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04 फ़रवरी 2009

घरेलू बासमती निर्यात में कमी, दाम घटे

नई दिल्ली: इस पूरे साल आप बासमती चावल से बनी बिरयानी खाते-खाते थक जाएंगे। अब आप पूछेंगे कि इसकी वजह क्या है? दरअसल पाकिस्तान से होने वाले सस्ते बासमती के निर्यात की वजह से अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय बासमती की खुशबू फीकी पड़ती जा रही है। निर्यात में आने वाली कमी के चलते घरेलू बाजार में बासमती की आपूर्ति काफी बढ़ रही है जिससे दाम गिरने लगे हैं। ग्लोबल मंदी के चलते पश्चिमी देशों में लोगों की खरीदारी क्षमता में गिरावट पैदा हुई है। इस वजह से विदेशी ग्राहक भारत के बजाय पाकिस्तानी बासमती चावल को ज्यादा तरजीह दे रहे हैं। पाकिस्तान के बासमती चावल का भाव इसकी भारतीय किस्म के मुकाबले करीब 200 डॉलर प्रति टन कम है। भारतीय सरकार के इस बारे में किए जा रहे प्रयास लालफीताशाही की वजह से बासमती को मदद नहीं दे पा रहे हैं। पूरे एक पखवाड़े पहले उच्च अधिकार संपन्न मंत्रियों के समूह ने बासमती चावल के निर्यात पर लगने वाले 8,000 रुपए प्रति टन के सेस को हटाने और न्यूनतम निर्यात कीमत (एमईपी) को भी 1,200 डॉलर प्रति टन से घटाकर 1,100 डॉलर प्रति टन करने का फैसला लिया था। निर्यात पर लगने वाले सेस को हटाने के फैसले की अधिसूचना अभी तक जारी नहीं हो सकी है। हालांकि वाणिज्य मंत्रालय ने न्यूनतम निर्यात कीमत (एमईपी) के बारे में अधिसूचना जारी करने में कोई देर नहीं की। एमईपी में 100 डॉलर की कमी ने हालांकि भारतीय निर्यातकों को पाकिस्तानी बासमती से मुकाबला करने में कुछ मदद दी है। इस मामले में सबसे बुरी बात यह है कि घरेलू निर्यातकों को अटके हुए निर्यात को भेजने के लिए पोर्ट और कंटेनर चार्ज के तौर पर ज्यादा भुगतान करना पड़ रहा है जबकि ग्लोबल मंदी के चलते कंटेनर और शिपिंग चार्ज में काफी गिरावट चल रही है। बासमती निर्यात एक ऐसा सेक्टर है जिसमें कर्ज की काफी ज्यादा जरूरत होती है। ऐसे में बासमती निर्यात कारोबारियों को सरकार से सेस में जल्द कमी करने की अधिसूचना जारी किए जाने की उम्मीद थी ताकि वे अपने कर्ज और ब्याज किस्तों का वक्त पर भुगतान कर सकें। गौरतलब है कि इन निर्यातकों को बासमती पैदा करने वाले किसानों का करीब 5,000 करोड़ रुपए का भुगतान करना है। इतने बड़े बकाया की वजह से बासमती चावल निर्यातकों को इसे घरेलू बाजार में काफी कम कीमत पर बेचने के लिए बाध्य होना पड़ रहा है। दिल्ली के एक चावल कारोबारी का कहना है, 'पूरा बासमती चावल निर्यात सेक्टर भारी तौर पर कर्ज के जरिए चलता है। निर्यात के छोटे सीजन में ही निर्यातकों को अपने रिटर्न सुनिश्चित करने हैं ताकि वे अपने बकाया का भुगतान कर सकें।' (ET Hindi)

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