। ऐसे में 140 लाख टन की अगली आलू उपज किसानों के लिए सिरदर्द बन सकती है। कन्नौज में आलू की खेती करने वाले किसान रामतीर्थ सिंह बताते है कि परिवहन में छूट, आलू के न्यूनतम समर्थन मूल्य में 50 रुपये की बढ़ोतरी और लघु सीमांत किसानों के लिए बैंक ऋण की दरों में कमी होना किसानों को आलू की बुवाई के लिए और प्रोत्साहित करेगा। लेकिन सवाल अभी भी खपत का है।
उत्तर प्रदेश से सटे हुए दूसरे राज्यों में भी आलू की मांग उत्पादन की अपेक्षा काफी कम रहती है। उत्तर प्रदेश में भी ऐसे उद्योग नहीं है जहां आलू की पैदावार की खपत की जा सके। फर्रुखाबाद में किसान सभा के नेता हरेन्द्र सिंह का कहना है कि किसान फसल अच्छी होने पर निर्यात और कीमतों में बढ़ोतरी की आस में फिर से आलू का भंडारण करने का प्रयास करेंगे। ऐसे में अगर आलू की मांग और निर्यात अच्छा नहीं रहा तो आलू का फिर से सड़क पर आना तय है।
उत्तर प्रदेश के कृषि मंत्री लक्ष्मीनारायण का कहना है कि राज्य में आलू की बंपर पैदावार को देखते हुए हमारा प्रयास आलू आधारित निजी उद्योगों को लगाने का है। इसके लिए एक मसौदा भी तैयार कर रहे है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निर्यात को बढ़ावा देने के लिए हमने प्रतिकिलो आलू में 1.50 रुपये अनुदान देने की व्यवस्था की है।
इसके अलावा हम राज्य में 300 किलोमीटर तक की दूरी तक परिवहन भाड़े में 25 फीसदी छूट देने की घोषणा कर चुके हैं। भंडारगृहों की संख्या बढ़ाने के लिए राज्य सरकार ने पहले ही ऋण पर पचास लाख रुपये तक की छूट की घोषणा कर रखी है।
उप्र सरकार द्वारा उठाए गए कदम
आलू का न्यूनतम समर्थन मूल्य 250 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 300 रुपये प्रति क्विंटल करनाअंतरराष्ट्रीय निर्यात को बढ़ावा देने के लिए प्रति किलो आलू पर 1.5 रुपये अनुदान राज्य में आलू की बिक्री को बढ़ाने के लिए 300 (पहले यह 500 किलोमीटर थी) किलोमीटर तक की दूरी पर कुल परिवहन व्यय का 25 फीसदी अनुदान के तौर परउर्वरकों और बीजों पर करीब 86 करोड़ रुपये का अनुदान
(BS Hindi)
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