उद्योग संगठन
कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीएआई) ने सरकार से आग्रह किया है कि चीन की
तर्क पर देश में कॉटन का स्टॉक जुटाने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि देश
में कॉटन की उपलब्धता बेहतर रहती है।
सीएआई ने एक बयान में कहा कि सरकार को कॉटन का रणनीतिक स्टॉक जुटाने की दिशा में पहल नहीं करनी चाहिए। खबर है कि वस्त्र और उद्योग मंत्रालय टेक्सटाइल मिलों को सप्लाई के लिए 25 लाख गांठ (प्रति गांठ 170 किलो) कॉटन का रणनीति स्टॉक जुटाने पर विचार कर रहा है। इसके लिए खरीद कॉटन कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (सीसीआई) द्वारा की जा सकती है।
एसोसिएशन का मानना है कि चीन की तर्ज पर भारत में घरेलू टैक्सटाइल मिलों के लिए कॉटन की सप्लाई सुनिश्चित करने के लिए रणनीतिक स्टॉक जुटाने की योजना गलत है क्योंकि चीन की तरह भारत में कॉटन की भारी किल्लत नहीं है। चीन में कॉटन की सप्लाई मांग के मुकाबले काफी कम है जबकि भारत में कॉटन घरेलू खपत से ज्यादा उपलब्ध है। ऐसे में घरेलू मिलों के लिए बाजार में कॉटन आसानी से उपलब्ध है।
सीएआई का कहना है कि रणनीतिक स्टॉक जुटाने से मूल्यों में उथल-पुथल होने की स्थिति में सरकार को भारी घाटा उठाना पड़ सकता है। अगर सरकार कॉटन का स्टॉक करती है तो उसे करीब 5,000 करोड़ रुपये निवेश करना होगा।
इसके अलावा इस राशि के ब्याज और भंडारण खर्च के रूप में 500 करोड़ रुपये का अतिरिक्त भार उठाना होगा। यही नहीं, सीसीआई को मूल्यों में उथल-पुथल होने पर घाटा उठाना पड़ सकता है। एसोसिएशन ने सुझाव दिया कि अगर टेक्सटाइल उद्योग के समक्ष पैसे की कमी होने की समस्या है तो उसे बैंकों के जरिये मदद दी जा सकती है। (Business Bhaskar)
सीएआई ने एक बयान में कहा कि सरकार को कॉटन का रणनीतिक स्टॉक जुटाने की दिशा में पहल नहीं करनी चाहिए। खबर है कि वस्त्र और उद्योग मंत्रालय टेक्सटाइल मिलों को सप्लाई के लिए 25 लाख गांठ (प्रति गांठ 170 किलो) कॉटन का रणनीति स्टॉक जुटाने पर विचार कर रहा है। इसके लिए खरीद कॉटन कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (सीसीआई) द्वारा की जा सकती है।
एसोसिएशन का मानना है कि चीन की तर्ज पर भारत में घरेलू टैक्सटाइल मिलों के लिए कॉटन की सप्लाई सुनिश्चित करने के लिए रणनीतिक स्टॉक जुटाने की योजना गलत है क्योंकि चीन की तरह भारत में कॉटन की भारी किल्लत नहीं है। चीन में कॉटन की सप्लाई मांग के मुकाबले काफी कम है जबकि भारत में कॉटन घरेलू खपत से ज्यादा उपलब्ध है। ऐसे में घरेलू मिलों के लिए बाजार में कॉटन आसानी से उपलब्ध है।
सीएआई का कहना है कि रणनीतिक स्टॉक जुटाने से मूल्यों में उथल-पुथल होने की स्थिति में सरकार को भारी घाटा उठाना पड़ सकता है। अगर सरकार कॉटन का स्टॉक करती है तो उसे करीब 5,000 करोड़ रुपये निवेश करना होगा।
इसके अलावा इस राशि के ब्याज और भंडारण खर्च के रूप में 500 करोड़ रुपये का अतिरिक्त भार उठाना होगा। यही नहीं, सीसीआई को मूल्यों में उथल-पुथल होने पर घाटा उठाना पड़ सकता है। एसोसिएशन ने सुझाव दिया कि अगर टेक्सटाइल उद्योग के समक्ष पैसे की कमी होने की समस्या है तो उसे बैंकों के जरिये मदद दी जा सकती है। (Business Bhaskar)
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