काफी ऊहापोह के बाद सरकार ने आखिरकार संशोधित एकीकृत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) नीति को आज जारी कर ही दिया। इसके तहत जिंस एक्सचेंजों में विदेशी संस्थागत निवेश (एफआईआई) नियमों में थोड़ी ढील दी गई है। अब विदेशी संस्थागत निवेशकों को जिंस एक्सचेंजों में निवेश के लिए सरकार से पूर्व अनुमति लेने की जरूरत नहीं होगी। हालांकि एफआईआई निवेश की सीमा को मौजूदा 23 फीसदी पर बरकरार रखा गया है।
औद्योगकि नीति एवं संवद्र्धन विभाग (डीआईपीपी) ने कहा कि एफआईआई निवेश में ढील दी गई है लेकिन जिंस एक्सचेंजों में 26 फीसदी तक एफडीआई के लिए सरकार की मंजूरी लेनी होगी। डीआईपीपी ने कहा, 'नियम में बदलाव के तहत जिंस एक्सचेंजों में विदेशी निवेश नीति को प्रतिभूति बाजार की अन्य इन्फ्रास्ट्रक्चर कंपनियों के समकक्ष लाने का प्रयास किया गया है।' पूर्व प्रावधान के बारे में विशेषज्ञों का मानना था कि विदेशी निवेश संवद्र्धन बोर्ड (एफआईपीबी) से एफआईआई की पूर्व अनुमति लेने का नियम अनावश्यक था।
प्राइसवाटरहाउसकूपर्स के कार्यकारी निदेशक आकाश गुप्ता ने कहा कि पहले के प्रावधान से उन लोगों को बेवजह परेशानी होती थी जो शेयर बेचना चाहते थे। दूसरी ओर, एकल ब्रांड रिटेल में एफडीआई नीति में किसी तरह का बदलाव नहीं किया गया है। और इस बारे में कैबिनेट से पारित प्रस्ताव को ही एकीकृत एफडीआई नीति में शामिल किया गया है। वैश्विक ब्रांडों की ओर से दबाव के बावजूद छोटे मझोले उद्योगों से 30 फीसदी अनिवार्य आपूर्ति के नियम में भी किसी तरह का फेरबदल नहीं किया गया है।
डीआईपीपी ने घटिया मशीनरी के आयात को हतोत्साहित करने के लिए पुराने (सेकंड हैंड) उपकरणों के आयात के बदले में इक्विटी की सुविधा को वापस ले लिया है। केपीएमजी के कार्यकारी निदेशक कृष्ण मल्होत्रा ने कहा, 'यह अच्छी पहल है, क्योंकि पहले पुरानी मशीनरी के आयात को लेकर गुणवत्ता का कोई मानदंड नहीं था।'
डीआईपीपी ने कहा कि एकीकृत एफडीआई परिपत्र को मौजूदा 6 माह की जगह अब सालाना आधार पर जारी किया जाएगा। (BS Hindi)
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