उत्तर प्रदेश की बड़ी चीनी मिलों के एक वर्ग ने चीनी निर्यात का कोटा आवंटित करने की नीति में बदलाव के प्रस्ताव पर आपत्ति की है। चीनी निर्यात कोटे का आवंटन मौजूदा नीति के तहत ही किया जाना चाहिए और सभी चीनी मिलों को उनके उत्पादन के अनुपात में निर्यात का कोटा आवंटित किया जाना चाहिए। इन मिल संचालकों का कहना है सरकार चीनी का निर्यात कोटा जारी करने की मौजूदा नीति के स्थान पर पहले आओ, पहले पाओ की नीति लागू करने की तैयारी कर रही है। इसके चलते बिहार, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब और हरियाणा की चीनी मिलों को भारी नुकसान उठाना पड़ेगा।
सरकार ने हाल ही में 10 लाख टन और चीनी निर्यात की इजाजत दी है। जबकि इसके पहले 20 लाख टन चीनी निर्यात की अनुमति दी जा चुकी है। सरकार मिलों की वित्तीय स्थिति सुधारने के लिए उठाया गया है ताकि वे गन्ना किसानों को भुगतान कर सकें। यूपी की इन मिलों का कहना है कि अगर निर्यात कोटे के आवंटन की नीति बदलती है तो सरकार का मकसद पूरा नहीं होगा।
द्वारिकेश शुगर इंडस्ट्रीज, बिरला, उत्तम और डीसीएम श्रीराम जैसी यूपी की बड़ी मिलों के वरिष्ठ अधिकारियों ने खाद्य मंत्री के. वी. थॉमस से मुलाकात कर चीनी का निर्यात कोटा आवंटन की मौजूदा नीति को जारी रखने की मांग की है। द्वारिकेश शुगर इंडस्ट्रीज लिमिटेड के चेयरमैन जी. आर. मोरारका मोरारका ने बताया कि मिलों ने निर्यात में कोटा सिस्टम से सभी मिलों को आनुपातिक लाभ मिलना सुनिश्चित करने की मांग की है।
मोरारका का कहना है कि कि उत्तर भारत की चीनी मिलों को गन्ने की ऊंची कीमत और खुले बाजार में काफी कम मूल्य होने के कारण बुरे दौर से गुजरना पड़ रहा है। ऐसे में चीनी का निर्यात कोटा आवंटित करने की नीति में बदलाव से इन्हें भारी नुकसान होगा। उनके अनुसार उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, हरियाणा व पंजाब की चीनी मिलों से बंदरगाहों से दूरी अधिक होने के कारण वे सीधे निर्यात करने में सक्षम नहीं हैं। (Business Bhaskar)
उन्होंने कहा कि सरकार ने चालू सीजन में चीनी उद्योग में कैश फ्लो में सुधार और किसानों को गन्ने का बकाया भुगतान सुनिश्चित करने के लिए दस लाख टन चीनी के अतिरिक्त निर्यात को मंजूरी दी है। लेकिन मौजूदा नीति में बदलाव से निर्यात का लाभ उत्तर भारत की चीनी मिलों को नहीं मिल सकेगा।
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